पूज्य मीमांसक जी और परोपकारिणी सभा:- राजेन्द्र जिज्ञासु जी

कुछ विचारशील मित्रों से सुना है कि एक अति उत्साही भाई ने श्री पं. युधिष्ठिर जी मीमांसक के नाम की दुहाई देकर, सत्यार्थप्रकाश के प्रकाशन की आड़ लेकर परोपकारिणी सभा तथा उसके विद्वानों व अधिकारियों पर बहुत कुछ अनाप-शनाप लिखा है। किसी को ऐसे व्यक्ति की कुचेष्टा पर बुरा मनाने की आवश्यकता नहीं। आज के युग में लैपटॉप आदि साधनों का दुरुपयोग करते हुए बहुत से महानुभाव यही कुछ करते रहते हैं। आर्य समाज में धन का उपयोग यही है कि एक ही लेख को सब पत्रों में छपवा दो। केजरीवाल व राहुल से कुछ युवकों ने यही तो सीखा है कि जैसे मोदी को कोसकर वे मीडिया में चर्चित रहते हैं, आप परोपकारिणी सभा को कोसकर और सत्यार्थ प्रकाश … Continue reading पूज्य मीमांसक जी और परोपकारिणी सभा:- राजेन्द्र जिज्ञासु जी

आर्य वक्ताओं व लेखकों की सेवा में:- राजेन्द्र जिज्ञासु

कुछ समय से आर्यसमाज के उत्सवों व सम्मेलनों में सब बोलने वालों को एक विषय दिया जाता है, ‘‘आज के युग में ऋषि दयानन्द की प्रासंगिकता’’ इस विषय पर बोलने वाले (अपवाद रूप में एक दो को छोडक़र) प्राय: सब वक्ता ऋषि दयानन्द की देन व महत्ता पर अपने घिसे-पिटे रेडीमेड भाषण उगल देते हैं। जब मैं कॉलेज का विद्यार्थी था तब पूज्य उपाध्याय जी की एक मौलिक पुस्तक सुरुचि से पढ़ी थी। पुस्तक बहुत बड़ी तो नहीं थी, परन्तु बार-बार पढ़ी। आज भी यदा-कदा उसका स्वाध्याय करता हँू। आज के संसार में वैदिक विचारधारा को हम कैसे प्रस्तुत करें, यही उसके लेखन व प्रकाशन का प्रयोजन था। इसमें दो अध्याय अनादित्त्व पर हैं। सब मूल सिद्धान्तों पर लिखते हुए … Continue reading आर्य वक्ताओं व लेखकों की सेवा में:- राजेन्द्र जिज्ञासु

इतिहास का हस्ताक्षर-महाशय कृष्ण जी का पत्र:- राजेन्द्र जिज्ञासु

श्री धर्मवीर जी ने ‘परोपकारी’ में इतिहास के ‘हस्ताक्षर’ शीर्षक से एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी रूप-लेख आरम्भ किया था। जिसके दूरगामी परिणाम निकले। साहित्यकारों ने इसकी महत्ता व उपयोगिता का लोहा माना। इसी के अन्तर्गत बनेड़ा के राजपुरोहित श्री नगजीराम की डायरी के कुछ पृष्ठ, वीर भगतसिंह, स्वामी वेदानन्द जी के हस्ताक्षर और श्री सुखाडिय़ा का आर्यसमाज ब्यावर के नाम पत्र छापे। इनमें से कुछ सामग्री कई विद्वानों के ग्रन्थों में स्थान पा चुकी है। आर्यसमाज के अग्रि-परीक्षा काल के एक अभियोग पटियाला के महाशय रौनक राम जी शाद के केस के बारे में पूज्य महाशय कृष्ण जी का १०२ साल पुराना एक ऐतिहासिक पत्र परोपकारी में छपा। मेरे पास ऐसे कई महापुरुषों के पत्र व दस्तावेज हैं। परोपकारी … Continue reading इतिहास का हस्ताक्षर-महाशय कृष्ण जी का पत्र:- राजेन्द्र जिज्ञासु

आर्य समाजका मान्यताहरु

ओ३म्  विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यदभद्रं तन्न आ सुव॥ (यजुर्वेद: ३०/३; ऋग्वेद: ५/८२/५) (हे उत्तम गुणकर्मस्वभावयुक्त परमेश्वर, हाम्रा समस्त दुष्टाचरण तथा दुःखहरु हटाएर कल्याण कारक, धर्मयुक्त आचरण तथा समस्त सुखहरु उत्पन्न गरि दिनुहोस् ।) आर्य समाजका मान्यताहरु आर्यको अर्थ हुन्छ श्रेष्ठ । आर्य समाजको अर्थ हुन्छ श्रेष्ठ व्यक्तिहरुको समाज या संगठन । दुष्कर्म छोडेर शुभकर्म ग्रहण गर्ने इच्छा भएका हरेक व्यक्ति यस संगठनको सदस्य बन्न सक्छ । श्रेष्ठ व्यक्तिहरुको समुदायलाई दृढ राख्नको लागि महर्षि दयानंद सरस्वतिले यसका दस नियम बनाउनु भएकोछ जसलाई आर्य समाजका स्वर्ण नियमको रूपमा चिनिन्छ । जसबाट आर्य समाजको उद्देश्य तथा यसका सदस्यहरुको कार्यक्रमको बोध हुन्छ । ईश्वरको सर्वोतम निज नाम ओ३म् हो । उसमा अनंत गुण भएका कारण उसका ब्रहमा, महेश, विष्णु, गणेश, देवी, अग्नि, शनि, यम आदि … Continue reading आर्य समाजका मान्यताहरु

स्वास्तिक चिह्र (ओम् का प्राचीनतम रुप) :- श्री विरजानन्द देवकरणी जी

ओ३म् स्वास्तिक चिह्र (ओम् का प्राचीनतम रुप) भारत की धार्मिक परम्परा में स्वस्तिक चिह्र का अड़क्न अत्यन्त प्राचीनकाल से चला आ रहा है । भारत के प्राचीन सिक्कों, मोहरों, बर्तनों, और भवनों पर यह चिह्र बहुशः और बहुधा पाया जाता है । भारत के प्राचीनतम ऐतिहासिक स्थल मोहनजोदडो, हडप्पा और लोथल की खुदाइयों में वामावर्त   स्वस्तिक चिह्र से युक्त मोहरें मिली हैं, प्रमाण के लिए पुस्तक के अन्त में प्राचीन मोहरों के चित्र देखे जा सकते हैं । इनसे अतिरिक्त भारत की प्राचीन कार्षापण मुद्राएं, ढली हुई ताम्र मुद्रा, अयोध्या, अर्जुनायनगण, एरण, काड, यौधेय, कुणिन्दगण, कौशाम्बी, तक्षशिला, मथुरा, उज्जयिनी, अहिच्छत्रा तथा अगरोहा की मुद्रा, प्राचीनमूर्ति, बर्तन,  मणके, पूजापात्र (यज्ञकुण्ड), चम्मच, आभूषण और और शस्त्रास्त्र पर भी स्वस्तिक चिह्र बने हुये … Continue reading स्वास्तिक चिह्र (ओम् का प्राचीनतम रुप) :- श्री विरजानन्द देवकरणी जी

काँग्रेस का पंजा किसका हाथ?:- राजेन्द्र जिज्ञासु

देश की राजनीति में कुछ लोगों को धर्मनिरपेक्षता के दौरे पड़ते ही रहते हैं। अभी-अभी श्री राहुल ने अपने एक विचित्र भाषण में काँग्रेस के चुनाव निशान को गुरु नानक, महावीर स्वामी व हज़रत अली सबका हाथ बताकर वोट बटोरने के लिये धार्मिक उन्माद का कार्ड खेला है। हज़रत मुहम्मद का हाथ बताने से न जाने राहुल कैसे चूक गया। काँग्रेस का चुनाव निशान तो यह था ही नहीं। वह तो दो बैलों की जोड़ी था। यह निशान तो इन्दिरा जी का था। राहुल को इतिहास पढऩा चाहिए। मौलाना आजाद और मनमोहन सिंह व सिब्बल जी से ही पूछ लिया होता। काँग्रेस का नारा था:- ‘‘न जात पर न पात पर। इन्दिरा जी के हाथ पर’’ गली-गली मे यह नारा … Continue reading काँग्रेस का पंजा किसका हाथ?:- राजेन्द्र जिज्ञासु

मनलाई नियन्त्रण कसरि गरौँ ?

ओ३म्.. मनलाई नियन्त्रण कसरि गरौँ ? एक प्रसिद्ध सूक्ति छ- मन नै बंधनको कारण हो र मन नै मुक्तिको कारण पनि। मनलाई दुष्ट घोडाको उपमा लिइएको छ, जुन अनियंत्रित भएर कुमार्गमा दौडन्छ र स्वयंको तथा सवारीको पनि हानि गर्दछ। त्यस्तै अनियंत्रित मनले पनि प्राणीलाई संकटमा पार्दछ। यस्तो चंचल मनलाई कसरि नियंत्रण गर्ने? यसलाई नियंत्रण गर्ने दुई वटा मार्ग छन्  – या त यसको दमन गर्ने या यसको मार्ग नै बदलदिने। जुन वस्तुलाई दमन गरिन्छ, त्यो कालांतरमा नि:सत्व हुन्छ। कुनै पनि पदार्थलाई हातमा लिएर दबाइयो भने त्यसको सारतत्व निस्कन्छ। मनलाई निस्सार त गर्नु छैन। यस्तो गर्नाले ऊ बलहीन हुनेछ र मनोबल क्षीण हुनाले साधना र आराधना पनि गर्न सक्दैन। मन कै कारणले हामि मनुष्य छौं। मनले गर्दा नै चिंतन-मननको पनि सामर्थ्य … Continue reading मनलाई नियन्त्रण कसरि गरौँ ?

The Swastik Symbol : Shri Virjanand Devkarni (translate by :Vinita Arya)

The Svastik Symbol:The The Most Ancient Depiction of AUM – Acharya VirjanandDevkarni (including PDF of his groundbreaking Hindi book – Svastik Chinn (AUM KaPracheentamRoop) AUM In the dharmic tradition of India (or Aryavart to give its ancient name), the marking of the Svastik symbol has been going on since very ancient times.The symbol has been found mainly and repeatedly on India’s ancient coins, seals, utensils and homes.At India’s most ancient, historical sites – MohenjoDaro, Harappa and Lothal, seals bearing the anticlockwise left handed facingsymbol   have been found at excavations. Evidence in the form of pictures of these ancient seals can be seen at the end of this article. In addition to this, the Svastika symbol can be found formed … Continue reading The Swastik Symbol : Shri Virjanand Devkarni (translate by :Vinita Arya)

स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की मूर्ति सही या गलत : आचार्य सोमदेव जी

जिज्ञासा  समाधान – ११९ – आचार्य सोमदेव जिज्ञासा:- आदरणीय सम्पादक महोदय सादर नमस्ते। निवेदन यह है कि मैंने आर्य समाज मन्दिर में महर्षि दयानन्द जी का एक स्टेचू (बुत) जो केवल मुँह और गर्दन का है जिसका रंग गहरा ब्राउन है, रखा देखा है। पूछने पर पता चला कि यह किसी ने उपहार में दिया है। आप कृपया स्पष्ट करें कि क्या महर्षि का स्टेचू भेंट में लेना, बनाना और भेंट देना आर्य समाज के सिद्धान्त के अनुरूप है? जहाँ तक मेरा मानना है महर्षि ने अपनी प्रतिमा बनाने की सख्त मनाही की थी। कृपया स्पष्ट करें। धन्यवाद, सादर। – डॉ. पाल समाधान:- महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन मेंं कभी सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया। वे वेद की मान्यतानुसार अपने … Continue reading स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की मूर्ति सही या गलत : आचार्य सोमदेव जी

पुराणले केहि भन्दैछन्…

ओ३म्..! पुराणले केहि भन्दैछन्… -प्रेम आर्य, दोहा-कतार के पौराणिकहरुले सुन्लान् ? के सुनेर केहि विचार गर्लान् ?? र के विचार गरेर स्वीकार पनि गर्लान् ??? त्यसो त हमेशा आर्य समाजीहरुले नै पुराणको विरुद्ध लेख्ने गर्दछन्। लेख्नाको कारण कुनै द्वेष हैन अपितु आफ्ना प्रिय बन्धुहरुलाई वेद मार्गी बनाउनु हो। वेद मार्गी बन्नाले हिन्दु दाजु-भाईहरु विशेषगरि पौराणिकहरु संगठित होलान् जसले गर्दा एक ईश्वरको उपासना होला र नित्य नयाँ-नयाँ ईश्वर बन्न बाट रोक्न सकिएला। पढेर हो या त्यसै अनुमान गरेर या कसैले भनेको सुनेर हो कुन्नि उनीहरुले भन्ने गर्दछन् कि पुराण वेदानुकुल नै छन्। तर पुराणहरु वेदानुकुल छन् भन्नु र मान्नुमा त्यति नै सत्यता छ जति पिठोमा नुन। नुनको पनि आफ्नै महत्व छ | यहाँ यस लेखमा पौराणिक बन्धुहरुलाई त्यहि पुराणको वेदानुकुल नुनको अलिकति … Continue reading पुराणले केहि भन्दैछन्…

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)