Category Archives: भजन

उम्र से लड़ती आधुनिकायें – डॉ. रामवीर

उम्र से लड़ती आधुनिकायें

तरह-तरह से आयु छिपायें,

कभी-कभी इन की चेष्टायें

अति उपहास्यास्पद हो जायें।

 

मुझे बताया गया पड़ोसन

बेटे संग न बाहर जाये,

माँ बेटे को साथ देखवय,

का न कहीं अनुमान हो जाये।

 

यदि हो जाना बहुत जरूरी

पुत्र को देती हिदायत पूरी,

देखो पल्लू पकड़ न चलना,

रखना दस मीटर की दूरी।

 

एक बार सरकारी काम से

मैंने जन्मतिथि पुछवाई,

तो तारीख बताई केवल

वर्ष की संया नहीं बताई।

 

वर्ष जानने के आग्रह पर

बोली कुछ गुस्से में आ कर,

फॉर्म में कॉलम जन्मतिथि है,

जन्म वर्ष नहीं छपा वहाँ पर।

 

बिना वर्ष के कैसे जानूँ

आप हैं बालिग या नाबालिग?

तो बोली ‘मैं कुछ कामों में

बालिग हूँ कुछ में नाबालिग’।

 

उसने आयु छिपाई मानो,

देह अन्य है, प्राण अन्य हैं।

आखिर पिण्ड छुड़ाया उससे

कह कर ‘मैडम आप धन्य हैं’।

– 86, सैक्टर-46, फरीदाबाद,

हरियाणा-121003

ध्यान से मिलता है भगवान -वाशी पुरसवानी

भूख से तड़प रहा इन्सान,

तू पूजे पत्थर का भगवान।

गरीबों में बसता है ईश,

अरे, तू क्यों होता हैरान?

 

लुटाकर लाखों रुपये व्यर्थ,

बनाया मन्दिर एक विशाल।

न दीनों का है कोई याल,

बन गए वे सारे कंगाल।

नहीं पत्थर में है भगवान,

अरे, वह खुद ही है इन्सान।

 

खा रहा लोभी ब्राह्मण खूब,

नहीं छोड़े मुर्दे का माल।

गपोड़ों के बल पर ही आज

बन गया देखो मालामाल।

बाँचता रहता रोज पुराण,

कथाओं की है जिसमें खान।

 

वेद है सत्य, ओम् है ब्रहम,

ज्ञान की गंगा निर्मल धार।

खोल पट अन्दर के ऐ मूर्ख!

चढ़ेगा तुझ पर तभी खुमार।

मंत्र ऋषि दयानन्द का जान,

ध्यान से मिलता है भगवान।

मलेशिया

नहीं बचेगा अत्याचारी – पं. नन्दलाल निर्भय भजनोपदेशक

सन्तों के लक्षण सुनों, आज लगाकर ध्यान।
ईश भक्त, धर्मात्मा, वेदों के विद्वान्।।
वेदों के विद्वान्, सदाचारी, गृहत्यागी।
धैर्यवान्,विनम्र,परोपकारी, वैरागी।।
सादा जीवन उच्च-विचारों के जो स्वामी।
वेदों का उपदेश करें, वे सन्त हैं नामी।।
जगत् गुरु दयानन्द थे, ईश्वर भक्त महान्।
दयासिन्धु धर्मात्मा, थे वैदिक विद्वान्।।
थे वैदिक विद्वान्, ब्रह्मचारी, तपधारी।
दुखियों के हमदर्द, सदाचारी, उपकारी।।
किया घोर विषपान, भयंकर कष्ट उठाया।
किया वेद प्रचार, सकल संसार जगाया।।
दयानन्द ऋषिराज का, जग पर है अहसान।
दोष लगाता था उन्हें, रामपाल शैतान।।
रामपाल शैतान, स्वयं बनता था ईश्वर।
करता था उत्पात, रात-दिन कामी पामर।।
बरवाला में किलानुमा, आश्रम बनाया।
उस पापी ने बड़ा-जुल्म प्रजा पर ढाया।।
उसके कुकर्म देखकर, जागे आर्य कुमार।
पोल खोल दी दुष्ट की, किया वेद प्रचार।।
किया वेद प्रचार, नहीं योद्धा दहलाए।
आचार्य बलदेव-तपस्वी आगे आए।।
किया गजब का काम, चलाया फिर आन्दोलन।
बन्द करो पाखण्ड दहाड़े मिल आर्य जन।
‘‘नन्दलाल’’ कह, नहीं बचेगा अत्याचारी।।
– ग्राम पत्रालय बहीन, जनपद पलवल (हरियाणा)

वह विछोना वही ओढ़ना है- – पं. संजीव आर्य

आओ साथी बनाएँ भगवान को।
वही दूर करेगा अज्ञान को।।
कोई उसके समान नहीं है
और उससे महान नहीं है
सुख देता वो हर इंसान को।।
वह बिछोना वही ओढ़ना है
उसका आँचल नहीं छोड़ना है
ध्यान सबका है करुणा निधान को।।
दूर मंजिल कठिन रास्ते हैं
कोई साथी हो सब चाहते हैं
चुनें उससे महाबलवान को।।
सत्य श्री से सुसज्जित करेगा
सारे जग में प्रतिष्ठित करेगा
बस करते रहें गुणगान को।।
रूप ईश्वर के हम गीत गाए
दुर्व्यसन दुःख दुर्गुण मिटाएँ
तभी पाएँगे सुख की खान को।।
– गुधनीं, बदायुँ, उ.प्र.

आर्यों को उद्बोधन क्या शौर्य दिखला सकते हो? – प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु

(१)

बिगड़ी बात बना सकते हो,

पाप की लङ्क जला सकते हो।

पदलोलुपता तज दो जो तुम,

झगड़े सभी मिटा सकते हो।।

लेखराम का पथ अपना कर,

लुटता देश बचा सकते हो।।

काज अधूरा दयानन्द का,

पूरा कर दिखला सकते हो।।

तुम चाहो तो आर्य वीरों,

दुर्दिन दूर भगा सकते हो।।

इसी डगर पर चलते-चलते,

मुर्दा कौम जिला सकते हो।।

(२)

मिशन ऋषि का पूछ रहा क्या,

जीवन भेंट चढ़ा सकते हो?

तुम सुधरोगे जग सुधरेगा,

जो कुछ बचा, बचा सकते हो।।

विजय मिलेगी लेखराम सी,

धूनी अगर रमा सकते हो।।

वही पुरातन मस्ती लाकर,

सत्य सनातन धर्म वेद की,

जय-जयकार गुञ्जा सकते हो।।

(३)

शोध करो कुछ निज जीवन का,

फिर तो युग पलटा सकते हो।।

दम्भ दर्प जो घूर रहा फिर,

इसकी जड़ें हिला सकते हो।।

स     ाा की गलियों में जाकर,

क्या कर्       ाव्य निभा सकते हो?

सीस तली पर धर कर ही तुम,

बस्ती नई बसा सकते हो।।

(४)

दक्षिण में जो दिखलाया था,

क्या शौर्य दिखला सकते हो?

राजपाल व श्यामलाल की,

क्या घटना दोहरा सकते हो?

लौह पुरुष के तुम वंशज हो,

भू पर शैल बिछा सकते हो।।

स्मरण करो नारायण का तुम,

तो खोया यश पा सकते हो।।

(५)

जिज्ञासु, अरमान जगाकर,

जीवन शंख बजा सकते हो।।

मन के शिव सङ्कल्पों से तुम,

जीवन दीप जला सकते हो।।

डूब रही मंझधार बीच जो,

नैय्या पार लगा सकते हो।।

मन में कुछ सद्भाव जगाकर,

फिर यह गाना गा सकते हो।।

– वेद सदन, अबोहर, पंजाब

आर्य-पथ – राजेश माहेश्वरी

हम हैं उस पथिक के समान

जिसे कर्तव्य बोध है

पर नजर नही आता है

सही रास्ता

अनेक रास्तों के बीच

हो जाता है दिग्भ्रमित।

इस भ्रम कोतोड़कर

रात्रि की कालिमा को देखकर

स्वर्णिम प्रभात की ओर

गमन करने वाला ही

पाता है सुखद अनुभूति

और सफल जीवन की संज्ञा।

हमें संकल्पित होना चाहिए कि

कितनी भी बाधाएँ आएँ

कभी नहीं होंगे

विचलित और निरुत्साहित।

जब आर्यपुत्र

मेहनत, लगन और सच्चाई से

जीवन में करता है संघर्ष

तब वह कभी नहीं होता है

पराजित।

ऐसी जीवन-शैली ही

कहलाती है जीने की कला

औरप्रतिकू ल समय में

मार्गदर्शन देकर

बन जाती है

जीवन-शिला।

१०६, नया गाँव हाउसिंग सोसाइटी,

रामपुर, जबलपुर, म.प्र.

कविता – सारे संसार का उपकार करना , सत्यदेव प्रसाद आर्य मरुत,

सारे संसार का उपकार करना

अपना भी उद्धार करना है।

शारीरिक-आत्मिक और सामाजिक

उन्नति करना ही परोपकार करना है।।

सारी सुख-सुविधा और विद्या हमारा कल्याण करती है,

छोड़ देना उन्हें तो अपने आप मरना है।।

हवा हमने सुवासित की,घरों में यज्ञ करने पर,

सुगन्धित घृत जड़ी-बूटी जलाई अग्नि जलने पर।

ऋचायें वेद की गाई हृदय में भावना भर ली।

जगत कल्याण करने की व्यवस्था सार्थक कर ली।

श्रुति की निःसृत वाणी कल्पतरु पुण्य झरना है।।

ज्यों सूरज तप्त करके जल सुखाता और उड़ाता है,

प्रकाशित कर धरा को प्रदूषण को भगाता है।

स्वयं छुप कर हमें विश्राम करने की दे छुट्टी,

अन्न फल फूल दे हम को, गरम कर देता है मुट्ठी।

हमें भी अपने जीवन में सूरज बन उभरना है।।

जगत के सारे पौधों को जो जीवन दे के सरसाता,

पनपता जल उसी में जा, करे पोषण बदल जाता।

मिर्च का स्वाद तीता आम है मीठा और चरपरी इमली,

चतुर्दिक रूप अपना तज कड़क कर बन रही बिजली।

डुबा डुबकी लगा कर जो, उबर कर तैर तरना है।।

– आर्य समाज, नेमदार गंज, नवादा- बिहार।

सारे संसार का उपकार करना- – सत्यदेव प्रसाद आर्य मरुत,

कविता

– सत्यदेव प्रसाद आर्य मरुत,

सारे संसार का उपकार करना

अपना भी उद्धार करना है।

शारीरिक-आत्मिक और सामाजिक

उन्नति करना ही परोपकार करना है।।

सारी सुख-सुविधा और विद्या हमारा कल्याण करती है,

छोड़ देना उन्हें तो अपने आप मरना है।।

हवा हमने सुवासित की,घरों में यज्ञ करने पर,

सुगन्धित घृत जड़ी-बूटी जलाई अग्नि जलने पर।

ऋचायें वेद की गाई हृदय में भावना भर ली।

जगत कल्याण करने की व्यवस्था सार्थक कर ली।

श्रुति की निःसृत वाणी कल्पतरु पुण्य झरना है।।

ज्यों सूरज तप्त करके जल सुखाता और उड़ाता है,

प्रकाशित कर धरा को प्रदूषण को भगाता है।

स्वयं छुप कर हमें विश्राम करने की दे छुट्टी,

अन्न फल फूल दे हम को, गरम कर देता है मुट्ठी।

हमें भी अपने जीवन में सूरज बन उभरना है।।

जगत के सारे पौधों को जो जीवन दे के सरसाता,

पनपता जल उसी में जा, करे पोषण बदल जाता।

मिर्च का स्वाद तीता आम है मीठा और चरपरी इमली,

चतुर्दिक रूप अपना तज कड़क कर बन रही बिजली।

डुबा डुबकी लगा कर जो, उबर कर तैर तरना है।।

– आर्य समाज, नेमदार गंज, नवादा- बिहार।

भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे | रचयिता पं.स्त्यपाल पथिक

 

 

 

 

Lekhram

भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे |

वैदिक धर्म की खातिर मिटना इन्हें सिखा दे ||

फिर राम कृष्ण निकलें घर-घर गली-गली से |

अर्जुन व कर्ण जैसे योद्धा रणस्थली से ||

भीष्म से ब्रह्मचारी और भीम महाबली से |

गौतम कणाद जैमिनी ऋषिवर पतंजलि से ||

फिर से कोई दयानंद जैसा ऋषि दिखा दे |

भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे ||

ऐसे हों लाल पैदा खेलें जो गोलियों से |

भूमि को तृप्त करदें श्रद्धा की झोलियों से ||

गूंजे यह देश मेरा शेरो की बोलियों से |

बिस्मिल गुरु भगत सिंह वीरों की टोलियों से ||

इन को वतन की खातिर फांसी पे भी हँसा दे |

भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे ||

कोई लेखराम जैसा गुरुदत्त सा आज होवे |

कोई श्रद्धानन्द होवे कोई हंसराज होवे ||

बढती बीमारियों का फिर से इलाज होवे |

नेतृत्व जिनका पाकर उन्नत समाज होवे ||

बेधड़क लाजपत सा फिर से पथिक बना दे |

भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे ||

वैदिक धर्म की खातिर मिटना इन्हें सिखा दे ||

भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे |

.2:0.0.0.0.0″>Namste Dr. Sa

प्रार्थना : सचिन शर्मा

Krishan

ओ३म् सर्वव्यापी समर्थ तुम्हें कोटिशः प्रणाम सम्पूर्ण क्रियाओ के कर्ता-कारण-कार्य तुम्ही हो वृहद सृष्टि के धार्य-व्याप्य- परिहार्य तुम्ही हो सर्वसौख्य-सम्पन्न-सृष्टि के सृष्टा अभियंता सदजन को अंतिम-अविरल स्वीकार्य तुम्ही हो निर्विशेष-नवनित्य- निरंजन – पुरुष पुरातन नित्य असंख्य नेत्रो वाले तुम्हें कोटिशः प्रणाम हे अनादि-अविनाशी आदि और अंत रहित हो अंतर्यामी-अव्यय-अमित-अतुल-अपरिमित हो सर्वशक्तिसम्पन्न-सौख्यप्रद-सुधर्म-संस्थापक वायु-वरुण-आदित्य विविध नामो से मंडित हो दुर्निरीक्ष – दुसाध्य – दुर्गम अज-मुक्तिप्रदाता सर्वत्र-समान-सर्वव्यापी हे तुम्हें कोटिश: प्रणाम ऋग-यजु-अर्थव-साम शास्त्र सब तुमको गाते स्तुति-स्रोत-भजन-यज्यादि से तुम्हें मनाते निराकार हे निर्विकार आप बिन जग निर्वश है अनघ सृष्टि-ग्रह-दिवस निशा आपके ही वश है पावन-परमानन्द-सत्यचित हे परमात्मन तज आपको अन्य की पूजा विष है व्यर्थ है अश्रुपुरित नेत्रो संग तुम्हें कोटिशः प्रणाम आप अभेद-अखंड-अभय-अक्लेद्य अकलुष हो अकथनीय -आनंदपूर्ण- अज- आदिपुरुष हो तेजरूप-तमनाशक, सत्य-प्रकाशक वेद-प्रणेता कृपा करो ,हम करे वही तुम जिससे खुश हो आर्यों के सर्वस्व परमाश्रय-परमधाम हे जीवन के हर पल हर क्षण मे तुम्हें कोटिशः प्रणाम ………..