राधा को थिइन् ?

ओ३म्..

नपढेकाहरुको कुरो त के गरौँ र, आजभोली आँफूलाई निक्कै आधुनिक शिक्षा पढेलेखेको सम्झनेहरुको जिब्रोमा पनि ‘राधे-राधे’ शब्द झुण्डिएको हुन्छ। नगर तथा गाउँमा पनि राधा-कृष्णको मन्दिर देख्न पाइन्छ। तर कसैको मुखबाट योगिराज श्रीकृष्णकी प्राण प्रिय धर्म पत्नी रुक्मिणीको नाउ उच्चारण हुँदैन र उनको कहीं कुनै एउटा पनि मन्दिर देख्न सकिएको छैन। राधा को थिई भनेर कसैलाई सोध्यो भने पनि सिधा उत्तर पाइन्न कसैबाट। यस्तो घुमाउरो पाराले उत्तर दिने गर्दछन कि ति स्वयं पनि अन्तिममा अक्क-बक्क मै पर्छन्, मैले के भनें भनेर। किनकि तिनलाई पनि थाहा छैन वास्तवमा राधा एक काल्पनिक पात्र हो भनेर। बस्, सुगा रटाइ र भेडा-चाल मात्र छ…!

हजुर, राधालाई यसकारणले काल्पनिक पात्र भन्न सकिन्छ कि श्रीकृष्ण आफ्नो समयका एक महान आदर्शवान चरित्रले भरिएका महामानव थिए। महाभारतका सबै प्रमुख पात्रहरु भीष्म, द्रोण, व्यास,धृतराष्ट्र, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर आदिले श्रीकृष्णको महान-चरित्रको प्रशंसा गर्ने गर्दथे। उस् कालमा पनि परस्त्री संग अवैध संबंध राख्नु दुराचार नै मानिन्थ्यो। त्यसैकारण भीमले द्रौपदी तिर उठेका कामि कीचकका कामुक आँखा नै निकाल्दिएका थिए। र जयद्रथलाई युधिष्ठिरको बिशेष आग्रहमा मुण्डन मात्र गरेर बेइज्जत गरि छोडेका थिए। यदि श्रीकृष्णको पनि कुनै राधा नामकी स्त्री संग अवैध सम्बन्ध भएको भए श्रीकृष्णलाई मिथ्या दोषारोपण गर्ने वाला शिशुपालले त्यो प्रसंग पनि पक्कै उठाउने थियो। सम्पूर्ण महाभारतमा केवल कर्णलाई पालन-पोषण गर्ने आमा राधालाई छोडेर यस काल्पनिक राधाको नाम कहीं पनि छैन भने केका आधारमा यी अन्ध-भक्तहरु राधा-कृष्ण सरह हाम्रो वैदिक सभ्य समाजको सालिनता खण्डित गर्दै तरुण स्त्री-पुरुषलाई विवाह बन्धनमा नपरेर नै साथमा रहने अर्थात् दुराचार गर्ने स्वतंत्रता दिन चाहन्छन्?

भागवत् पुराणमा श्रीकृष्णको अनेकौं काल्पनिक लीलाहरुको वर्णन छ तर यी राधा रानीको नाउ त्याहाँ पनि  छैन। राधाको वर्णन मुख्य रूपले ब्रह्मवैवर्त पुराणमा आएको छ। यो पुराण वास्तवमा कामशास्त्र नै हो। जसमा श्रीकृष्ण राधा आदिको आडमा लेखकले  आफ्नो काम पिपासा शान्त गरेको छ। तर यहाँ पनि मुख्य कुरो यो छ कि यस एक ग्रन्थमा श्रीकृष्णको राधाका साथ्मा भिन्न-भिन्न सम्बन्ध दर्शाइएको छ। जसले स्वतः नै राधालाई काल्पनिक सिद्ध गर्दछ। हेरौं-

ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंडको पाँचौ अध्यायमा श्लोक २५ र २६ का अनुसार राधालाई कृष्णकी पुत्री सिद्ध गरिएको छ। किनकि राधा श्रीकृष्णको वामपार्श्व बाट उत्पन्न भएकी भनिएको छ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड अध्याय ४८ अनुसार राधा कृष्णकी पत्नी (विवाहिता) थीइन्, जसको विवाह ब्रह्माले गराएका थिए। यसै पुराणको प्रकृति खण्ड अध्याय ४९ श्लोक ३५/३६/३७/४० र ४७ का अनुसार राधाा श्रीकृष्णकी माइजू थीइन्। किनकि उनको विवाह कृष्णकी माता यशोदाका भाई रायणका साथ भएको थियो। गोलोकमा रायण श्रीकृष्णको अंशभूत गोप थियो। अतः गोलोकको नाताले राधा श्रीकृष्णकी पुत्रवधु भइन्।

के यस्तो ग्रंथ र यस्ता व्यक्तिलाई प्रमाण मान्न सकिन्छ? अनेकौं कविहरुले पनि यिनै पुराणहरुको काल्पनिक कथालाई आधार मानेर भक्तिको नाममा  शृंगारिक रचनाहरु लेखेका छन्। यी सब महाभारतका श्रीकृष्ण सम्म पुग्न नै सकेनन्। जसले पराई स्त्री संग त के भनौं र, आफ्नी विवाहिता परमप्रिय स्त्री रुक्मिणी संग पनि १२ वर्ष सम्म ब्रह्मचर्य ब्रत धारण गरेर तपस्या गरेपछि मात्र केवल संतान प्राप्ति हेतु समागम गरेको होस्, जसको हातमा मुरली हैन, दुष्टहरुलाई विनाश गर्नको लागि सुदर्शन चक्र थियो, जसलाई गीतामा योगेश्वर भनिएको छ, जसलाई दुर्योधन जस्तो अति कृतघ्नले पनि पूज्यतमों लोके (संसारमा सबभन्दा अधिक पूज्य) भनेको छ, जसले आधा प्रहर रात्रि शेष रहँदै शैया त्यागेर ईश्वरको उपासना गर्ने गर्दथ्यो, युद्ध र यात्रामा पनि जसले निश्चित रूपले संध्या गर्दथ्यो, जसको गुण, कर्म, स्वभाव र चरित्रलाई महर्षि दयानन्दले आप्तपुरुषहरुको सदृश भनेका छन्, बंकिम चन्द्रले जसलाई सर्वगुणान्ति र सर्वपापरहित आदर्श चरित्र भनेर लेखेका छन्, जसले धर्मात्माहरुको रक्षाको लागि धर्म र सत्यको परिभाषा पनि बदलदिन्थ्यो। यस्ता धर्म-रक्षक एवं दुष्ट-संहारक श्रीकृष्णको अस्तित्त्वलाई मान्ने उदारता यी तथाकथित् धर्मभिरु तथा दुराग्रहग्रस्त इतिहास वेत्ताहरुले देखाउलान् ? अस्तु..

नमस्ते..!

एक शास्त्रार्थ

एक शास्त्रार्थ

हरियाणा के लोककवि पण्डित बस्तीराम ने ऋषि के दर्शन किये और जीवनभर वैदिक धर्म का प्रचार किया। शास्त्रार्थ की भी अच्छी सूझ थी। एक बार पौराणिकों से पाषाण-पूजा पर उनका शास्त्रार्थ हुआ। पौराणिक पण्डित से जब और कुछ न बन पड़ा तो अपनी परज़्परागत कुटिल, कुचाल चलकर बोला-‘‘आपका ओ3म् किस धातु से बना है?’’

पण्डितजी व्याकरण के चक्र में पड़कर विषय से दूर जाना चाहते थे। पण्डित बस्तीरामजी सूझवाले थे। श्रोताओं को सज़्बोधित करके बोले, ‘‘ग्रामीण भाई-बहिनो! देखो, कैसा विचित्र प्रश्न यह मूर्ज़िपूजक पण्डित पूछ रहा है कि तुज़्हारा ओ3म् किस धातु से बना है। अरे! सारा संसार जाने कि हम प्रतिमा-पूजन नहीं मानते। इसी विषय पर तो शास्त्रार्थ हो रहा है। अरे पण्डितजी! हमारा ‘ओ3म्’ तो निराकार है, सर्वव्यापक है। वह न पत्थर से बना, न तांबे से, न पीतल से और न चाँदी-सोने से। तुज़्हारा गणेश किसी भी धातु से बना हो, भले ही मिट्टी का गणेश बना लो। हमारा ओ3म् तो सब जानें किसी भी धातु से नहीं बना।’’ सब ग्रामीण श्रोता पण्डित

बस्तीराम व वैदिक धर्म का जय-जयकार करने लगे। पौराणिक पण्डित भी बड़ा चकराया कि ज़्या उज़र दे वह आप ही अपने जाल में ऐसा फँसा कि निकलने का समय ही न मिला।

HADEES : PUNISMENT FOR THEFT

PUNISMENT FOR THEFT

�Aisha reports that �Allah�s Messenger cut off the hands of a thief for a quarter of dInAr and upwards� (4175).  AbU Huraira reports the Prophet as saying: �Let there be the curse of Allah upon the thief who steals an egg and his hand is cut off, and steals a rope and his hand is cut off� (4185).

The HadIs merely confirms the QurAn, which also prescribes: �And as for the man who steals and the woman who steals, cut off their hand as a punishment for what they have done, an exemplary punishment from Allah, and Allah is Mighty and Wise� (5:38).  The translator, in a long two-page note, tells us that �it is against the background of this social security scheme envisaged by Islam that the QurAn imposes the severe sentence of hand-cutting as deterrent punishment for theft� (note 2150).

�Aisha reports a similar case.  At the time of the victorious expedition to Mecca, a woman committed some theft.  Although UsAma b. Zaid, the beloved of Muhammad, interceded in her behalf, her hand was cut off.  �Hers was a good repentance,�  �Aisha adds (4188).  The translator assures us that after the punishment �There was a wonderful change in her soul� (note 2152).

author : ram swarup

हदीस : ”इंशा अल्लाह“ की शर्त

”इंशा अल्लाह“ की शर्त

अगर कोई क़सम लेते वक्त ”अल्लाह ने चाहा तो“ (इंशाअल्लाह) कह देता है तो वह प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करनी चाहिए। सुलेमान के 60 बीवियां थीं। एक दिन उसने कहा-“मैं निश्चित ही इनमें से हरेक के साथ रात में मैथुन करूँगा और उनमें से हरेक एक मर्द बच्चे को जन्म देगी जो घुड़सवार बनेगा और अल्लाह के काम के लिए लड़ेगा।“ लेकिन उनमें से सिर्फ एक गर्भवती हुई और उसने भी एक अधूरे बच्चे को जन्म दिया। मुहम्मद ने कहा-“अगर उसने इंशा अल्लाह कहा होता, तो वह असफल नहीं होता।“ कई-एक अन्य हदीस भी ऐसा ही किस्सा बयान करती है। उनमें बीवियों की संख्या 60 से बढ़ कर 70 और फिर 90 हो जाती है (4066-4070)।

author : ram swarup

इन्हें सोने दें

इन्हें सोने दें

आर्यसमाज धारूर महाराष्ट्र का उत्सव था। श्री पण्डित नरेन्द्रजी हैदराबाद से पधारे। रात्रि में सब विद्वान् आर्यसमाज के प्रधान पण्डित आर्यभानुजी के विशाल आंगन में सो गये। इनमें से एक

अतिथि ऐसा था जिसे रात्रि को अधिक ठण्डी अनुभव होती थी, परन्तु संकोचवश ऊपर के लिए मोटा कपड़ा न माँगा।

प्रातःकाल सब लोग बाहर शौच के लिए चलने लगे तो उस अतिथि का नाम लेकर एक ने दूसरे से कहा-इन्हें भी जगा लो सब इकट्ठे चलें। इसपर पण्डित नरेन्द्रजी ने कहा-ऊँचा मत बोलो,

जाग जाएँगे। जगाओ मत, सोने दो। इन्हें रात को बड़ी ठण्डी लगी। सिकुड़े पड़े थे। मैंने ऊपर शाल ओढ़ा दिया। ये शज़्द सुनकर वह सोया हुआ व्यक्ति जाग गया। वह व्यक्ति इन्हीं पंक्तियों का लेखक था। पण्डित नरेन्द्रजी रात्रि में कहीं लघुशङ्का के लिए उठे। मुझे सिकुड़े हुए देखकर ऊपर शाल डाल दिया। इस प्रकार रात्रि के पिछले समय में अच्छी निद्रा आ गई, परन्तु सोये हुए

यह पता न लगा कि किसने ऊपर शाल डाल दिया है।

पण्डित नरेन्द्रजी ने आर्यसमाज लातूर के उत्सव पर भी एक बार मेरे ऊपर रात्रि में उठकर कपड़ा डाला था, जिसका पता प्रातः जागने पर ही लगा। ऐसी थी वे विभूतियाँ जिनके कारण आर्यसमाज

चमका, फूला और फला। इन्हें दूसरों का कितना ध्यान था!

HADEES : HADUD

HADUD

HadUd, the penal law of Islam, is dealt with in the fifteenth book. The ahAdIs in this book relate to measures of punishment defined either in the QurAn or in the Sunnah.  The punishments include the amputation of limbs for theft and simple robbery; stoning to death for adultery; a hundred stripes for fornication; eighty stripes for falsely accusing a married woman, and also for drinking wine; and death for apostasy, as we have already seen.

हदीस : क़सम तोड़ना

क़सम तोड़ना

जरूरत पड़ने पर खुद अल्लाह ने क़सम तोड़ देने की इज़ाज़त दी है। ”अल्लाह ने पहले ही अपनी कसमें तोड़ देने की तुम्हें इजाज़त दे रखी है“ (कुरान 66/2)।

 

ऐसी प्रतिज्ञा को जिसमें अल्लाह की नाफ़रमानी हो या जो ग़ैर-इस्लामी काम के लिए ली गयी हो, पूरा करना जरूरी नहीं है। मुस्लिम कानून के पंडितों में इस बात को लेकर मतभेद है कि जो प्रतिज्ञा अज्ञान की दशा में (अर्थात् इस्लाम क़बूल करने के पहले) की गई हो वह शिक्षा बाध्यकारी है या नहीं। कई-एक का मत है कि अगर वह प्रतिज्ञा इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ न हो, तो उसे पूरा करना चाहिए।

 

कोई भी कसम तोड़ी जा सकती है, विशेषकर तब जब कि क़सम खाने वाला कोई बेहतर काम करना चाहता हो। मुहम्मद कहते हैं-”किसी ने कसम ली, पर उससे कुछ बेहतर करने को पा गया तो उसे वह बेहतर काम करना चाहिए“(4057)। कुछ लोगों ने एक बार मुहम्मद से सवारी पाने की मांग की। मुहम्मद ने कसम खायी-”क़सम अल्लाह की ! मैं तुम लोगों को सवारी नहीं दे सकता।“पर लोगों के चले जाने के फौरन बाद उन्होंने उन लोगों को वापस बुलाया और उनसे सवारी के लिए ऊंट देने का प्रस्ताव किया। मुहम्मद ने समझाया-”जहां तक मेरा सम्बन्ध है, अल्लाह की कसम ! अगर अल्लाह चाहे तो मैं कसम नहीं खाऊंगा। पर अगर बाद में मैं कोई बात बेहतर समझूंगा, तो मैं ली हुई कसम तोड़ दूंगा और उसका प्रायश्चित करूँगा और जो बेहतर है वह करूँगा (4044)।

author : ram swarup

आर्यों की देवी व देवता

आर्यों की देवी व देवता

स्वामी वेदानन्दजी तीर्थ जब खेड़ाखुर्द (दिल्ली) का गुरुकुल चलाते थे तो सहदेव नाम का एक गठीला, परन्तु जड़बुद्धि युवक उनके पास रहता था। ब्रह्मचारी में कई गुण भी थे। ब्रह्मचारी में

गुरुभक्ति का भाव तब बहुत था और व्यायाम की सनक थी। गुरुकुल के पास एक धनिक कुज़्भकार रहता था। उसे स्वामी वेदानन्दजी से बड़ी चिढ़ थी। चिढ़ का कारण यह था कि वह

समझता था कि आर्यसमाजी देवी-देवताओं को नहीं मानते। स्वामीजी चाहते थे कि इस व्यक्ति को आर्यसमाजी बनाया जाए, यह बड़ा उपयोगी सिद्ध होगा। जब ब्रह्मचारी शिक्षा के लिए निकलते तो यह कभी भी किसी को कुछ भी भिक्षा के लिए न देता। उसका एक ही रोष था कि आर्य लोग देवी-देवताओं को नहीं मानते। स्वामी वेदानन्दजी उसे बताते कि माता, पिता, गुरु आचार्य, अतिथि आदि देव हैं, परन्तु ये बातें उसकी समझ में न आतीं।

एक दिन ब्र0 सहदेव भिक्षा के लिए निकला। उसी धनिक कुज़्भकार के यहाँ गया। उसने अपना प्रश्न दोहरा कर भिक्षा देने से इन्कार कर दिया। ब्रह्मचारी ने कहा-‘‘आर्य लोग भी देवी-देवताओं

को मानते हैं।’’ उसने कहा, स्वामी दयानन्दजी का लिखा दिखाओ। ब्रह्मचारी जी ने वैदिक सन्ध्या आगे करते हुए कहा, यह पढ़ो ज़्या लिखा है?

‘ओ3म् शन्नो देवी’ दिखाकर ब्र0 ने कहा देख ‘देवी’ शज़्द यहाँ है कि नहीं। फिर उसने संस्कार-विधि से देवयज्ञ दिखाया तो वहाँ ‘विश्वानि देव’ पढ़कर वह धनिक दङ्ग रह गया। उसने कहा-

‘‘मुझे तो आज ही पता चला कि आर्यसमाज ‘शन्नो देवी’ तथा ‘विश्वानि देव’ को मानता है, परन्तु स्वामी वेदानन्दजी ने मुझे ज़्यों नहीं बतलाया?’’

इस घटना के पश्चात् वह व्यक्ति दृढ़ आर्य बन गया। स्वामीजी का श्रद्धालु तथा गुरुकुल का सहायक बन गया।1

यही ब्रह्मचारी फिर स्वामी अग्निदेवभीष्म के नाम से जाना जाता था।

 

HADEES : DIYAT (INDEMNITY)

DIYAT (INDEMNITY)

Muhammad retained the old Arab practice of bloodwite (4166-4174).  Thus, when a woman struck her pregnant co-wife with a tent-pole, causing her to have a miscarriage, he fixed �a male or female slave of best quality� as the indemnity �for what was in her womb.� An eloquent relative of the woman pleaded for the cancellation of the indemnity, arguing: �Should we pay indemnity for one who neither ate, nor made any noise, who was just Eke a nonentity?� Muhammad brushed aside his objection, saying that the man was merely talking �rhymed phrases like the rhymed phrases of desert Arabs� (4170).

author : ram swarup

हदीस : प्रतिज्ञाएं और क़समें

प्रतिज्ञाएं और क़समें

बारहवीं और तेरहवीं किताबें क्रमशः प्रतिज्ञाओं (अल-नज़र) और क़समों (अल-ऐलान) पर है। यहां हम दोनों का साथ-साथ विचार करेंगे। मुहम्मद प्रतिज्ञाएं करने को नापसन्द करते हैं, क्योंकि प्रतिज्ञा “न तो (किसी काम को) जल्दी पूरा करने करने में मददगार होती और न ही (इसमें) रुकावट बनती है“ (4020)। अल्लाह को किसी आदमी की प्रतिज्ञाओं की जरूरत नहीं। एक शख़्स ने एक बाद प्रतिज्ञा की कि वह पैदल चल कर काबा जायेगा। तब मुहम्मद ने कहा-”अल्लाह इसके प्रति उदासीन है कि कोई अपने ऊपर कष्ट लाद रहा है।“ और ”उसे सवारी पर जाने का हुक्म दिया“ (4029)।

 

मुहम्मद मोमिनों को लात या उज्जा या अपने पिताओं की क़सम खाने से भी मना करते हैं। वे कहते हैं-”बुतों की क़सम मत खाओ और न अपने पिता की“ (4043)। लेकिन वे अल्लाह की क़सम खाने की अनुमति देते हैं, जिसके लिए ईसामसीह ने मना किया था। मुहम्मद कहते हैं कि ”जिसे क़सम खानी हो उसे अल्लाह की क़सम खानी चाहिए“ (4038)।

author : ram swarup