Category Archives: हिन्दी

वे ऐसे धर्मानुरागी थे

वे ऐसे धर्मानुरागी थे

स्यालकोट के लाला गणेशदासजी जब स्वाधीनता संग्राम में कारावास गये तो उन्हें बन्दी के रूप में खाने के लिए जो सरसों का तेल मिलता था, उसे जेल के लोहे के बर्तनों में डालकर रात को

दीपक बनाकर अपनी कालकोठरी में स्वाध्याय किया करते। ‘आर्याभिविनय’ ऋषिकृत पुस्तक का सुन्दर उर्दू अनुवाद पाद टिह्रश्वपणियों सहित इसी दीपक के प्रकाश में जेल में तैयार हुआ। इसे

‘स्वराज्य पथप्रदर्शक’ [प्रथम भाग ही] के नाम से बड़े सुन्दर कागज पर आपने छपवाया था। जिन्होंने कालकोठरी में भी स्वाध्याय, सत्संग, शोध साहित्य-सृजन को अपना परम धर्म जाना, ऐसे धर्मवीरों का जीवन हमारे लिए अनुकरणीय है।

हदीस : दांतों की सफाई (मिसवाक)

दांतों की सफाई (मिसवाक)

मुहम्मद को दंतखोदनी प्रिय थी। ये अक्सर उसका इस्तेमाल करते थे। उन्होंने कहा-”यदि मुसलमानों पर ज्यादा बोझ पड़ने की आशंका न होती तो मैं उन्हें नमाज से पहले हर बार दंतखोदनी इस्तेमाल करने का हुक्म देता“ (487)।

author : ram swarup

 

और लो, यह गोली किसने मारी

 

और लो, यह गोली किसने मारी

अब तो चरित्र का नाश करने के नये-नये साधन निकल आये हैं। कोई समय था जब स्वांगी गाँव-गाँव जाकर अश्लील गाने सुनाकर भद्दे स्वांग बनाकर ग्रामीण युवकों को पथ-भ्रष्ट किया करते थे। ऐसे ही कुछ माने हुए स्वांगी किरठल उज़रप्रदेश में आ गये। उन्हें कई भद्र पुरुषों ने रोका कि आप यहाँ स्वांग न करें। यहाँ हम नहीं चाहते कि हमारे ग्राम के लड़के बिगड़ जाएँ, परन्तु वे न माने। कुछ ऐसे वैसे लोग अपने सहयोगी बना लिये। रात्रि को ग्राम के एक ओर स्वांग रखा गया। बहुत लोग आसपास के ग्रामों से भी आये। जब स्वांग जमने लगा तो एकदम एक गोली की आवाज़ आई। भगदड़ मच गई। स्वांगियों का मुज़्य कलाकार वहीं मञ्च पर गोली लगते ही ढेर हो गया। लाख यत्न किया गया कि पता चल सके कि गोली किसने मारी और कहाँ से किधर से गोली आई है, परन्तु पता नहीं लग सका। ऐसा लगता था कि किसी सधे हुए योद्धा ने यह गोली मारी है।

जानते हैं आप कि यह यौद्धा कौन था? यह रणबांकुरा आर्य-जगत् का सुप्रसिद्ध सेनानी ‘पण्डित जगदेवसिंह सिद्धान्ती’ था। तब सिद्धान्तीजी किरठल गुरुकुल के आचार्य थे। आर्यवीरों ने पाप ताप से लोहा लेते हुए साहसिक कार्य किये हैं। आज तो चरित्र का उपासक यह हमारा देश धन के लोभ में अपना तप-तेज ही खो चुका है।

हदीस : नाक साफ करना

नाक साफ करना

नाक ठीक से साफ की जानी चाहिए। मुहम्मद कहते हैं-”जब तुम नींद से जागो….तीन बार नाक जरूर साफ करो, क्योंकि शैतान नाक के भीतर ही रैनबसेरा करता है“ (462)।

author : ram swarup

उज़रप्रदेश का एक साहसी आर्यवीर

उज़रप्रदेश का एक साहसी आर्यवीर

1942-43 ई0 की घटना है। आर्यसमाज के प्रसिद्ध मिशनरी मधुर गायक श्री शिवनाथजी त्यागी बाबूगढ़ के उत्सव से वापस आ रहे थे कि मार्ग में नहर के किनारे दस शस्त्रधारी मुसलमानों ने आर्य प्रचारकों की इस मण्डली (जिसमें केवल तीन सज्जन थे) पर धावा बोल दिया। बचने का प्रश्न ही न था। मुठभेड़ हुई ही थी कि अकस्मात् मोटर साइकल पर एक आर्य रणबांकुरा जयमलसिंह त्यागी उधर आ निकला। अपने उपदेशकों को विपदा में देखकर उसने बदमाशों को ललकारा, कुछ को नहर में फेंका और शिवनाथजी त्यागी आदि सबको बचाया। ऐसे साहसी धर्मवीरों के नाम व काम पर हमें बहुत गर्व है।

हदीस : प्रक्षालन (वुज़ू)

प्रक्षालन (वुज़ू)

मुहम्मद शारीरिक स्वच्छता की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वे अपने अनुयायियों से कहते हैं कि ”सफाई ईमान का आधा हिस्सा है“ (432) और जब तक वे ’वुजू नहीं करते‘ तब तक अशुद्धि की दशा में की गई उनकी प्रार्थना मंजूर नहीं की जाएगी (435)। किन्तु यहां अशुद्धि का अर्थ पूर्णतः कर्म-काण्डपरक है।

 

मुहम्मद अपनी पंथमीमांसा में एकत्ववादी किन्तु प्रक्षालन के मामले में त्रित्ववादी थे। वे प्रक्षालन-कर्म यों करते थे-”वे अपने हाथ तीन बार धोते थे। फिर वे तीन बार कुल्ला करते थे तथा तीन बार नाक साफ करते थे। तदुपरान्त अपना चेहरा तीन बार धोते थे। फिर दाहिनी बांह कुहनियों तक तीन बार धोते थे। फिर उसी तरह तीन बार बांयी बांह धोते थे। फिर अपना सिर पानी से पोंछते थे। फिर दाहिना पांव टखनों तक तीन बार और फिर बांया पैर टखनों तक तीन बार धोते थे।“ मुहम्मद ने कहा-”जो मेरी तरह प्रक्षालन करता है….तथा प्रार्थना के दो रकाह अर्पित करता है…..उसके पहले के सब पापों का प्रायश्चित हो जाता है“ (436)। यह प्रक्षालन विहित बन गया। मुस्लिम मजहबी कानून के अध्येताओं के अनुसार प्रार्थना के लिए किए जाने वाले प्रक्षालनों में यह सर्वांगसम्पूर्ण है। इस विषय पर मुहम्मद के आचार और विचार को बार-बार बतलाने वाली ऊपर बताई गई हदीसों जैसी 21 हदीस और हैं (436-457)।

author : ram swarup

 

यह नर-नाहर कौन था?

यह नर-नाहर कौन था?

यह घटना प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की है। रियासत बहावलपुर के एक ग्राम में मुसलमानों का एक भारी जलसा हुआ। उत्सव की समाप्ति पर एक मौलाना ने घोषणा की कि कल दस बजे जामा मस्जिद में दलित कहलानेवालों को मुसलमान बनाया जाएगा, अतः सब मुसलमान नियत समय पर मस्जिद में पहुँच जाएँ।

इस घोषणा के होते ही एक युवक ने सभा के संचालकों से विनती की कि वह इसी विषय में पाँच मिनट के लिए अपने विचार रखना चाहता हैं। वह युवक स्टेज पर आया और कहा कि आज के इस भाषण को सुनकर मैं इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि कल कुछ भाई मुसलमान बनेंगे। मेरा निवेदन है कि कल ठीक दस बजे मेरा एक भाषण होगा। वह वक्ता महोदय, आप सब भाई तथा हमारे वे भाई जो मुसलमान बनने की सोच रहे हैं, पहले मेरा भाषण सुन लें

फिर जिसका जो जी चाहे सो करे। इतनी-सी बात कहकर वह युवक मंच से नीचे उतर आया।

अगले दिन उस युवक ने ‘सार्वभौमिक धर्म’ के विषय पर एक व्याज़्यान दिया। उस व्याज़्यान में कुरान, इञ्जील, गुरुग्रन्थ साहब आदि के प्रमाणों की झड़ी लगा दी। युक्तियों व प्रमाणों को

सुन-सुनकर मुसलमान भी बड़े प्रभावित हुए।

इसका परिणाम यह हुआ कि एक भी दलित भाई मुसलमान न बना। जानते हो यह धर्म-दीवाना, यह नर-नाहर कौन था?

इसका नाम-पण्डित चमूपति था।

हमें गर्व तथा संतोष है कि हम अपनी इस पुस्तक ‘तड़पवाले तड़पाती जिनकी कहानी’ में आर्यसमाज के इतिहास की ऐसी लुप्त- गुप्त सामग्री प्रकाश में ला रहे हैं। उसका मूल्य चुकाना पड़ेगा

मुस्लिम मौलाना लोग इससे बहुत खीजे और जनूनी मुसलमानों को पण्डितजी की जान लेने के लिए उकसाया गया। जनूनी इनके साहस को सहन न कर सके। इसके बदले में वे पण्डितजी के प्राण लेने पर तुल गये। आर्यनेताओं ने पण्डितजी के प्राणों की रक्षा की समुचित व्यवस्था की।

हदीस : तासीर

तासीर-           आनुष्ठानिक रूप से जो वस्तुएं अस्वच्छ हो गई हैं, उनका शुद्धीकरण।

 

शुद्धीकरण के मामले पर कुछ सरसरी आदेश कुरान में दिए गए हैं (मसलन 4/43 एवं 5/6)। किन्तु पैगम्बर की चर्या में ही उनका पूरा रूप निखरता है।

author : ram swarup

मियाँजी की दाढ़ी एक आर्य के हाथ में

मियाँजी की दाढ़ी एक आर्य के हाथ में

1947 ई0 से कुछ समय पहले की बात है। लेखरामनगर (कादियाँ), पंजाब में मिर्ज़ाई लोग 6 मार्च को एक जलूस निकालकर बाज़ार में आर्यसमाज के विरुद्ध उज़ेजक भाषण देने लगे। वे 6

मार्च का दिन (पण्डित लेखराम का बलिदानपर्व) अपने संस्थापक नबी की भविष्यवाणी (पण्डितजी की हत्या) पूरी होने के रूप में मनाते रहे।

एक उन्मादी मौलाना भरे बाज़ार में भाषण देते हुए पण्डित

लेखरामकृत ऋषि-जीवन का प्रमाण देते हुए बोले कि उसमें ऋषिजी के बारे में ऐसा-ऐसा लिखा है…….एक बड़ी अश्लील बात कह दी।

पुराने आर्य विरोधियों के भाषण सुनकर उसका उज़र सार्वजनिक सभाओं में दिया करते थे। एक आर्ययुवक भीड़ के साथ-साथ जा रहा था। वह यही देख रहा था कि ये ज़्या कहते हैं। भाषण सुनकर वह उज़ेजित हुआ। दौड़ा-दौड़ा एक आर्य महाशय हरिरामजी की दुकान पर पहुँचा-‘‘चाचाजी! चाचाजी! मुझे एकदम ऋषि-जीवन- चरित्र दीजिए।’’ हरिरामजी ताड़ गये कि आर्यवीर जोश में है- कोई विशेष कारण है। हरिरामजी तो वृद्ध अवस्था में भी जवानों को मात देते रहे। ऋषि-जीवन निकाला। दोनों ही मिर्ज़ाई जलूस की ओर दौड़े। रास्ते में उस युवक ज्ञानप्रकाश ने हरिरामजी को भाषण का वह अंश सुनाया। मौलाना का भाषण अभी चालू था। वह स्टूल पर खड़ा होकर फिर वही बात दुहरा रहा था।

हरिरामजी ने आव देखा न ताव, मौलानी की दाढ़ी अपने हाथों में कसकर पकड़ ली। उसे ज़ोर से लगे खींचने। मौलाना स्टूल से गिरे। दोनों आर्य अब दहाड़ रहे थे। ‘‘बोल! ज़्या बकवास मार रहा

है? दिखा पण्डित लेखरामकृत ऋषि-जीवन में यह कहाँ लिखा है? पहले ऋषि-जीवन में दिखा कहाँ लिखा है?’’

भारी भीड़ में से किसी मिर्ज़ाई को यह साहस न हुआ कि लेखराम-श्रद्धानन्द के शेर से मियाँजी की दाढ़ी बचा सके। तब कादियाँ में मुीभर हिन्दू रहते थे, आर्य तो थे ही 15-20 घर। इस

घटना के कई प्रत्यक्षदर्शी लेखक ने देखे हैं। ज़्या यह घटना साहसी आर्यों का चमत्कार नहीं है? आर्यो! इस अतीत को पुनः वर्तमान कर दो। लाला जगदीश मित्रजी ने बताया कि मौलाना का भाषण उस समय लाला हरिरामजी की दुकान के सामने ही हो रहा था, वहीं लाला हरिराम ने शूरता का यह चमत्कार दिखा दिया।

हदीस : फितरा –

फितरा –

फितरा –  शब्दशः अर्थ ’प्रकृति‘। किन्तु इसकी व्याख्या यह की गई है कि यह पहले के पैगम्बरों के दस्तूर हैं, जिनमें मिसवाक (दंतखोदनी) का इस्तेमाल, पानी से नाक और मुंह की सफाई (इस्तिशांक) और मल-मूत्र विसर्जन के उपरान्त, पानी या सूखी मिट्टी या पत्थर के टुकड़े से किया जाने वाला अपमार्जन (इस्तिंजा) जैसे कर्म शामिल है।

author : ram swarup