Category Archives: वेद विशेष

वेदों में प्रातः भ्रमण

morning walk

Morning Walk  in Veda 

14.2

स्योनाद्‌ योनेरधि बुध्यमानौ हसामुदौ महसा मोदमानौ ।

सुगू सुपुत्रौ सुगृहौ तराथो जीवावुषसो विभाती: ॥ AV 14.2.43

सुखप्रद शय्या से उठते हुए, आनंद चित्त से प्रेम मय हर्ष  मनाते हुए, सुंदर आचरण से युक्त, श्रेष्ठ पुत्रादि संतान,  उत्तम गौ,  सुख सामग्री से युक्त घर में निवास करते हुए सुंदर प्रकाश युक्त प्रभात वेला का दीर्घायु के लिए सेवन करो.

प्रात: भ्रमण के लाभ

नवं वसान: सुरभि: सुवासा उदागां जीव उषसो विभाती:  ।

आण्डात्‌ पतत्रीवामुक्षि विश्वस्मादेनसस्परि ॥ AV14.2.44

स्वच्छ नये जैसे आवास और परिधान कपड़े आदि के साथ स्वच्छ वायु में सांस लेने वाला मैं आलस्य जैसी बुरी आदतों से छुट कर, विशेष रूप से सुंदर लगने वाली  प्रात: उषा काल में उठ कर  अपने घर से निकल कर घूमने चल पड़ता हूं जैसे एक पक्षी अपने अण्डे में से निकल कर चल पड़ता है.

प्रात: भ्रमण के लाभ

शुम्भनी द्यावा पृथिवी अ न्तिसुम्ने महिव्रते ।

आप: सप्त सुस्रुवुदेवीस्ता नो मुञ्चन्त्वंहस: ॥  AV14.2.45

सुंदर प्रकृति ने मनुष्य को सुख देने का एक महाव्रत ले रखा है. उन जनों को जो जीवन में  प्राकृतिक वातावरण के समीप रहते हैं सुख देने के लिए मानव शरीर में  प्रवाहित  होने वाले सात दैवीय जल तत्व हमारे दु:ख रूपि रोगों से छुड़ाते हैं .

Elements of Nature have avowed to make life comfortable and healthy for the species. Particularly the seven fluids that move around the human anatomy are specifically helped by Nature. Modern science confirms that presence of naturally created ‘Schumann’ electromagnetic field and  negative ions  generated by Nature play very significant roles in maintaining  good physical and mental health of human beings.

(प्रात: कालीन उषा प्रकृति के सेवन द्वारा सुख देने वाले वे मानव शरीर के सात जल तत्व अथर्व वेद के निम्न मंत्र में बताए गए हैं .

( को आस्मिन्नापो व्यदधाद्‌ विषूवृत: सिन्धुसृत्याय जाता:।

तीव्रा अरुणा लोहिनीस्ताम्रधूम्रा ऊर्ध्वा  अवांची: पुरुषे तिरश्ची: ॥ AV 10.2.11

(भावार्थ)  परमेश्वर ने मनुष्य में रस रक्तादि के रूप में (सप्तसिंधुओं) सात भिन्न  भिन्न जलों को मानवशरीर में  स्थापित किया है. वे अलग अलग प्रवाहित होते हैं . अतिशय रूप से – अलग अलग नदियों की तरह बहने के लिए उन का निर्माण  गहरे  लाल रंग के, ताम्बे के रंग के, धुएं  के रंग इत्यादि के ये जल (रक्तादि) शरीर में ऊपर नीचे और तिरछे सब ओर आते जाते हैं.

ये सात जल तत्व आधुनिक शरीर शास्त्र के अनुसार निम्न बताए जाते हैं.

1.  मस्तिष्क सुषुम्णा में प्रवाहित होने वाला रस (Cerebra –Spinal Fluid)

2.  मुख लाला (Saliva)

3.  पेट के पाचन रस (Digestive juices)

4.  क्लोम ग्रन्थि रस जो पाचन में सहायक होते हैं (Pancreatic juices)

5.  पित्त रस ( liver Bile)

6.  रक्त (Blood)

7.  (Lymph )

ये सात रस मिल कर सप्त आप:= सप्त प्राण: – 5 ज्ञानेन्द्रियों, 1 मन और 1 बुद्धि का संचालन करते हैं.)

भ्रमण में पारस्परिक नमस्कार

सूर्यायै देवेभ्यो मित्राय वरुणाय च ।

ये भूतस्य प्रचेतसस्तेभ्य इदमकरं नम: ॥ AV14.2.46

सूर्य इत्यादि प्राकृतिक देवताओं को,  सब मिलने वाले मित्रों जनों को  जो सम्पूर्ण भौतिक जगत को प्रस्तुत करते हैं हमारा नमन है. ( भारतीय संस्कृति में प्रात: काल भ्रमण में जितने लोग मिलते हैं उन सब को यथायोग्य नमन करने की परम्परा इसी वेद मंत्र पर आधारित है)

भगवा

swami dayanand saraswati 1

भगवा

हमारे भारतीय सन्यासियों के वस्त्र का रंग भगवा है|और भारत के सनातन वैदिक धर्म ध्वजा का रंग भी भगवा है पर प्रश्न है कि ये भगवा रंग कहाँ से लिया गया,  क्यूँ लिया गया,  इसकी क्या विशेषता है, इसके पिछे क्या प्रेरणा है , भारत के ऋषी मुनियों ने क्यूँ इसे चुना और ये किन बातों का प्रतीक है ?

ये भगवा रंग अग्नि से लिया गया है | अग्नि की तीन विशेषताएं हैं | वैसे तो अग्नि का गुण धर्म अर्थात स्वरुप उष्णता और प्रकाश है | पर इसमें विशेषता भी है वह बहुत खास है | १. विशेषता है अग्नि किसी भी पदार्थ के गुणों को कई गुना रूप से प्रगट करती है २.  जब इसमें कुछ जलाया जाता है तब ये दुर्गुणों को नष्ट करती है ३. ये जीवनदायिनी है सूर्य के रूप में | इसी अग्नि से ये रंग लिया गया है | जब अग्नि में शुद्ध पदार्थ हवन करते हुए डाले जाते हैं तब ये भगवा रंग प्रगट होता है | वैसे तो कचरा जला कर भी भी अग्नि प्रगट होती है पर उसका रंग भगवा नहीं होता और वह प्रदूषण भी फैलती है पर हवन करते जो अग्नि प्रगट होती है वह धुआं रहित और उसमे यह रंग निरंतर प्रगट होता है | अग्नि जिस पदार्थ को ग्रहण करती है वह कई गुना रूप में अंतरिक्ष में फ़ैला देती है अर्थात वह उसका त्याग करती है | अपने पास नहीं रखती | हवन करते हुए हम जिस पदार्थ को स्वाहा करते हैं अग्नि भी उस पदार्थ को स्वाहा कर देती है यही इसके तीसरे गुण का गहरा भाव है | यही इसका वैराग्य स्वाभाव है |

इधर ऋषीमुनी सन्यासी आदि ने भी यही तीन गुण होते हैं | अगर सन्यासी में ये तीन गुण न हों, तो वह कैसा सन्यासी ?

१. सन्यासी व्यक्तियों के दुर्गुणों को नष्ट करता है |

२. व्यक्तियों के सद्गुणों को प्रगट करता है |

३. दुःख भरे जीवन को नष्ट कर सुख रूप जीवन से दूसरों को भर देता है |

वह जो भी ग्रहण करता है वह उसका संग्रह न कर दूसरों को दे देता है, त्याग करता है। वह अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है | वह सुखों का ग्रहण कर्ता नहीं दाता है | ऐसे वैराग्य भाव को सन्यास कहते हैं | अग्नि का असर पदार्थों पर होता है और सन्यासी का असर व्यक्तियों पर अर्थात आत्माओं पर होता है | ऐसा सन्यासी अग्नि है | इसीलिए परमात्मा भी अग्नि है | अग्नि के इस रंग से ही सन्यासी के वस्त्र का रंग दिया गया है,” जो वैराग्य का प्रतीक है , त्याग का प्रतीक है और ज्ञान का प्रतीक है” |

ज्ञान अग्नि से भी अज्ञान भस्म होता है. अग्नि के और सन्यासी के इसी समानता के कारण ही सन्यासी के वस्त्र के लिए इस रंग को चुना गया है |

कभी किसी पूर्व प्रबल संस्कारों के कारण सन्यासी का विचार विचलित होने लगे राह से भटकने लगे तो यह भगवा रंग उसे जागृत कर उसे यह बताये कि यह तेरा धर्म नहीं है |

धर्म नाम है धारण करने का, धारण करने का प्रतीक है ध्वज इसीलिए ध्वज को भी वही रंग दिया गया। ध्वजा का निर्माण ही इसी लिए है कि वह जिस व्यक्ति की है, सम्प्रदाय की है,  देश की है धर्म की है उसके आतंरिक भाव को प्रगट करे | आतंरिक भावनाओं को हर किसी को समझाने की जरुरत नहीं पर यह धर्म ध्वज, गुण धारण ध्वज, यह कल्याण ध्वज, त्याग ध्वज, सुखकारक ध्वज सभी ध्वजों से ऊपर होता है | इस संसार में हजारों तरह के ध्वज हैं में नहीं जानता उनके अंतरंग भाव क्या हैं पर किसी व्यक्ति के विचार का, वैराग्य का धर्म का नीति का त्याग का भाव शायद ही ध्वज से प्रगट होता हो जो भगवा ध्वज से प्रगट होता है | आज भले ही इस भगवे की आड़ में ढोंगियों की भीड़ जमा हुई हो । पर ये भी सत्य है असल से ही नक़ल चलती है अन्यथा नकल का स्वतंत्र अस्तित्व ही कहाँ है ?

अग्नि से भगवा रंग तभी प्रगट होता है जब उसमें शुद्ध सामग्री डाली जाये ।  तभी उसमें धुंध रहित ज्वाला निकलेगी  अन्यथा कचरे से धुँआ भी बहुत निकलता है । ऐसे ही व्यक्ति के भीतर शुध्द विचारों से, कल्याणकारी विचारों से ही सन्यास प्रगट होता है। निरंतर त्याग भाव है तो वैराग्य है | वैराग्य है तो सन्यास है । जहाँ सन्यास वैराग्य है वह ह्रदय अग्नि है अर्थात भगवा है जहाँ धुँआँ नहीं ज्वालायें हें । वह तेजोमयी अग्नि भगवा है जहाँ सारे विषय भोग भस्म हो जाते हैं नष्ट हो जाते हैं अब ह्रदय “भगवा है ” | देना ही देना है |

Cows Nutrition and Food Security in Vedas

cows food

Cows Nutrition and Food Security 

RV 6.54

ऋषि: -भारद्वाजो बार्हस्पत्य: , देवता पूषा:

 

  1. सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

Oh Pushan –Lord of Nutrition- lead us to the wisdom with clarity about our nutrition.

हे पूषन देवता, हमारी  पोष्टिकता के लिये विस्तृत ज्ञान का उपदेश दो

2. समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

पूषन देवता के अनुसार गृहस्थों के लिए घरों मे गौपालन ही पौष्टिकता का अत्योत्तम साधन है.

It is the divine wisdom that a house cow is the perfect strategy for best of nutrition.

3. पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते ।नो अस्य व्यथते पवि: ॥ ऋ 6.54.3

The wheel of the chariot of nutrition by cows is never stuck in ground and comes to harm nor is there any trouble or suffering in its movement.( Cows go through a natural cycle of calving milk giving getting pregnant drying off and calving again. But no harm comes to the nutrition cycle and it does not suffer.)

गोपालन मं ग्याभन होने के कुछ समय पश्चात दूध की मात्रा कम हो सूख कर  कर पुन: संतानोत्पत्ति का चक्र क्रम पूषन व्यवस्था में कोइ व्यवधान नहीं हैं.

4. यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। ऋ 6.54.4

जो इस गोपालन यज्ञ में समर्पित भावना से गोसेवा करते हैं  उन की पौष्टिकता में कभी कमी नहीं होती और उन की समृद्धि निश्चित होती है.

Those who dedicate themselves to taking care of their cows appropriately are blessed immensely with great riches.

5. पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। ऋ 6.54.5

हमें गोपालन का उत्तम ज्ञान और सुविधाएं प्राप्त हों जिस से हमारी पौष्टिकता और बल बना रहे

We pray to have the wisdom and means to protect and nurture our cows and horses appropriately to ensure good nutrition and strengths. ..

6. पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: । अस्माकं स्तुवतामुत ।। ऋ6.54.6

यजमान की गोसेवा और स्तुति के फलस्वरूप गो दुग्ध से उत्तम शिक्षित सुंदर वाणी प्राप्त हो.

Dedicated well managed care of the cows  provides excellent  quality of milk and ensure amiable speech and temperaments.

7. माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। ऋ6.54.7

हमारी गौएं जो गोचर में स्वपोषन के लिए जाती हैं, किसी कुएं इत्यादि में गिर कर आहत न हों और सुरक्षितघर लौट आएं.

Cows as they go to pastures should be able to return safely without suffering any accidents there. (pastures should be well managed to ensure safety of the foraging cows.)
8. शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् । ईशानं राय ईमहे ।। ऋ 6.54.8

विद्वत्जनों से पौष्टिकता के बारे मे ज्ञानप्राप्त करें  जिस से निर्बलता दूर हो कर समृद्धि प्राप्त हो.

Learn the science of nutrition from experts to protect you from loss of vitality and have good life.

9. पूषन् तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्त इह स्मसि।। ऋ6.54.9

उत्तम शिक्षा द्वारा उपयुक्त आहार के नियमों का सदैव पालन कना चाहिए.

By good learning and education, in the observance of good nutritional habits one should never be lax.
10. परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् । पुनर्नो नष्टमाजतु ।। ऋ 6.54.10

जहां हम अपने दक्षता पूर्ण कर्म से पौष्टिकता के लिए उत्तम गोपालन और खाद्यान्न का प्रबंध करते हैं,वहां हमें साथ साथ जो पीछे कुछ त्रुटि  के कारण अनिष्ट हो गया हो तो उसे भी सुधारने का कार्य करें.

On one hand while we exercise all our knowledge and skills in the management and production of excellent nutritive food products, on the other hand side by side we should also rectify if any mistakes have krept in our programs.  

 

  1. मातेति गामुपस्पृश्य जपन्‌ गास्तु समश्नुते । वचोविदमिति त्वेतां जपन्‌ वाचं समश्नुते ॥ ऋग्विधान 2.187

जिन की गोपालन  द्वारा उत्तम गोवंश और गोपालने के परिणाम स्वरूप उत्तम वाणि की इच्छा  हो वे गौ माता को स्पर्ष करते हुए ‘माता रुद्राणाम, वचो विदम्‌’ से आरम्भ होने वाले ऋग्वेद सूक्त 8.101 के 15, 16 मंत्र का जप करें

He who desires good Cows & obtain gracious speech  by grace of cows should while touching the cow,  utter Rigved Sookt 8.101.15-16  beginning with ‘मातारुद्राणाम’ &  ‘वचोविदम्‌’  –  Rigvidhaan 2.187   

 

Daily Procedures & Rituals in Goshala

 cow domestication

Daily Procedures & Rituals in Goshala         

वैदिक परम्परा में मानव जीवनोपयोगी उपदेश वेदों के आधार पर गृह्यसूत्रों  में भिन्न भिन्न संस्कार  में पाए जाते हैं. गौ को परिवार में एक सम्माननीय स्थान दिया जाता था. इस लिए गोपालन से सम्बंधित विषय  भी गृह्यसूत्रों और विधान ग्रन्थों  में मिलता है. इसी के आधार पर निम्न संकलन करने का प्रयास है.   

In Vedas knowledge on all topics in general, is often found dispersed at various places. That Vedic knowledge is concisely collated and provided as Sanskars/Procedure in the Sutra literature. In this chapter the procedures connected with cows, available in Shraut Sutras & Grihya Sutras are being furnished below: गोपालन विधि गृह्य , अग्नि पुराण और कृषि पाराशर के अनुसार

1-         Goyajna / Fumigation

2.         Releasing cows for grazing in pastures.

3.         Receiving cows on return, after grazing in Pastures

4.         Putting the Nose Ring on Young Bull शूलगव: PA3.8.1 शांख्यायन श्रौत सूत्र , ऋग्वेद सूक्त 1.114

5.         Releasing the selected Bull for servicing the herd.वृषोत्सर्ग PA3.9.1

6.         After calving Procedure

7.         Tattoo Marking the newborn calf, ( with final object of breed improvements, and avoiding inbreeding)

8.         Daily washing & drying on the string used for tying the calf & legs of cow during milking,( to emphasize the importance of Hygiene to control bacteria count)

9.         Darsh Pourn Maseshthi ( Training- evaluation of an integrated cow and agriculture system)

2.1.0.1        Fumigation Formulation (Daily Twice)

         गन्धैरभ्युक्षणं गवां गन्धैरभ्युक्षणं गवाम्‌।। गो0 गृ0 सू03-6-15

Goshala should be kept clean. Twice both times morning &

evening fumigation should be carried out.

गोशाला को नित्य स्वच्छ रखते हुए, प्रात: और सायं दो बार सुगंधित सामग्री

से गो शाला मे अग्निहोत्र करना चाहिए. 

अग्निपुराण 292(33) में गोशाला के लिए उपयुक्त सामग्री का विधान इस

प्रकार से मिलता है.

2.1.0.2.           बलप्रदा विषाणां स्यादगृहे नाशाय धूपिक:।

          देवदारु, वचा, मांसी, गुग्गुल, हिञ्गु सर्षपा:। अ0 पु0 292 (33)

Fumigate with Dev Daru देवदारु – (Himalyan Cedar) Vacha वच -(Sweet Flag Acorns Calamns) Jata Mansi जटामांसी (Indian Nard). Guggluगुग्गुल  (Indian Bdellium), Hing हींग  (Asafoetida) and Mustard सरसों के बीज ( all to gather in powder form)का चूर्ण अग्नि में आहुति से   पर्यावरण के सब रोगाणुओं को नष्ट करता है. to kill all air born & other organisms to cleanse the environment.

गो यज्ञ विषय ( गौएं कहीं भी हों, घर पर  अथवा  गोचर में )

According to RigVidhaan –ऋग्विधानके अनुसार

(गौयज्ञ / गन्धैरभ्युक्षणं)

2.1.0.4.       यस्तास्तु गोर्गोमयेन गुटिकानां सहस्रश: । हुत्वातां गामवाप्नोति घृतक्तानां हुताशने ॥ ऋग्विधान 2.34

गोमय ( गोबर)की गुटकियां  कंडे बना कर गौ घृत के साथ अग्निहोत्र में सहस्रों आहुति देने से उत्तम गौएं प्राप्त होती हैं.

 

He obtains cows by offering thousands of cow dung balls anointed with ghee in to Agnihotra fire.

2.1.2.0.

समाधि मनस्तेन विन्दते नैव गुह्यति ।

मयोभूर्वात इति तु गवां स्वत्ययने जपेत्‌ ॥ ऋग्विधान 4.104

यही  विषय पर अग्नि पुराण 259.94 में भी मिलता है;

‘मयोभूर्वात इत्येद्‌गवां स्वत्ययनं परम्‌ । शाम्बरीमिन्द्रजालं वा मायामेतेन वारयेत्‌ ॥अग्निपुराण 259.94  जपस्यैष विधि : प्रोक्तो हुते ज्ञेयो विशेषत: अग्निपुराण 259.96ब

इस के अनुसार गौ के मध्य में जिन मन्त्रों के जप का विधान है, जैसे ऋग्वेद10.169 ‘मयोभूर्वात’ RV10.169 का उन से यज्ञ अग्निहोत्र ही करना चाहिए

 RV10.169

4 शबरो कक्षीवतो । गाव: । त्रिष्टुप् ।

Rishi the seer of this sookt represents a person dedicated to constant hard work to create शबरो –strength and wealth- through कक्षीवत Industriousness using innovative technologies with involvement of Cows& Agriculture . This is the literal meaning of the name given to the seer – composer -of this verse in

Rig Veda.

 Title of this verse –Sookt is  “COW”.

2.1.2.1 .मयोभूर्वातो अभि वातूस्रा ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम् ।
पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ ।। RV10.169.1

Verdant bliss causing winds may waft over the cows. Feed for the Cows should provide them body building energy and disease resistance.  Cows should be provided with such good quality of water to drink that would be recommended as best potable water for humans. The soil of earth on which cows tread should be clean and sanitised free of infection and harmful organisms.

2.1.2.2.  या: सरूपा विरूपा एकरूपा यासामग्निरिष्टया नामानि वेद ।

या अङ्गिरसस्तपसेह चक्रुस्ताभ्य: पर्जन्य महि शर्म यच्छ ।। RV10.169.2

Cows are classified as per their looks and traits. (Modern Veterinary sciences categorize them as ‘phenotypes and genotypes’) Wise men know the usefulness of different categories of various cows and utilise these specific qualities for various applications and usefulness.

Rains fed pastures provide rich and pleasing environments for cows.

2.1.2.3. या देवेषु तन्व1मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद ।
ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमाना: प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ।। RV10.169.3

Wise men are aware of the significance of cow’s milk and cow enabled food for physical body health, nutrition and disease resistance.  Wise men are aware of the intellect enhancing qualities of Cow’s milk that enables human mind to explore the entire universe in all its majesty. Our experts (Indras) should work in specialised institutions for development of cows to make available  house hold cows with excellent milk producing and prolonged calving qualities.

2.1.2.4. प्रजापतिर्महयमेता रराणो विश्वैर्देवै: पितृभि: संविदानो ।

शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम ।। RV 10.169.4

Cows provide us with the continuity to join in growth of human society by building upon the attainments of our forefathers.

Cows have such great  importance for our welfare and should be firmly established in our homes and institutions for human wellbeing.

2.1.3.0 ‘आ गावो’ इती सूक्तेन गोष्ठगा लोकमातरः । उपतिष्ठेद्‌व्रन्तीश्च य इच्छेत्ता सदाक्षयाः ।। ऋग्विधान 2.112. सदैव गौ सम्पदा की समृद्धि हेतु  ऋग्वेदके सूक्त 6.28 ‘आ गावो अग्नमुत’ का नित्य पाठ

करना चाहिए अथवा यज्ञ अग्निहोत्र करना चाहिए

Whoever wishes always to have everlasting cows the mother of the world should

worship them with Rig Ved Sookt 6.28, while they are at home in Goshala in cow

pen  or Roaming about ( in pastures). As per RigVidhan 2-112

Rig Veda Book 6 Hymn 28 same as Atharv 4.21

गौः देवता, ऋषिः भरद्वाजो बार्हस्प्तत्य

2.1.3.1.आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रत्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे|
प्रजावतीः पुरुरूपा इह सयुरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः ||

For our health, welfare let the cows of all ages sizes & progeny come and stay in our home.

मेरे गोष्ठ  में  गौएं  आगई हैं  और उन्होंने मेरा कल्याण किया है, इसी प्रकार आगे  भी चर कर वे मेरे इस गोष्ठ में  लौट आया करें. हमें सदैव  आनंदित करती हुइ इस  गोष्ठ में रहें. अनेक बछडे बछियां दे कर और भी नाना प्रकार  से हमारी  समृद्धि  के साधन बनें.

2.1.3.2 इन्द्र यज्वने गृणते च शिक्षत उपेद ददाति न स्वं मुषायति!

भूयो रयिभिदस्य वर्धयन्नभिन्ने ख्ल्ये नि ददाति देवयुम !! Prosperous cow owners, who simply share their services & knowledge in welfare of all, without withholding any portion selfishly for themselves, gradually grow in wealth & prosperity.

इस गोपालन के  यज्ञ द्वारा  वृषभ  इंद्र के स्वरूप में  अपने लिए कुछ भी ना  छुपाते हुवे (गोपालक यजमान के लिए))  अनेक  कल्याण दायक उत्पाद और शिक्षाप्रद ज्ञान  रूपि धन की बार बार वृद्धि करते हैं. (गोकृषि आधारित) उपलब्धियां कभी  क्षीण नहीं होती.

2.1.3.3 न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति | 

देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित ताभिः सचते गोपतिः सह ||ऋ6.28.3अथर्व4.21.3

Those cows whose owners give to all & share all the bounties of the cows, protect them  so they do not get hurt, get stolen or  suffer at the hands of unfriendly forces, stays with blessings of cows for all his life.

उसे (गोकृषि से उत्पन्न सम्पन्नता को) कोई चुरा नहीं सकता, धूर्तता से (आंख में धूल झोंकने वाला)  भी उस पर प्रभुत्व नहीं जमा सकता. गौओं  के स्वामी में  इतनी बुद्धि होती है कि किसी प्रलोभन के वश भी वह अपनी सम्पन्नता को छोडना नहीं चाहता.

(यह आधुनिक विकास के नाम पर व्यापारी तथा स्वार्थी वर्ग द्वारा भूमि, गौ इत्यादि का स्वामित्व पाने के लिए धन के प्रलोभन से गोकृषि के स्वामी को अपनी जीवन शैली छुडाने  के प्रसंग में  हैं)
2.1.3 4. न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्क्ऋत्रमुप यन्ति ता अभि |
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः || ऋ6.28.4, अथर्व 4.21.4

These cows are not exposed to dusty battle field like or boisterous festivity like atmosphere, but they stroll fearlessly among peaceful environments. यह (गोकृषि आजीविका की) मानसिकता संस्कार युक्त , प्रशंसनीय और निर्भयता, आत्मविश्वास से युक्त होती है. इन संस्कारों को कुटिल हृदय वाले, संकीर्ण मानसिकता वाले , स्वार्थी बुद्धि विहीन जन प्राप्त नहीं करते. यह तो गौ के समीप विचरण करने की विशेष उपलब्द्धि है.

2.1.3.5. गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः |
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीदधृदा मनसा चिदिन्द्रम ||ऋ6.28.5, अथर्व 4.21.1

Cow’s milk & its products are the first promoters of good motivation of temperament to have the blessings of a blissful life. Cows indeed are thus the very fortune & prosperity of man to become victorious like Indra.

गौएं जैसे प्रथम (अपने बछडे के) ऐश्वर्य के लिए दुग्ध प्रदान करती हैं  वैसे ही गौओं द्वारा (दुग्ध और पङ्चगव्य से)  धरती, वाणी, इंद्रियां स्वशरीर प्रकृति पर्यावरण  और यजमान गोपालक परिवार  पोषित हो कर, वश मे रह्कर ऐसे सुशासित होते हैं जैसे इंद्र ही शासन कर रहा हो.

इस प्रकार हे बुद्धिमान जनों गौ स्वयम्‌ में ही  सम्पूर्ण ऐश्वर्य  का साधन इंद्र है.

2.1.3.6.यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित कृणुथा सुप्रतीकम | 

भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद वो वय उच्यते सभासु ||ऋ6.28.6, अथर्व4.21.6

Oh Cows, sweeten our life and environments by your bounties, bring us health and strength physical and emotional. Weaken the ugly and unfriendly.

हे गौओ तुम दुर्बल को हृष्ट पुष्ट बना देती हो, तुम भद्दे को सुडौल बनाती हो, तुम वाणी में मधुरता स्थापित करके घर को  कल्याणकारी  और सुखप्रद  बनाती हो,   तुम्हारे वृद्धिकारक दुग्ध और अन्न का महत्व  सभाओं में  कहा जाता है.

2.1.3.7. प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः |
मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः || ऋ6.28.7, अथर्व 4.21.7

May cows feeding in good pasture, enjoying clean life giving drinking water, have great progeny of calves and not face harm by thieves   hostile elements and diseases.

उत्तम संतान (बछडे बछडियों और गोपालकों  वाली) उत्तम घास वाले प्रदेश मे चमकती हुइ, उत्तम पेयस्थलों में शुद्धजल को पीती हुइ, व्यवस्था स्थापित हो. गौ पर अत्याचार, हिंसा करने वाला , चुराने वाला कोइ न हो. यह समाज और राजा का दायित्व है.

(भूमण्डल पर राजा रुद्र  का प्रतिनिधि होता है , इस मंत्र में देश की समृद्धि के लिए गोरक्षा  और उत्तम गौसम्वर्धन के लिए राजा के दायित्व का उपदेश है.)
2.1.3.8. उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्‌ |
उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये ||ऋ6.28.8

May cohabitation with good bulls be the source of vitality of these cows to render their bounties for us.

हर क्षेत्र में इंद्र अपना पौरुष इस परम ऐश्वर्य दायक वृषभ से ही प्राप्त करते हैं . पृथ्वी पर, वाणियों मे राजनीति मे हर क्षेत्र में वृषभ  का महत्व सब के ध्यान में रहना चाहिये.

2.1.4.0  यस्य नष्टं भवेत्किञ्च द्‌द्रव्यं गोर्द्विपदं धनम्‌ । नस्येद्वाध्वनि यो मोहात्संपूषन्‌ स जपेन्निशि ॥  ऋग्विधान 2.121. जिस का गोधन, परिवार जन, सम्पत्ति आदि की हानि  हो गयी  हो  वह  ‘सं पूषन’  से आरम्भ  होने वाले ऋग्वेद सूक्त 6.54 का रात्रि में जप करें

He whose possessions: a cow, a man, money be lost should mutter

the Rig Ved Sookt 6.54 beginning with सं पूषन्‌ at night .

RV 6.54

2.1.4.1 सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

Oh Pushan –Lord of Nutrition- lead us to the wisdom with clarity about our nutrition.

हे पूषन देवता, हमारी  पोष्टिकता के लिये विस्तृत ज्ञान का उपदेश दो

2.1.4.2 समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

पूषन देवता के अनुसार गृहस्थों के लिए घरों मे गौपालन ही पौष्टिकता का सर्वोत्तम साधन है.

It is the divine wisdom that a house cow is the perfect strategy for best of nutrition.

2.1.4.3 पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते ।नो अस्य व्यथते पवि: ॥ ऋ 6.54.3 गोपालन मं ग्याभन होने के कुछ समय पश्चात दूध की मात्रा कम हो सूख कर  कर पुन: संतानोत्पत्ति का चक्र क्रम पूषन व्यवस्था में कोइ व्यवधान नहीं हैं. 

The wheel of the chariot of nutrition by cows is never stuck in ground and comes to harm nor is there any trouble or suffering in its movement.( Cows go through a natural cycle of calving milk giving getting pregnant drying off and calving again. But no harm comes to the nutrition cycle and it does not suffer.)

2.1.4.4. यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। ऋ 6.54.4

जो इस गोपालन यज्ञ में समर्पित भावना से गोसेवा करते हैं  उन की पौष्टिकता में कभी कमी नहीं होती और उन की समृद्धि निश्चित होती है.

Those who dedicate themselves to taking care of their cows appropriately are blessed immensely with great riches.

2.1.4.5. पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। ऋ 6.54.5

हमें गोपालन का उत्तम ज्ञान विज्ञान और सुविधाएं प्राप्त हों जिस से हमारी पौष्टिकता और बल बना रहे

We pray to have the wisdom and means to protect and nurture our cows and horses appropriately to ensure good nutrition and strengths. ..

2.1.4.6. पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: । अस्माकं स्तुवतामुत ।। ऋ6.54.6

यजमान की गोसेवा और स्तुति के फलस्वरूप गो दुग्ध से उत्तम शिक्षित सुंदर वाणी और संस्कार प्राप्त होते हैं .

Dedicated well managed care of the cows provides excellent  quality of milk and ensure civilized amiable speech and temperaments.

2.1.4.7. माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। ऋ6.54.7

हमारी गौएं जो गोचर में स्वपोषन के लिए जाती हैं, किसी कुएं इत्यादि में गिर कर आहत न हों और सुरक्षित घर लौट आएं.(गोचर सुव्यवस्थित हों )

Cows as they go to pastures should be able to return safely without suffering any accidents there. (Pastures should be well managed to ensure safety of the foraging cows.)
2.1.4.8. शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् । ईशानं राय ईमहे ।। ऋ 6.54.8

विद्वत्जनों से पौष्टिकता के बारे मे ज्ञानप्राप्त करें  जिस से निर्बलता दूर हो कर समृद्धि प्राप्त हो.

Learn the science of nutrition from experts to protect you from loss of vitality and have good life.

2.1.4.9. पूषन् तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्त इह स्मसि।। ऋ6.54.9 उत्तम शिक्षा द्वारा उपयुक्त आहार के नियमों का सदैव पालन कना चाहिए. (आहार संयम)

By good learning and education, in the observance of good nutritional habits one should never be lax.

2.1.4.10. परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् । पुनर्नो नष्टमाजतु ।। ऋ 6.54.10

जहां हम अपने दक्षता पूर्ण कर्म से पौष्टिकता के लिए उत्तम गोपालन और खाद्यान्न का प्रबंध करतेहैं,वहां हमें साथ साथ जो पीछे कुछ त्रुटि  के कारण अनिष्ट हो गया हो तो उसे भी सुधारने का कार्य करें.

On one hand while we exercise all our knowledge and skills in the management and production of excellent nutritive food products, onthe other hand side by side we should also rectify if any mistakes

have crept in our programs.

2.1.5.0        मातेति गामुपस्पृश्य जपन्‌ गास्तु समश्नुते । वचोविदमिति त्वेतां जपन्‌ वाचं समश्नुते ॥ ऋग्विधान 2.187

जिन की गोपालन  द्वारा उत्तम गोवंश और गोपालन के परिणाम स्वरूप उत्तम वाणि की इच्छा  हो वे गौ माता को स्पर्ष करते हुए ‘माता रुद्राणाम, वचो विदम्‌’ से आरम्भ होने वाले ऋग्वेद सूक्त 8.101 के 15, 16 मंत्र का जप करें

He who desires good Cows & obtain gracious speech  by grace of cows should while touching the cow,  utter Rigved Sookt 8.101.15-16  beginning with ‘मातारुद्राणाम’ &  ‘वचोविदम्‌’  –  Rigvidhaan 2.187   

RV 8.101.15

 माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ।। 8.101.15

 

RV8.101.16

वचोविदं वाचमुदीरयन्ती विश्वाभिर्धीभिरुपतिष्ठमानाम्।

देवीं देवेभ्य: पर्येयुषीं गामा मावृक्त मर्त्यो दभ्रचेता: ।।ऋ 8.101.16

Tying of bells  गौ के घण्टी बांधना

2-1-2   गृहादिग्नाशाय  एष धूपो गँवा हित:।

          घंटाचैव गँवा कार्या धूपानेन धूपिता।। अग्नि पु. 292 (34)

After wards a bell should be tied around the necks of the cows toward off evil spirits. (It is now confirmed by modern science that proper ultrasonic waves have a significant role in controlling air borne viruses).

2.2–Releasing Cows For Feeding in Pastures.

 Pasture Feeding was a very well organised and managed activity according to our scriptures, Cows should  feed themselves freely in  good pastures.

Modern scientific investigations have endorsed this ancient Indian belief. The products of Pasture grass fed cows according to Vedas and Shastras provide complete nutrition for body and more importantly for the development of proper mental and intellectual qualities. Raw fresh from cow’s udders Milk, its  curd and Butter  were known to prevent all Self Degenerating human body diseases and also acted as remedies for most of  such  human diseases

According to modern science, the  actions of solar radiations are the only known source of the  mysterious “Activator X”  the precursors through which host of vitamin A and D like substances, provide  nutritive actions  for the human beings.

 Modern medicine uses vitamin D additives, as the main ingredient for preventing loss of tissue regulatory functions of human body. Chronic Calcium metabolism disorders, which lead to Osteoporosis and inveterate skin problems like Psoriasis are caused by inadequate solar radiation exposures and not getting Cow’s Milk.. Inadequate natural vitamin D is also linked to cancer of colon, prostate, breast and ovaries due to inability of the human body to regulate cell growth. Vitamin D metabolism also regulates insulin secretion in pancreas and thus has a role in controlling incidence of Diabetes type 2.

But only natural Vitamin D as found in Sun’s rays and cow’s milk is most effective. The efficacy of artificially produced and used as an additive is often a commercial tactics of very little proven efficacy..

Diseases and conditions caused by Vitamin D deficiency

1.   Osteoporoses- due to impaired calcium absorption.

2.   Impaired cell growth-due to disturbed cell growth regulation resulting in cancers.

3.   Rickets -in children  (a bone wasting disease.)

4.   Type2 Diabetes -due to impaired insulin Production.

5.   Schizophrenia

6.   Fibromyalgia

7 Skin troubles like Psoriasis

The above note is based on “The Healing Power of sunlight and vitamin D” based on Dr. Michael Holick researches, Truth Publishing Public Release Document dated May 18th 2004.

Buffaloes Milk contains no natural vitamin D. It is not surprising that Indian Dairy Milk, which is nearly 80% buffalo milk, is totally devoid of natural Vitamin D. No amount of artificial Vitamin D additives in Dairy products, can replace natural vitamin D present in Cow’s milk. It is therefore not surprising that urban population in India, which depends literally on Dairy milk is suffering from all the vitamin D deficiency diseases listed above. The addition of synthetic Vitamin D to Dairy milk has not proved its effectiveness in replacing natural solar radiation activated milk of a cow.

Only Pasture fed cow’s milk and its products contain -Conjugated Linoleic Acid-CLA. Such milk also  has a very high proportion of Omega 3 to Omega 6. This makes only grass fed cowsङ milk act as protection and medicine against all self-degenerating diseases in Human body. These self degenerating diseases are such as Obesity, Cardiac problems, Diabetes, Arteriosclerosis, cancer etc. This explains the importance of pasture feeding. Latest researches carried out in University of Wisconsin and the NIH Bethesda in USA have confirmed this.

( Appendices have been provided giving up-to-date scientific information on these topics)

 

Grihya Sutras describe the following Mantras to be recited when releasing cows for grazing.

2-2-1   इमा मे विश्वतो वीर्यो भव इन्द्रश्च रक्षतम्‌।

          पूषञस्त्वं पर्यावर्तानष्टा आयन्तु नो गृहान्‌।। मं ब्रा 1.8.1  गो भिल गृह0 सूक्त 3-6-1

Oh Cow as you go out to graze in pastures, let  this be the provider of Vigor for you  to motivate the world for its sustenance and nutrition, without  you causing any  damage to the environments while grazing, and come back to your home safely.

2.3     Receiving the cows back after grazing.

 Recite the following:-

2-3-1   प्रत्यागता: चरणभूमितो गृहागता गा:।

          इमा मधुमती र्मह्य, मनष्टा:, पयसा सह।

गाव आज्यस्य मातर इहेमा: सन्तु भूयसीः।। Go Gr Su 3-6-1Mantra Brahman 1-8-2

Here returns from pastures, leaden with milk full of nutrients, fats, satisfied by roaming freely for our good fortune.

2-3-2   आगावों अग्मन्नुत भद्रमक्रन् त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे।प्रजावती: पुरुरुपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वी रुषसो दुहानाः ।। RV 6-28-1

Welcome to cows making pleasant sounds, laden with nourishing milk, bearing and supporting lot of progeny, of various colors, and with good record of high productivities.

2-3-3 परिपूषा परस्ताद्धस्तं दधातु दक्षिणम्‌। पुनर्नो नष्टमाजतु।। RV 6.54.10

Let Pusha the protector not only push you from behind but from  also from all sides, to  hold our cows in protection from any fatalities.

  2.4.1 About Heifers बछियों के बारे में

2.4.1.1  RV 3-55-16 Raise heifers without stress and separately

          आ धेनवो धुन्यन्तामशिश्वीः  सबर्दुधाः शशया अप्रदुग्धाः।  नव्यानव्या युवतयो भवन्तिर्महद् देवानामसुरत्वमेकम्  ।। ऋ  3-55-16

With potential to meet our expectations of providing their bounties, the indolent looking , unstrained with hard work stress free young  heifers  ie  without any offspring , turn in to daily milk providing  excellent cows, by the blessing of gods.( There also a message here that heifers should be  segregated from milk giving cows and raised under stress free conditions.)

2 .4.2 Putting Nose Ring on Young Bulls. नासाभेद ककिलमानकथनम 

2-4-2-1           चतुर्थे ब्दे तृतीय ब्दे यदा वत्सो दृढो भवेत।

          तदा नासाऽस्य भेत्तत्वा नैव प्राग् दुर्बलस्य च।।पाराशर कृषीशासनम।।16।।

In the 4th year or 3rd year never less than three years depending upon good body condition, the male calve is to be fitted with a nose ring by piercing the nose.

(Breeding Soundness Evaluation formed a very elaborate system in directives given. Visible physical features of body, including shape and size of testicles, the past records of productivity of the lineage were all considered. Inbreeding was avoided by observing elaborate systems of pedigree recognition and tattoo marking the new born calves.

2.4.2..2      नासाभेद ककीलमानकथनम्‌।।

          नासाभेदन कीलस्तु खदिरो बाथ शैशप:।।

          द्वादशाञ्गुलक: कार्य स्तज्ज्ञै स्तैर्नस एव स:।।   पाराशर कृषीशासनम्‌।।17।।

The needle for nose piercing should me made of wood of khair (Accacia) Khair or Shisham (Dalberfia Sissoo Rokb. About 12 anguls (Nine inches) long. Only an experienced person should perform the operation.

 2. 5    Releasing Bull for servicing the Herd. वृषोत्सर्

2.5.0 Avoid inbreeding वृषभ दूसरे कुल मे कार्य करे

2.5.0.1 RV 3.55.17

यदन्यासु वृषभो रोरवीति सो अन्यस्मिन यूथ नि दधातिरेतः।

स हि क्षपवान्त्स भगः स राज महद् देवानामसुरत्वमेकम्  ।। ऋ 3.55.17

The  roaring breeding bull is all powerful and very able, but this bull roars and  deposits its semen in a different herd, this is very important tradition of nature.

यह वृषभ अत्यन्त सामर्थ्यवान है, परन्तु इसे अपना वीर्य दूसरे वंश में जा कर स्थापित करना है। यह देवताओं का एक बड़ा महत्वशाली विधान है।

 

2.5.1    कार्त्तिक्यां पौर्णमास्याञ रेवत्या वा ऽऽश्रवयुजस्य।  पास्कर गृह सूत्र  3-9-3

Bulls should be released on full moon of kartik or revati Nakshatra of Ashwin month.

2-5-2

       मधये गवाञ सुसमिद्धमग्निं कृत्वाऽऽज्य संस्कृत्य  हरितिरिति षट् जुहोति प्रतिमन्त्रम्‌।। पागृसू 3-9-4

 

Perform Agnihotra, among the cows with Yajurved Mantras as given here,. Use Cow Ghee for the Agnihotra. 

    (वोषट् VOUSHUT is an offering in to the sacred  fire while standing, whereas SWAHA is an offering made while sitting. This point is to be noted that among the cows these offerings  made in to the fire may be given while standing.)

वृषोत्सर्ग यज्ञ- आहुतियां

 2.5.2.1   इह  रतिः    स्वाहा    ।। पागृस 3.9.4.1

 

इह   रमध्वं   स्वाहा  ।। पागृसू 3.9.4.2

 

इह   धृतिः     स्वाहा ।। पागृसू 3.9.4.3

 

इह स्वधृतिः    स्वाहा   ।।पागृसू 3.9.4.4

 

उपसृजन् धरुणं  मात्रे धरुणो मातरं धयन् स्वाहा 

 ।। पागृसू 3.9.4.5

 

2.5.5.2        3.9.4.6 रायस्पोषमस्मासुदीधरत्  स्वाहा 

।।पागृसू 3.9.4.6

गोशाला यज्ञ

2.5.3Yaju 3.5 भूर्भुवः स्वः द्यौरिव भूम्ना पृथिवी वरिम्णा

    तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे ।। यजु 3।5

 

2.5.4 Yaju3.6 समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोदयतिथिम् । आस्मिन् हव्या जुहोतन ।। यजु 3।1

 

2.5.5Yaju3.2 सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे ।। यजु3।2

 

2.5.6Yaju3.3 तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्द्धयामसि । बृहच्छोचायविष्ठ्य ।।यजु3।3

 

2.5.7Yaju 3.4 उप त्वाग्ने हविष्मतीचीर्यन्तु हर्यत ।जुषस्य समिधो मम।। यजु3।4

 

2.5.8Yaju3.6 आयं गौः पृश्निक्रमीदसदन् मातर पुरः । पितर च प्रयन्त्स्वः।। यजु3।6

 

2.5.9Yaju3.7 अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती । व्यख्यन् महिषो दिवम् ।। यजु3।7

 

2.5.10Yaju3.9 अग्निर्ज्ज्योतिर्ज्ज्योतिरग्निः  स्वाहा

                     सूर्यो ज्योतिर्ज्ज्योतिः सूर्य्यः स्वाहा ।

                     अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा ।

                     सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वच्चः स्वाहा ।

                     ज्योतिः सूर्य्यः सूर्य्यो ज्योतिः स्वाहा ।। यजु

3।9

 2.5.11Yaju3.10 सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या ।

                             जुषाणोऽग्निर्वेतु  स्वाहा  ।

                             सजुर्देवेन सवित्रासजूरुषसेन्द्रवत्या  ।

                             जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा ।।यजु 3।10

 2.5.12Yaju3.21रेवतीमध्वमस्मिनयोनावस्मिनगोष्ठेऽस्मिंल्लोकेऽस्मिन् क्षये ।  इहैव    स्त    मापगात   ।। यजु3।21

2.5.13Yaju3.22 संहितासि विश्वरूप्यूर्जा माविश गौपत्येन ।  उपत्वाग्ने    दिवेदिवे दोषावस्तर्द्धिया वयम्‌। नमो  भरन्तऽएमसि    ।।यजु3।22

2.5.14Yaju3.23 राजन्तमध्वराणा  ग़ोपांमृतस्य दीदिवम्  । वर्द्धमानं  स्वे   दमे ।। यजु3।23

2.5.15Yaju3.24 नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव ।सचस्वा नः   स्वस्तये    ।।यजु3।24

2.5.16Yaju3.35 तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो  नः   प्रचोदयात्‌।।यजु3।35

2.5.18 RV6.54.5 पूषा गा अन्वेतु नः पूषा रक्षत्वर्वतः।  पूषावाजं सनोतु नः   ।। ऋ 6.54.5

2-5-19     After the  Agnihota Rudra Jap is recited.

  रूद्रान्

 जपित्वैकवर्णंं  द्विवर्णंवा यो वा यूथं छादयति यं वा यूथं छादये द्रोहतिो वैव स्यात्‌। सर्वाण्ग़ैरुपतो जीववत्साया: पयस्विन्य: पुत्रो यूथे च रुप स्वित्तम: स्यात मलङ्कृत्य यूथे मुख्याश्च तस्त्रो वत्सतर्यस्ताश्चालञ्कृत्य-एतं युवानं पतिं वो ददामि तेन क्रीडन्तीश्चरथ प्रिये ||

यजुर्वेद 16 के मंत्रों से  रुद्र जप करे

          मा न: साप्तजनुषा ऽसुभगा रायस्पोषेण समिषा मदेमेत्येतयै वोत्सृजेरन्‌।। पागृसू 3-9-6

Rig Vidhan of lays down Rudra jap as consisting of Rigved 1.43 and 1.114, 2.33  and 7.46 chapters. is recited.

 ऋ1.43RV1.43

 

  1. Shankaayan shraut sootra prescribes recitation of this hymn in Shoolgava Ceremony to ward off ailments and troubles of domestic animals- cows, horses, and also family.

 

  1. Ashwalayan Grih sootra prescribes hymn for attaining powers and achieving one’s desires.

 

The seer of this hymn here is Kanw-Super intelligent – one who listens to everything very attentively. That is the reason that his every action is based on proper analysis and appropriate. Actions under him are known for beauty, charm, grace, grandeur, sublimity.  He

personifies venerable sublime Enlightenment, Intelligence, Resolution and Determination.

। रुद्र:, मित्रावरुणौ च, 7-9सोम:। गायत्री, 9 अनुष्टुप् । ऋ1.43RV1.43 रु द्र

The seer of this hymn here is Kanw-Super intelligent – one who listens to everything very attentively. That is the reason that his every action is based on proper analysis and appropriate. Actions under him are known for beauty, charm, grace, grandeur, sublimity.  He

personifies venerable sublime Enlightenment, Intelligence, Resolution and Determination.

रुद्र:, मित्रावरुणौ च, 7-9सोम:। गायत्री, 9 अनुष्टुप्

1.कद्रुद्राय प्रचेतसे मीळहुष्टमाय तव्यसे ।

वोचेम शंतमं हृदे ।। RV1.43.1

Let us invoke in the intellect to promote in our hearts the shower of blessings of  the great Rudra for  our well being For providing healthy disease free life, and to give comfort to our hearts, wise men tell about the appropriate actions to be taken and precautions observed for ensuring disease free healthy life at different times and situations.

हम बड़े बुद्धिमान् (अभीष्टों के लिएअत्यन्त मेघ  बरसाने वाले महाबली रुद्र के लिए हृदय से  अत्यन्त सुख देने वाले किस (वचन) को कहें?

( रुद्र परमात्मा की वह शक्ति है जिस का विकास बिजली की गरज के समान चमत्कारी होता है रुद्र मनुष्यों के लिए वर्षा इत्यादि के द्वारा वायुमंडल से और वनस्पतियों द्वारा रोग को नाश करने वाली औषधियों को देने वाले हैं भयंकर होने पर भी रुद्र  अपने आर्य्य उपासकों के लिए अत्यन्त मृदु हैं ।) संहिता- शिवनाथ आहिताग्नि से

रोग रहित स्वस्थ जीवन के हेतु, बुद्धिमान जन,  रुद्र के रोगाणुओं को नष्ट करने और हमारे स्वास्थ्य के लिए भिन्न भिन्न  परिस्थितियों में भिन्न भिन्न समय पर हमारे आचार व्यवहारका उपदेश करते हैं.

2.यथा नो अदिति: करत् पश्वे नृभ्यो यथा गवे ।

यथा तोकाय रुद्रियम् ।।RV  1.43.2

By which the environments may be (induced) to grant the gifts of Rudra to our animals, our people, our cows and our progeny.Like what a mother of new born desires, like what a keeper of cows desires, like what a king desires for his people, like what a farmer desires while working with soil on the farm the divine wisdom of Rudra (about sanitation and destroying of disease carrying germs pathogens )  may be made available to preserve the health and wellbeing. (of all).

जिस के द्वारा हमारे पशु, गौ, समाज, सन्तान सब  रुद्र सम्बन्धित भेषज से निरोग स्वस्थ हों। माता जिस  प्रकार अपने नवजात शिषु के लिए , सूर्य पृथ्वी और  वनस्पति के लिए उत्तम, राजा अपनी  प्रजा और गौवों के कल्याण के लिए  स्वास्थ्य प्रद  रोग रहित  परिस्थितियां बनाते हैं, उस रुद्र का विशेष ज्ञान उपलब्ध कराना चाहिए. 

3.यथा नो मित्रो वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति ।

यथा विश्वे सजोषस: ।। 1.43.3

May we learn to get familiar with the मित्रः  probiotics the  health giving nutritive,वरुण „ – the omnipresent microorganisms like viruses, and the रुद्रः disease  destroying agents , for our good health. Where all natural elements are friendly and provide disease free healthy environments, they by Rudra render all our habitat safe and healthy.

जिस से  हम को मित्र वरुण रुद्र सब देवता समान प्रीति वाले हों समस्त प्राकृतिक सम्पदाएं, पर्यावरण, रुद्र कि कृपा से रोग रहित स्वास्थ्य प्रद हमारे मित्र वत हों

4.गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम् ।

तच्छंयो: सुम्नमीमहे ।। 1.43.4

Rudra  bless us  through the gaathpatim  traditional folklore wisdom to avoid disease and maintain healthy environments  for a peaceful society and  jalaash bheshajam to turn waters in to medicines for our total wellbeing.

HHWilson in his Ved Bhashya comments on jalashbheshajamas follows ” he who has medicament conferring delight; from ja,one born and lasa, happiness; an unusual word except in a compound form, as abhlasha, which is of current use; or it may mean , sprung fromwater( jala), all vegetables depending over water for their growth.and temperaments  pure and  jalaash bheshajam ability to turn waters in to medicines for our total wellbeing.

(This makes clear reference to jalaash   being specially treated   water endowed with enhanced medicinal curative properties .  Modern scientists of Biophysics call such water ‘activated water’. This water is being increasingly prepared in Biodynamic Agriculture of Rudolph Steiner and Compost Tea preparations. Activated water being made by electronic devices is increasingly finding use for drinking purposes. Dairy industry is using Activated Water to enhance milk production of the cows by more than 20%. Ganges water in its pristine purity is the naturally formed jalaash i.e. Activated Water and is well known for its innumerable divine qualities.)

(This is clear reference to jalaash   being a preparation of what modern scientists of Biophysics call activated water)

(हम)स्तुति के पालक यज्ञ के स्वामी सुख रूप औषधि से युक्त रुद्र से उस रोग शान्ति (और) सुख को मांगते हैं । जलाष विषय- महान वैज्ञानिक न्यूटन ने कहा था कि वह अपने वैज्ञानिक अनुसन्धान करते हुए ऐसा अनुभव करता है कि वह प्रकृति के एक विशाल समुद्र के तट पर केवल छोटे छोटे पत्थरों से एक बालक की तरह खेल रहा है वेदों मे ऋषियों के विज्ञानकी जान कारी इतनी विस्मय कारी है कि आधुनिक विज्ञान सचमुच में  अभी छोटे छोटे पत्थरों से ही खेल रहा है। जलाष के सन्दर्भ में यही कहा जा सकता है। पवित्र गंगा जल में रोग नाशक तत्व क्या हैं और गंगा जल किस प्रकार  सामान्य पानी से भिन्न है यह अभी तक विश्व भर के वैज्ञानिक पता नहीं कर सके  हैं। आधुनिक विज्ञान Activated Water के  विस्मयकारी  परिणामों का अभी अध्ययन कर रहा है। अधिकांश वैज्ञानिक इसे pseudo science की संज्ञा देते हैं। परन्तु होम्यो पैथी और ओस्ट्रियन वैज्ञानिक रुडोल्फ़ स्टाइनर के बायोडायनमिक पदार्थों की उपयोगिता अब अमेरिका की सरकारी कृषि नीति में आते हैं।

जलाष शब्द पर विभिन्न वेद भाष्य, निरुक्त इत्यादि  ग्रन्थों  बहुत कम ज्ञान  मिलता है। Monier Williams के अनुसार जलाष से mechanically subdued water अर्थ बनता है। इस प्रकार कृष्टी द्वारा उपचारित जल को जलाष कहा जा सकता है इस प्रकार उपचारित जल को Activated Waterकहा जाता है। यही वैदिक भाषा में जलाष कहलाता है। विशेषगोमूत्ररूपेण जलेन। जलाषमिति उदकनामसु पठितम्‌। जलाष को रुद्र संबन्धी भेषज के लिए अन्यत्र भी श्रुति में कहा गया है—“गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्” ( 1434 कौ0 सू0(31/11) विनियोग के अनुसार बिना मुख वाले फ़ोड़े फुन्सी आदि व्रणों को गोमूत्र से धो कर उस का उपलेप करना चाहिए। गो मूत्र इस प्रकार रोगों की अव्यर्थ महोषधि है यहा तक कि उस का नियमित सेवन कुष्ट आदि के घावों को भी ठीक कर देता है। आयुर्वेद में इस के गुणवर्णन करते हुए लिखा है–शूल गुल्मोदरानाहकण्ड्वक्षि-मुख्रोजित्‌।” तथा  कासं सकुष्ठ-जठरकेइमिपाण्डुरोगान् गोमूत्रमेकमपि पीतमपाकरोति (भाव नि0 मूत्र वर्ग 4)

रुद्र के प्रभाव से हमारा पेय जल ओषधि रूप बने, और समाज में उच्च विचारो के प्रचार  से जीवन सुख शांति मय बने. ( पेय के लिए शुद्ध पवित्र ओषधि गंगा जल उपलब्ध रहे) 

5.य: शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते ।

श्रेष्ठो देवानां वसु: ।। 1.43.5

Establish the ever dazzling golden sun to provide the best naturally available health ensuring gifts. (Recognize the supreme position of ever dazzling golden sun as protector and enabler of entire life and habitat on this planet.

(Modern science has come to the conclusion that Solar energy is the supreme source of disinfection, provider of Vitamin D, and photosynthesis to create carotenoids and numerous nutritive elements for life.

Modern science confirms that solar light is the most sustainable sanitizer. Solar radiations only by photosynthesis are the precursor of Vitamin D, Essential Fatty Acids and Carotenoids the best natural antioxidants that ensure disease free healthy life. It is now realized that  newer diseases such as Cardiac heart problems, diabetes, eye problems cataract, age related macular degeneration are spreading like epidemics in the community due to non availability of good cow milk and organic food )

देदीप्यमान सूर्य के प्रभाव से समस्त  वसु: -निवास,गो दुग्ध इत्यादि उत्तम वीर्य प्रदाता  हो कर श्रेष्ठ साधन प्रदान करें.

(आधुनिक विज्ञान मानता है कि प्रात:कालीन सूर्य नमस्कार सूर्य अर्चना का मानव स्वास्थ्य पर विटामिन डी द्वारा  और सूर्य के प्रभाव से वनस्पति, हरे चारे पर पोषित गो दुग्ध मे ओषधि गुण प्राप्त होते हैं. आधुनिक जीवन शैलि मे सूर्य भगवानसे दूर रह कर, गौओं को गोचर में  हरे चारे से वन्चित रखने से ही समाज में सब मधुमेह, हृदय, नेत्र रोग  इत्यादि महामारि की तरह फैल रहे हैं )

6.शं नो करत्यर्वते सुगं मेषाय मेष्ये ।

नृभ्यो नारिभ्यो गवे ।। 1.43.6

Sun  similarly provides beneficial effects to  all the domestic animals the  sheep, goats,  kings , community and cows with health providing healthy  peace loving temperaments. Natural straight path is the right and easy path to follow for health and welfare of all, in all matters of living connected with families of horses,  meshaaya  small rumens animals , men,  women and cows.

(It is interesting to note here that Veda is classifying horses and goats, sheep etc separately from Humans and Cows in that order, for welfare in management practices. Cows occupy the highest position in this order of priorities, Horses, Goats, Sheep, Men Women and then Cows. Cows were not bracketed with animals but were treated in the category of human beings and placed above humans. It is also noted that Buffalo was not admitted as a domesticated animal. This is a clue to how cow gets elevated to the status of universal mother in Indian tradition.)

उसी प्रकार उत्तम सूर्य ज्योति से सब भेड,बकरियां, राजा, प्रजा, गौएं सुख शांति प्रदाता हों.

7.अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम् ।

महि श्रवस्तुविनृम्णम् ।। 1.43.7

For the entire community ensure availability of excellent cow milk and cow enabled organic food to provide excellent intellects and peace loving temperaments.

समस्त समाज के लिए उत्तम गोदुग्ध और गो आधारित जैविक कृषि  द्वारा उपलब्ध अन्न से कुशाग्र बुद्धि, और सौम्य पकृति के समाजका निर्माण करो.

 

8.मा न: सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।

आ न इन्दो वाजे भज ।। 1.43.8

Develop the strength to defeat the antisocial, selfish, consumerist, non charitable, greedy, selfish life styles from community.

असमाजिक विचारों,प्रवृत्तियों, अयज्ञशीलता, अदानशीलता, भोगवादिता के उन्मूलन की शक्ति  सामर्थ्य उत्पन्न करो.

9. यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन् धामन्नृतस्य ।

मूर्धा नाभा सोम वेन आभूषन्ती: सोम वेद: ।। 1.43.9

Thus by establishing Vedas in the mind and temperament of the society excellent peaceful world may evolve.

जिस से समस्त प्रजा की मूर्धा चेतना अमृत मयि वेदों के उपदेशों  से आभूषित हो कर अत्युत्तम संसार समाज का निर्माण करें.

Rudra Jap रुद्र जप RV2.33 12 to 15

कुमारश्चित्‌ पितरं वन्दमानं प्रति ननानाम रुद्रोपयन्तम्‌ |   

गृणीषे स्तुतस्त्वंं भेषजा रास्यस्मे ।। 2.33.12

या वो भेषजा मरुत: शुचीनि या श्ंतमावृषणो या मयोभु।

यानि मनुरवृणीता पिता नस्ता शं च योश्च रुद्रस्य वश्मि ।। 2.33.13

परि णो हेतीरुद्रस्य वृज्या: परि त्वेषस्य दुर्मतिर्मही गात्।

अव स्थिरामघवद्भ्यस्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृळ ।। 2.33.14

एवा बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसि ।

हवनश्रुन्नो रुद्रेह बोधि बृहद्वदेम विदथे सुवीरा: ।। 2.33.15

RV7.46

ऋषि: मैत्रावरणिर्वासिष्ट देवता रुद्र: : 

इमा रुद्राय स्थिरधन्वने गिरः क्षिप्रेषवे देवाय स्वधाव्ने।

अषाळ्हाय सहमानाय वेधसे तिग्मायुधाय भरता शृणोतु नः।। ७.०४६.०१

स हि क्षयेण क्षम्यस्य जन्मनः साम्राज्येन दिव्यस्य चेतति।

अवन्नवन्तीरुप नो दुरश्चरानमीवो रुद्र जासु नो भव।। ७.०४६.०२

या ते दिद्युदवसृष्टा दिवस्परि क्ष्मया चरति परि सा वृणक्तु नः।

सहस्रं ते स्वपिवात भेषजा मा नस्तोकेषु तनयेषु रीरिषः।। ७.०४६.०३

मा नो वधी रुद्र मा परा दा मा ते भूम प्रसितौ हीळितस्य।

आ नो भज बर्हिषि जीवशंसे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।। ७.०४६.०४

Afterwards with recitation of the following mantras the young Bull along with at least four young heifers is marked with decorations and released.

To prevent inbreeding, for the group of cows, which one bull will cover, Vedas and Grihya Sutra, talk at length about pedigree, Phenotypes (the physical features) and Genotypes (the genetic traits with regard to producing good quantity of milk, cool and social temperaments of the cows, hardiness etc  and the  different breeds. Selection of the bull is also  decided by giving due considerations of Size Match. These instructions are given at one place in Grihya Sutras.

 Complete text of Paraskar Grihya Sutram (HariHar Bhashyam) is reproduced below:-

HariHar Bhashyanam हरिहर भाष्य-‘रुद्रान…जेरन्’।

रूद्रान्नामस्त इत्यधयायाम्नातान् जपित्वा जपधर्मेण पठित्वा

अत्र शूलगवातिदेशप्राप्तोऽपि रुद्र जपविधिः प्रथमोत्तमानुवाकजअविकल्पनिवृत्यर्थः जपावसरज्ञापनार्थो वा। तन्न। अपूर्व एवायम्, जप्यत्वेनाप्राप्तत्वात्‌। प्रकृतौ हि रुद्राणां पशूपस्थाने करणत्वेन विहितत्वात्‌। एक एव शुक्लादिवर्णो रूपं यस्य स एक वर्ण: तम्‌। अथवा द्वो वर्णौ यस्य स द्विवर्ण: तं वृणम्‌। एवं वर्ण विशेष नियमम भिधाायाध्‌ुना वृषस्य परिमाण विशेष नियममाह-यो वृषो यूथं कृत्स्नं वर्ग छादयति स्वपरिमाणेनाधा: करोति तं वा यं वृषं यूथं वर्गश्च्छादयेत् अधा: कुर्यात् तं वा यूथादधिकपरिमाणं वा न्यूनपरिमाणं वेत्यर्थ:। रोहितो लोहित एव वा य: स्यात्, एवकारेण लोहितस्य एकवर्णद्विवर्णाभ्यां प्राशस्त्यमुच्यते, पुन: कीदृक्? सवैञ्गैरूपेत: समन्वित: न पुनर्हीनांगोऽधिकांगो वा, तथा जीवा: प्राणवन्तो वत्सा: प्रसूतिर्यस्या: सा जीववत्सा तस्या गौ: पुत्रा:। तथा पयः क्षीरं ¤É½Ö±É विद्यते यस्याः सा पयस्विनी तस्या गोः पुत्रः। तथा यूथे वर्गे विषये रूपमस्यास्तीति रूपस्वी अतिशयेन रूपस्वी रूपस्वित्तम: वृण: स्यात् तमुक्तगुण विशिष्टं वृषमलंकृत्य वस्त्रमाल्यानुलेपहेमपट्टिकाग्रैवेयकघण्टादिभिर्वृषोचितभूषणैर्भूषयित्वा न केवलं वृषमात्रं ताश्च वत्सतरीरप्यलंकृत्य, कीदृशी:? या: यूथे स्ववर्गे मुख्या: गुणै: श्रेष्ठा वत्सतर्य: कति? चतस्र चतु:सञ्ख्योपेतास्ता:, एवं युवानमित्येतयर्चा उत्सृजेरन् त्यजेयुः।। पा गृ सूक्त 3-9-6

नभ्यस्तमभिमन्त्रायते मयोभूरित्य नुवाकरोषेण।। पा गृ स् 3-9-7

This is followed by recitation of RigVed 10-169  Go Sukta of four mantras (which is as follows) while releasing the young bull with the cows

2.5-20  RV 10-169

RV 10-169-1            मयोभूर्वातो अभिवातूस्रा। ऊर्जस्वतीरोषधाीरा रिशन्ताम।

                   पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ।। ऋ 10.169.1

                  

2.5.21

RV 10.169.2 या: सरूपा विरूपा एक रूपा या सामग्निरि ष्टया नामानि वेद।

                     यअङ्गिरसस्तपसेह  चक्रुस्ताभ्यः पर्जन्य महि शर्मयच्छ।।  ऋ 10.169.2 

2.5.22

RV10.69.3     या देवेषु तन्व मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद।

ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमाना: प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ।। ऋ 10.169.3     

2.5.23

RV 10.169.4 प्रजापति र्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवै: पितृभि: संविदान:।

         शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम।।  ऋ 10.169.4

Finally the following mantras are recited while giving offerings into yagyani.

 तत् पश्चाद इन मत्रों से आहुति दें

  2-5-24

shukla yaju 18-45 to 50

समुद्रोऽसि नभस्वानार्द्रदानुः शम्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा ।

            मारुतोऽसि मरुतां गणः श्म्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा ।

            अवस्यूरसि दुवस्वाञ्छ्म्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा।। यजु 18-45

 

            यास्ते अग्ने सूर्यो रुचो दिवमातन्वन्ति रश्मिभिः।

            ताभिर्नो  अऽद्य सर्वाभी रुचे जनाय नस्कृधि स्वाह ।। यजु 18-46

 

            या वो देवाः सूर्ये रुचो गोष्वेषु य रुचः ।

            इन्द्राग्नी ताभिः सर्वाभी रुचं नो धत्त बृहस्प्ते ।।यजु 18-47

           

            रुचं नो धेहि ब्राह्मणेषु रुच$ राजसु नस्कृधि ।

            रुचं विश्येषु शूद्रेषु मयि धेहि रुचा रुचम्  ।।  यजु 18-48

 

            तत्व यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।

            अहेड्मानो वरुणेह बोध्यरुश$ स मा न आयुः प्रमोषीः स्वाहा ।। यजु 18-49

 

           स्वर्ण धर्मः स्वाहा स्वर्णार्कः स्वाहा स्वर्ण शुक्रः स्वाहा

            स्वर्ण ज्योतिः स्वाहा स्वर्ण सूर्य्यस्वाहा ।। यजु 18-50

        

 

 

2.2.6       Procedure on calving  पुष्टि कर्म

पृष्टिकाम: प्रथम जातस्य वत्सस्य प्राङ्गमातु: प्रलेहनाज्जिह्वया ललाट मुल्लिमह्य निगिरेद् गवा ञ श्लेष्मा सीति।।3।।      गोपालन विधान-गोभिल गृह सूक्त3।6।3

First thing a cow does on delivering a calf is to lick the new born with her tongue starting from its face, to clean it and swallows all the coverings. She may be helped in this operation by the persons attending to her.

पुष्टिकाम एव संप्रजातासु निशायांगोष्ठेऽग्निमुपसमाधाय विलयनं जुहुयात् संगृहाणेति ।।4।।

गो0 गृ 0सू0 3।6।4

For the protection and providing strength to the newborn and mother, (if it is night time a fire should be lit. Also homa/Agnihotra should  be performed by  giving special oblation of cowsङ milk mixed with curd while reciting the following mantra.

2-6-1   संग्रहण संगृहाण ये जाता: पशवो मम।

पूषैषां शर्म यच्छतु यथा जीवन्तो अप्ययात। मंब्रा 1।8।4

Significance of the cow licking the newly born is to clean and to help the calf  to gain in strength to stand up. The   fire is made in the vicinity, (Agnihotra Fire performs this function automatically) for protection from stray  predator attackers.

 Fumigated environment provides, to calf and calving cow for better health. It is for modern science to investigate the beneficial effects of making specific oblations of cow milk mixed with curds into fire.

This homa is also part of Darsh Pourn Maseshthi  and is known by the same title Pushti karan by Sannaya Havi- सान्नाय हवि (milk + curd) mixture in दर्शपोर्ण मासेष्टिख्र्. This clearly confirms the link of दर्शपोर्णमासेष्टि in every day life

 

2.7 Tatoo Marking the New Born

 ( for good breeding practice)

Vedas and subsequent Indian traditions show remarkable scientific understanding of genetics. Vedas very clearly say that the same considerations of GOTRA apply to Cows as to Human beings for maintaining good progeny. To avoid inbreeding the inbreeding   coefficient of less than unity is planned, by Heterozygous mating. A six generations gap, in mating is planned to achieve this by the  system of Gotras and Sapinda considerations. By the seventh generation, inbreeding coefficient drops to below unity.

 Modern Veterinary Science confirms that for every one percent increase in the inbreeding coefficient the milk yield among cows registers a drop of up to 10%. Lack of importance given to the Breeding Bulls has been one of the main reasons for declining milk yields and population of good  Indian Cows. The other reasons are lack of adequate feed, clean drinking water , sanitary condition of the cows and love and affection practiced in the care of cows.

          2.7.1 AV6.141.2 लोहितेन स्वधितिना मिथुनं कर्णयोः कृधि।

             अकर्तामश्विना लक्ष्म तदस्तु प्रजया बहु ।। अथर्व वेद 6-141-2

 

2.7-2   पुष्टि काम एव संजाता स्वौदुम्बरेणासिना वत्स मिथुन योर्लक्षणं

करोति पुञसएवाग्रेऽथ स्रिया भुवनमसि साहस्रमिति। गो0 गृ0 सू0 3-6-5

For improvements of the cows by recognizing, their traits for further strengthening breed of the future  progeny, relevant marks are tattooed on the ears of the new born, by an instrument made of copper.

(Asper BhavPrakash Nighantu Udumbar also means copper).

 Then recite “भुवनमसि साहस्रमिति”* as given here.

 

     2.7.3  या फाल्गुन्या उत्तरामावस्या सा रे वत्या संपद्यते तस्याम ङ्कलक्षणनि।।

          शाञ्खायन गृह सूत्र

Falgun month amavasya Revati Nakhatra is recommended as the appropriate season for carrying out identification branding of cattle.

 

 

2.7.4 भुवनसि साहस्रमिन्द्राय त्वा सृमोऽददात् अक्षतमरिष्टमिलान्दनम्

गापोषणमसि गापोषस्येशिषे सहस्रपोषाय त्वा।

सहस्रपोषणमसि साहस्रपोषस्येशिषे सहस्र पोषाय त्वा।। मंब्राह्मण् 1.8.5

 

2.7.5   लोहितेन  स्वधिातिना मिथुनं कर्णयो: कृतम।

          यावतीनां यावतीनां व ऐषमो लक्षणकारिषम्‌।

          भूयसीनां भूयसीनां व उत्तरांमुत्तरां रूह्ममाम् क्रियासम्‌।। मंब्रा 1.8.6

Sanitation in Milking

2.8  Washing the string used for tying the legs of cow  at milking time

 

                         तन्त्री प्रसार्य्यमाणांबद्धवत्साञ्चानुमंन्त्रयेतेयंतन्त्रीगवांमातेती ।

    गो0ग़ृ0 सू0  3।6।7

Washing and /drying of the string used for tying the calves and legs of the cows during milking.

2.8.1   इयं तत्री  गँवा माता सवत्सानां निवेशनी।

          सा न: पयस्वती दुहा उत्तरा मुत्तरां समाम्‌।। मं0 ब्राह्मण 1-8-7

With this mantra the string should be washed and hung to dry every day for milking the cows.

2.8.2  तत्रै तान्यहरहः कृत्यानि भवन्ति ।  गो0गृ0सू03।6।8

2.8.3  निष्कालनप्रवेषने त्न्त्री विहरणमिति । गो0गृ0सू03।6।9

2.8.4  गोयज्ञे पायसश्चुरुः । गो0गृ0सू0 3।6।10

Modern Dairy Industry is very concerned about in house hygiene and cleanliness. But no control is exercised in this matter at the place where the cattle is kept, fed and milked. The result is that the milk collected by the Dairy Industry all over the world and not only in India, is very unhygienic, with extremely high Total Bacteria Counts. Good clean Raw milk never spoils. It  will get sour and settle as curds, like in making of Cheese. The Dairy Industry therefore has to Pasteurize all the Milk, before it can be handled any further. Natural Milk contains the microorganisms which are pathogenic, and keep the raw milk clean. But external bacteria on entering raw milk, introduce mainly disease carrying germs in it. By Pasteurization all the germs and Bacteria in the milk are destroyed. In the process of sanitizing the milk from disease carrying bacteria which get introduced due to unhygienic handling, all the health giving disease preventing enzymes present in the natural milk are also lost. The Pasteurized milk is there fore ‘Dead milk’ without the qualities  of nutrition , disease prevention and promoter of mental intellectual qualities, with which it is associated in our Vedic Indian Traditions.

There is a very strong world wide movement for promotion of Raw and Organic Milk. In fact all Cheese in Western countries is made only from Raw Milk.

  Our Vedic tradition go very deep on this subject of producing clean milk, by following the definite systems laid down as below.

  1. 1.    It ensured cleanliness of environment by fumigation/Homa as above twice a day.
  2. 2.     Elaborate directives on planning of cow shelter, with considerations of Ventilation, Natural Sun light by orientation of the shelters and  Clean Floors etc.
  3. 3.     For the  persons milking the cows and looking after the cows proper behavior to provide affectionate care.
  4. 4.    Requirements about the good clean hands of the milking men to keep the च्bacterial infectionछ to utmost minimum is  laid down.  Here it has laid down the instruction to use only clean string, for the handling of cows and calf by the milk men, by washing it daily.
  5. 5.    There was a scheme to milk the cows three times a day. This had two very specific advantages. One the fresh from Udders Raw milk was available three times a day. Two with three times milking, the Udder stress is reduced. This practice is accepted to increase the milk yield by cows by up to 10%.

These are the daily procedures to be followed in Gopalan as explained above:

1.Keep cows under very clean and peaceful     environments.

2.Allow cows to have daily outing to self feed in well managed pastures.

3.Keep the young calves behind.

4. On return after their  daily outings, receive , collect and manage them properly.

5. More attention is required to be paid to the nutrition and health of the young ones.

6. Arrange for proper selection and raising of Breeding Bulls.

7. Identify all young ones by tattoo marking for preventing inbreeding and breed improvement.

8. For GoYagnas Cow milk cooked rice, Cow Ghee , Milk and Curds should be used.

2.9  Darsh Pourn Maseshti

         दर्शपोर्णमासेष्टि 

From the above elaborate and detailed ritualistic tradition it is seen that Breeding,  was considered and observed as the most important area of animal husbandry and covered all aspects as per modern scientific practice.

Functioning of the elaborate वृषोत्सर्ग procedure described here, also points to the existence of a central community based institutional system which operated as a community resource center. This institution played the role of Monitoring the skills and practices followed for  Promoting, Training  and Educating the community by dissemination of good knowledge and Skills in all aspects related to Pastoral livelihood and life support activities, involving.

            1.Animal husbandry,

2.Agriculture  related areas like

  a. Selection and Preservation of Quality Seed

  b. Seed Banks for next harvests,

  c. Inspection of farm implements like tools, carts,

  d. Community decisions on health , feed strategies for cows

   e .Disposal of non productive not fit for domestic purposes cattle etc.

All these activities formed the subject of a community base yagna called Darshpournmaseshti. 

.Modern concept of Krishi Vigyan Kendras could evolve to play this role.

 The rituals of दर्शपोर्णमासेष्टि  Darsh Pourn Maseshti, are  seen as the Vedic system of modern management like ISO 9000, covering entire Macroeconomic activities of the society.

This calls for a very scholarly study in to the institution of this tradition for the  Indian Cows and Sustainable Organic Agriculture.

2.10    COW practices according to PANINI ( circa 500 B.C).

 

2.9.0 Terms and nomenclature prevalent related to Cows, Milk preparations

2.9.1.0 Practices relating to breeding, Identification of herds, Judging Age of cattle,

 

 

Cows domestication in Vedas

domestication of cows

Cows domestication in Vedas AV12.4

AV Sukta12.4 अथर्व वेद 12-4 सूक्त -वशा गौ ,ऋषि- कश्यप:

4.1.0.1 AV 12.4.1 अथर्व 12-4-1 On Donating a cow

गौ दान  किस को

ददामीत्येव ब्रूयादनु चैनामभुत्सत।

वशां  ब्रह्मभ्यो याचद्भ्यस्तत्प्रजावदपत्यवत्‌ || अथर्व 12.4.1

Cows should be given in keeping of learned persons

(veterinarians) who have noble temperaments.

गौओं को ब्राह्मण वृत्ति के पशु पालन  वैज्ञानिकों के ही दायित्व में देना  चाहिए ।

4.1.0.2 AV 12-4-2 Curse of a sick Cow दुःखी गौ का श्राप

प्रजया स वि क्रीणीते पशुभिश्चोप दस्यति।

य आर्षेयेभ्यो याचभ्दयो देवानां  गां न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-2

Those who do not give cows in the keeping of such

virtuous persons to bring about improvements in the

cows, merely trade and do no service for society.

They  suffer from curse of unhappy cows.

जो लोग कुशल कार्य कर्ताओं की सहायता से गौ संवर्द्धन  का कार्य

नहीं करते, वे केवल व्यापार वृत्ति से कार्य कराते हैं। वे दुखी  गौ के

श्राप के भोगी होते हैं।

4.1.0.3 AV 12-4-3 Underfed Cow’s Curse

दुःखी गौ का श्राप

कूटयास्य सं शीर्य-ते श्लोणया काटमर्दति।

बण्ड्या दह्य-ते गृहाः काणया दीयते स्वम् ।। अथर्व 12-4-3

Society that trades in unhealthy cows gets destroyed

By  curse of unhappy cows.

जो समाज गौ को व्यापार मान  कर चलाते हैं, वे दुखी गौ के श्राप से

नष्ट हो जाते हैं।

4.1.0.4 AV12-4-4 same as above फिर वही

विलोहितो अधिष्ठानाच्छद्विक्लिदुर्नाम विन्दति गोपतिम् ।

तथा वशायाः संविद्यं दुरदभ्ना  ह्युच्यसे ।। अथर्व12-4-4

Miserly person’s looking after the cows neglect their

Feed and health. Cows suffer bleeding and such

ailments which become incurable.

कंजूस गोपालक की गौ,रक्त  स्राव जैसे असाध्य रोगों से ग्रसित हो

कर नष्ट  हो जाती हैं।

4.1.0.5 AV 12-4-5 Foot and mouth disease

मुंह खुरपका

पदोरस्या अधिष्ठानाद्विक्लिन्दुर्नाम विंदति|

अनामनात्सं शीर्यन्ते या मुखेनोपजिघ्रति ।। अथर्व 12-4-5

By sniffing her feet/ place where cow puts her feet, A

disease ‘Wiklindu’ is contracted that finally destroys

the cow. ( The obvious reference is to the contagious

Foot and mouth disease)

गौ अपने  खुर सूंघने  से मुंह खुर पका रोग से ग्रस्त हो कर नष्ट हो

जाती  है।

4.1.0.6 AV12-4-6 Do not make Cut marks on Cow

ears

गौ की पहचान के लिए कान मत काटो

यो अस्याः कर्णावास्कुनोत्या स देवेषु वृश्चते ।

लक्ष्मं कुर्व इति मन्यते कनीयः कृणुते स्वम् ।। अथर्व 12-4-6

Those persons who make cut marks on cow’s ears for

Identification, are as if cutting short their own wealth.

गौ की पहचान के लिए  के कान नहीं काटने  चाहिएं।

4.1.0.7 AV 12-4-7 Do not cut COW Hair गौ के बाल नही

काटे  जाते

यदस्याः कस्मै चिद्भोगाय बालान्कश्चित्प्रकृन्तति ।

ततः किशोरा म्रियन्ते वत्सांश्च धातुको वृकः ।। अथर्व 12-4-7

Those who cut hair of a cow for any reasons, are

Cursed  to suffer in life.

जो किसी तांन्त्रिक कार्य के लिए गौ के बाल लेते हैं उन को श्राप

लगता है।

4.1.0.8 AV 12-4-8 Protect Cows from attack by birds गौ को कौए इत्यादि पक्षियों से बचाएं

यदस्या गोपतौ सत्या लोम ध्वाङ्क्षो अजीहिडत् ।

ततः कुमारः म्रियन्ते  यक्ष्मो विन्दत्यनामनात् ।। अथर्व 12-4-8

If crows are allowed to attack a cow, the lazy care

taker of  cows will suffer from tuberculosis.

( Lazy persons attract Tuberculosis)

जो चरवाहा गौ को कौए जैसे पक्षियों से नहीं बचाता , उस आलसी

को  क्षय रोग होगा । (आलस्य के कारण क्षय रोग होता है)

4.1.0.9 AV12-4-9 Cow Dung and Urine

गोबर गोमूत्र

यदस्याः पल्पूलनं  शकृद्दासी समस्यति ।

ततोऽपरूपं जायते तस्मादव्येष्यदेनसः ।। अथर्व 12-4-9

Throwing away in to waste the Cow Dung and Cow

Urine disfigures the society.

गोबर गोमूत्र व्यर्थ करने  से समाज के रूप की सुन्दरता नष्ट हो जाती

है ।

VETERINARY SERVICES

पशु चिकित्सा सेवाएं

4.1.0.10 AV 12-4-10 Cow Protection गौ सुरक्षा

जायमानाभि जायते  देवान्त्सब्राह्मणान्वशा ।

तस्माद ब्रह्मभ्यो देयैषा तदाहुः स्वस्य गोपनम् ।। अथर्व 12-4-10

Cow should always be under the care of

Knowledgeable persons having altruistic attitudes.

This  is the best form of COW PROTECTION

गौपालन  में ब्राह्मण वृत्ति के कुशल गोपालकों से ही गौ सुरक्षित

रहती है।

4.1.0.11 AV12-4-11 No Cow protection is cruelty

गौ की असुरक्षा अपराध है

य एनां  वनिमायन्ति तेषां देवकृता वशा।

ब्रह्मज्येयं तदब्रुवन्य एना निप्रयायते ।। अथर्व 12-4-11

Not providing cow in to proper hands for care is

cruelty to cows.

गौ को ब्राह्मण वृत्ति के लोगों के हाथ न देना गौ पर  अत्याचार है।

4.1.0.12 AV 12-4-12 Same again वही विषय

य आर्षेयेभ्यो या चद्भयो देवानां गां न  दित्सति ।

आ स देवेषु वृश्चते ब्राह्मणानां  च मन्यते ।। अथर्व 12-4-12

Not providing the cows with such care, destroys good

traditions of society.

गौवों को ऐसी सुरक्षा न  देने  से सामाजिक परम्पराओं का  नाश

होता है।

4.1.0.13 AV 12-4-13 pre parturition post parturition

care

दूध से हटी गर्भिनी गौ सेवा विषय

यो अस्य स्याद् वशाभोगो अन्यामिच्छेत तर्हि सः ।

हिंस्ते अदत्ता पुरुषं याचितां च न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-13

Productive cows can be kept for the immediate

benefits but unproductive cows must be given for

care by selfless persons.

बाखड़ी, गर्भिणी, दूध से सूखी गौ को निस्वार्थ सेवा चाहिए।

4.1.0.14 AV 12-4-14 Same as above वही विषय फिर

यथा शेवधिर्निहितो  ब्राह्मणानां  तथा वशा ।

तामेतदच्छायन्ति  यस्मिन्कस्मिंश्च जायते ।। अथर्व 12-4-14

Like the protection to be provided for hidden

treasures, such cows must be provided with due

protection .

( Modern science calls it Pre parturition & post

parturition- a 90 days regime two months or more

before calving and at least one week after calving

care under best hands)

जैसे किसी कोष की सुरक्षा की जाती है, उसी प्रकार विद्वान  कुशल

हाथों से बाखड़ी, कम/बिना  दूध की गर्भवती गौ की सुरक्षा होती है।

4.1.0.15 AV 12-4-15 denial of this service is cruelty to Cows

यह गौ सेवा उप्लब्ध न होना  गौ पर अत्याचार है

तस्मेतदच्छायन्ति  यद् ब्राह्मणा अभि ।

यथैनानन्यस्मिञ्जिनीयादेवास्या निरोधनम् ।। अथर्व 12-4-15

It is the duty of selfless good persons (veterinarians)

To provide this service. Denial of this service is cruelty towards Cows.

गौ वंश की ऐसी सेवा समाज का दायित्व है। इस सेवा का प्रबंध  न

होना  गौ पर अत्याचार है।

Importance of Veterinary Services गो विज्ञान  का महत्व

4.1.0.16 AV 12-4-16 Increase of Cows and identification

गो वंश विस्तार और उसे चिह्नित  करना

चरेदेवा त्रैहायणादविज्ञातगदा सती ।

वशां च विद्यान्नारद ब्राह्मणास्तह्येर्ष्याः ।। अथर्व 12-4-16

Up to three years of age a heifer moves around with

its mother. Then it Caves and has to be given an

identity and  donated to a deserving good household.

तीन  वर्ष तक की उस्रिया माता के संग रहती है। बछ्ड़ा देने  पर उस

का नामकरण करके किसी उपयुक्त परिवार को दान  की जाती है

4.1.0.17 AV 12-4-17 Nonobservance of such practice

Is not in best interests of society

ऐसे गोदान न करना समाज कल्याण हित में नही होता

य एनामवशामाह देवानां निहितं निधिम् ।

उभौ तस्मै भवाशर्वौ परिक्रम्येषुमस्यतः ।। अथर्व 12-4-17

Those who realize the wealth in cow’s udders and

milk, but do not share these cows with population, are

doing great disservice to welfare of the community.

जो गौ के दुग्ध का महत्व जानते हुए भी ऐसे गोदान नहीं करते वे

समाज के लिए कल्याण कारी नहीं सिद्ध होते

4.1.0.18 AV 12-4-18 Same again वही विषय फिर

यो अस्या ऊधो न  वेदाथो अस्या स्तनानुत ।

उभयेनैवास्मै दुहे दातुं चेदशकद्वशाम् । । अथर्व 12-4-18

Even ignorant persons if they donate cows for

Spreading them, do a great community service.

अविद्वान  लोग भी जो गोदान  से गौ संवर्द्धन  करने  के लिए यथा

समय गौ सेवा के लिए गौ दान  करते हैं, वे समाज सेवा का बड़ा

काम करते हैं

4.1.0.19 AV 12-4-19 Same again वही विषय फिर

दुर दभ्नैनमा शये याचितां च ना  दित्सति।

नास्मै कामाः समृध्यन्ते  यामदत्त्वा चिकीर्षति ।। अथर्व 12-4-19

Motivated by selfish considerations those who do not

Lend their cows at appropriate times for proper care

by experts, make their cows suffer and are in the end

not able to derive the benefits they were trying to

protect in the first place .

बाखड़ी गर्भ वती गौ की विशेष सेवा के लिए जो लोग अपनी  गौओं

को विशेषज्ञों के पास दान रूप से नही भेजते, उन  की गौएं कष्ट में

रहती हैं और जो लाभ अपेक्षित था वह नहीं मिलता।

4.1.0.20 AV 12-4-20  

Provide Vet experts honorable place

गो चिकित्सकों का आदर करो

देवा वशामयाचन्मुखं कृत्वा ब्राह्मणम् ।

तेषां सर्वेषामददद्धेडं न्येति मानुषः ।। अथर्व 12-4-20

Veterarian’s offer  for providing help to community to

take care of Cows should be gratefully accepted .

Ignoring the Vet Services angers the Vet Experts

पशु चिकित्सक गो सेवा के लिए उत्सुक रहते हैं। उन  सेवा ने  लेने

पर वे  क्रुद्ध होते हैं।

4.1.0.21 AV 12-4-21 Veterinarians पशु चिकित्सक

हेडं पशूनां न्येति ब्राह्मणेभ्योऽददद्वशाम् ।

देवानां निहितं भागं मर्त्यश्चेन्निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-21

Veterinarians are to be made available to serve cows.

By not taking  their services properly even the cows

are put to great  discomfort.

गौ सेवा के लिए प्रशिक्षित जन गोसेवा अवसर की प्रतीक्षा में  उत्सुक

रहते हैं। उन  की सेवा न  लेने  से गौ को भी बहुत पीड़ा होती है।

4.1.0.22 AV 12-4-22 Veterinary help

पशु चिकित्सा दायित्व

यदन्ये  शतं याचेयुर्ब्राह्मणा गोपतिं वशाम्‌।

अथैनां  देवा अब्रुवन्नेवं ह विदुषो वशा ।। अथर्व 12-4-22

Hundreds of people seek help from veterinarians, and

All their cows are said to belong to him.

बहुत से लोग अपनी  गौएं पशु चिकित्सक के पास ले जाते हैं। वे सब

गौ उस चिकित्सक की कही जाती हैं।

4.1.0.23 AV12-4-23 Expert Vet Services

कुशल पशु चिकित्सक सेवा

य एवं विदुषेऽदत्त्वाथान्येभ्यो ददद्वशाम् ।

दुर्गा तस्मा अधिष्ठाने पृथिवी सहदेवता ।। अथर्व 12-4-23

Those who do not take help of trained Vets and go to

Seek help from illiterates, cause lot of misery and loss

to society.

जो लोग विद्वान  पशुचिकित्सकों को छोड़ कर अविद्वानों  के पास

जाते हैं, वे समाज में दुःख का कारण होते हैं।

4.1.0.24 AV 12.4.24 Ignoring Vet help

पशु चिकित्सा न लेना

देवा वशामयाचन्यस्मिन्नग्रे अजायत ।

तामेतां विद्यान्नारदः सह देवै रुदाजत ।। अथर्व 12-4-24

First time pregnant cow needs extra care. House

Holders may think of such cows to be their blessing

and feel that it can take care of itself on its own as a

routine.

पहली बार गर्भ वती को गृह स्वामी अपना  सौभाग्य समझ कर यह

सोच लेता है कि सब अपने  से ठीक होगा। यह ग़लती है

4.1.0.25 AV 12-4-25 Continued वही विषय

अनपत्यमल्पपशुं वशा कृणोति पूरुषम्‌।

ब्राह्मणैश्च याचितामथैनां निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-25

Ignoring the expert Vet help those who confine such cows to their family out of misplaced affection, unknowingly cause harm to their cows and bring damage to the interests of their family.

विशेषज्ञों की सहायता न  ले कर ये गो स्वामी गौ और अपने  परिवार का और गौ का अहित करता है।

4.1.0.26 AV 12-4-26

अग्नीषोमाभ्यां कामाय मित्राय वरुणाय च ।

तेभ्यो याचन्ति  ब्राह्मणास्तेष्वा वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-26

Knowledge, Skills, Expert help, Implements and Resources all are needed for proper care. Ignoring this is a retrograde step.

विद्वत्ता, ज्ञान , हर प्रकार के संसाधन  उपयुक्त  स्थान  और समय पर उपलब्ध रहने  चाहिएं।

इन  सब पर ध्यान न  देना  समाज में पिछड़ापन  बढ़ाता है।

PASTURE FEEDING गोचर विषय

4.1.0.27 AV 12.4.27 Time to release Cows for Pastures प्रातः काल गोचर

यावदस्या गोपतिर्नोपशृणुयाद्दचः स्वयम् ।

चरेदस्य तावद्गोषु नास्यं श्रुत्वा गृहे वसेत् ।। अथर्व 12-4-27

Morning strains of mantras when heard being recited at Agnihotras indicates the time to release cows to go to pastures for self feeding.

प्रातः कालीन मंत्रो के पाठ की ध्वनि  जब सुनाई देती है, तब जानिए कि गौओं को गोचर में जाने  का समय हो चला

4.1.0.28 AV 12-4-28 Stall feeding is harmful घर में गौ को बंध कर मत रखो

यो अस्या ऋचउपश्रुत्याथ गोष्वचीचरत् ।

आयुश्च तस्य भूतिं च देवा वृश्चन्ति  हीडिताः ।। अथर्व 12-4-28

One who keeps Cows at home to feed even after hearing the morning mantra patha suffers in life.

जो प्रातःकाल मंत्र ध्वनि  सुनने  के पश्चात भी गौ को अपने  घर पर बांध कर खिलाता है, वह जीवन  मे दुख पाता है।

4.1.0.29 AV 12.4.29 Time to stay in Pastures गोचर में रहने  का समय

वशां चरन्ति  बहुधा देवानां निहितो निधिः ।

आविष्कृणुष्व रूपाणि यदा स्थाम जिघांसति ।। अथर्व 12- 4-29

As long as the cows like to feed in pastures they represent community assets. When cows want to retreat from pastures they indicate it by many signs.

गोचर में गौएं समाज की धरोहर के रूप में रहती हैं।जब वे पुन: अपने  गृह स्वामी के स्थान  जाना  चाहती हैं, स्वयम् संकेत करती हैं।

4.1.0.30 AV 12-4-30

आविरात्मानं कृणुते यदास्त्थाम जिघांसति।

अथो ह ब्रह्मभ्यो वशा याञ्च्याय कृणुते मन:।। अथर्व 12-4-30

Cow herself indicates the time for her to go back to her home for help from her master

जब गोचर से गृह स्वामी के पास जाने  का समय होता है गौ स्वयम् ऐसे संकेत देती है।

4.1.0.31 AV 12-4-31Cow’s desires are to be complied , गौ के अनुकूल आचरण हो

मनसा सं कल्पयति तद्देवाँ अपि गच्छति ।

ततो ह ब्रह्माभ्यो  वशामुपप्रयन्ति  याचितुम् ।। अथर्व 12-4-31

When Cows want to leave pastures to return to their homes, their desires should be complied with. ( It is the udder stress when it is full of milk, that prompts cow to return to her master for milking her and feeding her calf)

गौ के घर लौटने  के संकेत पर दूध दुहने  के लिए गौ को गृह स्वामी के यहां ले जाना चाहिए।

4.1.0.32 AV 12-4-32 Cow’s Blessings गौ के आशीर्वाद

स्वधाकारेण पितृभ्यो यज्ञेन  देवताभ्यः ।

दानेन  राजन्यो  वशाया मातुर्हेडं न गच्छति ।। अथर्व 12-4-32

Cows blessings flow by long life  and  presence of  elders in Society, Ajya for havi in yagyas, for the Society by her bounties (organic agriculture).

पितरों को अपने  स्वरूप से, ब्राह्मणों को यज्ञ में आज्य की हवि से,राज्य को अपनी  उपलब्धियों से धन्य  करती हैं।

4.1.0.33 AV 12-4-33 Cows belong to the learned गौ बुद्धिजीवियों की होती है

वशा माता राजन्यस्य तथा संभूतमग्रशः ।

तस्या आहुरनर्पणं यद ब्रह्मभ्यः प्रदीयते ।। अथर्व 12-4-33

Cow on first priority provides for protecting the welfare of society like a

mother does. But Cow really belongs to the Veterinarian intellectuals, who

provide for its  upkeep.

गौ सामाज को सर्व प्रथम माता कि तरह संरक्षण प्रदान  करती है।

परन्तु वास्तव में विद्वान  बुद्धिजीवि ही गौ को सुरक्षा प्रदान  करते

हैं।

4.1.0.34 AV12-4-34 Gross treatment of Cows a Crime गाव से दुर्व्यवहार अपराध है

यथाज्यं प्रगृहीतमालुम्पेत्स्त्रुचो अग्नये ।

एवा ह ब्रह्मभ्यो वशग्नय आ वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-34

Like Ajya havi dropping outside the fire is a crime, not providing the cows

with good Veterinary care is also a crime.

जैसे यज्ञाग्नि  से बाहर स्रुवा से आज्य गिराना  अपराध है, उसी प्रकार गौ को पशु चिकित्सक की

सेवा से दूर रखना  भी एक अपराध है।

4.1.0.35 AV 12-4-35 Productive cow fulfils all needs दुधारु गौ सम्पन्नता प्रदान करती है

पुरोडाशवत्सा सुदुधा लोकेऽस्मा उप तिष्ठति

सस्मै सर्वान्कामान्वशा  प्रददुशषे  दुह ।। अथर्व 12-4-35

Productive Cows fulfill all needs of the society

सवत्सा दुधारु गौ सब कामानाएं पूर्ण करती है

4.1.0.36 AV 12-4-36 Denying provision of cows leads to hell गो सेवा न  करना नरक देता है

सर्वान्कामान्ययमराज्ये वशा प्रददुशे दुहे  ।

अथहुर्नारकं लोकं निरुन्धा नस्य याचिताम् ।। अथर्व 12-4-36

Not making provision for good cows, denying cow products to the needy,

turns the society in to a living hell

गो सेवा से यम राज के यहां भी सब इच्छा पूरी होती हैं, परन्तु  गौ की  सेवा न  करने  से नरक

से छुटकारा नहीं मिलता।

4.1.0.37 AV 12-4-37 Cows denied mating are angry cows

गौ को वृषभ आवश्यक है

प्रवीयमाना  चरति क्रुद्धा गोपतये वशा ।

वेहतं मा मन्यमानो  मृत्योः पाशेषु बध्यताम् ।। अथर्व 12-4-37

Denial of breeding to good cows makes them infertile makes cows angry

and curse the keepers to Death.

(Modern practice of artificial insemination is known to  cause infertility. This

is a challenge for modern Dairy Practice.))

गौ को वृषभ का सहवास न  मिलने  पर गौ क्रोधित और बांझ होने

लगती  हैं। (क्रित्रिम गर्भाधान में गौ बांझ होने लगती हैं )

4.1.0.38 AV 12-4-38 Cow Breeding facility

गौ प्रजनन व्यवस्था

यो वेहतं मन्यमानो ऽमा च पचते वशा ।

अप्यस्य पुत्रान्‌ पौत्रांश्च याचयते बृहस्पति ।। 12-4-38

Neglect of breeding a good cow makes the coming  generation of society in

to beggars

जिस समाज में गौ प्रजनन सुव्यवस्थित नहीं होता वहां के लोग भीख मांगते हैं।

Pasture Significance गोचर महत्व

4.1.0.39 AV 12-4-39 Pastures should have free access गोचर महत्व

महदेषाव तपति चरन्ति  गोषु गौरपि ।

अथो ह गोपतये वशाददुषे विषं दुहे ।। अथर्व 12-4-39

Barriers in pastures angers the cows, the milk from such cows is likened to

poison. (महदेषाव – Big barriers)

(This fact is fully supported by latest dairy

science researches. Only milk of green forage fed cows is rich Essential

Fatty acids-Omega3 & Omega 6 and has much lower saturated fat content

and is rich with all Carotenoids. This is confirmed by the researches

shown here.)

भारतीय समाज में मन्यु (बोध जन्य क्रोध) का महत्व

sparta

भारतीय समाज में मन्यु (बोध जन्य क्रोध)  का महत्व 

साधारण हिंदी में  मन्यु का अर्थ क्रोध लिया जाता है . यह इसी बात का परिचायक है हम मन्यु शब्द  का अर्थ तक भूल गये हैं भारत वर्ष  में महाभारत काल में ही समाज में मन्यु का अभाव  दिखायी  देने  लगा था. वास्तव  में कृष्ण द्वारा  अर्जुन को  गीता का उपदेश वैदिक  मन्यु  का  ज्ञान ही  तो है. दुष्टों  के अन्याय के विरुद्ध आक्रोश और  संग्राम  तो  मानव  का कर्तव्य  बनता है. भगवान  राम का लन्केश रावण के दुष्टाचार से समाज का उद्धार मन्यु ही तो था. मर्यादा पुरुषोत्तम  से  क्रोध  की तो अपेक्षा ही नहीं  की जा सकती . बोध जन्य क्रोध  को मन्यु  कहते  हैं .इसीलिए  वैदिक प्रार्थना है  –  “मन्युरसि मन्युं मयि धेहि, हे दुष्टों पर क्रोध करने वाले (परमेश्वर) ! आप दुष्ट कामों और दुष्ट जीवो पर क्रोध करने का स्वभाव मुझ में  भी  रखिये यजुर्वेद – 19.9”. मनन उपरांत  उग्रता  मन्यु है अन्याय दुष्ट आचरण से समझौता करना दुष्टाचरण को समाप्त नहीं  करता वरन्च दुष्टाचार को  बढावा ही देता है.   क्या यह भारत वर्ष का ही नहीं समस्त मानव इतिहास  बताता है. महाभारत  काल   के पश्चात ऐसा लगता है कि भारतीय समाज मन्यु  विहीन हो गया.  तभी तो हम सब दुष्टों के व्यवहार को परास्त न कर के , उन से समझौता करते चले  आ रहे  हैं हिंदु धर्म  में वैदिक काल से यम नियम द्वारा अहिंसा  मानव मात्र का  कर्तव्य  है. परन्तु  अहिंसा का अर्थ  मन्यु विहीन होना कदापि नहीं  है.  अहिंसा परमो  ध्रर्मः के  अर्थ का  बोध पूर्वक  संज्ञान होना चाहिये.

समाज, राष्ट्र, संस्कृति की सुरक्षा के लिए, मन्यु कितना मह्त्व का  विषय है यह इस बात से सिद्ध होता है कि ऋग्वेद मे पूरे दो सूक्त केवल मन्यु पर हैं. और इन्हीं दोनो सूक्तों का अथर्व वेद मे पुनः उपदेश मिलता है.

 अग्निरिव मन्यो तविषितः, विद्मा तमुत्सं आबभूथ, मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः वेद यह भी निर्देश देते हैं कि मन्यु एक दीप्ति है जिस का प्रकाश यज्ञाग्नि द्वारा मानव हृदय में होता है. हृदय के रक्त के संचार मे मन्यु का उत्पन्न होना बताते है. मन्यु यज्ञाग्नि से ही उत्पन्न जातवेदस सर्वव्यापक वरुण रूप धारण करता है.

परन्तु वेदों मे इस बात की भी सम्भावना दिखायी है,कि कभी कभी समाज में , परिवार में विभ्रान्तियों, ग़लतफहमियों, मिथ्याप्रचार के कारण भी सामाजिक सौहार्द्र में आक्रोश हो सकता है. ऐसी परिस्थितियों में आपस में वार्ता, समझदारी से आपसी मनमुटाव का निवारण कर, प्रेम भाव सौहर्द्र पुनः स्थापित किया जाना चाहिये.

 Rig Veda Book 10 Hymn 83 same as AV 4.32

यस्ते मन्योSविधद्वज्र सायक सह ओजः पुष्यति विश्वमानुषक | 

साह्याम दासमार्यं त्वया युजा सहस्कृतेन सहसा सहस्वता || ऋ10/83/1

(वज्र सायक मन्यो)  Confidence is  born out of  being competently equipped and trained to perform a job.

हे मन्यु, जिस ने तेरा आश्रयण किया है, वह अपने शस्त्र सामर्थ्य को, समस्त बल और पराक्रम को निरन्तर पुष्ट करता है.साहस से उत्पन्न हुवे बल और परमेश्वर के साहस रूपि सहयोग से समाज का अहित करने वालों पर  बिना मोह माया ( स्वार्थ, दुख) के यथा योग्य कर्तव्य करता  है.

मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास देवो मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः |
मन्युं विश ईळते मानुषीर्याः पाहि नो मन्यो तपसा सजोषाः || ऋ10/83/2

मन्युदेव इंद्र जैसा सम्राट है. मन्युदेव ज्ञानी सब ओर से प्रचेत ,सचेत तथा धनी वरुण जैसे गुण वाला है  .वही यज्ञाग्नि द्वारा समस्त वातावरण और समाज मे कल्याण कारी तप के उत्साह से सारी मानव प्रजा का सहयोग प्राप्त करने मे समर्थ होता है. (सैनिकों और अधिकारियों के मनों में यदि मन्यु की उग्रता न हो तो युद्ध में सफलता नहीं हो सकती. इस प्रकार युद्ध में  मन्यु ही पालक तथा रक्षक होता है.)

अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान् तपसा युजा वि जहि शत्रून् |
अमित्रहा वृत्र हा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं नः || ऋ10/83/3

हे वज्ररूप, शत्रुओं के लिए अन्तकारिन्‌ , परास्त करने की शक्ति के साथ उत्पन्न होने वाले, बोध युक्त क्रोध ! अपने कर्म के साथ प्रजा को स्नेह दे कर अनेक सैनिकों के बल द्वारा समाज को महाधन उपलब्ध करा.

त्वं हि मन्यो अभिभूत्योजाः सवयंभूर्भामो अभिमातिषाहः |
विश्वचर्षणिः सहुरिः सहावानस्मास्वोजः पर्तनासु धेहि || ऋ10/83/4

हे बोधयुक्त क्रोध मन्यु!  सब को परास्त कारी ओज वाला, स्वयं सत्ता वाला, अभिमानियों का  पराभव  करने वाला , तू विश्व का शीर्ष नेता है. शत्रुओं के आक्रमण को जीतने वाला विजयवान है. प्रजाजनों, अधिकारियों, सेना में अपना ओज स्थापित कर.

अभागः सन्नप परेतो अस्मि तव क्रत्वा तविषस्यप्रचेतः |
तं त्वा मन्यो अक्रतुर्जिहीळाहं स्वा तनूर्बलदेयाय मेहि ||ऋ10/83/5

हे त्रिकाल दर्शी मन्यु, तेरे वृद्धिकारक  कर्माचरण से विमुख हो कर मैने तेरा निरादर किया है ,मैं पराजित  हुवा हूँ. हमें अपना बल तथा ओज शाली स्वरूप दिला.

अयं ते अस्म्युप मेह्यर्वाङ्  प्रतीचीनः सहुरे विश्वधायः |
मन्यो वज्रिन्नभि मामा ववृत्स्व हनाव दस्यूंरुत बोध्यापेः || ऋ10/83/6

हे प्रभावकारी समग्र शक्ति प्रदान करने वाले मन्यु, हम तेरे अपने हैं .  बंधु अपने आयुध और बल के साथ हमारे पास लौट कर आ, जिस से हम तुम्हारे सहयोग से सब अहित करने वाले शत्रुओं पर सदैव विजय पाएं.

अभि प्रेहि दक्षिणतो भवा मे Sधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि |
जुहोमि ते धरुणं मध्वो अग्रमुभा उपांशु प्रथमा पिबाव ||ऋ10/83/7

हे मन्यु , मैं तेरे श्रेष्ठ भाग और पोषक, मधुररस की स्तुति करता हूं . हम दोनो युद्धारम्भ से पूर्व अप्रकट मंत्रणा करें ( जिस से हमारे शत्रु को हमारी योजना की पूर्व जानकारी न हो). हमारा दाहिना हाथ बन, जिस से हम राष्ट्र  का आवरण करने वाले शत्रुओं पर विजय पाएं.

Rig Veda Book 10 Hymn 84 same as AV 4.31

त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणासो धर्षिता मरुत्वः |
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्निरूपाः || ऋ10/84/1 अथव 4.31.1

हे  मरने  की अवस्था में भी उठने की प्रेरणा देने  वाले  मन्यु , उत्साह !  तेरी सहायता से रथ सहित शत्रु को विनष्ट करते हुए और स्वयं आनन्दित  और प्रसन्न चित्त हो कर  हमें उपयुक्त शस्त्रास्त्रों से अग्नि के समान तेजस्वी नेत्रित्व  प्राप्त हो.

अग्निरिव मन्यो तविषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि

हत्वाय शत्रून् वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व ||ऋ10/84/2 अथर्व 4.31.2

हे उत्साह रूपि मन्यु तू अग्नि का तेज धारण कर, हमें समर्थ बना. घोष और  वाणी से आह्वान  करता हुवा  हमारी सेना  को नेत्रित्व प्रदान करने वाला हो. अपने शस्त्र बल को नापते  हुए  शत्रुओं को परास्त कर के हटा दें.

सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन् मृणन् प्रमृन् प्रेहि शत्रून्

उग्रं ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम् || ऋ10/84/3अथर्व 4.31.3

अभिमान करने वाले शत्रुओं को नष्ट करने का तुम अद्वितीय  सामर्थ्य रखते हो.

एको बहूनामसि मन्यवीळितो विशं-विशं युधये सं शिशाधि |
अकृत्तरुक त्वया युजा वयं द्युमन्तं घोषं विजयाय कर्ण्महे || ऋ10/84/4अथर्व 4.31.4

हे मन्यु बोधयुक्त क्रोध अकेले तुम ही सब सेनाओं और प्रजा जनों का उत्साह बढाने वाले हो. जयघोष और सिन्ह्नाद सेना और प्रजा के पशिक्षण में  दीप्ति का प्रकाश करते हैं वह  तुन्हारा ही प्रदान किया हुवा है.


विजेषकृदिन्द्र इवानवब्रवो Sस्माकं मन्यो अधिपा भवेह |
प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्मा तमुत्सं आबभूथ ||  ऋ10/84/5अथत्व 4.31.5

मन्यु द्वारा विजय कभी निंदनीय नहीं होती. हम उस प्रिय मन्यु के उत्पादक  रक्त के संचार करने वाले हृदय  के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें.

आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बिभर्ष्यभिभूत उत्तरम |
क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूतसंसृजि ||ऋ10/84/6  अथर्व 4.31.6

दिव्य सामर्थ्य उत्पन्न कर के उत्कृष्ट बलशाली मन्यु अपनी सम्पूर्ण शक्ति से अनेक स्थानों पर पुकारे जाने पर उपस्थित हो कर, हमे  महान ऐश्वर्य युद्ध मे  विजय प्रदान करवाये.

संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं दत्तां वरुणश्च मन्युः | 

भियं दधाना हर्दयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम् || ऋ10/84/7  AV4.31.7

हे मन्यु ,  बोधयुक्त क्रोध , समाज के शत्रुओं द्वारा (चोरी से) प्राप्त प्रजा के धन को तथा उन शत्रुओं  के द्वारा राष्ट्र से पूर्वतः एकत्रित किये  गये  दोनो प्रकार के धन को शत्रु के साथ युद्ध में जीत कर सब प्रजाजनों अधिकारियों को प्रदान कर (बांट). पराजित शत्रुओं के हृदय में इतना भय उत्पन्न कर दे कि वे निलीन हो जाएं.

( क्या यह स्विस बेंकों मे राष्ट्र के धन के बारे में उपदेश नहीं है)

Atharva 6/41

मनसे चेतसे धिय आकूतय उत चित्तये !

मत्यै श्रुताय चक्षसे विधेम हविषा वयम् !! अथर्व 6/41/1

(मनसे) सुख दु:ख आदि को प्रत्यक्ष कराने वाले मन के लिए (चेतसे) ज्ञान साधन चेतना के लिए (धिये) ध्यान साधन बुद्धिके लिए (आकूतये) संकल्प  के लिए (मत्यै) स्मृति साधन मति के लिए, (श्रुताय) वेद ज्ञान के लिए ( चक्षसे) दृष्टि शक्ति के लिए (वयम) हम लोग (हविषा विधेम) अग्नि मे हवि द्वारा यज्ञ करते हैं.

भावार्थ: यज्ञाग्नि के द्वारा उपासना से मनुष्य को सुमति, वेद ज्ञान,चैतन्य, शुभ संकल्प, जैसी उपलब्धियां होती हैं जिन की सहायता से जीवन सफल हो कर सदैव सुखमय बना रहता है.

अपानाय व्यानाय प्राणाय भूरिधायसे !

सरस्वत्या उरुवव्यचे विधेम हविषा वयम !! अथर्व 6/41/2

(अपानाय व्यानाय) शरीरस्थ प्राण वायु के लिए (भूरिधायसे)अनेक प्रकार से धारण करने वाले (प्राणाय) प्राणों के लिए (उरुव्यचे) विस्तृत गुणवान सत्कार युक्त (सरस्वत्यै) उत्तम ज्ञान की वृद्धि के लिए (वयम हविषा विधेम) हम अग्नि मे हवि द्वारा द्वारा होम करते हैं.

भावार्थ: प्राणापानादि शरीरस्थ प्राण वायु के विभिन्न व्यापार मानव शरीर को सुस्थिर रखते हैं. इन्हें कार्य क्षेम रखने के लिए युक्ताहार विहार के साथ प्राणायामादि के साथ यज्ञादि संध्योपासना प्राणों को ओजस्वी बनाने के सफल साधन बनते हैं

मा नो हासिषुरृषयो दैव्या ये तनूपा ये न तन्वस्व्तनूजा: !

अमर्त्या मर्तयां अभि न: सचध्वमायुर्धत्त प्रतरं जीवसे न: !! अथर्व 6/41/3

(ये) जो (दैव्या ऋषिय:) यह दिव्य सप्तऋषि(तनूपा) शरीर की रक्षा करने वाले हैं (ये न: तन्व: तनूजा) ये जो शरीर में इंद्रिय रूप में स्थापित हैं वे (न: मा हासिषु) हमें मत छोडें .(अमर्त्या:) अविनाशी देवगण (मर्त्यान् न) हम मरण्धर्मा लोगों को (अभिसचध्वं) अनुगृहीत करो, (न: प्रतरं आयु:) हमारी  दीर्घायु  को (जीवसेधत्त) जीवन के लिय समर्थ करें( इसी संदर्भ में “ शुक्रमुच्चरित ” द्वारा ऊर्ध्वरेता का भी महत्व बनता है  शरीरस्थ सप्तृषि: सात प्राण, दो कान (गौतम और भरद्वाज ज्ञान को भली भांति धारण करने से भरद्वाज) दो चक्षु (विश्वामित्र और जमदग्नि जिस से ज्योति चमकती है) दो नासिका (वसिष्ठ और कश्यप प्राण के संचार का मार्ग), और मुख (अत्रि:)

Resolve Misperceptions – भ्रांति निवारण

 Negotiations

अव ज्यामिव धन्वनो मन्युं तनोमि ते हृदः!

यथा संमनसौ भूत्वा सखायाविव सचावहै !! अथर्व 6.42.1

असह्य व्यवस्था के विवेकपूर्ण  चिन्तन  करने से ज्ञान दीप्ति द्वारा मित्रों की तरह सुसंगत होने का भी प्रयास करना चाहिए.

Possible misapprehensions leading to public unrest /family discords should be resolved by better understanding. Angry situations may thus be resolved to establish peace and harmony.

Bury the hatchet- शांति वार्ता

सखायाविव सचावहा अव मन्युं तनोमि ते !

अघस्ते अश्मनो मन्युमुपास्यामसि यो गुरुः !! अथर्व 6.42.2

परिवार में समाज में विभ्रान्ति

Anger caused by misunderstandings should be resolved to establish friendly atmosphere. Anger should be forgotten as if buried under a heavy stone.

Restore Amity-सौहार्द्र पुनः स्थापन

अभि तिष्ठामि ते मन्युं पार्ष्ण्या प्रपदेन च !

यथावशो न वादिषो मम चित्तमुपायसि !! अथर्व 6.42.3

Public Anger should be forgotten for the hearts to become one. This is as if the anger had been crushed under the heels

यज्ञाग्नि का हृदय में स्थापित्य से क्षत्रियत्व का प्रभाव

अथर्व 6.76

1.य एनं परिषीदन्ति समादधति चक्षसे ! संप्रेद्धो अग्निर्जिह्वाभिरुदेतु  हृदयादधि अथर्व 6.76.1

जो इस  यज्ञाग्नि के चारों ओर बैठते हैं , इस की उपासना करते हैं, और दिव्य दृष्टि के लिए इस का आधान करते हैं , उन के हृदय के ऊपर प्रदीप्त हुवा अग्नि अपनी ज्वालाओं से उदय हो कर क्षत्रिय गुण प्रेरित करता है.

2.अग्नेः सांत्पनस्याहमायुषे पदमा रभे ! अद्धातिर्यस्य पश्यति धूममुद्यन्तमास्यतः !!अथर्व 6.76.2

शत्रु को तपाने  वाली अग्नि के (पदम्‌) पैर को, चरण को  (आयुषे) स्वयं की, प्रजाजन की, राष्ट्र की दीर्घायु के लिए (अह्म्‌) मैं ग्रहण करता हूँ . इस अग्नि के धुंए को मेरे मुख से उठता हुवा सत्यान्वेषी मेधावी पुरुष देख पाता है.

3.यो अस्य समिधं वेद क्षत्रियेण समाहिताम्‌ ! नाभ्ह्वारे पदं नि दधाति स मृत्यवे !! अथर्व 6.76.3

जो प्रजाजन इस धर्मयुद्ध की  अग्नि को देख पाता है, जो क्षत्रिय धर्म सम्यक यज्ञाग्नि सब के लिए समान रूप से आधान की जाती है. उसे समझ कर प्रजाजन कुटिल छल कपट की नीति को त्याग कर मृत्यु के लिए पदन्यास नहीं करता.

4. नैनं घ्नन्ति पर्यायिणो न सन्नाँ अव गच्छति! अग्नेर्यः क्ष्त्रियो विद्वान्नम गृह्णात्यायुषे !! अथर्व 6.76.4

जो सब ओर से घेरने वाले शत्रु हैं वह इस आत्माग्नि  का सामना नहीं  कर पाते, और समीप रहने वाले भी इस को जानने में असमर्थ रहते हैं. परन्तु जो ज्ञानी क्षत्रिय   धर्म ग्रहण करते हैं वे हुतात्मा अमर हो जाते हैं .

 

प्रकृति का वरदान – मधुविद्या

natures bounty

RV6.70 Nature’s bounties

Including Honey Doctrine

प्रकृति का वरदान – मधुविद्या

ऋषि:- बार्हस्पत्यो भारद्वाज: । देवता:- द्यावापृथिवी । जगती।

बार्हस्पत्यो -विद्वानों का भी विद्वान, भारद्वाज:- अत्यन्त शक्ति  से

सम्पन्न

इस सूक्त की व्याख्या में तीन बड़े महत्वपूर्ण शब्द प्रयुक्त हुए हैं.

घृत: – घृतवती,घृतश्रिया , घृतपृचा , घृतावृधा – घृत को स्नेहन भी कहते हैं- जीवन में सदा स्नेहयुक्त

 मनमुटाव रहित रहने से समाज में सौहर्द्र , संगठित रहने से समाजशक्ति , अस्पृश्यता भेदभाव जैसी  विकृतियों के स्थान पर समृद्ध  सुखमय समाज का निर्माण देखा जाता है.

मधु – स्नेह युक्त होना ही तो मधु जैसा मिठास जीवन में स्थापित करताहै. भारतीय दर्शन में मधुविद्या का बड़ा महत्व दिखाया

In proper understanding this sookt three words described below have to be considered in their wider context.

1.घृत ;-

Ghrit;- Commonly it is  known as ghee.  Ghee is also performs the function of a Lubricant. Metaphorically in personal relations Ghrit by removing friction adds to closeness, feelings of calm, mutual cooperation and affection. To the human body Ghrit provides strength and wellbeing. Thus Ghrit while it provides physical health and wellbeing to human body, metaphorically it provides the society with calm pleasant cooperative attitudes.

2.मधु ;   

Madhu Vidya is elaborately dealt with in Bridaranyakopanishad  2.5.(बृहदाराण्यकोपनिषद 2.5)

Basic premise is that honey is a sweet and highly desired material, both literally and metaphorically. Honey has physically sweet taste and stimulates health. Metaphorically Honey promotes by sweet agreeability and happy peace in all situations and experiences in life.

It is also not possible to trace as to which bee picked which flower for which part of this honey. Similarly in life pleasant living is made up as  the sum total of contributions of very small sweet agreeable, compliments from all elements the earth, unpolluted air, water, our pets, our relations, friends, colleagues, strangers on the street, innumerable sources that  are hard to identify individually.  Thus like honey there is no traceability for happiness in life.

As Upanishad says; Iyam pṛthivī sarveṣᾱṁ bhῡtᾱnᾱm madhu:

This earth is the honey of all beings. It is the essence and milk of all beings. People suck this earth as if they suck honey which has such a beautiful taste; and earth sucks everybody and everything as if they are honey to it. The earth is the honey of all, and everyone is the honey of the earth. The earth is absorbed into the ‘being’ of everything, and everything is absorbed into the ‘being’ of the earth. That is the meaning of saying that earth is the honey of all beings, and all beings are the honey of the earth. It is the honey that you absorb into your being by sucking, by licking, by enjoying, by making it a part of your own ‘being’. So does the earth make everything a part of its own ‘being’ by absorbing everything into itself. And so does every ‘being’ in the world suck the earth into itself and make it a part of its own ‘being’.

3.असश्चन्ती ;-Stands for selfless, anonymous actions without seeking rewards of actions  for self. This is what Ved describes in -कुर्वेन्नेवेह्कर्माणि जिजीविषेच्छत^ समा: | एवं त्वयि नान्यथेतो न कर्म लिप्यते नरे || यजु 40.2 , And Geeta ;कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते सङ्गोsस्त्वकर्मणि || 2.47

Food Safety – Security  जैविक पदार्थ

1.घृतवती भुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वी मधुदुघे सुपेशसा ।
द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कभिते अजरे भूरिरेतसा ।।AV 6.70.1

सम्पूर्ण पृथ्वी  भूमि और सौर ऊर्जा द्वारा प्रकृति के(वरुणस्य) सर्वव्यापी  नियमों  की व्यवस्था में  सदैव उत्तम माधुर्य लिए हुए (अन्नदि) पौष्टिक (स्वास्थ्य हितकारी) वीर्यवर्धक पदार्थों को प्रदान करने की अक्षय क्षमता रखती है.

(पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भूमि की उर्वरकता,  प्रदूषन रहित कार्य योजना और सौर  ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग का उपदेश इस वेद मंत्र से प्राप्त होता है )

Nature’s omnipotent omnipresent laws by combination of land and sun tirelessly supply of highly nutritious sweet (food) products from the entire expanse of land.
Biodiversity जैव विविधता का महत्व

2.असश्चन्ती भूरिधारे पयस्वती घृतं दुहाते सुकृते शुचिव्रते ।
राजन्ती अस्य भुवनस्य रोदसी अस्मे रेत: सिञ्चतं यन्मनुर्हितं ।।AV 6.70.2

भिन्न भिन्न क्षेत्रों में परस्पर स्वतंत्र रूप से स्थापित पर्यावरण द्यावा पृथिवी,सब जीव पशु, पक्षी, पर्यावरण के हितों की सुरक्षा से  मानव के पवित्र हितों की रक्षा के लिए जीवन को पवित्र मानसिकता और पौरुष प्रदान करने वाले सब सात्विक दूध, घी,  इत्यादि साधन प्राप्त कराते हैं. ( इस मंत्र में मानव जीवन के हित में जैव विविधता का महत्व दर्शाया गया है.)

Different diverse seemingly independent unconnected species of Nature make vital complimentary contributions to make available sustainable non corrupting disease free healthy food and environment.

 Innovations आविष्कार महत्व

3.यो वामृजवे क्रमणाय रोदसी मर्तो ददाश धिषणे स साधति ।
प्र प्रजाभिर्जायते धर्मणस्परि युवो: सिक्ता विषुरूपाणि सव्रता ।।AV 6.70.3

जो बुद्धिमान समाज को जन प्रकृति के  साधनों के  सरल अधिक लाभकारी मार्ग  दर्शाते हैं  वे समाज में धर्मानुसार जीवन आचरण की व्यवस्था स्थापित करने मे सहायक बनते हैं.

Devise innovative & simple processes to employ the natural complimentary bounties of naturally available resources like people, animals, sun and land, and provide society and its progeny with traditions of just and better sustainable lifestyle.

Rains वृष्टि जल

4.घृतेन द्यावापृथिवी अभीवृते घृतश्रिया घृतपृचा घृतावृधा ।
उर्वी पृथ्वी होतृवूर्ये पुरोहिते ते इद् विप्रा ईळते सुम्नमिष्टये ।।AV 6.70.4

वर्षा के जल घृत की तरह अत्यंत महत्वपूर्ण गुणवान और सर्वव्यापी  हैं.  पृथ्वी की  ऊर्वरक बनाने के साथ साथ इन की गुणवत्ता  विद्वत्जनों के जीवन में इष्ट की पूर्ति के लिए यज्ञादि सात्विक कर्मों के प्रेरक हैं.

All encompassing rain waters are of great importance and bring glory, satiation and growth. They provide soil with riches to promote bliss and enlightened temperaments in wise persons to perform yajnas to achieve their goals.

Honey Doctrine (Sweetness/happiness in life) मधुविद्या

5.मधु न: द्यावापृथिवी मिमिक्षतां मधुश्चुता मधुदुघे मधुव्रते ।
दधाने यज्ञं द्रविणं च देवता महि श्रवो वाजमस्मे सुवीर्यम् ।। AV6.70.5

जीवन में  सब ओर से क्षरित मधु जैसा धन धान्य स्वास्थ्य  युक्त प्रसन्न  चित्त समाज में यज्ञादि (दान,देवपूजा,संगतिकरण) के परिणाम होते हैं. यज्ञ ही मधुविद्या है.

All things that endow with all pervading, health wealth and happiness and derive from Nature’s resources on earth and atmosphere above it are results of efforts that are made selflessly, in charity and cooperation   in all walks of life like performing Yajnas.  And result in providing to all life desirable like sweet honey. ( All actions that in combination consist of  Charity, Care of environments, and Collective good for society are called Yajnas in Vedic terminology. )

6.ऊर्जं न: द्यौश्च पृथिवी च पिन्वतां पिता माता विश्वविदा सुदंससा ।
सं रराणे रोदसी विश्वशंभुवा सनिं वाजं रयिमस्मे समिन्वताम् ।।AV 6.70.6

द्युलोक वृष्टि  के जल द्वारा  सेचन करने से पिता समान है, उस जल को धारण करने वाली पृथ्वी माता समान है,और ये दोनो पृथिवी लोक,  प्राण शक्ति , अन्न , ऊर्जा,  बल और सब आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाले हैं . ये द्यावापृथिवी सब को उपकार भाव से सुख शांति दे कर सब दुखों को दूर करते हैं .  समाज अपने हित में इस सत्मार्ग पर सदैव चले.

Nature’s action to bless us with Rain is likened to actions of a father, and earth’s action in receiving the rains and provide for our welfare are likened to the actions of a mother. Nature thus like both the parents provides us with all that is required to sustain us – breath of life, food, energy, comfort and happiness, remove our miseries and discomfort . To ensure this it is required of us to follow in correct path and behavior.

 

मनसापरिक्रमा विषय

energy everywhere

About Mansaparikrama  मनसापरिक्रमा विषय

AV3.26 & 3.27  

दो अथर्व वेद सूक्त 3.26 और 3.27 एक ही विषय पर समष्टि और व्यष्टि  रूप से उपदेश द्वारा मानव जीवनके मार्ग का निर्देश करते हैं. दोनों को एक साथ स्वाध्याय पर आधारित  मेरे  व्यक्तिगत विचार विद्वत्जनों के टिप्पणि के लिए प्रस्तुत हैं .

Two Atharv ved sookts 3.26 and 3.27 appear to give guidance on the same subject , AV3.26 on macro level and AV3.27 on micro earthly level. My personal understanding and interpretation of these two complimentary Vedic sookts is submitted for consideration and comments of learned persons

ऋषि:- अथर्वा |  देवता-अन्न्यादय: नाना देवता

  1. येऽस्यां स्थ प्राच्यां दिशि हेतयो नाम देवास्तेषां वो अग्निरिषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.1

 

पूर्व दिशा में हमारे  सम्मुख  स्थित (सूर्य) प्रत्यक्ष रूप से तम के  आसुरी भावों   (आलस्य, निद्रा , प्रमाद  , अवसाद जैसी तामसिक अंधकारमयी वृत्तियों का ) नाश कर के समस्त संसार को रात्रि की निद्रा से उठा कर स्वप्रेरित  दैनिक दिनचर्या में उद्यत  करता है |  सूर्याग्नि –ऊर्जावान  देवत्व से उपलब्ध निरन्तर चरैवेति चरैवेति प्रगतिशील  कर्मठता  की  प्रेरणा देता है. यही हमारे सुखों का साधन होता है,  विद्वत्जन- वेद विद्या ,  इस ( सुर्याग्नि)  की ऊर्जा  के विज्ञान का अनुसंधान करें और  हमें उपदेश करें, जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के यज्ञाहुति  अर्पित  करते हैं. (यही संदेश ‘तमसोमामृतं गमय मृत्योर्मामृतं गमय’  में निहित है. एक उदाहरण के लिए संसारिक भौतिक सुख साधनों में आत्मचिंतन द्वारा आधुनिक विद्युत उत्पादन द्वारा पर्यावरण की हानि   को देखते हुए सौर ऊर्जा के प्रयोग मे प्रगति इसी दिशा में प्रगति  का द्योतक है. कहा जा रहा है कि जर्मनी शीघ्र ही अपनी विद्युत उत्पदनकी आवश्यकता का 80%  सौर  ऊर्जा द्वारा प्राप्त करने का लक्ष्य पा लेगा. इसी प्रकार स्वीडन निकट भविष्य में अपने 80%  वाहनों को अर्यावरण को क्षति पहुंचानेवाले डीज़ल पेट्रोल की बजाए पुरीष इत्यादि नागरिक कूड़े कचड़े से गैस उत्पाद से चला पाएगा. )

In the East in front of us as sun rises all negative dark tendencies (of sleepiness, laziness, procrastination, and despondency) are dispelled. Entire world by itself wakes up from rest & slumber of night and sets about its daily chores. Sun provides the inspiration to be activated with energy in our efforts to make continuous progress. This is the forbearer of our comforts in life; learned persons should explore these energy sciences and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to the Almighty and follow him with full dedication by making our offerings in Agnihotra .

( This is the essence of Vedic exhortation  ‘तमसोमामृतं गमय मृत्योर्मामृतं गमय’ . One example is that on realising the threat and damage to environments and population by reliance on fossil fuels and damage to ecology in conventional methods of electricity generation, Germany is aiming to reach the target of producing 80% of its electricity needs by Solar cogeneration. Similarly Sweden is aiming to make use of its municipal waste methane production to replace 80% of its fossil fuel needs in transport sector.)

1.प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । ।AV3.27.1 

प्राची पूर्व की दिशा में सूर्याग्नि अधिपति स्वामी  है, जो स्वतंत्र हैं  और सीमा बद्ध नहीं हैं . इन की रश्मियां (पृथ्वी पर आने वाले ) बाण स्वरूप हैं जो( भिन्न भिन्न प्रकार से)  हमारी रक्षा करते हैं.  इस सूर्य देवता को हम नमन करते हैं. उस के इन  रक्षक बाणों के प्रति हम नमन करते हैं | और जो हम से द्वेष करने वाले (तमप्रिय) रोगादि शत्रु हैं उन्हें ईश्वरीय न्याय पर  छोड़ते हैं.

In the East infinite and independent solar radiations are directed like missiles to provide energy and protection us (in many forms known as photo biology in science). We show our gratefulness to Sun for these bounties and leave our enemies such as sloth and pathogens at his disposal to deal with.

२ .येऽस्यां स्थ दक्षिणायां दिश्यविष्यवो नाम देवास्तेषां वः काम इषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.2

दक्षिण  दाहिने हाथ में स्थित कार्य कुशलता परिश्रम का संकल्प हमारे जीवन में सुरक्षा  प्रदान करने का मुख्य साधन है.  विद्वत्जन- वेद विद्या से प्रेरणा लेकर  ,  (कार्यकौशल-कृष्टी) तकनीकी  विज्ञान का (अनुसंधान करें) और  हमें उपदेश करें, जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.और जो हमारे अभ्युदय मे बाधक शत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं.

In our right hand dwell the dexterous life support skills. The resolve to lead skilful action oriented life ensures self preservation and protection. Learned persons should research and develop science and technologies and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to them and make our offerings in Agnihotra dedicated to Him..

2.दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषवः।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.2

दक्षिण – दाहने  हाथ से कर्म प्रधान जीवन का संकल्प हमारे भीतर इन्द्र का दैवत्व स्थापित करता है.(इन्द्र का भी तो  आचरण स्वयं में निर्दोष  नहीं था)  अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मतान्ध बुधि भ्रष्ट हो  कर हम  अपना संतुलन खो सकते हैं और  (तिरश्चिराजी) जैसे कुछ टेढ़े मेढ़े रास्ते  भी  अपना लेते हैं . ऐसे अवसरों पर हमारे पितरों  का, पूर्व जनों का,  शास्त्रों का  मार्ग दर्शन हमारे लिए ठीक दिशा में कार्य करने लिए हमें  दिशा निर्देश करता  है . इस इन्द्र देवत्व  के प्रति हम प्रणाम करते हैं , इंद्र द्वारा  जीवन में सुरक्षा प्रदान करने वाली उपलब्धियों को हम प्रणाम करते हैं . और जो हम से द्वेष करने वाले  हमारे अभ्युदय मे बाधक शत्रु हैं उन्हें ईश्वरीय न्याय पर  छोड़ते हैं.

  1. येऽस्यां स्थ प्रतीच्यां दिशि वैराजा नाम देवास्तेषां व आप इषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । AV3.26. 3

प्रतीची दिशा में हमारी पीठ के पीछे की दिशा में (वैराजा:) अन्न के स्वामी – कृषक जन और (देवा: ) व्यवहारी अर्थात व्यापारी जन स्थित हैं जिन के लिए जल (सिंचाई के लिए ) मुख्य बाण है, हमारे जीवन में सुरक्षा  प्रदान करने का मुख्य साधन है.  विद्वत्जन- वेद विद्या से प्रेरणा लेकर  ,  कृषि तथा जल  के विज्ञान का अनुसंधान करें और  हमें उपदेश करें,जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.

Unconcerned with our activities – behind our backs-without our urging, the growers of food and commercial interests operate to provide us with food security. Water resource is the most significant for their proper operations. Scientists should carry our researches in to food production and water utilizations and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to them and will follow with full dedication.

 3.प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नं इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.3

हमारे पीछे हमें बिना बताए वरुण देवता जल के भौतिक स्वरूप में  भूमि के नीचे हर स्थान पर पहुंच कर वहां  पलने वाले सूक्ष्माणुओं के अधिपति हैं. इन का दायित्व भूमि से उत्पन्न होने वाले अन्न के उत्पन्न करने की  सुरक्षा है. इस के लिए हम वरुण देवता को नमन करते हैं, उन के द्वारा इस प्रकार  अन्न  की सुरक्षा की व्यवस्था को हम नमन करते हैं . और जो हमारे शत्रु जन (इन प्रकृति के नियमों के विरुद्ध  चल कर  भूमि को जल विहीन, सूक्ष्माणुओं  रहित मरुस्थल  बना कर अनुपजाउ बना देते हैं ) उन्हें  हम ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं.

At our backs, (without our urging) Warun dewataa (through water) is in charge of  Rhiozosphere where he commands by reaching everywhere in the kingdom of microorganisms living in soil. Food grown thus is the protector of our lives . We prostate ourselves to Him, and for His bounties, and leave our enemies such as destroyers of Rhizosphere and the food products to face the harsh justice of Nature.  (Modern environmental science confirms that by damaging the Rhizosphere micro flora man is turning fertile lands in to barren life less food less deserts. This is result of Nature’s relentless justice.)

  1.  येऽस्यां स्थोदीच्यां दिशि प्रविध्यन्तो नाम देवास्तेषां वो वात इषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.4

 polar area

    Aurora borealis उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टिगोचर प्रचण्ड प्रकाश

 

यह जो उत्तर दिशा में हमारे बाएं ओर  वेगवान वायु द्वारा (पृथ्वी को) बींधने वाले  प्रक्षेपित बाण हैं ( जिन के कारण यह प्रचंड प्रकाश  दृष्टिगोचर होता है)  वे हमे आनंद प्रदान करें . जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.

(इस वेद मंत्र में ऋषियों ने पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टिगोचर प्रचण्ड प्रकाश को देख कर चिंतन के आधार पर अंतरिक्ष में अपार विद्युत के स्रोत की कल्पना की थी.  उसी भविष्यवाणी को आज का वैज्ञानिक यथार्थ में देखने का प्रयास करता दीखता है . आधुनिक विज्ञान के अनुसार आकाश में सूर्य  द्वारा प्रक्षेपित अत्यंत वेग प्रचंड प्रकाश  और गति से सूर्य की वायु समान उल्काएं   Solar winds आती  हैं . पृथ्वी के 100 किलोमीटर ऊपर उन के विस्फोट के  परिणाम स्वरूप एक ध्रुवीय ज्योति का प्रकाश पुंज दिखाइ  देता है . इस   उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टीगोचर आकाश में दिखाइ देने वाले प्रकाश को ओरोरा बोरिआलिस-Aurora Borealis उत्तरीय ध्रुव प्रकाश  नाम से जाना जाता है.  यह ज्योति पुंज पृथ्वी और सूर्य में निरन्तर एक विद्युत प्रवाह द्वारा क्रियामान  होता है.  इस विद्युत प्रवाह का वेग 50,000 वोल्ट की 20,000,000 एम्पीअर करेन्ट तक माना जाता है.  विख्यात वैज्ञानिक विद्युत के महान आविष्कारक निकोला टेस्ला  ने लगभग 100 वर्ष पूर्व अपने अनुसंधान पर आधारित आकाश में  इस अपरिमित विद्युत के भन्डार से पृथ्वी पर मानव की समस्त विद्युत की आवश्यकताओं को प्राप्त करने  की भविष्य वाणि की थी.

विद्युत को मोटर आदि चला कर प्रयोग में लाने के लिए वैज्ञानिक  Fleming’s Left Hand Rule फ्लेमिन्ग के बाएं  हाथ का नियम बताते  हैं . यह विद्युत क्रिया प्रकृति का सहज नियम है. )

(The aurora borealis (the Northern Lights) have always fascinated mankind. The solar wind and explosive events like coronal mass ejections (CMEs) carry solar plasma (primarily energetic protons) out in to the Earth’s orbit. Often, they interact with the geomagnetic field and spiral down toward the poles (where the magnetic field is directed). On interacting with the atmosphere, light is generated, producing the aurora.

Thus auroras, the north magnetic pole (aurora borealis) occur when highly charged electrons from the solar wind interact with elements in the earth’s atmosphere. Solar winds stream away from the sun at speeds of about 1 million miles per hour. When they reach the earth, some 40 hours after leaving the sun, they follow the lines of magnetic force generated by the earth’s core and flow through the magnetosphere, a teardrop-shaped area of highly charged electrical and magnetic fields. This phenomenon is said to take place above 100 Km of earth’s surface. All of the magnetic and electrical forces react with one another in constantly shifting combinations. These shifts and flows can be seen as the auroras lights “dance,” moving along with the atmospheric currents that can reach 20,000,000 amperes at 50,000 volts. (In contrast, the circuit breakers in your home will disengage when current flow exceeds 5-30 amperes at 220 volts.)Tesla the famous inventor of AC electricity and induction motor had a favourite research topic bordering on science fiction. It was visualized that it should be possible to tap in to the inexhaustible electrical energy in the auroras for our electricity needs by every individual to have a proper antenna in his home and draw all his electricity needs, without the present systems of electricity generation and transmission).The NASA Time History of Events and Macro scale Interactions during Sub storms (THEMIS) mission The “ropes” are a 650,000 Amp electric current flowing between the Earth and the sun.In utilization of electric power in applications involving motion activity

4.उदीची दिक्सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताशनिरिषवः।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.4

ये बांए  दिशा मे शरीर में स्थापित  मानव हृदय जो हमारी मानसिकता  में उत्पन्न मानव जीवन मूल्यों का भाव प्रधान है, जिस का सोम अधिपति है, उस के लिए प्रणाम |  मानव हृदय  स्वचालित  विद्युत नियन्त्रक नियम  से  सहज कार्य करता रहता है. यह  नियम संसार में  हमारे जीवन के सुखों का आधार बनता है. प्रकृति के इस दान के लिए हम अत्यन्त  आभारी हैं .  और इस दिशा में जो बाधा पहुंचाने वाले तत्व हैं उन्हें हम न्यायोचित परिणाम के लिए प्रकृति को ही समर्पित करते हैं .

(आधुनिक शारीरिक विज्ञान के अनुसार मानव हृदय जो निरंतर एक निश्चित गति से रक्त को  स्वच्छ कर के सारे शरीर में  शुद्ध  रक्त का संचार और दूषित पदार्थों का निकास कर  रहा है,  वह मानव शरीर मे प्रकृति द्वारा स्वत: उत्पन्न विद्युत प्रणाली के कारण से ही  है. ( यही  ऋषि  चिंतन में स्वजोरक्षिताशनि:इषव: का विज्ञान है )

इस अद्भुत विद्युत प्रणाली के लिए हम नमन करते हैं , इस व्यवस्था  के द्वारा हमारे शरीर की रक्षा  के लिए हम नमन करते हैं , और जो हमारे हृदय के सुचारु कार्य करने में बाधा रूपीशत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय व्यवस्था पर  छोड़ते   है.

On our left side is situated the ruler of all our motivations and emotions (our HEART).Its proper working operates and protects our physical body to ensures orderly life and human existence. For this blessing of Nature we are ever grateful.

{It was in deep meditation on the left side of human body that the Rishi could perceive the working of the human heart that operates continuously because it generates its own electrical  signal (also called an electrical impulse.

(Fleming’s Left Hand Rule on relations between electrical forces is very famous.  This motive action of heart electricity comes as a natural, property of electrical phenomenon. )

Modern medical science is able to record this electrical impulse  by placing electrodes on the chest. This is called an electrocardiogram (ECG, or EKG).The cardiac electrical signal controls the heartbeat in two ways. First, since each impulse leads to one heartbeat, the number of electrical impulses determines the heart rate. And second, as the electrical signal “spreads” across the heart, it triggers the heart muscle to contract in the correct sequence, thus coordinating each heartbeat and assuring that the heart works as efficiently as possible.

The heart’s electrical signal is produced by a tiny structure known as the sinus node, which is located in the upper portion of the right atrium. (You can learn about the heart’s chambers and valves here.) From the sinus node, the electrical signal spreads across the right atrium and the left atrium, causing both atria to contract, and to push their load of blood into the right and left ventricles. The electrical signal then passes through the AV node to the ventricles, where it causes the ventricles to contract in turn.

 

This left hand motor action natural property of electricity (Fleming’s Rule) provides us with great comforts in our life. For this act of kindness we are ever grateful to Nature and present the impediments in our path for Nature itself to resolve.

There is another more direct way to perceive a very close connection of self generated electricity with human body that could not escape a Rishi’s perception in meditation.  Human heart located on our left side of the body is self regulated by electronic oscillator at 60 to 70 beats per minute to make us live. Modern scientific explanation of the phenomenon is being furnished below.

heart

The rhythmic contractions of the heart which pump the life-giving blood occur in response to periodic electrical control pulse sequences. The natural pacemaker is a specialized bundle of nerve fibers called the sinoatrial node (SA node). Nerve cells are capable of producing electrical impulses called action potentials. The bundle of active cells in the SA node trigger a sequence of electrical events in the heart which controls the orderly pattern of muscle contractions that pumps the blood out of the heart.

The electrical potentials (voltages) that are generated in the body have their origin in membrane potentials where differences in the concentrations of positive and negative ions give a localized separation of charges. This charge separation is called polarization. Changes in voltage occur when some event triggers a depolarization of a membrane, and also upon the re-polarization of the membrane. The depolarization and re-polarization of the SA node and the other elements of the heart’s electrical system produce a strong pattern of voltage change which can be measured with electrodes on the skin. Voltage measurements on the skin of the chest are called an electrocardiogram or ECG.

 

heart pumping function

  1.  येऽस्यां स्थ ध्रुवायां दिशि निलिम्पा नाम देवास्तेषां व ओषधीरिषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.5

वे जन जो भूमि पर आमोद प्रमोद के जीवन में स्थिर रहते हैं. उन्हें स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए शिक्षा और ओषधियों की आवश्यकता पड़ती है. वे  ओषधियां हमारे सुख का साधन है  के आभारी हैं, उन के बारे में विद्वत्जन हमें उपदेश करें  और हम अग्निहोत्र के द्वारा उन की उप्लधि से लाभान्वित  हों .

Those persons who stick to worldly routines and make merry are in need of directions by being spoken to for use of proper health care medicines. We are grateful for these remedies and perform Agnihotras dedicatedly.

5.ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.5

ध्रुवा पृथ्वी पर हमारे भौतिक जीवन के विकास का आधार विष्णु है जिस की रक्षा नाना प्रकार की वनस्पति लताओं का उदाहरण है जिन का विकास और उन्नति  पृथ्वी के स्वाभाविक गुरुत्वाकर्षण  के विरुद्ध दिशा में कार्य करने से होती है. इसी प्रकार समस्त विकास और उन्नति आराम आलस्य जैसी स्वभाविक वृत्तियों के विरुद्ध कर्मठता द्वारा ही होता है. इस व्यवस्था  के द्वारा हमारे विकास और उन्नति की व्यवस्था के  लिए हम नमन करते हैं , और जो हमारे अध्यवसयी कर्मठ आचरण के हमारा चित्त विचलित कर के  सुचारु कार्य करने में बाधा रूपीशत्रु हैं उन्हें हम ईश्ररीय न्याय व्यवस्था पर  छोड़ते है.

( सृष्टि  के नियमानुसार हर मरणधर्मा जब तक प्रकृति के क्षय नियम के विरुद्ध सहज स्वभाव और सद्प्रेरणा से निज प्रयत्न द्वारा जन्मोपरांत वृद्धि और शारीरिक उन्नति द्वारा यौवन बल और उन्नति को प्राप्त करता है, वही काल के नियमानुसार भौतिक जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंच कर भौतिकक्षय को जरावस्था से होते हुए मृत्यु को पाता है. परंतु अपने प्रयत्न द्वारा ‘मृत्युर्मामृतं गमय’  के लक्ष को प्राप्त करनेमें सदैव लगा रहता है ) .

On the physical plain according to laws of nature Entropy tends to infinity. Progress and growth are products of negative Entropy. We are grateful for our growth and progress for being provided with the wisdom to operate by negative Entropy. We want to protect ourselves by distractions that form obstacles by diverting us from the path of living a life of hard work to make progress by negative Entropy, and leave the superior forces of Nature and society to deal with these distractions.

( All things born grow and make progress till they progress proceeds as programmed  to peak out by negative entropy on physical plane. Inevitable march of time takes its toll by natural law of entropy tending to infinity and leads to result in extinction of the life born.)

  1.  येऽस्यां स्थोर्ध्वायां दिश्यवस्वन्तो नाम देवास्तेषां वो बृहस्पतिरिषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.6

पृथ्वी पर उन्नति के शिखर पर पहुंचने के लिए सब दिशाओं की परिस्थितियों से सचेत रह कर ज्ञान और उत्तम वाणी के द्वारा बृहस्पति जीवन में उन्नति का साधन होता है.  बृहस्पति हमारे सुख और आनंद की रक्षा करता है. उस के लिए हम बृहस्पति को नमन करते हैं. विद्वत्जन हमरे सुख और हर्ष केलिए सदैव ज्ञान का उपदेश करें और हम सदैव अग्निहोत्र द्वारा प्रगति करें .यहां पर अग्निहोत्र का प्रसिद्ध मंत्र:-

यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा || भी इसी उपलक्ष से देखा जाता है.

The strategies that provide for our rising high in life are keen awareness about what is happening about us in all the directions. For this Brihaspati बृहस्पति knowledge and appropriate articulation are the enablers.  Brihaspati provides for our comforts and happiness. We should always get wise education and counsel to this effect. We express our obeisance for this and dedicate Agnihotras for this. Here to the same effect reference can seen in very important Agnihotra mantra: – यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ||

6.ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता वर्षं इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.6

भौतिक उन्नति के शिखर पर पहुंचने के लिए बृहस्पति का आश्रय मिलता है ,जो निष्कपट निश्छल उत्तन ज्ञान और  वाणी द्वारा  इसी प्रकार आवश्यक है जैसे मेघ से वर्षा के  बाण पर्यावरण को शुद्ध  और निर्मल बना कर हमारी रक्षा करते हैं.

हम इस व्यवस्था के प्रति नमस्कार करते हैं, इस प्रकसर हमें सुर्क्षा प्रदान करने के लिए नमस्कार करते हैं  और जो ममारे इस मार्ग में शत्र्य रूपी बाधाएं होती हं उन्हें हम समाजिक ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं .

To attain great heights of success and progress we have dedicate ourselves to selfless wisdom and good articulate communication. Brihaspati  is the lord of these faculties. Our conduct should be as free of dirt and pollutants as the environment made clean by good rains from the clouds. We are grateful to Nature for this order of things and dedicate our efforts to Him and leave the impediments in our path to be dealt with higher wisdom and justice of Nature and society.

Long Life in Vedas

veda and yog

Long Life in Vedas

RV10.59

Integrating Ashtang Yog in life.

अष्टांग योग द्वारा दीर्घायु

ऋषि: –  बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना:;  बन्धु ‘बध्नातिइति बंधु:’ जो बांधता है वह बंधु है . जिस को बांधना सब से कठिन है उस को जो बांधताहै वह सच में बंधु है. किस का बांधना सब से कठिन है ? मन का. जो मन को  बांधता है, इधर उधर नहीं भटकने नहीं देता वह ‘बंधु’ है . श्रुतबंधु वह बंधु जिस ने श्रुतियों- वेदों  वेदों के  ज्ञान से  विप्र बन्धु अपने को विद्वान बंधु बनाया.गोप कहते हैं इंद्रियों को ,इंद्रियों का पालन करनेवाला गोपायन कहलाया. इस प्रकार मन को बांध लेने से इंद्रियों के व्यर्थ इधर उधर भटकने से

रोकने वाला –  बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना: ऋषि कहलाया. । आधुनिक भाषा में ‘पातञ्जलअष्टांग योग’  का उपदेश करने वाला ही हमारा सब से प्रिय बंधु के रूप में इस ऋग्वेदीय सूक्त का ऋषि है.

Rishi= Seer  of this Sookt is

bandhuh shrut bandhuviprabandhugopaayanah ,bandhu is one who ties up in love and affection- Mind is the most difficult to tie up or control,Thus one who helps in tying up mind and prevents it from straying from its chosen straight path is Bandhu. This Bandhu is also Shrut bandhuvipraBandhu  – has made himself learned by imbibing guided by Vedicwisdom, He is also Gopayanah; Gopas are physical senses, by tying up and controlling the mind by the genius of  Vedic wisdom physical sensuality is brought under control.  To sum up This Seer propounds the wisdom of what is named as Patanjali’s Ashtang Yog for welfare of humanity.

देवता: -1-3 निर्ऋति:, 4 निर्ऋति:सोमश्च, 5-6 असुनीति:, 7 पृथिवी-द्वयन्तरिक्ष-सोम-

पूष-पथ्या-स्वस्तय:, द्यावापृथिवी, 10 (पूर्वार्धस्य) इन्द्र द्यावापृथिव्य:, ।

छंद: -त्रिष्टुप्, 8 पंक्ति, 9 महापंक्ति, 10 पंक्त्युत्तरा ।

प्रथम  4 मंत्रों की ध्रुव पंक्ति है ‘परातरं  सु निर्ऋति र्जिहाताम्‌’- दुर्गति हम से दूर हो जाए,पूर्णतया चली जाए.

First 4 mantras have a refrain line ‘परातरं  सु  निर्ऋति र्जिहाताम्‌निर्ऋति  is described as lady of misfortune that entices people to lives devoted to sensual pleasures and forget about higher ideals in life. ‘May this lady of misfortune go away far from us’

1.प्र तार्यायु: प्रतरं नवीय: स्थातारेव क्रतुमता रथस्य ।

अध च्यवान उत्तवीत्यर्थं परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV 10.59.1

जैसे एक कुशल सारथी  के रथ का यात्री सुदूर प्रदेश की लम्बी यात्रा कर के नए नए स्थानों का आनंद लेना चाहता है उसी तरह  सद्बुद्धि से दीर्घायु प्राप्त करके नित्य ज्ञान वर्द्धन की साधना करें (धियो यो न: प्रचोदयात्‌) जिस से दुर्गति दूर चली जाए

Life of a devotee is to be blessed with enhanced life span for manifestationand realization of newer powers and wisdom, just like the passenger of car being driven by a skilful driver, wants to prolong his ride to visit and see newer places. Thus a person may desire to live longer as he has more powers and wisdom to acquire, that drives all the miseries and misfortunes far away.

2.सामन्नु राये निधिमन्न्वन्नं करामहे सु पुरुष श्रवांसि ।

ता नो विश्वानि जरिता ममत्तु परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV 10.59.2

श्रद्धा से सामगायन, मंत्रोच्चार द्वारा यज्ञादि में हवि दे कर, उत्तम ज्ञान को श्रद्धा से धारण कर के अन्नादि समृद्धि के साधनों को प्राप्त कर के विश्व को आनन्दित करो जिस से दुर्गति दूर चली जाए

With great devotion Yajnas are performed by reciting mantras and singing hymn of Sam Ved. Great attention with faith is paid to wise counsel. Hard work is put in to obtain the material bounties and food. Thus life is sweetened and such a life drives away all the miseries and misfortunes

3.अभी ष्वर्य: पौंस्यैर्भवेम द्यौर्न भूमिं गिरयो नाज्रान् ।

ता नो विश्वानि जरिता चिकेत परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV10.59.3

By our learning to live according to laws of the nature, just as Solar radiations enrich the entire earth, rains from clouds enrich the entire earth, by living a natural life style , all the opposing elements are overpowered by the blessings of the Almighty, and that drives all the miseries and misfortunes far away.

4.मो षु णोसोम मृत्यवे परा दा: पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम् ।

द्युभिर्हितो जरिमा सू नो अस्तु परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV 10.59.4

We pray for the wisdom to follow a life style that ensures for us to  behold the rising sun to bless us with long  life by providing good health ( Vitamin D) . With every passing day, our physical body may be aging but we continue to grow in strength of our wisdom that drives all the miseries and misfortunes far away.

Yoga in life योग साधना

5.असुनीते मनो अस्मासु धारय जीवातवे सु प्र तिरा न आयु: ।

रारन्धि नो सूर्यस्य संदृशि घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व ।।RV 10.59.5

By wisdom of Dhyaan control the mind concentrate on desired goals in life. Make best utilisation of visible bounties of sun. Make best judicious use of fats to enhance your physical health.

{ On the subject of making judicious use of dietary fats following two Rig Ved directives provide health guidance that completely endorsed by  modern science.;

  1. 1.  तयोरिद्‌ घृतवत्‌ पयो विप्रा रिहन्ति धीतिभि:” RV 1.22.14a

Wise people consume fat bearing milk products cautiously.

  1. 2.   a.एता अर्षन्ति हृद्यात्‌ समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे।घृतस्या धारा अभिचाकशीमि हिरण्ययोवेतसो मध्य आसाम्‌ ||  RV 4.58.5

From (human) heart emanates the ocean of  thousands of  warm streams (of blood) which carry in them golden colored particles  shaped like bamboo plants (cholesterols), to fight the forces of diseases and self-degeneration   in  the  human body.

(Cholesterol as seen under laboratory microscope are said to look like golden colored small elongated particles)

 cholestrol

 

    2.b .सम्यक स्रवन्ति सरितो न धेना अन्तहृदा पूयमानाः।

           एते अर्षन्त्पूर्मयो घृतस्य मृगाइव क्षिपणोरीष माणाः॥6|| RV 4.58.6

 

Flowing Streams (of blood) in the (human) heart system uniformly in natural manner  are like streams of light fluid, not thick-viscous and heavy, but like water, having the agility of a deer, which with its agile active operation  provides  for  cleansing and purifying action in human body for its physical & mental well being of humanity.

 

 artery

   2c. सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।

          घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठी भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः॥7|| R.V. 4.58.7

 

There are components of lipids which in red blood stream perform scavenging speedy action on the edges of their paths (the linings)  of blood arteries to speed up the flow and  maintain the blood pressure measure to desirable levels.

 (This is a very clear reference to HDL-High Density Lipids, which

keeps the arteries clean and unclogged)

 

 atery 1

 

       2d. अभिप्रवन्तु समनेव योषाः कल्याण्यः स्मयमानासो अग्रिम्‌।

          घृतस्य धाराः समिधो न सन्तु ता जुषाणो हर्यति जातवेदाः॥ RV4.58.8

 

These lipid particles act like fuel in the physical activities which bring forth healthy cheerful states of temperament. Intelligent persons live life of good physical activity – exercise that burns this fat as fuel to provide total mental & Physical fitness.

 

     2e. कन्याइव वहतुमेतवा उ अङ्‌ज्यङ्‌जाना अभिचाकशीमि।

       यत्रा सोमः सूयते यत्रा यज्ञो घृतस्य धारा अभि तत्पवन्ते॥ RV 4.58.9

 

These lipids in conjunction with suitable foods with proper intellectual life styles of people engaged in their daily householder duties of performing various Yagnas. That leads to provide praiseworthy results, like maidens decorating to maintain their good looks thus engaging themselves in actions for achieving good   lives in desirable households.

 

  2f.अभ्यर्षत सुष्टुति गव्यमाजिमस्मासु भद्रा द्रविजानि धत्त।

    इमं यज्ञं नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते॥ RV. 4.58.10

 

These lipids obtained from blessings of cows provide all the riches, bounties of health & wealth to wise people.}

6.असुनीते पुनरस्मासु चक्षु: पुन: प्राणमिह नो धेहि भोगम्।

ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृळया न: स्वस्ति।।RV 10.59.6

By wisdom of Yoga strengthen your physical faculties such as eyes etc, and develop energy to enjoy life. By achieving long life gain the blessings to see many sun rises and achieve sustainable prosperity by affirmative positive actions.

चक्षु: पुन: प्राणं इह नो धेहि भोगम्।

ज्योक् पश्येम सूर्यं उच्चरन्तं अनुमते मृळया न: स्वस्ति।।RV 10.59.6

With wisdom of Yoga strengthen your Pran प्राण   to enjoy long physical health of eyes and body. By achieving long life gain the blessing to see many sun rises and achieve sustainable prosperity by affirmative positive actions

Organic Food. जैविक अन्न

7. पुनर्नो असुं पृथिवी ददातु पुनद्र्यौदेवी पुनरन्तरिक्षम् ।

पुनर्न: सोमस्तन्वं ददातु पुन:  पूषा पथ्यां3 या स्वस्ति ।।RV 10.59.7

पृथ्वी,सूर्य, अंतरिक्ष पुन: पुन: स्वादिष्ट रस से युक्त अन्नादि हमारे पोषण दीर्घायु और कल्याण के लिए सदैव प्रदान करें.

The soil, the solar bounties, the atmospheric bounties nature’s elements may bless us every day, with life enhancing food for our welfare and prosperity.

8. शं रोदसी सुबन्धवे यह्वी ऋतस्य मातरा ।

भरतामप यद्रपो द्यौ: पृथिवी क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत् ।।RV10.59.8

By following the directives Ashtang yog the twin Bounties of nature  indeed establish the true wisdom in us.  By exercising control on our sense organs an individual attains the wisdom of life style that prevents any harm to come to him physically or mentally.

महान द्युलोक और पृथ्वी लोक की अनुकूलता से उत्तम धातुओं का निर्माण होता है, शरीर और मन स्वस्थ रहता है. मन  पर उत्तम नियंत्रण द्वारा वीर्य की सुरक्षा से मस्तिष्क दीप्त बनता है.यही ऋत का निर्माण करते हैं.  बाह्यलोकों और और आध्यात्मलोकों के  अनुकूल आचरण  से  कोइ भी दोष हमारे शरीर, हृदय, और मन को क्षति नहीं पहुंचा सकता है.

9. अयं द्वके अव त्रिका दिवश्चरन्ति भेषजा ।

क्षमा चरिष्ण्वेककं भरतामप यद्रपो

द्यौ: पृथिवी क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत् ।।RV 10.59.9

For leading a life pure in body and mind, three medicinal roles of Earth and Sun duo are important.

Sun through its photobiology  produces Vitamin D in living beings , Carotenoids and other body building life supporting elements in plant kingdom, and by its rain making clouds provides water that is a great medicine.

Earth by its microphages acts as ultimate sterilizer, and producer of all plant as nutritional and medicinal products.

An individual by wisdom of life style thus prevents any harm to come to him physically or mentally.

पृथ्वी और अंतरिक्ष में सूर्य यह दोनो जीवन में  तीन प्रकार की ओषधियां प्रदान करते हैं.

पृथ्वी सब प्रदूषण को स्वच्छ करने की  क्षमता द्वारा,जिसे आधुनिक विज्ञान मे माइक्रोफाजिज़ का नाम दिया जाता है. जिस का उदाहरण मट्टी से हाथ साफ करने, झूठे बर्तन इत्यादि साफ करने कि प्रथा में देखा जाता था, प्राकृतिक चिकित्सा में पेट पर मट्टी के लेप में देखा जाता है, जैविक वनस्पति द्वारा अन्न और ओषधियों के पृथ्वी मे उत्पादन में पाया जाता है.

इसी प्रकार सूर्य के प्रभाव से मेघों द्वारा वर्षा का ओषधि तुल्य जल, उदय होते समय के सूर्य द्वारा विटामिन डी तत्व और दिन में सूर्य के प्रकाश द्वारा वनस्पतियों में पौष्टिक ओषधि तत्व का निर्माण , इस प्रकार से तीन तीन प्रकार के ओषधि तत्व का प्रकृति मे पृथ्वी और अंतरिक्ष में सूर्य उपहार प्रदान करते  है. इस प्रकार  बाह्यलोकों और आध्यात्मलोकों के  अनुकूल आचरण  से  कोइ भी दोष हमारे शरीर, हृदय, और मन को क्षति नहीं पहुंचा सकता है.

{ Sun’s importance in health by photobiology forms a part of Vedic wisdom quoted below; Cardiac Health Photobiology in Veda

Photobiology Cardiac HEALTH in Vedas
RV 1-125-1, RV1.50, RV1.43, AV1.22
प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते ।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचते सुवीरः ।। ऋ 1-125-1
प्रातःकाल का सूर्य उदय हो कर बहुमूल्य रत्न प्रदान करता है। बुद्धिमान उन रत्नों के महत्व को जान कर उन्हें अपने में धारण करते हैं।
तब उस से मनुष्यों की आयु और संतान वृद्धि के साथ सम्पन्नता और पौरुष बढ़ता है।
(
वैज्ञानिकों के अनुसार केवल UVB किरणें , जो तिरछी पृथ्वी पर पड़ती हैं
(
संधि वेला प्रातः सायं की सूर्य की किरणें ही विटामि¬न डी उत्पन्न करती हैं।)

RV1-50-11
RV 1-50-1
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव:  दृषे विश्वाय सूर्यम् | || RV1/50/1
उदय होते सूर्य की किरणें जातवेदसंबुद्धिमान के लिए  ईश्वर की कृपा से उत्पन्न कल्याणकारी पदार्थों के वाहक के रूप मे प्राप्त होती हैं, जब कि सामान्य विश्व के लिए सूर्य दृष्टीगोचर होता है.

उद्यन्नद्य मित्रमह आरोहन्नुत्तरां दिवम् ।
हृद्रोगं मम सूर्य हरिमाणं च नाशय ।। ऋ 1-50-11
दिवस के उदय को प्राप्त होते हुए, मित्रों में महासत्कार के योग्य उदय होते हुए सूर्य और प्रकाश संश्लेषण से उत्पन्न हरियाली (greenery by photosynthesis) से हमारे हृदय और दूसरे हरणशील (पीलिया) आदि रोगों का ¬नाश होता है ।
(
नवजात शिशु सामान्य रूप से आज कल पीलिया jaundice रोग से ग्रसित होते हैं। आधुनिक अस्पतालों में बच्चों की नर्सरी में जन्मोपरान्त पीलिया –Jaundice- से पीड़ित बच्चों के उपचार के लिए कृत्रिम सूर्य के प्रकाश का प्रबंध होता है । कोई कोई चिकित्सक नवजात बच्चे को सूर्यस्नान कराते हैं  .

शुकेषु मे हरिमाणं रोपणाकासु दध्मसि ।
अथो हारिद्रवेषु मे हरिमाणं निदध्मसि ॥ ऋ 1-50-12 , अथर्व 1-22-4

रोपित हरे वनस्पतियों कुशा घास हरे चारे इत्यादि पर पोषित दुग्ध में रोग हरण क्षमता है। इस लिए ऐसे हरे चारे पर पोषित गौओं के दुग्ध का सेवन करो।

आज विश्व के विज्ञान शास्त्र के अनुसार केवल मात्र हरे चारे पर पोषित गौ के दुग्ध में ही CLA (Conjugated Linoleic Acid) और Omega 3 वांछित मात्रा मे आवश्यक वसा तत्व मिलते हैं। केवल यही दुग्ध मा¬नव शरीर के सब स्वज¬न्य रोग निरोधक और औषधीय गुण रखता है। इस स्थान पर वेदों में एक और आधुनिक वैज्ञानिक विषय photosynthesis प्रकाश संश्लेषण का उपदेश भी प्राप्त होता है। सब व¬नस्पति के बीजों में जो तैलीय तत्व होता है उसे वैज्ञानिक ओमेगा6, Omega 6 नाम देते हैं। आज कल के सब प्रचलित रिफाइन्ड खाद्य तेलों में मुख्यत: केवल ओमेगा6, Omegta 6 ही होता है। विज्ञान बताता है की अंकुरित होने पर सूर्य के प्रभाव से photosynthesis प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया से ओमेगा 6 हरे रंग को धारण करता है जिसे आहार में ग्रहण कर¬ने पर ओमेगा 3 पोषक तत्व उपलब्ध होता है । यही गौ के पोषण मे हरे चारे का महत्व है।
(Omega 3 is found to be anti obesity, anti cancer, anti artheschelorosis – heart and brain strokes due to clogging of arteries and High blood pressure, anti Diabetes in short preventive as well as a medicine against all Self degenerating Human diseases)
उदगादयमादित्यो विश्वे¬न सहसा सह।
द्विषतम्मह्यं रधयमो अहं द्विषते रधम्‌ ॥ ऋ 1-50-13
उदय होते सूर्य के द्वारा विश्व को साहस सामर्थ्य प्रदान कर के , धर्माचरण पर न चलने वालों के शत्रु रूपी रोगों को नष्ट करके,आनन्द के साधन प्राप्त होते हैं ।
इसी विषय पर अथर्व वेद में निम्न मन्त्र मिलते हैं।
अनु सूर्यमुदयतां हृदद्योतो हरिमा च ते।
गो रोहितस्य वर्णेन तेन स्वा परि दध्मसि ॥ अ 1-22-1
हृदय में उत्पन्न हरणशील व्याधि का उदय होते सूर्य से तथा हिरण्य वर्ण ( Golden colored ) गौ दुग्ध के सेवन से उपचार करो।
गौएं दो प्रकार की मानी जाती हैं अधिक दूध देने वाली तथा दूध और खेती में दोनो मे उपयोगी पाइ जाने वाली.
( Milk breeds and Dual purpose breeds.)
सनहरे रंग की हिरण्य वर्णा गौ लाल सिंधी,साहीवाल, गीर इत्यादि अधिक दूध देनो वाली पाइ जाती हैं। इन्ही के दूध का हृदय रोग में महत्व बताया गया है ।

परि त्वा रोहितैर्वणै दीर्घायुत्वाय दध्मसि ।
यथाऽयरपा असदधो अहरितो भुवत्‌ ॥ अ 1-22-2

लाल रंग से तुझे दीर्घायु प्राप्त हो। जो रोगों के हरण से प्राप्त होती है॥

या रोहिणीदेवत्याय गावो या उत रोहिणीः।
रूपं रूपं वयोवयस्ताभिष्ट्‌वा परि दध्मसि॥ अ1-22-3

उदय होते हुए सूर्य और गौ की लालिमा रूप और आयु की वृद्धि के लिए देवता प्रदान करते हैं ।


हृदय स्वास्थ्य यज्ञ ऋग्विधान के अनुसार
ऋग्वेद सूक्त 1-43
ऋषि कण्वो घोरः, देवता रुद्र:   , मित्रावरुणौ, सोमः च
के 9 मन्त्रों सें
अपने स्वास्थ्य लाभ के हेतु आहार, व्यवहार, उपचार के साथ परमेश्वर स्तुति व्यक्तिगत ,सामाजिक मानसिकता और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए इस यज्ञ को भी सम्पन्न करना हित कर होगा।

(इस यज्ञ का विधान रोग निवृत्ति हेतु मनुष्यों, गौओं अश्वों इत्यादि के लिये किया जाता है। गोशाला में किये गए इस यज्ञ को शूलगवां यज्ञ कहते हैं)
कद रुद्गाय प्रचेतसे मीळ्हुष्टमाय तव्यसे ।
वोचेम शंतमं हृदे ॥ ऋ 1-43-1
विद्वान पुरुष कब महान रोग नाशक रुद्र की हृदय के लिए सुखदायी शांति की प्रशंसा के स्तोत्र सुनाएंगे ?

यथा नो अदितिः करत्‌ पश्वे नृभ्यो यथा गवे
यथा तोकाय रुद्गियम्‌ ॥ ऋ 1-43-2
(
अदिति से यहां तात्पर्य सन्धिवेला के आदित्य से है.) संधि वेला का सूर्य राजा, रंक, पशुओं ,गौवों सब के अपनी संतान की तरह रुद्र रूप से रोग हरता है.
यथा नो मित्रा वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति ।
यथा विश्वे सजोषसः ॥ ऋ 1-43-3
प्राण व उदान सूर्योदय के समय उसी प्रकार स्वास्थ्य प्रदान करते हैं जैसे विद्वान पुरुषों के उपदेश के अनुसार सूर्य की किरणों से उत्तम जल, प्रकाश संश्लेषण – Photosynthesis- औषधीय रस से हरी शाक इत्यादि.

गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्‌ ।
तच्छंयोः सुम्नीमहे ॥ ऋ 1-43-4
अनिष्ट को दूर करा के सुख शांति के लिए ,विद्वान लोग स्वास्थ और उत्तम जल के औषध तत्वों के ज्ञान का उपदेश करें.
यः शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते
श्रेष्ठो देवानां वसुः ॥ ऋ 1-43-5
जो सुवर्ण जैसा दीखता सूर्य है, वही देवताओं मे श्रेष्ठ और महान वीर्यादि तत्व प्रदान करता है.
शं नः करत्यर्वर्ते सुगं मेषाय मेष्ये ।
नृभ्यो नारिभ्यो गवे ॥ ऋ 1-43-6
वही हमारे समस्त पशु, पक्षियों, राजा, रंक, नारी, गौ सब का रोग नष्ट कर के स्वास्थ्य प्रदान करता है.
अस्मे सोम श्रिय मधि नि धेहि श्तस्य नृणाम्‌ ।
महि श्रवस्तुविनृम्णम्‌ ॥ 1 -43-7
हमें यह ज्ञान होना चाहिये हमारी सेंकडों की संख्या के लिए वह एक अकेला तेजस्वी अन्न, औषधी, बल प्रदान करने में समर्थ है.
मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।
आ न इन्दोवाजे भज ॥ ऋ 1-43-8
हमारे ज्ञान मे विघ्न डालने वाले, और धन के लोभी हमें न सतावें.
हमारा ज्ञान हमारा बल बढावे.

यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन्‌ धामन्नृतस्य ।
मूर्धा नाभा सोम वेन आभूपन्तीः सोम वेदः ॥ ऋ 1-43-9
अमृत और सत्य श्रेष्ठ ज्ञान सदैव हमारा मार्ग दर्शन कर के हमें उत्तम स्थान पर प्रतिष्ठित करें

अथर्व वेद 1/12 देवता यक्ष्मानाशन्‌
जरायज: प्रथम उस्रिया वृषा वात्व्रजा स्तनयन्नेति वृष्टया !
स नो मृडाति तनव ऋजगो रुजन् य एकमोजस्त्रेधा विचक्रमे !! अथर्व 1/12/1
This Ved Mantra is very interestingly describing a very modern topic regarding the medicinal efficacy of colostrums of a new born cow. It is equally applicable as directive in Vedas about importance of breast feeding.
Colostrums is the pre-milk fluid produced from the mother’s mammary glands during the first 72 hours after birth. It provides life-supporting immune and growth factors that insure the health and vitality of the newborn.
Commercial Exploitation of Colostrums of Cows for Human beings is a big modern pharmaceutical industry.
Breastfeeding in humans as also for new born calves provides natural “seeding” — the initial boost to immune and digestive systems –.
Loss of youth & Vigor
In western medicine which gives no importance to
ब्रह्मचर्य ,it is observed that after puberty, the amount of immune and growth factors present in human bodies begin to decline. Human body become more vulnerable to disease, its energy level and enthusiasm lessens, skin loses its elasticity, and there is gain of unwanted weight and body looses muscle tone. The modern humans also live in a toxic environment, with pollutants and allergens all around us.
Research has shown that Colostrums have powerful natural immune and growth factors that bring the body to a state of homeostasis — its powerful, vital natural state of health and well being. Colostrums help support healthy immune function; & also enable us to resist the harmful effects of pollutants, contaminants and allergens where they attack us.
Plus, the growth factors in Colostrums create many of the positive “side-effects” of a healthy organism — an enhanced ability to metabolize or “burn” fat, greater ease in building lean muscle mass, and enhanced rejuvenation of skin and muscle.
It is a very common modern medicine practice to collect colostrums from freshly calved cows to produce medicinal products for boosting disease resistance, and health promotion tonics for sick and elderly humans, specifically in debilitating diseases such as tuberculosis. New born calves particularly males are immediately taken away for slaughter. Cow’s Colostrums are collected for making medicines for the Pharma industries. Calves in general are fed on an artificial feed called Milk Replacer.
References to in the above ved mantra Atharv 1.12.1-
जरायुजः, उस्रिया, वृषा, स्तन्यन्नेति, वृष्टया, त्रेधा, are clear references to Colostrums – first few days milk of a cow just after calving. Literal meaning of these vedic words are – produce of a just calved cow which is in the process of releasing the placenta, milk giving cow, shower of milk from the udder and three rumens of a cow having played the important role in giving rise to the extraordinary medicinal value of this early milk of a cow. In this Sookt this is being promoted for curing Tuberculosis, as
the very Dewata of this sookt-
यक्षमानाशन्‌
suggests.-

अङ्गे अङ्गे शोचिषा शिश्रियाणं नमस्यन्तस्त्वा हविषा विधेम !
अङ्कान्त्समङ्कान् हविषा विधेम यो अग्रभीत् पर्वास्या ग्रभीता !! अथर्व 1/12/2
हे सूर्य आप की और समीपवर्ती देवताओं चंद्रमा, नक्षत्रादि तारादि की दीप्ति इस जगत और प्रत्येक प्राणी के अंग अंग में प्राण रूप से स्थित है. तुझ को नमस्कार करते हुवे हम हवि द्वारा तुम सब को परिचर्या द्वारा तृप्त करते हैं.

मुञ्च शीर्षक्त्या उत कास एनं परुष्परुराविवेशा यो अस्य !
यो अभ्रजा वातजा यश्च शुष्मो वनस्पतीन्त्सचतां पर्वतांश्च !! अथर्व 1/12/3
हे सूर्य इस पुरुष को शिरोवेदना से मुक्त करो.वह खांसी जो इस के अंग अंग ( संधिस्थलों) में घुस कर बैठा है, उस से भी मुक्त कर, जो शरीर को सुखा देने वाला पित्त विकार है उस से भी मुक्त कर, जो वर्षा काल मे श्लेष रोग वात विकार से होता है उस से भी मुक्त कर . सब त्रिविध रोगों की निवृत्ति के लिए वन वृक्षों, वनस्पतियों द्वारा यह सब रोग दूर हों.
शं मे परस्मै गत्राय शमस्त्ववराय मे!
शं मे चतुभ्यो अङ्गेभ्य: शमस्तु तन्वे3 मम !! अथर्व 1/12/4
मेरे ऊपर के शिरोभूत अङ्ग के लिए, मेरे नीचे के शरीर के लिए, मेरे हाथ पैर , तन सब अङ्गों के लिए सुख हो.}

10. समिन्द्रेरय गामनड्वाहं य आवहदुशीनराण्या अन:  ।

भरतामप यद्रपो द्यौ: पृथिवी क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत् ।।RV 10.59.10

इस प्रकार जोअपने शरीर को निर्दोष स्वस्थ बना कर, और इन्द्रियों का अधिष्ठाता बन कर  सम्यक बुद्धि से इस शरीर रूपि जीवन रथ को निर्बाध आगे ले चलता है, उस के  बाह्यलोकों और आध्यात्मलोकों के  अनुकूल आचरण  से  कोइ भी दोष शरीर, हृदय, और मन को क्षति नहीं पहुंचा सकते |

Thus those who live a life by making their physical body free from all ailments and keep all their sensual cravings under complete control by exercising Vedic wisdom, attain the life that suffers from  any harm to come to them physically or mentally

वेदों में सौर ऊर्जा विषय

solar energy

सौर ऊर्जा विषय

RV 5.48 Strategy for Progress in this world

1.कदु प्रियाय धाम्ने मनामहे स्वक्षत्राय स्वयशसे महे वयम्‌ | 
आमेन्यस्य रजसो यदभ्र आँ अपो वृणाना वितनोति मायिनी || ऋ5.48.1

किस प्रकार अपने राष्ट्र अपने जन्म स्थान – क्षेत्र के यश और प्रगति के लिए चारों ओर प्रकृति की मेघादि जलों की उदार वृत्तियों को स्वीकार करती हुयी अनुकूल बुद्धि ग्रहण करें ?

What are the strategies for adopting one’s place of birth, his life and nation to attain fame and prosperity by making use of nature’s benevolent bounties like rains and sun shine?  

 
2.ता अत्नत वयुनं वीरवक्षणं समान्या वृतया विश्वमा रजः | 
अपो अपाचीरपरा अपेजते प्र पूर्वाभिस्तिरते देवयुर्जनः || ऋ5.48.2

देवताओं की विद्वत्ता की कामना करते हुए साधारण जन और वीर जनों के कर्म और प्रज्ञान के आवरण को लोक लोकांतर में उसी प्रकार सब को नीचे की ओर बढ़ाते हैं , जिस प्रकार जल अपनी पूर्ववत्‌ वृत्ति से नीचे को बह कर निरन्तर उदाहरण प्रस्तुत करता है 

It is by intelligent use nature’s bounties to employ them in the form of negative entropy like working against water’s  tendency to flow from higher levels to lower levels that scientists devise means of progress by using negative entropy.
3.आ ग्रावभिरहन्येभिरक्तुभिर्वरिष्ठं वज्रमा जिघर्ति मायिनि | 
शतं वा यस्य प्रचरन्त्स्वे दमे संवर्त्तयन्तो वि च वर्त्तयन्नहा ||ऋ5.48.3

यद्यपि सूर्य की सैंकड़ो किरणें दिन रात के चक्र को चलाती हुइ पाषानों को वज्र के समाकरती और न विदीर्ण  मानव की आयु /जीवनको क्षीण करती लगती हैं. परंतु बुद्धिमत्ता से जीवन शैलि सूर्य के इस व्यवहार का उत्तम रूप देख पाती हैं. जैसा यजुर्वेद में विस्तार  से कहा है;

It appears that Solar energy that destroys rocks with strong force and works on aging of human body , but there is a hidden positive aspect to this. By intelligent life style the solar bounties are a boon.   “ अश्मन्नूर्जं पर्वते शिश्रियाणामद्भय ओषधीभ्यो वनस्पतिभ्यो अधि सम्भ्रतं पय: |

तां न इष्मूर्जं धत्त मरुत: संरराणा अश्मँस्तेक्षुनमयि त ऊर्ग्यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु || यजु 17.1”

यह सूर्य की किरणो  पर्वतों पर चट्टानों को विदीर्ण कर के उर्वरक भूमि और मेघों से जल की वृष्टि द्वारा अन्न और ओषधी के साधन उत्पन्न करके  कर मानव को जीवन को संरक्षण प्रदान करते हैं.

Solar heat in conjunction with microbes facilitates the disintegration of rocks in the mountains to create fertile virgin soil for excellent growth of pants and herbs.
4.तामस्य रीतिं परशोरिव प्रत्यनीकमख्यं भुजे अस्य वर्पसः | 
सचा यदि पितुमन्तमिव क्षयं रत्नं दधाति भरहूतये विशे ||ऋ5.48.4

1.       परशु के समान तीक्ष्ण चुभने वाली अग्नि के समान सूर्य के ताप का सुंदर रूप मानव को ऐश्वर्य पदान करने के लिए है. यदि उस सौर ऊर्जा का सद्प्रयोग किया जाए.

2.       The scorching heat of sun by its intelligent use is an excellent source to provide sustainable prosperity to human life style .

 
5.स जिह्वया चतुरनीक ऋञ्जते चारु वसानो वरुणो यतन्नरिम | 
न तस्य विद्म पुरुषत्वता वयं यतो भगः सविता दाति वार्यम ||ऋ5.48.5

3.       उत्तम जीवन व्यवस्थाके लिए सूर्य की ज्योति का उपयोग करने के चार प्रकार के साधनों पर अनुसंधान करके पुरुषार्थ से कार्यान्वित करना चाहिए. ( आधुनिक विज्ञान                प्रौद्योगिकी के अनुसार सौर ऊर्जा से इन चार प्रकारसे लाभ लेना चाहिए.

4.       1. गृह निर्माण पद्धति जिस से प्राकृतिक रूप से घर में रहने के तापमानको नियंत्रित किया जा सके.

5.       2. सौर ऊर्ज से ऊष्णता के साधन  जैसे पानी गरम करना,सौर ऊर्जा चालित चुल्हा, सुअर ऊर्जा से भिन्न भिन्न वस्तुओं का उपचार

6.       3. सौर ऊर्जा से विदुत उत्पादन

7.       4. सूर्य की ज्योति का कृषि उत्पादन में बुद्धिमत्ता से प्रयोग.   ,

For excellent (sustainable) living four strategies are talked about to make use of the solar bounties to pursue research, develop knowledge, make efforts and utilize them.

Modern technology mentions the following four strategies.

Four Methods of Solar energy utilization

1.Passive solar energy: This is the simplest and least expensive form of solar power. Unfortunately, it requires that your home be specifically designed to take advantage of solar heat, and situated on a lot to take maximum advantage of the sun’s rays. You can design passive solar capability into new construction, but this method is not applicable to existing homes.

2.Solar energy for heat: This is the oldest use of solar energy. Using relatively inexpensive flat plate collectors, heat from the sun’s rays is used to heat air, water, or other fluid that flows through coils in the panels. This heat can then be used to heat the water for your home or the home itself.

3.Solar energy for electricity: This method uses a photovoltaic (PV) solar power panel that converts sunlight into electricity. This power can be used to power your home’selectrical lighting and appliances. However, ancillary systems (storage batteries, inverters) are required to provide the right kind of electricity throughout the day and night. And it still takes a large surface area of PV cells to provide sufficient electrical power for the average home.

4. Inexpensive applications for solar energy in the yard or garden: You can use very inexpensive small photovoltaic panels to provide electrical power for yard lighting, solar pumps for water features, solar electric fencing, even a solar oven. These applications won’t save as much as powering your home with solar, but they also don’t cost much.