पढ़े वेद अरु पढ़ावें – सतीश गुप्ता ‘‘द्रवित’’

जान लिया शिव तत्व को, लिया नाम ओंकार।

देख ऋषि दयानन्द ने, बदला जीवन सार।।

हो वेदों सा आचरण, तभी बचेगी लाज।

जग का दरपन वेद हैं, दर्शन आर्य समाज।।

नित्य हवन पूजन करें, होय प्रदूषण अन्त।

बने शुद्ध वातावरण, आये नवल बसन्त।।

जो वेदों से विमुख हैं, कुछ मर्यादाहीन।

लक्ष्य मिले किस विधि यहाँ, सब हैं तेरह-तीन।।

राह वेद की छोड़कर, मतकर खोटे कर्म।

ओ3म् रूप में निहित है, भाग्योदय का मर्म।।

गूजें संस्कृति सुखद स्वर, अखिल विश्व तम तोम।

वेदों के अनुसार ही, नित्य करें सब होम।।

पढ़ें वेद अरु पढ़ावें, मानव बने प्रबुद्ध।

तज दे वो पाखंडता, करे हृदय को शुद्ध।।

लोभ, मोह, अभिमान से, मत कर जीवन नष्ट।

बिना वेद कमाया धन, देता निश्चित कष्ट।।

मानवता मन में बसे, कर से करें सुकर्म।

वाणी समता मय रहे, आर्य मनुज का धर्म।।

धर्म, कर्म अरु ज्ञान से, बदलेगा परिवेश।

‘‘द्रवित’’ धर्म रत ही रहो, वेदों का उपदेश।।

– निर्मल कुंज, 103, सिकलापुर, बरेली, उ.प्र. 243001

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