Category Archives: हिन्दी

वे हँसी में भी कभी झूठ नहीं बोलते थे

वे हँसी में भी कभी झूठ नहीं बोलते थे

पण्डित श्री चमूपतिजी की धर्मपत्नी ने अपनी एक सखी व घरवालों से कह दिया कि अमुक दिन पण्डित चमूपतिजी मुझे लेने आएँगे, मेरा शरीर छूट जाएगा। वे ठीक-ठाक थीं। कोई रोग नहीं

था, परन्तु मृत्यु के स्वागत के लिए वे तैयार होकर बैठ गईं।

वह दिन आ गया। दस बजे, ग्यारह बजे और बारह बज गये। सबने कहा कि ज़्यों मौत की सोचती हो? आपको कुछ नहीं होता।

आप ठीक-ठाक हैं। आप नहीं मरेंगी, परन्तु पण्डित चमूपतिजी की पत्नी की एक ही रट थी कि मुझे स्वप्न में पण्डितजी ने कहा है कि तैयार रहना, मैं अमुक दिन तुज़्हें लेने आऊँगा। पण्डितजी तो भी हँसी-विनोद में भी कभी झूठ नहीं बोलते थे, अतः उनकी बात टल नहीं सकती।

और ऐसा ही हुआ। सायंकाल तक पण्डितजी की धर्मपत्नी की मृत्यु हो गई।

मैंने स्वामी सर्वानन्दजी महाराज से इस घटना के सैद्धान्तिक विवेचन के लिए कहा तो आपने कहा कि पण्डितजी लेने आएँगे या वे लेने आये इसका कोई दार्शनिक आधार नहीं है। सर्वव्यापक

सर्वशक्तिमान् परमेश्वर किसी की सहायता नहीं लेता। स्वप्न को इस रूप में लेना ठीक नहीं है। इस घटना का कारण मनोवैज्ञानिक है। पण्डितजी की पत्नी के मन में यह पक्का विश्वास था कि उनके पति सदा सत्य ही बोलते हैं। इसी विश्वास के कारण वह मर गईं।

हम प्रायः देखते हैं कि कई बार डाज़्टरों, वैद्यों के मुख से अपनी मौत की सज़्भावना की बात कान में पड़ते ही रोगी मर जाते हैं।

यह तो हुआ इस घटना का सिद्धान्तपक्ष, परन्तु इस घटना का दूसरा पक्ष यह है कि उस महापुरुष का जीवन कितना निर्मल था कि उनकी पत्नी डंके की चोट से कहती हैं कि वे तो कभी हँसी में भी झूठ नहीं बोलते थे। उनकी सत्यवादिता की ऐसी गहरी छाप!

हदीस : उपवास

. उपवास और तीर्थयात्रा (साॅम और हज)

छठी और सातवीं किताबें क्रमशः उपवास (अल-साॅम) और तीर्थयात्रा (अल-हज) से संबंधित है। ये दोनों ही इस्लाम के ”आधार-स्तम्भों“ में गिने जाते हैं।

 

उपवास

इस्लाम में अनेक तरह के उपवास हैं। मगर रमज़ान के महीने में उपवासों का सबसे ज्यादा महत्त्व है। कुरान में इसका आदेश है, अतः यह अनिवार्य है। ”जब रमज़ान का महीना आता है, कृपा के द्वार खोल दिये जाते हैं और नरक के दरवाज़ों पर ताला लग जाता है और शैतानों को जंज़ीरों से जकड़ दिया जाता है“ (2361)।

 

मुस्लिम परम्परा में उपवास, अन्य धर्म-परम्पराओं के उपवास से अपेक्षाकृत भिन्न है। इस्लाम में किसी निरन्तर उपवास (साॅम-विसाल) का स्थान नहीं है, क्योंकि मुहम्मद ने इसे मना किया था (2426-2435)। मना करने की वजह थी अपने साथियों के प्रति ”कृपा-दृष्टि“ (2435)। उपवासों के दौरान दिन में खाना मना है, रात में खाने की इजाज़त है। इस विधान की अपनी अनुशासनात्मक भूमिका है। फिर भी कोशिश यही की गई है नियमपालन आसान हो जाए। सलाह दी गई है कि सूरज उगने के पहले तक जितने अधिक विलम्ब से खाना सम्भव हो, उतने विलम्ब से खाया जाए और सूर्यास्त के बाद जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी उपवास समाप्त किया जाए। ”सूर्यास्त के तनिक पहले खाना खा लो, क्योंकि उस वक़्त खाने के लिये आर्शीवाद है“ (2412); और ”लोग तब तक समृद्ध होते रहेंगे, जब तक कि ये रोज़ा खोलने में जल्दी करते रहेंगे“ (2417)।

 

इस प्रकार मुसलमानों की यहुदियों और ईसाईयों से अलग पहचान बनी। क्योंकि यहूदी तथा ईसाई जल्दी ही खा लेते थे और नक्षत्रों के दिखने की प्रतीक्षा करते हुए विलम्ब से उपवास तोड़ते थे। मुहम्मद कहते हैं-”दूसरे किताबी लोगों में और हम में सूर्योदय के थोड़ा पहले खा लेने का फर्क है“ (2413)। यह फर्क़ बना रखने से मिल्लत को जो फायदे हुए, उन्हें अनुवादक स्पष्ट करते हैं। इससे ”इस्लाम की मिल्लत दूसरी मिल्लतों से अलग पहचान में आ जाती है“ और मुसलमानों की चेतना में ”अपनी अलग हस्ती“ का एहसास ”जमा देती“ है जोकि ”किसी भी मुल्क की समृद्धि की दिशा में पहला कदम है।“ साथ ही ”सुबह देर से खाने से और सूर्यास्त होते ही जल्दी से रोज़ा खोलने से इस तथ्य का संकेत मिलता है कि आदमी को भूख की हूक उठती है …… यह एहसास व्यक्ति में तितीक्षा के गर्व की बजाय विनम्रता का भाव जगाता है“ (टि0 1491)।

author : ram swarup

कृतज्ञता तथा अकृतज्ञता

कृतज्ञता तथा अकृतज्ञता

कृतज्ञता के भाव से विभूषित मनुष्य जीवन में उन्नति करता है और आगे बढ़ता है। इसके विपरीत आचरण करने से जीवन में हानि ही होती है। आर्यसमाज के यशस्वी विद्वान् आचार्य श्री भद्रसेनजी अजमेरवाले अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में बड़े रुग्ण रहे। वे इस दृष्टि से बड़े भाग्यशाली थे कि उनके सुपुत्रों ने वृद्धावस्था में उनकी बहुत सेवा की।

आचार्यजी को कज़्पन का रोग हो गया था। एक दिन उनके सुपुत्र कैह्रश्वटन देवरत्नजी ने हँसी-विनोद में उनसे प्रश्न किया-‘‘पिताजी आपने इतनी योगविद्या सीखी, जीवनभर उसका अज़्यास करते रहे, सैकड़ों लोगों के रोगों का निदान किया फिर आपका शारीरिक स्वास्थ्य ऐसा ज़्यों हो गया?’’

आचार्यजी ने कहा-‘‘पहले भी कई व्यक्तियों ने यह प्रश्न पूछा है।’’ आचार्यजी ने गज़्भीर मुद्रा में बताया कि उन्होंने चार वर्ष तक स्वामी कुवलयानन्दजी से योगविद्या सीखी। आश्रम भी आचार्यजी ही सँभालते थे। जब गुरु से विदा होने लगे तो गुरुजी ने कहा कि वे तो आचार्यजी को ही आश्रम सौंपना चाहते हैं, परन्तु शिष्य ने कहा कि वह तो जीवन का लक्ष्य वेद-प्रचार, ऋषि मिशन की सेवा बना चुके हैं। गुरुजी ने बड़ा आग्रह किया, परन्तु आचार्य भद्रसेनजी का एक ही उज़र था कि उनके जीवन का लक्ष्य ऋषि दयानन्द के मिशन की सेवा है और कोई कार्य नहीं।

आचार्यजी का कथन था कि चार वर्ष जिससे योगविद्या सीखी, जिसे गुरु माना, उसकी बात न मानकर, मैंने उनके मन को कितना दुःख दिया, यह रोग तथा मेरी यह अवस्था उसका ही परिणाम है।

यह तो है इस घटना का एक पक्ष। यह है एक पूज्य विद्वान् के मन में अपने योग-गुरु के प्रति कृतज्ञता का भाव।

अब इसके आगे की कहानी सुनिए। आचार्यजी ने कहा- ‘‘इन पाँच वर्षों में किसी आर्यसमाजी ने आकर मेरी सुध नहीं ली। यदि आप लोग (सन्तान) सुयोग्य, शिष्ट व सुपात्र न होते, तुम लोग

मेरी सेवा न करते तो मैं किसी एक मकान के एक कमरे में पड़ापड़ा सड़-सड़ कर मर जाता।’’

ये शज़्द प्रत्येक सहृदय व्यक्ति को झकझोर देनेवाले हैं।

आर्यसमाज के लोगों को अपनी इस कमी को दूर करना चाहिए। जो संस्था, जो देश, जो समाज अपने सेवकों के दुःख का भागीदार नहीं बनता, वृद्धावस्था में उनकी सुध नहीं लेता, उसे अच्छे सेवकों व सपूतों से वञ्चित होना पड़ता है। पूज्य पुरुषों की सुध न लेना कृतज्ञता के अभाव को प्रकट करना है।

सच्ची रामायण की पोल खोल-६

 *सच्ची रामायण की पोल खोल-६
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
 कार्तिक अय्यर
।।ओ३म्।।
 धर्मप्रेमी सज्जनों ,नमस्ते ।कल पेरियार साहब की भूमिका का खंडन करके हमने उनकी आर्य-द्रविड़ की राजनीति का पर्दाफाश किया।अब आगे कथा स्रोत का जवाब लिखा जाता है।
*प्रश्न-६रामायण की घटनायें और कथा क्रम ‘अरबी जोधा ‘ ‘मदन कामराज’ पंचतंत्र की तरह है।वे मानव की समझ और गूढ़ विचारों से दूर है।यह ढृढ़तापूर्वक कहा जाता है कि रामायण में कोई वास्तविक कथा नहीं है।रामायण में वर्णित तत्व निराधार,निरर्थक अनावश्यक है।*
*समीक्षा*- बहुत खूब पेरियार साहब!जब आपने रामायण को कोरी गप्प माना है तो आप और ललई सिंह जी किस मुंह से रावण का यशोगान करते हैं?अहो मूलनिवासी मित्रों! रामायण पर गप्प होने का तमगा लगाकर आपके तथाकथित पूर्वज रावण को भी काल्पनिक सिद्ध नहीं कर दिया?
 रामायण मानव के समझ और गूढ़ विचारों से दूर नहीं है।सत्य कहें तो आप ‘मानव’ का अर्थ नहीं जानते।आपने मानव बनकर रामायण का पठन-चिंतन-मनन किया होता तब आपको कुछ समझ में आता।और जो व्यक्ति मानवीय आचरण,चिंतन से परे हैं उसे क्या कहा जाता है ये पाठक भली-भांति जानते हैं।
“रामायण वास्तविक कथा नहीं है”-यह आप किस आधार पर कहते हैं?केवल कागज़ पर कागज़ रंगने से सच नहीं झुठलाया जा सकता।*रामायण की ऐतिहासिकता पर प्रश्न-चिह्न लगाने वालो!रामसेतु रामायण की वास्तविकता का ज्वलंत उदाहरण है।’नासा’ ने भी यह प्रमाणित कर दिया।इस विषय पर विस्तार से आगे लिखा जायेगा।बाकी लंका और अयोध्यानगरी ये चीख-चीख कर कह रहे हैं कि रामायण एक सत्य घटना है।इसे काल्पनिक कहने वाला हठी-दुराग्रही है या फिर अल्पज्ञानी।
रामायण में वर्णित तत्व निराधार या निरर्थक नहीं है।रामायण में आस्तिकता,धार्मिकता,प्रतिज्ञा-प्रतिपालन,वर्णाश्रमधर्मानुसार मर्यादित आचरण एवं उच्च नैतिक आदर्शों का वर्णन है,वह दुर्लभ है।जैसे बालकांड में राम जी के बचपन का सुंदर वर्णन है,तो अयोध्याकांड में उनके सद्गुणों का उल्लेख।सुंदरकांड में श्रीहनुमानजी की वीरता और शौर्य का मार्मिक चित्रण है।युद्धकांड में सत्य-असत्य धर्माधर्म का निर्णायक युद्ध ।
 रामायण वैदिक संस्कृति के उच्चतम मानवीय मूल्य प्रदर्शित करने वाला ग्रं थ है। *शायद निरर्थक या अनावश्यक सामग्री  देखकर आपको रामायण काल्पनिक लगी हो,परंतु यह क्लिष्टतायें प्रक्षेपकर्ताओं ने जोड़ी हैं।निश्चित ही इसके दोषी वे लोग हैं,नाकि आदिकवि वाल्मीकि ।
 श्रीरामचंद्रा-सा उदात्त चरित्र, लक्ष्मण-सा आदर्श भाई,भरत-जैसा वैराग्यवान मिलना कठिन है।रामायण मानव मात्र की उन्नति करने वाला ग्रंथ है।इस पर आक्षेप करने वालों की बुद्धि पर तरस आता है।
क्रमशः—–
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद ।
धन्यवाद ।
 मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रा की जय ।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा

हदीस : ख़ारिज

ख़ारिज

अली ने यमन से मुहम्मद को कुछ मिट्टी-मिला सोना भेजा। उसके बंटवारे में मुहम्मद ने पक्षपात किया। जब कुछ लोगों ने शिकायत की, तो मुहम्मद ने कहा-”क्या तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे, जबकि मैं उसका विश्वासपात्र हूं, जो जन्नत में है ? जन्नत से सुबहो-शाम मुझ तक खबरें आती रहती हैं।“ यह सुनकर लोग चुप हो गये। पर उनमें से एक व्यक्ति, जिसकी आंखें गहरी धंसी थीं, जिसके मालों की हड्डियां उभरी हुई थीं, जिसकी दाढ़ी घनी थी और सिर मुंडा हुआ था, खड़ा हो गया और बोला-”अल्लाह के रसूल! अल्लाह से डरो और इन्साफ करो।“ इससे मुहम्मद क्रुद्ध हो गये और जवाब दिया-”लानत है तुम पर ! अगर मैं इन्साफ नहीं करता तो और कौन इन्साफ करेगा ?“ उमर वहां मौजूद थे। वे मुहम्मद से बोले-”अल्लाह के रसूल ! इस मक्कार को मार डालने की मुझे इजाजत दें।“ यद्यपि वह शख्स बख्श दिया गया, पर वह और उसकी परवर्ती पीढ़ियां भत्र्सना का विषय बन गई। मुहम्मद ने कहा-”इसी शख़्स की औलाद में से वे लोग निकलेंगे, जो कुरान का पाठ करेंगे, पर वह उनके गले के नीचे नहीं उतरेगी। वे इस्लाम के अनुयायियों का वध करेंगे पर बुत-परस्तों को छोड़ देंगे। ….. यदि वे मुझे मिलें, तो मैं उन्हें आद की तरह मार डालूं (आद वह कबीला था जिसे जड़मूल से नष्ट कर गया था)“ (2316-2327)।

 

ये लोग चलकर खारिज कहलाये। इस्लाम के कुछेक नारों को वे हृदयंगम कर बैठे थे। अली के अनुसार, उनके बारे में ही मुहम्मद ने कहा था-”जब उनसे मिलो, तो उन्हें मार डालो। क्योंकि उनको मार डालने के लिए फैसले के रोज अल्लाह तुम्हें इनाम देगा“ (2328)। ये आरम्भिक इस्लाम के अराजकतावादी एवं कट्टरता-वादी लोग थे। उनके बारे में आदेश था-”वे जब हार जायें तो उनका पीछा करना और उनमें से कैद किए लोगों को मार डालना और उनकी सम्पत्ति को नष्ट कर देना।“

author : ram swarup

 

रैफरी ने आऊट कर दिया

रैफरी ने आऊट कर दिया

मेरठ के आर्यसमाजी वक्ता श्री पण्डित धर्मपालजी ने एक बार सुनाया कि जब 1955 ई0 में श्री स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज रुग्ण थे तो उनके देहत्याग से पूर्व एक आर्यविद्वान् पं0 प्रकाशवीर जी शास्त्री श्रीमहाराज के स्वास्थ्य का पता करने गये। स्वामीजी से स्वास्थ्य के विषय में पूछा तो आपने कहा-‘‘छोड़िए इस बात को, सब ठीक ही है। आप अपने सामाजिक समाचार सुनाएँ।’’ यह कहकर स्वामीजी ने चर्चा का विषय पलट दिया।

उस विद्वान् महानुभाव ने पुनः एक बार स्वामीजी के स्वास्थ्य की चर्चा चला दी तो स्वामीजी ने बड़ी गज़्भीरता से, परन्तु अपने सहज स्वभाव से कहा-‘‘स्वास्थ्य की कोई बात नहीं, खिलाड़ी

के रूप में खेल के मैदान में उतरे थे। ज़ेलते रहे, खूब खेले।

अब तो रैफ़री ने आऊट कर दिया।’’

मुनि के इस वाज़्य को सुनकर उस विद्वान् ने कहा-‘‘स्वामीजी आप तो कभी आऊट नहीं हुए। अब भी ठीक हो जाएँगे।’’

स्वामीजी महाराज ने कहा-‘‘परन्तु अब तो आऊट हो गये। रैफ़री की व्यवस्था मिल गई है।’’

मुनियों, गुणियों के जप-तप की सफलता की कसौटी की यही वेला होती है। वेदवेज़ा, आजन्म ब्रह्मचारी, योगी, स्वतन्त्रानन्द का वाज़्य, ‘‘खिलाड़ी के रूप में खेल के मैदान में उतरे थे, खेलते रहे, खूब खेले। अब तो रैफ़री ने आऊट कर दिया’’, मनन करने योग्य है। कौन साधक होगा जिसे यतिराज की इस सिद्धि पर अभिमान न होगा। यह हम सबके लिए स्पर्धा का विषय है। ऋषिवर दयानन्द के अमर वाज़्य, ‘‘प्रभु! तेरी इच्छा पूर्ण हो, पूर्ण हो’’, का रूपान्तर ही तो है। आचार्य के आदर्श को शिष्य ने जीवन में खूब उतारा।

सच्ची रामायण की पोल खोल-५

*सच्ची रामायण की पोल खोल-५
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
 कार्तिक अय्यर
   ।। ओ३म।।
धर्मप्रेमी सज्जनों! सादर नमस्ते । पिछले लेख में हमने पेरियार के पांच आक्षेपों का जवाब दिया। अब आगे:-
 *प्रश्न ५राम और सीता में कोई किसी प्रकार की कोई दैवी तथा स्वर्गीय शक्ति नहीं है।आगे लिखा है कि आर्यों(गौरांगों)ने स्वतंत्रता के बाद उनके नामों से देवता गढ़ लिये।तमिलनाडु की जनता को चाहिये कि तमिल नाडु के विचारों और सम्मान को दूषित करने वाली आर्यों की सभ्यता मिटा देने की शपथ लें*
समीक्षा:- श्रीराम चंद्र और सीता में दैवीय गुण न थे-यह कहना कोरा अज्ञान है।यदि रामायण के नायक में धीरोदत्त गुण न होते तो रामायण रची ही क्यों जाती?श्रीराम में कितने सारे दिव्य गुण थे तथा वे आप्तकाम थे।यदि पक्षपातरहित होकर रामायण पढ़ते तो ७० पृष्ठों की रंगाई-पुताई नहीं करते। ये देखिये,श्रीराम के दिव्य गुणों की झलकियां:-
 ” वे श्रीराम बुद्धि मान,नीतिज्ञ,मधुरभाषी,श्रीमान,शत्रुनाशक,ज्ञाननिष्ठ,पवित्र,जितेंद्रिय और समाधि लगाने वाले कहा गया है। (बालकांड सर्ग १ श्लोक ९-१२)
 उसी प्रकार मां सीता को भी पतिव्रता, आर्या आदि कहा गया है। सार यह है कि श्रीराम व मां सीता में दिव्य गुण थे।हां,यदि स्वर्गीय शक्ति और दैवी शक्ति का तात्पर्य आप असंभव चमत्कार आदि से ले रहे हैं तो वे दोनों में नहीं थे।
देखिये प्रबुद्ध पाठकजनों!मेरे प्यारे परंतु भोलेभाले मूलनिवासी भाइयों! पेरियार साहब आर्यों को विदेशी मानते हैं पर डॉ अंबेडकर शूद्र तक को आर्य व भारत की मूल सभ्यता मानते हैं (पढ़िये ‘शूद्र कौन थे?’-लेखक डॉ अंबेडकर) ।दोनों में से आप किस नेता की बात मानेंगे?
आर्यों ने खुद को देवता नहीं कहा बल्कि दिव्य गुण धारण करने वाले विद्वान देवता कहलाते हैं,फिर वे चाहे जिस किसी मत,देश,भाषा से संबंधित हो।
 तमिल जनता को गुमराह करने का आपका उद्देश्य कभी सफल नहीं होगा।आर्यसभ्यता सत्य,विद्या,धर्म की सभ्यता है।भारत की मूल संस्कृति है।न तो तमिल की सभ्यता अलग है न आर्यों की।दोनों एक ही है।*आर्य सभ्यता को मिटाने की शपथ लेना लेखक की विक्षिप्त मनोदशा बताता है।*लेखक विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता,जो “आत्मवत् सर्वभूतेषु ,मनुर्भव,” वसुधैव कुटुंबकम्” पर आधारित है,को मिटाना चाहता है।इसका कारण या तो लेखक का मिथ्याज्ञान है या फिर स्वार्थांधता और मानसिक दिवालियापन।
पाठकजन! आप समझ गये होंगे कि लेखक का इस पुस्तक को बनाने के पीछे केवल एक ही मंशा थी-*श्रीराम और रामायण पर आक्षेप लगाने के नाम पर आर्य-द्रविड़ की राजनीति खेलना तथा सत्य को छिपाकर गलत धारणाओं व मान्यताओं का प्रचार करना।अपनी स्वार्थांधता के कारण लोगों की धार्मिक भावनाओं पर प्रहार करना किसी विवेकवान,सत्यान्वेषी तथा विद्वान व्यक्ति का काम नहीं हो सकता।
निश्चित ही पेरियार साहब के आक्षेपों का द्वेषमुक्त तथा मर्यादित रूप से खंडन किया जायेगा ताकि पाठकजन असत्य को त्यागकर सत्य को जानें।
आगे के लेख में ‘कथास्रोत’ नामक लेख का खंडन-मंडन विषय होगा
नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा

हदीस : मुहम्मद क्षोभग्रस्त

मुहम्मद क्षोभग्रस्त

एक अन्य हदीस के अनुसार मुहम्मद ने अबू सूफ़ियां, सफ़वान, उयैना और अक़रा में से हरेक को एक-सौ ऊंट दिये, पर अब्बास बिन मिरदास को उसके हिस्से से कम दिये। अब्बास ने मुहम्मद से कहा-”मैं इन व्यक्तियों में से किसी से भी घट कर नहीं हूं। और जिसे आज गिराया जा रहा है, वह ऊपर उठाया नहीं जाएगा।“ तब मुहम्मद ने ”उसके हिस्से के एक-सौ ऊंट पूरे कर दिये“ (2310)।

 

दूसरे मामलों में जब ऐसी ही शिकायतें की गई, तो वे सदा संयत न रह सके। एक व्यक्ति ने शिकायत की कि ”इस बंटवारे में अल्लाह की अनुमति नहीं ली गई है।“ यह सुनकर मुहम्मद ”बहुत नाराज हो गये …… और उनका चेहरा लाल हो उठा।“ संतोष पाने के लिए उन्होंने कहा कि ”मूसा को इससे भी ज्यादा संताप दिया गया था, पर उन्होंने धैर्य दिखाया था“ (2315)।

author : ram swarup

यह किसका प्रकाश है?

यह किसका प्रकाश है?

पूज्य स्वामी आत्मानन्दजी महाराज ने देश-विभाजन से पूर्व एक पुस्तक लिखी। उसके प्रकाशनार्थ किसी धनी-मानी सज्जन ने दान दिया। स्वामीजी के गुरुकुल से वह पुस्तक प्रकाशित कर दी

गई। उसमें दानी का चित्र दिया गया, लेखक का चित्र न दिया गया। एक ब्रह्मचारी पुस्तक लेकर महाराज के पास लाया और कहा-‘‘विद्वान् का महज़्व नहीं, धनवान् का है। आपका चित्र

ज़्यों नहीं प्रकाशित किया गया।’’

गज़्ज़ीर मुद्रावाले वीतराग आत्मानन्दजी ने पुस्तक हाथ में लेकर उसके पृष्ठ उलट-पुलटकर कहा-‘‘यह सारी पुस्तक किसका प्रकाश है?’’

*सच्ची रामायण की पोल खोल -४

*सच्ची रामायण की पोल खोल -४
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
– कार्तिक अय्यर
ओ३म
 धर्मप्रेमी सज्जनों!पेरियार के आक्षेपों के खंडन की चौथी कड़ी में आपका स्वागत है। आपने पिछले लेखों को पढ़ा तथा शेयर किया।इसलिये में हृदय से आपका आभारी हूं।आशा है कि आगे की पोस्ट भी आपका इसी प्रकार समर्थन प्राप्त करेगी। पेरियार साहब की “भूमिका” के खंडन में :-
*प्रश्न-३ :-रामायण युद्ध में कोई भी उत्तर भारत का कोई भी निवासी ब्राह्मण (आर्य) या देवता नहीं मारा गया।एक शूद्र ने अपने जीवन का मूल्य इसलिये चुकाया था क्योंकि आर्यपुत्र बीमार होने के कारण मर गया था इत्यादि।वे लोग जो इस युद्ध में मारे गये वे आर्यों द्वारा राक्षस कहे जाने वाले लोग थे*
*समीक्षा:-* आपका यह कथन सर्वथा अयुक्त है।राम-रावण युद्ध में दोनों ओर के योद्धा मारे गये थे।वानर भी क्षत्रिय वनवासी ही थे, तथा आर्य ही थे,यह हम सिद्ध कर चुके हैं।यह सत्य है कि लक्ष्मण जी,जांबवान,हनुमान आदि वीर योद्धा नहीं मारे गये परंतु कई वानर सैनिक वीरगति को प्राप्त हुये।जब आर्य-राक्षस में युद्ध होगा तो दोनों ही पक्ष के सैनिक मारे जायेंगे या नहीं? राम-रावण युद्ध ” परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृतां” था। अर्थात् अधर्म पर धर्म की विजय का युद्ध था। धर्म-अधर्म के युद्ध में धर्म को जीतना ही था।
यहां फिर प्रांतवाद का खेल खेला। आर्य,देवता या ब्राह्मण केवल उत्तर भारत के ही नहीं होते बल्कि सर्वत्र हो सकते हैं, क्यों कि ये गुणवाचक संज्ञायें हैं कोई जातिगत नाम नहीं। यही नहीं, रावण तक को उसका पुत्र प्रहस्त “आर्य” कहकर संबोधित करता है। अतः पेरियार साहब की यह बात निर्मूल है।
रहा प्रश्न शंबूक वध का तो यह प्रक्षिप्त उत्तरकांड की कथा है । *हम डंके की चोट पर कहते हैं उत्तर कांड पूरा का पूरा प्रक्षिप्त है तथा महर्षि वाल्मीकि की रचना नहीं है।हम इस कथन को सिद्ध भी कर सकते हैं।*
” राक्षस कहे जाने वाले तमिलनाडु के मनुष्य थे”- यह सत्य नहीं है।लंका कहां और तमिल नाडु कहां? रावण की लंका सागर के उस पार थी और तमिल नाडु भारत का अंग है।तो तमिल वासी राक्षस कैसे हुये? राक्षस आतंककारी, समाज विघातक,दुष्टों को कहते हैं। रावण की लंका के वासी ऐसे ही कर्मों के पोषक होने से राक्षस ही थे। ISIS जैसे आतंकी संगछन,माओवादी,नक्सली सब मानवता विरोधी हत्यारे हैं।इनको मारना मानव मात्र का कर्तव्य है।तब श्रीराम का राक्षसों का संहार गलत क्यों?
स्पष्ट है कि लेखक आर्य-द्रविड़ की राजनीति खेलकर अपना मतलब साधना चाहते हैं। उनकी इसी विचारधारा को पेरियारभक्त आगे बढ़ा रहे हैं।
: *प्रश्न:-४ रावण राम की स्त्री सीता को हर ले गया- क्योंकि राम के द्वारा उसकी बहन सूर्पनखा के अंग-भंग किये गये व रूप बिगाड़ा गया। रावण के इस कृत्य के कारण पूरी लंका क्यों जलाई जाये? लंका निवासी क्यों मारे जायें?इस कथा उद्देश्य केवल दक्षिण की तरफ प्रस्थान करना है। तमिलनाडु में किसी सीमा तक सम्मान से इस कथा का विष-वमन अर्थात् प्रचार यहां के लोगों के लिये अत्यंत पीड़ोत्पादक है।*
*समीक्षा*:-
रावण सीता को हरकर ले गया,ये कदापि न्यायसंगत नहीं था।भला छल से किसी के पति और देवर को दूर करवाकर तथा कपटी संन्यासी का वेश धरकर एक अकेली पतिव्रता स्त्री का हरण करना कौन सी वीरता है? यदि रावण सचमुच इतना शूरवीर था तो राम-लक्ष्मण को हराकर सीताजी को क्यों नहीं ले गया?अंग-भंग किये लक्ष्मण जी ने श्रीराम के आदेश पर और बदला लिया एक पतिव्रता निर्दोष स्त्री से!
 और शूर्पणखा का अंग-भंग करना भी उचित था,क्योंकि एक तो कुरूप,भयावह,कर्कशा,अयोग्य होकर भी न केवल शूर्पणखा ने श्रीरामचंद्र पर डोरे डाले,प्रणय निवेदन किया,बल्कि माँ सीता पर जानलेवा हमला भी किया।ये दोनों कृत्य  दंडनीय अपराध हैं जिनका दंड शास्त्रों में प्रतिपादित है।इस विषय पर आगे विस्तार से लिखा जायेगा।परंतु शूर्पणखा और रावण के कृत्य कदापि न्यायसंगत नहीं कहे जा सकते।
 रहा प्रश्न लंका को जलाने का तो इस पर भी आगे प्रकाश डाला जायेगा।फिलहाल यह जानना चाहिये कि हनुमान जी ने अधर्मी राक्षसों को संतप्त करने के लिये लंका का ‘दुर्ग’ नष्ट किया था,पूरी लंका नहीं।उसी को अतिशयोक्ति में कह दिया गया कि पूरी लंका जल गई।इसे ऐसे जानिये,जैसे कह दिया जाता है कि ‘पूरा काश्मीर आतंकी हमलों से जल रहा है’ यहां कश्मीर का जलना आलंकारिक है।जलने का तात्पर्य आतंकित होना,त्रस्त होना इत्यादि है।देखिये:-
*वनं तावत्प्रमथितं प्रकृष्टा राक्षसा हताः।*
*बलैकदेशः क्षपितः शेषं दुर्गविनाशिनम्।।२।।*
*दुर्गे विनाशिते कर्म भवेत्सुखपरिश्रम।।* ( सुंदरकांड सर्ग ३५ )-स्वामी जगदीश्वरानंद टीका।
अर्थात्:-*(हनुमान जी विचारकर रहे हैं)’मैंने रावण के प्रमदावन=अशोकवाटिका का विध्वंस कर दिया।चुने हुये पराक्रमी राक्षसों को मार दिया।अब तो केवल दुर्ग का नाश करना शेष है।दुर्ग के नष्ट होते ही मेरा परिश्रम सार्थक हो जायेगा।
 “तमिलनाडु में इस कथा का प्रचार विष वमन,निंद्य तथा पीड़ोत्पादक है”-यह कहना दुबारा आर्य-द्रविड़ का खेल खेलना दर्शाता है।क्योंकि *रामायण धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य के संग्राम की कथा है*- रामायण का पढ़ना-पढ़ाना केवल असत्य,अधर्म के पक्षियों के लिये ही पीड़ोत्पादक हो सकता है नाकि आम जनता के लिये।आम जनता में रामायण के प्रचार-प्रसार से धर्य,नैतिकता,स्वाभिमान,राष्ट्रीयता आदि गुणों का ही प्रचार होगा।रामायण किसी देश विशेष की निंदा नहीं अपितु अधर्म का प्रतिकार सिखाती है।इस राजनीतिक हथकंडों द्वारा आप केवल अपने अंधभक्तों को फंसा सकते हैं,जनता-जनार्दन को नहीं।अस्तु।
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद ।कृपया पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि श्रीराम तथा आर्य संस्कृति के बारे में फैले दुष्प्रचार का निराकरण हो। अगले लेख में भूमिका पर  अंतिम समीक्षा तथा ” कथास्रोत”नामक लेख का उत्तर दिया जायेगा। पेरियार साहब ने पुस्तक में दशरथ,राम,सीता आदि शीर्षक देकर आलोचना की है तथा ललई सिंह यादव,जिन्होंने हाईकोर्ट में सच्ची रामायण का केस लड़ा और दुर्भाग्य से जीता,ने “सच्ची रामायण की चाबी” नाम से पेरियार की पुस्तक का शब्द प्रमाण दिया है।ये दोनों पुस्तकें सच्ची रामायण तथा इसकी ‘चाबी’ हमारे पास पीडीएफ रूप में उपलब्ध है।हम दोनों का खंडन साथ ही में करेंगे।ईश्वर हमें इस काम को आगे बढ़ाने की शक्ति दे।
धन्यवाद
 मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी की की जय।।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र जी की जय
नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा