एक शास्त्रार्थ

एक शास्त्रार्थ

हरियाणा के लोककवि पण्डित बस्तीराम ने ऋषि के दर्शन किये और जीवनभर वैदिक धर्म का प्रचार किया। शास्त्रार्थ की भी अच्छी सूझ थी। एक बार पौराणिकों से पाषाण-पूजा पर उनका शास्त्रार्थ हुआ। पौराणिक पण्डित से जब और कुछ न बन पड़ा तो अपनी परज़्परागत कुटिल, कुचाल चलकर बोला-‘‘आपका ओ3म् किस धातु से बना है?’’

पण्डितजी व्याकरण के चक्र में पड़कर विषय से दूर जाना चाहते थे। पण्डित बस्तीरामजी सूझवाले थे। श्रोताओं को सज़्बोधित करके बोले, ‘‘ग्रामीण भाई-बहिनो! देखो, कैसा विचित्र प्रश्न यह मूर्ज़िपूजक पण्डित पूछ रहा है कि तुज़्हारा ओ3म् किस धातु से बना है। अरे! सारा संसार जाने कि हम प्रतिमा-पूजन नहीं मानते। इसी विषय पर तो शास्त्रार्थ हो रहा है। अरे पण्डितजी! हमारा ‘ओ3म्’ तो निराकार है, सर्वव्यापक है। वह न पत्थर से बना, न तांबे से, न पीतल से और न चाँदी-सोने से। तुज़्हारा गणेश किसी भी धातु से बना हो, भले ही मिट्टी का गणेश बना लो। हमारा ओ3म् तो सब जानें किसी भी धातु से नहीं बना।’’ सब ग्रामीण श्रोता पण्डित

बस्तीराम व वैदिक धर्म का जय-जयकार करने लगे। पौराणिक पण्डित भी बड़ा चकराया कि ज़्या उज़र दे वह आप ही अपने जाल में ऐसा फँसा कि निकलने का समय ही न मिला।

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