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यह मन गढ़न्त गायत्री!

यह मन गढ़न्त गायत्री!

पूज्य स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी महाराज अपने व्याज़्यानों में अविद्या की चर्चा करते हुए निम्न घटना सुनाया करते थे। रोहतक जिला के रोहणा ग्राम में एक बड़े कर्मठ आर्यपुरुष हुए हैं। उनका

नाम था मास्टर अमरसिंह जी। वे कुछ समय पटवारी भी रहे। किसी ने स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज को बताया कि मास्टरजी को एक ऐसा गायत्री मन्त्र आता है जो वेद के विज़्यात गायत्री मन्त्र से न्यारा 1. रावण जोगी के भेस में (उर्दू) है। स्वामीजी महाराज गवेषक थे ही। हरियाणा की प्रचार यात्रा करते हुए जा मिले मास्टर अमरसिंह से।

मास्टरजी से निराला ‘गायत्रीमन्त्र’ पूछा तो मास्टरजी ने बतायाकि उनकी माताजी भूतों से बड़ा डरती थी। माता का संस्कार बच्चे पर भी पड़ा। बालक को भूतों का भय बड़ा तंग करता था। इस

भयरूपी दुःख से मुक्त होने के लिए बालक अमरसिंह सबसे पूछता रहता था कि कोई उपाय उसे बताया जाए। किसी ने उसे कहा कि इस दुःख से बचने का एकमात्र उपाय गायत्रीमन्त्र है। पण्डितों को यह मन्त्र आता है।

मास्टरजी जब खरखोदा मिडिल स्कूल में पढ़ते थे। वहाँ एक ब्राह्मण अध्यापक था। बालक ने अपनी व्यथा की कथा अपने अध्यापक को सुनाकर उनसे गायत्रीमन्त्र बताने की विनय की।

ब्राह्मण अध्यापक ने कहा कि तुम जाट हो, इसलिए तुज़्हें गायत्री मन्त्र नहीं सिखाया जा सकता। बहुत आग्रह किया तो अध्यापक ने कहा कि छह मास हमारे घर में हमारी सेवा करो फिर गायत्री सिखा दूँगा।

बालक ने प्रसन्नतापूर्वक यह शर्त मान ली। छह मास जी भरकर पण्डितजी की सेवा की। जब छह मास बीत गये तो अमरसिंह ने गायत्री सिखाने के लिए पण्डितजी से प्रार्थना की। पण्डितजी का कठोर हृदय अभी भी न पिघला। कुछ समय पश्चात् फिर अनुनयविनय की। पण्डितजी की धर्मपत्नी ने भी बालक का पक्ष लिया तो पण्डितजी ने कहा अच्छा पाँच रुपये दक्षिणा दो फिर सिखाएँगे।

बालक निर्धन था। उस युग में पाँच रुपये का मूल्य भी आज के एक सहस्र से अधिक ही होगा। बालक कुछ झूठ बोलकर कुछ रूठकर लड़-झगड़कर घर से पाँच रुपये ले-आया। रुपये लेकर

अगले दिन पण्डितजी ने गायत्री की दीक्षा दी।

उनका ‘गायत्रीमन्त्र’ इस प्रकार था- ‘राम कृष्ण बलदेव दामोदर श्रीमाधव मधुसूदरना।

काली-मर्दन कंस-निकन्दन देवकी-नन्दन तव शरना। ऐते नाम जपे निज मूला जन्म-जन्म के दुःख हरना।’

बहुत समय पश्चात् आर्यपण्डित श्री शज़्भूदज़जी तथा पण्डित बालमुकन्दजी रोहणा ग्राम में प्रचारार्थ आये तो आपने घोषणा की कि यदि कोई ब्राह्मण गायत्री सुनाये तो एक रुपया पुरस्कार देंगे, बनिए को दो, जाट को तीन और अन्य कोई सुनाए तो चार रुपये देंगे। बालक अमरसिंह उठकर बोला गायत्री तो आती है, परन्तु गुरु की आज्ञा है किसी को सुनानी नहीं। पण्डित शज़्भूदज़जी ने कहासुनादे, जो पाप होगा मुझे ही होगा। बालक ने अपनी ‘गायत्री’ सुना दी।

बालक को आर्योपदेशक ने चार रुपये दिये और कुछ नहीं कहा। बालक ने घर जाकर सारी कहानी सुना दी। अमरसिंहजी की माता ने पण्डितों को भोजन का निमन्त्रण भेजा जो स्वीकार हुआ।

भोजन के पश्चात् चार रुपये में एक और मिलाकर उसने पाँच रुपये पण्डितों को यह कहकर भेंट किये कि हम जाट हैं। ब्राह्मणों का दिया नहीं लिया करते। तब आर्यप्रचारकों ने बालक अमरसिंह को बताया कि जो तू रटे हुए है, वह गायत्री नहीं, हिन्दी का एक दोहा है। इस मनगढ़न्त गायत्री से अमरसिंह का पिण्ड छूटा। प्रभु की पावन वाणी का बोध हुआ। सच्चे गायत्रीमन्त्र का अमरसिंहजी ने जाप आरज़्भ किया। अविद्या का जाल तार-तार हुआ। ऋषि दयानन्द

की कृपा से एक जाट बालक को आगे चलकर वैदिक धर्म का एक प्रचारक बनने का गौरव प्राप्त हुआ। केरल में भी एक ऐसी घटना घटी। नरेन्द्रभूषण की पत्नी विवाह होने तक एक ब्राह्मण द्वारा रटाये जाली गायत्रीमन्त्र का वर्षों पाठ करती रही।

 

हदीस : प्रार्थना (सलात)

. प्रार्थना (सलात)

चौथी किताब ”सलात की किताब“ है। यह सबसे लंबी है। इसमें 1398 अहादीस हैं, जो 203 पर्वों में विभक्त हैं। पर इस समस्त किताब में आत्मगवेषणा या आत्मज्ञान जैसे उन प्रसंगों की तलाश व्यर्थ होगी जो भारतीय अध्यात्म-परम्परा में स्थायी महत्व के रहे हैं। भिन्न-भिन्न रूपों में व्यक्त होने वाली एक ही दिव्य सत्ता की उपासना भिन्न-भिन्न स्वभाव वाले मनुष्य विविध मार्गों से कर सकते हैं, इसका कोई दूरवर्ती संकेत तक इसमें नहीं है। यहां जिस प्रकार एक ही अल्लाह है, एक ही मार्गदर्शक है और एक ही किताब है, वैसे ही एक ही प्रार्थना है जो एक ही सूत्र में बद्ध और स्थिर हैं।

 

इस किताब के 203 पर्वों के शीर्षकों से ही प्रकट हो जाता है कि वे सभी पर्व बाह्माचार से संबंधित हैं- अज़ान (प्रार्थना के लिए बुलाया जाना); झुकने; सजदा करने और उठने की भंगिमाएं; नमाज़ों के वक्त और उनकी संख्या; प्रार्थना-व्यवस्था में इमाम की जगह; अलग-अलग समय की प्रार्थना के गुण-वैशिष्ट्य; वर्षा के लिए प्रार्थना, आंधी तथा अन्य विपदाओं से रक्षा करने के लिए प्रार्थना, मृत व्यक्ति से सम्बद्ध प्रार्थना, इत्यादि।

author : ram swarup

वेदज्ञान मति पापाँ खाय

वेदज्ञान मति पापाँ खाय

यह राजा हीरासिंहजी नाभा के समय की घटना है। परस्पर एक-दूसरे को अधिक समझने की दृष्टि से महाराजा ने एक शास्त्रार्थ का आयोजन किया। आर्यसमाज की ओर से पण्डित श्री मुंशीरामजी लासानी ग्रन्थी ने यह पक्ष रज़्खा कि सिखमत मूलतः वेद के विरुद्ध नहीं है। इसका मूल वेद ही है। एक ज्ञानीजी ने कहा-नहीं, सिखमत का वेद से कोई सज़्बन्ध नहीं। श्री मुंशीरामजी ने प्रमाणों की झड़ी लगा दी। निम्न प्रमाण भी दिया गया- दीवा बले अँधेरा जाई, वेदपाठ मति पापाँ खाई।

इस पर प्रतिपक्ष के ज्ञानीजी ने कहा यहाँ मति का अर्थ बुद्धि नहीं अपितु मत (नहीं) अर्थ है, अर्थात् वेद के पाठ से पाप नहीं जा सकता अथवा वेद से पापों का निवारण नहीं होगा। बड़ा यत्न करने पर भी वह मति का ठीक अर्थ बुद्धि न माने तब श्री मुंशीरामजी ने कहा ‘‘भाईजी! त्वाडी तां मति मारी होई ए।’’ अर्थात् ‘भाईजी आपकी तो बुद्धि मारी गई है।’’

इस पर विपक्षी ज्ञानीजी झट बोले, ‘‘साडी ज़्यों त्वाडी मति मारी गई ए।’’ अर्थात् हमारी नहीं, तुज़्हारी मति मारी गई है। इस पर पं0 मुंशीराम लासानी ग्रन्थी ने कहा-‘‘बस, सत्य-असत्य का

निर्णय अब हो गया। अब तक आप नहीं मान रहे थे अब तो मान गये कि मति का अर्थ बुद्धि है। यही मैंने मनवाना था। अब बुद्धि से काम लो और कृत्रिम मतभेद भुलाकर मिलकर सद्ज्ञान पावन वेद का प्रचार करो ताकि लोग अस्तिक बनें और अन्धकार व अशान्ति दूर हो।’’

हदीस : शारीरिक ऊष्मा का संरक्षण

शारीरिक ऊष्मा का संरक्षण

यदि नहाते वक्त शरीर की गर्मी ज्यादा घट जाती थी तो बीवी का आलिंगन करके उसे फिर से पाया जा सकता था। तिरमिज़ी द्वारा उद्धृत एक हदीस के मुताबिक, आयशा बतलाती हैं-”ऐसा कई बार होता था कि अल्लाह के पैगम्बर शुद्धि-स्नान के बाद, गर्म होने के इरादे से मेरे पास आते थे और मैं बिना नहाई (और इसलिए अशुद्ध दशा में) होती तब भी मैं उन्हें अपने साथ लपेट लेती थी“ (किताब 1, हदीस 108)।

 

ये सभी कायदे-कानून बनाने के बावजूद मुहम्मद उनसे बंधे नहीं थे। पैगम्बरी का विशेषाधिकार उनके पास था। इस मामले में अली को उन्होंने साझीदार बना रखा था। अबू सईद के अनुसार मुहम्मद ने अली से कहा-”ऐ अली ! यौनाचार से उत्पन्न अपवित्रता की दशा में मस्जिद में जाना, मेरे और तुम्हारे सिवाय, और किसी के लिए विधिसम्मत नहीं है“ (तिरमिज़ी, किताब 2, हदीस 1584)।

author : ram swarup

पाप-कर्म करने के धार्मिक दिन

पाप-कर्म करने के धार्मिक दिन1

24 दिसज़्बर से 27 दिसज़्बर 1924 ई0 को सनातन धर्म सभा भटिण्डा का वार्षिकोत्सव था। बार-बार आर्य-सिद्धान्तों के बारे में अनर्गल प्रलाप किया गया। शङ्का-समाधान के लिए विज्ञापन

में ही सबको आमन्त्रण था। पण्डित श्री मनसारामजी शङ्का करने पहुँचे तो पौराणिक घबरा गये। पण्डित श्री मनसारामजी के प्रश्नों से पुराणों की पोल ज़ुल गई। चार प्रश्नों में से एक यह था कि पौराणिक ग्रन्थों में मांस-भक्षण का औचित्य ज़्यों? उत्सव के पश्चात् पौराणिकों ने पं0 गिरधर शर्माजी को फिर बुलाया। आपने कहा मांसभक्षण का विधान इसलिए है कि अभक्ष्य का भक्षण करनेवाला विशेष दिनों में ही मांस खाए, इस पर पण्डित मनसारामजी ने कहा यदि यह पाप

कर्मों की धार्मिक विधि है तो फिर मनुस्मृति में मांस-भक्षण के लिए दण्ड ज़्यों?

हदीस : सहस्नान

सहस्नान

कई हदीसों में वर्णित है कि पैगम्बर मैथुन के बाद अपनी बीवियों के साथ नहाते थे। आयशा बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल एक पात्र (जिसमें 15 से 16 पौंड पानी आता था) से पानी लेकर नहाते थे। और मैं तथा वे उसी पात्र से नहाते थे“ (625)। एक दूसरी हदीस में वे इसी बात को कुछ विस्तार के साथ बतलाती हैं-”मैं और अल्लाह के पैगम्बर एक ही बर्तन से पानी लेकर नहाते थे और जिस मुद्रा में हम मैथुन करते थे उसी मुद्रा में हमारे हाथ बारी-बारी से उसमें जाते थे“ (629)।

 

मुहम्मद की दो दूसरी बीवियां-उम्म सलमा और मैमूना-भी बतलाती हैं वे और मुहम्मद साथ-साथ नहाते थे (581, 631)।

 

अनुवादक ने महसूस किया कि विरोधी समीक्षकों की सम्भावित आलोचना पैगम्बर के इस आचरण की मार्जना आवश्यक है। वे हमें बतलाते हैं कि यह स्नान एक सर्वथा कर्म था। कोई तेज रोशनी नहीं होती थी। और यद्यपि कई बार पैगम्बर और उनकी बीवियां एक ही पात्र से नहाते थे, तथापि वह कोई ऐसा टब-स्नान नहीं होता था, जिसमें जोड़े एक साथ बैठ कर नहाते हैं। फिर वे बिल्कुल अंधेरे में नहाते थे और उनके द्वारा एक दूसरे की देह को देखने का कोई सवाल ही नहीं उठ सकता था (टि0 538)।

author : ram swarup

मनुष्यों को खाने को नहीं मिलता

मनुष्यों को खाने को नहीं मिलता

यह युग ज्ञान और जनसंज़्या के विस्फोट का युग है। कोई भी समस्या हो जनसंज़्या की दुहाई देकर राजनेता टालमटोल कर देते हैं।

1967 ई0 में गो-रक्षा के लिए सत्याग्रह चला। यह एक कटु सत्य है कि इस सत्याग्रह को कुछ कुर्सी-भक्तों ने अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए प्रयुक्त किया। उन दिनों हमारे कालेज के एक

प्राध्यापक ने अपने एक सहकारी प्राध्यापक से कहा कि मनुष्यों को तो खाने को नहीं मिलता, पशुओं का ज़्या करें?

1868 में, मैं केरल की प्रचार-यात्रा पर गया तो महाराष्ट्र व मैसूर से भी होता गया। गुंजोटी औराद में मुझे ज़ी कहा गया कि इधर गुरुकुल कांगड़ी के एक पुराने स्नातक भी यही प्रचार करते हैं। मुझे इस प्रश्न का उज़र देने को कहा गया। जो उज़र मैंने महाराष्ट्र में दिया। वही उज़र अपने प्राध्यापक बन्धु को दिया था।

मनुष्यों की जनसंज़्या में वृद्धि हो रही है यह एक सत्य है, जिसे हम मानते हैं। मनुष्यों के लिए कुछ पैदा करोगे तो ईश्वर मूक पशुओं के लिए तो उससे भी पहले पैदा करता है। गेहूँ पैदा करो

अथवा मक्की अथवा चावल, आप गन्ना की कृषि करें या चने की या बाजरा, जवारी की, पृथिवी से जब बीज पैदा होगा तो पौधे का वह भाग जो पहले उगेगा वही पशुओं ने खाना है। मनुष्य के लिए दाना तो बहुत समय के पश्चात् पककर तैयार होता है।

वैसे भी स्मरण रखो कि मांस एक उज़ेजक भोजन है। मांस खानेवाले अधिक अन्न खाते हैं। अन्न की समस्या इन्हीं की उत्पन्न की हुई है। घी, दूध, दही आदि का सेवन करनेवाले रोटी बहुत कम खाते हैं। मज़्खन निकली छाछ का प्रयोग करनेवाला भी अन्न थोड़ा खाता है। इस वैज्ञानिक तथ्य से सब सुपरिचित हैं, अतः मनुष्यों के खाने की समस्या की आड़ में पशु की हत्या के कुकृत्य का पक्ष लेना दुराग्रह ही तो है।

हदीस : बार-बार मैथुन के बाद केवल एक स्नान

बार-बार मैथुन के बाद केवल एक स्नान

वुजू से विपरीत, स्नान का करना प्रत्येक मैथुन के उपरांत हर बार आवश्यक नहीं है। अनस बतलाता है कि ”अल्लाह के रसूल अपनी बीवियों से मैथुन करने के बाद एक बार ही नहाते थे“ (606)। तिरमिजी की रंगीन भाषा में-”पैगम्बर एक ही स्नन से, सब औरतों को पार कर जाते थे“ (किताब 1, हदीस 124)। अनुवादक समझाते हैं-”पाक पैगम्बर हर एक मैथुन के बाद नहीं नहाते थे, केवल वुजू कर लेते थे और आखिर में ही नहाते थे“ (टि0 514)।

author : ram swarup

गाय को माता क्यों मानते हो?

गाय को माता क्यों मानते हो?

देश विभाजन से पूर्व अमृतसर में एक शास्त्रार्थ हुआ। आर्यसमाज की ओर से श्री ज्ञानी पिण्डीदासजी ने वैदिक पक्ष रखा। इस्लाम की ओर से जो मौलवी बोल रहे थे उन्होंने यह कहा कि गाय को आप माता क्यों मानते हैं? भैंस-बकरी को क्यों नहीं मानते?

वैसे तो वेद पशुहिंसा का विरोधी है। गाय ज़्या भैंस, बकरी, घोड़ा आदि सब पशु हमारे ह्रश्वयार व संरक्षण के पात्र हैं, परन्तु गाय की महत्ता  का जो उत्तर  ज्ञानीजी ने वहाँ दिया वह सबको सदैव

स्मरण रखना चाहिए। गाय का दूध अत्यन्त उपयोगी है यह तो सब जानते हैं, परन्तु पशुओं में केवल गाय ही एकमात्र पशु है जो मानवीय माता की भाँति नौ मास तक अपने बच्चे को गर्भ में रखती है। इसलिए ही इस माता का दूध मानवीय माता के बच्चे के लिए अधिक लाभप्रद होता है।

हदीस : गुस्ल

गुस्ल

नमाज के वास्ते, जिन कामों के बाद पूरा शरीर धोना चाहिए ताकि अशुद्धि से मुक्ति हो सके, वे इस प्रकार हैं-मासिक धर्म, प्रसव-कर्म, मैथुन तथा स्वप्नदोष। यह आचार कुरान की इस आयत के मुताबिक है-”यदि तुम प्रदूषित हो, तो स्वयं को शुद्ध करो“ (5/6)।

 

इस प्रसंग में स्वयं मुहम्मद के आचार के बारे में दो दर्जन से ज्यादा अदीस हैं। आयशा कहती हैं-”जब अल्लाह के पैगम्बर मैथुन करके नहाते हैं, तब पहले अपने हाथ धोते हैं, फिर दाहिने हाथ से बाएं हाथ पर पानी डालते हैं और अपने गुप्तांग धोते हैं…..“ (616)।

 

मुहम्मद का अभ्यास यह था कि मैथुन के उपरांत  ”कई बार वे नहाते थे, तब सोते थे और कई बार वुजू कर लेते थे।“ स्नान रात को न कर सुबह की नमाज के पहले करते थे। जब आयशा ने हदीसकार को यह बात बताई, तब उसने श्रद्धा से भर कर कहा-”स्तुत्य हे अल्लाह, जिसने काम आसान कर दिए“-ईमानवालों की खातिर (603)।

 

ऐसे ही निर्देश औरतों के वास्ते हैं। उम्म सुलैम नाम की एक औरत मुहम्मद के पास गई और पूछा-”यदि औरत यौन-क्रिया वाला स्वप्न देखे, तो क्या उसके लिए भी नहाना जरूरी है ?“ मुहम्मद ने जवाब दिया-”हां, जब वह स्राव (योनि से बहने वाला पानी) देखे, तब।“ जब मुहम्मद की बीवियों ने सुना कि उम्म सुलैम ने मुहम्मद से एक सवाल पूछा है, जिसमें स्त्री द्वारा भी यौनक्रिया वाले सपने देखे जाने का संकेत है, तब उन्हें बहुत बुरा लगा। वे उससे बोलीं-”तुमने औरतों को नीचा दिखाया है“ (610, 611)।

author : ram swarup