इतिहास बोलता है और बोलेगाः-
हमने ऊपर श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा के कंगाली पर दिये गये व्यायान का उल्लेख किया है। सभव है, किसी लेखक ने कहीं इसकी चर्चा की हो और हमें पता न लगा हो। डेढ़ घण्टा तक विद्वान् वक्ता ने इस विषय पर अपने विचार रखे। यह घटना दिसबर सन् 1887 के अन्तिम दिनों की है। परोपकारिणी सभा के उस उत्सव में भारत भर से दूर-दूर से आर्य भाई-समाजों के प्रतिनिधि आये थे। जहाँ-जहाँ ऋषि जी गये थे, वहाँ से तो विशेष रूप से भक्त श्रद्धालु अजमेर आये।
महर्षि जोधपुर में कई मास तक रहे। वहाँ भी कुछ तो ऋषि भक्त होंगे ही। कौन यह मानेगा कि जोधपुर के सब लोग पाषाण हृदय थे और किसी पर महर्षि का कतई प्रभाव न पड़ा? सन् 1887 के इस उत्सव का जो वृत्तान्त आर्यगजट आदि पत्रों में प्रकाशित हुआ, उससे तो यही पता चलता है कि जोधपुर से तब एक भी व्यक्ति अजमेर न पहुँचा। वह सामन्ती युग था। प्रतापसिंह के आतंक के कारण एक भी व्यक्ति अजमेर आने का साहस न कर सका। प्रतापसिंह की आत्मकथा में भी तो ऋषि के जोधपुर आगमन पर कोई छोटा-सा अध्याय नहीं। इतिहास बोल रहा है और बोलेगा। हम क्या कहें? क्या करें?
-वेद सदन अबोहर-152116