वही ऋष्युद्यान है, वही बगीचे, वही पक्षियों की चहचहाहट… वही गगनचुंबी यज्ञशाला, वही सवेरा, वही वेद मन्त्रों की ध्वनियाँ… वही रास्ते हैं और रास्तों पर चलने वाले भी। वही हवाओं के झोंके, वही पेड़ों की सरसराहट और मन्द-मन्द खुशबुएँ……पर न जाने क्यूँ ये नीरस से हो गये हैं। वही कतार में खड़े भवन कि जैसे मजबूर हैं स्थिर रहने को। और आनासागर भी शान्त… कि जैसे रूठ गया हो और कह रहा हो कि वो आवाज कहाँ है? जिसकी तरंग मुझमें उमंग लाती थी। आह! सब कुछ तो वही है पर कोई है…..जो अब नहीं है। – सोमेश पाठक
ओ३म्.. दास प्रथा र बलि प्रथालाई बाइबलमा मान्यता: वेदले शूद्र बनायो…, मनुस्मृतिले शूद्र बनायो…., पुराणले शूद्र बनायो…! बस्, बनाएन त केवल बाइबल र कुरानले! यहि दोष लगाएर अहिले नेपाली समाजमा एकापसमा वैमनस्यता सिर्जना गरिदै छ र अशिक्षित सोझा-साझा हिन्दु समुदायलाई धमाधम ईसाई तथा इस्लामी करण गरिदै छ। यस्ता यस्ता लाल-बुझक्कडहरु पनि छन् जसलाई यो पनि थाहा नहुन सक्छ कि वेद कतिवटा छन् र तिनमा कति-कति अध्यायहरु छन्? तर पास्टर र मुल्लाका हातका कठपुतली बनेर आफ्नो सत्य सनातन वैदिक धर्म, धर्मशास्त्रहरु र संस्कृति तथा परम्परालाई धारे हात लगाएर गालि दिनमा स्वयंलाई निक्कै विद्वान तथा ज्ञानी सम्झन्छन्। यसमा ति तथाकथित् दलित नेता र यसको नाउमा राजनीतिको व्यापार गर्ने दलालहरु नै अग्रपंक्तिमा छन्। यिनलाई यो पनि थाहा छैन कि सुद्र कसलाई भनिन्छ र … Continue reading दास प्रथा र बलि प्रथालाई बाइबलमा मान्यता:→
ओ३म्.. …वैदिक ईश्वर-३ प्रश्न: तपाइँ ईश्वरको अस्तित्व कसरि सिद्ध गर्नुहुन्छ? उत्तर: प्रत्यक्ष र अप्रत्यक्ष प्रमाणहरु द्वारा । प्रश्न: तर ईश्वरमा प्रत्यक्ष प्रमाण घट्न सक्दैन फेरी तपाइले उसको अस्तित्व कसरि सिद्ध गर्नुहोला? उत्तर: प्रमाणको अर्थ हुन्छ ज्ञानेन्द्रियहरु द्वारा स्पष्ट रूपले जानिएको निर्भ्रांत ज्ञान । तर यहाँ ध्यान दिन लायक कुरो छ कि ज्ञानेन्द्रियहरु द्वारा गुणको प्रत्यक्ष हुन्छ गुणीको हैन। उदाहरणको लागि तपाइले यो लेख पढ्ने बेलामा लेखकको ज्ञान हुँदैन तर कम्प्युटरको पर्दामा केहि आकृतिहरु देखिन्छन जसलाई तपाइँले स्वयं सम्झेर केहि अर्थ निकाल्नुहुन्छ। र फेरी तपाइँ यस निष्कर्षमा पुग्नुहुन्छ कि यो लेख लेख्ने वाला कुनै न कुनै अवश्य होला अनि तपाइँ निश्चय गर्नुहुन्छ तपाइँको नजिकमा लेखक हुनुको प्रमाण छ। यो “अप्रत्यक्ष” प्रमाण हो तथापि यो “प्रत्यक्ष” प्रतीत हुन्छ। ठीक यस्तै गरेर यो … Continue reading …वैदिक ईश्वर-३→
१९ वीं शताब्दी के पुनर्जागरण आन्दोलन मे महर्षि दयानन्द सरस्वती का राष्ट्र चिन्तन परवर्ती भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के चिन्तन की आधारशिला बना। महर्षि दयानन्द के राष्ट्र-चिन्तन का आधार वेद था, जिन्हें महर्षि ने सभी सत्यविद्याओं की पुस्तक घोषित किया। किसी भी विषय के व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही उसके क्रियान्वयन और उसके परिणाम की अभिव्यक्ति होती है और यही चिन्तन अन्त:वैश्वीकरण के रूप में युगानुरूप राष्ट्रीय आन्दोलन की बहुआयामी प्रवृत्तियों को अभिव्यक्त करता रहा है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के समक्ष विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ थीं। एक ओर ब्रिटिश साम्राज्य की आधीनता, तो दूसरी ओर भारतीय समाज में आई सामाजिक और धार्मिक विकृतियाँ। महर्षि दयानन्द सरस्वती को दुधारी तलवार से सामना करना था। यह कार्य निश्चय ही एक ओर अधार्मिक, अमानवीय … Continue reading महर्षि दयानन्द का राष्ट्र-चिन्तन: – दिनेश→
कुछ कार्य बाहर से देखने पर तो बड़े अच्छे और कल्याणकारी प्रतीत होते हैं, पर उनके पीछे छिपा स्वार्थ उतना ही भयावह होता है। हमारी दृष्टि केवल थोड़ा ही देख पाती है, पर उसकी जडं़े कहाँ तक हैं, ये शायद हम सोच भी नहीं पाते। तमिलनाडु के पारम्परिक खेल ‘जल्लीकट्टू’ का एक गैर-सरकारी संस्था क्कश्वञ्ज्र द्वारा किया गया विरोध भी कुछ ऐसा ही है। पहले इन गैर-सरकारी संस्थाओं (हृत्रह्र)की पृष्ठभूमि और उनके उद्देश्य को समझ लें तो बाकि अपने आप समझ में आ जायेगा। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच आगे बढऩे की प्रतियोगिता रहती है। दूसरे देशों को पिछड़ा और गरीब बनाये रखने के लिये कुछ विकसित देश जिन तरीकों का उपयोग करते हैं, उनमें एक तरीका है-एन.जी.ओ.। बाहर … Continue reading ‘जल्लीकट्टू का विरोध’-एक अन्तर्राष्ट्रीय षडय़न्त्र: -प्रभाकर→
वैदिक ईश्वर-२ ३- ईश्वर अनंत गुण सम्पन्न छ। अज्ञानीहरुले आफ्नो अज्ञानतावश उसको विभिन्न गुणहरुलाई नै विभिन्न ईश्वर मान्ने गर्दछन। 4- यस्तो शंका निराकरणको लागि वेदमा अनेकौं मन्त्र छन् जसले स्पष्ट गर्दछन कि केवल एक मात्र ईश्वर छ र उसका साथ हाम्रो सम्पर्क गराउनको लागि कुनै अभिकर्ता, मध्यस्थकर्ता, सहायक, पैगम्बर तथा मसीहाको आवश्यकता पर्दैन । ईशावास्यमिदं सर्वं यत् किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।। यजुर्वेद: ४०/१।। अर्थात्, यो सारा जगत नै एक मात्र ईश्वर द्वारा पूर्णतः व्याप्त तथा नियंत्रित छ। त्यसैले कदापि अन्याय पूर्वक कसैको धन-सम्पत्ति प्राप्त गर्ने इच्छा गर्नु हुँदैन; त्यागको भावनाले न्यायपूर्ण एवं शुद्ध आचरण द्वारा नै ईश्वरको आनंद भोग्नु पर्दछ। किनकि त्यहि नै समस्त सुखदाता हो । अहं भुवं वसुनः पूर्व्यस्पतिरहं धनानि सं जयामि शश्वतः। मां … Continue reading …वैदिक ईश्वर→
पं. नारायण प्रसाद ‘बेताब’ उच्च कोटि के कवि, व्यंग्य लेखक, नाटककार थे, आर्यसमाज के प्रति निष्ठा इनके आत्मचरित में स्पष्ट झलकती है। मूर्तिपूजा पर लिखी गई आपकी यह कविता ‘परोपकारी’ में ही १९८३ में प्रकाशित हुई थी। इसकी उपयोगिता को देखते हुए, यह पुन: प्रकाशित की जा रही है। -सम्पादक बुरा हाल तेरा है अय बुतपरस्ती। कि मिलने को है खाक में तेरी हस्ती। बुलन्दी से रुख हो गया है पस्ती। नहूसत है जो तेरे मुँह पर बरस्ती। नहीं काबिले कद्र फर्मान तेरा। मगर मानता हँू मैं अहसान तेरा।। १।। बहुत दिन से अहकाम तेरे हंै रद्दी। न कब्जे में बाकी है जागीर जद्दी। तहत्तुक ने कर दी तेरी शान भद्दी। गया हाथ से राज और राजगद्दी। न सच्ची तौकीर … Continue reading बुतपरस्ती: पं. नारायण प्रसाद ‘बेताब→
जिज्ञासा १- ‘‘जिज्ञासा-समाधान’’ में एक जिज्ञासा का हल चाहिए। हवन करते हैं तो अन्त में बलिवैश्वदेवयज्ञ में पके चावल भात की दस आहुतियाँ चढ़ाते हैं। कहीं-कहीं भात न होने के कारण फल या प्रसाद की ही आहुतियाँ दे देते हैं और कहीं-कहीं सिर्फ घी की दस आहुतियाँ चढ़ा देते हैं। बलिवैश्वदेवयज्ञ तो प्रतिशाम में करना चाहिए। वर्तमान जगत् में कम घी होता है। आपकी राय क्या है? – सोनालाल नेमधारी जिज्ञासा २- महर्षि मनु द्वारा लिखित भूतयज्ञ का मन्त्र- ‘‘शुनां च पतितानां………पापरोगीणाम्। वायसानों……..भुवि।।’’ को अर्थसहित पढ़ा। आर्य गुटका में लिखित अर्थ के अनुसार कुत्ता, पतित, चांण्डाल, पापरोगी, काक के स्थान पर कोयल, चाण्डाल के स्थान पर महात्मा इत्यादि को महत्त्व नहीं दिया। उन सब कुत्ता, पतित वगैरह का उस समय … Continue reading जिज्ञासा समाधान – आचार्य सोमदेव→
ओ३म्.. वैदिक ईश्वर -प्रेम आर्य दोहा, कतार बाट “ ऊ तेजस्विहरुको तेज, बलवानहरुको बल, ज्ञानिहरुको ज्ञान, मुनिहरुको तप, कविहरुको रस, ऋषिहरुको गाम्भीर्य र बालकहरुको मुस्कुराहटमा विराजमान छ। ऋषिको मन्त्र गान र बालकको निष्कपट हाँसो उसलाई एक समान प्रिय छ। उसले शब्द हैन भाव पढ्छ, ओठ हैन, हृदय देख्छ, ऊ मन्दिरमा हैन, मस्जिदमा हैन, गिर्जा घरमा हैन, प्रेम गर्नेहरुको हृदयमा रहन्छ। बुद्धिमानहरुको बुद्धिको लागि ऊ एक रहश्य हो तर एक निष्कपट निरपराधलाई ऊ सदा उपलब्ध छ। ऊ केहि अलग छ। धन-पैसाले ऊ प्राप्त हुँदैन र प्रेम एवं दया राख्नेहरुलाई कहिल्यै छोड्दैन। आडम्वरी र डरपोकहरु उसलाई मन पर्दैनन्, प्रेम गर्नेहरु सदा उसको समिपमा रहन्छन्। ऊ सर्वेश्वर हो, सबभन्दा अलग तर सबमा रहन्छ। यही नै सनातन वैदिक धर्म हो। यहि धर्ममा हामीलाई गर्व … Continue reading वैदिक ईश्वर→
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह। अविद्यया मृत्युं तीत्र्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते।। – (यजु. ४०/१४) साधारण संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी इस वेदमन्त्र के सामान्य अर्थ को समझ सकता है। अर्थ-जो विद्वान् विद्या और अविद्या को साथ-साथ जानता है, वह महान् आत्मा, अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमृत (मोक्ष) सुख को प्राप्त कर लेता है, परन्तु चिन्तन इस विषय का है कि महर्षि स्वामी दयानन्द जी सरस्वती तथा आर्यसमाज तथा वैदिक-धर्मी विद्वानों के सिद्धान्तानुसार विद्या से सुख और अविद्या से दु:ख की प्राप्ति होती है और ‘‘जो पदार्थ जैसा है, उसको वैसा ही मानना’’ विद्या है, इसके विपरीत ‘‘जो पदार्थ जैसा है, उसको वैसा न मानना’’ अविद्या है। महर्षि पतञ्जलि ने भी ‘योगदर्शन’ में विद्या का लक्षण … Continue reading अविद्या को दूर करना ही देशोन्नति का उपाय है: – सत्यवीर शास्त्री→