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स्वामी आत्मानन्द सरस्वती

Swami Aatmanand saraswati

स्वामी आत्मानन्द सरस्वती

-डा. अशोक आर्य

स्वामी आत्मानन्द जी सरस्वती आर्य समाज के महान विचारक तथा प्रचारक थे । आप का जन्म गांव अंछाड जिला मेरट उतर प्रदेश में संवत १९३६ विक्रमी तदानुसार सन १८७९ इस्वी को हुआ । आअपका नाम मुक्ति राम रखा गया । आपके पिता जी का नाम पं. दीनदयालु जी था । आपकी आरम्भिक शिक्शा मेरट में हुई तत्पश्चात उतम व उच्च शिक्शा के लिए आप को काशी भेजा गया ।

आप बडे ही मेहनती प्रव्रति के थे । अत: आप ने काशी में बडी लग्न , बडी श्रद्धा व पुरुषार्थ से विद्याध्ययन किया । यहां रहते हुए आप ने व्याकरण व साहित्य के अध्ययन के साथ ही साथ वेदान्तिक दर्शनों का भी अध्ययन किया । यहां शिक्शा काल में ही आप आर्य समाज के सम्पर्क में आये । आप ने आर्य समाज के सम्पर्क में आने के पश्चात आर्य समाज के सिद्धान्तों का बडी बारिकी से चिन्तन मनन व अनुशीलन कर , इन सिद्दन्तों को आत्मसात किया ।

काशी से अपनी शिक्शा पूर्ण कर आप रावल पिण्डी ( अब पाकिस्तान में ) आ गये तथा रावलपिण्डी के गांव चोहा भक्तां में उन दिनों जो गुरुकुल चल रहा था , उस में अध्यापन का कार्य करने लगे । इस गुरुकुल की आपने लम,बेर समय तक सेवा की तथा यहाम पर सन १९१६ से४ सन १९४७ अर्थात देश के विभाजन काल तक आप इस गुरुकुल के आचार्यत्व को सुशोभित करते रहे ।

आप को सब लोग पण्डित मुक्ति राम के नाम से ही अब तक जानते थे किन्तु शीघ्र ही आप ने संन्यास लेने का मन बनाया तथा इसे कार्य रुप देते हुए संन्यास ले कर अपना नाम स्वामी आत्मा राम रख लिया ।

देश के विभाजन के पश्चात जब पाकिस्तान का हिन्दु , सिक्ख तथा आर्य समुदाय भारत आने लगा तो आप भी रावलपिण्डी से भारत आ गये तथा यमुनानगर (हरियाणा) को आपने अपना केन्द्र बना लिया । आप आरम्भ से ही पुरुषार्थी व मेहनती थे । यह आप के पुरुषार्थ का ही परिणाम था कि रावल पिण्डी का गुरुकुल बडे ही उतम व्यवस्था के साथ चलता रहा तथा भारत आने पर भी आप के मन में एक उतम गुरुकुल चलाने की उत्कट इच्छा शक्ति बनी हुई थी । अत: इस विचार पर कार्य करते हुए आप ने यमुना नगर में वैदिक साधना आश्रम की स्थापना की  तथा इस आश्रम के अन्तर्गत उपदेशक विद्यालय आरम्भ किया ।

आप के अथक प्रयत्न का ही परिणम था कि यमुना नगर का उपदेशक विद्यालय कुछ काल में ही आर्य समाज की श्रोमणी संस्थाओं में गिना जाने लगा तथा इससे पटकर निकलने वाले उच्चकोटि के विद्वानों की एक लम्बी पंक्ति दिखाई देने लगी । गुरुकुल कांगडी महाविद्यालय के वेद विभाग के पूर्व अध्यक्श आचार्य स्वर्गीय सत्यव्रत जी राजेश भी इस विद्यालय की ही देन थे ।

आप की लगन , आपके रिषि मिशन से लगाव को तथा आप की आर्य समाज के प्रचार व प्रसार की लगन को देखते हुए आप को आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब का प्रधान भी नियुक्त किया गय । आप ने अपने पुरुषार्थ से आर्य समाज्के कार्य को भर पूर प्रगति दी । इन्हीं दिनों पंजाब में हिन्दी आन्दोलन का भी निर्नय हुआ । आपको इस आन्दोलन की बागदॊर सौंपी गयी तथा यह पूरा व सफ़ल आन्दोलन आप ही के नेत्रत्व में लडा गया ।

यह रीषि का सच्चा भक्त जीवन प्रयन्त आर्य समाज के प्रचार व प्रसार में लगा रहा तथा अन्त में जब वह किसी कार्य वश गुरुकुल झज्जर गये हुए थे , अक्स्मात दिनांक १८ दिसम्बर १९६० इस्वी को उनका देहान्त हो गया ।

 

वीतराग स्वामी सर्वदानन्द

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वीतराग स्वामी सर्वदानन्द

-डा. अशोक आर्य

आर्य समाज ने अनेक त्यागी तपस्वी साधू सन्त पैदा किये हैं । एसे ही संन्यासियों में वीतराग स्वामी सर्वदानन्द सरस्वती जी भी एक थे । आप का जन्म भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से मात्र दो वर्ष पूर्व विक्रमी सम्वत १९१२ या यूं कहें कि १८५५ इस्वी को हुआअ । आप का जन्म स्थान कस्बा बस्सी कलां जिला होशियारपुर पंजाब था । आप के पिता का नाम गंगा विष्णु था, जो अपने समय के सुप्रसिद्ध वैद्य थे । यही उनकी जीविकोपार्जन का साधन भी था ।

स्वामी जी का आरम्भिक नाम चन्दूलाल रखा गया । यह शैव वंशीय परम्परा से थे । इस कारण वह शैव परम्पराओं का पालन करते थे तथा प्रतिदिन पुष्पों से प्रतिमा के साज संवार में कोई कसर न आने देते थे किन्तु जब एक दिन देखा कि एक कत्ता शिव मूर्ति पर मूत्र कर रहा है तो इन के ह्रदय में भी वैसे ही एक भावना पैदा हुई , जैसे कभी स्वामी दयानन्द के अन्दर  शिव पिण्डी पर चूहों को देख कर पैदा हुई थी । अत; प्रतिमा अर्थात मूर्ति पूजन से मन के अन्दर की श्रद्धा समाप्त हो गई । इस कारण वह वेदान्त की ओर बटे । इसके साथ ही साथ फ़ारसी के मौलाना रूम तथा एसे ही अन्य सूफ़ि कवियों की क्रतियों व कार्यों का अधययन किया । यह सब करते हुए भी मूर्ति पर कुते के मुत्र त्याग का द्रश्य वह भुला न पाए तथा धीरे धीरे उनके मन में वैराग्य की भावना उटने लगी तथा शीघ्र ही उन्होंने घर को सदा के लिए त्याग दिया ओर मात्र ३२ वर्ष की अयु में संन्यास लेकर समाज के उत्थान के संकल्प के साथ स्वामी सर्वदानन्द नाम से कार्य क्शेत्र में आए ।

अब आप ने चार वर्ष तक निरन्तर भ्र्मण , देशाट्न व तिर्थ करते हुए देश की अवस्था को समझने आ यत्न किया । इस काल में आप सत्संग के द्वारा लोगों को सुपथ दिखाने का प्रयास भी करते रहे ।

स्वामी जी का आर्य समाज में प्रवेश भी न केवल रोचकता ही दिखाता है बल्कि एक उत्तम शिक्शा भी देने वाला है । प्रसंग इस प्रकार है कि एक बार स्वामी जी अत्यन्त रुग्ण हो गए किन्तु साधु के पास कौन सा परिवार है , जो उसकी सेवा सुश्रुषा करता । इस समय एक आर्य समाजी सज्जन आए तथा उसने स्वामी जी की खूब सेवा की तथा उनकी चिकित्सा भी करवाई । पूर्ण स्वस्थ होने पर स्वामी जी जब यहां से चलने लगे तो उनके तात्कालिक सेवक ( आर्य समाजी सज्जन ) ने एक सुन्दर रेशमी वस्त्र में लपेट कर सत्यार्थ प्रकाश उन्हें भेंट किया । इस सज्जन ने यह प्रार्थना भी की कि यदि वह उसकी सेवा से प्रसन्न हैं तो इस पुस्तक को , इस भेंट को अवश्य पटें ।

स्वामी जी इस भक्त के सेवाभा से पहले ही गद गद थे फ़िर उसके आग्रह को कैसे टाल सकते थे । उन्होंने भक्त की इस भेंट को सहर्ष स्वीकार करते हुऎ पुस्तक से वस्त्र को हटाया तो पाया कि यह तो स्वामी दयानन्द क्रत स्त्यार्थ प्रकाश था । पौराणिक होने के कारण इस ग्रन्थ के प्रति अश्रद्धा थी किन्तु वह अपने सेवक को वचन दे चुके थे इस कारण पुस्तक को बडे चाव से आदि से अन्त तक पटा । बस फ़िर क्या था ग्रन्थ पटते ही विचारों में आमूल परिवर्तन हो गया । परिणाम स्वरूप शंकर व वेदान्त के प्रति उनकी निष्था समाप्त हो गई । वेद , उपनिषद, दर्श्न आदि आर्ष ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा आर्य समाज के प्रचार व प्रसार मे जुट गये । आर्य समाज का प्रचार करते हुए आप ने अनेक पुस्तके भी लिखीं यथा जीवन सुधा, आनन्द संग्रह, सन्मार्ग दर्शन, ईश्वर भक्ति, कल्याण मार्ग, सर्वदानन्द वचनाम्रत , सत्य की महिमा, प्रणव परिचय , परमात्मा के दर्शन आदि ।

जब वह प्रचार में जुटे थे तो उनके मन में गुरुकुल की स्थापना की इच्छा हुई । अत: अलीगट से पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर काली नदी के किनारे (जिस के मुख्य द्वार के पास कभी स्वामी दयानन्द सरस्वती विश्राम किया करते थे ) तथा स्वामी जी के सेवक व सहयोगी मुकुन्द सिंह जी के गांव से मात्र पांच किलोमीटर दूर साधु आश्रम की स्थापना की तथा यहां पर आर्ष पद्धति से शास्त्राध्ययन की व्यवस्था की ( यह गुरुकुल मैने देखा है तथा इस गुरुकुल के दो छात्र आज आर्य समाज वाशी , मुम्बई में पुरोहित हैं ) । आप के सुप्रयास से अजमेर के आनासागर के तट पर स्थित साधु आश्रम में संस्क्रत पाट्शाला की भी स्थापना की ।  आप को वेद प्रचार की एसी लगन लगी थी कि इस निमित्त आप देश के सुदूर वर्ती क्शेत्रों तक भी जाने को तत्पर रहते थे । आप तप , त्याग ,सहिष्णुता की साक्शात मूर्ति थे । इन तत्वों का आप मे बाहुल्य था । आप का निधन १० मार्च १९४१ इस्वी को ग्वालियर में हुआ ।

स्वामी आनन्दबोध

om in gujrati

स्वामी आनन्दबोध    

-डा. अशोक आर्य

           सन १९०९ में काशमीर के अनन्तनाग क्शेत्र में एक बालक का जन्म हुआ , जिसका नाम रामगोपाल रखा गया । इनके पिता का नाम लाला नन्द लाल था । आप मूलत: अम्रतसर के रहने वाले थे । यह बालक ही उन्नति व व्रद्धि करता हुआ आगे चल कर राम गोपाल शालवाले के नाम से विख्यात हुआ ।

            आप काशमीर से चलकर सन १९२७ में दिल्ली आ गए । दिल्ली आकर आप आर्य सम,आज के नियमित सदस्य बने । आप को पं.रमचन्द्र देहलवी की कार्य्शैली बहुत पसन्द आयी तथा आप ने उन्हें अपनी प्रेरणा का स्रोत बना लिया ।

          आप के आर्य समाज के प्रति समर्पण भाव तथा मेहनत व लगन के परिणाम स्वरूप आपको आर्य समाज दीवान हाल का मन्त्री बनाया गया । बाद में आप इस समाज के प्रधान बने । इन पदों को आपने लम्बे समय तक निभाया । इस आर्य समाज के पदाधिकारी रहते हुए ही आपने सामाजिक कार्यों का बडे ही सुन्दर टंग से निर्वहन किया ।

        आप की प्रतिभा का ही यह परिणाम था कि आप आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के अनेक वर्ष तक अन्तरंग सद्स्य रहे । अनेक वर्ष तक आप आर्य समाज की सर्वोच्च सभा सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के उपमन्त्री, उप प्रधान तथा प्रधान रहे । उच्चकोटि के व्याख्यान करता, उच्चकोटि के संगटन करता तथा आर्य समाज के उच्चकोटि के कार्य कर्ता लाला रामगोपाल जी  ने सदा आर्य समाज की उन्नति मेम ही अपनी उन्नति समझी तथा इस के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते थे । देश के उच्च अधिकारियों से आप का निकट का सम्पर्क था तथा बडे बडे काम भी आप सरलता से निकलवा लेते थे ।

        जब अबोहर के डी ए वी कालेज में सिक्ख विद्यार्थियों ने उत्पात मचाया तथा यग्यशाला को हानि पहुंचाई तो कालेज के प्रिन्सिपल नारायणदास ग्रोवर जी ने मुझे आप से सम्पर्क कर यथा स्थिति आप के सामने रखने के लिए भेजा । आप ने मुझ किंचित से युवक की बात को ध्यान से सुना , समझा व कुछ करने के आदेश दिये ।

        जब १९७१ में अलवर में सम्पन्न सार्वदेशिक के अधिवेशन में स्वामी अग्निवेश के साथियों ने उत्पात मचाया तो आप की बात मंच द्वारा न मानने पर आप जब यहां से पलायण करने लगे तो मेरे तथा प्रा. राजेन्द्र जिग्यासु जी की प्रार्थना पर आप ने अपना निर्णय बदला तथा फ़िर से सम्मेलन को सुचारु रुप से चलाया ।

        आप ही के प्रयास से हैदराबाद सत्याग्रह को राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम स्वीकार किया गया । जिसका लभ आर्य समाज को मिला । आपके नेत्रत्व में अनेक आन्दोलन व अनेक सम्मेलन किए गय । कालान्तर में आपने संन्यास की दीक्शा स्वामी स्रर्वानन्द जी से ली तथा रामगोपाल शालवाले से स्वामी आनन्द बोध हुए ।

        आप ने पूजा किसकी , ब्रह्मकुमारी संस्था आदि पुस्तकें भी लिखीं । १९७८ इस्वी में आप की सेवाओं को सामने रखते हुए आप का अभिनन्दन भी किया गया तथा इस अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ भी प्रकाशित किया गया । अन्त में आप का  अक्टूबर १९९४ देहान्त हो गया ।

जम्मू के शहीद वीर रामचन्द्र

om in english

जम्मू के शहीद वीर रामचन्द्र           

-डा. अशोक आर्य

आर्य समाज के वीरों ने विभिन्न समय पर विभिन्न प्रकार ए बलिदानी वीर पैदा किये । किसी ए धर्म की रक्शा के लिए, किसी ने जाति की रक्शा के लिए , किसी ने जाति के उत्थान  मे लिए अपने बलिदान  दिए । एसे ही बलिदानियों में एक आर्य बलिदानी हुए हैं वीर राम चन्द्र जी । जम्मू रियासत के कटुआ जिला की तहसील हीरानगर के लाला खोजूशाह महाजन नामक खजान्ची जी ए यहां दिनांक १९ आषाट स्म्वत १९५३ को जन्मे बालक ने मेघ जाति के उद्धार के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था ।

बालक रमचन्द्र के आट भाई और एक बहिन थी । भाई बहिनों में सबसे बडे रामचन्द्र ने मिडिल तक की शिक्शा सदा अपनी कक्शा में प्रथम आते हुए पास व पूर्ण की । जब सरकार के कार्याल्यों में सब कर्य डोगरी भाषा के स्थान पर होने लगा तो पिता के स्थान पर खजान्ची का कार्य इस बालक को दिया गया ।

राम चन्द्र को आरम्भ से ही समाचार पत्र पटने व धर्म के कार्य करने में अत्यधिक रुचि थी । जब वह आर्य समाज के सत्संगों में जाने लगे तो आर्य समाज के कार्यों में इन्हें खूब आनन्द आने लगा तथा शीघ्र ही प्रमुख आर्यों में सम्मिलित हो गये  । जब आप की बदली बसोहली स्थान पर हुई तो इस स्थान पर आप ने आर्य समाज की निरन्तर दो वर्ष तक खूब सेवा की । तदन्तर आप बद्ल कर कटुआ आ गये । यह वह स्थान था कि जहां आर्य समाज का काम करना मौत को निमन्त्रण देने से कम न था किन्तु आप ने इस सब की चिन्ता किए बिना आर्य समाज का काम जारी रखा तथा अछूतोद्धार के कार्य व शुद्धि में भी लग गए । जब विरोध जोर से होने लगा तो आप को बदल कर १९१८  इस्वी को साम्बना भेज दिया गया । यहां पर जाते ही आपके यत्न से आर्य समाज की स्थापना हो गई तथा जब देश भर में एन्फ़्ल्यूऎन्जा का रोग फ़ैला तो आप ने सेवा समिति खोलकर रोगियों की खूब सेवा की । आप ने आर्य समाज के लिए बडे से बडे खतरों का भी सामना किया । आर्य समाज के प्रचार के कारण आपको अकेले ही वहां के राजपूतों और ब्राह्मणों के विरोध का सामना करना पडा किन्तु आर्य समाज के उत्सव में आपने किसी प्रकार की कमीं  न आने दी तथा इसे उत्तम प्रकार से सफ़ल किया ।

रामचन्द्र जी कांग्रेस के कार्यों के प्रति भी अत्यधिक स्नेह रखते थे । इस के वार्षिक समारोह में लगभग एक दशाब्दि तक निरन्तर जाते रहे ।जब पंजाब में मार्शल ला लगा हुआ था तो सरकारी कर्मचारी होते हुए भी यहां के समाचार आप गुप्त रुप से अन्य प्रान्तों में भेजते रहे । आप अपनी नौकरी को भी देश से उपर न मानते थे । यह ही कारण था कि १९१७ में जब आप को अम्रतसर जाने की सरकार ने सरकारी कर्मचारी होने के कारण अनुमति न दी तो आप ने तत्काल अपनी सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे दिया किन्तु उनकी उत्तम सेवा को देखते हुए तहसीलदार उन्हें छोडना नहीं चाहते थे , इस कारण उन्हें अम्रतसर जाने की अनुमति दे दी गई । साम्बा क्शेत्र के लोग तो आप को देश सेवक के रुप मे ही जानते थे तथा इस नाम से ही आप को पुकारते थे ।

जब १९२२ में आप की नियुक्ति अखनूर में हुई तो वहां जा कर आप ने पाया कि यहां के लोग छूतछात को मानने वाले थे । यहां के लोग मेघ जाति के लोगों को अत्यधिक घ्रणा से देखते थे । रामचन्द्र जी ए इनका उत्थान करने क निश्चय किया तथा इन के लिए एक पाट्शाला आरम्भ कर दी । अब आप अपनी सरकारि सेवा के अतिरिक्त अपना पूरा समय इन पहादों मेम घूम घूम कर मेघों के दु:ख , दर्द के साथी बन उनकी सेवा, सहायता तथा उन्हें पटाने व उनकी बिमारी मेम उनकी सहायता करने लगे ।

इस सब का परिणाम यह हुआ कि जो लोग दलितों को उन्नत होता हुआ न देख सकते थे , उन्होंने सरकार के पास आप की शिकायते भेजनी आरम्भ कर दीं , मुसलमानों को आप के विरोध के लिए उकसाने लगे , आप के व्याख्यानों का भी विरोध आरम्भ कर दिया । इतने से ही सब्र न हुआ तो कुछ लोग लाटियां लेकर आप पर आक्र्मण करने के लिए आप के घर पर जा चटे किन्तु पुलिस ने उनका गन्दा इरादा सफ़ल न होने दिया । परिणाम स्वरुप १९२२ इस्वी में इन लोगों ने आर्य समाजियों का बाइकाट कर दिया , जो चोबीस दिन तक चला किन्तु एक दिन जब रामचन्द्र जी कहीं अन्यत्र गये हुए थे तो पीछे से सरकारी अधिकारियों के दबाब में आकर वहां के आर्य जन झुक गये तथा यह बात स्वीकार कर ली कि मेघों की पाटशाला गांव से दूर ले जावेंगे  । लौटने पर रमचन्द्र जी ने इस समझौते के सम्बन्ध सुना तो उन्होंने इसे स्वीकार करने से साफ़ इन्कार कर दिया । इस सम्बन्ध में लम्बे समय तक गवर्नर , वजीर आदि से पत्र व्यवहार होता रहा ।

रामचन्द्र जी ने जिस प्रकार मेघों की नि:स्वार्थ भाव से सेवा की , इस कारण मेघ लोग उन पर अपनी जान न्योछावर करने लगे  । इधर रामचन्द्र जी भी अपने आप को मेघ कहने लगे, चाहे आप महाजन ही थे । पाटशाला का निजी भवन बनाने की प्रेरणा से मेघ पण्डित रूपा तथ भाई मौली ने अपनी जमीन दान कर दी । मुसलमानों व सरकारी अधिकारियों के विरोध की चिन्ता न करते हुए आप ने इस के भवन निर्माण के लिए अपील की निर्माण के पश्चात १९२२ में ही इस वेद मन्दिर का प्रवेश संस्कार सम्पन्न हो गया । इस पाटशाला के खुलने से मेघ अत्यधिक उत्साहित हुए । यह एक सफ़लता थी , जिसने दूसरी उपलब्धि का मार्ग प्रशस्त कर दिया । अब रामचन्द्र जी को अन्य स्थानों से भी पाटशाला खोलने के लिए आमन्त्रण आने लगे कि इस मध्य ही आपको जम्मू स्थानन्तरित कर दिया गया ।  किन्तु अभी यहां की पाट्शाला का कार्य प्रगति पर थ इस कारण आपने चार महीने का अवकाश ले लिया।

बटोहडा से मेघ लोगों ने इन्हें निमन्त्रित किया । यह स्थान अखनूर से मात्र चार मील दूर है आप अपने आर्य बन्धुओं तथा विद्यार्थियों सहित हाथ्में औ३म की पताकाएं लेकर, भजन गाते तथा जय घोष लगाते हुए चल पडे किन्तु इस शोभायात्रा के बारे में सुन वैसे देख विरोधी भडक उटे । आप को गालियां देते हुए अपमानित किया गया झण्डे छीन लिये तथा हवन कुण्ड भी तोड दिया । इस कारण इस दिन कोई कर्यक्रम नहीं हो सका किन्तु आप ने शीघ्र ही ४ जनवरी १९२३ को यहां बडे ही समारोह पूर्वक पाटशाला आरम्भ करने की योजना बना डाली । इसके लिए लाहौर से उपदेश्क भी आ गए । यह सब देख राजपूतों ने आप के जीवन का अन्त करने का निर्णय  लिया । इस निमित उन्होंने गांव में एक दंगल का आयोजन कर लिया ।

इधर जम्मू से रामचन्द्र जी भी अपने आर्य बन्धुओं व विद्वानों सहित बटौहडा के लिए रवाना हो गए । इनके साथ लाला भगतराम,लाला दीनानाथ, लाला अनन्तराम, ओ३मप्रकाश तथा स्त्यार्थी जी आदि थे । मार्ग में ही आर्योपदेशक सावन  मल जी भी अपने दल के साथ आ कर मिल गए । इस मध्य ही पता चला कि गांव में विरोधियों ने भारी षडयन्त्र रच रखा है तथ हालात बेहद खराब हैं । इस कारण लौट जाने का निर्णय लेकर यह सब वापिस चल पडे किन्तु इस की सूचना भी तत्काल गांव में राजपूतों को मिल गई । वह तो भडके ही  हुए थे अत: भगतू नामक एक व्यक्ति के नेत्रत्व में मुसलमान , गूजर डेट सौ के लगभग राजपूतों के सवारों व पैदल लोगों ने पीछे से इन पर आक्रमण कर दिया । सब पर लाटियां बरसाईं । सब और से एक ही आवाज आ रही थी कि खजान्ची को बचने नहीं देना । इस को मारो । यह सुन भगतराम जी उन्हें बचाने के लिए आगे आए किन्तु उन पर भी भारी मात्रा में लाटियों की मार पडी । अन्त में रामचन्द्र जी उनके हाथ आ गये तथा उन पर लोहे की छडों से प्रहार किया गया ।  वह जब बुरी तरह से घायल व बेहोश हो गये तो यह आक्रमण कारी इन्हें मरा समझ कर लौट गए ।

घायल व बेहोश वीर रामचन्द्र जी को अस्पताल में भर्ती किया गया । यहां निरन्तर छ: दिन तक बेहोश रहते हुए मौत से युद्ध करते रहे किन्तु अन्त में प्रभु की व्यवस्था ही विजयी हुई तथा मात्र २३ वर्ष की आयु में यह योद्धा आर्य समाज को अपना जीवन समझते हुए तथा दलितों को ऊंचा उटाने का यत्न करते हुए अन्त में दिनांक २० जनवरी १९२३ इस्वी तदानुसार ८ माघ १९७० को रात्रि के ११ बजे वीरगति को पराप्त हुआ ।

इस वीर योद्धा तथा आर्य समाज के इस धुरन्धर प्रचारक की स्म्रति में आर्य प्रतिनिधि सबा पंजाब ने कुछ प्रकल्प आरम्भ किये । इन प्रकल्पों के अन्तर्गत वीर रामचन्द्र जी की स्म्रति को बनाए रखने के लिए एक स्मारक बनाया गया । इस स्मारक के चार कर्य निर्धारित किये गए । जो इस प्रकार थे :-

१.      दलितो को उन्नत कर उन्हें स्वर्णों के समकश लना ।

२.      दलितों के लिए नि:शुल्क शिक्शा की व्यवस्थ करना ।

३.      दलितों मेम धर्म प्रचार करने की व्यवस्था करना ।

४.      दलितों में आत्म सम्मान की भावना पैदा करना ।

इस प्रकार का स्मारक बना कर वीर रामचन्द्र जी को आर्य समाज के महाधनों की श्रेणी में लाया गया । सभा की और से रामचन्द्र जी की स्म्रति में यहां प्रतिवर्ष एक मेला का आयोजन होने लगा । आर्य समाज के पुरुषार्थ तथा महाराज हरिसिंह जी के उदारतापूर्ण सहयोग से यह कार्य निरन्तर चलता रहा । आरम्भ में इस स्मारक के अधिष्टाता लाला अनन्तराम जी को बनाया गया । इस स्मारक स्थल पर बाद में एक कुंआ बन गया । यह स्मारक स्थल नहर से सटा हुआ नहर के किनारे पर ही बनाया गया था ।

पण्डित ओंकारनाथ वाजपेयी

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पण्डित ओंकारनाथ वाजपेयी

– डा. अशोक आर्य

आर्य समाज के त्यागी व तपस्वी कार्यकर्ताओं में पण्डित ओंकार नाथ मिश्र भी एक थे । महुआ नामक गांव जिला आगरा में आप का जन्म महर्षि दयानन्द जी के निर्वाण से मात्र दो वर्ष पूर्व सन १८८१ इस्वी में हुआ । यह समय आर्य समाज का समय कहा जा सकता है । इस कारण आप पर आरम्भ से ही आर्य समाज का प्रभाव दिखाई देने लगा ।

आप ने प्रयाग विश्वविद्यलय से मैट्रिक की परीकशा उतीर्ण्करने के तदन्तर इलाहाबाद में एक प्रैस की स्थापना कर , प्रकाशन का कार्य आरम्भ किया तथा इसके साथ ही एक पिस्तक विक्री एन्द्र ( बुक डिपो ) भी आरम्भ किया । आप के इस प्रकाशन संस्थान ने प्रकाशन के क्शेत्र में अच्छी ख्याति अर्जित की । आप ने अनेक महपुरुषों के जीवन जन जन तक फुंचाने का स्म्कल्प लिया तथा इस चरित प्रकाशन का कार्य एक माला के अन्तर्गत किया । इस माला का नाम आदर्श माला रका गया ।

आप ने आर्य कुमार सभा इलाहाबाद को भी अपना सक्रिय योगदान दिया तथा इसके सक्रिय कार्यकर्ता बन गए । आप के सतत प्रयास से इस आर्य कुमार सभा के सदस्यों की खूब व्रद्धि हुई तथा अनेक एसे बालक इस सभा के सदस्य बने , जो बाद में अपने कार्य के कारण अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुए । एसे लोगों में हिन्दी के प्रख्यात कवि डा. हरिवंशराय बच्चन भी एक थे जो इस कुमार सभा के कार्यक्रमों में नियमित रुप से भाग लेते थे । बच्चन जी को आर्य समाज सम्बन्धी प्रेरणा बाजपेयी जी से ही मिली थी ।  बच्चन जी स्वामी सत्य प्रकाश जी के भी अन्तरंग मित्र तथा सह्पाटी थे । कहा जता है कि स्वामी जी जब आर्य कुमार सभा के प्रधान होते थे , उस समय बच्चन जी इस कुमार सभा के सदस्य थे । सम्भवतया यह ही वह समय रहा होगा ।

आप ने महिलोपयोगी साहित्य भी काफ़ी मात्रा में लिखा । इतना ही नहीं नारी शिक्शण को बटावा देने के लिए आपने “कन्या मनोरंजन” नाम से एक पत्रिका भी आरम्भ की । आप क नारि उत्थान तथा सदाचार की ओर विशेष ध्यान रहता था , इस कारण आप ने आदर्श कन्या पाटशाला , कन्या दिनचर्या, कन्या सदाचार , दो कन्याओं की बातचीत , शान्ता (उपन्यास) आदि पुस्तकेंलिखीं व प्रकाशित कीं ।

इस प्रकार अपने जीवन्का प्रत्येक क्शण आर्य समाज्के प्रचार प्रसार , लेकन व प्रकाशन को देने वाले पण्डित ओंकारनाथ वाजपेयी जी का देहान्त २८ जुलाई १९१८ को हो गया ।

मेहरचन्द महाजन by Dr. Ashok Arya

 

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 मेहरचन्द महाजन

-डा. अशोक आर्य

श्री मेहरचन्द महाजन एक महान न्यायविद तथा एक उत्तम प्रशासक थे । हिमाचल के टीका नगरोटा नामक स्थान पर २१ दिसम्बर १८८९ इस्वी को आप का जन्म हुआ । आप ने खूब दिल लगा कर शिक्शा प्राप्त की तथा एक अच्छे वकील बन गए ।

आप ने वकालत का आर्म्भ तो गुर्दासपुर पंजाब से किया किन्तु जल्दी ही आप लाहौर चले गये । लाहौर उन दिनों रजनीति तथा शिक्शा का केन्द्र था । अत: जल्दी ही आप लाहौर के कानूनविद से प्रतिष्टित कानून विद अर्था कानून के व्यवसायी हो गए ।

अपनी मेहनत व उसमें सफ़लता के कारण आप कानून के क्शेत्र में एक अच्छी विभूति बन गए इस कारण आप को लाहौर हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया । आप की सफ़लता यहां तक ही न रुकी , आप ने आगे बटते हुए काशमीर का प्रधान मन्त्री का पद भी प्राप्त किया । जब भारत स्वाधीन हुआ तो आप को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश भी बनने का गौरव मिला ।

देश की इस न्यायिक सेवा से मुक्त होने के पश्चात आप को डी ए वी कालेज प्रबन्ध कर्त्री समिति का प्रधान भी बनाया गया । आज हम टंकारा में जो महर्षि दयानन्द स्मारक ट्र्स्ट के नाम से एक बडी सुद्रट संस्था देख रहे हैं , इस का निर्माण व स्थापना भी आप ही ने की । इस कारण आप ही इस के संस्थापक अध्यक्श बने ।

आप ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी । अंग्रेजी में लिखी इस आत्मकथा का नाम लुकिंग बैक रखा गया । य्हह आत्मकथा आर्य समाज्के उस कल के संस्मरणों का पोथा बन गया है । सन १९६७ इस्वी में अप का देहान्त हो गया ।

कविरत्न पं. अखिलानन्द शर्मा By Dr. Ashok Arya

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कविरत्न पं. अखिलानन्द शर्मा

पण्डित अखिलानन्द जी का जन्म गांव चन्द्र नगर जिला बदायूं में मिती माघ शुक्ला २ दिनांक १९३७ विक्रमी को हुआ । आप के पिता का नाम पं. टीका राम स्वामी तथा माता का नाम सुबुद्धि देवी था । आप अपने समय के संस्क्रत के उच्चकोटि के कवि थे ।

जब स्वामी दयानन्द सरस्वती अलीगट से लगभग तीस किलोमीटर दूर गांव कर्णवास , जो गंगा के तट पर है तथा यह वह स्थान है जहां पर स्वामी जी ने कर्णवास के राजा राजा से तलवार छीन कर तोड दी थी , इस स्थान पर ही जब स्वामी जी टहरे थे तो पंण्डित जी के पिता पं. टीका राम स्वामि जी स्वामी जी से मिले थे । इस प्रकार स्वामी जी से प्राप्त विचार ही उन्हें आर्य समाज की ओर लेकर आये तथा इस का प्रभाव पंडित अखिलानन्द जी पर भी हुआ ।

पण्डित अखिलानन्द जी ने शास्त्रों का खूब अध्ययन किया तथा इस निमित स्वामी दयानन्द सरस्वती जी  के सह्पाटी पं. युगलकिशोर जी तथा अल्मोडा निवासी पं. विष्णु दत जी के मार्ग दर्शन से आप ने इन शास्त्रों का अध्ययन किया तथा पारंगतता प्राप्त की ।

शास्त्रों में पारंगत होने पर आप ने अपने पिता के बताये पथ पर चलना ही उपयुक्त समझते हुए आर्य समाज के उपदेशक्स्वरुप कार्य आरम्भ किया । आप को संस्क्रत काव्य से विशेष आत्मीयता थी तथा आप इस क्शेत्र में असाधारण गति के भी स्वामी थे । इस प्रकार आप अर्य समाज के प्रचार व प्रसार करने लगे ।

जब आप आर्य समाज्के प्रचार कार्य को गति देने में लगे थे तब ही आप का आर्य समाज के सिद्दन्तो के प्रश्न पर जब वर्ण व्यवस्था का प्रशन आया तो आप को आर्य समाज्का वर्ण व्यवस्था के प्रश्न पर कुछ मतभेद हो गया तथा इस कारण ही आप ने आर्य्समाज के क्शेत्र का परित्याग कर दिया तथा सनातन धर्म के प्रवक्ता बन गए । अब आप ने आर्य समाज के विद्वानों से कई शास्त्रार्थ भी किए । आप ने संस्क्रत काव्य के आधार पर आप ने लगभग तेरह पुस्तकें भी लिखीं । आअप की लिखी द्यानन्द लहरी एक उतम पुस्तक थी । दयानन्द दिग्विजय महाकाव्य , वैदिक सिद्धान्त वर्णन आदि आदि उनके प्रमुख ग्रन्थ थे । आप का देहान्त ८ मई १९५८ इस्वी को हुआ । इस समय आप की आयु ७८ वर्ष की थी

मुन्शी कन्हॆयालाल अलखधारी By Dr. Ashok Arya

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डा. अशोक आर्य

मुन्शी जी का जन्म उतर प्रदेश के आगरा में सन १८०९ इस्वी में हुआ । आर्य समाजी तो सदा ही क्रान्तिकरी विचारों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं । इस कारण आप भी क्रान्तिकारी विचार रखते थे । मुन्शी जी के पिता का नाम धर्म दास था ।

मुन्शी कन्हॆयाला जी की शिक्शा कलकत्ता में हुई । आप ने कुछ समय के लिए बर्मा में  भी अपना निवास रखा किन्तु फ़िर आप भारत में वापिस लॊट आये । आप में अत्यधिक लगन ने आप को लुधियाना भेज दिया । यहां आ कर आप ने सन १८७३ में ” नीति प्रकाश” नाम से एक संस्था की स्थापना की । इस संस्था की स्थापना के साथ ही इस स्म्स्था के प्रचार व प्रसार के लिए एक समाचार पत्र भी आरम्भ किया इसका नाम भी ” नीति प्रकाश ” ही रखा गया ।

आज जो आरती नाम से यह भजन सब जगह गाया जाता है “ओ३म जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।” , के रच्यिता श्रद्धानन्द फ़िल्लोरी , जो कि सनातन धर्म के अपने समय के अच्छे विद्वान थे ( मुसलमानों से जिनका अत्यधिक लगाव था ) , मुन्शी कन्हॆयालाल अलखधारी जी के घोर प्रतिद्वन्द्वी थे तथा इन का विरोध व इनकी आलोचना क अवसर खोजते ही रहते थे । मुन्शी जी के प्रगतिवादी विचारों से उन्हें अत्यधिक घ्रणा थी ।

मुन्शी जी आर्य समाज के एक अच्छे सिपाही थे तथा महर्षि के उत्तम बक्त थे तथा स्वामी जी को पंजाब आने का निमन्त्रण देने वाले लोगों में मुन्शी जी का महत्व पूर्ण योग व अत्यधिक भूमिका थी । स्वामी जी के सामाजिक न्याय के विचारों के कारण अलख्धारी जी स्वामी जी के प्रशंसक तथा उत्तम शिष्य थे ।

मुन्शी जी ने आर्य समाज के प्रसार तथा वेद प्रचार के लिए अनेक ग्रन्थ लिखे । मुन्शी जी का समग्र साहित्य ” कुलियात अलखधारी ” शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ । इसके अतिरिक्त चिराग – ए – हकीकत ,शमा -= ए मारिफ़ल, उपनिषद , भगवद्गीता एवं योगवाशिष्ट क उर्दू अनुवाद , स्वामी दयानन्द का हाल ( उनके नीति प्र्काश मेंप्रकाशित लेखों का संग्रह) {इस का हिन्दी अनुवाद “महर्षि दयानन्द का सर्वप्रथम जीवन व्रत द्वारा प्रा. राजेन्द्र जिग्यासु }आदि

मौन्शी जी ने समाज के उत्थान के लिए भरपूर कार्य करते हुए अन्त में १ मई सन १८८२ इस्वी में , स्वामी जी से एक वर्ष पूर्व जीवन लीला समाप्त की ।

Cows Nutrition and Food Security in Vedas

cows food

Cows Nutrition and Food Security 

RV 6.54

ऋषि: -भारद्वाजो बार्हस्पत्य: , देवता पूषा:

 

  1. सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

Oh Pushan –Lord of Nutrition- lead us to the wisdom with clarity about our nutrition.

हे पूषन देवता, हमारी  पोष्टिकता के लिये विस्तृत ज्ञान का उपदेश दो

2. समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

पूषन देवता के अनुसार गृहस्थों के लिए घरों मे गौपालन ही पौष्टिकता का अत्योत्तम साधन है.

It is the divine wisdom that a house cow is the perfect strategy for best of nutrition.

3. पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते ।नो अस्य व्यथते पवि: ॥ ऋ 6.54.3

The wheel of the chariot of nutrition by cows is never stuck in ground and comes to harm nor is there any trouble or suffering in its movement.( Cows go through a natural cycle of calving milk giving getting pregnant drying off and calving again. But no harm comes to the nutrition cycle and it does not suffer.)

गोपालन मं ग्याभन होने के कुछ समय पश्चात दूध की मात्रा कम हो सूख कर  कर पुन: संतानोत्पत्ति का चक्र क्रम पूषन व्यवस्था में कोइ व्यवधान नहीं हैं.

4. यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। ऋ 6.54.4

जो इस गोपालन यज्ञ में समर्पित भावना से गोसेवा करते हैं  उन की पौष्टिकता में कभी कमी नहीं होती और उन की समृद्धि निश्चित होती है.

Those who dedicate themselves to taking care of their cows appropriately are blessed immensely with great riches.

5. पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। ऋ 6.54.5

हमें गोपालन का उत्तम ज्ञान और सुविधाएं प्राप्त हों जिस से हमारी पौष्टिकता और बल बना रहे

We pray to have the wisdom and means to protect and nurture our cows and horses appropriately to ensure good nutrition and strengths. ..

6. पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: । अस्माकं स्तुवतामुत ।। ऋ6.54.6

यजमान की गोसेवा और स्तुति के फलस्वरूप गो दुग्ध से उत्तम शिक्षित सुंदर वाणी प्राप्त हो.

Dedicated well managed care of the cows  provides excellent  quality of milk and ensure amiable speech and temperaments.

7. माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। ऋ6.54.7

हमारी गौएं जो गोचर में स्वपोषन के लिए जाती हैं, किसी कुएं इत्यादि में गिर कर आहत न हों और सुरक्षितघर लौट आएं.

Cows as they go to pastures should be able to return safely without suffering any accidents there. (pastures should be well managed to ensure safety of the foraging cows.)
8. शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् । ईशानं राय ईमहे ।। ऋ 6.54.8

विद्वत्जनों से पौष्टिकता के बारे मे ज्ञानप्राप्त करें  जिस से निर्बलता दूर हो कर समृद्धि प्राप्त हो.

Learn the science of nutrition from experts to protect you from loss of vitality and have good life.

9. पूषन् तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्त इह स्मसि।। ऋ6.54.9

उत्तम शिक्षा द्वारा उपयुक्त आहार के नियमों का सदैव पालन कना चाहिए.

By good learning and education, in the observance of good nutritional habits one should never be lax.
10. परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् । पुनर्नो नष्टमाजतु ।। ऋ 6.54.10

जहां हम अपने दक्षता पूर्ण कर्म से पौष्टिकता के लिए उत्तम गोपालन और खाद्यान्न का प्रबंध करते हैं,वहां हमें साथ साथ जो पीछे कुछ त्रुटि  के कारण अनिष्ट हो गया हो तो उसे भी सुधारने का कार्य करें.

On one hand while we exercise all our knowledge and skills in the management and production of excellent nutritive food products, on the other hand side by side we should also rectify if any mistakes have krept in our programs.  

 

  1. मातेति गामुपस्पृश्य जपन्‌ गास्तु समश्नुते । वचोविदमिति त्वेतां जपन्‌ वाचं समश्नुते ॥ ऋग्विधान 2.187

जिन की गोपालन  द्वारा उत्तम गोवंश और गोपालने के परिणाम स्वरूप उत्तम वाणि की इच्छा  हो वे गौ माता को स्पर्ष करते हुए ‘माता रुद्राणाम, वचो विदम्‌’ से आरम्भ होने वाले ऋग्वेद सूक्त 8.101 के 15, 16 मंत्र का जप करें

He who desires good Cows & obtain gracious speech  by grace of cows should while touching the cow,  utter Rigved Sookt 8.101.15-16  beginning with ‘मातारुद्राणाम’ &  ‘वचोविदम्‌’  –  Rigvidhaan 2.187   

 

Daily Procedures & Rituals in Goshala

 cow domestication

Daily Procedures & Rituals in Goshala         

वैदिक परम्परा में मानव जीवनोपयोगी उपदेश वेदों के आधार पर गृह्यसूत्रों  में भिन्न भिन्न संस्कार  में पाए जाते हैं. गौ को परिवार में एक सम्माननीय स्थान दिया जाता था. इस लिए गोपालन से सम्बंधित विषय  भी गृह्यसूत्रों और विधान ग्रन्थों  में मिलता है. इसी के आधार पर निम्न संकलन करने का प्रयास है.   

In Vedas knowledge on all topics in general, is often found dispersed at various places. That Vedic knowledge is concisely collated and provided as Sanskars/Procedure in the Sutra literature. In this chapter the procedures connected with cows, available in Shraut Sutras & Grihya Sutras are being furnished below: गोपालन विधि गृह्य , अग्नि पुराण और कृषि पाराशर के अनुसार

1-         Goyajna / Fumigation

2.         Releasing cows for grazing in pastures.

3.         Receiving cows on return, after grazing in Pastures

4.         Putting the Nose Ring on Young Bull शूलगव: PA3.8.1 शांख्यायन श्रौत सूत्र , ऋग्वेद सूक्त 1.114

5.         Releasing the selected Bull for servicing the herd.वृषोत्सर्ग PA3.9.1

6.         After calving Procedure

7.         Tattoo Marking the newborn calf, ( with final object of breed improvements, and avoiding inbreeding)

8.         Daily washing & drying on the string used for tying the calf & legs of cow during milking,( to emphasize the importance of Hygiene to control bacteria count)

9.         Darsh Pourn Maseshthi ( Training- evaluation of an integrated cow and agriculture system)

2.1.0.1        Fumigation Formulation (Daily Twice)

         गन्धैरभ्युक्षणं गवां गन्धैरभ्युक्षणं गवाम्‌।। गो0 गृ0 सू03-6-15

Goshala should be kept clean. Twice both times morning &

evening fumigation should be carried out.

गोशाला को नित्य स्वच्छ रखते हुए, प्रात: और सायं दो बार सुगंधित सामग्री

से गो शाला मे अग्निहोत्र करना चाहिए. 

अग्निपुराण 292(33) में गोशाला के लिए उपयुक्त सामग्री का विधान इस

प्रकार से मिलता है.

2.1.0.2.           बलप्रदा विषाणां स्यादगृहे नाशाय धूपिक:।

          देवदारु, वचा, मांसी, गुग्गुल, हिञ्गु सर्षपा:। अ0 पु0 292 (33)

Fumigate with Dev Daru देवदारु – (Himalyan Cedar) Vacha वच -(Sweet Flag Acorns Calamns) Jata Mansi जटामांसी (Indian Nard). Guggluगुग्गुल  (Indian Bdellium), Hing हींग  (Asafoetida) and Mustard सरसों के बीज ( all to gather in powder form)का चूर्ण अग्नि में आहुति से   पर्यावरण के सब रोगाणुओं को नष्ट करता है. to kill all air born & other organisms to cleanse the environment.

गो यज्ञ विषय ( गौएं कहीं भी हों, घर पर  अथवा  गोचर में )

According to RigVidhaan –ऋग्विधानके अनुसार

(गौयज्ञ / गन्धैरभ्युक्षणं)

2.1.0.4.       यस्तास्तु गोर्गोमयेन गुटिकानां सहस्रश: । हुत्वातां गामवाप्नोति घृतक्तानां हुताशने ॥ ऋग्विधान 2.34

गोमय ( गोबर)की गुटकियां  कंडे बना कर गौ घृत के साथ अग्निहोत्र में सहस्रों आहुति देने से उत्तम गौएं प्राप्त होती हैं.

 

He obtains cows by offering thousands of cow dung balls anointed with ghee in to Agnihotra fire.

2.1.2.0.

समाधि मनस्तेन विन्दते नैव गुह्यति ।

मयोभूर्वात इति तु गवां स्वत्ययने जपेत्‌ ॥ ऋग्विधान 4.104

यही  विषय पर अग्नि पुराण 259.94 में भी मिलता है;

‘मयोभूर्वात इत्येद्‌गवां स्वत्ययनं परम्‌ । शाम्बरीमिन्द्रजालं वा मायामेतेन वारयेत्‌ ॥अग्निपुराण 259.94  जपस्यैष विधि : प्रोक्तो हुते ज्ञेयो विशेषत: अग्निपुराण 259.96ब

इस के अनुसार गौ के मध्य में जिन मन्त्रों के जप का विधान है, जैसे ऋग्वेद10.169 ‘मयोभूर्वात’ RV10.169 का उन से यज्ञ अग्निहोत्र ही करना चाहिए

 RV10.169

4 शबरो कक्षीवतो । गाव: । त्रिष्टुप् ।

Rishi the seer of this sookt represents a person dedicated to constant hard work to create शबरो –strength and wealth- through कक्षीवत Industriousness using innovative technologies with involvement of Cows& Agriculture . This is the literal meaning of the name given to the seer – composer -of this verse in

Rig Veda.

 Title of this verse –Sookt is  “COW”.

2.1.2.1 .मयोभूर्वातो अभि वातूस्रा ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम् ।
पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ ।। RV10.169.1

Verdant bliss causing winds may waft over the cows. Feed for the Cows should provide them body building energy and disease resistance.  Cows should be provided with such good quality of water to drink that would be recommended as best potable water for humans. The soil of earth on which cows tread should be clean and sanitised free of infection and harmful organisms.

2.1.2.2.  या: सरूपा विरूपा एकरूपा यासामग्निरिष्टया नामानि वेद ।

या अङ्गिरसस्तपसेह चक्रुस्ताभ्य: पर्जन्य महि शर्म यच्छ ।। RV10.169.2

Cows are classified as per their looks and traits. (Modern Veterinary sciences categorize them as ‘phenotypes and genotypes’) Wise men know the usefulness of different categories of various cows and utilise these specific qualities for various applications and usefulness.

Rains fed pastures provide rich and pleasing environments for cows.

2.1.2.3. या देवेषु तन्व1मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद ।
ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमाना: प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ।। RV10.169.3

Wise men are aware of the significance of cow’s milk and cow enabled food for physical body health, nutrition and disease resistance.  Wise men are aware of the intellect enhancing qualities of Cow’s milk that enables human mind to explore the entire universe in all its majesty. Our experts (Indras) should work in specialised institutions for development of cows to make available  house hold cows with excellent milk producing and prolonged calving qualities.

2.1.2.4. प्रजापतिर्महयमेता रराणो विश्वैर्देवै: पितृभि: संविदानो ।

शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम ।। RV 10.169.4

Cows provide us with the continuity to join in growth of human society by building upon the attainments of our forefathers.

Cows have such great  importance for our welfare and should be firmly established in our homes and institutions for human wellbeing.

2.1.3.0 ‘आ गावो’ इती सूक्तेन गोष्ठगा लोकमातरः । उपतिष्ठेद्‌व्रन्तीश्च य इच्छेत्ता सदाक्षयाः ।। ऋग्विधान 2.112. सदैव गौ सम्पदा की समृद्धि हेतु  ऋग्वेदके सूक्त 6.28 ‘आ गावो अग्नमुत’ का नित्य पाठ

करना चाहिए अथवा यज्ञ अग्निहोत्र करना चाहिए

Whoever wishes always to have everlasting cows the mother of the world should

worship them with Rig Ved Sookt 6.28, while they are at home in Goshala in cow

pen  or Roaming about ( in pastures). As per RigVidhan 2-112

Rig Veda Book 6 Hymn 28 same as Atharv 4.21

गौः देवता, ऋषिः भरद्वाजो बार्हस्प्तत्य

2.1.3.1.आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रत्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे|
प्रजावतीः पुरुरूपा इह सयुरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः ||

For our health, welfare let the cows of all ages sizes & progeny come and stay in our home.

मेरे गोष्ठ  में  गौएं  आगई हैं  और उन्होंने मेरा कल्याण किया है, इसी प्रकार आगे  भी चर कर वे मेरे इस गोष्ठ में  लौट आया करें. हमें सदैव  आनंदित करती हुइ इस  गोष्ठ में रहें. अनेक बछडे बछियां दे कर और भी नाना प्रकार  से हमारी  समृद्धि  के साधन बनें.

2.1.3.2 इन्द्र यज्वने गृणते च शिक्षत उपेद ददाति न स्वं मुषायति!

भूयो रयिभिदस्य वर्धयन्नभिन्ने ख्ल्ये नि ददाति देवयुम !! Prosperous cow owners, who simply share their services & knowledge in welfare of all, without withholding any portion selfishly for themselves, gradually grow in wealth & prosperity.

इस गोपालन के  यज्ञ द्वारा  वृषभ  इंद्र के स्वरूप में  अपने लिए कुछ भी ना  छुपाते हुवे (गोपालक यजमान के लिए))  अनेक  कल्याण दायक उत्पाद और शिक्षाप्रद ज्ञान  रूपि धन की बार बार वृद्धि करते हैं. (गोकृषि आधारित) उपलब्धियां कभी  क्षीण नहीं होती.

2.1.3.3 न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति | 

देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित ताभिः सचते गोपतिः सह ||ऋ6.28.3अथर्व4.21.3

Those cows whose owners give to all & share all the bounties of the cows, protect them  so they do not get hurt, get stolen or  suffer at the hands of unfriendly forces, stays with blessings of cows for all his life.

उसे (गोकृषि से उत्पन्न सम्पन्नता को) कोई चुरा नहीं सकता, धूर्तता से (आंख में धूल झोंकने वाला)  भी उस पर प्रभुत्व नहीं जमा सकता. गौओं  के स्वामी में  इतनी बुद्धि होती है कि किसी प्रलोभन के वश भी वह अपनी सम्पन्नता को छोडना नहीं चाहता.

(यह आधुनिक विकास के नाम पर व्यापारी तथा स्वार्थी वर्ग द्वारा भूमि, गौ इत्यादि का स्वामित्व पाने के लिए धन के प्रलोभन से गोकृषि के स्वामी को अपनी जीवन शैली छुडाने  के प्रसंग में  हैं)
2.1.3 4. न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्क्ऋत्रमुप यन्ति ता अभि |
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः || ऋ6.28.4, अथर्व 4.21.4

These cows are not exposed to dusty battle field like or boisterous festivity like atmosphere, but they stroll fearlessly among peaceful environments. यह (गोकृषि आजीविका की) मानसिकता संस्कार युक्त , प्रशंसनीय और निर्भयता, आत्मविश्वास से युक्त होती है. इन संस्कारों को कुटिल हृदय वाले, संकीर्ण मानसिकता वाले , स्वार्थी बुद्धि विहीन जन प्राप्त नहीं करते. यह तो गौ के समीप विचरण करने की विशेष उपलब्द्धि है.

2.1.3.5. गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः |
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीदधृदा मनसा चिदिन्द्रम ||ऋ6.28.5, अथर्व 4.21.1

Cow’s milk & its products are the first promoters of good motivation of temperament to have the blessings of a blissful life. Cows indeed are thus the very fortune & prosperity of man to become victorious like Indra.

गौएं जैसे प्रथम (अपने बछडे के) ऐश्वर्य के लिए दुग्ध प्रदान करती हैं  वैसे ही गौओं द्वारा (दुग्ध और पङ्चगव्य से)  धरती, वाणी, इंद्रियां स्वशरीर प्रकृति पर्यावरण  और यजमान गोपालक परिवार  पोषित हो कर, वश मे रह्कर ऐसे सुशासित होते हैं जैसे इंद्र ही शासन कर रहा हो.

इस प्रकार हे बुद्धिमान जनों गौ स्वयम्‌ में ही  सम्पूर्ण ऐश्वर्य  का साधन इंद्र है.

2.1.3.6.यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित कृणुथा सुप्रतीकम | 

भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद वो वय उच्यते सभासु ||ऋ6.28.6, अथर्व4.21.6

Oh Cows, sweeten our life and environments by your bounties, bring us health and strength physical and emotional. Weaken the ugly and unfriendly.

हे गौओ तुम दुर्बल को हृष्ट पुष्ट बना देती हो, तुम भद्दे को सुडौल बनाती हो, तुम वाणी में मधुरता स्थापित करके घर को  कल्याणकारी  और सुखप्रद  बनाती हो,   तुम्हारे वृद्धिकारक दुग्ध और अन्न का महत्व  सभाओं में  कहा जाता है.

2.1.3.7. प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः |
मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः || ऋ6.28.7, अथर्व 4.21.7

May cows feeding in good pasture, enjoying clean life giving drinking water, have great progeny of calves and not face harm by thieves   hostile elements and diseases.

उत्तम संतान (बछडे बछडियों और गोपालकों  वाली) उत्तम घास वाले प्रदेश मे चमकती हुइ, उत्तम पेयस्थलों में शुद्धजल को पीती हुइ, व्यवस्था स्थापित हो. गौ पर अत्याचार, हिंसा करने वाला , चुराने वाला कोइ न हो. यह समाज और राजा का दायित्व है.

(भूमण्डल पर राजा रुद्र  का प्रतिनिधि होता है , इस मंत्र में देश की समृद्धि के लिए गोरक्षा  और उत्तम गौसम्वर्धन के लिए राजा के दायित्व का उपदेश है.)
2.1.3.8. उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्‌ |
उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये ||ऋ6.28.8

May cohabitation with good bulls be the source of vitality of these cows to render their bounties for us.

हर क्षेत्र में इंद्र अपना पौरुष इस परम ऐश्वर्य दायक वृषभ से ही प्राप्त करते हैं . पृथ्वी पर, वाणियों मे राजनीति मे हर क्षेत्र में वृषभ  का महत्व सब के ध्यान में रहना चाहिये.

2.1.4.0  यस्य नष्टं भवेत्किञ्च द्‌द्रव्यं गोर्द्विपदं धनम्‌ । नस्येद्वाध्वनि यो मोहात्संपूषन्‌ स जपेन्निशि ॥  ऋग्विधान 2.121. जिस का गोधन, परिवार जन, सम्पत्ति आदि की हानि  हो गयी  हो  वह  ‘सं पूषन’  से आरम्भ  होने वाले ऋग्वेद सूक्त 6.54 का रात्रि में जप करें

He whose possessions: a cow, a man, money be lost should mutter

the Rig Ved Sookt 6.54 beginning with सं पूषन्‌ at night .

RV 6.54

2.1.4.1 सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

Oh Pushan –Lord of Nutrition- lead us to the wisdom with clarity about our nutrition.

हे पूषन देवता, हमारी  पोष्टिकता के लिये विस्तृत ज्ञान का उपदेश दो

2.1.4.2 समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

पूषन देवता के अनुसार गृहस्थों के लिए घरों मे गौपालन ही पौष्टिकता का सर्वोत्तम साधन है.

It is the divine wisdom that a house cow is the perfect strategy for best of nutrition.

2.1.4.3 पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते ।नो अस्य व्यथते पवि: ॥ ऋ 6.54.3 गोपालन मं ग्याभन होने के कुछ समय पश्चात दूध की मात्रा कम हो सूख कर  कर पुन: संतानोत्पत्ति का चक्र क्रम पूषन व्यवस्था में कोइ व्यवधान नहीं हैं. 

The wheel of the chariot of nutrition by cows is never stuck in ground and comes to harm nor is there any trouble or suffering in its movement.( Cows go through a natural cycle of calving milk giving getting pregnant drying off and calving again. But no harm comes to the nutrition cycle and it does not suffer.)

2.1.4.4. यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। ऋ 6.54.4

जो इस गोपालन यज्ञ में समर्पित भावना से गोसेवा करते हैं  उन की पौष्टिकता में कभी कमी नहीं होती और उन की समृद्धि निश्चित होती है.

Those who dedicate themselves to taking care of their cows appropriately are blessed immensely with great riches.

2.1.4.5. पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। ऋ 6.54.5

हमें गोपालन का उत्तम ज्ञान विज्ञान और सुविधाएं प्राप्त हों जिस से हमारी पौष्टिकता और बल बना रहे

We pray to have the wisdom and means to protect and nurture our cows and horses appropriately to ensure good nutrition and strengths. ..

2.1.4.6. पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: । अस्माकं स्तुवतामुत ।। ऋ6.54.6

यजमान की गोसेवा और स्तुति के फलस्वरूप गो दुग्ध से उत्तम शिक्षित सुंदर वाणी और संस्कार प्राप्त होते हैं .

Dedicated well managed care of the cows provides excellent  quality of milk and ensure civilized amiable speech and temperaments.

2.1.4.7. माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। ऋ6.54.7

हमारी गौएं जो गोचर में स्वपोषन के लिए जाती हैं, किसी कुएं इत्यादि में गिर कर आहत न हों और सुरक्षित घर लौट आएं.(गोचर सुव्यवस्थित हों )

Cows as they go to pastures should be able to return safely without suffering any accidents there. (Pastures should be well managed to ensure safety of the foraging cows.)
2.1.4.8. शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् । ईशानं राय ईमहे ।। ऋ 6.54.8

विद्वत्जनों से पौष्टिकता के बारे मे ज्ञानप्राप्त करें  जिस से निर्बलता दूर हो कर समृद्धि प्राप्त हो.

Learn the science of nutrition from experts to protect you from loss of vitality and have good life.

2.1.4.9. पूषन् तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्त इह स्मसि।। ऋ6.54.9 उत्तम शिक्षा द्वारा उपयुक्त आहार के नियमों का सदैव पालन कना चाहिए. (आहार संयम)

By good learning and education, in the observance of good nutritional habits one should never be lax.

2.1.4.10. परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् । पुनर्नो नष्टमाजतु ।। ऋ 6.54.10

जहां हम अपने दक्षता पूर्ण कर्म से पौष्टिकता के लिए उत्तम गोपालन और खाद्यान्न का प्रबंध करतेहैं,वहां हमें साथ साथ जो पीछे कुछ त्रुटि  के कारण अनिष्ट हो गया हो तो उसे भी सुधारने का कार्य करें.

On one hand while we exercise all our knowledge and skills in the management and production of excellent nutritive food products, onthe other hand side by side we should also rectify if any mistakes

have crept in our programs.

2.1.5.0        मातेति गामुपस्पृश्य जपन्‌ गास्तु समश्नुते । वचोविदमिति त्वेतां जपन्‌ वाचं समश्नुते ॥ ऋग्विधान 2.187

जिन की गोपालन  द्वारा उत्तम गोवंश और गोपालन के परिणाम स्वरूप उत्तम वाणि की इच्छा  हो वे गौ माता को स्पर्ष करते हुए ‘माता रुद्राणाम, वचो विदम्‌’ से आरम्भ होने वाले ऋग्वेद सूक्त 8.101 के 15, 16 मंत्र का जप करें

He who desires good Cows & obtain gracious speech  by grace of cows should while touching the cow,  utter Rigved Sookt 8.101.15-16  beginning with ‘मातारुद्राणाम’ &  ‘वचोविदम्‌’  –  Rigvidhaan 2.187   

RV 8.101.15

 माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ।। 8.101.15

 

RV8.101.16

वचोविदं वाचमुदीरयन्ती विश्वाभिर्धीभिरुपतिष्ठमानाम्।

देवीं देवेभ्य: पर्येयुषीं गामा मावृक्त मर्त्यो दभ्रचेता: ।।ऋ 8.101.16

Tying of bells  गौ के घण्टी बांधना

2-1-2   गृहादिग्नाशाय  एष धूपो गँवा हित:।

          घंटाचैव गँवा कार्या धूपानेन धूपिता।। अग्नि पु. 292 (34)

After wards a bell should be tied around the necks of the cows toward off evil spirits. (It is now confirmed by modern science that proper ultrasonic waves have a significant role in controlling air borne viruses).

2.2–Releasing Cows For Feeding in Pastures.

 Pasture Feeding was a very well organised and managed activity according to our scriptures, Cows should  feed themselves freely in  good pastures.

Modern scientific investigations have endorsed this ancient Indian belief. The products of Pasture grass fed cows according to Vedas and Shastras provide complete nutrition for body and more importantly for the development of proper mental and intellectual qualities. Raw fresh from cow’s udders Milk, its  curd and Butter  were known to prevent all Self Degenerating human body diseases and also acted as remedies for most of  such  human diseases

According to modern science, the  actions of solar radiations are the only known source of the  mysterious “Activator X”  the precursors through which host of vitamin A and D like substances, provide  nutritive actions  for the human beings.

 Modern medicine uses vitamin D additives, as the main ingredient for preventing loss of tissue regulatory functions of human body. Chronic Calcium metabolism disorders, which lead to Osteoporosis and inveterate skin problems like Psoriasis are caused by inadequate solar radiation exposures and not getting Cow’s Milk.. Inadequate natural vitamin D is also linked to cancer of colon, prostate, breast and ovaries due to inability of the human body to regulate cell growth. Vitamin D metabolism also regulates insulin secretion in pancreas and thus has a role in controlling incidence of Diabetes type 2.

But only natural Vitamin D as found in Sun’s rays and cow’s milk is most effective. The efficacy of artificially produced and used as an additive is often a commercial tactics of very little proven efficacy..

Diseases and conditions caused by Vitamin D deficiency

1.   Osteoporoses- due to impaired calcium absorption.

2.   Impaired cell growth-due to disturbed cell growth regulation resulting in cancers.

3.   Rickets -in children  (a bone wasting disease.)

4.   Type2 Diabetes -due to impaired insulin Production.

5.   Schizophrenia

6.   Fibromyalgia

7 Skin troubles like Psoriasis

The above note is based on “The Healing Power of sunlight and vitamin D” based on Dr. Michael Holick researches, Truth Publishing Public Release Document dated May 18th 2004.

Buffaloes Milk contains no natural vitamin D. It is not surprising that Indian Dairy Milk, which is nearly 80% buffalo milk, is totally devoid of natural Vitamin D. No amount of artificial Vitamin D additives in Dairy products, can replace natural vitamin D present in Cow’s milk. It is therefore not surprising that urban population in India, which depends literally on Dairy milk is suffering from all the vitamin D deficiency diseases listed above. The addition of synthetic Vitamin D to Dairy milk has not proved its effectiveness in replacing natural solar radiation activated milk of a cow.

Only Pasture fed cow’s milk and its products contain -Conjugated Linoleic Acid-CLA. Such milk also  has a very high proportion of Omega 3 to Omega 6. This makes only grass fed cowsङ milk act as protection and medicine against all self-degenerating diseases in Human body. These self degenerating diseases are such as Obesity, Cardiac problems, Diabetes, Arteriosclerosis, cancer etc. This explains the importance of pasture feeding. Latest researches carried out in University of Wisconsin and the NIH Bethesda in USA have confirmed this.

( Appendices have been provided giving up-to-date scientific information on these topics)

 

Grihya Sutras describe the following Mantras to be recited when releasing cows for grazing.

2-2-1   इमा मे विश्वतो वीर्यो भव इन्द्रश्च रक्षतम्‌।

          पूषञस्त्वं पर्यावर्तानष्टा आयन्तु नो गृहान्‌।। मं ब्रा 1.8.1  गो भिल गृह0 सूक्त 3-6-1

Oh Cow as you go out to graze in pastures, let  this be the provider of Vigor for you  to motivate the world for its sustenance and nutrition, without  you causing any  damage to the environments while grazing, and come back to your home safely.

2.3     Receiving the cows back after grazing.

 Recite the following:-

2-3-1   प्रत्यागता: चरणभूमितो गृहागता गा:।

          इमा मधुमती र्मह्य, मनष्टा:, पयसा सह।

गाव आज्यस्य मातर इहेमा: सन्तु भूयसीः।। Go Gr Su 3-6-1Mantra Brahman 1-8-2

Here returns from pastures, leaden with milk full of nutrients, fats, satisfied by roaming freely for our good fortune.

2-3-2   आगावों अग्मन्नुत भद्रमक्रन् त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे।प्रजावती: पुरुरुपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वी रुषसो दुहानाः ।। RV 6-28-1

Welcome to cows making pleasant sounds, laden with nourishing milk, bearing and supporting lot of progeny, of various colors, and with good record of high productivities.

2-3-3 परिपूषा परस्ताद्धस्तं दधातु दक्षिणम्‌। पुनर्नो नष्टमाजतु।। RV 6.54.10

Let Pusha the protector not only push you from behind but from  also from all sides, to  hold our cows in protection from any fatalities.

  2.4.1 About Heifers बछियों के बारे में

2.4.1.1  RV 3-55-16 Raise heifers without stress and separately

          आ धेनवो धुन्यन्तामशिश्वीः  सबर्दुधाः शशया अप्रदुग्धाः।  नव्यानव्या युवतयो भवन्तिर्महद् देवानामसुरत्वमेकम्  ।। ऋ  3-55-16

With potential to meet our expectations of providing their bounties, the indolent looking , unstrained with hard work stress free young  heifers  ie  without any offspring , turn in to daily milk providing  excellent cows, by the blessing of gods.( There also a message here that heifers should be  segregated from milk giving cows and raised under stress free conditions.)

2 .4.2 Putting Nose Ring on Young Bulls. नासाभेद ककिलमानकथनम 

2-4-2-1           चतुर्थे ब्दे तृतीय ब्दे यदा वत्सो दृढो भवेत।

          तदा नासाऽस्य भेत्तत्वा नैव प्राग् दुर्बलस्य च।।पाराशर कृषीशासनम।।16।।

In the 4th year or 3rd year never less than three years depending upon good body condition, the male calve is to be fitted with a nose ring by piercing the nose.

(Breeding Soundness Evaluation formed a very elaborate system in directives given. Visible physical features of body, including shape and size of testicles, the past records of productivity of the lineage were all considered. Inbreeding was avoided by observing elaborate systems of pedigree recognition and tattoo marking the new born calves.

2.4.2..2      नासाभेद ककीलमानकथनम्‌।।

          नासाभेदन कीलस्तु खदिरो बाथ शैशप:।।

          द्वादशाञ्गुलक: कार्य स्तज्ज्ञै स्तैर्नस एव स:।।   पाराशर कृषीशासनम्‌।।17।।

The needle for nose piercing should me made of wood of khair (Accacia) Khair or Shisham (Dalberfia Sissoo Rokb. About 12 anguls (Nine inches) long. Only an experienced person should perform the operation.

 2. 5    Releasing Bull for servicing the Herd. वृषोत्सर्

2.5.0 Avoid inbreeding वृषभ दूसरे कुल मे कार्य करे

2.5.0.1 RV 3.55.17

यदन्यासु वृषभो रोरवीति सो अन्यस्मिन यूथ नि दधातिरेतः।

स हि क्षपवान्त्स भगः स राज महद् देवानामसुरत्वमेकम्  ।। ऋ 3.55.17

The  roaring breeding bull is all powerful and very able, but this bull roars and  deposits its semen in a different herd, this is very important tradition of nature.

यह वृषभ अत्यन्त सामर्थ्यवान है, परन्तु इसे अपना वीर्य दूसरे वंश में जा कर स्थापित करना है। यह देवताओं का एक बड़ा महत्वशाली विधान है।

 

2.5.1    कार्त्तिक्यां पौर्णमास्याञ रेवत्या वा ऽऽश्रवयुजस्य।  पास्कर गृह सूत्र  3-9-3

Bulls should be released on full moon of kartik or revati Nakshatra of Ashwin month.

2-5-2

       मधये गवाञ सुसमिद्धमग्निं कृत्वाऽऽज्य संस्कृत्य  हरितिरिति षट् जुहोति प्रतिमन्त्रम्‌।। पागृसू 3-9-4

 

Perform Agnihotra, among the cows with Yajurved Mantras as given here,. Use Cow Ghee for the Agnihotra. 

    (वोषट् VOUSHUT is an offering in to the sacred  fire while standing, whereas SWAHA is an offering made while sitting. This point is to be noted that among the cows these offerings  made in to the fire may be given while standing.)

वृषोत्सर्ग यज्ञ- आहुतियां

 2.5.2.1   इह  रतिः    स्वाहा    ।। पागृस 3.9.4.1

 

इह   रमध्वं   स्वाहा  ।। पागृसू 3.9.4.2

 

इह   धृतिः     स्वाहा ।। पागृसू 3.9.4.3

 

इह स्वधृतिः    स्वाहा   ।।पागृसू 3.9.4.4

 

उपसृजन् धरुणं  मात्रे धरुणो मातरं धयन् स्वाहा 

 ।। पागृसू 3.9.4.5

 

2.5.5.2        3.9.4.6 रायस्पोषमस्मासुदीधरत्  स्वाहा 

।।पागृसू 3.9.4.6

गोशाला यज्ञ

2.5.3Yaju 3.5 भूर्भुवः स्वः द्यौरिव भूम्ना पृथिवी वरिम्णा

    तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे ।। यजु 3।5

 

2.5.4 Yaju3.6 समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोदयतिथिम् । आस्मिन् हव्या जुहोतन ।। यजु 3।1

 

2.5.5Yaju3.2 सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे ।। यजु3।2

 

2.5.6Yaju3.3 तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्द्धयामसि । बृहच्छोचायविष्ठ्य ।।यजु3।3

 

2.5.7Yaju 3.4 उप त्वाग्ने हविष्मतीचीर्यन्तु हर्यत ।जुषस्य समिधो मम।। यजु3।4

 

2.5.8Yaju3.6 आयं गौः पृश्निक्रमीदसदन् मातर पुरः । पितर च प्रयन्त्स्वः।। यजु3।6

 

2.5.9Yaju3.7 अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती । व्यख्यन् महिषो दिवम् ।। यजु3।7

 

2.5.10Yaju3.9 अग्निर्ज्ज्योतिर्ज्ज्योतिरग्निः  स्वाहा

                     सूर्यो ज्योतिर्ज्ज्योतिः सूर्य्यः स्वाहा ।

                     अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा ।

                     सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वच्चः स्वाहा ।

                     ज्योतिः सूर्य्यः सूर्य्यो ज्योतिः स्वाहा ।। यजु

3।9

 2.5.11Yaju3.10 सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या ।

                             जुषाणोऽग्निर्वेतु  स्वाहा  ।

                             सजुर्देवेन सवित्रासजूरुषसेन्द्रवत्या  ।

                             जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा ।।यजु 3।10

 2.5.12Yaju3.21रेवतीमध्वमस्मिनयोनावस्मिनगोष्ठेऽस्मिंल्लोकेऽस्मिन् क्षये ।  इहैव    स्त    मापगात   ।। यजु3।21

2.5.13Yaju3.22 संहितासि विश्वरूप्यूर्जा माविश गौपत्येन ।  उपत्वाग्ने    दिवेदिवे दोषावस्तर्द्धिया वयम्‌। नमो  भरन्तऽएमसि    ।।यजु3।22

2.5.14Yaju3.23 राजन्तमध्वराणा  ग़ोपांमृतस्य दीदिवम्  । वर्द्धमानं  स्वे   दमे ।। यजु3।23

2.5.15Yaju3.24 नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव ।सचस्वा नः   स्वस्तये    ।।यजु3।24

2.5.16Yaju3.35 तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो  नः   प्रचोदयात्‌।।यजु3।35

2.5.18 RV6.54.5 पूषा गा अन्वेतु नः पूषा रक्षत्वर्वतः।  पूषावाजं सनोतु नः   ।। ऋ 6.54.5

2-5-19     After the  Agnihota Rudra Jap is recited.

  रूद्रान्

 जपित्वैकवर्णंं  द्विवर्णंवा यो वा यूथं छादयति यं वा यूथं छादये द्रोहतिो वैव स्यात्‌। सर्वाण्ग़ैरुपतो जीववत्साया: पयस्विन्य: पुत्रो यूथे च रुप स्वित्तम: स्यात मलङ्कृत्य यूथे मुख्याश्च तस्त्रो वत्सतर्यस्ताश्चालञ्कृत्य-एतं युवानं पतिं वो ददामि तेन क्रीडन्तीश्चरथ प्रिये ||

यजुर्वेद 16 के मंत्रों से  रुद्र जप करे

          मा न: साप्तजनुषा ऽसुभगा रायस्पोषेण समिषा मदेमेत्येतयै वोत्सृजेरन्‌।। पागृसू 3-9-6

Rig Vidhan of lays down Rudra jap as consisting of Rigved 1.43 and 1.114, 2.33  and 7.46 chapters. is recited.

 ऋ1.43RV1.43

 

  1. Shankaayan shraut sootra prescribes recitation of this hymn in Shoolgava Ceremony to ward off ailments and troubles of domestic animals- cows, horses, and also family.

 

  1. Ashwalayan Grih sootra prescribes hymn for attaining powers and achieving one’s desires.

 

The seer of this hymn here is Kanw-Super intelligent – one who listens to everything very attentively. That is the reason that his every action is based on proper analysis and appropriate. Actions under him are known for beauty, charm, grace, grandeur, sublimity.  He

personifies venerable sublime Enlightenment, Intelligence, Resolution and Determination.

। रुद्र:, मित्रावरुणौ च, 7-9सोम:। गायत्री, 9 अनुष्टुप् । ऋ1.43RV1.43 रु द्र

The seer of this hymn here is Kanw-Super intelligent – one who listens to everything very attentively. That is the reason that his every action is based on proper analysis and appropriate. Actions under him are known for beauty, charm, grace, grandeur, sublimity.  He

personifies venerable sublime Enlightenment, Intelligence, Resolution and Determination.

रुद्र:, मित्रावरुणौ च, 7-9सोम:। गायत्री, 9 अनुष्टुप्

1.कद्रुद्राय प्रचेतसे मीळहुष्टमाय तव्यसे ।

वोचेम शंतमं हृदे ।। RV1.43.1

Let us invoke in the intellect to promote in our hearts the shower of blessings of  the great Rudra for  our well being For providing healthy disease free life, and to give comfort to our hearts, wise men tell about the appropriate actions to be taken and precautions observed for ensuring disease free healthy life at different times and situations.

हम बड़े बुद्धिमान् (अभीष्टों के लिएअत्यन्त मेघ  बरसाने वाले महाबली रुद्र के लिए हृदय से  अत्यन्त सुख देने वाले किस (वचन) को कहें?

( रुद्र परमात्मा की वह शक्ति है जिस का विकास बिजली की गरज के समान चमत्कारी होता है रुद्र मनुष्यों के लिए वर्षा इत्यादि के द्वारा वायुमंडल से और वनस्पतियों द्वारा रोग को नाश करने वाली औषधियों को देने वाले हैं भयंकर होने पर भी रुद्र  अपने आर्य्य उपासकों के लिए अत्यन्त मृदु हैं ।) संहिता- शिवनाथ आहिताग्नि से

रोग रहित स्वस्थ जीवन के हेतु, बुद्धिमान जन,  रुद्र के रोगाणुओं को नष्ट करने और हमारे स्वास्थ्य के लिए भिन्न भिन्न  परिस्थितियों में भिन्न भिन्न समय पर हमारे आचार व्यवहारका उपदेश करते हैं.

2.यथा नो अदिति: करत् पश्वे नृभ्यो यथा गवे ।

यथा तोकाय रुद्रियम् ।।RV  1.43.2

By which the environments may be (induced) to grant the gifts of Rudra to our animals, our people, our cows and our progeny.Like what a mother of new born desires, like what a keeper of cows desires, like what a king desires for his people, like what a farmer desires while working with soil on the farm the divine wisdom of Rudra (about sanitation and destroying of disease carrying germs pathogens )  may be made available to preserve the health and wellbeing. (of all).

जिस के द्वारा हमारे पशु, गौ, समाज, सन्तान सब  रुद्र सम्बन्धित भेषज से निरोग स्वस्थ हों। माता जिस  प्रकार अपने नवजात शिषु के लिए , सूर्य पृथ्वी और  वनस्पति के लिए उत्तम, राजा अपनी  प्रजा और गौवों के कल्याण के लिए  स्वास्थ्य प्रद  रोग रहित  परिस्थितियां बनाते हैं, उस रुद्र का विशेष ज्ञान उपलब्ध कराना चाहिए. 

3.यथा नो मित्रो वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति ।

यथा विश्वे सजोषस: ।। 1.43.3

May we learn to get familiar with the मित्रः  probiotics the  health giving nutritive,वरुण „ – the omnipresent microorganisms like viruses, and the रुद्रः disease  destroying agents , for our good health. Where all natural elements are friendly and provide disease free healthy environments, they by Rudra render all our habitat safe and healthy.

जिस से  हम को मित्र वरुण रुद्र सब देवता समान प्रीति वाले हों समस्त प्राकृतिक सम्पदाएं, पर्यावरण, रुद्र कि कृपा से रोग रहित स्वास्थ्य प्रद हमारे मित्र वत हों

4.गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम् ।

तच्छंयो: सुम्नमीमहे ।। 1.43.4

Rudra  bless us  through the gaathpatim  traditional folklore wisdom to avoid disease and maintain healthy environments  for a peaceful society and  jalaash bheshajam to turn waters in to medicines for our total wellbeing.

HHWilson in his Ved Bhashya comments on jalashbheshajamas follows ” he who has medicament conferring delight; from ja,one born and lasa, happiness; an unusual word except in a compound form, as abhlasha, which is of current use; or it may mean , sprung fromwater( jala), all vegetables depending over water for their growth.and temperaments  pure and  jalaash bheshajam ability to turn waters in to medicines for our total wellbeing.

(This makes clear reference to jalaash   being specially treated   water endowed with enhanced medicinal curative properties .  Modern scientists of Biophysics call such water ‘activated water’. This water is being increasingly prepared in Biodynamic Agriculture of Rudolph Steiner and Compost Tea preparations. Activated water being made by electronic devices is increasingly finding use for drinking purposes. Dairy industry is using Activated Water to enhance milk production of the cows by more than 20%. Ganges water in its pristine purity is the naturally formed jalaash i.e. Activated Water and is well known for its innumerable divine qualities.)

(This is clear reference to jalaash   being a preparation of what modern scientists of Biophysics call activated water)

(हम)स्तुति के पालक यज्ञ के स्वामी सुख रूप औषधि से युक्त रुद्र से उस रोग शान्ति (और) सुख को मांगते हैं । जलाष विषय- महान वैज्ञानिक न्यूटन ने कहा था कि वह अपने वैज्ञानिक अनुसन्धान करते हुए ऐसा अनुभव करता है कि वह प्रकृति के एक विशाल समुद्र के तट पर केवल छोटे छोटे पत्थरों से एक बालक की तरह खेल रहा है वेदों मे ऋषियों के विज्ञानकी जान कारी इतनी विस्मय कारी है कि आधुनिक विज्ञान सचमुच में  अभी छोटे छोटे पत्थरों से ही खेल रहा है। जलाष के सन्दर्भ में यही कहा जा सकता है। पवित्र गंगा जल में रोग नाशक तत्व क्या हैं और गंगा जल किस प्रकार  सामान्य पानी से भिन्न है यह अभी तक विश्व भर के वैज्ञानिक पता नहीं कर सके  हैं। आधुनिक विज्ञान Activated Water के  विस्मयकारी  परिणामों का अभी अध्ययन कर रहा है। अधिकांश वैज्ञानिक इसे pseudo science की संज्ञा देते हैं। परन्तु होम्यो पैथी और ओस्ट्रियन वैज्ञानिक रुडोल्फ़ स्टाइनर के बायोडायनमिक पदार्थों की उपयोगिता अब अमेरिका की सरकारी कृषि नीति में आते हैं।

जलाष शब्द पर विभिन्न वेद भाष्य, निरुक्त इत्यादि  ग्रन्थों  बहुत कम ज्ञान  मिलता है। Monier Williams के अनुसार जलाष से mechanically subdued water अर्थ बनता है। इस प्रकार कृष्टी द्वारा उपचारित जल को जलाष कहा जा सकता है इस प्रकार उपचारित जल को Activated Waterकहा जाता है। यही वैदिक भाषा में जलाष कहलाता है। विशेषगोमूत्ररूपेण जलेन। जलाषमिति उदकनामसु पठितम्‌। जलाष को रुद्र संबन्धी भेषज के लिए अन्यत्र भी श्रुति में कहा गया है—“गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्” ( 1434 कौ0 सू0(31/11) विनियोग के अनुसार बिना मुख वाले फ़ोड़े फुन्सी आदि व्रणों को गोमूत्र से धो कर उस का उपलेप करना चाहिए। गो मूत्र इस प्रकार रोगों की अव्यर्थ महोषधि है यहा तक कि उस का नियमित सेवन कुष्ट आदि के घावों को भी ठीक कर देता है। आयुर्वेद में इस के गुणवर्णन करते हुए लिखा है–शूल गुल्मोदरानाहकण्ड्वक्षि-मुख्रोजित्‌।” तथा  कासं सकुष्ठ-जठरकेइमिपाण्डुरोगान् गोमूत्रमेकमपि पीतमपाकरोति (भाव नि0 मूत्र वर्ग 4)

रुद्र के प्रभाव से हमारा पेय जल ओषधि रूप बने, और समाज में उच्च विचारो के प्रचार  से जीवन सुख शांति मय बने. ( पेय के लिए शुद्ध पवित्र ओषधि गंगा जल उपलब्ध रहे) 

5.य: शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते ।

श्रेष्ठो देवानां वसु: ।। 1.43.5

Establish the ever dazzling golden sun to provide the best naturally available health ensuring gifts. (Recognize the supreme position of ever dazzling golden sun as protector and enabler of entire life and habitat on this planet.

(Modern science has come to the conclusion that Solar energy is the supreme source of disinfection, provider of Vitamin D, and photosynthesis to create carotenoids and numerous nutritive elements for life.

Modern science confirms that solar light is the most sustainable sanitizer. Solar radiations only by photosynthesis are the precursor of Vitamin D, Essential Fatty Acids and Carotenoids the best natural antioxidants that ensure disease free healthy life. It is now realized that  newer diseases such as Cardiac heart problems, diabetes, eye problems cataract, age related macular degeneration are spreading like epidemics in the community due to non availability of good cow milk and organic food )

देदीप्यमान सूर्य के प्रभाव से समस्त  वसु: -निवास,गो दुग्ध इत्यादि उत्तम वीर्य प्रदाता  हो कर श्रेष्ठ साधन प्रदान करें.

(आधुनिक विज्ञान मानता है कि प्रात:कालीन सूर्य नमस्कार सूर्य अर्चना का मानव स्वास्थ्य पर विटामिन डी द्वारा  और सूर्य के प्रभाव से वनस्पति, हरे चारे पर पोषित गो दुग्ध मे ओषधि गुण प्राप्त होते हैं. आधुनिक जीवन शैलि मे सूर्य भगवानसे दूर रह कर, गौओं को गोचर में  हरे चारे से वन्चित रखने से ही समाज में सब मधुमेह, हृदय, नेत्र रोग  इत्यादि महामारि की तरह फैल रहे हैं )

6.शं नो करत्यर्वते सुगं मेषाय मेष्ये ।

नृभ्यो नारिभ्यो गवे ।। 1.43.6

Sun  similarly provides beneficial effects to  all the domestic animals the  sheep, goats,  kings , community and cows with health providing healthy  peace loving temperaments. Natural straight path is the right and easy path to follow for health and welfare of all, in all matters of living connected with families of horses,  meshaaya  small rumens animals , men,  women and cows.

(It is interesting to note here that Veda is classifying horses and goats, sheep etc separately from Humans and Cows in that order, for welfare in management practices. Cows occupy the highest position in this order of priorities, Horses, Goats, Sheep, Men Women and then Cows. Cows were not bracketed with animals but were treated in the category of human beings and placed above humans. It is also noted that Buffalo was not admitted as a domesticated animal. This is a clue to how cow gets elevated to the status of universal mother in Indian tradition.)

उसी प्रकार उत्तम सूर्य ज्योति से सब भेड,बकरियां, राजा, प्रजा, गौएं सुख शांति प्रदाता हों.

7.अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम् ।

महि श्रवस्तुविनृम्णम् ।। 1.43.7

For the entire community ensure availability of excellent cow milk and cow enabled organic food to provide excellent intellects and peace loving temperaments.

समस्त समाज के लिए उत्तम गोदुग्ध और गो आधारित जैविक कृषि  द्वारा उपलब्ध अन्न से कुशाग्र बुद्धि, और सौम्य पकृति के समाजका निर्माण करो.

 

8.मा न: सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।

आ न इन्दो वाजे भज ।। 1.43.8

Develop the strength to defeat the antisocial, selfish, consumerist, non charitable, greedy, selfish life styles from community.

असमाजिक विचारों,प्रवृत्तियों, अयज्ञशीलता, अदानशीलता, भोगवादिता के उन्मूलन की शक्ति  सामर्थ्य उत्पन्न करो.

9. यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन् धामन्नृतस्य ।

मूर्धा नाभा सोम वेन आभूषन्ती: सोम वेद: ।। 1.43.9

Thus by establishing Vedas in the mind and temperament of the society excellent peaceful world may evolve.

जिस से समस्त प्रजा की मूर्धा चेतना अमृत मयि वेदों के उपदेशों  से आभूषित हो कर अत्युत्तम संसार समाज का निर्माण करें.

Rudra Jap रुद्र जप RV2.33 12 to 15

कुमारश्चित्‌ पितरं वन्दमानं प्रति ननानाम रुद्रोपयन्तम्‌ |   

गृणीषे स्तुतस्त्वंं भेषजा रास्यस्मे ।। 2.33.12

या वो भेषजा मरुत: शुचीनि या श्ंतमावृषणो या मयोभु।

यानि मनुरवृणीता पिता नस्ता शं च योश्च रुद्रस्य वश्मि ।। 2.33.13

परि णो हेतीरुद्रस्य वृज्या: परि त्वेषस्य दुर्मतिर्मही गात्।

अव स्थिरामघवद्भ्यस्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृळ ।। 2.33.14

एवा बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसि ।

हवनश्रुन्नो रुद्रेह बोधि बृहद्वदेम विदथे सुवीरा: ।। 2.33.15

RV7.46

ऋषि: मैत्रावरणिर्वासिष्ट देवता रुद्र: : 

इमा रुद्राय स्थिरधन्वने गिरः क्षिप्रेषवे देवाय स्वधाव्ने।

अषाळ्हाय सहमानाय वेधसे तिग्मायुधाय भरता शृणोतु नः।। ७.०४६.०१

स हि क्षयेण क्षम्यस्य जन्मनः साम्राज्येन दिव्यस्य चेतति।

अवन्नवन्तीरुप नो दुरश्चरानमीवो रुद्र जासु नो भव।। ७.०४६.०२

या ते दिद्युदवसृष्टा दिवस्परि क्ष्मया चरति परि सा वृणक्तु नः।

सहस्रं ते स्वपिवात भेषजा मा नस्तोकेषु तनयेषु रीरिषः।। ७.०४६.०३

मा नो वधी रुद्र मा परा दा मा ते भूम प्रसितौ हीळितस्य।

आ नो भज बर्हिषि जीवशंसे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।। ७.०४६.०४

Afterwards with recitation of the following mantras the young Bull along with at least four young heifers is marked with decorations and released.

To prevent inbreeding, for the group of cows, which one bull will cover, Vedas and Grihya Sutra, talk at length about pedigree, Phenotypes (the physical features) and Genotypes (the genetic traits with regard to producing good quantity of milk, cool and social temperaments of the cows, hardiness etc  and the  different breeds. Selection of the bull is also  decided by giving due considerations of Size Match. These instructions are given at one place in Grihya Sutras.

 Complete text of Paraskar Grihya Sutram (HariHar Bhashyam) is reproduced below:-

HariHar Bhashyanam हरिहर भाष्य-‘रुद्रान…जेरन्’।

रूद्रान्नामस्त इत्यधयायाम्नातान् जपित्वा जपधर्मेण पठित्वा

अत्र शूलगवातिदेशप्राप्तोऽपि रुद्र जपविधिः प्रथमोत्तमानुवाकजअविकल्पनिवृत्यर्थः जपावसरज्ञापनार्थो वा। तन्न। अपूर्व एवायम्, जप्यत्वेनाप्राप्तत्वात्‌। प्रकृतौ हि रुद्राणां पशूपस्थाने करणत्वेन विहितत्वात्‌। एक एव शुक्लादिवर्णो रूपं यस्य स एक वर्ण: तम्‌। अथवा द्वो वर्णौ यस्य स द्विवर्ण: तं वृणम्‌। एवं वर्ण विशेष नियमम भिधाायाध्‌ुना वृषस्य परिमाण विशेष नियममाह-यो वृषो यूथं कृत्स्नं वर्ग छादयति स्वपरिमाणेनाधा: करोति तं वा यं वृषं यूथं वर्गश्च्छादयेत् अधा: कुर्यात् तं वा यूथादधिकपरिमाणं वा न्यूनपरिमाणं वेत्यर्थ:। रोहितो लोहित एव वा य: स्यात्, एवकारेण लोहितस्य एकवर्णद्विवर्णाभ्यां प्राशस्त्यमुच्यते, पुन: कीदृक्? सवैञ्गैरूपेत: समन्वित: न पुनर्हीनांगोऽधिकांगो वा, तथा जीवा: प्राणवन्तो वत्सा: प्रसूतिर्यस्या: सा जीववत्सा तस्या गौ: पुत्रा:। तथा पयः क्षीरं ¤É½Ö±É विद्यते यस्याः सा पयस्विनी तस्या गोः पुत्रः। तथा यूथे वर्गे विषये रूपमस्यास्तीति रूपस्वी अतिशयेन रूपस्वी रूपस्वित्तम: वृण: स्यात् तमुक्तगुण विशिष्टं वृषमलंकृत्य वस्त्रमाल्यानुलेपहेमपट्टिकाग्रैवेयकघण्टादिभिर्वृषोचितभूषणैर्भूषयित्वा न केवलं वृषमात्रं ताश्च वत्सतरीरप्यलंकृत्य, कीदृशी:? या: यूथे स्ववर्गे मुख्या: गुणै: श्रेष्ठा वत्सतर्य: कति? चतस्र चतु:सञ्ख्योपेतास्ता:, एवं युवानमित्येतयर्चा उत्सृजेरन् त्यजेयुः।। पा गृ सूक्त 3-9-6

नभ्यस्तमभिमन्त्रायते मयोभूरित्य नुवाकरोषेण।। पा गृ स् 3-9-7

This is followed by recitation of RigVed 10-169  Go Sukta of four mantras (which is as follows) while releasing the young bull with the cows

2.5-20  RV 10-169

RV 10-169-1            मयोभूर्वातो अभिवातूस्रा। ऊर्जस्वतीरोषधाीरा रिशन्ताम।

                   पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ।। ऋ 10.169.1

                  

2.5.21

RV 10.169.2 या: सरूपा विरूपा एक रूपा या सामग्निरि ष्टया नामानि वेद।

                     यअङ्गिरसस्तपसेह  चक्रुस्ताभ्यः पर्जन्य महि शर्मयच्छ।।  ऋ 10.169.2 

2.5.22

RV10.69.3     या देवेषु तन्व मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद।

ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमाना: प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ।। ऋ 10.169.3     

2.5.23

RV 10.169.4 प्रजापति र्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवै: पितृभि: संविदान:।

         शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम।।  ऋ 10.169.4

Finally the following mantras are recited while giving offerings into yagyani.

 तत् पश्चाद इन मत्रों से आहुति दें

  2-5-24

shukla yaju 18-45 to 50

समुद्रोऽसि नभस्वानार्द्रदानुः शम्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा ।

            मारुतोऽसि मरुतां गणः श्म्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा ।

            अवस्यूरसि दुवस्वाञ्छ्म्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा।। यजु 18-45

 

            यास्ते अग्ने सूर्यो रुचो दिवमातन्वन्ति रश्मिभिः।

            ताभिर्नो  अऽद्य सर्वाभी रुचे जनाय नस्कृधि स्वाह ।। यजु 18-46

 

            या वो देवाः सूर्ये रुचो गोष्वेषु य रुचः ।

            इन्द्राग्नी ताभिः सर्वाभी रुचं नो धत्त बृहस्प्ते ।।यजु 18-47

           

            रुचं नो धेहि ब्राह्मणेषु रुच$ राजसु नस्कृधि ।

            रुचं विश्येषु शूद्रेषु मयि धेहि रुचा रुचम्  ।।  यजु 18-48

 

            तत्व यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।

            अहेड्मानो वरुणेह बोध्यरुश$ स मा न आयुः प्रमोषीः स्वाहा ।। यजु 18-49

 

           स्वर्ण धर्मः स्वाहा स्वर्णार्कः स्वाहा स्वर्ण शुक्रः स्वाहा

            स्वर्ण ज्योतिः स्वाहा स्वर्ण सूर्य्यस्वाहा ।। यजु 18-50

        

 

 

2.2.6       Procedure on calving  पुष्टि कर्म

पृष्टिकाम: प्रथम जातस्य वत्सस्य प्राङ्गमातु: प्रलेहनाज्जिह्वया ललाट मुल्लिमह्य निगिरेद् गवा ञ श्लेष्मा सीति।।3।।      गोपालन विधान-गोभिल गृह सूक्त3।6।3

First thing a cow does on delivering a calf is to lick the new born with her tongue starting from its face, to clean it and swallows all the coverings. She may be helped in this operation by the persons attending to her.

पुष्टिकाम एव संप्रजातासु निशायांगोष्ठेऽग्निमुपसमाधाय विलयनं जुहुयात् संगृहाणेति ।।4।।

गो0 गृ 0सू0 3।6।4

For the protection and providing strength to the newborn and mother, (if it is night time a fire should be lit. Also homa/Agnihotra should  be performed by  giving special oblation of cowsङ milk mixed with curd while reciting the following mantra.

2-6-1   संग्रहण संगृहाण ये जाता: पशवो मम।

पूषैषां शर्म यच्छतु यथा जीवन्तो अप्ययात। मंब्रा 1।8।4

Significance of the cow licking the newly born is to clean and to help the calf  to gain in strength to stand up. The   fire is made in the vicinity, (Agnihotra Fire performs this function automatically) for protection from stray  predator attackers.

 Fumigated environment provides, to calf and calving cow for better health. It is for modern science to investigate the beneficial effects of making specific oblations of cow milk mixed with curds into fire.

This homa is also part of Darsh Pourn Maseshthi  and is known by the same title Pushti karan by Sannaya Havi- सान्नाय हवि (milk + curd) mixture in दर्शपोर्ण मासेष्टिख्र्. This clearly confirms the link of दर्शपोर्णमासेष्टि in every day life

 

2.7 Tatoo Marking the New Born

 ( for good breeding practice)

Vedas and subsequent Indian traditions show remarkable scientific understanding of genetics. Vedas very clearly say that the same considerations of GOTRA apply to Cows as to Human beings for maintaining good progeny. To avoid inbreeding the inbreeding   coefficient of less than unity is planned, by Heterozygous mating. A six generations gap, in mating is planned to achieve this by the  system of Gotras and Sapinda considerations. By the seventh generation, inbreeding coefficient drops to below unity.

 Modern Veterinary Science confirms that for every one percent increase in the inbreeding coefficient the milk yield among cows registers a drop of up to 10%. Lack of importance given to the Breeding Bulls has been one of the main reasons for declining milk yields and population of good  Indian Cows. The other reasons are lack of adequate feed, clean drinking water , sanitary condition of the cows and love and affection practiced in the care of cows.

          2.7.1 AV6.141.2 लोहितेन स्वधितिना मिथुनं कर्णयोः कृधि।

             अकर्तामश्विना लक्ष्म तदस्तु प्रजया बहु ।। अथर्व वेद 6-141-2

 

2.7-2   पुष्टि काम एव संजाता स्वौदुम्बरेणासिना वत्स मिथुन योर्लक्षणं

करोति पुञसएवाग्रेऽथ स्रिया भुवनमसि साहस्रमिति। गो0 गृ0 सू0 3-6-5

For improvements of the cows by recognizing, their traits for further strengthening breed of the future  progeny, relevant marks are tattooed on the ears of the new born, by an instrument made of copper.

(Asper BhavPrakash Nighantu Udumbar also means copper).

 Then recite “भुवनमसि साहस्रमिति”* as given here.

 

     2.7.3  या फाल्गुन्या उत्तरामावस्या सा रे वत्या संपद्यते तस्याम ङ्कलक्षणनि।।

          शाञ्खायन गृह सूत्र

Falgun month amavasya Revati Nakhatra is recommended as the appropriate season for carrying out identification branding of cattle.

 

 

2.7.4 भुवनसि साहस्रमिन्द्राय त्वा सृमोऽददात् अक्षतमरिष्टमिलान्दनम्

गापोषणमसि गापोषस्येशिषे सहस्रपोषाय त्वा।

सहस्रपोषणमसि साहस्रपोषस्येशिषे सहस्र पोषाय त्वा।। मंब्राह्मण् 1.8.5

 

2.7.5   लोहितेन  स्वधिातिना मिथुनं कर्णयो: कृतम।

          यावतीनां यावतीनां व ऐषमो लक्षणकारिषम्‌।

          भूयसीनां भूयसीनां व उत्तरांमुत्तरां रूह्ममाम् क्रियासम्‌।। मंब्रा 1.8.6

Sanitation in Milking

2.8  Washing the string used for tying the legs of cow  at milking time

 

                         तन्त्री प्रसार्य्यमाणांबद्धवत्साञ्चानुमंन्त्रयेतेयंतन्त्रीगवांमातेती ।

    गो0ग़ृ0 सू0  3।6।7

Washing and /drying of the string used for tying the calves and legs of the cows during milking.

2.8.1   इयं तत्री  गँवा माता सवत्सानां निवेशनी।

          सा न: पयस्वती दुहा उत्तरा मुत्तरां समाम्‌।। मं0 ब्राह्मण 1-8-7

With this mantra the string should be washed and hung to dry every day for milking the cows.

2.8.2  तत्रै तान्यहरहः कृत्यानि भवन्ति ।  गो0गृ0सू03।6।8

2.8.3  निष्कालनप्रवेषने त्न्त्री विहरणमिति । गो0गृ0सू03।6।9

2.8.4  गोयज्ञे पायसश्चुरुः । गो0गृ0सू0 3।6।10

Modern Dairy Industry is very concerned about in house hygiene and cleanliness. But no control is exercised in this matter at the place where the cattle is kept, fed and milked. The result is that the milk collected by the Dairy Industry all over the world and not only in India, is very unhygienic, with extremely high Total Bacteria Counts. Good clean Raw milk never spoils. It  will get sour and settle as curds, like in making of Cheese. The Dairy Industry therefore has to Pasteurize all the Milk, before it can be handled any further. Natural Milk contains the microorganisms which are pathogenic, and keep the raw milk clean. But external bacteria on entering raw milk, introduce mainly disease carrying germs in it. By Pasteurization all the germs and Bacteria in the milk are destroyed. In the process of sanitizing the milk from disease carrying bacteria which get introduced due to unhygienic handling, all the health giving disease preventing enzymes present in the natural milk are also lost. The Pasteurized milk is there fore ‘Dead milk’ without the qualities  of nutrition , disease prevention and promoter of mental intellectual qualities, with which it is associated in our Vedic Indian Traditions.

There is a very strong world wide movement for promotion of Raw and Organic Milk. In fact all Cheese in Western countries is made only from Raw Milk.

  Our Vedic tradition go very deep on this subject of producing clean milk, by following the definite systems laid down as below.

  1. 1.    It ensured cleanliness of environment by fumigation/Homa as above twice a day.
  2. 2.     Elaborate directives on planning of cow shelter, with considerations of Ventilation, Natural Sun light by orientation of the shelters and  Clean Floors etc.
  3. 3.     For the  persons milking the cows and looking after the cows proper behavior to provide affectionate care.
  4. 4.    Requirements about the good clean hands of the milking men to keep the च्bacterial infectionछ to utmost minimum is  laid down.  Here it has laid down the instruction to use only clean string, for the handling of cows and calf by the milk men, by washing it daily.
  5. 5.    There was a scheme to milk the cows three times a day. This had two very specific advantages. One the fresh from Udders Raw milk was available three times a day. Two with three times milking, the Udder stress is reduced. This practice is accepted to increase the milk yield by cows by up to 10%.

These are the daily procedures to be followed in Gopalan as explained above:

1.Keep cows under very clean and peaceful     environments.

2.Allow cows to have daily outing to self feed in well managed pastures.

3.Keep the young calves behind.

4. On return after their  daily outings, receive , collect and manage them properly.

5. More attention is required to be paid to the nutrition and health of the young ones.

6. Arrange for proper selection and raising of Breeding Bulls.

7. Identify all young ones by tattoo marking for preventing inbreeding and breed improvement.

8. For GoYagnas Cow milk cooked rice, Cow Ghee , Milk and Curds should be used.

2.9  Darsh Pourn Maseshti

         दर्शपोर्णमासेष्टि 

From the above elaborate and detailed ritualistic tradition it is seen that Breeding,  was considered and observed as the most important area of animal husbandry and covered all aspects as per modern scientific practice.

Functioning of the elaborate वृषोत्सर्ग procedure described here, also points to the existence of a central community based institutional system which operated as a community resource center. This institution played the role of Monitoring the skills and practices followed for  Promoting, Training  and Educating the community by dissemination of good knowledge and Skills in all aspects related to Pastoral livelihood and life support activities, involving.

            1.Animal husbandry,

2.Agriculture  related areas like

  a. Selection and Preservation of Quality Seed

  b. Seed Banks for next harvests,

  c. Inspection of farm implements like tools, carts,

  d. Community decisions on health , feed strategies for cows

   e .Disposal of non productive not fit for domestic purposes cattle etc.

All these activities formed the subject of a community base yagna called Darshpournmaseshti. 

.Modern concept of Krishi Vigyan Kendras could evolve to play this role.

 The rituals of दर्शपोर्णमासेष्टि  Darsh Pourn Maseshti, are  seen as the Vedic system of modern management like ISO 9000, covering entire Macroeconomic activities of the society.

This calls for a very scholarly study in to the institution of this tradition for the  Indian Cows and Sustainable Organic Agriculture.

2.10    COW practices according to PANINI ( circa 500 B.C).

 

2.9.0 Terms and nomenclature prevalent related to Cows, Milk preparations

2.9.1.0 Practices relating to breeding, Identification of herds, Judging Age of cattle,