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शव का दाह-कर्म ही होगा

शव का दाह-कर्म ही होगा

मारीशस में सरकारी नियमानुसार किसी शव का दाह-कर्म नहीं किया जा सकता था। बीसवीं शताज़्दी के आरज़्भ की घटना है कि मारीशस में एक सैनिक टुकड़ी आई। इनमें से किसी की मृत्यु हो गई। नियमानुसार उसे दबाने के लिए कहा गया। आर्यवीर सैनिकों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। सरकार ने पुलिस की सहायता से शव को भूमि में गाड़ना चाहा, परन्तु ये सैनिक विद्रोह पर तुल गये। सरकार को ललकारा-देखते हैं कि हमारा शव कौन छूता है? सरकार झुक गई। आर्यों की मारीशस में यह पहली बड़ी जीत थी। मारीशस में यह प्रथम दाह-कर्म था।

यही लोग जाते-जाते सत्यार्थप्रकाश की एक प्रति दो-एक मित्रों को दे गये। आर्यसमाज का बीज बोनेवाले यही थे। आज तो- लहलहाती है खेती दयानन्द की।

निश्चय ही ये सब लोग नींव के पत्थर थे। कृतज्ञता इस बात की माँग करती है कि मैं पाठकों को यह स्मरण कराऊँ कि स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज केवल सेनानी के रूप में ही इतिहास

बनानेवाले न थे, अपितु इतिहास के गज़्भीर विद्वान् तथा इतिहास को सुरक्षित करनेवाले भी थे। मारीशस को भारत से जोड़नेवाले, इस द्वीप के महज़्व को समझने व समझानेवाले तथा इसका इतिहास व भूगोल लिखनेवाले वे प्रथम भारतीय विद्वान् व नेता थे। उस दूरदर्शी साधु की दृष्टि ने तब मारीशस का महज़्व जाना जब भारत के सब राजनैतिक नेता गहरी नींद में सोये हुए थे। यह उपर्युक्त सब सामग्री उन्हीं की पुस्तक से ली गई है।

हदीस : मुहम्मद की आखि़री वसीयत

मुहम्मद की आखि़री वसीयत

एक जुमेरात को जब उनकी बीमारी भयानक हो उठी, तो मुहम्मद ने कहा-“मैं तीन बातों के बारे में वसीयत करता हूं। बहुदेववादियों को अरब के इलाक़े से निकाल बाहर करो, विदेशी प्रतिनिधियों की वैसी ही मेज़बानी करो जैसी मैं करता रहा हूं।“ तीसरी बात हदीस सुनाने वाला भूल गया (4014)।

 

मुहम्मद अपने आखि़री क्षणों में एक वसीयत भी लिखना चाहते थे। उन्होंने लिखने के उपकरण मांगते हुए कहा-“आओ, मैं तुम्हारे लिए एक दस्तावेज लिख जाता हूं। उसके बाद तुम गुमराह नहीं होंगे।“ लेकिन उमर ने, जो वहां मौजूद थे, कहा कि लोगों के पास कुरान पहले से ही है। उमर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ”अल्लाह की किताब हमारे लिए काफ़ी है“, और मुहम्मद को उस नाजुक हालत में परेशान नहीं करना चाहिए। जब उनके बिस्तर के इर्द-गिर्द एकत्र लोग आपस में वाद-विवाद करने लगे तो मुहम्मद ने उनसे कहा-”उठो और बाहर चले जाओ“ (4016)।

 

मुमकिन है कि उमर मृतप्राय व्यक्ति के प्रति सच्ची संवेदना से भर उठे हों। लेकिन बाद में अली के समर्थकों ने दावा किया कि मुहम्मद अपनी आखिरी वसीयत में अली को अपना वारिस बनाना चाहते थे और उमर ने अबू बकर से सांठ-गांठ करके एक गंदी चाल द्वारा उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।

author : ram swarup

 

1मारीशस में आर्यसमाज

1मारीशस में आर्यसमाज

जब सैनिक विद्रोह पर तुल गये पूज्यपाद स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज ने लिखा है, ‘‘मारीशस

में आर्यसमाज की स्थापना उसी भाँति हुई जैसे हवा कहीं से किसी बीज को उड़ाकर ले-जाए और किसी दूर की भूमि पर जा पटके और वह बीज वहाँ ही उग आये।’’ मारीशस में आर्यसमाज का बीज बोने और उसे अंकुरित करनेवाले महारथी थे-श्री रामशरणजी मोती, वीर खेमलालजी वकील, श्री केहरसिंह (गाँव चिदा, जिला फिरोज़पुर, पञ्जाब), श्रीरामजीलाल तथा श्री चुन्नीलाल आदि (चीमनी ज़िला हिसार, हरियाणा के) श्री लेखरामजी (आदमपुर गाँव, ज़िला हिसार, हरियाणा), श्री हरनाम सिंह (झज्झर, हरियाणा के), श्री मंसासिंहजी जालन्धर, ज़िला पञ्जाब के तथा श्री गुरप्रसाद गोपालजी आदि मारीशस-निवासी थे।

श्री रामशरणजी मोती ने पञ्जाब से कुछ पुस्तकें मँगवाई थीं। उनमें रद्दी में आर्यपत्रिका लाहौर के कुछ पन्ने थे। इन्हें पढ़कर वे प्रभावित हुए। उस दुकानदार से उन्होंने ‘आर्यपत्रिका’ का पता

लगाया। इस पत्रिका को पढ़ते-पढ़ते वे आर्यसमाजी बन गये। साहस के अङ्गारे वीर खेमलालजी के आर्य बनने की कहानी विचित्र है। एक सैनिक टोली मीराशस आई। उनमें कुछ आर्यपुरुष

भी थे। उनकी बदली हो गई। जाते-जाते वे कुछ पुस्तकें वहीं दे गये। श्री भोलानाथ हवलदार एक सत्यार्थप्रकाश की प्रति श्री खेमलाल को दे गये।

श्री जेमलाल सत्यार्थप्रकाश पढ़कर दृढ़ आर्य बन गये। श्री रामशरण मोती ने रिवरदी जाँगील में आर्यसमाज का आरज़्भ किया तो ज़ेमलालजी ने मारीशस की राजधानी पोर्ट लुइस व ज़्यूर

पाइप में वेद-ध्वजा फहरा दी। पोर्ट लुइस के आर्यपुरुष एक होटल में एकत्र होते थे। ये लोग पाखण्ड-ज़ण्डन खूब करते थे। पोप शज़्द तो सत्यार्थप्रकाश में है ही। वीतराग स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज ने लिखा है कि इन धर्मवीरों ने पोप के अनुयायियों के लिए ‘पोपियाँ’

शज़्द और गढ़ लिया।

मेरी पाठकों से, आर्य कवियों से व लेखकों से सानुरोध प्रार्थना है कि मारीशस के उन दिलजले दीवानों की स्मृति को स्थिर बनाने के लिए पोप के चेलों के लिए ‘पोपियाँ’ शज़्द का ही प्रयोग किया करें। इस शज़्द को साहित्य में स्थायी स्थान देना चाहिए। अभी से गद्य के साथ पद्य में भी इस अद्भुत शज़्द के प्रयोग का आन्दोलन मैं ही आरज़्भ करता हूँ-

विश्व ने देखा कि पोपों के सभी गढ़ ढह गये।

पोप दल और पोपियाँ सारे बिलखते रह गये॥

वेद के सद्ज्ञान से फिर लोक आलोकित हुआ।

मस्तिष्क मन मानव का जब फिर धर्म से शोभित हुआ॥

हदीस : क़र्जे

क़र्जे

मुहम्मद मृतक के कर्जों के मामले में बहुत सतर्क थे। मृत व्यक्ति की संपत्ति में से उसके अंतिम संस्कारों के खर्च निकालने के बाद उसके कर्जों की अदायगी सबसे पहले की जाती थी। अगर उसकी संपत्ति कर्जों की अदायगी के लिए काफ़ी न हो तो चंदे से पैसा जुटाया जाता था। किन्तु लड़ाइयां जीतने के बाद मुहम्मद जब धनी हो गये तो कर्ज़ वे अपने पास से चुकता कर देते थे। उन्होंने कहा-”जब अल्लाह ने जीत के दरवाजे मेरे लिए खोल दिये तो उसने कहा कि मैं मोमिनों के अधिक नज़दीक हूं, इसलिए अगर कोई क़र्ज़ छोड़कर मर जाता है तो उसकी अदायगी मेरी ज़िम्मेदारी है और अगर कोई जायदाद छोड़ कर मरे तो वह उसके वारिसों को मिलेगी“ (3944)।

author : ram swarup

‘आर्यसमाज के नियम’1

‘आर्यसमाज के नियम’1

1904 ई0 में आर्यसमाज टोहाना की स्थापना हुई। शीघ्र ही यह नगर वैदिक धर्मप्रचार का भारत-विज़्यात केन्द्र बन गया। नगर तथा समीपवर्ती ग्रामों में भी शास्त्रार्थ होते रहे। 1908 ई0 में टोहाना में एक भारी शास्त्रार्थ हुआ। पौराणिकों की ओर से पण्डित श्री लक्ष्मीनारायणजी बोले। आर्यसमाज की ओर से पण्डित श्री राजाराम डी0ए0वी0 कालेज, लाहौर के प्राध्यापक ने वैदिक पक्ष रखा।

शास्त्रार्थ के प्रधान थे श्री उदमीराम पटवारी। पण्डित राजारामजी ने पूछा ‘‘शास्त्रार्थ किस विषय पर होगा?’’ पं0 लक्ष्मीनारायण जी ने कहा-‘‘आर्यसमाज के नियमों पर।’’

पण्डित राजारामजी ने कहा, हमारे नियम तो आप भी मानते हैं। शास्त्रार्थ तो ऐसे विषय पर ही हो सकता है जिसपर आपका हमसे मतभेद हो। ऐसे चार विषय हैं-(1) मूर्ज़िपूजा (2) मृतक-

श्राद्ध, (3) वर्णव्यवस्था और (4) विधवा-विवाह।’’

पौराणिक पण्डित ने कहा ‘‘हम आपका एक भी नियम नहीं मानते।’’ सूझबूझ के धनी पण्डित राजारामजी ने अत्यन्त शान्ति से शास्त्रार्थ के प्रधान श्री उदमीरामजी पटवारी से कहा-‘‘ज़्यों जी!

आप हमारा कोई भी नियम नहीं मानते?’’ पटवारीजी ने भी आर्यसमाज के प्रति द्वेष के आवेश में आकर कहा-‘‘हम आर्यसमाज का एक भी सिद्धान्त नहीं मानते।’’

पण्डित राजारामजी ने कहा-‘‘लिखकर दो।’’

पटवारीजी ने अविलज़्ब लिखकर दे दिया। पण्डित राजारामजी ने उनका लिखा हुआ सभा में पढ़कर सुना दिया कि हम आर्यसमाज का एक भी सिद्धान्त नहीं मानते। तब पण्डित राजारामजी ने श्रोताओं को सज़्बोधित करते हुए कहा, आर्यसमाज का सिद्धान्त है ‘वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।’

पौराणिकों का मत यह हुआ कि न वेद को न पढ़ना न पढ़ाना, न सुनना न सुनाना। आर्यसमाज का नियम है ‘सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।’ पौराणिक मत का सिद्धान्त बना ‘असत्य को स्वीकार करने व सत्य के परित्याग में सदैव तत्पर रहना चाहिए।’

श्रोताओं को पण्डित राजारामजी की युक्ति ने जीत लिया। इस शास्त्रार्थ ने कई मनुष्यों के जीवन की काया पलट दी।

आर्यसमाज के अद्वितीय शास्त्रार्थ महारथी श्री मनसारामजी पर कुछ-कुछ तो पहले ही वैदिक धर्म का प्रभाव था, इस शास्त्रार्थ को सुनकर तरुण मनसाराम के जीवन में एकदम नया मोड़ आया और उसने अपना जीवन ऋषि दयानन्द के उद्देश्य की पूर्ति के लिए समर्पित कर दिया। पटवारी उदमीरामजी की सन्तान ने आगे चलकर वैदिक धर्म के प्रचार में अपने-आपको लगा दिया। आर्यसमाज नयाबाँस दिल्ली के श्री दिलीपचन्दजी उन्हीं पटवारीजी के सुपुत्र थे।

हदीस : कानूनी वारिसों के लिए दो-तिहाई

कानूनी वारिसों के लिए दो-तिहाई

एक मृत व्यक्ति की जायदाद को मृतक की कई-एक अदायगियां पूरी करने के बाद बांटा जा सकता है, जैसे कि दफ़नाने का खर्च और मृतक के कर्जों की अदायगी। इस्लाम के सिवाय किसी और मज़हब को मानने वाले व्यक्ति को यह हक़ नहीं है कि वह किसी मुसलमान से कोई उत्तराधिकार पाए। इसी प्रकार कोई मुसलमान (किसी) गैर-मुस्लिम का दाय-भाग ग्रहण नहीं कर सकता“ (3928)। विरासत के एक अन्य सिद्धांत के अनुसार “एक मर्द दो औरतों द्वारा पाए जाने वाले भाग के बराबर हैं“ (3933)।

 

मुहम्मद कहते हैं कि कोई व्यक्ति अपनी जायदाद के सिर्फ़ एक-तिहाई भाग की ही वसीयत कर सकता है। बाकी दो-तिहाई कानूनी वारिसों को मिलना चाहिए। साद बिन अबी वक्कास से मुहम्मद उनकी मृत्यु-शैय्या पर मिले। साद के सिर्फ एक बेटी थी। उन्होंने जानना चाहा कि क्या वे अपनी जायदाद का दो-तिहाई अथवा आधा सदके (दान) में दे सकते हैं। पैग़म्बर ने जवाब दिया-”एक तिहाई दो और वह बहुत काफी है। अपने वारिसों को धनवान छोड़ना बेहतर है, बजाय इसके कि वे ग़रीब रहें और दूसरों से मांगते फिरें“ (3991)।

author : ram swarup

 

ऐसे दिलजले उपदेशक!

ऐसे दिलजले उपदेशक!

बहुत पुरानी बात है। देश का विभाजन अभी हुआ ही था। करनाल ज़िला के तंगौड़ ग्राम में आर्यसमाज का उत्सव था। पं0 शान्तिप्रकाशजी शास्त्रार्थ महारथी, पण्डित श्री मुनीश्वरदेवजी आदि

कई मूर्धन्य विद्वान् तथा पण्डित श्री तेजभानुजी भजनोपदेशक वहाँ पहुँचे। कुछ ऐसे वातावरण बन गया कि उत्सव सफल होता न दीखा। पण्डित श्री शान्तिप्रकाशजी ने अपनी दूरदर्शिता तथा अनुभव से यह भाँप लिया कि पण्डित श्री ओज़्प्रकाशजी वर्मा के आने से ही उत्सव जम सकता है अन्यथा इतने विद्वानों का आना सब व्यर्थ रहेगा।

पण्डित श्री तेजभानुजी को रातों-रात वहाँ से साईकिल पर भेजा गया। पण्डित ओज़्प्रकाशजी वर्मा शाहबाद के आस-पास ही कहीं प्रचार कर रहे थे। पण्डित तेजभानु रात को वहाँ पहुँचे।

वर्माजी को साईकल पर बिठाकर तंगौड़ पहुँचे। वर्माजी के भजनोपदेश को सुनकर वहाँ की जनता बदल गई। वातावरण अनुकूल बन गया। लोगों ने और विद्वानों को भी श्रद्धा से सुना।

प्रत्येक आर्य को अपने हृदय से यह प्रश्न पूछना चाहिए कि ज़्या ऋषि के वेदोक्त विचारों के प्रसार के लिए हममें पण्डित तेजभानुजी जैसी तड़प है? ज़्या आर्यसमाज की शोभा के लिए हम

दिन-रात एक करने को तैयार हैं। श्री ओज़्प्रकाशजी वर्मा की यह लगन हम सबके लिए अनुकरणीय है। स्मरण रहे कि पण्डित तेजभानुजी 18-19 वर्ष के थे, जब शीश तली पर धरकर हैदराबाद सत्याग्रह के लिए घर से चल पड़े थे। अपने घर से सहस्रों मील की दूरी पर धर्म तथा जाति की रक्षा के लिए जाने का साहस हर कोई नहीं बटोर सकता। देश-धर्म के लिए तड़प रखनेवाला हृदय ईश्वर हमें भी दे। तंगौड़ में कोई धूर्त उत्सव में विघ्न डालता था।

भविष्य पुराण , कुंताप सूत्र में मोहमद का नाम

एक दिन जब ऐसे ही हम अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर आए हुवे संदेश पढ़ रहे थे तब हमारे आर्यसमाजी मित्र  आतिश कुमार , वाणी जी ,कार्तिक अय्यर एवम फैझ खान के बीच एक विषय पर चर्चा चल रही थी , बहुत आश्चर्य हुवा की एक मोमिन चर्चा कर सकता है …?

चर्चा कुछ इस प्रकार थी , जो हर धर्म मे मत में रसूल का होना से अथर्वेवेद के कुंताप सूत्र पर खत्म हुवी ….

फैझ खान : अल्लाहताला ने 124000 नबी भेजे , रसूल शायद आप के धर्म मे भी हो

आतिश आर्य : जब आप ये कह रहे हो हर जाति समुदाय में रसूल ने जाकर ज्ञान दे दिया तो अब उस ज्ञान के अनुसार कोई जीवन जीये अथवा नहीं ये ईश्वर उसके अंत में न्याय कर देंगे और जेसे हर जाति समुदाय में रसूल भेजे वेसे ही अरब में अरबी भाषा में दे दिया तब भी कोई मतलब नहीं बनता अरबी किताब को सारी दुनिया में कायम करो जेसे और किताबे उस स्थान विशेष के लिए थी वेसे ही ये कुरान भी अरब के लिए ही सिद्ध है

फैझ खान : ये आप कह रहे है कि ईश्वर कलाम देने की जरूरत नही जबकि ये ईश्वरीय सिद्धान्त अनुसार नही अगर मैं यही बात कहुँ की इसे साबित करो अपने गर्न्थो से तो क्या आप कर सकते हो ? जबकि अन्य मज़ाहिब का सिद्धान्त यही है जो मैं साबित करने की छमता रखता हूँ बड़े मज़ाहिब से की कलमा-ए-इलाही देने की क्यों जरूरत पड़ी और शुरू में इसपर क्यों पकड़ मजबूत नही हुई। और ये दावा हमारा इसलिए हे कि कुरआन ईश्वरीय कलाम है क्योंकि दावेदार जब दावा करता है तो वो पूरे मूल्य सिद्धान्त को समझने के बाद ही करता है अन्यथा नही ठीक कुरआन का दावा करना ही इस बात की दलील है कि अगर उनके दरमियान कलाम-ए-इलाही मौजूद है तो फिर वो इस दावे को समझने की पूर्ण क्षमता रखते है। ये उनके पैग़ाम इलाही के विरुद्ध बाते है जबकि उनके पास पैग़ाम जो आया उसमे आगे के नबियो का जिक्र मौजूद है जिसपर ईमान लाना उनपर फ़र्ज़ है खुवा बाइबल उठाओ या तोराह या बुध मत यहां तक हिन्दुओ के यहां भी ये आदेश मौजूद है जो आखरी वक्त में कल्कि अवतार के तहत भविष्यवाणी की गई है । ओर रद्दोबदल कुरआन में सम्भव नही और रही वेध मन्त्रो की बात तो जो भाषा आज जीवित नही उसके मायने क्या से क्या किये जाते है ये बात किसी से छुपी नही है अभी खुद इस बात को आप भी जानते है तो फिर किस तरह उस किताब पर ईमान लाया जाए इसका अर्थ एक किताब में कुछ मिलता है तो दूसरे में कुकब , निज़ाम इंसानो के दरमियान तय की गई है जो ऐन ईश्वरीय आदेश के मुताबिक है अपने मुर्तद की तहक़ीक़ नही की जिसके एवज़ आप कह रहे है। धर्म छोड़ना और निज़ाम की मुखालिफत करना ये दो अलग बात है जहाँ शरीयत नाफ़िज़ है वहा सिर्फ ईश्वर विरुद्ध नही बल्कि ईश्वरीय कानून के विरुद्ध भी कदम उठाना है धर्म ईश्वर का है कानून भी ईश्वर का है लेकिन जो निज़ाम बनाई गई है वो मानव के तहत बनाई गई है जहा सिर्फ धर्म को फॉलो किया जा रहा है वहा मुर्तद की सज़ा कत्ल नही ये मैं उस वक्त भी कह आया लेकिन जहा इस्लाम सिर्फ धर्म नही बल्कि निज़ाम है यानी कानून भी है तब वहा सजाए मोत है क्योंकि यहां सिर्फ धर्म की मुखालिफत नही हो रही है बल्कि निज़ामे इलाही की भी मुखालिफत हो रहा है उस देश के कानून के साथ मुखालिफत हो रही है जब ये फैसला इंसानी हुक़ूक़ में शुमार करता है जो मैं कह आया इससे पहले भी जहा महज़ ईश्वर तक बात महदूद है वहा फैसला ईश्वर ही करेगा लेकिन जहा बात इंसानो के बीच भी आ जाती है वहां फैसला इंसान के हक में छोड़ा गया है क्योंकि गद्दार सिर्फ वो खुदा का ही नही बल्कि तुम्हारे देश का कानून का भी है।ओर ये जो बात है इसका कोई प्रमाण नही जो क़ौम जाहिल हो बात बात पर लड़ने के लिए तैयार हो भला उसके देवता या देवी की मूरत को तोड़ा जाए और वो बर्दास्त करे ? ये कोई तर्क पूर्ण जवाब नहीं और जबकि एक लाख की आबादी में महज़ चन्द लोग ही वो की गुलाम तबके के वर्ग और कुछ गरीब मिस्कीन लोग ही ईमान की दावत को कुबूल किये थे और जैसा कि हम जानते है गुलाम और मिस्कीन लोगो की क्या औकात थी दौरे जाहिलियत में जो गुलाम अपने आका के हुक्म के खिलाफ कदम उठाने की जरूत नही रखता था उसमे चन्द मिनट में इतन्ज कूवत कैसी आ गई कि वो उनके आका के खुदाओं की ही तोहिन कर दे और उसका आका खड़ा हो कर देखता रहे जबकि इंसान की जिंदगी की कोई कदर उस जमाने मे नही होती थी बात बात पर इंसान को मारना ये तो आम रिवाज़ था उस जमाने का छोटी सी छोटी गलतियों पर कत्ल की सज़ा थी।

वाणी जी : तो आज वर्तमान परिपेक्ष में कुरान की वो आयते जो युद्धसमयी लिखी गयी , तत्कालीन जरूरत अनुसार उसे रद्दोबदल कर देना अपर्यायी हो जाता है , क्यो की उन्ही आयतो का सहारा ले कर मुसलमान बच्चा अतिवाद की तरफ कदम बढ़ा रहा …

 

फैझ खान : भाई तुम सिर्फ बहस और इल्ज़ाम लगाना जानते हो जिसका कोई प्रमाण नही अतनकवाद का कोई समर्थक नही खुवा वो किसी मज़हब का हो कल में चीन के किसी धर्म गुरु का बयान सुन रहा था शायद उसका नाम लम्बा था उसने कहा ये बुध मत का संदेश नही और ये अतनकवाद है जो बुध मत के पैरोकार कर रहे है बहर-हाल में उस बीच मे नही जाना चाहता मेरा सिर्फ इतना कहना है कि अगर अतनकवाद के दुवारा धर्म को फैलाया जा रहा है तो वो चन्द लोग ही क्यों है दुनिया मे डेढ़ अरब मुसलमान और 2 अरब ईसाई है उन्होंने उसका समर्थन क्यों नही किया ? और खुद बुध मत के वो लम्बा ने इसका समर्थन क्यों नही किया ये बात दर्शता है कि ये धर्म की शिक्षा के खिलाफ बाते है जिसका कोई प्रमाण नही रही बात विचार को फैलाने का इस बात को कुबूल करता हूँ कि मुसलमान और इस्लाम यही चाहता है और इनकी सोच भी यही है कि दुनिया मे इस्लाम फैल कर रहेगा ध्यान रहे फैल कर रहेगा ये नही की फैलाया जाएगा अगर फैलाया जाने से मुराद भी ले लिया जाए तो दिंन की तबलिक से इसे फैलाया जाएगा न कि तलवार के जोर से

कार्तिक अय्यर: वेद में निकाल कर दिखाओ आपके कल्कि अवतार का। और गलती से भी भविष्य पुराण का नाम मत लिखना।   क्योंकि उसमें मोहम्मद साहब की जमकर निंदा लिखी है।

फेजखान: इधर उधर की बाते छोड़ो काम की बाते करो मेरे भाई

कार्तिक अय्यर: आप खुद झूठ बोल रहे हो कि ग्रंथों में भविष्यवाणी होती है। और अल्लाह मियां ने एक ही बार में पूरा ज्ञान क्यों न दे दिया? उसमें परिवर्तन परिवर्धन की क्या जरूरत?

फेजखान: कुंतब सुक्ता के मायने क्या होता है ? और ये चैप्टर वेदों में क्यों डाली गई ?

फेजखान: अगर भविष्य नही होती तो फिर इस चैप्टर को बंधा क्यों गया ? दूसरी बात अगर भविष्य शास्त्रों में नही होती तो पुराणों में एक पुराण भबिषयपुरण क्यों मौजूद है ? आपके पवित्र गर्न्थो में ?

कार्तिक अय्यर: आपने कभी वेद के दर्शन भी किये हैं? कुंताप सूक्त में केवल एक विशेष गुण वाले राजा का वर्णन है नाकि किसी काल्पनिक पैगंबर का। एड़ी चोटी का जोर लगा लो आपका पैगंबर वेद में नहीं मिलने वाला

कार्तिक अय्यर: इस हिसाब से तो कुरान में भी रहीम रहमान आदि से दयानंद जी का नाम सिद्ध हो जायेगा। तो रहने दीजिये । किसी भी ब्राह्मण,निरुक्त आदि में मोहम्मद साहब का नाम नहीं है।

फेजखान: भाई न मानने के लिए कई कुतर्क है लेकिन मानने के लिए सिर्फ एक दलील कल तक कह रहे थे कि वेदों में इतिहास नही वेदों में फला नही अभी कह रहे थे कि झूठ बोल रहे हो कि गर्न्थो में भविष्यवाणी होती है जब मैंने कुंतब का नाम लिया तो अभी राजा विशेष पर आ कर थम गए ये है तुम्हारा कुतर्क

कार्तिक अय्यर: रहा प्रश्न भविष्यपुराण का तो महोदय, भविष्यवाणी जैसा कुछ नहीं होता। भविष्य पुराण तो पंडो ने रचा है। इसमें अकबर औरंगजेब तक को अवतार कहै है।

कार्तिक अय्यर: हमने किसी ऐतिहासिक राजा का नाम नहीं कहा,एक गुणविशेष राजा का कहा है

फेजखान: दयानन्द  कुरआन से सिद्ध किसी भी चीज़ को नापने के लिए उसका कांसेप्ट देखा जाता है न कि जहा फला चीज़ का जिक्र आया है वो किसी से भी नाप दिया जाए और उससे सिद्ध कर दिया जाए कि ये वही है

कार्तिक अय्यर: इस पुराण में संडे फरवरी सिक्सस्टी आदि अंग्रेजी के शब्द हैं और अनेक अश्लील गप्पें हैं जो किसी वाममार्गी पौराणिकों ने रची है,किसी ऋषि की नहीं

फेजखान: अरे भाई गुण ही है लेकिन भविष्य तो दी जा रही है उसे राजा के प्रति ?

कार्तिक अय्यर: इसीलिये तो हम कह रहे हैॉ कि वेद में किसी पैगंबर का जिक्र नहीं होता क्योंकि वेद में किसी व्यक्ति विशेष की चर्चा नहीं होती

कार्तिक अय्यर: कोई भविष्य नहीं दी जा रही है। ऐसे गुण अनेक राजाओं में हो सकते हैॉ

फेजखान: अरे भाई राजा कौन है ? व्यक्ति है या कोई कुत्ता बिल्ली है ?

कार्तिक अय्यर: आप तो कुंताप शब्द का ही अर्थ बता दो बस!

कार्तिक अय्यर: राजा कोई भी हो सकता है,उस गुण को जो धारण करे

फेजखान: अनेक राजाओ में हो सकते है तो फिर वो राजा कौन है ? इसका आजतक तो अपने खुलाशा नही किया

फेजखान: अरे भाई वही गुण किसी इंसान पर ही न आ कर बैठेगी ? या कोई और चीज़ है

कार्तिक अय्यर: हे ईश्वर! हमने कहा कि उसमें राजा के गुण है कि कैसे गुणवाला राजा क्या कहलाता है आदि किसी इतिहास का चिह्न तक नहीं

कार्तिक अय्यर: लेकिन आपके पैगंबर में शायद ही वैसा कोई गुण मिले

फेजखान: अच्छा अथेरवेद किताब 20 हिम 127 शोलोका 1 से 14 तक का अर्थ करे क्या करते है आपके महा ऋषि

फेजखान: अरे जनाब वो गुण वाले राजा कहा है ये तो बता दो जिसका बयान वेदों में किया जा रहा है और इतिहास का कोई हिस्सा नही वेदों में तो फिर ये भविष्य किसकी बता रही है वेद ?

 

कार्तिक अय्यर: महर्षि दयानंद ने अथर्ववेद का अर्थ नहीं किया। जो अर्थ पं जयदेव, हरिशरण आदि ने किया वो रख सकते हैं

फेजखान: किसी इतिहास की तरफ आपके अनुसार अरबो खरबो वर्ष पहले ही इशारा किया जा रहा है ?

कार्तिक अय्यर: सचमुच अक्ल पर पत्थर पड़ा हो तो व्यक्ति अंधा हो जाता है। हमने कब कह दिया कि वहां भविष्य लिखा है? हमने केवल इतना कहा कि राजा में क्या गुण हो यह सब आया है

फेजखान: लो … एक ऋषि वो भी महा उसने अर्थ ही नही किया अथेरवेद का वैसे मुझे पता था लेकिन जिसको ऋषि मानते हो उसका ही अर्थ दिखा दो क्या करते है आपके पण्डित इसका अर्थ

फेजखान: अरे मेरे भाई गुण का बयान कही और भी तो हो सकता था भविष्य वाले चैप्टर में गुण का बयान करना ये कौनसी समझदारी है क्या ये ईश्वरीय पुस्तक की महारत रखती है ईश्वर को ये नही पता कि गुण का बयान और भविष्य के बयान कहा और किस तरह करनी चाहिए ?

फेजखान: अच्छा भविष्य का मतलब क्या होता है ? जरा बताने का कष्ट करें ?

फेजखान: ओके

कार्तिक अय्यर: कदापि नहीं।

फेजखान: लेकिन एक बात कह देता हूँ कि भविषय का जिक्र इस बात की दलील है कि वेद भी किसी की तरफ इशारा कर रहा है जिसको ये नही मानना चाहते इसी को हदधर्मी कहा गया है जिस तरह यहूद व नशारा ने किया

फेजखान: अरे मेरे भाई भविष्य का मतलब क्या होता है वो पहले बताओ ?

कार्तिक अय्यर: चलिये तो सिद्ध करो कि वेद में भविष्य होता है

कार्तिक अय्यर: भविष्य यानी जो आगे होने वाला है।

फेजखान: तो क्या आगे होने वाला है उसी का बयान होगा, सही है ?

कार्तिक अय्यर: निरुक्तकार यास्कमुनि और सब प्राचीन टीकाकारों ने वेद में इतिहास आदि का निषेध किया है

अनवारुल हसन : फिर बम बन्दुक का जिक्र कहा से

कार्तिक अय्यर: अरे भाई| जो पदार्थ विद्या से संभव हो वो तो तीनों कालों में संभव है । मुद्दे पर बने रहो, मुद्दा यह है कि वेद में किसी पैगंबर का जिक्र है या नहीं

अनवारुल : बरहाल आप लोग चर्चा करे तब तक मै गुसुल कर लूँ

(नोट : इनके बस नही चला तो निकल पड़े )

फेजखान: अरे भाई इतिहास उसे कहते है जो बीत जाते है और भविष्य उसे कहते है जो होने वाले है वेद में इतिहास इसी लिए नही क्योंकि आप मानते है या हमे भी मानने में कोई एतेराज़ नही की वेद प्रचीन पुस्तक है हो सकता है कि ये उस वक्त दी गई हो जब इंसान को पहले पैग़ाम देने का वक्त आया ये आपके अनुसार है लेकिन हम तमाम वेदों को इस पर आधरित नही मानते इसकी वजह ये है कि वेदों में पैग़ाम सहिफे के एतेबार से दर्ज है यानी कई सहिफे मिल कर वेद आज मोजूद है मुकम्मल किताब नही भेजी गई एक ही वक्त में तौरह और इंजील की तरह वेद में कई ऐसे मन्त्र है जिससे ये बात साबित होती है कि वेद के कुछ मन्त्र जमीन में इंसान के फेल जाने के बाद भी आई है जो बाद में जोड़े गए है।

कार्तिक अय्यर: देखिये, कुछ लोग जबरन वेद में इतिहास ढूंढने लगते हैं।जैसे ऋग्वेद ६/२७/८ में अभ्यावर्ती चायमान नामक राजा का वर्णन है  । जबकि ये कोई ऐतिहासिक राजा नहीं है,न कोई भविष्य वाणी। निरुक्त में “अभ्यावर्ती” का अर्थ है याचकों को उन्मुख होने वाला चाय मान यानी योगार्थ। अर्थात् यहां राजा को याचकों को उन्मुख होकर योगार्थ दान देने का उपदेश है

फेजखान: राजा का जिक्र है वो इंसान है या जानवर है पहले ये बताओ ?

कार्तिक अय्यर: जरा निकालकर दिखायेॉ वो मंत्र कौन से हैं

फेजखान: पैगम्बर इंसान है उसी तरह अगर राजा का जिक्र है तो रजा इंसान ही होगा

फेजखान: अरे यार मन्त्र दिया है न खुद निकाल कर देख सकते हो

कार्तिक अय्यर: मानव ही है, पर कोई इतिहास या भविष्य नहीं है वहां। वहां केवल राजा के लिये उपदेश है। वो कोई भी हो सकता है

फेजखान: कुंतब सुक्ता निकालो 20 हिम यानी 127 श्लोक निकाल कर शुरू से पढो और बताओ क्या लिखा है

फेजखान: अजीब है यार भविष्य का मतलब ये है कि आने वाले चीज़ और आप कह रहे हो कि वहां सिर्फ उपदेश है ? ये कोनसी अक्ल वाली बात हुई ?

कार्तिक अय्यर: चलो उसके पहले एक उदाहरण ऐर ले लो।

ऋग्वेद ८/२/४१ में विभिंदु राजा का वर्णन है। विभिंदु का अर्थ है-“दरिद्रों के दुखों का भेदन करने वाला”। यहां पर हर राजा को दीन दुखियों की सेवा करने का उपदेश है नाकि किसी विभिंगु नामक राजा का भविष्य लिखा है

 

फेजखान: अरे यार गुण तो कही और भी बताई जा सकती है भविष्य की किताब में ही क्यों ?

फेजखान: मुझे वो मन्त्र लिखा कर दिखाओ उसमे क्या लिखा है

फेजखान: बाकी बाते बाद  में होगी

फेजखान: फोकट का बहस करने की आदत नही

कार्तिक अय्यर: केवल उपदेश है भाई! और वेद कोई नास्त्रेदमस की कोई भविष्य पुस्तक नहीं ईश्वरीय ज्ञान है।

कार्तिक अय्यर: चलो दिखाता हूं रुको दो मिनट

कार्तिक अय्यर: वेद में केवल ज्ञान होता है कोई भविष्य वाणी नहीं

फेजखान: समाजियो को नही समझाया जा सकता

कार्तिक अय्यर: ये बात मोमिनों पर भी लागू है

फेजखान: भी लागू है आपके अनुसार लेकिन हम मानते है समझियों को समजाया नही जा सकता । भाई था और हे में फर्क है जिस तरह भविषय के चेप्टर में उपदेश जैसी कुतर्क का फर्क

वाणी जी: अथर्वेद की कोई 20 किताबे नही है …

 

फेजखान: आर्यो ने खुद की किताब लिख रखी है तो कहा से मिलेगी या यूं कहें कि ऋषि साहब ने नही लिखी इसलिए वो मौजूद ही नही। ऊपर रखा गया है पढ़े उसे

कार्तिक अय्यर: इनको प्रमाण रखना तक नहीं आता। संदर्भ ऐसे देते हैं अथर्ववेद कांड २० सूक्त १२७ मंत्र १

वाणी जी:  ओर चले वेदोपर आक्षेप करने…

वैसे क्या लिखा है , आपने क्या पढ़ा है कार्तिक जी प्रमाण ईनको रखने देते थे ….

देखे तो सही कितना इल्म है इनको वेदोंका …

कार्तिक अय्यर: आप होश ठिकाने लाकर बताइये। इस हरिशरणजी के भाष्य में आपके मोहम्मद साहब किस नदी में बह गये? औऱ  हां जी, जाते जाते बताकर जाइये। यहां पर गायों के पालन का वर्णन है। मोहम्मद ने कौन सी गायें पाली या इस्लाम की भविष्यकी योजना गायों के रक्षण को लेकर क्या है?

वाणी जी: आबे जम जम में गोता लगाए होंगे ..

कार्तिक अय्यर: मंत्र १२ में इंद्र शब्द परमात्मा का वाचक है। क्या इस्लाम मोहम्मद साहब को ईश्वर मानने को तैयार है?

वाणी जी : कार्तिक जी कुछ लोग बाजार से कोई भी किताब उठा लाते ओर लग जाते पैजमा ऊपर कर खुद की कब्र खोदने .वैसे किताब कौनसी खरीदे उसको भी दिमाख लगता है .ओर तो देखे इन्होंने कुंताप सूत्र में मोहमद साहब को धुण्ड लिया

कार्तिक अय्यर: पता नहीं मोमिनों को पराई छाछ पर मूंछ मुंडवाने का क्या शौक है?

फेजखान: देखे धोखा पब्लिक को किस तरह देते है मन चाहे अर्थ बना कर इसलिए कहा जाता है जिस जबान का अंत हो चुका है उसके अर्थ को किस तरह मान लिया जाए कि ये जो अर्थ किया गया है वो सही ही है ? इसका क्या प्रमाण है ? तो इनकी बोलती बंद हो जाती है क्योंकि इन्हें पता है कि हम इसका प्रमाण ऋषि मुनियों (जिनपर वेद उतरी उनके जानिब से दे ही नही सकते) बहर-हाल अंतर देखे इनके दिए हुए मन्त्रो का जो टिल का ताड करके इतना बड़ा बना दिया गया है जिससे जाहिर हो जाता है कि कुछ तो छुपाने की कोशिश हो रही है और एक ये अर्थ किया हुआ है जिससे साफ जाहिर है कि भविषय का इल्म कुछ तो दिया गया है जो भविष्य में पेश आएगा। अथेर्वेद काण्ड 20:127:1-14 (अच्छा थोड़े देर पहले एक महाशय कह रहे थे कि अथेर्वेद में 20 काण्ड (अर्थात किताब है ही नही) अभी खुद वही से निकाल कर दे रहे है सोचे कितना ज्ञान है इन्हें खुद के किताबो का 🤣

  1. है जनो-लोगो! नरों की प्रशंसा में स्तवन किये जाते है, उन्हें सुनो, हे कौरम हम 6090 वीरों को पाते या नियुक्त करते है।
  2. बिस ऊंट अपनी शक्तियों सहित उस नर के रथ को खिंचते है। उस रथ के सिर दुलोक को स्पर्श करने की इच्छा के साथ चलते है।
  3. इस (नर श्रेष्ठ ने) मामह ऋषि (ये मेरा नही पंडितो का दिया हुआ गया है 🤣 मैं इसे अर्थात मोहम्मद (सल्ल०) करता हूँ) को सौ स्वर्ण मुद्राओ, दस हारो, तीन सौ अश्वों तथा दस हज़ार गौओ का दान दिया।
  4. हे स्तोता! बोलो-पाठ करो। (पाठ के समय) ओष्ठ और जिह्न जल्दी-जल्दी चलते है, जैसे पके फल वाले वृक्ष पर पक्षी (की चोंच) और केचियो के फल चलते है।

इसी तरह आगे और भी मन्त्र कहे गए है जिस तरह एक जनाब ये कह रहे थे कि राजा का बयान हुआ है अब उस राजा का अर्थ क्या लिया है पंडितो ने जरा उसे भी गौर करे राजा से मुराद ये नही है कि वो काफी हीरे जेवरात और उसकी दस मुल्कों में हुकूमत होगी बल्कि नही वो उन मनुष्य में सबसे  श्रेष्ठ होगा देखे।

  1. सर्वहितकारी, सभी पर शासन करने वाला एवं भली प्रकार परीक्षित राजा की श्रेष्ठ स्तुतियों का श्रवण करे, क्योंकि मनुष्य में श्रेष्ठ होने का कारण राजा देवतुल्य होता है।

इसी प्रकार आगे के मन्त्र भी है जो भविष्य पर निर्भर है।

कार्तिक अय्यर: भविष्य  पुराण   में  महामद  ( मुहम्मद ) एक पैशाच धर्म स्थापक -भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक  . 1 -31

 

श्री सूत उवाच-

  1. शालिवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन्। राज्यं पञ्चशताब्दं च कृत्वा लोकान्तरं ययुः

१. श्री सूत जी ने कहा – राजा शालिवाहन के वंश में दस राज हुए थे। उन सबने पञ्च सौ वर्ष पर्यन्त राज्य शासन किया था और अंत में दुसरे लोक में चले गए थे।

 

  1. मर्य्यादा क्रमतो लीना जाता भूमण्डले तदा। भूपतिर्दशमो यो वै भोजराज इति स्मृतः।

२. उस समय में इस भूमण्डल में क्रम से मर्यादा लीन हो गयी थी। जो इनमे दशम राजा हुआ है वह भोजराज नाम से प्रसिद्द हुआ। .

 

  1. दृष्ट्वा प्रक्षीणमर्य्यादां बली दिग्विजयं ययौ। सेनया दशसाहस्र्या कालिदासेन संयुतः।

३. उसने मर्यादा क्षीण होते देखकर परम बलवान उसने(राजा ने) दिग्विजय करने को गमन किया था। सेना में दस सहस्त्र सैनिक के साथ कविश्रेष्ठ कालिदास थे।

 

  1. तथान्यैर्ब्राह्मणैः सार्द्धं सिन्धुपारमुपाययौ जित्वा गान्धारजान् म्लेच्छान् काश्मीरान् आरवान् शठान्।

४. तथा अन्य ब्राह्मणों के सहित वह सिन्धु नदी के पार प्राप्त हुआ(अर्थात पार किया) था। और उसने गान्धारराज, मलेच्छ, काश्मीर, नारव और शठों को दिग्विजय में जीता।

 

  1. तेषां प्राप्य महाकोषं दण्डयोग्यानकारयत् एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्येण समन्वितः।

५. उनका बहुत सा कोष प्राप्त करके उन सबको योग्य दण्ड दिया था। इसी समय काल में मल्लेछों का एक आचार्य हुआ।

 

  1. महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम्।

६ महामद शिष्यों की अपने शाखाओं में बहुत प्रसिद्द था। नृप(राजा) ने मरुस्थल में निवास करने वाले महादेव को नमन किया।

 

  1. गंगाजलैश्च सस्नाप्य पञ्चगव्य समन्वितैः। चन्दनादिभिरभ्यर्च्य तुष्टाव मनसा हरम् ।

७. पञ्चजगव्य से युक्त गंगा के जल से स्नान कराके तथा चन्दन आदि से अभ्याचना(भक्तिपूर्वकभाव से याचना) करके हर(महादेव) को स्तुति किया।

 

भोजराज उवाच-

  1. नमस्ते गिरिजानाथ मरुस्थलनिवासिने। त्रिपुरासुरनाशाय बहुमायाप्रवर्त्तिने।

८. भोजराज ने कहा – हे गिरिजा नाथ ! मरुस्थल में निवास करने वाले, बहुत सी माया में प्रवत होने त्रिपुरासुर नाशक वाले हैं।

 

  1. म्लेच्छैर्गुप्ताय शुद्धाय सच्चिदानन्दरूपिणे। त्वं मां हि किंकरं विद्धि शरणार्थमुपागतम् ।

.९ मलेच्छों से गुप्त, शुद्ध और सच्चिदानन्द रूपी, मैं आपकी विधिपूर्वक शरण में आकर प्रार्थना करता हूँ।

 

सूत उवाच-

 

  1. इति श्रुत्वा स्तवं देवः शब्दमाह नृपाय तम्। गन्तव्यं भोजराजेन महाकालेश्वरस्थले ।

१०. सूत जी ने कहा – महादेव ने प्रकार स्तुति सुन राजा से ये शब्द कहे “हे भोजराज आपको महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।”

 

  1. म्लेच्छैस्सुदूषिता भूमिर्वाहीका नाम विश्रुता। आर्य्यधर्मो हि नैवात्र वाहीके देशदारुणे ।

११. यह वाह्हीक भूमि मलेच्छों द्वारा दूषित हो चुकी है। इस दारुण(हिंसक) प्रदेश में आर्य(श्रेष्ठ)-धर्म नहीं है।

 

  1. बभूवात्र महामायी योऽसौ दग्धो मया पुरा। त्रिपुरो बलिदैत्येन प्रेषितः पुनरागतः ।

१२. जिस महामायावी राक्षस को मैंने पहले माया नगरी में भेज दिया था(अर्थात नष्ट किया था) वह त्रिपुर दैत्य कलि के आदेश पर फिर से यहाँ आ गया है।

 

  1. अयोनिः स वरो मत्तः प्राप्तवान् दैत्यवर्द्धनः। महामद इति ख्यातः पैशाच कृति तत्परः ।

१३. वह मुझसे वरदान प्राप्त अयोनिज(pestle, मूसल, मूलहीन) हैं। एवं दैत्य समाज की वृद्धि कर रहा है। महामद के नाम से प्रसिद्द और पैशाचिक कार्यों के लिए तत्पर है।

 

  1. नागन्तव्यं त्वया भूप पैशाचे देशधूर्तके। मत् प्रसादेन भूपाल तव शुद्धिः प्रजायते ।

१४. हे भूप(भोजराज) ! आपको मानवता रहित धूर्त देश में नहीं जाना चाहिए। मेरी प्रसाद(कृपा) से तुम विशुद्ध राजा हो।

 

  1. इति श्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान् पुनरागमत्। महामदश्च तैः सार्द्धं सिन्धुतीरमुपाययौ ।

१५. यह सुनने पर राजा ने स्वदेश को वापस प्रस्थान किया। और महामद उनके पीछे सिन्धु नदी के तीर(तट) पर आ गया।

 

  1. उवाच भूपतिं प्रेम्णा मायामदविशारदः। तव देवो महाराज मम दासत्वमागतः ।

१६. मायामद माया के ज्ञाता(महामद) ने  राजा से झूठ     कहा – हे महाराज ! आपके देव ने मेरा दासत्व स्वीकार किया है अतः वे मेरे दास हो गए हैं।

 

  1. ममोच्छिष्टं संभुजीयाद्याथात त्पश्य भो नृप। इति श्रुत्वा तथा परं विस्मयमागतः ।

१७. हे नृप(भोजराज) ! इसलिए आज सेआप   मुझे ईश्वर के संभुज(बराबर) उच्छिष्ट(पूज्य) मानिए, ये सुन कर राजा विस्मय को प्राप्त भ्रमित हुआ।

 

  1. म्लेच्छधर्मे मतिश्चासीत्तस्य भूपस्य दारुणे, तच्छृत्वा कालिदासस्तु रुषा प्राह महामदम्।

१८. राजा की दारुण(अहिंसा) मलेच्छ धर्म में रूचि में वृद्धि हुई। यह राजा के श्रवण करते देख, कालिदास ने क्रोध में भरकर महामद से कहा।

 

  1. माया ते निर्मिता

कार्तिक अय्यर: वैसे जरा भाष्यकार का नाम तो बताना

वाणी जी : धन्य हो .हरा सलाम आपको ,…

वैसे ये अनार्ष भाष्य ही होगा

कार्तिक अय्यर: ये लो भविष्य पुराण भी देख लो। आपके मोहम्मद साहब की कितनी इज्जत की गई है। पैशाचिक धर्मस्थापक कहा है

औऱ हम बताते हैं, ये श्रीरामशर्मा का भाष्य है।

वाणी जी: क्या फेजभाई वेदोंमें महाभारत घुसेड़ दी, भाष्यकार का नाम तो बताना

फेजखान: अरे ले न भाई हमको कोनसा भषयकार का नाम छुपा कर पुरस्कार मिलने वाले है हम तो तमाम भषयकार को झूठा और पकाण्ड समझते है जो अपने मन मुताबिक गोलते फिरते रहते है हर जगह कल हो कर इसका कुछ और ही अर्थ रहेगा .. लो

कार्तिक अय्यर: मामह ऋषि?? मामह यहां पर क्रिया है,संज्ञा नहीं है। और मामह को संज्ञा करोगे तो अन्य इस मंत्र में क्रिया ही नहीं रह जायेगी।और मामह ऋषि कौन था? मोहम्मद साहब को ऋषि कैसे बोला? ऋषि वेदमंत्र का दृष्टा होता है । मोहम्मद साहब को तो वेद का नाम तक न पता था।

 

फेजखान: चलो अब निकलता हु काम आ गया है

कार्तिक अय्यर: पं श्रीराम शर्मा क्या आर्यसमाजी हैं? उनका अर्थ हमारे सामने क्या मूल्य रखता है? क्या आपके लिये कुरान की  तफसीरें महेंद्रपाल जी ने रखी तो आपने उसे क्यो नही माना और कहां भाग रहे हो मियां? अर्थ तो आपका दिया भी अशुद्ध है  इसके अगले मंत्रों में नराशंस द्वारा गाओं का दान करना लिखा है। और इंद्र शब्द भी आया है। इंद्रदेव परमात्मा का वाचक है। आपके पैगंबर को ईश्वर मानने को तैयार हो?

भविष्य वाणी ऊपर तो भविष्यपुराण में भी दी है, देखे उसमें आपके मोहम्मद साहब की कैसी सी दुर्गति की है …

कार्तिक अय्यर: क्यों मोमिनों? श्रीराम शर्मा आर्यसमाजी है ? क्या आप लोग आर्यों की कुरानी तफसीरें मानोगे?

पहले इतना बता दो कि मामह यदि संज्ञा है तो मंत्र में क्रिया क्या है…?  मामह मोहम्मद कैसे हो गया? जबकि मोहम्मद में ऋषि के एक गुण न था

वाणी जी: हम भी कुरान और हदीस को पाखंड समझे तो चलेगा…❓

फेजखान: बात करता हूँ मानुगा या नही कह नही सकता

कार्तिक अय्यर: महेंद्रपाल जी ने एक आयत का अर्थ किया है कि अल्लाह ने मरियम की शर्मगाह में फूंक मारी। कहो मंजूर है? और एक आयत का अर्थ किया है कि अल्लाह मकर करने वाला धोखेबाज है। अल्लाह को धोखेबाज मानोगे?

कार्तिक अय्यर: वैसे आपने कौन से निरुक्त व्याकरण ब्राह्मण से ये कपोलकल्पित अर्थ किया है? हिम्मत होती तो हमारे भाष्य को अशुद्ध सिद्ध करते

मंत्र १ की टिप्पणी देखो। यहां ६०९० वीरों द्वारा चक्रव्यूह बनाने का उल्लेख है । आपके मोहम्मद साहब को आता था चक्रव्यूह बनाना? वो तो धोखे से घात लगाकर निर्दोषों की हत्या लूटपाट करते थे।

कार्तिक अय्यर: यहां पर “इंद्रादिदेवों की प्रशंसा में स्तवन किये जाते हैं” आया है। क्या मोहम्मद साहब इंद्रादिदेवों का स्तवन करते थे या वे स्वयं इंद्र थे?

कार्तिक अय्यर: इस नरश्रेष्ठ ने उस मामह ऋषि को दान दिया। यहां पर *नरश्रेष्ठ* कौन है? क्या अल्लाह? नहीं नहीं वो नर नहीं,ईश्वर है। क्या जिबरील? नहीं, वो तो फरिश्ता है ।

औऱ ६००० गायों का दान- महोदय, इस्लामिक इतिहास में मोहम्मद साहब को इतनी गायों का दान किसने दिया? अल्लाह मियां ने या जबरील ने?

वाणी जी: २०:१२७:३

एष इषाय *मामहे* शतं निष्कांदश स्त्रज:।

त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्त्रा दश गोनाम।।

 

इस मंत्र में मामहे शब्द का अर्थ इन्होंने मोहमद कर लिया । हसी आ रही

कार्तिक अय्यर: वाणी जी, देख रहे हैं न कैसी कतर ब्योंत करके अपना  मन माना अर्थ बना दिया?

वाणी जी: सत्य कथन भ्रातः

कार्तिक अय्यर: मंत्र ११:- इंद्रदेव ने स्तोता को प्रेरित किया कि उठ खड़े होओ- महोदय,यह पौराणिक इंद्र का मोहम्मद से क्या संबंध है और उसने मोहम्मद को कब उठाकर खड़ा किया?  यहां लिथा है- सब मुझ इंद्र की स्तुति करें। क्योंजी! अल्लाह के अलावा इंद्र की इबादत करके शिर्क करना मंजूर है आपको? गौयें अपने वंश को बढ़ाये- इस्लाम वालों ने आजतक गौओं का वर्धन नहीं किया। न मोहम्मद साहब ने किया न ही अब कर रहे हैं ।उल्टा गाय काटकर खा रहे हैं।

 

“पूषादेव प्रतिष्ठित हों”- महोदय, ये इंद्र के बाद पूषा कौन है? दुबारा शिर्क कर लिया?  कुंताप शब्द का अर्थ क्या है? यहां लिखा है-कुत्सित पापों को तपाकर भस्म करने वाला । तपाना यानी तप करना। यानी आपसे तपस्या कराई जायेगी। परंतु इस्लाम मान लो,सब पाप स्वाहा। मुसलमान होकर भी माफी मांगने से पाप माफ। तो फिर यहां तपाया कहां गया? यहां तो केवल तौबा कर लिया?

और एक जगह तो मोहम्मद साहब के पापों को माफ करने की चर्चा है। जो खुद हत्या चोरी व्यभिचार मांसभक्षण आदि पाप करे, वो कुंताप कहां हुआ?

यहा गायों का बड़ा महत्व बताया है। हम जानना चाहेंग् कि इस्लामवालों की गायों के संवर्धन की आगे क्या योजना है या इस्लामी इतिहास में इसका क्या वर्णन है? बीस ऊंट अपनी वधुओं(शक्तियों सहित) उस रथ को खींचते हैं– मोहम्मद साहब के इस विचित्र रथ का खुलासा किया जाये। कि इस तरह का रथ उनके पास कब आया? १०० स्वर्ण मुद्रायें ३०० अश्व १० हार ६०००० गाय- ये दान मोहम्मद साहब को कब मिला और किसने दिया?

कार्तिक अय्यर: भाष्यकार ने मामहे का मामह कर दिया। ह पर से ए की मात्रा हटा दी। इस मंत्र में केवल मामहे ही क्रिया है,दूसरी कोई क्रिया नहीं। यदि वे इस मामह को संज्ञा यानी किसी का नाम बतायेंगे तब इस मंत्र में क्रिया ही नहीं रही? क्या बिना क्रिया के मंत्र होगा?

और आपने यहां मामह को मोहमद कर दिया है किया है  । भला! एक अनपढ़ आदमी ऋषि कबसे हो गया? ऋषि तो वेद का मंत्र द्रष्टा होता है । मोहम्मद को वेद का नाम तक न पता था। मामहे क्रिया है। इसका अर्थ है ‘खूब ही पूजन करता है” नाकि कोई काल्पनिक ऋषि

कार्तिक अय्यर: भविष्य  पुराण में   मुहम्मद को ” महामद ” त्रिपुरासुर  का अवतार  , धर्म दूषक (Polluter of righteousness)और  पिशाच  धर्म (  demoniac religion)  का  प्रवर्तक  बताया  गया   है   . यही नहीं भविष्य  पुराण   में  इस्लाम  को पिशाच  धर्म   और  मुसलमानों  को ” लिंगोच्छेदी “यानि  लिंग  कटवाने वाले  कहा गया है  ,जिसे हिन्दी में  कटुए  और मराठी  में लांडीये  कहा  जाता   है  , ये रोचक भविष्यवाणी भी देख लो मोमिनों  भविष्यपुराण से।

यहां मोहम्मद को महामद नामक राक्षस कहा है जोकि धर्मदूषक(polluter) है  और पैशाच धर्म(demonic religion) का स्थापक है।

यहां लिखा है कि मोहम्मद राक्षस पिछले जन्म में त्रिपुरासुर नामका राक्षस था। उसको शिवजी ने मार डाला। वो भोज राजा के पीछे यहां तक आ गया(पता नहीं इस्लामी पुस्तकों में राजा भोज और मोहम्मद का क्या वर्णन है?) । तब कालिदास ने मंत्र वार से उसको जलाकर खाक कर दिया। उसके शिष्य ‘मदहीन’ होकर उसकी राख को मदीना में ले जाकर दफना दिये। ये है भविष्यवाणी जिनको पढ़कर मोमिनजी बल्लियों उछल रहे थे।

अब हमें पूरी आशा है कि कभी भी भविष्य में मोमिन भविष्यवाणी वेद या भविष्यपुराण से निकालकर मोहम्मद साहब का नाम नहीं निकालेंगे वरना आज जैसी ही दुर्गति होगी।

आतिश कुमार: ओ हो साँस तो ले लेते कार्तिक जी ये वेद प्रकाश उपाध्याय जी के बहकावे में आये हुए है उनकी अंतिम ऋषि नामक किताब को आधार बनाते है लेकिन ये नहीं जानते ये लोग वो आर्य समाजी था जो इन लोगो को मुह की खाने हेतु बहका गए

कार्तिक अय्यर: जी हां ये वेदप्रकाश जैसे धूर्त की ही लीला है। पर इसने भी आज मोमिनों की मट्टी पलीद करवा दी । क्यों कि आज मोहम्मद वेद वाली बात का पाला आर्यसमाज से पड़ा था किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे से नहीं।

आतिश कुमार: इन लोगो का ये हाल है सत्यार्थ प्रकाश की आपत्तियों का आजतक कोई सही जवाब तो दिया नहीं गया तो बस कोई लालची मिल जाय ये उसकी बिना तस्दीक किये मान लेते हैं और बहकाने लगते हैं

कार्तिक अय्यर: जिस तरह से फैज भाई वेद में नाम ढूंढ रह् हैं, उस तरह से तो लग रहा है कि वेदों में अपना नाम भी ढूंढ सकते हैं।

 

नोट : पुराण में बहुत सी बाते  मानने वाली बात नहीं होती है  उसका हम खंडन करते हैं |  यहाँ तक वेद में जाकिर  नायक  ने गलत  जानकारी देकर  सबको भ्रम में डालता है  की वेद में  मोहम्मद  का नाम आया है जबकि वेद में कहीं भी यह नाम नहीं आया है | इसी तरह  इसाई वाले यह जानकारी देते हैं की  वेद में  जीसस का नाम आया हुवा  है वह भी गलत जानकारी  देकर लोगो को भ्रम में डालते हैं जिससे जाकिर नायक और इसाई संघटन  मुस्लिम संघटन  लोगो को भर्मित करने की कोशिश करते हैं जिससे वे सभी  उन्हें  अपने मत में परिवर्तित  कर सके | इन सभी लोगो की झूठी बातो  से बचे | और सही भाष्य की वेद पढ़े | इन सभी संघटन  के झूठी मोहमाया में ना  फंसे |  हमने   सही वेद की  भाष्य हमारे अपने साईट पर डाल रखा है |  सही वेद की भाष्य  के लिए हमारे  साईट  www.onlineved.com  में जाकर वेद  को पढ़े | और  किसी के बह्कावे  में आकर अपना  धर्म को ना परिवर्तित करें इस्लाम इसाई  मत  को ना  अपनाये | सत्यार्थ प्रकाश के लिए  हमारे साईट www.satyarthprakash.in पर  विजिट करें | हमारे  वेद के एंड्राइड अप्प  hhttps://play.google.com/store/apps/details?id=com.aryasamaj.onlinevedapp   पर  विजिट करें  और अप्प  डाउनलोड  करें |

हदीस : वक़्फ

वक़्फ

मुहम्मद वक़्फ अर्थात् सम्पत्ति के एक संग्रह को अल्लाह के लिए समर्पित करने के पक्ष में थे। उमर ने मुहम्मद से कहा-“मुझे खै़बर में जमीन मिली है (पराजित यहूदियों की ज़मीन जो मुहम्मद के साथियों में बांट दी गयी थी)। मैंने इससे ज्यादा कीमती कोई जायदाद कभी प्राप्त नहीं की। अब इसके बारे में क्या करने का हुक्म आप देते हैं ?“ इस पर रसूल-अल्लाह बोले-“अगर तुम चाहो तो तुम इस सम्पत्ति-संग्रह को यथावत रख सकते हो और उसकी उपज को सदके के रूप में दे सकते हो। …… उमर ने उसे गरीबों के लिए, नज़दीकी रिश्तेदारों के लिए, गुलामों की मुक्ति के लिए और अल्लाह के रास्ते में तथा मेहमानों के लिए समर्पित कर दिया“ (4006)।

author : ram swarup

चलो यहीं रह लेते हैं

चलो यहीं रह लेते हैं

किसी कवि की एक सुन्दर रचना है-

हम मस्तों की है ज़्या हस्ती,

हम आज यहाँ कल वहाँ चले।

मस्ती का आलम साथ चला,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले॥

धर्म-दीवाने आर्यवीरों का इतिहास भी कुछ ऐसा ही होता है। पंजाब के हकीम सन्तरामजी राजस्थान आर्यप्रतिनिधि सभा की विनती पर राजस्थान में वेदप्रचार करते हुए भ्रमण कर रहे थे। आप शाहपुरा पहुँचे। वहाँ ज्वर फैला हुआ था। घर-घर में ज्वर घुसा हुआ था। प्रजा बहुत परेशान थी। महाराजा नाहरसिंहजी को पता चला कि पं0 सन्तराम एक सुदक्ष और अनुभवी हकीम हैं। महाराजा ने उनके सामने अपनी तथा प्रजा की परेशानी रखी। वे प्रचार-यात्रा में कुछ ओषधियाँ तो रखा ही करते थे। आपने रोगियों की सेवा आरज़्भ कर दी। ईश्वरकृपा से लोगों को उनकी सेवा से बड़ा लाभ पहुँचा। ज्वर के प्रकोप से अनेक जानें बच गईं। अब महाराजा ने उनसे राज्य में ही रहने का अनुरोध किया। वे मान गये। उन्हें राज्य का हकीम बना दिया गया, फिर उन्हें दीवानी का जज नियुक्त कर दिया गया। अब वे राजस्थान के ही हो गये। वहीं बस गये और फिर वहीं चल बसे।

पाठकवृन्द! कैसा तप-त्याग था उस देवता का। वह गुरदासपुर पंजाब की हरी-भरी धरती के

निवासी थे। इधर भी कोई कम मान न था। पं0 लेखराम जी के साहित्य ने उन्हें आर्य मुसाफ़िर बना दिया। मुसाफ़िर ऐसे बने कि ऋषि मिशन के लिए घर बार ही छोड़ दिया। राजस्थान के लोग आज उनको सर्वथा भूल चुके हैं।