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कुरान समीक्षा : खुदा ने गुमराह किया

खुदा ने गुमराह किया

बतावें कि गुमराह करने वाला खुदा मुल्जिम क्यों नहीं है और जिसे उसने गुमराह किया उसें दोषी मानना अन्याय क्यों नहीं है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अ-फ-रऐ-त-मनित्त-ख-ज इलाहहू…………।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जासिया रूकू ३ आयज २३)

ऐ पैगम्बर! भला देखो तो जिसने अपनी ख्वाहिशों को अपना पूजित ठहराया और इल्म होते हुए भी अल्लह ने उसें गुमराह कर दिया और उसके कानों पर और उसके दिल पर मुहर लगा दीं और उसकी आंखों पर पर्दा डाल दिया तो खुदा के (गुमराह किये) पीछे कौन उसको हिदायत दे? क्या तुम नहीं सोचते।

समीक्षा

अगर कोई आदमी अपनी पसन्द के अनुसार किसी की उपासना करे तो अरबी खुदा जल भुन कर उसके दिलो दिमाग पर मोहर कर देता है कि वह सही रास्ता न अपना सके। ऐसे बुरे खुदा को मानने वाले दया के पात्र हैं।

कुरान समीक्षा : हर आदमी का हाल दो-दो फरिश्ते लिखते रहते हैं

हर आदमी का हाल दो-दो फरिश्ते लिखते रहते हैं

इन दो फरिश्तो के हर व्यक्ति का हाल लिखते रहने ही मिथ्या कल्पना को सत्य साबित करें?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अम् यह-सबू-न अन्ना ला नस्मअु ………..।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ७ आयत ८०)

क्या ये लोग यह ख्याल करते हैं कि हम इनके भेद और मशविरें नहीं जानते, हां-हां हम सब जानते है और हमारे फरिश्ते उनके पास सब बातों को लिख लेते हैं ।

समीक्षा

खुदा ने हर आदमी पर दो-दो फरिश्ते लगा रखे हैं जो उसके हर काम को लिखते रहते हैं और उसकी रिपोर्ट खुदा को देते रहते हैं ऐसा कुरान व इस्लाम मानता है

कुरान समीक्षा : खुदा का गुस्सा होना

खुदा का गुस्सा होना

गुस्सा होना, स्वभाव से क्रोधी होना यह दिमागी बीमारी होती है। क्या खुदा भी उस बीमारी का शिकार है? होम्योपैथिक में ‘‘कैमोमिला’’ नाम की दवा खिलाने से यह बीमारी मिट जाती है? क्या आलिमाने कुरान खुदावन्द को उस दिमागी रोग से इस दवा देकर रोग मुक्त करके उसका उपचार की कृपा करेंगे? इससे दुनियां का भी भला हो सकेगा। खुदा की दिमागी उत्तेजना शान्त हो जावेगी जिससे वह अपने फैसले ठंडे दिमाग से कर सकेगा।

फ-लम्मा आसफू-नन्-त-कम्ना………..।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ५ आयत ५५)

फिर जब उन लोगों ने हमको गुस्सा दिलाया, हमने इनसे बदला लिया, फिर इन सबको डूबो दिया।

समीक्षा

खुदा को भी गुस्सा आ जाता था, और बदला ले बैठता था, उसका दिमाग भी ठण्डा नहीं था, खुदा का अपने गुस्से पर भी काबू न था, हो सकता है खुदा को अय्याशी का शौक हो, शराब भी पीता हो, पर कुरान में इन बातों का जिकर नहीं है।

मुन्सिफ को तो शान्त दिमाग का होना चाहिए। क्रोधी, कामी लोभी, मोही होना तो बुराई की बात है।

कुरान समीक्षा : खुदा शैतान पीछे लगा देता है

खुदा शैतान पीछे लगा देता है

जब लोगों को गुमराह करने के लिए स्वयं खुदा उनके पीछे शैतान की तरह लगातार रहता है तो खुदा डबल शैतान हुआ या नहीं? गुनहगार दोनों में से कौन हुआ?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व मंय्यअ्-शु अन् जिक्रिर्-रह्मानि………..।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ४ आयत ३६)

और जो शख्स खुदा कृपालु की याद से बरगलाता है हम उस पर एक शैतान मुकर्रर कर दिया करते हैं और वह शैतान बरगलाने के लिए हमेशा उसके साथ रहता है।

व इन्नहुम् ल-य सुद्दूहुम्……….।।

(कुरान मजीद परा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ४ आयत ३७)

और शैतान पापियों को सीधी राह से रोकता है और वे समझते हैं कि हम सीधे रास्ते पर हैं। क्या तुमने नहीं देखा कि हमने शैतानों को काफिरों पर छोड़ रखा है कि वह उनको उकसाते रहें।

समीक्षा

गलत रास्ते पर चलने वालों को नेक रास्ता बताना खुदा को योग्य था। पर वह भला आदमी भूले भटके लोगों को गुमराह कराने के लिए उस बदमाश शैतान को उनके पीछे लगा देता है ताकि वह उन्हें हमेशा बुराई की ओर ही ले जाता रहे। अरबी खुदा इन्सान का पक्का दुश्मन था उसके काम सभी शरारत के ही रहे हैं कहीं खुदा लोगों को गुमराह बिना वजह करता है, कहीं शैतान से गुमराह कराता है। ऐसे खुदा को रक्षक मानना भी गलती की ही बात है।

कुरान समीक्षा : कुरान में झूठ का प्रवेश नहीं है

कुरान में झूठ का प्रवेश नहीं है

कुरान में झूठ का प्रवेश नहीं है यह दावा क्यों न गलत माना जावे? जबकि कुरान में-

आसमान में ओलों के पहाड़ जमे होने की बात

कागज की तरह आसमान का लपेटना

आसमान में बुर्ज है

आदि अनेक स्थल सर्वथा काल्पनिक लिखे हुए मिलते हैं?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्नल्लजी-न क-फरू बिज्जिविर…….।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा हामीम अस-सज्दा रूकू ५ आयत ४१)

यह कुरान एक बुलन्द मर्तबा अर्थात क्या अजीब किताब (कुरान) है।

ला यअ्तीहिल्-बातिलु मिम्बैनि……….।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा हामीम अस-सज्दा रूकू ५ आयत ४२)

इसमें झूठ का न इसके आगे से और न इसके पीछे से दखल है । हिकमत वाले खुदा ने इसें सब खूबियों के सहारे से उतारी हुई है।

समीक्षा

इस किताब में पीछे जो भी अवैज्ञानिक बातों को कुरान से उल्लेख है उनसे कुरान की इस आयत के दावे का खण्डन स्वयं ही हो जाता हैं ।

कुरान समीक्षा : बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दो

बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दो

बुराई का बदला नेकी से देने की खुदा की बात, बुराई का बदला बुराई से देने के कुरान पारा ४ सूरे बकर रकू २२ आयत १७८ के आदेश के विरूद्ध क्यों है? दोनों में से कुरान की कौन सी बात सही व कौन सी गलत है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व ला तस्तविल्-ह-स-नतु व………….।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा अस-सज्दा रूकू २२ आयत ३४)

नेकी और बदी बराबर नहीं हो सकती। बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दे तो तुझमें और जिस आदमी में दुश्मनी थी उसे तू पक्का दोस्त पावेगा।

नोट- यह उपदेश अति उत्तम है, किन्तु खुदा के हुक्म के बिल्कुल खिलाफ है जिसमें उसने कहा था-

या अय्युउल्लजी-न आमनू कुति-ब……….।।

(कुरान मजीद पारा २ सूरा बकर रूकू २२ आयत १७८)

ऐ ईमान वालों! जो लोग मारे जावे उनमें से तुमको जान के बदले जान का हुक्म दिया जाता है । आजाद के बदले आजाद, गुलाम के बदले गुलाम, औरत के बदले औरत आदि-आदि।

‘‘लाजपत राय अग्रवाल’’

समीक्षा

एक जगह बुराई के बदले बुराई करने का हुक्म देना और दूसरी जगह बुराई का बदला भलाई से देना, इन दोनों में परस्पर विरोधी उपदेशों में से कौन सा माननीय है? खुदा को तो एक ही अच्छी बात कहनी चाहिये थी।

कुरान समीक्षा : खुदा का जमीन और आसमान से बाते करना

खुदा का जमीन और आसमान से बाते करना

साबित करें कि क्या बेजान पदार्थों से बातें करना सम्भव हो सकता है? जो कुछ चीज ही नहीं है जैसे आसमान, उससे बातें कैसे की जा सकती हैं और वह जवाब कैसे दे सकता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

सुम्मस्तवा इलस्समा-इ व हि-य…………।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा हामीम अस-सज्दा रूकू २ आयत ११)

जमीन और आसमान दोनों से कहा कि तुम दोनो आओ चाहे खुशी से या लाचारी से? दोनों ने कहा- हम खुशी से आये।

समीक्षा

खुदा का जमीन और आसमान से बातें करना और उनका जवाब देना असम्भव है?

अगर ठीक है तो भक्तों का अपनी बेजान मूर्तियों से बातें करना मनौती मांगना भी क्यों न ठीक माना जावेगा?

कुरान समीक्षा : कयामत के दिन फैसला किताबों से होगा

कयामत के दिन फैसला किताबों से होगा

बतावें कि ये किताबें कानून की होंगी, खुदा के याद्दाश्त की डायरियां होंगी या लोगों के कर्मों के रजिस्टर होंगे? यदि ये किताबें किसी तरह गुम हो जावें या शैतान मियाँ चुरा ले जावें तो खुदा कयामत के दिन फैसला कैसे करेगा? क्या खुदा भी फैसले के लिये किताबों का मोहताज है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व अश्-र-कातिल् अरजु बिनूरि………।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा जुमर ७ आयत ६९)

और जमीन अपने परवर्दिगार से चमक उठेगी और किताबें रख दी जायेंगी और उनमें पैगम्बर गवाह हाजिर किए जायेंगे और उनमें इन्साफ के साथ फैसला कर दिया जायेगा और उन पर जुल्म न होगा।

समीक्षा

कयामत के दिन खुदा जिन किताबों को देखकर फैसला करेगा वे दीवानी की होंगी या जाब्ता फौजदारी की होंगी? वह किताबें अगर दुनियाँ में भी आ जावें तो सभी लोग खुदा के कानूनों को पढ़कर जान लेवें कि खुदा जो दफा लगावेगा वह ठीक होगी या गलत और हमारे वकील भी तैयारी कर लेवेंगे।

दंगल की जायरा वसीम अभिनेत्री को कश्मीर की अलगाववादियों की धमकी

दंगल की  जायरा वसीम  अभिनेत्री  को  कश्मीर की अलगाववादियों की धमकी

आजकल  सोशल मीडिया में दंगल की बहुत चर्चा हो रही है इतना ही  नहीं बहुत से टीवी सीरियल  में भी दंगल  की बात की जाती है  की दंगल करते हैं इत्यादि इत्यादि | आज यदि भारत में विमुद्रीकरण  होने के कारण  लोग बोल रहे हैं की पैसा बाजार में नहीं है तो फिर  बाजार में दंगल ने ३६० करोड़  से ज्यादा का कारोबार कैसे कर लिया ? यह बात समझ से  बाहर है | लोग आमिर  को एक समाजसेवक के रूप में  देखते हैं | समाज सेवक के रूप में लोगो को नजर आते हैं और सत्यमेव जयते को करके और भी अपने को समाज सेवक के तौर पर  लोगो में अपना दिल  बना लिया है | यह वही  आमिर खान  हैं जिन्हें  पाकिस्तान से प्रेम है  जिस कारण pk जैसे  फिल्मो  में पाकिस्तान की लव जिहाद की बात पर जोर दिया गया था की  पाकिस्तान का  लड़का है  तो क्या दिक्कत है | खैर  हमें इन सब सब बातो पर चर्चा  नहीं करनी है | फिलहाल  अभी दंगल की अभिनेत्री  के बारे में चर्चा करनी है |

सबसे पहले यह जाने की की आखिर  ये  जयरा वासिम कौन हैं और आज सभी उसकी  ओर क्यों संवेदना  प्रकट  कर रहे हैं |  कुछ तो इतना बोल रहे हैं की उन्हें सनातन धर्म में वापसी करनी चाहिए | खैर वे सनातन धर्म में वापसी करें या ना करें  यह उनकी  मर्जी है  इस मामले में हमें कुछ नहीं  बोलना चाहिए | पहले हम जायरा वासिम के बारे में बात करें ये कौन है फिर  दंगल की जायरा वासिम की बात करेंगे |

जायरा वासिम कश्मीरी मुस्लिम लड़की है  जिसकी  उम्र १६ साल की है ऐसा बतलाया जा रहा है मीडिया में |  यह फेसबुक पर बहुत ही बहुत ही जयादा इस्तेमाल करती थी  हो सकता है अब भी करती हो | यह जायरा वासिम फेसबुक पर  रास्त्रगान को नहीं गाने वाली  कई पोस्ट कर चुकी हैं ऐसा सोशल मीडिया में बाते होती रही है | जायरा वासिम  फेसबुक  पर अलगाववादी की कई बार  पोस्ट की तहत  समर्थन कर चुकी  हैं |  जो रास्ट्रगान का तिरस्कार करे  उसे देश द्रोही  ना बोला जाए ? और जब जायरा वासिम  जैसे जो राष्ट्रगान का  विरोध किया है  उसका हम समर्थन कर रहे हैं | राष्ट्रगान का  विरोध करना मतलब देशद्रोही  होना  उस हिसाब से  जायरा वासिम भी देशद्रोही न हुयी  ? वैसे आमिर खान  सलमान खान शारुखखान  इत्यादि  भी  देशद्रोही का  समर्थन करते हैं  पाकिस्तानी का समर्थन  करते हैं  फिर इन्हें देशद्रोही  बोलना कुछ गलत  नहीं होगा ?

 

अब बात करते हैं दंगल की जयरा वासिम की  | क्यों आजकल वे मीडिया में प्रसिद्ध हो  रहे हैं | आपको पहले ही बतलाया  की जयरा  वासिम  दंगल में काम कर चुकी हैं और वे  काश्मीरी  हैं | फिल्म दंगल में काम करने के कारण उसमे  नाचने के कारण आज काश्मीरी अलगाववादी  कई बार  धमकी दे रही हैं गाली दे रही हैं | कश्मीरी अलगाववादी  आज जयरा वासिम को  इस कारण धमकी गाली दे रही हैं क्यूंकि उन्होंने बुरखा क्यों नहीं पहना और क्यों दंगल में काम किया  नाच गान  किया | जबकि खुद जयरा  वासिम अलगाववादी  का समर्थन करनेवाली है | आज इस्लाम के नजर में बुरखा पहनना चाहिए जो नहीं किया इस कारण  उसे आज धमकी  मिल रही है | आज इस्लाम  में अब भी औरत की बुरी हालत है यदि वे  बुरखा ना पहने तो यह प्रमाण  के तौर पर जयरा वासिम है जिसे धमकी दी गयी है | इस्लाम में अब भी औरत की हालत बहुत ख़राब है  यह जयरा वासिम की हालत  पर मालुम चल जाता है |

सत्मेव जयते  इत्यादि में बहुत  खुद को समाजसेवक  बोलनेवाले   क्यों नहीं जायरा वासिम की मदद  करने को अग्रसर  हो रहा है  जो की उसी की फिल्म का कलाकार  थी | आज किरण राव को क्यों कुछ दर्द  नजर  नहीं आ रहा | अखलाख  के समय  पुरस्कार  वापसी करने वाले आज क्यों मौन हैं  ?  आज देश में  उन्हें बुरा नजर नहीं  आ रहा क्या ? आज सारे  सेक्युलर चुप क्यों हैं ?  पश्चिम बंगाल में दंगा हुवा क्यों सलमान  आमिर इत्यादि चुप हैं  | हमारे देश के लोग बस जब मुस्लिम पर कुछ  होता है तो तो पूरा देश में मीडिया हंगामा करने लगती हैं और जब हिन्दू पर होते हैं तब चुप क्यों हो जाते हैं सभी  नेता  अभिनेता  ?  अब क्या देश में असहिस्नुता  नहीं हो रही ? मुस्लिम  मुस्लिम को ही सताता है फिर देश में असहिस्नुता  नजर नहीं आता | मुस्लिम हिन्दू पर  मार पिट करे तब नजर नहीं आता है  असहिस्नुता | जब कभी हिन्दू  मुस्लिम पर करे तब असहिस्नुता नजर आता  है |  यह कैसी  दोहरी मानसिकता है क्या  लोगो को यह समझ  नहीं आता ? आज सलमान  सहरुख  आमिर किरण राव  इत्यादि को असहिस्नुता नजर नहीं आता जाब धोलागढ़  में हवा था | हम इसके बात खतना दिवस  १  जनुवरी का  जश्न  मना रहे थे |

आज पूरा देश जयरा  वासिम की ओर सांत्वना दे रहा है जबकि  वे खुद अलगाववादी  थे | राष्ट्रगान  का तिरस्कार  करनेवाली थी |  फिर भी पूरा देश आज जयरा वासिम के साथ है | उसकी समर्थन में सब आगे  आ रहे हैं | बोल रहे हैं  उनके साथ बहुत  गलत कर रहे  हैं |  बिना जानकारी हुए सभी जायरा वासिम की समर्थन कर रहे हैं |  अब भी आप चाहे  तो समर्थन करें जयरा  वासिम की | मर्जी आपकी विचार आपका |

धन्यवाद |

 

 

 

कुर्बानी कुरान के विरुद्ध?

कुर्बानी कुरान के विरुद्ध?

(इस्लाम के मतावलबी कुर्बानी करने के लिए प्रायः बड़े आग्रही एवं उत्साही बने रहते हैं। इसके लिए उनका दावा रहता है कि पशु की कुर्बानी करना उनका धार्मिक कर्त्तव्य है और इसके लिए उनकी धर्मपुस्तक कुरान शरीफ में आदेश है। हम श्री एस.पी. शुक्ला, विद्वान् मुंसिफ मजिस्ट्रेट लखनऊ द्वारा दिया गया एक फैसला  पाठकों के लाभार्थ यहाँ दे रहे हैं, जिसमें यह कहा गया है कि ‘‘गाय, बैल, भैंस आदि जानवरों की कुर्बानी धार्मिक दृष्टि से अनिवार्य नहीं।’’ इस पूरे वाद का विवरण पुस्तिका के रूप में वर्ष 1983 में नगर आर्य समाज, गंगा प्रसाद रोड (रकाबगंज) लखनऊ द्वारा प्रकाशित किया गया था। विद्वान् मुंसिफ मजिस्ट्रेट द्वारा घोषित निर्णय सार्वजनिक महत्त्व का है-एक तर्कपूर्ण मीमांसा, एक विधि विशेषज्ञ द्वारा की गयी विवेचना से सभी को अवगत होना चाहिए-एतदर्थ इस निर्णय का ज्यों का त्यों प्रकाशन बिना किसी टिप्पणी के आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। -समपादक)

पिछले अंक का शेष भाग…..

जहाँ तक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-26 का प्रश्न है उनमें प्रारमभ में ही ‘‘स्ह्वड्ढद्भद्गष्ह्ल ह्लश श्चह्वड्ढद्यद्बष् शह्म्स्रद्गह्म् द्वशह्म्ड्डद्यद्बह्लब् × द्धद्गड्डद्यह्लद्ध’’ शबद जुड़े हुए हैं, जो इस बात का प्रतीक हैं कि धार्मिक कृत्य कोई भी पबलिक आर्डर, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के विपरीत नहीं किया जायेगा। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म भी सती प्रथा अथवा आत्मदाह किसी पाप के प्रायश्चित करने के प्रकार बताये गये हैं, परन्तु चूँकि वह उपरोक्त तीन शबदों के प्रतिकूल होने के कारण न्यायालय उन्हें इजाजत नहीं दे सकती।

इस बात को भी स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि दीवानी अधिकार (सिविल राइट) यदि मौलिक अधिकारों के समक्ष चुनौती उत्पन्न करते हैं तो मौलिक अधिकारों को वरीयता दी जायेगी और दीवानी अधिकार उस हद तक संशोधित एवं निरस्त समझे जायेंगे। यदि वादीगण को प्रतिवादीगण के विरुद्ध केवल दीवानी अधिकार ही प्रदत्त हैं, जबकि भैसें की कुर्बानी करना प्रतिवादीगण का मौलिक अधिकार है, तो निश्चय ही वह प्रतिवादीगण का मौलिक अधिकार माना जायेगा और वादीगण के दीवानी अधिकार निरस्त समझे जायेंगे। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दुर्गा कमेटी अजमेर आदि बनाम सैयद हुसैन अली आदि ए.आइ.आर. 1964 पेज 1402 के अनुच्छेद 33 में यह स्पष्ट किया है कि बड़ी सफलतापूर्वक यह ध्यान देने योग्य है कि प्रचलित धर्म की रीति धर्म का आवश्यक एवं अभिन्न अंग है अथवा वह चली रीति धर्म का अभिन्न एवं आवश्यक अंग नहीं है और इस तथ्य को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 के आवरण में दिखाना होगा। उसी प्रकार प्रचलित धर्म रीति केवल अन्धविश्वास है अथवा अनावश्यक एवं स्वयं में धर्म का अंग न हो,    जब तक धार्मिक प्रचलित रीति आवश्यक एवं अभिन्न धर्म का अंग न हो। अनुच्छेद 26 के तहत सुरक्षा प्रदान नहीं की जा सकती तो उसका बड़ी सावधानीपूर्वक निरीक्षण करना होगा। दूसरे शबदों में संवैधानिक सुरक्षा उन्हीं धार्मिक रीतियों को देता है जो धर्म का आवश्यक एवं अभिन्न अंग हैं। पाक कुरान शरीफ की सन्दर्भित आयतों को देखकर एवं विद्वान् अधिवक्तागण के द्वारा प्रस्तुत किये गये तर्कों का सिंहावलोकन कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि भैंस-भैसे की कुर्बानी एक अन्ध विश्वास की देन है। पाक कुरान शरीफ अथवा इस्लाम का आदेश न होने के कारण इस्लाम धर्म का आवश्यक व अभिन्न अंग नहीं है। इस्लाम धर्म में बहुतेरे पैगबर, सिद्धहस्त फकीर एवं महान् मुसलमान आत्माओं को जन्म दिया है, जिन्होंने कोई कुर्बानी नहीं दी। इसका यह मतलब नहीं हुआ कि कुर्बानी के बिना बहिस्त प्राप्त नहीं हो सकता। वर्तमान वाद में प्रतिवादीगण भैंसे की कुर्बानी को इस्लाम का आवश्यक अंग सिद्ध करने में सर्वथा असमर्थ रहे हैं।

यहाँ पर मैं यहा भी कहना उचित समझता हूँ कि विभिन्न धर्मों के लोग महिला मऊ गाँव में रहते हैं, जहाँ अब तक भैंस-भैंसे की कुर्बानी नहीं हुई और यदि वे इसे बुरा मानते हैं और अहिंसा में विश्वास करते हैं, तो उनकी धार्मिक भावनाओं को भैंसे की कुर्बानी की इजाजत देकर ठेस पहुँचाना कहाँ तक उचित होगा, जबकि वे इतने सहिष्णु हो चुके हैं कि बकरे, भेड़, भेड़ा की कुर्बानी करने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

मेरे समक्ष यह तर्क दिया गया है कि एक बड़े जानवर में सात व्यक्ति शरीक हो सकते हैं, इसलिये भैंस-भैंसे की कुर्बानी एक गरीब व्यक्ति के लिये लाजमी है, जबकि वह व्यक्ति इतना गरीब है कि एक बकरी खरीद कर कुर्बानी नहीं दे सकता तो क्या वह पबलिक आर्डर, नैतिकता की सुरक्षा, मलमूत्र, रक्त आदि विसर्जित करके ठीक से निर्वसन कर सकेंगे, इसमें सन्देह है और निश्चय ही गन्दगी को बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने इसलिए बड़े जानवर को काटने के लिए बूचड़खानों का प्रबन्ध किया है।

यदि पाक कुरान शरीफ की गहराइयों में झाँका जाए और बारीकियों को परखा जाए तो व्यक्ति को काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह एवं अहं की कुर्बानी करनी चाहिये न कि बेचारे चौपायों की, जिन्हें चाँदी के कुछ सिक्कों में खरीदा जा सकता है। मनुष्य को इन्द्रियजित, मनोवृत्तिजित् होना चाहिये। किसी भी धर्म के आधारभूत सिद्धान्त हिंसा में विश्वास नहीं करते और मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि पाक कुरान शरीफ में भैंस-भैंसे की कुर्बानी का सन्दर्भ कहीं पर नहीं आया है अन्यथा मेरे समक्ष इस प्रकरण एवं तथ्यों पर हुई गवाही में अवश्य आता। इस साक्षी को अपने उलेमाओं से भी मदद लेने का अवसर था, परन्तु फिर भी यह साक्षी मेरे समक्ष इस प्रकार का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे अनुमान लगाया जायेगा कि पाक कुरान शरीफ अथवा इस्लाम में कुर्बानी करना फर्ज नहीं है और कुर्बानी भैंस या भैंसे की नहीं हो सकती।

साक्षी सं. 1 हाजी सैयद अली ने और साथ ही साक्षी सं. 5 मो. रफीकुद्दीन ने यह स्वीकार किया है कि कुर्बानी के अलावा भी अन्य तरीकों से भी बहिस्त प्राप्त हो सकती है, गरीब आदमी  इबादत के द्वारा बहिस्त प्राप्त कर सकता है। यदि कुर्बानी द्वारा ही एक मात्र बहिस्त प्राप्त किया गया होता तो निश्चय ही इस्लाम धर्म के सभी राजा-महाराजाओं सेठ-साहूकारों ने बहिस्त प्राप्त कर लिया होता और गरीब फकीर उधर लालयित होकर देखते रहते, जबकि सत्यता इसके प्रतिकूल है।

इसके विपरीत वादीगण की ओर से श्रीराम आर्य को परीक्षित किया गया, जिन्होंने करीब 80 किताबें धार्मिक विचारों पर लिखी हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि पाक कुरान शरीफ से समबन्धित आठ-दस किताबें उन्होंने लिखी हैं। कुरान शरीफ की छानबीन, कुरान शरीफ का प्रकाश व पुनर्जन्म, कुरान शरीफ में बुद्धि विज्ञान आदि कई किताबें लिखीं। इस साक्षी ने अपने मुखय कथन में स्पष्ट स्वीकार किया है कि केवल एक ही आदेश हज के समय ऊँट की कुर्बानी का है अन्य किसी जानवर की कुर्बानी का नहीं है। किसी दूसरे जानवर यानी भैंसे की कुर्बानी का आदेश पाक कुरान शरीफ में नहीं है। जो व्यक्ति भैंस-भैंसे को काटता है, उसकी कुर्बानी इस्लाम के खिलाफ है। इस साक्षी ने अपने मुखय कथन में यहा भी कहा कि उसने धार्मिक किताबें हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित की हैं। पृच्छा में इस साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि पाक कुरान शरीफ में कुर्बानी का जिक्र सूरे हज्ज में है, सूरे वक्र में नहीं। सूरे हज्ज में ही केवल कुर्बानी का आदेश है, अन्य कहीं नहीं। पारा बिना किताब देखे नहीं बता सकता। इस साक्षी ने यहा भी स्पष्ट इन्कार किया कि उसने कुरान शरीफ अथवा मुस्लिम कल्चर का पूर्ण अध्ययन नहीं किया है। इस साक्षी ने स्पष्ट स्वीकार किया कि कुरान शरीफ अरबी में उसने नहीं पढ़ा है, परन्तु कुरान शरीफ उसने कई बार पढ़ा। उसका ट्रान्सलेशन अहमद वसीर, काबिल तवीर, काबिल मौलवी लखनऊ, शाह अबदुल कादिर के तर्जुमें पढ़े हैं। इस साक्षी ने भी स्वीकार किया कि ये लोग आलिम हैं या नहीं, परन्तु इनका अनुवाद मान्य है। मैं इस स्वतन्त्र साक्षी के साक्ष्य को ग्राह्य करने का कोई औचित्य नहीं समझता, जबकि इस साक्षी की साक्ष्य का संपुष्टन सफाई साक्षी  नं. 5 मो. रफीकुद्दीन ने भी किया है और कुरान शरीफ में कुर्बानी फर्ज है, नहीं ढूँढ सका और अन्त में उसने विवश होकर यह स्वीकार किया कि हिंसा करना कुरान शरीफ में पाप है और सभी वस्तुएँ अल्लाह की बनाई हुई हैं, किसी को चोट पहुँचाना पाप है। ऐसी दशा में निःसंकोच कहा जा सकता है कि जब प्रतिवादीगण भैंस-भैंसे की बलि इस्लाम में सिद्ध नहीं कर पाये हैं तो उन्हें अनुच्छेद 25 व 26 भारतीय संविधान का लाभ नहीं मिल सकता और वे किस हद तक प्रतिवाद पत्र की धारा 10में वर्णित आधार पर लाभ पा सकते हैं, उत्तर नकारात्मक होगा।

उपरोक्त व्याखया के अनुसार विवाद्यक नं. 2,3 व 5 वादीगण के अनुकूल एवं प्रतिवादी गण के प्रतिकूल निर्णीत किये गये।

विवाद्यक सं. 7

इस विवाद्यक को सिद्ध करने का भार वादीगण पर है। इस समबन्ध में वादी साक्षी नं. 2 महन्त विद्याधर दास ने अपने मुखय कथन में अभिकथित किया कि कुर्बानी का प्रभाव जनता पर पड़ेगा। भैसों की कुर्बानी से हिन्दुओं में उत्तेजना फैलेगी, सामप्रदायिकता बढ़ेगी। इस गाँव में कोई पशुवधशाला नहीं है और न ही पशुवधशाला का अलग स्थान है। इस गाँव में कोई नाली आदि नहीं है जिससे भैंसों का खून आदि रास्ते में बहेगा। इस साक्षी से पृच्छा में जन स्वास्थ्य के बारे में एक भी शबद नहीं पूछा गया, केवल अन्तिम सुझाव दिया गया कि घर के अन्दर कुर्बानी करने से खुन आदि बहने का प्रश्न नहीं उठता, जिसे इस साक्षी ने इन्कार किया। इसके अतिरिक्त प्रतिवादी साक्षी नं. 6 डाक्टर मेहरोत्रा ने प्रथम प्रदर्शक-6 सिद्ध किया और बताया कि मेरे पूर्व डाक्टर श्री शर्मा ने यह प्रपत्र जारी किया था। पृच्छा में इस साक्षी ने स्वीकार किया कि जानवरों की बलि देने से बावत प्रमाणपत्र जारी करने के लिए पशु चिकित्सक अधिकृत नहीं है और न ही पशु चिकित्सक पशुबलि के लिए कोई आदेश अथवा स्वीकृति देना भी निश्चित नियमों के तहत है, जिसमें पशुओं का वध बूचड़खाना में ही हो सकता है, खुले स्थान में नहीं। खुले स्थान में पशुवध करना प्रतिबन्धित है। विवादित गाँव सहिलामऊ में कोई बूचड़खाना नहीं है। बड़े जानवरों को बूचड़खाने के अतिरिक्त अन्य किसी जगह पर काटना प्रतिबन्धित है। ऐसी दशा में यदि खुले स्थान में जानवर काटा जाता है तो निश्चय ही सामप्रदायिकता भड़केगी एवं समाज में घृणा फैलेगी, उनके खून के बहाव एवं हाड़ आदि की दुर्गंध से बीमारियाँ भी फैलने का अंदेशा रहेगा। यही नहीं, इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही समभवतः प्रदर्श क-1 आदेश परगनाधिकारी कुमारी लोरेशन, दिगोजा एवं क्षेत्राधिकारी सुभाष जोशी ने जारी किया है।

उपरोक्त व्याखया के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि विवाद्यक नं.-7 वादीगण के अनुकूल एवं प्रतिवादीगण के प्रतिकूल निर्णीत किया जाता है।

शेष भाग अगले अंक में……