Category Archives: इस्लाम

रोम किस तरह मुसलमान हुआ ।

जिस तरह हमने अरब का वर्णन विश्वासनीय इतिहास की साक्षी से सिद्ध किया है कि वह किस जोर जुल्म से मजबूर होकर मुसलमान हुआ और किस कदर लूट घसूट से दीन मुहम्मदी किस ग़रज़ से फैलाया गया । वहीं हाल रूम व शाम का है। चुनाचि इसका खुलासा हाल फतूह शाम में दर्ज है और दरहकीकत वह देखने के लायक और दीन इस्लाम की कदर

जानने के लिए उम्दाह किताब है ।

मुआज़विनज़वल ने जो उवेदह की तरफ से दूत बनकर आया था वतारका हाकिम रूम से कहा कि या तो ईमान लाओ कुरान पर मुहम्मद पर या हमें जिजिया दो नहीं तो इस झगडे का फैसला तलवार करेगी होशियार रहो (देखो तारीख अम्बिया सका ४१३ सन् १२८१ हिजरी)

अबु उवैदाने जो अर्जी मोमिनों के अमीर उमर को लिखी उसमें लिखा था कि इसलाम की फौज हर तरफ को भेज दी गई है कि जाओ जो जो इस्लाम कबूल करे उनको अमन दो ओर जो इस्लाम कबूल न करे उन्हें तलवार से क़त्ल कर दो। (सफा ४०१ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी) ।

हज़रत अबू बक्र ने उसामा को सिपहसलार मुकर्रर करके लश्कर को जहाद के वास्ते शाम के देश से भेजा । उसने वहां जाकर उन के खण्ड मण्ड कर दिये और तमाम काफिरों की नाक में दम कर दी जो घबराकर अपने देश को छोड़कर भाग गये । ओर मारता
डाटता वहाँ तक जा पहुचा हवाली के लोगों से बदला लिया और फिर बहुत सा माल लेकर दबलीफा रसूल की खिदमत में हाजिर हुआ । उस बक्त लड़ने बालों की कमर टूट गयी क्योंकि उन नादानों का गुमान था कि अब इस्लाम में बन्दोबस्त न रहेगा। और इस कदर ताकत न होगी कि जहाद कर सकें । (देखो तारीख अम्बिया सका ३७६ व ३७७ सन् १२८१ हिजरी)

शाम की जीत के लिये जो पत्र हजरत अवू वक्र सद्दीक ने जहाद की हिजरत (तीर्थयात्रा) के बास्ते मुअज्जम (बड़े) मक्का के लोगों के लिये उसमें लिखा है कि कर्बला और शाम के दुश्मनों ( देखो सफा १३ जिल्द १ फतूह शाम मतवूआ नवलकिशोर सन् १२८६ हिजरी)

फिर बही इतिहास वेत्ता लूट का माल हाथों हाथ आने का वर्णन करके लिखता है कि यजीद लड़का सूफियाना का और रुवैया अमिर का लड़का जो इस लश्कर के सर्दार थे कहा कि मुनासिब है की सब माल जो रुमियों से हाथ लगा है हजरत सद्दीक के हुजूर में भेजा जावे ताकि मुसलमान उस को देखकर रुमियों के जहाद का इरादा करें । (फतूह शाम जिल्द १३
सन् १२८६ हिजरी)

हज़रत बक्र सदीक शाम के जाने के बक्त यह वसीयत उमेर आस के लड़के को करते थे कि डरते खुदा से और उसकी राह में लडो और काफिरो को क़त्ल करों । (जिल्द अव्वल फतूह शाम सका १९)

शाम की एक लडाई से ६१० कैदी पकडे आये। उमरबिन आस न उन पर इस्लाम का दीन पेश किया पस कोई उनमें का मुसलमान न हुआ फिर हुक्म हुआ कि उनकी गर्दनें मार दी जावें (जिल्द अव्वल फतूह शाम सफा २५ नवलकिशोर)

दमिश्क के मुहासिरे की लडाई में लिखा है। फिर खालिदविन बलीद ने कलूजिस ओर इजराईल को अपने सामने बुलाकर उन पर इस्लाम होने को कहा मगर उन्होंने इंकार किया पस बमूजिब हुक्म वलीद के बेटे खालिद और अजूर के लड़के जरार ने इजराईल को ओर राथा बिन अमरताई ने कलूजिस को कत्ल किया (देखो फ़तूह शाम जिल्द अव्वल सफ़ा
५३ नवलकिशोर)

किताब फाजमाना तुक हिस्सा अव्वल जो देहली से छपा उसमें लिखा है कि तीन सौ साल तक मुसलमान रूम के हुक्म से हर साल १००० ईसाइयो के बच्चो को क़त्ल करने वाली फ़ौज में जबरन भर्ती करके मुसलमान किया जाता था और उनको ईसाइयो के कत्ल और जंग पर आमादह किया जाता था सिर्फ यहाँ तक ही संतोष नहीं किया जाता था बल्कि
ईसाइयों के निहायत खूबसूरत हजारों बच्चे हर साल गिलमाँ बनाये जाते और उनसे रूमी मुसलमान दीन वाले प्रकृति के विरूद्ध (इगलाम-लौंडेबाजी) काम के दोषी होते थे। और जवान होकर उन्हीं गाज़ियो के गिरोह में शामिल किये जाते थे कि बहिश्त के वारिस हों। अलमुख्तसिर मुफस्सिल देखो असल किताब ।)

जिस तरह खलीफों के वक़्त में जबरन गिरजे गिराये जाते ब बर्बाद जिये जाते थे इसी तरह शाम रूम ने भी जुल्म सितम से गिरजाओं को मसजिद बना दिया ।

साभार –
गौरव गिरी पंडित लेखराम जी की अमर रचनाओ में से एक पुस्तक
जिहाद – कुरआन व इस्लामी ख़ूँख़ारी

इस्लाम और ईसाइयत का इतिहास एक नज़र में

क्या हजरत आदम और उनकी बेगम हव्वा – कभी थे भी ?????

ये सवाल इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है – क्योंकि – ये जानना बहुत जरुरी है इसलिए नहीं कि कोई मनगढंत बात है या सवाल है –

क्या कोई वैज्ञानिक प्रमाण मिला है आज तक जो इनके प्रेम प्रतीक –
अथवा त्याग और बलिदान की मिसाल पेश करे ??

अब कुछ लोग (ईसाई और मुस्लमान) अपने अपने धारणा के हिसाब से बेबुनियाद बात करते हुए कहेंगे की –

ये जो मानव जाती है – ये इन्ही आदम और हव्वा से चली है – जो की “स्वघोषित” अल्लाह मियां अथवा तथाकथित परमेश्वर “यहोवा” ने बनाई थी –

जब बात आती है – भगवान श्री राम और योगेश्वर श्रीकृष्ण आदि की तो इन्हे (ईसाई और मुस्लमान) को ठोस प्रमाण चाहिए –

जबकि – रामसेतु इतना बड़ा प्रमाण – श्री लंका – खुद में एक अकाट्य प्रमाण – फिर भी नहीं मानते –

महाभारत के इतने अवशेष मिले – आज भी कुरुक्षेत्र जाकर आप स्वयं देख सकते हैं – दिल्ली (इंद्रप्रस्थ) पांडवकालीन किला आज भी मौजूद है जिसे पुराना किला के नाम से जाना जाता है।

इतना कुछ है – फिर भी कुछ समूह (ईसाई और मुस्लमान) मूर्खो जैसे वही उवाच करते हैं – प्रमाण लाओ –

आज हम इस समूह (ईसाई और मुस्लमान) से कुछ जवाब मांगते हैं –

1. हज़रत आदम और हव्वा यदि मानवो के प्रथम पूर्वज हैं तो – क्यों औरत आदमी से पैदा नहीं होती ???? ऐसा इसलिए क्योंकि प्रथम औरत (हव्वा) आदम की दाई पसली से निर्मित की गयी – क्या किसी शैतान ने बाइबिल और क़ुरान के तथाकथित अल्लाह का निज़ाम उलट दिया ?? या कोई और शक्ति ने ये चमत्कार कर दिया ??? जिसे आज तक अल्लाह या यहोवा ठीक नहीं कर पाया – यानि की एक पुरुष संतान को उत्पन्न करे न की औरत ???

2. यदि बाइबिल और क़ुरान की ये बात सही है कि यहोवा या अल्लाह ने हव्वा को आदम की पसली से बनाया तो आदम यानि की सभी पुरुषो की एक पसली क्यों नहीं होती ???????? और जो हव्वा को एक पसली से ही पूरा शरीर निर्मित किया तो हव्वा को भी एक ही पसली होनी चाहिए – या यहाँ भी कोई शैतान – यहोवा या अल्लाह पर भारी पड़ गया और यहोवा और अल्लाह की बनाई संरचना में – बड़ा उलटफेर कर दिया जिसे आजतक यहोवा या अल्लाह ने कटाई छटाई का हुक्म देकर अपना बड़प्पन साबित करने की नाकाम कोशिश की ???????

3. यहोवा या अल्लाह ने आदम और हव्वा की संरचना कहा पर की ?? क्या वो स्थान किसी वैज्ञानिक अथवा researcher द्वारा खोज गया ????

4. हज़रत आदम और हव्वा ने ऐसा क्या काम किया जिसकी वजह से उन दोनों को स्वर्ग (अदन का बाग़) से बाहर निकल दिया गया ?? क्या अपने को नंगा जान लेना और जो कुछ बन पाये उससे शरीर को ढांप लेना – क्या गुनाह है ????? क्या जीवन के पेड़ से बुद्धि को जागरूक करने वाला फैला खाना पाप था ????? ये पेड़ किसके लिए स्वर्ग (अदन का बाग़) में बोया गया और किसने बोया ???? क्या खुद यहोवा या अल्लाह को ऐसे पेड़ या फल की आवश्यकता थी या है ??? अगर नहीं तो फिर आदम और हव्वा को खाने से क्यों खुद यहोवा या अल्लाह ने मना किया ??? क्या यहोवा या अल्लाह – हज़रत आदम और हव्वा को नग्न अवस्था में ही रखना चाहते थे ???? या फिर यहोवा या अल्लाह नहीं चाहता था की वो क्या है इस बात को हज़रात आदम या हव्वा जान जाये ????

5. यहोवा या अल्लाह द्वारा बनाया गया – अदन का बाग़ – जहा हजरत आदम और हव्वा रहते थे – जहा से शैतान ने इन दोनों को सच बोलने और यहोवा या अल्लाह के झूठे कथन के कारण बाहर यानि पृथ्वी पर फिकवा मारा – बेचारा यहोवा या अल्लाह – इस शैतान का फिर से कुछ न बिगाड़ पाया – खैर बिगाड़ा या नहीं हमें क्या करना – हम तो जानना चाहते हैं – ये अदन का बाग़ मिला क्या ??????

6. यहोवा या अल्लाह द्वारा – आदम और हव्वा को उनके सच बोलने की सजा देते हुए और अपने लिए उगाये अदन के बाग़ और उस बाग़ की रक्षा करने वाली खडग (तलवार) से आदम और हव्वा को दूर रखने के लिए पृथ्वी पर भेज दिया गया। मेरा सवाल है – किस प्रकार भेजा गया ??? क्या कोई विशेष विमान का प्रबंध किया गया था ???? ये सवाल इसलिए अहम है क्योंकि बाइबिल के अनुसार यहोवा उड़ सकता है – तो क्या उसकी बनाई संरचना – आदम और हव्वा को उस समय “पर” लगाकर धरती की और भेज दिया गया – या कोई अन्य विकल्प था ???

ये कुछ सवाल उठे हैं – जो भी कुछ लोग (ईसाई और मुस्लमान) श्री राम और कृष्ण के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं – अब कुछ ठोस और इतिहास की नज़र में ऐसे अकाट्य प्रमाण लाओ जिससे हज़रत आदम और हव्वा का अस्तित्व साबित हो सके – नहीं तो फ़र्ज़ी आधार पर की गयी मनगढंत कल्पनाओ को खुद ही मानो – और ढोल पीटो – झूठ के पैर नहीं होते – और सत्य कभी हारता नहीं – ध्यान रखना –

वो जरा इन सवालो के तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक आधार पर जवाब दे – नहीं तो अपना मुह बंद रखा करे।

नोट : कृपया दिमाग खोलकर और शांतिपूर्ण तरीके से तार्किक चर्चा करे – आपका स्वागत है – गाली गलौच अथवा असभ्य बर्ताव करने पर आप हारे हुए और जानवर घोषित किये जायेंगे।

सहयोग के लिए –

धन्यवाद –

इस्लाम में आज़ादी ? एक कड़वा सच

कोई व्यक्ति अपने मत को त्यागकर

इस्लाम मत को अपना ले तो कोई सजा का प्रावधान नहीं।

लेकिन जैसे ही

इस्लाम मत को छोड़कर अन्य मत अपना ले

तो उसकी सजा मौत है।

क्या अब भी इस्लामी तालीम में कोई स्वतंत्रता बाकी रही ???

क्या मृत्यु के डर से भयभीत रहने को आज़ादी कहते हैं ???

क्या अल्लाह वास्तव में इतना निर्दयी है की केवल मत बदलने से ही जन्नत जहन्नम तय करता है – तो कैसे अल्लाह दयावान और न्यायकारी ठहरा ?

सच्चाई तो ये ही है की जब तक इस्लाम नहीं अपनाया जाता – वह व्यक्ति स्वतंत्र होता है – पर जैसे ही इस्लाम अपनाया वह आशिक़ – ए – रसूल बन जाता है –
अर्थात हज़रत मुहम्मद का गुलाम होना स्वीकार करता है –

अल्लाह ने सबको आज़ादी के अधिकार के साथ पैदा किया – यदि क़ुरआन की ये बात सही है तो कैसे मुस्लमान अपने को मुहम्मद साहब के गुलाम (आशिक़ – ए – रसूल) कहलवाते हैं ????

क्या इसी का नाम आज़ादी है ????

तो गुलामी का नाम क्या होगा ??

ऐसी स्तिथि में मानवीय स्वतंत्रता कहाँ है ???????

वैचारिक स्वतंत्रता कहाँ हैं ??????

धार्मिक स्वतंत्रता कहाँ है ?????

शारीरिक स्वतंत्रता कहाँ हैं ????

http://navbharattimes.indiatimes.com/…/article…/45219309.cms

ए मुसलमानो जरा सोच कर बताओ ……………………….

कहाँ है आज़ादी ????????????????

क़ुरआन में परिवर्तन

आज तरह सौ वर्ष से हमारे मुस्लमान भाई कहते चले आ रहे हैं की हमारे कुरआन शरीफ में किसी प्रकार का भी कोई परिवर्तन अर्थात फेर-बदल नहीं हुआ इसलिए ये (क़ुरआन) खुदाई किताब है। परन्तु हमें अपने कई वर्षो के अति गहन निरिक्षण करने के पश्चात इस बात का पूरा पूरा पता लग गया है की कुरआन में बहुत कुछ परिवर्तन अर्थात फेरबदल हो चूका है जिसका एक अंश हम क़ुरान शरीफ की अक्षर संख्या के सम्बन्ध में इस्लामी साहित्य के बड़े बड़े विख्यात विद्वानो के लेखानुसार आप सज्जनो की भेंट करते हैं, अवलोकन कीजिये।

किसके मत में कुरआन की अक्षर संख्या कितनी थी ?

क्रमांक …………………. मत का नाम ……………… अक्षर संख्या

1………. सुयूती इब्ने अब्बास के कुरआन में ……………. 323671

2………. सुयूती उम्रिब्नेखताब के कुरआन में …………. 1027000

3………. सिराजुल्कारी अब्दुल्ला इब्ने मसऊद …………. 322671

4………. सिरजुल्कारी मुजाहिद के कुरआन में …………. 321121

5………. उम्दतुल्ब्यान अब्दुल्ला इब्ने मसऊद ………… 322670

6………. सिराजुल्कारी प्रस्तुतकर्ता ……………………. 3202670

7………. उम्दतुल्ब्यान प्रस्तुतकर्ता …………………….. 351482

8………. कसीदतुलकिरात प्रस्तुतकर्ता ……………….. 3202670

9………. दुआय मुतबर्रकः प्रस्तुतकर्ता …………………. 445483

10………. रमूजूल कुरआन मुहम्मद हसनअली ………….. 40265

जवाब दो मुस्लमान मित्रो – ये क्या स्पष्ट मिलावट नहीं दिखती ????

अगर नहीं तो कैसे ?????????

साभार : क़ुरआन में परिवर्तन
लेखक – मौलाना गुलाम हैदर अली “उर्फ़” पंडित सत्यदेव “काशी”

इस्लाम में स्त्री और पुरुष का बराबरी का हक़ महज एक “अन्धविश्वास” है

इस्लाम में स्त्री और पुरुष का बराबरी का हक़ महज एक
“अन्धविश्वास” है – और इस अन्धविश्वास का जितनी जल्दी हो सके निर्मूलन होना ही चाहिए –

अब आप पूछोगे इसमें अन्धविश्वास क्या है ? इस्लाम तो नारी को बराबरी का दर्ज़ा हज़रत मुहम्मद के समय से देता चला आ रहा है –

तो भाई मेरा जवाब वही है की आँख मूँद कर बुद्धि से बिना समझे किसी बात को मान लेना ही तो अन्धविश्वास है – और यही अन्धविश्वास के चक्कर में बहुत से नादान फंस जाते हैं – खासकर युवतियां –

उन युवतियों में भी विशेषकर जो हिन्दू – बौद्ध – सिख – जैन – ईसाई – आदि सम्प्रदायों से सम्बन्ध रखती हैं – उन्हें तो विशेष कर इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ना चाहिए –

दारुल उलूम – ये वो नाम है जो इस्लामी कायदे कानूनों के बारे में लोगों (मुसलमानो) के संदेहों का निराकरण करने वाली संस्था है। और प्रत्येक मुस्लमान (मुस्लमान मतलब जो मुसल्लम ईमान है – यानि अपने ईमान का पक्का) वो अपने ईमान से जुडी इस संस्था के फतवो को कैसे नज़र अंदाज़ कर सकता है ? यानी एक पक्के और सच्चे मुस्लमान के लिए इन फतवो को लेकर कोई गलत फहमी नहीं – जो कह दिया वो पत्थर की लकीर – यही तो ईमान है। क्योंकि इस संस्था के फतवे अपने खुद के घर की जागीर नहीं होते – बल्कि इस्लामी कायदे क़ानून – खुदा की पुस्तक क़ुरान (ऐसा मुस्लिम बोलते हैं) तथा हदीसो (इस्लामी परिभाषा में, पैग़म्बर मुहम्मद के कथनों, कर्मों और कार्यों को कहते हैं)

अब चाहे कोई मुस्लिम किसी फतवे को माने या तो ना माने मगर अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए तो फतवा बनवा ही सकता है – ऐसी आशंका होनी लाज़मी है – आईये एक नज़र डालते हैं –

“देवबंद ने अपने एक फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को ही तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे तो भी वह वैध नहीं है।”

जी हाँ – पढ़ा आपने – केवल एक पुरुष ही तलाक दे सकता है – यानि की पुरुष को ही तलाक देने का “अधिकार” है – स्त्री को कोई अधिकार नहीं – और अगर स्त्री दे भी दे तो भी “वैध” नहीं –

ये है इस्लाम का सच – तो कैसे स्त्री पुरुष – इस्लाम की नज़र में एक बराबर हुए ???????

आइये कुछ और फतवो के बारे में बताते हैं –

“एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा था, पत्नी ने मुझे 3 बार तलाक कहा, लेकिन हम अब भी साथ रह रहे हैं, क्या हमारी शादी जायज है? इस पर देवबंद ने कहा कि सिर्फ पति की ओर से दिया तलाक ही जायज है और पत्नी को तलाक देने का अधिकार नहीं है।”

“इसके अलावा देवबंद ने अपने एक फतवे में यह भी कहा कि पति अगर फोन पर भी अपनी पत्नी को तलाक दे दे तो वह भी उसी तरह मान्य है जैसे सामने दिया गया।”
“एक फतवे में कहा गया कि इस्लाम के हिसाब से महिलाओं के टाइट कपड़े पहनने की मनाही है और लड़कियों की ड्रेस ढीली और साधारण होनी चाहिए।”

“गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल पर भी देवबंद ने एक फतवा जारी कर सनसनी फैला दी। एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा कि उसकी पत्नी को थायराइड की समस्या है, जिसके चलते उसके गर्भवती होने से बच्चे पर असर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए उसे डॉक्टर ने गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की सलाह दी है और क्या वह इस्लाम के मुताबिक गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर सकता है?” –

अब देखिये और जानिये इस बारे में फतवा क्या कहता है –

“इसके जवाब में देवबंद ने कहा कि डॉक्टर की सलाह के बाद उसे इस बारे में हकीम से परामर्श लेना चाहिए और अगर वह भी उसे गर्भनिरोधक का उपयोग करने की सलाह देता है, तो वह ऐसा कर सकता है।”

आप समझ रहे हैं ????

चाहे पत्नी मरने की कगार पर हो – मगर एक सच्चे मुसलमान के लिए अपनी पत्नी के इलाज से पहले फतवे से ये जानना की क्या जायज़ (वैध) है और क्या नाजायज़ (अवैध) है – उसकी पत्नी की जान से ज्यादा जरुरी है – अभी भी शक है की सच्चा और पक्का मुस्लमान फतवो को नहीं मानेगा ???????? जबकि वो हर एक काम को जायज़ या नाजायज़ पूछने के लिए मुल्लो मौलवी के फतवो की बांट जोहता है (इन्तेजार करता है)

ये खुद में क्या एक जायज़ बात है ????

मतलब की डॉक्टर जो मॉडर्न विज्ञानं पढ़के – डिग्री लेके बैठा है – उसकी बात पर विश्वास नहीं है – मगर एक झोलाछाप और बिना एक्सपीरियंस का हकीम सलाह दे तो वो वैध है –

वाह भाई वाह – क्या विज्ञानं है – क्या ज्ञान है –

आगे भी देखिये –

“देवबंद ने महिलाओं को काजी या जज बनाने को भी लगभग हराम करार दे दिया। देवबंद ने इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में फतवा देते हुए कहा महिलाओं को जज बना सकते हैं, लेकिन यह लगभग हराम ही है और ऐसा न करें, तो ज्यादा बेहतर है।”

अब भी कोई गुंजाईश बाकी है क्या की इस्लाम में स्त्री पुरुष को सामान अधिकार प्राप्त हैं की नहीं ?????

बात सिर्फ काजी या जज की नहीं है – बात असल में है की यदि कोई स्त्री काजी बन गयी – तो फिर स्त्रियों के हक़ में और फायदे के लिए फतवे आने शुरू होंगे तब दिक्कत हो जाएगी – इसलिए काजी नहीं बन सकती कोई मुस्लिम महिला – इस बात का भी गणित समझिए की कोई महिला जज भी ना बने – तो भाई इसका मतलब तो यही हुआ की महिलाओ या लड़कियों को शिक्षित करना ही इस्लाम के खिलाफ है – या फिर हायर स्टडी करना ही मुस्लिम महिलाओ के लिए हराम है –
क्योंकि इतना पढ़ना फिर किसलिए जब वो उस मुक़ाम पर ही न पहुंच पाये ????????

आगे सुनिए –

“देवबंद ने कहा कि यह हदीस में भी दिया गया है, जिसका मतलब है कि जो देश एक महिला को अपना शासक बनाएगा, वह कभी सफल नहीं होगा। इसलिए महिलाओं को जज नहीं बनाया जाना चाहिए।”

ये देखिए नारी विरोधी एक और फतवा – पता नहीं किस समाज के ऐसे लोग हैं जिनमे बुद्धि २ पैसे की भी नहीं –

क्या इस्लामी हदीस स्त्रियों के विरुद्ध है या ये मुल्ला मौलवी अपनी तरफ से ऐसी बेसिर पैर के फतवे जारी कर रहे हैं –

ये सोचना – समझना आपका काम है –

किसी भी जाती की नारी हो – उसका सम्मान – उसको बराबरी का दर्ज़ा ये उसका हक़ है बल्कि नारी जो निर्मात्री है – ऐसा वेद कहते हैं –
“नारी को ऊँचा दर्ज़ा है”

अब आप एक बार स्वयं विचार करे की जिन किताबो की बिनाह पर ये मुल्ले मौलवी इन फतवो को तैयार करते हैं – वो मुहम्मद साहब से ज़माने से चली आ रही हैं – अब या तो उन किताबो में स्त्री से वैर है तभी ऐसे फतवे आ रहे या फिर मुल्ले मौलवी अपनी तरफ से ऐसे फतवे तैयार कर रहे –

अब सच क्या है ?????

आप युवतियां, महिलाये, नारियो – स्वयं विचारो – क्योंकि आप निर्मात्री हो – समाज की – वर्तमान की और आने वाले इसी मानव समाज के उज्जवल भविष्य की

नमस्ते –

क़ुरआन सीरियाई शब्द है, तो सम्पूर्ण क़ुरआन अरबी में कैसे ?

क़ुरआन शब्द – सीरिया भाषा के “केरयाना” शब्द से लिया गया था – जिसका अर्थ होता है – “शास्त्र पढ़” – इसे बदल कर क़ुरआन कर दिया गया – जिसका मतलब होता है – “वह पढ़ा” अथवा “उसे सुनाई” –

दूसरी बात की क़ुरआन में अल्लाह ने बोला है – क़ुरआन को विशुद्ध अरबी भाषा में दिया गया –

तो संशय ये है की सीरियन भाषा – इस्लाम आने के ५०० साल लगभग पहले से विद्यमान है – फिर ऐसा क्यों की सीरिया की भाषा को प्रयोग करके “क़ुरआन” शब्द को रचा गया ???

क्या अल्लाह मियां नया शब्द देने में माहिर न थे ???

नोट : क़ुरआन में अल्लाह मियां बहुत जगह ऐसा कहे हैं की क़ुरआन को विशुद्ध अरबी में नाज़िल किया –

तब ऐसा क्यों है की क़ुरआन में अरबी के अलावा 74 अन्य भाषाओ का वजूद मिलता है ????

क्या अल्लाह ने अनेक भाषाओ के शब्द चोरी किये ???

या अन्य भाषाओ के अरबी शब्द ईजाद नहीं किये जा सके ??

या फिर अल्लाह मियां थोड़ा झूठ बोल गए की क़ुरआन विशुद्ध अरबी में है ????

क्योंकि क़ुरआन में अरबी भाषा के आलावा अन्य बहुत सी भाषाए हैं जिनसे कोई मुस्लिम भी इंकार नहीं कर सकता – इससे ये सम्भावना प्रबल होती है की क़ुरआन शब्द विशुद्ध अरबी नहीं है –

भाई सच क्या है – कोई मुस्लिम मित्र जरा सत्य से अवगत करावे –

इस्लाम में नारी

इस्लामिक साहित्य में स्त्रीयों के प्रति मानसिकता को प्रदर्शित करते कुछ उदाहरण :

अत्याचार करने और कष्ट देने की सूची में औरत सदैव ऊपर रही है . ( इसका अनुमान आधुनिक युग में भी लगाया जा सकता है ) क्योंकि हजरत अली के कथनानुसार औरत की खस्लत (प्रवृत्ति , स्वाभाव) में अत्याचार करना, कष्ट देना और लड़ाई और झगड़े को पैदा करना ही होता है . नहजुल बलागा  में है :-

………. वास्तव में जानवरों के जीवन का उद्देश्य पेट भरना है फाड़ खाने वाले जंगली जानवरों के जीवन का उद्देश्य दूसरों पर हमला करके चीरना फाड़ना है और औरतों का उद्देश दुनिया की जिन्दगी का बनाव सिंगार और लड़ाई झगड़े पैदा करना होता है . मोमिन वह हैं जो घमण्ड से दूर रहते हैं . मोमिन वह हैं जो महरबान हैं मोमिन वह हैं जो खुदा से डरते हैं .

जहाँ हजरत अली ने औरत को लड़ाई झगडा फ़ैलाने और  पैदा करने वाला बताया है वहीं रसूल ए  खुदा ने इर्शाद फरमाया :
‘ औरतें शैतानों की रस्सियाँ हैं “

अर्थात औरतें कल अक्ल (मंद बुद्धि नाकिसुल अक्ल ) होने के कारण शैतान के कब्जे (चंगुल ) में शीघ्र आ जाती हैं और शैतान उस मंद बुद्धि औरत के हाथों दुनिया में लड़ाई झगडा (दंगा फसाद ) फैलाने  (अर्थात खुदा के बन्दों पर अत्याचार करने ) का काम लेता है और हजरत अली के विचारानुसार मर्द वह होता है जो औरत के लड़ाई झगड़े फ़ैलाने के बावजूद भी खुदा से डरता रहता है और औरत जैसी कमजोर जाति पर मजबूत होने की वजह से अत्याचार  नहीं करता और न ही कष्ट देता है .

बहरहाल हज़रत अली ने औरत को जहाँ लड़ाई झगडा फैलाने वाला बताया है वहीं पुरी तरह से (सरापा) आफत (मुसीबत ) ही बताया है

“औरत सरापा (पूरी तरह से ) आफत (मुसीबत ) हैं और इससे ज्यादा आफत यह है की उसके बिना कोई चारा नहीं (अर्थान गुजारा नहीं )

अर्थात औरत के साथ होने आया न होने …….. दोनों हालातों में मर्द के लिए मुसीबत ही मुसीबत है . शायद इसी लिए मर्द इस पुरी तरह से मुसीबत औरत को अपने गले से लगा लेता है . ताकि मुसीबत के साथ साथ शरीर से चिमटने और लिपटने पर स्वाद और आनन्द भी मिलता रहे . हजरत अली ने इर्शाद फरमाया :

“औरत एक बिच्छु है लिपट जाते तो (उसके जहर में ) स्वाद है “

लेकिन जी तरह बिच्छु अपनी आदत के अनुसार  डंक मारे बिना नहीं रह सकता . उसी तरह औरत भी लड़ाई झगडा फैलाये बिना नहीं रह सकती अर्थात (कुछ को छोड़कर  अधिकतर ) औरत की खस्लत में अत्याचार करना , ढोंग मचाना कष्ट देना और शत्रुता फैलाना इत्तियादी कूट कूट कर भरा होता है . ऐसी ही औरतों के लिएय रसूल ए खुदा ने इर्शाद फ़रमाया
“ जो औरतें अपने पति को दुनिया में तकलीफ पहुँचती हैं हरें उससे कहती हैं तुझ पर खुदा की मार अपने पति को कष्ट न पहुंचा यह मर्द तेरे लिए नहीं ही तू इसले लायक नहीं , वह शीग्र ही तुझ से जुदा होकर हमारी तरफ आ जायेगा .
अर्थात अपने पति को कष्ट देने वाली औरत स्वर्ग नहीं पहुँच सकती

इस्लाम और सेक्स डॉ. मोहम्मद तकी अली आबिदी (स्वर्ण पदक )

क्या कहें ! बस यही कह सकते हैं कि भगवान्  ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दें .

नमाज पढना नाजायज है : डॉ. गुलाम जिलानी बर्क , पाकिस्तान

कहते हैं की पेशानी तोल जिस्म का सोलहवाँ हिस्सा होती है . इन्सान का कद औसतन ४६ इंच होता है  और इसकी पेशानी चार इंच बाकी हैवानत  में भी तकरीबन यही  पाई जाती है .

महरीन  सालासाल तहकीकात व तलाश के बाद ये यह  ऐलान किया है कि जमीन का महीत ५२ हजार मील है यानी अगर हम ५२ हजार मील लम्बा धागा तैयार कर के जमीन के और गरु    लपेट दें तो वह बिलकुल पूरा आ जायेगा . सूरज जमीन से १२ लाख अस्सी हजार गुना बड़ा है और इसका महीत बत्तीस अरब पचास करोड़ मील है .

 

इब्ने अम्र हजूर से रिवायत करते हैं  कि  “सूरज निकलते और डूबते वकत नमाज नहीं पढ़ा करो इसलिए कि सूरज बवक्त  शैतान के दो सींगों में होता है “

बुखारी जिल्द २ १४४

सूरज की मोटाई साढ़े बत्तीस  अरब मील है . अगर इतनी बड़ी चीज शैतान दो सींगों में समा जाती है और हम अरज कर चुके हैं पेशानी तोल जिस्म का सोलहवाँ हिस्सा होती है . तो शैतान के जिस्म की लम्बाई पांच ख़रब बीस अरब मील होनी चाहिए और चौड़ाई भी इसी नस्बत से इतना बड़ा शैतान खड़ा कहाँ होता होगा ? जमीन से सूरज नौ करोड़ पैंतीस लाख मील दूर है और शैतान की लम्बाई सवा पांच ख़रब मील.  अगर शैतान को जमीन पर खड़ा किया जाए तो सूरज इसके टखनों से भी नीचे रह जाता है . इसे शैतान के सींगों तक पहुँचने का क्या इंतजाम  किया जाता है और इतना बड़ा शैतान जमीन में समाता कैसे है.

यह साबित हो चूका है कि जमीन तकरीबन गोल है जमीन के किसी न किसी हिस्से पर हर वकत सूरज  तलुह होता रहता है यानी औकात मसल्सल  महोसफ़र रहते हैं कलकत्ता की सुबह चन्द लम्हों के बाद बनारस पहुँचती है फिर दिल्ली फिर वही लाहोर फिर पेशावर फिर काबुल.. जिसका मतलब यह हुआ कि सूरज हर वकत शैतान के सींगों के दरमयान रहता है

चोंकिये इसी हालत में नमाज नाजायज है इसलिए मुसलमानों को नमाज बिलकुल तरक कर देनी चाहिए.

 

 

डॉ. गुलाम जिलानी बर्क , पाकिस्तान

अल्लाह की रजिस्टर्ड डाक गुम – प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

महर्षि दयानन्द ने प्रबल युक्तियों से यह सिध्ध किया है कि ईश्वर के गुण कर्म व स्वभाव नहीं बदलते. ईश्वर नित्य है उसका ज्ञान भी नित्य है . महर्षि के इस कालजयी ग्रन्थ व उनकी समीक्षाओं का ही यह प्रभाव है की मौलाना अख़लाक़ हुसैन जी ने अपनी पुस्तक “ वैदिक धर्म और इस्लाम “ में एक से अधिक बार वेद को ईश्वर प्रदत्त ज्ञान स्वीकार किया है . यह भी लिखा है कि वेद का आविर्भाव सृष्टि के आदि में हुआ . आपने चारों वेदों के नाम भी इस पुस्तक में दिए हैं और जिन चार ऋषियों की ह्रदय गुहा में एक एक वेद का प्रकाश हुआ मौलाना ने उनके नाम भी ठीक ठीक दिए हैं . इस्लामी साहित्य से वेद के ईश्वरीय ज्ञान होने के आपने कई प्रमाण दिए हैं . उक्त पुस्तक में एक से अधिक बार आपने वेद को ईश्वरीय वाणी लिखा है .

हम डॉ जेलानी की पुस्तक से ये प्रमाण दे चुके हैं कि धर्म अनादि होता है और समय समय पर धर्म ( ईश्वरीय ज्ञान ) नहीं बदलता . ये स्वस्थ चिंतन सत्यार्थ प्रकाश की समीक्षाओं का स्पष्ट व ठोस प्रभाव है . अब तक जो कुरान की भाषा व शैली लालित्य को उसके ईश्वरीय ज्ञान होने का प्रमाण माना जाता रहा था . उसे तो सर सैयद अहमद खां व मौलाना शिबली आदि कई मुसलिम विचारकों ने ही नकार दिया . महर्षि दयानन्द जी ने ही फैजी के बेनुक्त ( बिना बिंदु के ) कुरान की अनुपमता का उदहारण दे कर मुसलमानों के इस कथन कोई चुनौती दी थी . प्रत्येक भाषा में ऐसे ग्रन्थ मिलते हैं जिनकी अपनी अपनी विशिष्ठता होती है .

मुसलमान कुरान से पहले मध्य एशिया के सभी ग्रंथों यथा बाइबल आदि को निरस्त हो चुकी बताते रहे हैं . अल्लाह ने एक के पश्चात् अपनी दूसरी पुस्तक को निरस्त करते हुए अन्त में कुरान प्रदान किया . यह अल्लाह का अंतिम ज्ञान ग्रन्थ है और मुहम्मद अंतिम नबी है . पहले के ग्रंथों में हटावत मिलावट हुयी यह कहा जाता है . पहली पुस्तकों में यदि परिवर्तन हुआ है तो इसके लिए दोषी कौन ? पण्डित चमूपति का कथन यथार्थ है कि दोषी मनुष्यों अथवा अल्लाह मियां को मानना पड़ेगा.

वे ग्रन्थ अल्लाह की ही देन थे. पण्डित चमूपति जी ने प्रश्न उठाया है कि यदि पहले के ग्रंथों में गड़बड़ हो गई तो कुरान कैसे बचा रहा या बचा रहेगा ? अल्लाह भी वही है और मनुष्य भी वही हैं . समय पाकर किसका स्वभाव बदल गया ? या तो अल्लाह मियां के ज्ञान में दोष मानना पड़ेगा अथवा उसकी भावना सदाशय समय पाकर दोषयुक्त सिद्ध हुयी ?

शिया मित्रों की मान्यता है की जो कुरान हजरत मुहम्मद पर नाजिल हुआ था उसकी आयतों की संख्या १७००० थी और वर्तमान कुरान की आयतों की संख्या के बारे भी भिन्न भिन्न मत हैं . मुख्य रूप से कुछ विद्वान ६३५६ आयतें मानते हैं और कुछ भाई ६२३६ आयतें बताते हैं . इसका तो सीधा सीधा अर्थ यही हुआ कि कुरान का २/३ भाग गुम कर दिया गया है .

दो तिहाई कुरान गुम

केवल एक तिहाई कुरान बच पाया . अल्लाह ने इसकी रक्षा का दायित्व लिया था . अच्छा दायित्व निभाया ! कुरान में इतनी गड़बड़ हो गई और मुसलमान चुप बैठे हैं . हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं . सत्यार्थ प्रकाश की समीक्षाओं के विरुद्ध इनकी लेखनी व वाणी दोनों चलती रहती हैं , परन्तु दो तिहाई कुरान देखते देखते उड़ा दिया गया .

“हक प्रकाश “ में तो यह दावा किया गया कि कुरान शरीफ रजिस्टर्ड डाक समान सुरक्षित व व्यवस्थित हो गया है . नई नई युक्तियाँ व नये नये दृष्टान्त घड़ने में तो मौलवियों ने प्रशंसनीय पुरुषार्थ किया है . पुरुषार्थ में क्या कमी छोडी ? परन्तु रजिस्टर्ड डाक की क्या दुर्दशा हुयी यह मौलाना मुहम्मद मंजूर जी की पुस्तक का प्रमाण देकर हमने ऊपर बता दिया है .

तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे .- डॉ गुलाम जेलानी

जो लोग दूर दराज  मुल्कों में सफर करने के आदी हैं वो इस हकीकत से आगाज़ हैं कि  सूरज गुरूब  नहीं होता . जब पाकिस्तान में सूरज डूब  जाता है तो मिश्र में लोग शाम की चाय पी रहे होते हैं. वहीं इंगलिश्तान में दोपहर का खाना खा रहे होते हैं और अमरीका के बाज हिस्सों में सूरज निकल रहा होता है . अगर आप बीस काबिल एहातिमाद   घड़ियाँ  साथ रखकर एक तियारे में विलायत चले जाएँ तो वहां जा कर आप हैरान हो जायेंगे की जब यह तमाम घड़ियाँ  शाम के आठ बजा रही होंगी वहां दिन का डेढ़ बज रहा होगा अगर आप एक तेज रफ़्तार रोकेट में बैठ कर अमरीका चले जाएँ तो यह देख कर आपकी हैरत और बढ़ जायेगी कि इन घड़ियों के मुताबिक सूरज तुलुह  हो जाना चाहिए था लेकिन वहां डूब रहा होगा अगर इन्ही घड़ियों के साथ आप जापान की तरफ रवाना हो जाएँ तो पाकिस्तानी वकत के मुताबिक वहां एनितीन  दोपहर सूरज डूब रहा होगा . खुलासा यह की रात के ठीक बारह बजे इंगलिस्तान में शाम के शाम के साढ़े पांच बज रहे होंगे और  हवाई में सुबह के साढ़े पांच .

 

आज घर घर रेडियो मौजूद है रात के नौ बजे रडियो के पास बैठ के पहले इंगलिस्तान लगायें फिर टोकियो और इस के बाद अमरीका आपको मन में यकीन हो जाएगा की जमीन का साया (रात ) नसब (आधा )   दुनिया पर है और नसब (आधा )   पर आफताब पूरी आबोताब . के साथ चमक रहा है .

 

इस हकीकत की वजाहत के बाद आप ज़रा यह हदीस पढ़ें –

अबुदर फरमाते हैं की एक मर्तबा गुरूब आफताब  के बाद रसूल आलः ने मुझ से पूछा क्या तुम जानते हो कि ग़ुरबत के बाद आफताब कहाँ चला जाता है . मैने कहा अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं आपने फ़रमाया की सूरज खुदाई तख़्त ने नीचे सजदे में गिर जाता है और दुबारा तालोह होने की इजाजत मांगता  है और उसे मुशरफ से दोबारा निकलने की इजाजत मिल जाती है लेकिन एक वकत ऐसा भी आयेगा की उसे इजाजत नहीं मिलेगी . और हुकुम होगा की लौट जाओ जिस तरफ से आये हो ……… वह मगरब की तरफ से निकलना शुरू करेगा और.तफसीर यही है .

अगर हम रात के दस बचे पाकिस्तान रेडियो से दुनिया को या हदीस सुना दें और कहें की इस वकत सूरज अर्श   के नीचे सजदे में पड़ा हुआ है तो सारी मगरबी  दुनिया खिलखिला कर हंस देगी और वहाँ के तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे .