परोपकारी मासिक, वर्ष २४, अङ्क ११, आश्विन २०३१ वि. में श्री पं. फूलचन्द शर्मा निडर भिवानी वालों का ‘आयु को निश्चित न मानने वालों से कुछ प्रश्र’ शीर्षक एक लेख छपा है। उसमें उन्होंने आयु निश्चित सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। आर्य विद्वानों में आयु निश्चित है अथवा अनिश्चित। इस विषय में मतभेद है। एक वर्ग वाले मानते हैं कि आयु निश्चित है और दूसरे वर्ग वाले कहते हैं कि अनिश्चित है। इस विषय में दो-बार शास्त्रार्थ हुआ। दूसरी बार का शास्त्रार्थ ‘दयानन्द सन्देश’ वर्ष २, अङ्क ९, १० के विशेषाङ्क के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसको देखने से दोनों पक्ष वालों के मूलभूत विचार स्पष्ट होते हैं। किसी बात को सिद्ध करने के लिए प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय … Continue reading आयु को निश्चित मानना वेद विरुद्ध है: -ब्र. वेदव्रत मीमांसक→
ओ३म्.. श्रीकृष्ण एक महान व्यक्तित्व आउनुहोस्, हामी पनि योगिराज श्रीकृष्णको महान चरित्रलाई जानेर आफ्नो जीवनमा अपनाउने संकल्प लिउँ: (१) *जुवा विरोधी:-* उनि जुवाको घोर विरोधी थिए। जुवालाई एक अत्यन्तै ग्रिनित व्यसन मान्दथे। जब उनले काम्यक वनमा युधिष्ठिर संग भेट गरे तब युधिष्ठिरलाई भनेका थिए:- आगच्छेयमहं द्यूतमनाहूतोsपि कौरवैः । वारयेयमहं द्यूतं दोषान् प्रदर्शयन् ।।-(वनपर्व १३/१-२) अर्थ:- हे राजन् ! यदि म पहिले द्वारिकामा या उसको निकट हुन्थें भने तपाईहरु यस भारी संकटमा पर्नुहुने थिएन। म कौरवहरुको अनुमति बिना नै उक्त द्यूत-सभामा जाने थिएँ र जुवाको अनेकौं दोष देखाएर त्यसलाई रोक्ने पूरा चेष्टा गर्ने थिएँ। (२) *मदिरा विरोधी:-* उनि मदिरापानका घोर विरोधी थिए। उनले यादवहरुलाई मदिरापान गर्न प्रतिबन्ध लगाएका थिए र त्यसको सेवन गर्नेलाई मृत्युदण्डको व्यवस्था गरेका थिए। अद्यप्रभृति सर्वेषु वृष्ण्यन्धककुलेष्विह । … Continue reading श्रीकृष्ण एक महान व्यक्तित्व (आर्य विचार)→
जिज्ञासा- कुछ प्रश्रों के द्वारा मैं अपनी शंकाएँ भेज रही हँू। कृपया उनका निवारण कीजिए। (क) ‘गायत्री मन्त्र’ और ‘शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।’ दोनों मन्त्र सन्ध्या में दो-दो बार आयें हैं इनका क्या महत्त्व है? (ख) कुछ विद्वानों का कथन है कि प्रात:काल की सन्ध्या पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए और सायंकाल की सन्ध्या पश्चिम दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। इसमें क्या भेद है? (ग) दैनिक यज्ञ करने वाला व्यक्ति यदि रुग्ण हो जाये या किसी कारणवश ५-७ दिन के लिए बाहर चला जाये, यज्ञ न कर पाये और घर में दूसरा व्यक्ति यज्ञ करने वाला न हो तो वह क्या दैनिक यज्ञ का अनुष्ठान अपूर्ण हो जाता है? यज्ञकत्र्ता क्या करे? (घ) परमाणु … Continue reading जिज्ञासा समाधान : – आचार्य सोमदेव→
मैं और डॉ. धर्मवीर जी एक ही कुल के अन्तेवासी थे। वह महर्षि दयानन्द सरस्वती के कर्मठ, तपस्वी, प्रिय शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द की तप:स्थली गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार थी। वहाँ से डॉ. धर्मवीर जी ने एम.ए. और आयुर्वेदाचार्य किया और मैंने वेदालंकार। श्रद्धेय तप:पूत, सरल, प्राञ्जल, गुरुवर्य पं. रामप्रसाद जी वेदालंकार, आर्यनगर, ज्वालापुर हरिद्वार में उनके आवास पर मैं वेदपठन के लिये गया था। तब डॉ. धर्मवीर जी अपनी धर्मपत्नी ज्योत्स्ना जी के साथ स्नातक से पदौन्नत हो ‘नव-गृही’ (गृहस्थी) बन आचार्य जी को प्रथम बार मिलने आये थे। उस समय आर्यसमाज और गुरुकुल का स्वर्णिमकाल था। अतित के गुरु शिष्य के गौरवशाली संबन्ध का कितना सुन्दर निरुपण है यह रूपक। अन्तेवासी आचार्य चरणों में समित्पाणि होकर आया था। ‘‘सा … Continue reading मेरे अंतेवासी बन्धु : डॉ. धर्मवीर: -स्वामी वेदात्मवेश→
स्वामी दयानन्द ने ही स्वराज्य की चिंगारी सुलगाई थी। उसी चिंगारी से श्रद्धानन्द ने क्रान्ति का दावानल फैलाया था। कोई माने या न माने, सत्य तो यही है। आर्यवीरों की कुर्बानी से ही आजादी आई थी। बालक मुन्शीराम का जन्म पंजाब प्रान्त के तलवन (जालन्धर) ग्राम के लाला नानकचन्द के घर सन् १८५६ को हुआ था। पुरोहितों ने बच्चे का नाम ‘बृहस्पति’ रखा, परन्तु पिता ने उनका नाम मुंशीराम रखा। बदा में महात्मा गाँधी ने उनके नाम के आगे ‘महात्मा’ शब्द और जोड़ दिया। पिता नानकचन्द उन दिनों शहर कोतवाल थे। बरेली में स्थायी नियुक्ति हो जाने पर पिता ने परिवार को तलवन से बरेली में ही बुला दिया। बरेली में मुंशीराम को महर्षि दयानन्द के दर्शन हुए। उनके भाषणों … Continue reading स्वामी श्रद्धानन्द जी का ९०वाँ बलिदान दिवस: – चान्दराम आर्य→
ओ३म् अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद: जब-जब अधर्मको वृद्धि हुन्छ र धर्मको ह्रास हुन्छ, तब-तब ईश्वरले अवतार धारण गर्दछ, ईश्वर यस धराधाममा अवतार लिन्छ। यसको पुष्टिमा बिशेष गरि मानिसहरुले गीताको निम्न श्लोक प्रमाण स्वरूप दिने गर्दछन :- यदा यदा हि धर्मस्यग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ (गीता ४/७-८) यी उपरोक्त गीताका श्लोकहरुमा अवतारको प्रमुख कारण हामीले देख्यौं अब देवी भागवत पुराणमा अवतार लिनु पर्ने कारण हेर्नुस् के लेखेको छ – शपामि त्वां दुराचारं किमन्यत् प्रकरोमिते। विध्ुारोहं कृतः पाप त्वयाऽहं शापकारणात्।। अवतारा मृत्युलोके सन्तु मच्छापसंभवाः। प्रापो गर्भभवं दुःख भुक्ष्ंव पापाज्जनार्दन।। यी देवी भागवतको श्लोकहरुमा अवतारको कारण धर्मको रक्षा वा अधर्मको विनाश गर्नको लागि नभएर भृगुको श्राप भोग्न भनिएको छ। अर्थात् महर्षि भृगुले विष्णुलाई … Continue reading अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद:→
ओ३म्.. जगत मिथ्या हैन.. “सन्मूलाः सोम्येमाः प्रजाः सदायतनाः सत्प्रतिष्ठाः” (छा.उ. ६।८।४) भावार्थ:- हे सोम्य ! यी प्रजाहरु सत्कारण, सत आश्रयवाला र सतमा प्रतिष्टित छन्। यहाँ जे पनि छ, त्यो आफ्नो स्वरूपमा सत् छ, मिथ्या केहि छैन। सबै उपनिषदहरुको शीर्ष स्थानमा एक सन्दर्भ पाइन्छ, जो यस प्रकार छ: ओ३म् पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते|| यस्तो प्रतीत हुन्छ कि यस सन्दर्भमा जे भनिएको छ, त्यसैको विस्तृत विवरण सबै उपनिषदहरुमा प्रस्तुत भएको छ। फलतः यो सबै उपनिषदहरुको सार हो। यस सन्दर्भको सार पनि पहिलो दुई पदमा निहित छ, बाँकी सबै त्यसैको व्याख्यान हो। ति दुई पद हुन्- “अदस्” र “इदम्”। “अदस्” परोक्ष छ र “इदम्” प्रत्यक्ष। “अदस्” चेतन हो “इदम्” अचेतन, जड। “अदस्” परोक्ष परब्रह्म परमात्मा हो, “इदम्” प्रत्यक्ष अचेतन(जड) अगणित लोक-लोकान्तरहरुको … Continue reading जगत मिथ्या हैन..→
जब मनुष्य को जैसी आवश्यकता होती है, जैसी इच्छा करता है। यदि उसकी वह इच्छा पूरी हो जाती है तो सुख अनुभव करता है, इच्छा के पूरा होने में बाधाएँ आती हैं तो दु:ख अनुभव करता है, इसलिए आवश्यकता, इच्छा और समाधान के क्रम में सन्तुलन बना रहना चाहिए। सन्तुलन बनाये रखना प्राकृतिक नियम है। प्रकृति अपने स्वाभाविक क्रम में सन्तुलन की प्रक्रिया को निरन्तर जारी रखती है। वर्षा का जल भूमि पर गिरकर तथा अन्य तत्त्वों के साथ मिलकर अशुद्ध होता है। मनुष्यों, पशुओं, प्राणियों के द्वारा उपयोग में लिया जाकर उत्सर्जित पदार्थों के संयोग से मलिनता को प्राप्त होता है और बहकर नाली, नाले, नदी बनकर समुद्र में मिल जाता है या तालाबों में एकत्रित हो जाता है। … Continue reading पर्यावरण की समस्या – उसका वैदिक समाधान: डॉ धर्मवीर→
ओ३म्.. उपनिषदको अमर सन्देश (‘वेद-मण्डन ब्लग’ बाट) उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।। (कठोपनिषद: ३/१४) अर्थात्, आफ्नो चरम लक्ष्य प्राप्त गर्नको लागि हे मनुष्य! उठ, जाग र आफ्ना श्रेष्ठ (विद्वान् एवं योगी) पुरुषहरुको नजिक गएर ब्रह्मज्ञान सिक। यो ब्रह्मज्ञानको मार्ग तेज छुराको धार समान अत्यन्त दुर्गम छ। यस्तो परमात्मालाई साक्षात्कार गर्नेहरुले उपदेश दिन्छन्। कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः । (र्इशावास्योपनिषद:२ ) अर्थात्, हे मनुष्य ! जीवन भरि श्रेष्ठ कर्म गरेर नै जिउने इच्छा गर। तेन त्यक्तेन भुन्जीथा मा गृध्ः कस्यस्विद् धनम्।। (र्इशावास्योपनिषद:१) अर्थात्, अनासक्ति भावले संसारको भोगहरुलाई भोग र कसैको धन या वस्तुको इच्छा नगर। न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः ।। (कठोपनिषद:१/२७) अर्थात्, मनुष्यलाई धनबाट कहिल्यै तृप्ति हुन सक्दैन। नाविरतो दुश्चरितान्नाशान्तो नासमाहितः । नाशान्तमानसो वापि प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात् ।। (कठोपनिषद:२/२४) … Continue reading उपनिषदको अमर सन्देश→
‘सम्पूर्ण जीवन चरित्र-महर्षि दयानन्द’ को क्यों पढ़ें?:- गत वर्ष ही इस विनीत ने श्रीयुत् धर्मेन्द्र जी जिज्ञासु तथा श्री अनिल आर्य को बहुत अधिकार से यह कहा था कि आप दोनों इस ग्रन्थ के गुण-दोषों की एक लम्बी सूची बनाकर कुछ लिखें। मुद्रण दोष के कारण कहीं-कहीं भयङ्कर चूक हुई है। जो इस ग्रन्थ में मौलिक तथा नई खोजपूर्ण सामग्री है, उसको मुखरित किया जाना आवश्यक है। विरोधियों, विधर्मियों ने ऋषि की निन्दा करते-करते जो महाराज के पावन चरित्र व गुणों का बखान किया है, वह Highlight मुखरित किया जाये। लगता है, आर्य जगत् या तो उसका मूल्याङ्कन नहीं कर सका या फिर प्रमादवश उसे उजागर नहीं करता। वे तो जब करेंगे सो करेंगे, आज से परोपकारी में इसे आरम्भ … Continue reading ‘सम्पूर्ण जीवन चरित्र-महर्षि दयानन्द’ को क्यों पढ़ें?:- प्रा राजेंद्र जिज्ञासु→