आर्य समाज को अपयश से बचाओः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

आर्य समाज को अपयश से बचाओः

व्यक्तियों में भी कमियाँ हो सकती हैं और संगठन में समाज में भी दोष हो सकते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो स्वयं तो कोई साहसिक कार्य आज पर्यन्त कर नहीं सके, उन्हें समाज के संगठन के दोष गिन-गिन कर सुनाने व प्रचारित करने की बड़ी लगन लगी रहती है। श्री सत्यपाल जी आर्य,मन्त्री प्रादेशिक सभा से व कुछ अन्य सज्जनों से पता चला कि एक जन्मजात दुखिया ने अपनी एक पोथी में चुन-चुन कर ऐसे कई नाम दिये हैं, जिनकी अन्तिम वेला में समाज ने सेवा नहीं की। ऐसे विद्वानों, महात्माओं, साधुओं में श्री महात्मा आनन्द स्वामी जी का नाम भी गिनाया गया है। लिखा है कि अन्तिम वेला में वे अपनी पुत्री के घर पर जा कर मरे।

यह बड़ी घटिया सोच है। हर कोई मानेगा कि समाज की जीवन भर सेवा करने वालों की अन्तिम वेला में समाज द्वारा सेवा व रक्षा की जानी चाहिये। अपनी कोई कमी है तो वह हमें दूर करनी चाहिये। जिस दुखिया ने दस नाम गिनाये हैं, उसको ऐसे दो चार नामों का भी पता न चला, जिनकी अन्तिम वेला में श्रद्धा भक्ति से आर्यसमाज ने सेवा की। क्या महात्मा नारायण स्वामी जी, स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी की, स्वामी आत्मानन्द जी की आर्यसमाज ने श्रद्धा भक्ति से सेवा नहीं की थी? पं. माथुर शर्मा जी, स्वामी सोमानन्द जी, स्वामी सपूर्णानन्द जी, स्वामी सुव्रतानन्द जी, स्वामी भूमानन्द जी, पं. देवप्रकाश जी, मास्टर पूर्णचन्द जी आदि की स्वामी सर्वानन्द जी ने दिनरात सेवा नहीं की थी? क्या पं. नरेन्द्र जी को आर्यों ने फैं क दिया? चौ. वेदव्रत जी वानप्रस्थी ने धूरी में मेरे पास प्राण छोड़े। मैं तब अविवाहित ही था। स्वामी ज्ञानानन्द जी तो चलते-चलते चल बसे। जिस महापुरुष ने सूची बनाकर आर्यसमाज के अपयश फैलाने का यश लूटा है, उसे यह भी तो बताना चाहिये था कि उसने किस विद्वान् की, संन्यासी की कभी सेवा की?

यह झूठ है कि महात्मा आनन्द स्वामी जी को आर्यसमाज ने अन्त में नहीं पूछा। वे बेटी के घर मरने तो नहीं गये थे। यह आकस्मिक घटना थी। मैं स्वयं महात्मा जी से विनती करके आया कि कुछ समय के लिए मेरे पास आयें। कोई काम नहीं लेंगे। न कथा और न प्रवचन होगा। सेवा करेंगे। धूरी के बाबू पुरुषोत्तमलाल जी ने आग्रपूर्वक कहा कि आप मेरे पास चलें। मैं बढ़िया इलाज करवाऊँगा। चौबीस घण्टे आपकी सेवा में रहूँगा। जब तक आपकी शवयात्रा नहीं निकलेगी, मैं सब काम धंधे छोड़कर आपकी सेवा में रहूँगा।

क्या स्वामी सर्वानन्द जी महाराज, महात्मा आनन्द स्वामी की सेवा से इनकार कर देते? क्या स्वामी सत्यप्रकाश जी की दीनानाथ जी ने जी जान से सेवा नहीं की थी? कुछ ऐसे नाम भी दुखिया जी गिना देते तो औरों को सेवा करने की प्रेरणा मिलती। हमारे आशय को आर्य जन समझें। महात्मा आनन्द स्वामी जी का अवमूल्यन मत करें। उनके सेवकों की कमी नहीं थी।

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