आज देश में मन्नत माँगने व मन्नतों को पूरा करवाने का बहुत अच्छा धन्धा चल रहा है I पढ़े लिखे लोग भी अंधविश्वासों की दलदल में फंसकर नदी सरोवर के स्नान पेड़ पूजा कबर पूजा कुत्ते बिल्ली के आगे पीछे घूमकर अपनी मनोकामनाएँ पूरी करवाने के लिए धक्के खा रहे हैं I जो सैकड़ों वर्ष पूर्व कबरों में दबाये गए उनको अल्लाह मियाँ ने मनुष्यों के दुःख निवारण करने का मुख्तार बना दिया है I मनुष्यों की इस दुर्बलता का शिकार आर्य समाजी भी हो रहे हैं I ऐसे अटार्नी जनरल आर्यसमाज में मनोकामनायें पूरी करवाने के नए नए जाल फैला रहे हैं I कुछ सज्जनों का प्रश्न है की किसी से कोई यज्ञ अनुष्ठान करवाने से मन्नत पूरी हो … Continue reading सर्व मनोकामना पूर्ण यज्ञ : एक अवैदिक कृत्य : प्रो राजेन्द्र जिज्ञासु→
K: When God is formless how to meditate on Him? V: Meditation is of two kinds. One is about worldly things and living beings and other one is about God who is beyond senses and All-controlling. We meditate about worldly things when we see them or get parted from them. For ex, I saw a woman in Calcutta. We became friendly. Next, I saw her in Bombay after five years. Immediately I remember her as the woman I met at Calcutta. Secondly, when we part ourselves. For ex, my friend left for tour. Frequently, I would remember where she could be now? When we are together the question of meditation does not arise. Because how could we meditate when she … Continue reading Vedas For Beginners 5 : Is Idol worship justified?→
K: Sister! Please give reply to yesterday’s question V: Your question was what was wrong in assuming God had a form? Okay. There are many faults that are involved in treating God as having a form. Firstly, God is known as Sachitananda. This has three words.viz, “Sat” “Chit” and “Anand”. The term “Sat” means being present uniformly at all times, present, past and future. In the other words, that which does not undergo change is called as “Sat”. That which is Knowledge is known as “Chit” The term “Anand” indicates free from sorrow at all times which is known as Bliss. God is called Satchitananda because He is changeless, His knowledge is never destroyed, and who never experiences any … Continue reading Vedas For Beginners – 4 : WHY GOD HAS NO FORM?→
പത്തൊമ്പതാം നൂറ്റാണ്ടിലെ ഭാരതത്തിന്റെ സാമൂഹ്യ- ആധ്യാത്മിക – രാഷ്ട്രീയ പരിതസ്ഥിതികള് ചരിത്രത്തിന്റെ താളുകളില് നിന്ന് വായിച്ചെടുക്കുക. അവിദ്യയുടെയും അനാചാരങ്ങളുടെയും കാര്മേഘങ്ങള് വേദ സൂര്യനെ മറച്ചു കൊണ്ടിരിക്കുന്നു.ഭാരതീയ സംസ്കാരത്തേയും പൈതൃകത്തെയും തകിടം മരിക്കുന്നതിന് മെക്കോളെ പ്രഭുവിന്റെ ഇംഗ്ലീഷ് വിദ്യാഭ്യാസ പദ്ധതി തകൃതിയായി നടക്കുന്നു. വൈദിക ധര്മ്മം അനാചാരങ്ങളില് അകപ്പെട്ട് നാശോന്മുഖ മായികൊണ്ടിരിക്കുന്നു. വിദേശ യാത്ര നടത്തിയാല് ധര്മ്മ ഭ്രഷ്ടനായി! താഴ്ന്ന ജാതിക്കരെന്നു പറയപ്പെടുന്നവരെ തോട്ടുപോയാല് ധര്മ്മ ഭ്രാഷ്ടന്! മുസ്ലീംകളില് നിന്നും ഭക്ഷണം സ്വീകരിച്ചാല് അയാള്ക്ക് ഹിന്ദു ധര്മ്മത്തില് സ്ഥാനമില്ല.ധാര്മ്മിക കേന്ദ്രങ്ങളിലും മറ്റും കപട ബ്രാഹ്മണരുടെ ക്രൂര കേളികള്! ഹിന്ദുക്കള് എന്നുപറയുന്നവര് ഏതാനും അന്ധവിശ്വാസങ്ങളില് പെട്ട് അലയുന്നു. നമ്മുടെ അടിസ്ഥാന ധര്മ്മ ഗ്രന്ഥമായ 4 വേദങ്ങളുടെ പേരുകള് പോലും പലര്ക്കും അറിയില്ല. ബഹുദൈവതാരാധനയും വിഗ്രഹാരാധനയും മൃഗബലിയും ഈശ്വരാവതാരവാദവും, ജീവിക്കുന്നവരെ അവഗണിച്ചുകൊണ്ട് മരിച്ചവര്ക്കായി നടത്തുന്ന ശ്രാദ്ധം പോലുള്ള ചടങ്ങുകള് നടത്തിച്ച് സാധാരണക്കാരെ പീഡിപ്പിക്കുന്ന ഒരുകൂട്ടം പേരുടെ കൈപ്പിടിയില് മാത്രമായിരുന്നു വേദങ്ങള്. അത് സ്ത്രീകള്ക്കും മറ്റു താഴ്ന്ന ജാതിക്കാര്ക്കും അപ്രാപ്യവുമായിരുന്നു. നമ്മുടെ മഹാപുരുഷന്മാരായിരുന്ന ശ്രീരാമനെയും ശ്രീകൃഷ്ണനെയും വികൃതമാക്കി ചിത്രീകരിച്ച് വ്യാസന്റെ പേരില് പടച്ചുവിട്ട വ്യാജ പുരാണങ്ങളുടെയും താന്ത്രികന്മാരുടെയും അഴിഞ്ഞാട്ടമായിരുന്നു എങ്ങും. ബാലവിധവകളുടെ ദീനരോദനങ്ങള്! അനാഥരായ കുട്ടികളുടെ … Continue reading എന്തുകൊണ്ട് ആര്യസമാജം? WHY ARYA SAMAJ?→
ओ३म् ‘महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द और गुरूकुल प्रणाली’ महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) आर्य समाज के संस्थापक हैं। आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल, 1875 को मुम्बई के काकडवाड़ी स्थान पर हुई थी। इसी स्थान पर संसार का सबसे पुराना आर्य समाज आज भी स्थित है। आर्य समाज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य वेदों का प्रचार व प्रसार था तथा साथ ही वेद पर आधारित धार्मिक तथा सामाजिक क्रान्ति करना भी था जिसमें आर्य समाज आंशिक रूप से सफल हुआ है। चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सभी सत्य विद्याओं के ग्रन्थ हैं। यह वेद सृष्टि के आरम्भ में सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, सृष्टिकर्ता, सर्वान्तर्यामी परमेश्वर से अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न प्रथम चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को उनके … Continue reading ‘महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द और गुरूकुल प्रणाली’-मनमोहन कुमार आर्य→
ओ३म् ‘मर्यादा पुरूषोत्तम एवं योगेश्वर दयानन्द’ महर्षि दयानन्द को 13, 15 और 17 वर्ष की आयु में घटी शिवरात्रि व्रत, बहिन की मृत्यु और उसके बाद चाचा की मृत्यु से वैराग्य उत्पन्न हुआ था। 22 वर्ष की अवस्था तक वह गुजरात प्राप्त के मोरवी नगर के टंकारा नामक ग्राम में स्थित घर पर रहे और मृत्यु पर विजय पाने की ओषधि खोजते रहे। जब परिवार ने उनकी भावना को जाना तो विवाह करने के लिए उन्हें विवश किया। विवाह की सभी तैयारियां पूर्ण हो गई और इसकी तिथि निकट आ गई। जब कोई और विकल्प नहीं बचा तो आपने गृह त्याग कर दिया और सत्य ज्ञान की खोज में घर से निकल पड़े। आपने देश भर का भ्रमण कर … Continue reading ‘मर्यादा पुरूषोत्तम एवं योगेश्वर दयानन्द’-मनमोहन कुमार आर्य→
डा अम्बेडकर ने शंकराचार्य की आलोचना करते हुए उनके लेखन में परस्पर विरोधी कथन माने है | उन्होंने उन परस्पर विरोधो के आधार पर शंकराचार्य के कथनों को अप्रमाणिक कहकर अमान्य घोषित किया है और यह कटु टिप्पणी की कि जिसके लेखन में परस्पर विरोधी कथन पाए जाए उसे पागल ही कहा जाएगा |(अम्बेडकर वा. खंड ८,पृष्ठ २८९ ) अब देखिये अम्बेडकर जी के लिखे लेखो में कितना परस्पर विरोध है – (*१) क्या मह्रिषी मनु जन्मजा जाति के जनक थे ? इस सम्बन्ध में अम्बेडकर के तीन प्रकार के परस्पर विरोधी कथन है – (अ) मनु ने जाति का विधान नही बनाया अत: वह जाति का जनक नही – (क) ” एक बात मै आप लोगो को बताना चाहता … Continue reading डा अम्बेडकर के लेखन में परस्पर विरोध→