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शैतानी किसने कर दी? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

शैतानी किसने कर दी?

एक बार कादियाँ (पंजाब) में अल्लाह मियाँ पहुँचा था। कादियाँ के नबी मिर्जा गुलाम अहमद के मरने पर अल्लाह शोक मनाने (पंजाब में मकानी बोलते हैं) आया था। यह नबी ने आप लिखा है। तब कादियाँ वालों को अल्लाह के आने का पता तक न चला। मैं कॉलेज का विद्यार्थी था। आर्य सभासदों के चन्दे मैं ही लाकर कोषाध्यक्ष को दिया करता था। जब ला. दाताराम का चन्दा लेने जाता था, तब उनके बहुत वृद्ध पिताजी ला. मलावामल की बैठकर बातें सुनने लग जाता था। आप मिर्जा के संगी साथी थे। आपने कभी अल्लाह के कादियाँ में आने की बात की पुष्टि नहीं की थी। आपने तब उसे  देखा ही नहीं था तो पुष्टि क्या करते?

टी.वी. देखते-देखते जब हज की दुर्घटना का दुखद दृश्य देखा तो अल्लाह के कादियाँ आने की घटना याद आ गई। इतने भोले-भाले हज यात्री स्त्रियाँ और वृद्ध मारे गये। दृश्य देाा नहीं गया। जैसे भारत में हिन्दू मन्दिरों व तीर्थों में भगदड़ मचने से आबाल वृद्ध मारे कुचले जाते हैं, वही कुछ वहाँ हुआ। परपरा से एक स्थान विशेष पर हाजी शैतान को पत्थर मारकर हज के कर्मकाण्ड को पूरा करते हैं। अंधविश्वास हिन्दू मुसलमान सब में फैले हुए हैं।

मक्का को मुसलमान ‘बैत अल्लाह’ (अल्लाह का घर) मानते हैं। अल्लाह के पास फरिश्तों की भारी सेना है-यह कुरान बताता है। न जाने फिर शैतान अल्लाह के घर में कैसे घुस जाता है? भगदड़ मचने का कारण क्या था? शैतानी वहाँ शैतान ने तो की नहीं। कहा जाता है कि किसी हाजी ने ही शैतानी की। अब वहाँ की सरकार यह जाँच करेगी कि शैतानी की किसने? शैतान को तो किसी ने वहाँ कभी देखा ही नहीं। जिसे अल्लाह इतने लबे समय से नहीं पकड़ पाया, उसका इन कंकरों से क्या बिगड़ेगा? हमारी हितकारी सीख बहुत कुछ तो मुसलमानों ने मान ली है, परन्तु जन-जन तक नहीं पहुँचाई। हम क्या कर सकते हैं?

शैतान विषयक हमारा न सही, सर सैयद की सीख ही सुन लेते तो इतने अभागे हाजी न मरते। सर सैयद ने लिखा है, ‘‘एक मौलाना ने सपने में शैतान को देख लिया। झट से कसकर एक हाथ से उसकी दाढ़ी पकड़कर खींची। दूसरे हाथ से शैतान के गाल पर पूरी शक्ति से थप्पड़ मारा। शैतान का गाल लाल-लाल हो गया। इतने में मौलाना की नींद टूट गई। देखा तो उसके हाथ में उसी की दाढ़ी थी और वह लाल-लाल गाल जिस पर थप्पड़ मारा गया था, वह भी मियाँ जी का अपना ही गाल था। सो पता चल गया कि शैतान कहीं बाहर नहीं है। आपके भीतर के आपके दुरित, दुर्गुण ही हैं।’’ आशा है इतनी बड़ी दुर्घटना से सब शिक्षा लेंगे।

हटावट का उदाहरण माँगा गया हैः- इतिहास में मिलावाट की तो बहुत चर्चा होती है। मैंने इतिहास प्रदूषण

हदीसों को बस हदीस ही समझेंः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

हदीसों को बस हदीस ही समझेंः

दो-तीन पाठकों ने ऋषि दयानन्द जी व आर्य समाज की हिन्दी को देन पर छपे एक ेलेख के बारे में कई प्रश्न पूछे हैं। मैं हदीसें गढ़ने वालों की कल्पनाशक्ति का तो प्रशंसक हूँ, परन्तु उनके फतवों पर कुछ नहीं कह सकता। गप्प तो गप्प ही होती है।1. स्वामी श्रद्धानन्द जी ने रात-रात में ‘सद्धर्म प्रचारक’ उर्दू साप्ताहिक को हिन्दी में कर दिया। यह सुनने-सुनाने में तो अच्छा लगता है, वैसे यह एक मनगढन्त कहानी है। सद्धर्म प्रचारक के अन्तिम महीनों के अंक इस गप्प की पोल खोलते हैं। आर्य समाचार मेरठ एक उर्दू मासिक था। इसके मुखपृष्ठ पर इसका नाम तो हिन्दी में भी छपता था। इसको हिन्दी का पत्र बताने वाले खोजी लेखक इसका एक अंक दिखायें। आर्य दर्पण मासिक भी द्विभाषी पत्र था। हिन्दी व उर्दू दो भाषाओं में होता था। उसे हिन्दी मासिक लिखना आंशिक सच है। मैंने इसके त्रिभाषी अंक भी देखे हैं। आर्य समाज के सदस्यों ने हिन्दी में लाखों पुस्तकें लिख दीं। इस पर तो टिप्पणी करना भी उचित नहीं। मिर्जा कादियानी भी ऐसे ही सैंकड़ों, सहस्रों की नहीं, लाखों की घोषणायें किया करता था। भगवान आर्य समाज को ऐसी रिसर्च व ऐसे खोजियों से बचावे । इससे अधिक इन प्रश्नों का उत्तर क्या दिया जावे?

दिल्ली के वे दीवाने धर्मवीरः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

दिल्ली के वे दीवाने धर्मवीरः

कुछ पाठकों की प्रेरणा से छोटे-छोटे दो-तीन प्रेरक प्रसंग दिल्ली के इतिहास से देता हूँ। याद रखिये, सिलाई स्कूल, बारात घर, होयोपैथी डिस्पैन्सरी-यह आर्य समाज का इतिहास नहीं। यह कार्य तो रोटरी क्लब भी करते हैं। स्वामी चिदानन्द जी पर दिल्ली में शुद्धि के लिए अभियोग चला। वे जेल गये। यातनायें सहीं। मौत की धमकियाँ मिलती रहीं। कभी दिल्ली में किसी ने उनकी चर्चा की?

दिल्ली में दो स्वामी धर्मानन्द हुए हैं। मेरा उपहास उड़ाया गया कि कौन था धर्मानन्द स्वामी? अरे भाई दिल्ली वालों! आप नहीं जानते तो लड़ते क्यों हो? पं. ओ3म् प्रकाश जी वर्मा, डॉ. वेदपाल जी, श्री विरजानन्द से पूछ लो कि करोल बाग समाज वाले कर्मवीर संन्यासी धर्मानन्द कौन थे। दिल्ली के पहले मुयमंत्री चौ. ब्रह्मप्रकाश ने दिग्विजय जी वाला काम कर दिया। बुढ़ापे में शादी रचा ली। सब लीडर बधाइयाँ दे रहे थे। हमारे स्वामी धर्मानन्द जी पुराने स्वतन्त्रता सेनानी थे। यह उनके घर जाकर लताड़ लगा आये कि यह क्या सूझा?

दिल्ली के पहले आर्य पुस्तक विक्रेता का नाम दिल्ली में कौन जानता है? वह थे श्री दुर्गाप्रसाद जी। पं. लेखराम ला. बनवारीलाल करनाल वालों के संग एक ग्रन्थ की खोज करने निकले। प्रातः से रात तक सारी दिल्ली की दुकानें छान मारीं। आर्य जाति की रक्षा के लिए एक पुस्तक में उसका प्रमाण देना था। अँधेरा होते-होते उन्हें वह ग्रन्थ मिल गया। कुछ और ग्रन्थ भी क्रय कर लिये। पुस्तक विक्रेता थे श्री दुर्गाप्रसाद जी आर्य। वह ताड़ गये कि यह ग्रन्थ तो कोई गवेषक स्कालर ही लेता है। यह ग्राहक कौन है?

पं. लेखराम जी भी दुकानदार को कभी मिले नहीं थे। पन्द्रह रुपये माँग तो लिए फिर पूछा, ‘‘अरे भाई आप हो कौन?’’ साथी ला. बनवारी लाल बोले, ‘‘आप नहीं जानते? यह हैं जातिरक्षक आर्य पथिक पं. लेखराम जी।’’ अब दुर्गाप्रसादजी ने कहा, ‘‘इनसे मैं इनका मूल्य नहीं लूँगा।’’ पं. लेखराम अड़ गये कि ‘‘मैं यह राशि दूँगा और अवश्य दूँगा।’’ मित्रों! तब रुपया हाथी के पैर जितना बड़ा होता था। पण्डित जी की मासिक दक्षिणा मात्र 30-35 रुपये थे। धर्मवीर पं. लेखराम तो धन्य थे ही, कर्मवीर दुर्गाप्रसाद के धर्मानुराग कााी तो कोई मूल्याङ्कन करे।

ऋषि की ऊँचाईः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

ऋषि की  ऊँचाईः

हमें पहले ही पता था कि इतिहास प्रदूषण का उत्तर तो किसी से बन नहीं पड़ेगा। एक-एक बात का उसमें प्रमाण दिया गया है। विरोधी विरोध के लिए मेरे साहित्य में से इतिहास की कोई चूक खोज कर उछालेंगे। मैं तो वैसे ही भूल-चूक सुझाने पर उसके सुधार करने का साहस रखता हूँ। इसमें विवाद व झगड़े का प्रश्न ही क्या है। पता चला कि कुछ भाई ऋषि की ॥द्गद्बद्दद्धह्ल ऊँचाई का प्रश्न उठायेंगे। फिर पता नहीं, पीछे क्यों हट गये। मैंने निश्चय ही ऋषि को एक लबा व्यक्ति लिखा है। ग्रन्थ में यत्र-तत्र इसके प्रमाण भी दिये हैं। आक्षेप करने वाले ऋषि की खड़ाऊँ के आधार पर उनका कद बहुत बड़ा नहीं मानते। प्रश्न जब पहुँच ही गया है, तो एक प्रमाण यहाँ दे देता हूँ।

लाहौर में एक पादरी फोरमैन थे। वह लाहौर में बहुत ऊँचे व्यक्ति माने जाते थे। एक दिन डॉ. रहीम खाँ जी की कोठी से ऋषि जी समाज में व्यायान देने जा रहे थे। उनका ध्यान सामने से आ रहे पादरी फोरमेन पर नहीं गया। पादरी ने ऋषि का अभिवादन किया तो साथ वालों ने उन्हें कहा कि सामने देखो, पादरी जी आपका अभिवादन करते आ रहे हैं। जब पादरी जी पास आये तो मेहता राधाकिशन (ऋषि के जीवनी लेखक) ने देखा कि पादरी जी ऋषि के कंधों तक थे। अब विरोधी का जी चाहे तो मुझे कोस लें। मैं इतिहास को, तथ्यों को और सच्चाई को बदलने वाला कौन? मैं हटावट, मिलावट, बनावट करके मनगढ़न्त हदीसें नहीं गढ़ सकता। ऋषि जी ने स्वयं एक बार अपनी ऊँचाई की चर्चा की थी। वह प्रमाण हमारे विद्वानों की पकड़ में नहीं आया। ऋषि-जीवन की चर्चा करने वालों को वह भी बता दूँगा। प्रमाण बहुत हैं। चिन्ता मत करें।

ऋषि जीवन-विचारः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

ऋषि जीवन-विचारः-

आर्य समाज के संगठन की तो गत कई वर्षों में बहुत हानि हुई है-इसमें कुछ भी सन्देह नहीं हैं। कहीं भी चार-छः व्यक्ति अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये मिलकर एक प्रान्तीय सभा या नई सार्वदेशिक सभा बनाने की घोषणा करके विनाश लीला आरभ कर देते हैं। इसके विपरीत ऋषि मिशन के प्रेमियों ने करवट बदलकर समाज के लिए एक शुभ लक्षण का संकेत दिया है। वैदिक धर्म पर कहीं भी वार हो, देश-विदेश केााई-बहिन झट से परोपकारिणी सभा से सपर्क करके उत्तर देने की माँग करते हैं। सभा ने कभी किसी आर्य बन्धु को निराश नहीं किया। पिछले 15-20 वर्षों के परोपकारी के अंकों का अवलोकन करने से यह पता लग जाता है कि परोपकारी एक धर्मयोद्धा के रूप में प्रत्येक वार-प्रहार का निरन्तर उत्तर देता आ रहा है।

नंगल टाउनशिप से डॉ. सरदाना जी ने, जंडयाला गुरु आर्यसमाज के मन्त्री जी ने सभा से सपर्क करके फिर इस सेवक को सूचना दी कि एक व्यक्ति ने फेसबुक पर ज्ञानी दित्तसिंह  के ऋषि दयानन्द से दो शास्त्रार्थों का ढोल पीटा है। जब सभा के विद्वानों ने पंजाब की यात्रा की थी, तब जालंधर मॉडल टाऊन समाज में भी डॉ. धर्मवीर जी के सामने ज्ञानी दित्तसिंह के एक ट्रैक्ट में ऋषि से तीन शास्त्रार्थों का उत्तर देने की माँग की थी। मैं साथ ही था। मैंने तत्काल कहा कि परोपकारी में उस पुस्तक का प्रतिवाद दो-तीन बार किया जा चुका है। लक्ष्मण जी वाले जीवन चरित्र के पृष्ठ 268,269 को देखें। यह दित्तसिंह की पुस्तक का छाया चित्र है। इसमें वह स्वयं को वेदान्ती लिखता है। वह सिख नहीं था। उस ट्रैक्ट में किसी सिख गुरु का नाम तक नहीं, न कोई गुरु ग्रन्थ का वचन है।

ऋषि से शास्त्रार्थ की सारी कहानी ही कल्पित है। तत्कालीन किसी ऋषि विरोधी ने भी दित्तसिंह से ऋषि के शास्त्रार्थ की किसी पुस्तक व पत्रिका में चर्चा नहीं की। भाई जवाहरसिंह ने ऋषि के बलिदान के पश्चात् आर्य समाज को छोड़ा । उसने भी दित्तसिंह ज्ञानी के शास्त्रार्थ का कभी कहीं उल्लेख नहीं किया। शेष आमने-सामने बैठकर जो पूछना चाहेंगे उनको और बता देंगे।

ठाकुर मुकन्दसिंह जी की कविताः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

ठाकुर मुकन्दसिंह जी की कविताः

ठाकुर मुकन्द सिंह जी ऋषिवर के सबसे पहले शिष्यों में से एक थे और सबसे लबे समय तक ऋषि के सपर्क में रहे। वे एक विनम्र सेवक थे। राहुल जी के पुरुषार्थ से यह तथ्य सामने आया है कि आप एक गभीर विद्वान् व कवि भी थे। आपकी पुस्तक ‘तहकीक उलहक’ के पृष्ठ 317 पर पद्य की ये पाँच पंक्तियाँ छपी हैं। इन्हें ऋषि के प्रति उनकी श्रद्धाञ्जलि समझें।

दयानन्द स्वामी का फैजान1 है, जो लिखी है मैंने यह नादिर2 किताब। मगर क्या करूँ छह बरस हो गये, कि त्यागा उन्होंने जहाने सराब3। दयानन्दी संवत हुए यह नये, इसी में मैं लिखता हूँ साले किताब4 सरे हर बरक से अयाँ साल है, दयानन्दी संवत का है यह हिसाब। सरे वाह गुरुदेव कर दीजिये, तो है दूसरा साल भी लाजवाब।

ऋषि के सबसे पहले शिष्यों में से रचित ऋषि जी पर यह पहली कविता हमारे हाथ लगी है।

जाति पाँति का विषः जातिवाद के विरुद्ध दहाड़ने वाले, दलितों के लिये घड़ियाली आँसू बहाने किसी भी दल व संस्था ने आज पर्यन्त दलितोद्धार के लिए प्राण देने वाले वीर रामचन्द्र, वीर मेघराज, भक्त फूलसिंह आदि का स्मारक बनवाया? उन्हें किसी ने कभी श्रद्धाञ्जलि दी? उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया? किसी और संस्था ने दलितों के लिए कोई बलिदान दिया? आज दलित-दलित का शोर मचाने वाले कभी दलितों के लिये पिटे या घायल हुए? राहुल केजरीवाल आज कहीं भी  पहुँच जाते हैं। जब फीरोजपुर के कारागार में नेहरू युग में सुमेर सिंह आर्य सत्याग्रही को पीट-पीट कर मारा गया, तब इन टर्राने वालों के दल व इनके पुरखा कहाँ थे? सज्जनो! देशवासियो!:-

नेहरूशाही ने दण्डा गुदा में दिया,

आप बीती यह कैसे सुनाऊँ तुहें?

आत्म हत्या व जातिवादःआत्महत्याएँ व जातिवाद की महामारियाँ फैल रही हैं। नेता लोग भाषण परोस रहे हैं। सामूहिक बलात्कार की घटनायें नित्य घटती हैं। दलों को, नेताओं को लज्जा आनी चाहिये। हिन्दू धर्म व संस्कृति के नये-नये व्यायाकार महाराष्ट्र में मन्दिर प्रवेश के लिये महिला सत्याग्रह पर आज भी वैसे ही मौन हैं, जैसे साठ वर्ष पूर्व काशी विश्वनाथ मन्दिर में दलितों के साथ प्रवेश करने पर विनोबा जी की पिटाई पर इनके बड़ों ने चुप्पी साघ ली थी। तब केवल आर्यसमाज ने भेदभाव व उस कुकृत्य की निन्दा की थी।

नारी की, कन्याओं की, संस्कृत की व संस्कृति की दुहाई देनेवाले नेता काशी जाते रहते हैं। काशी में कन्याओं के वेदाध्ययन के अधिकार की ध्वजा फहराने वाले और जाति-पाँति का विध्वंस करनेवाले पाणिनि गुरुकुल काशी की इनमें से किसने यात्रा की? इन्हें विवेकानन्द स्वामी तो याद रहते हैं, भेदभाव का दुर्ग ढहाने वाले काशी का यह गुरुकुल दिखाई ही नहीं देता। केजरीवाल भी तो गंगा स्नान का कर्मकाण्ड करके  काशी यात्रा कर आया।

पाद टिप्पणी

  1. उपकार 2. उत्तम, अद्भुत 3. नाशवान, अनित्य 4. पुस्तक लेखन का वर्ष

आर्य समाज को अपयश से बचाओः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

आर्य समाज को अपयश से बचाओः

व्यक्तियों में भी कमियाँ हो सकती हैं और संगठन में समाज में भी दोष हो सकते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो स्वयं तो कोई साहसिक कार्य आज पर्यन्त कर नहीं सके, उन्हें समाज के संगठन के दोष गिन-गिन कर सुनाने व प्रचारित करने की बड़ी लगन लगी रहती है। श्री सत्यपाल जी आर्य,मन्त्री प्रादेशिक सभा से व कुछ अन्य सज्जनों से पता चला कि एक जन्मजात दुखिया ने अपनी एक पोथी में चुन-चुन कर ऐसे कई नाम दिये हैं, जिनकी अन्तिम वेला में समाज ने सेवा नहीं की। ऐसे विद्वानों, महात्माओं, साधुओं में श्री महात्मा आनन्द स्वामी जी का नाम भी गिनाया गया है। लिखा है कि अन्तिम वेला में वे अपनी पुत्री के घर पर जा कर मरे।

यह बड़ी घटिया सोच है। हर कोई मानेगा कि समाज की जीवन भर सेवा करने वालों की अन्तिम वेला में समाज द्वारा सेवा व रक्षा की जानी चाहिये। अपनी कोई कमी है तो वह हमें दूर करनी चाहिये। जिस दुखिया ने दस नाम गिनाये हैं, उसको ऐसे दो चार नामों का भी पता न चला, जिनकी अन्तिम वेला में श्रद्धा भक्ति से आर्यसमाज ने सेवा की। क्या महात्मा नारायण स्वामी जी, स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी की, स्वामी आत्मानन्द जी की आर्यसमाज ने श्रद्धा भक्ति से सेवा नहीं की थी? पं. माथुर शर्मा जी, स्वामी सोमानन्द जी, स्वामी सपूर्णानन्द जी, स्वामी सुव्रतानन्द जी, स्वामी भूमानन्द जी, पं. देवप्रकाश जी, मास्टर पूर्णचन्द जी आदि की स्वामी सर्वानन्द जी ने दिनरात सेवा नहीं की थी? क्या पं. नरेन्द्र जी को आर्यों ने फैं क दिया? चौ. वेदव्रत जी वानप्रस्थी ने धूरी में मेरे पास प्राण छोड़े। मैं तब अविवाहित ही था। स्वामी ज्ञानानन्द जी तो चलते-चलते चल बसे। जिस महापुरुष ने सूची बनाकर आर्यसमाज के अपयश फैलाने का यश लूटा है, उसे यह भी तो बताना चाहिये था कि उसने किस विद्वान् की, संन्यासी की कभी सेवा की?

यह झूठ है कि महात्मा आनन्द स्वामी जी को आर्यसमाज ने अन्त में नहीं पूछा। वे बेटी के घर मरने तो नहीं गये थे। यह आकस्मिक घटना थी। मैं स्वयं महात्मा जी से विनती करके आया कि कुछ समय के लिए मेरे पास आयें। कोई काम नहीं लेंगे। न कथा और न प्रवचन होगा। सेवा करेंगे। धूरी के बाबू पुरुषोत्तमलाल जी ने आग्रपूर्वक कहा कि आप मेरे पास चलें। मैं बढ़िया इलाज करवाऊँगा। चौबीस घण्टे आपकी सेवा में रहूँगा। जब तक आपकी शवयात्रा नहीं निकलेगी, मैं सब काम धंधे छोड़कर आपकी सेवा में रहूँगा।

क्या स्वामी सर्वानन्द जी महाराज, महात्मा आनन्द स्वामी की सेवा से इनकार कर देते? क्या स्वामी सत्यप्रकाश जी की दीनानाथ जी ने जी जान से सेवा नहीं की थी? कुछ ऐसे नाम भी दुखिया जी गिना देते तो औरों को सेवा करने की प्रेरणा मिलती। हमारे आशय को आर्य जन समझें। महात्मा आनन्द स्वामी जी का अवमूल्यन मत करें। उनके सेवकों की कमी नहीं थी।

इस्लाम का वैदिक रंगः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

इस्लाम का वैदिक रंगः

महाकवि अकबर इलाहाबादी की कुल्लियात का एक भाग कुछ वर्ष पूर्व मैंने क्रय किया था। महाकवि के काव्य का विशेष अध्ययन करके उनके चिन्तन पर कुछ लिखना चाहता था सो इस बार विश्व पुस्तक मेले से उनकी कुल्लियात का दूसरा भाग भी ले आया। कवि जी की हमारे महाकवि शङ्कर जी तथा पं. पद्यसिंह जी शर्मा पूर्व सपादक परोपकारी से विशेष आत्मीयता थी। यह अब देश नहीं जानता।

महर्षि दयानन्द ने इस युग में डंके की चोट से कहा कि मनुष्य को अपने शुभ-अशुभ कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। अन्य सब अवैदिक मत पंथ (हिन्दू सप्रदाय भी) पापों का क्षमा होना मानते हैं। हमारे विद्वानों के इस विषय पर मौखिक व लिखित अनेक शास्त्रार्थ हो चुके हैं। महर्षि और उसके शिष्यों के प्रयास से नये-नये इस्लामी साहित्य पर इस वैदिक सिद्धान्त की गहरी छाप पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है। महाकवि अकबर जी का फारासी भाषा का एक पद्य पढ़कर विनीत झूम उठा-

ईं फित्ना कि बरपा शुद व ईं शोर कि बरखास्त,

इल्जाम ब गर्दूं मनेह अजमास्त कि बर मास्त।

अर्थात् यह जो झगड़ा व विपदा आ पड़ी है और हाहाकार मचा है, इसके लिये भाग्य को या ईश्वर को दोष मत दो। यह हमारे कर्मों का ही फल है जो लोग भोग रहे हैं। क्या यह इस्लाम का वैदिक रंग नहीं है?

श्री अनवर शेख ने इस्लाम में शैतान पर अपने दुष्कर्मों का दोष थोपने पर एक गभीर प्रश्न उठाया है। कुरान की छठी व उन्नीसवीं सूरत की एक-एक आयत में यह कहा गया है कि अल्लाह जिसे चाहे पथ भ्रष्ट करे और जिसे चाहे सन्मार्ग दिखावे। अल्लाह ने मनुष्यों पर शैतान छोड़ रखे हैं, फिर भला वे पाप क्यों न करें? मौलाना मौदूदी आदि सब इन आयतों का यही अर्थ करते हैं। अनवर शेख जी का प्रश्न इस्लाम की वैदिक सोच का ज्वलन्त प्रमाण है। यह स्वस्थ सोच ऋषि की देन है।

वे बहुत प्रसन्न हुयेःविश्व पुस्तक मेले में लक्ष्मण जी जिज्ञासु ने मुझे कहा- ईरान के फारसी साहित्य को देखिये। इनसे कुछ चर्चा करो। मैंने उनसे पूछा-क्या प्रो. महेशप्रसाद मौलवी फाजिल जी कविवर उमर ौयाम की रुबाइयों का संस्करण मुझे देंगे? महेश प्रसाद जी की ईरान यात्रा की भी उनसे संक्षिप्त चर्चा की। मेरे मुख से महेशप्रसाद जी के उस दुर्लभ संस्करण की चर्चा करके वे बहुत हर्षित हुए। कहा- यह तो अभी उपलध नहीं। कोई प्रकाशक इसे छपवायेगा ही। मुझे भी अच्छा लगा कि हमारे महान् विद्वान् की मौलिक देन को ईरान भूला नहीं है।

और वे चुप्पी साध गयेःलक्ष्मण जी मुझे मिर्जाइयों के स्टाल पर ले गये और कहा कि कुछ इनसे कहो। मैंने कहा- ‘दुर्रे समीं’ लेना चाहता हूँ। वे बोले- नहीं है। मैंने फिर ‘तजकरः’ माँगा। वे बोले- नहीं है। फिर एक और ग्रन्थ माँगा। कहा- नहीं है। उन्होंने स्वयं कोई बात न चलाई। मेरी हर बात पर न, न कहते गये और चुप्पी साध लेते। मैं भी समझ गया कि इनमें कोई मुझे जानता पहचानता है, अन्यथा ये तो हर नये शिकार की टोह में रहते हैं।

जमायते इस्लामी के स्टाल से मौलाना मौदूदी के कुरान-अनुवाद का अंग्रेजी – अनुवाद दिया गया। कहा- यदि आप इसे पढें, तो हम आपको देते हैं। मैंने कहा- ‘‘भाई जब मेरे सिर के बाल काले थे, मैंने तभी नियमित पाठक के रूप में ‘तर्जमानु-उल-कुरान’ को ध्यानपूर्वक पढ़ा था।’’ यह सुनकर उन्होंने सहर्ष मुझे वह ग्रन्थ भेंट कर दिया। यह उनकी मिशनरी सूझ थी कि वे ग्राहक को परखते व पहचानते थे।

विश्व को बता दो, सुना दो, हिला दोःप्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

विश्व को बता दो, सुना दो, हिला दोः-

पाणिनि ऋषि का सूत्र ‘स्वतन्त्रः कर्त्ता’ देकर महर्षि दयानन्द ने संसार में वैचारिक क्रान्ति का शंख फूँ क  दिया। स्वतन्त्रतापूर्वक कर्म करने वाला मनुष्य ही फल का भागीदार है। आज दुष्कर्म करने वाले को ही पूरे विश्व में न्यायालय दण्डित करते हैं। शैतान को दुष्कर्म करवाने के लिये न मक्का मदीना में और न ही रोम में फाँसी पर कभी चढ़ाया गया है। अपराधी को दण्ड देने से पूर्व मुनकिर व नकीर (दो फरिश्ते) साक्षी देने नहीं आते। ऋषि की दिग्विजय का डंका बयान बहादुर साक्षी जी महाराज नहीं बजायेंगे। आर्यों! आप ही को वैदिक नाद बजाना है। ऋषि का घोष ‘स्वतन्त्रः कर्त्ता’ सब ग्रन्थों में घुस रहा है। करवाचौथ तो दिखावे का कर्म काण्ड है। यह केवल अंधविश्वास है। कर्म पत्नी करती है और आयु पति की बढ़ जाती है।

अंधविश्वास की महामारीः अंधविश्वासों पर आचार्य सोमदेव जी, डॉ. धर्मवीर जी तथा लेखक परोपकारी में यदा-कदा लिखते ही रहते हैं। सुधारक में आचार्य विरजानन्द जी ने इसी विषय पर एक पठनीय लेख लिखा है। सब देशों में और सब मतों में बहुत अंधविश्वास पाये जाते हैं। मान्य विरजानन्द जी ने अपने लेख में कई अंधविश्वास गिनाये हैं, जिन्हें पढ़कर कलेजा फटता है। पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय जी लिखित Superstition  इस विषय की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। यह लाखों की संया में छपनी चाहिये। बिल्ली सड़क पर चलते आपके सामने से निकल जाये तो क्या यह अपशकुन नहीं? महानगरी मुबई में स्वामी श्री सत्यप्रकाश जी से प्रश्न पूछा गया। स्वामी जी ने कहा कि अनपढ़ बिल्ली भले-बुरे को उच्च शिक्षित हिन्दुओ से अधिक जानती है, यह बड़ी लज्जाजनक सोच है।

आचार्य रामदेव जीः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

आचार्य रामदेव जीः

आचार्य रामदेव जी के विषय में छपा है कि वह कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर महात्मा मुंशीराम जी के साथी सहयोगी बन गये। यह भ्रामक कथन है। महात्मा जी के  भक्त व सहयोगी तो वह कॉलेज में पढ़ते हुए ही बन गये। कॉलेज छोड़ा, पढ़ाई नहीं छोड़ी थी। यह जाँच का विषय है कि आचार्य जी ने बी.टी. पास की? क्या तब बी.टी. कक्षा थी? लाला सूर्यभानु, ला. चमनलाल, प्रिं. रामदित्तामल, मेहता जैमिनि, मास्टर दुर्गाप्रसाद, पं. मेहरचन्द, पि्रं. मेलाराम बर्क, चौ. रामभज दत्त भी बी.टी. नहीं थे। ट्रेण्ड टीचर इनमें से कुछ सज्जन अवश्य थे। मेरे विचार में सन् 1930 के आस-पास पंजाब, हरियाणा में बी.टी. कक्षा आरभ हुई। निश्चित सन् का पता भी दे दिया जावेगा। हमारी साहित्य सेवा का उपहास उड़ाओ-कुछ भी करो, परन्तु इतिहास का प्रदूषण तो महापाप है। इससे आर्य समाज को बचाना हमारा कर्त्तव्य है। भगवान आपका भला करें। अब आपक ो छुट्टी है, जो चाहे सो लिखते जाओ। भूल को स्वीकार न करना जब स्वभाव बन जाता है, तो आप इसे बदलने में अक्षम हैं।

हम आपके कहे का बुरा मानते नहीं।

हम जान गये आप हमें जानते नहीं।।

आर्य समाज का बोलबालाःअहमदाबाद के समीप भारत के एक विशाल आधुनिकतम वैज्ञानिक व्यवस्था के जैन पुस्तकालय में आर्य सामाजिक साहित्य पहुँचाने की परोपकारी में चर्चा की जा चुकी है। कुछ समय के पश्चात् और साहित्य वहाँ भेंट स्वरूप भेजा जावेगा। वहाँ से डॉ. हेमन्त कुमार जी ने चलभाष पर हमें धन्यवाद दिया है। उनका पत्र हमें आी नहीं मिला। मिल जावेगा। आपने निमन्त्रण दिया है कि एक बार आप लोग पुनः आवें। हमारा मार्ग दर्शन करें। हम आपके सुझावों का स्वागत करके पुस्तकालय का विकास करेंगे। श्री डॉ. धर्मवीर जी से विचार करके श्री सत्येन्द्र सिंह जी आदि चार-पाँच विद्वानों के साथ पुनः वहँा की यात्रा को निकलेंगे।

आर्य जनता ने परोपकारी में वहाँ महर्षि व आर्य विद्वानों का साहित्य पहुँचाने पर हर्ष व्यक्त किया है। इससे आर्यसमाज की शोभा बढ़ी है और बढ़ेगी। यह एक व्यक्ति का या मेरा निजी प्रयास नहीं था। ईश्वरीय प्रेरणा से डॉ. हेमन्त जी के कहे को शिरोधार्य करके मैंने वहीं साहित्य पहुँचाने का सङ्कल्प कर लिया। जिन कृपालु आर्यों ने सहयोग किया, उनमें हमारे रामगढ़ जैसलमेर के श्री पीताबर जी का परिवार भी है। अगली खेप के लिए भी आर्यजन सहयोग का आश्वासन दे रहे हैं। परोपकारिणी सभा में हम सबका का एक ही उद्देश्य है कि ऋषि का बोलबाला हो।