वैदिक साहित्ष्किो के मार्ग मे इस प्रकार की सहस्त्रो अडचने है जिनका अधिक उल्लेख यहाॅ नही करना
मनु नाम की महता चाहिए । परन्तु इसमे भी सन्देह नही कि कोई न कोई विद्वान मनु हो गये है जिनहोने आचार (Moral Laws) और व्यवहार (Juris-prudence) के सम्बन्ध मे नियम बनाये जिनका नाम मानव धर्म शास्त्र या मनुस्मृति पड गया । मनु नाम की महता अन्य देशो के प्राचिन इतिहास से भी विदित होती है । सर विलियम जोन्स (Sir W.Jones) लिखते है:-
“We cannot but admit that Minos Mnekes or Mneuis have only Greek terminations but that the crude noun is composed of the same radical letters both in greek and Sanskrit”
अर्थात यूनानी भाषा के माइनोस आदि शब्द संस्कृत के मनु शब्द के ही विकृत रूपा है।
Leaving others to determine whether our Menus ¼or Menu in the nominative½ the son of Brahma was the same personage with minos the son of jupitar and legislator of the Cretsans ¼who also is supposed to be the same with Mneuis spoken of as the first Law giver receiving his laws from thw Egyp-tian deity Hermes and Menes the first king of the Egyptians ½ remarks :-
“ Dara Shiloha was persuaded and not without sound reason that the first Manu of the Brahmanas could be no other person than the progenitor of makind to whom jews, Christians and mussulmans unite in giving the name of adam “ ¼Quoted by B.Guru Rajah Rao in his Ancient Hindu Judicature½
बी0 गुरू राजाराउ ने अपनी पुस्तक । Ancient Hindu Judicature मे लिखा है कि यदि हम यह अनुसधान दूसरो के लिए छोड दे कि ब्रहा का पुत्र मनु वही है जिसे कोटवालों का धर्म शास्त्र रचियता माइनौस ज्यूपीटर का पुत्र कहा जाता हे (ओर जिसके विषय मे कहा जाता है कि यह वहर म्नयूयस था जिसने मिश्र देश के देवता हमीज से धर्मशास्त्र सीखा और जो मिक्ष देश के देवता हर्मीज से धर्मशास्त्र सीखा और जो मिश्र देश का पहला राजा बना) तो भी जोन्स के इस उद्धरण पर अवश्य ध्यान देना चाहिए कि दाराशिकोह का यह विचार कुछ अनुचित न था कि ब्राह्मणो का आदि मनु वही है जो मनुष्य जाति का पूर्वज समझा जाता है और जिसको यहूदि ईसाई और मुसलमान आदम के नाम से पुकारते है।
इन उद्धरणो में कहाॅ मे कहाॅ तक सचाई है इसमे भिन्न भिन्न मत हो सकते है । परन्तु क्या यह आश्चर्य की बात नही है कि प्राचीन जितने कानून बनाने वाले हुए उनके सब युगो के नाम मनु शब्द से इतना सादृश्य रखते थे । इसके हमारी समक्ष मे दो कारण हो सकते । एक तो यह कि मनु के उपदेश ही दूसरे देशो में किसी न किसी साधन द्वारा और किसी न किसी रूप में गये हो और संस्कृत नाम मनु का ही उन भाषाओ मे विकृत रूपा हो गया हो । दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि मनु का नाम कानून बनाने के लिए इतना प्रसिद्ध हो गया हो कि वह भारतवर्ष मे व्यक्तिवाचक और अन्य देशो मे जातिवाचक बन गया हो अर्थात अन्य देशीय कानून बनाने वालो ने भी अपने को इसी प्रसिद्ध नाम से सम्बोधित करने मे गोरव समक्षा हो । जैसे शेक्सपियर कहलवाना गौरव समझे । दोनो दशाओं मे मनु की प्रसिद्धि स्वीकार करनी पडती है ।