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कुरान समीक्षा : कल्मा पढ़ने वाले सब गुनहगार हैं

कल्मा पढ़ने वाले सब गुनहगार हैं

जब कलमा कुरान में नहीं है और मौजूदा कलमा मुहम्मद की शिरकत वाला होने से कुरान के विरूद्ध है तो उसे पढ़ने वाले क्यों काफिर नहीं माने जाने चाहिए। क्या बता सकते हैं कि कुरान में खुदा ने कलमा क्यों नहीं दिया है जबकि बेकार की सैकड़ों आयतें उसमें लिख दी हैं?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्नल्ला-ह ला यरिफरू अंय्युश……….।।

(कुरान मजीद पारा ५ निसा रूकू १७ आयत ११६)

यह गुनाह तो अल्लाह माफ नहीं करता कि उसके साथ कोई शरीक ठहराया जाये और इससे कम जिसको चाहे माफ करे, और जिसने अल्लाह का साझी ठहराया वह दूर भटक गया।

व अन्नल्- मसाजि-द लिल्लाहि………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा जिन्न रूकू १ आयत १८)

…..और मस्जिदें सब खुदा की हैं खुदा के साथ किसी को न पुकारो।

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मुसलमानों को कल्मा ‘लाइलाह इल्लिल्लाह मुहम्मद रसूलिल्लाह’ सारे कुरान में कहीं भी एक स्थान पर इस शक्ल में नहीं दिया गया है। एक स्थान से ‘‘लाइलाह इल्लिल्लाह’’ और दूसरें स्थान से ‘‘मुहम्मद रसूलिल्लाह’’को लेकर अर्थात् उसे जोड़कर कल्मा बना लिया गया है यदि खुदा को यह कल्मा अर्थात मुहम्मद की खुदा के साथ शिरकत अर्थात् शामिल करना मंजूर होती तो वह पूरा कल्मा कुरान में एक ही जगह पर लिखा देता। बल्कि खुदा ने तो साफ-साफ ऊपर ऐलान किया है कि खुदा हर्गिज माफ नहीं करेगा।

खुदा ऐसे लोगों को अर्थात् मुसलमानों को घोर पापी मानता है। अतः मौजूदा कल्मा नहीं बोलना चाहिए, वह कुरान के खिलाफ है। उपरोद्र कुरान पारा ५ सूरा निसा रूकू १७ आयत ११६ में ही लिखा है कि- ‘‘खुदा के साथ शरीफ ठहराने वाला हरगिज माफ नहीं किया जावेगा।’’

कुरान समीक्षा : खुदा (मुन्सिफ)-वकील, गवाह और मुल्जिम?

खुदा (मुन्सिफ)-वकील, गवाह और मुल्जिम?

बतावें कि खुदा और तहसीलदार की कचहरी में क्या अन्तर होगा? क्या लोगों को अपना बैरिस्टर खड़ा करने की छूट होगी। यदि किसी तगड़े बैरिस्टर ने खुदा को हरा दिया तो खुदा की क्या इज्जत रहेगी?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

हा- अन्तुम हा-उला- इ जादल्तुम्……..।।

(कुरान मजीद पारा ५ सूरा रूकू १६ आयत १०९)

सुनो तुमने दुनियाँ की जिन्दगी में उनकी तरफ होकर झगड़ा कर लिया तो कयामत के दिन उनकी तरफ से अल्लाह के साथ कौन झगड़ा करेगा और कौन उनका वकील होगा?

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कुरान बताता है कि कयामत के दिन खुदा एक कुर्सी या तख्त पर बैठेगा। वकील अपने मुल्जिमों के मुकद्दमों की पैरवी करेंगे और खुदा से खूब बहस मुबाहिसा व झगड़ा करेंगे तब कहीं खुदा अन्त में किसी को हूरें व गिलमें अर्थात् औरतें व लोंड़े भोगने के लिए जन्नत में तथा दूसरों को दोजख में भेजेगा।

यह बात नहीं खोली गई है कि उन वकीलों को फीस कौन देगा? और वह कितनी होगी तथा वकीलों की उस समय पोशाक अंग्रेजी शूट-बूट हैट की होगी, अरबी होगी या वे मादर जात नंगे ही वहां खड़े होकर पैरवी करेंगे? यह बात सबको जान लेनी चाहिए कि खुदा के दरबार में भी बिना वकीलों से पैरवी कराये किसी का काम न बनेगा, और न अरबी खुदा ही पैरवी के किसी का मुकदमा सुन सकेगा।

कयामत के दिन हम ऐसे ‘‘वरिष्ठ आर्य समाजी’’ वकीलों का इन्तजाम कर देंगे जो अरबी खुदा के सरकारी वकीलों को हराकर खुदा के बन्दों को दोजख में भिजवा कर काफिरों को जन्नत अर्थात् बहिश्त पर बे रोक टोक कब्जा करा देंगे। सारी हूरें काफिरों के हिस्से में आ जावेंगी और गिलमों को धक्का मार-मार कर खुदा के अरबी चेलों के लिए दोजख में भेज दिया जावेगा।

जन्नत की दूध और शहद की नहरों पर काफिरों का कब्जा होगा और सौंठ व कपूर मिली जहरीली शराब ड्रमों में भरवा कर खूब गरम करा के कुरान परस्त अरबी लोगों के लिये दोजख में भिजवा दी जावेगी। रिश्वत से सारे काम हो जाते हैं, खुदाई व सरकारी वकीलों को तोड़ लेना पैसे वाले काफिरों के लिये बहुत ही मामूली बातें होंगी।

कुरान समीक्षा : मुसलमान, मुसलमान को न मारे

मुसलमान, मुसलमान को न मारे

क्या इससे अरबी खुदा का मुसलमानों के साथ पक्षपात व दूसरों से शत्रुता साबित नहीं होती है।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व मा का-न लि मुअ्मिनिन्………।।

(कुरान मजीद पारा ५ सूरा निसा रूकू १३ आयत ९२)

किसी ईमान वाले को जायज नहीं कि वह ईमान वाले को मार डाले।

व मंय्सक्तुल् मुअ्मिनम्-मु त………।।

(कुरान मजीद पारा ५ सूरा निसा रूकू १३ आयत ९३)

जो मुसलमान को जानबूझ कर मार डाले तो उसकी सजा दोजख है।

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यह आयतें खुदा को अन्यायी और अत्याचारी घोषित करती हैं और उसे मुसलमानों का पक्षपाती बताती हैं न्याय की बात तो यही थी कि अन्यायी कोई भी हो मुसलमान हो या काफिर उसे दण्ड देने को कहा जाता।

मुसलमान जालिम भी निर्दोष होगा यह कोई मान नहीं सकता है। अरबी खुदा को इन्साफ करना भी नहीं आता था ऐसे पक्षपाती अरबी खुदा को दूसरा समझदार व्यक्ति अपना रक्षक कैसे मान सकता है? जो मुसलमानों को कत्ल करने को भड़काता है।

कुरान समीक्षा : खुदा दोजख में खालें बदला करेगा

खुदा दोजख में खालें बदला करेगा

खालें जलने के साथ जब मांस भुन जावेगा तो मुर्दे जिन्दा कैसे रह सकेंगे? खुदा अपनी ताकत से ऐसा क्यों नहीं करेगा कि मुल्जिमों को गरमी तो खूब लगती रहे पर खालें जलने ने पावे, तो खुदा मेहनत से बच जावेगा।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्नल्लजी-न क-फरू बि………।।

(कुरान मजीद पारा ५ सूरा निसा रूकू ८ आयत ५६)

जिन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया हम उनको आग में झोंकेगे। जब उनकी खालें जल जावेंगी उनको दूसरी खाल में बदल देंगे ताकि हेमशा दण्ड भोगें। अल्लाह जबर्दस्त बड़ा हिकमत वाला है।

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बार-बार जली खालें बदलते रहने की मेहनत से बचने के लिए अल्लाह मियां यदि पहिले ही लोगों की खालों पर ऐसा मरहम लगा दे कि लोगों को तकलीफ तो जलने की हो पर खालें जलने न पावें तो उत्तम होगा और खुदा को इस काम से छुट्टी मिल जावेगी और वह दूसरी जरूरी बातों की ओर ध्यान देने का समय पा सकेगा।

कुरान समीक्षा : मिट्टी मलने से पाक होना

मिट्टी मलने से पाक होना

कुरान में पाक होने के इस अजीबो गरीब तरीके को दलील देकर खुलासा करें?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

या अय्युहल्लजी-न आमनू ला…….।।

(कुरान मजीद पारा ५ सूरा निसा रूकू ७ आयत ४३)

तथा या अय्यु हल्ल जान-न आमनू इजा……..।।

(कुरान मजीद पारा ६ सूरा मायदा रूकू २ आयत ६)

………हाँ! रास्ते चले जा रहे हो और अगर तुम बीमार हो या मुसाफिर या तुममें से कोई पाखाने से आवे या स्त्री प्रसंग करके आया हो और मसह कर लो अर्थात् तुमको पानी न मिल सके तो पाक मिट्टी लेकर मुंह और हाथ पर मल लो। अल्लाह माफ करने वाला व बख्शने वाला है।

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पाक होने के लिये गन्दे हिस्सों को साफ करना तो ठीक होता है पर गुदा या मूत्रेन्द्रिय अर्थात् ऐजायेतनासुल गन्दा होने पर मुंह और हाथ पर मिट्टी मलने से वे कैसे साफ हो जावेंगे?

यह समझ में नहीं आया क्या इसका यह मतलब है कि इसी तरह मुंह और हाथ गन्दे हों तो गुदा और मूत्रेन्द्रिय पर मिट्टी मलने से मुह और हाथ भी पवित्र हो जावेंगे? यह तो विचित्र तरीका कुरान ने बताया है।

कुरान समीक्षा : मां से निकाह का निषेध व समर्थन

मां से निकाह का निषेध व समर्थन

सगी मां के साथ जिना (बलात्कार) या निकाह का निषेध खुदा तौरेत, जबूर, इन्जील नाम की अपनी पहली किताबों में क्यों नहीं किया था।

खुदा को बात इतने दिन बीतने पर कुरान में ही लिखाने की क्यों सूझी थी? क्या इसके यह मायने यह हैं कि अरब के लोग अपनी माँ को भी अय्याशी के लिए नहीं छोड़ते थे? क्या खुदा ने अरब वालों को उसी बुराई की वजह से तो ‘जाहिल’ नहीं घोषित किया था?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व ला त न्कहू मा न-क-हू……….।।

(कुरान मजीद पारा ४ सूरा निसा रूकू ३ आयत २२)

जिन औरतों के साथ तुम्हारे बाप ने निकाह किया हो तुम उनके साथ निकाह न करना, मगर जो हो चुका सो हो चुका। यह बड़ी शर्म और गजब की बात थी और बहुत बुरा दस्तूर था।

हुर्रिमत् अलैकुम् उम्महातुकुम् व………..।।

(कुरान मजीद पारा ४ सूरा निसा रूकू ४ आयत २३)

तुम्हारी मातायें, बेटियाँ तुम्हारी बहनें, बुआयें, मौसियाँ भाँन्जियाँ, भतीजियाँ दूध पिलाने वाली मातायें, दूध शरीकी बहनें और तुम्हारी सासें तुम पर हराम हैं।

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खुदा को यह माँ बेटे की शादी (जिना) का दस्तुर पहले पसन्द था। इसीलिए उसने कुरान द्वारा मान्य घोषित पहली खुदाई किताबों अर्थात् तौरेत जबूर और इज्जींल में इसकी कभी निदा नहीं की और न मना की थी। तौरेत के न्याय व्यवस्था अध्याय २० व २१ में लिखा है कि-

……और यदि कोई अपनी सौतेली मां के साथ सोये तो वह अपने पिता का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा, सो इसलिए वे दोनों निश्चय ही मार डाले जायें।

इसमें सौतेली मां से विवाह वा जिना का निषेध तो है पर सगी माँ से करने का निषेध कहीं नहीं किया है। कुरान लिखते समय खुदा को ध्यान आया और उसने मां से व्यभिचार या विवाह का निषेध कर दिया था। किन्तु इस्लाम के परममान्य अबू हनीफा के नजदीक मुहर्रमात अब्दियह यानी खास माँ, बहन व बेटी आदि से शरह अर्थात् इस्लाम की शरीयत के अनुसार उनसे भी निकाह कर लेना जायज है कोई पाप नहीं है।

कुरान समीक्षा : आपस में अपनी बीबियाँ भी बदल सकते हो

आपस में अपनी बीबियाँ भी बदल सकते हो

क्या इसका मतलब है कि किन्हीं दो दोस्तों की एक दूसरें की बीबी पर तबियत हो तो वे आपस में औरतों की अदला-बदली कर लें और उनसे दिल भर जावें तो फिर आपस में बदल कर अपनी-अपनी औरतों को ले लेवें? क्या कुरान की नजर में औरतें जानवरों की तरह हैं जो उनकी अदला बदली की जा सकती है। क्या बीबियों की अदली बदली बिना तलाक के सम्भव है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व इन् अरत्तुमुस्तिब्दा-ल जौजिम्मका……….।।

(कुरान मजीद पारा ४ सूरा निसा रूकू ३ आयत २०)

अगर तुम्हारा इरादा एक बीबी को बदल कर उसकी जगह दूसरी बीबी करने का हो तो पहली बीबी को बहुत सा माल दे दिया हो तो भी उसमें से कुछ भी न लेना। क्या किसी किस्म की तोहमत लगाकर जाहिरी बेजाँ बात करके अपनी दिया हुआ लेते हो?

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इसका मतलब यह है कि बिना झूठी तोहमत लगाये यदि कोई चाहे तो अपनी बीबी को बदल कर नई बीबी किसी से ले सकता है। बीबियां बदल लेने की रिवाज अरबी खुदा की नजर में कोई बुरी बात नहीं थी। यदि अब भी यह रिवाज मुसलमानों में जारी हो तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिये।

कुरान समीक्षा : चाहे जितनी औरतें रखो छूट है

चाहे जितनी औरतें रखो छूट है

अगर देह में ताकत हो, कमर तगड़ी हो तो चाहे जितनी औरतों से रोज भोग करते रहो, इसकी छूट देने से खुदा ने व्यभिचार को प्रोत्साहन दिया है। यदि ताकत न होगी तो ज्यादा औरतों को कोई क्यों फांसेगा? इस आयत को कुरान में लिखने से खुदा का क्या मंशा था?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व इन् खिफतुम् अल्ला तुक्ंसितू……..।।

(कुरान मजीद पारा ४ सूरा निसा रूकू १ आयत ३)

अगर तुमको इस बात का डर हो कि बेसहारा लड़कियों में इन्साफ कायम न रख सकोगे तो अपनी इच्छा के अनुकूल दो-दो और तीन-तीन या चार-चार औरतों से निगाह कर लो, लेकिन अगर तुमको इस बात का शक हो कि बराबरी न कर सकोगे तो एक ही बीबी करना या जो तुम्हारे कब्जे में हो उस पर सन्तोष करना। यह तदवीर मुनासिब है।

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इसमें साफ छूट दी गई है कि यदि मर्द में औरतों के साथ हर बात में एक जैसा बर्ताव करने की ताकत हो तो चाहे जितनी औरतें अय्याशी के लिए पास रख सकता है।

कुरान समीक्षा : दुनियाँ की जिन्दगी धोखे की है

दुनियाँ की जिन्दगी धोखे की है

दुनियाँ जीवों का कर्म क्षेत्र तथा कर्म करने की अपनी स्वतन्त्रता का उपभोग करने का उत्तम स्थान है। धोखे की जिन्दगी तो इस्लामी जन्नत में होगी जहाँ हूरें, गिलमें, बेशुमार औरतें, शराब खोरी आदि का लालच दिया गया है? साबित करें कि जन्नत की काल्पनिक जिन्दगी से इस दुनियाँ की जिन्दगी में क्या कमी है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

कुल्लु नफसिन् जाईकतुल्मौति………।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू १९ आयत १८५)

…..और दुनिया की जिन्दगी तो धोखे की पूंजी है।

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यदि दुनिया की जिन्दगी धोखे की पूंजी है तो खुदा ने जीवों को दुनियाँ में जन्म देकर गुनाह क्यों किया? उन्हें सीधा जन्नत अर्थात् स्वर्ग में क्यों नहीं भेज दिया? जिसे कुरान असली जिन्दगी का मजा मानता है जहां हर मियाँ को ५०० हूरें ४००० क्वांरी अछूती औरतें व ८००० ब्याहता औरतों के अलावा बेशुमार गोरे चिट्टे लोंडे अर्थात् गिलमें ऐश करने को मिलने तथा भर-भर प्याले सौंठ और कपूर मिली शराब के पीने को मिलते। अरबी खुदा की नजर में लौंडेबाजी व औरतों से ऐश करने व शराब पीने की जिन्दगी ही तो असली मजे की जिन्दगी है।

कुरान समीक्षा : गुनाह करने के लिए खुदा की ढील

गुनाह करने के लिए खुदा की ढील

जब खुदा लोगों को इसलिए ढील देता है कि वक गुनाह खूब करें तो असली गुनहागार अथवा लोगों के गुनाहों में प्रमुख साझीदार खुदा हुआ या नहीं यदी खुदा लोगों को गुनाह करते ही रोक देवे तो लोग बुराई से बच सकेंगे। क्योंकि इस्लाम यह मानने को तैयार नहीं है कि लोग कर्म करने में स्वतन्त्र हैं और फल भोगने में परमात्मा के आधीन हैं लोगों को अपनी मर्जी के अनुसार कर्म करने से रोकना खुदा की ताकत से बाहर है क्योंकि इससे उनकी स्वतन्त्रता नष्ट होगी और कर्मों की उनकी जिम्मेदारी नहीं रहेगी?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व ला यह्स- बन्नल्लजी-न क…….।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू १८ आयत १७८)

जो लोग इन्कार कर हैं, वो इस ख्याल में न रहें कि हम जो उनको ढील दे रहे हैं ताकि और गुनाह समेट लें और इनको जिल्लत की मार है।

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अरबी खुदा की नीयत बद अर्थात् बुरी भी, वह मनुष्यों का भला नहीं चाहता था। यदि भला चाहने वाला होता तो लोगों को पाप करने की ढील न देता।

मगर खुदा गर्व से कहता है कि-

‘‘हम लोगों को ज्यादा से ज्यादा बुरे काम करने के लिए ढील देते हैं अर्थात खुदा चाहता है कि लोग पाप कर्म करते रहें।’’

क्या ऐसा आदमी खुदा हो सकता है? जो अपनी अपनी प्रजा का बुरा चाहने वाला हो?