..योग र यसका अंग-०९

ओ३म्.. ..योग र यसका अंग: (अन्तिम भाग) संयम–जयको फल ================== “तज्जयात्प्रज्ञालोकः।।” (योगदर्शन ३/५) माथि संयमको बारेमा भनिएको छ, संयम-जय सम्यक् अभ्यस्त हुनाले योगीको समाधिजन्य प्रज्ञा (बुद्धिको आलोक) प्रकाश प्रकट हुन्छ, अर्थात् स्वच्छ एवं सूक्ष्म हुनाले प्रज्ञा विकसित हुन्छ। व्यास भाष्यः “तस्य संयमस्य जयात् समाधिप्रज्ञाया भवत्यालोको यथा यथा संयमः स्थिरपदो भवति तथा तथेश्वर प्रसादात् समाधिप्रज्ञाविशारदी भवति।” अर्थः पूर्वोक्त सूत्रोक्त संयम-जय अभ्यस्त हुनाले समाधि-प्रज्ञा अर्थात्, समाधिजन्य प्रज्ञा बुद्धिको आलोक (प्रकाश) दीप्त हुन्छ र जसै-जसै संयम स्थिर पद राम्रो प्रकारले अभ्यस्त हुन्छ, त्यसै-त्यसै ईश्वरको अनुग्रहले समाधिजन्य प्रज्ञा विशारदी निर्मल तथा सूक्ष्मविषयलाई पनि शीघ्र ग्रहण गर्न सक्ने हुन्छ। संयमको उत्तरवर्ती दशाहरुमा उपयोग “तस्य भूमिषु विनियोगः ।।” (योगदर्शन: ३/६) सूत्रार्थः ति पूर्वावस्थाहरुमा अभ्यस्त संयमलाई उत्तरवर्ती अतिशय उन्नतदशाहरुमा उपयोग गर्नु पर्छ। व्यास भाष्यको अभिप्रायः त्यो संयम जसले योगसाधना भूमि … Continue reading ..योग र यसका अंग-०९

ज़वाले हैदराबाद और पुलिस ऐक्शन’: राजेन्द्र जिज्ञासु

सन् १९८८ में श्री राजीव गाँधी के काल में इस नाम की घातक, विषैली तथा देश के लिए सर्वथा अपमानजनक एक पुस्तक हैदाराबद में छपी थी। संसद सदस्य ओवैसी जी मजलिस इत्तहाद उलमुसलमीन के सर्वमान्य नेता हैं और आज श्री राहुल व केजरीवाल की पंक्ति में खड़े सबसे अधिक भाषण देने वाले राजनेता हैं। इस पुस्तक का लेखक इसी पार्टी का नेता कासिम रिज़वी देशद्रोही का अंगरक्षक व एक सेनापति रहा है। हैदराबाद के भारत में विलय को हैदराबाद का पतन बताया गया है। नेहरु जी का तो गुणगान किया गया है। सरदार पटेल, भारतीय सेना व भारतवर्ष को कोसते हुए इन्हें अन्यायी सिद्ध किया गया है। भारत में हैदराबाद के लिये की गई कार्यवाही को पशुतापूर्ण व दानवता सिद्ध … Continue reading ज़वाले हैदराबाद और पुलिस ऐक्शन’: राजेन्द्र जिज्ञासु

PADMAVATI The Flame of Valour :Vinita arya

The Flame of Valour “Padmavati” – Vinita Arya – Part 1   The country’s modern uneducated historians are creating a new folk tale regarding Queen Padmavati. Blinded by money and fame these “experts” are bent on selling the honour of their ancestors. Today the young people who should be coming forward to defend the honour of these brave men and women, have instead sacrificed their characters on the altar of materialism. So called patriotism today has become infested by casteism and selfishness. A poet has quite rightly said “it is but a stone, the heart which has no love for its country, which is not full of emotions flowing with feeling”. Sanjay LeelaBhansali, the director of the soon to- be … Continue reading PADMAVATI The Flame of Valour :Vinita arya

..योग र यसका अंग-०८

ओ३म्.. ..योग र यसका अंग-०८ (७) ध्यान =========== ध्यान केलाई भनिन्छ? “तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।।” (योगदर्शन: ३/२) धारणा पछी त्यहि देशमा ध्यान गर्न र आश्रय लिन योग्य जुन अन्तर्यामी व्यापक परमेश्वर छ, उसको प्रकाश र आनन्दमा अत्यन्त विचार र प्रेमभक्तिका साथ यस प्रकारले प्रवेश गर्नु जसरि समुद्रको बीचमा नदी प्रवेश गर्दछ। त्यस समयमा ईश्वरलाई छोडेर कुनै अन्य पदार्थको स्मरण नगर्नु तर त्यहि अन्तर्यामीको स्वरूप र ज्ञानमा मग्न हुनु, यसैको नाम ध्यान हो। व्यास भाष्यः “तस्मिन्देशे ध्येयालम्बनस्य प्रत्ययस्यैकतानता सदृशः प्रवाहः प्रत्ययान्तरेणापरामृष्टो ध्यानम्।।” अर्थः- ति देशहरुमा अर्थात् नाभि, हृदय, नेत्र, नासिकाग्र, जिह्वाग्र इत्यादिमा ध्येय जुन परम-आत्मा छ, उस् आलम्बन तिर चित्तको एकतानता अर्थात् परस्पर दुवैको एकता, चित्त आत्मा भन्दा भिन्न नरहोस् तथा आत्मा चित्त भन्दा पृथक् नरहोस, उसको नाम ‘सदृश प्रवाह’ हो। जब चित्त … Continue reading ..योग र यसका अंग-०८

ये प्रश्र कोई नये नहीं हैं:- राजेन्द्र जिज्ञासु

दो प्रश्र किन्हीं लोगों ने हमारे आर्य युवकों से पूछे हैं। हर वस्तु को बनाने वाला,जगत् को बनाने वाला और हमें बनाने वाला जब परमात्मा है तो फिर परमात्मा को बनाने वाला कौन है? यह प्रश्र इस्लाम, ईसाई मत से तो पूछा जा सकता है। हम वैदिकधर्मी तो ईश्वर, जीव व प्रकृति को अनादि मानते हैं। यह ऊपर बताया जा चुका है। श्री लाला हरदयालजी ने भी यह प्रश्र उठाया है। बनी हुई वस्तु (मिश्रित) का तो कोई बनाने वाला होता है। ईश्वर, जीव व प्रकृति (अपने मूल स्वरूप में) अमिश्रित हैं। इनको बनाने का प्रश्र ही नहीं उठता। पूरे विश्व में सारे वैज्ञानिक अब एक स्वर में यह घोषणा कर रहे हैं कि प्रकृति को न तो उत्पन्न किया … Continue reading ये प्रश्र कोई नये नहीं हैं:- राजेन्द्र जिज्ञासु

पूज्य मीमांसक जी और परोपकारिणी सभा:- राजेन्द्र जिज्ञासु

कुछ विचारशील मित्रों से सुना है कि एक अति उत्साही भाई ने श्री पं. युधिष्ठिर जी मीमांसक के नाम की दुहाई देकर, सत्यार्थप्रकाश के प्रकाशन की आड़ लेकर परोपकारिणी सभा तथा उसके विद्वानों व अधिकारियों पर बहुत कुछ अनाप-शनाप लिखा है। किसी को ऐसे व्यक्ति की कुचेष्टा पर बुरा मनाने की आवश्यकता नहीं। आज के युग में लैपटॉप आदि साधनों का दुरुपयोग करते हुए बहुत से महानुभाव यही कुछ करते रहते हैं। आर्य समाज में धन का उपयोग यही है कि एक ही लेख को सब पत्रों में छपवा दो। केजरीवाल व राहुल से कुछ युवकों ने यही तो सीखा है कि जैसे मोदी को कोसकर वे मीडिया में चर्चित रहते हैं, आप परोपकारिणी सभा को कोसकर और सत्यार्थ प्रकाश … Continue reading पूज्य मीमांसक जी और परोपकारिणी सभा:- राजेन्द्र जिज्ञासु

येशु परम ज्ञानी हैन, महा मूर्ख थियो.!

ओ३म्..! येशु परम ज्ञानी हैन, महा मूर्ख थियो..! येशु मांसाहारी थियो, मदिरा सेवन गर्ने गर्दथ्यो र झुटो पनि बोल्ने गर्दथ्यो। हाम्रो वैदिक धर्म र संस्कृति मान्ने समाजले यो कदापि स्वीकार गर्न सक्दैन कि उसको परम श्रेष्ठ पुरुष मांसाहारी होस्, मदिरा सेवी होस् र झुटो बोल्ने गरोस्। जसमा यत्ति पनि करुणा नहोस् कि आफ्नो उदर पूर्तिको लागि कसैको जीवन बर्वाद गरोस्, जसले आफ्नो भोजनको लागि जीवनलाई यति अनादर गरोस्। जुन व्यक्ति मदिरा सेवी छ, उसलाई ध्यानको उच्चता प्राप्त हुने त प्रश्न नै उठ्दैन। मदिरा त अज्ञानीहरुले पिउने गर्दछन्, जो दुःखी छन्, तिनले पिउने गर्दछन्, जीवन देखि हैरान र व्याकुल भएकाहरुले पिउने गर्दछन्, तनाव बाट मुक्ति पाउने भनेर पिउने गर्दछन्। किनकि मदिराको गुण जो जुन अवस्थामा हुन्छ त्यसलाई भुलाइदिने हुन्छ। यदि कुनै … Continue reading येशु परम ज्ञानी हैन, महा मूर्ख थियो.!

आज के युग में ऋषि दयानन्द की प्रासंगिकता: राजेन्द्र जिज्ञासु

आर्य वक्ताओं व लेखकों की सेवा में:-कुछ समय से आर्यसमाज के उत्सवों व सम्मेलनों में सब बोलने वालों को एक विषय दिया जाता है, ‘‘आज के युग में ऋषि दयानन्द की प्रासंगिकता’’ इस विषय पर बोलने वाले (अपवाद रूप में एक दो को छोडक़र) प्राय: सब वक्ता ऋषि दयानन्द की देन व महत्ता पर अपने घिसे-पिटे रेडीमेड भाषण उगल देते हैं। जब मैं कॉलेज का विद्यार्थी था तब पूज्य उपाध्याय जी की एक मौलिक पुस्तक सुरुचि से पढ़ी थी। पुस्तक बहुत बड़ी तो नहीं थी, परन्तु बार-बार पढ़ी। आज भी यदा-कदा उसका स्वाध्याय करता हँू। आज के संसार में वैदिक विचारधारा को हम कैसे प्रस्तुत करें, यही उसके लेखन व प्रकाशन का प्रयोजन था। इसमें दो अध्याय अनादित्त्व पर हैं। … Continue reading आज के युग में ऋषि दयानन्द की प्रासंगिकता: राजेन्द्र जिज्ञासु

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : दिनेश

अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता और देशभक्ति विगत लगभग ढाई वर्षों में अत्यन्त ज्वलन्त प्रश्न रहा है। अभिव्यक्ति  मानव वाणी के द्वारा, लेखन के द्वारा या क्रियात्मक  सृजना शक्ति के  द्वारा, संगीत के द्वारा या अभिनय के द्वारा व्यक्त हो सकती है। प्रश्न यह है कि अभिव्यक्ति  की मर्यादाएँ और उसका उद्देश्य किस प्रकार सुनिश्चित किया जा सकेगा। प्राचीन भारतीय संस्कृति अभिव्यक्ति  की स्वतन्त्रता की सर्वोन्मुखी प्रवक्ता रही है। जहाँ विचारधाराओं के आधार पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध न राज्य की ओर से होता था और न किसी विचारधारा विशेष के द्वारा। यही कारण था कि चिन्तन की इस उर्वरा भूमि में विभिन्न प्रकार की विचारधाराएँ पल्लवित हुईं और पुष्पित हुईं। भले ही उन विचारों से अन्य मत्तावलम्बी सहमत हों या … Continue reading अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : दिनेश

प्रार्थना: – नाथूराम शर्मा ‘शङ्कर’

।।१।। द्विज वेद पढ़ें, सुविचार बढ़ें, बल पाय चढें़, सब ऊपर को, अविरुद्ध रहें, ऋजु पन्थ गहें, परिवार कहें, वसुधा-भर को, धु्रव धर्म धरें, पर दु:ख हरें, तन त्याग तरें, भव-सागर को, दिन फेर पिता, वरदे सविता, करदे कविता, कवि शंकर को। ।।२।। विदुषी उपजें, क्षमता न तजें, व्रत धार भजें, सुकृती वर को, सधवा सुधरें, विधवा उबरें, सकलंक करें, न किसी घर को, दुहिता न बिकें, कुटनी न टिकें, कुलबोर छिकें, तरसें दर को, दिन फेर पिता, वरदे सविता, करदे कविता, कवि शंकर को। ।।३।। नृपनीति जगे, न अनीति ठगे, भ्रम-भूत लगे, न प्रजाधर को, झगड़े न मचें, खल-खर्ब लचें, मद से न रचें, भट संगर को, सुरभी न कटें, न अनाज घटें, सुख-भोग डटें, डपटें डर को, दिन … Continue reading प्रार्थना: – नाथूराम शर्मा ‘शङ्कर’

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)