आजादी ये आजादी हमारी आजादी
शहीदों के खून से लिखी किताब थी,
नेताजी ने रक्तिम कलम से लिखा,
भगत ने चाकू औरबम से लिखा,
सावरकर ने कोल्हुओं पर श्रम से लिखा,
ढींगरा ने वायली पर गन से लिखा,
लिखते-लिखते कितने महान् हो गए,
लिखने वाले खुद दास्तान हो गए,
बड़ी मेहनत से सजाई भारती,
आजादी ये आजादी………….।
भाई, बहन, परिवार वाले वे भी थे,
किसी के नयन के उजाले वे भी थे,
राष्ट्रहित स्वयं ही बलिदान हो गए,
लहों में सदियाँ तमाम हो गए,
आजादी की ज्वाला को प्रचण्ड कर दिया,
अभिमानी का दर्प खण्ड-खण्ड कर दिया,
है यह सच्चाई किन्तु लगे वाब सी,
आजादी ये आजादी……………….।
आजादी को मैंने भूतकाल क्यों लिखा,
बार-बार कोंधता सवाल क्यों लिखा,
आजादी बची ही कहाँ आज देश में,
लूट, घूसखोरी बैठे इसके वेश में,
भारतवासी अपना ओज भूल गये हैं,
कायर बनकर अपना तेज भूल गए हैं,
किन्नरों की मण्डी बनी सिंहो की सभा,
आजादी ये आजादी…………..।
बहुत सब्र किया अब न और सहेंगे,
ये न सोचो भारतवासी कुछ न कहेंगे,
सिंहनाद होगा, अब गाण्डीव बजेगा,
भीषण निनाद से अब देश जगेगा,
मानव, माँ भारती का भक्त बनेगा,
सिंहो के मुख पर रक्त लगेगा,
शत्रुओं के मुण्ड से सजेगी भारती,
आजादी ये आजादी हमारी आजादी,
शहीदों के खून से लिखी किताब थी।
– चौरासी घण्टा, मुरादाबाद