Category Archives: आचार्य श्रीराम आर्य जी

कुरान समीक्षा : असली कुरान से मुर्दे जी उठें-पहाड़ चलने लगें और जमीन फट जावेगी

असली कुरान से मुर्दे जी उठें-पहाड़ चलने लगें और जमीन फट जावेगी

वह कुरान पेश करें जिससे मुर्दे जी उठें, बोलने लगें, पहाड़ चलने लगें व जमीन फट जावे? जग कि ऐसा कुरान पेश नहीं होता है तब तक मौजूदा कुरान नकली फर्जी स्वयं ही साबित हो जाता है। इसका प्रचार न किया जावे तो उत्तम होगा। मुर्दे न सही यदि किसी कुरान से मरी हुई मक्खी जिन्दा होकर उड़ने लगेगी तो भी हम उसे असली खुदाई कुरान मान लेंगे।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व लो अन्-न कुर्आनन् सुय्यिरत्…………।।

(कुरान मजीद पारा १३ सूरा राद रूकू ४ आयत ३१)

और अगर कुरान ऐसा होता जिससे पहाड़ चलने लगते या उससे जमीन के टुकड़े हो सकते या उससे मुर्दे जी उठें और बोलने लगें तो वह यही होता….।

समीक्षा

अगर मौजूदा कुरान सच्चा होता तो दुनियाँ में एक भी मुसलमान मरना नहीं चाहिये था। जमीन जब फट सकती थी तो अलमारी में भूकम्प कुरान रखने से ही आ जाना चाहिए था। मस्जिदों में कुरान रखने से वह बिस्मार हो जानी चाहिये थीं। पहाड़ों में रास्ते बनाने के लिए डाइनेमाइट से उड़ाने के बजाय कुरान से काम लेना चाहिए था। पर एक भी शर्त कुरान से पूरी नहीं होती है अतः हम दावे के साथ कहते हैं कि ‘‘मौजूदा कुरान बिल्कुल नकली है,’’ यह कुरान की शर्त पर असली साबित नहीं किया जा सकता है।

कुरान समीक्षा : आसमानों को ऊँचा खड़ा किया

आसमानों को ऊँचा खड़ा किया

पढ़े-लिखे मौलाना इस आयत का खुलासा करें कि (तम्बू की तरह) सात आसमान कैसे ऊंचे खड़े किये गये हैं?

अल्लाहुल्लजी र-फ-अस् समावाति………।।

(कुरान मजीद पारा १३ सूरा राद रूकू १ आयत २)

अल्लाह वह है जिसने आसमानों को बिना किसी सहारे के ऊंचाबनाकर खड़ा किया, तुम देख रहे हो फिर तख्त पर जा विराजा।

समीक्षा

इस आयत में खुदा का आना जाना और फिर आसमान अनाकर तख्त पर जा बैठना लिखा है, इससे स्पष्ट है कि खुदा हाजिर नाजिर अर्थात् सर्वव्यापक नहीं है आसमान जब कोई ठोस पदार्थ नहीं है तो ‘‘उसका ऊंचा और बे सहारा बनाकर खड़ा करना’’ ऐसा कहना कुरान बनाने वाले को पूरा नासमझ साबित करता है।

कुरान समीक्षा : अरबी में ही कुरान क्यों उतारा गया?

अरबी में ही कुरान क्यों उतारा गया?

क्या इससे स्पष्ट नहीं है कि खुदा का उद्देश्य कुरान उतारने का केवल अरब वालों को डराना मात्र था?

यह दुनियाँ के लिये होता तो उसे मुल्क में वहीं की भाषा में बनाया गया होता ताकि सारी दुनियाँ के लोग उसे पढ़ व समझ सकते।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्ना अन्जल्नाहु कुर-आनन्…………….।।

(कुरान मजीद पारा १२ सूरा यूसुफ रूकू १ आयत २)

हमने कुरान को अरबी भाषा में उतारा है ताकि तुम समझ सको।

समीक्षा

जब कि कुरान का उद्देश्य ही मक्का और उसके आसपास के लोगों को डराना था तो उसे अरबी में ही उतारना ठीक था ताकि वे उसे समझ सकें। पर यह नहीं बताया कि असली कुरान खुदा के पास किस भाषा में लिखा हुआ रखा है?

शायद वह संस्कृत में ही होगा क्योंकि प्राचीनतम् भाषा संस्कृत ही है। निम्न प्रमाण भी देखें।

अन् तकूलू इन्न्मा उन्जिलल्………..।।

(कुरान मजीद पारा ८ सूरा अन्आम रूकू २० आयत १५६)

ऐ मुशरिकीन अरब! हमने यह इसलिये उतारी है कि कहीं यह न कह बैठो कि हमसे पहले बस दो ही गिरोहों पर किताब उतरी थी और हम तो उसके पढ़ने पढ़ाने से बिल्कुल बेखबर थे।

इस प्रमाण से भी स्पष्ट है कि कुरान मक्का और उसके आसपास या मुशरिकीन अरब वालों को इस्लाम में फांसने के लिए खुदा के नाम से बनाया गया था ।

वास्तव में वह संसार के लिये नहीं बना था, न सभी को उसे मानना चाहिये।

कुरान समीक्षा : अप्राकृतिक व्यभिचार और हजरत लूत की बेटियाँ

अप्राकृतिक व्यभिचार और हजरत लूत की बेटियाँ

गुन्डों का सामना करने के बजाय अपनी बेटियाँ व्यभिचार को पेश करना, उस जमाने के लोगों में इगलामबाजी अर्थात् लौंडेबाजी का जारी होना, इन गन्दी बातों को कुरान में लिखवा कर खुदा ने लोगों को कौन सी नसीहत दी है? क्या खुदा यह सिखाना चाहता था कि ऐसे मौके पर दूसरे लोग अपनी निर्दोष बेटियाँ गुन्डों को दे दिया करें और उनका मुकाबिला न किया करें? आखिर यह गन्दी कथा कुरान में क्यों दी गई?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व लम्मा जा-अत् रूसुलुना लूतन्………..।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू ७ आयत ७७)

और जब हमारे फरिश्ते लूत के पास आये उनका आना उनको बुरा लगा और उनके आने की वजह से तंग दिल हुए और कहने लगे यह तो बड़ी मुसीबत का दिन है।

व जा-अहू कौमुहू युह्रअू-न इलैहि………….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू ७ आयत ७८)

लूत जाति के लोग दौडे-दौड़े लूत के पास आये और यह लोग पहले से ही बुरे काम किया करते थे। लूत कहने लगे भाईयों! यह मेरी बेटियां हैं यह तुम्हारे लिये ज्यादा पवित्र हैं। तो खुदा से डरो और मेरे मेहमानों में मेरी बदनामी न करो। क्या तुम में कोई भला आदमी नहीं ?

कालू ल-कद् अलिम्-त मा लना………..।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू ७ आयत ७९)

समीक्षा

अरब में अप्राकृतिक व्यभिचार बहुत प्रचलित था, यह इससे प्रगट है कि लोग खुले आम स्त्रियों को पसन्द न करके सुन्दर लड़कों को ही चाहते थे।

पैगम्बर लूत का अपनी बेटियों के गुन्ड़ों के लिए पेश करना और उनका लड़कियों के बजाय सुन्दर लड़कों को मांगना इसका सबूत है। खुदाई किताब कुरान में इस प्रकार की गन्दी बातों का उल्लेख होना खुदा के लिये शोभा की बात है या बदनामी की? यह हर कोई समझ सकता हैं। अरबी खुदा भी कैसा था जो ऐसी भद्दी बातों को भी उसमें लिखना नहीं भूला। खुदा भी सुन्दर लड़के अर्थात् गिलमें जन्नत में पेश करेगा।

कुरान समीक्षा : एक व दस सूरतें बनाने की शर्त

एक व दस सूरतें बनाने की शर्त

खुदा एक सूरत पेश करने की पहली शर्त पर कायम न रह कर दस सूरतों की शर्त क्यों पेश कर बैठा? इसका रहस्य खोल कर बताया जावे? पहले दस की शर्त लगातार फिर घटाकर एक की रखना तो ठीक था पर एक से एक दम बढ़ाकर दस कर देना रहस्य पूर्ण है। यह रहस्य खोला जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अम् यकूलूनफ्तराहु कुल् फअ्-तू……….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा यूनुस रूकू ४ आयत ३८)

क्या वह कहते हैं कि इसने कुरान खुद (मुहम्मदव ने) बना लिया? (तू कह दे कि) यदि सच्चे हो तो ‘‘एक’’ऐसी ही सूरत तुम भी बना लाओ और खुदा के सिवाय जिसे चाहो बुला लो।

अम् यकूलून फतराहु कुल् फअ्तू………….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू २ आयत १३)

क्या काफिर कहते हैं कि उसने कुरान को अपने दिल से बना लिया है, तो इनसे कहो कि अगर तुम सच्चे हो तो तुम भी इसी तरह की बनाई हुई ‘‘दस’’सूरतें ले आओ और खुदा के सिवाय जिसको तुमसे बुलाते बन पड़े बुला लो अगर तुम सच्चे हो।

समीक्षा

पहले खुदा ने एक सूरत बनाने की शर्त लगाई थी। पर जब किसी ने सूरत बनाकर पेश कर दी होगी तो झट खुदा ने दस सूरतें बनाने की शर्त बदल दी। अरबी खुदा अपनी जुबान का भी पक्का नहीं था। उसे अपनी बात बदलने में कुछ भी शर्म व संकोच नहीं होंता था। आखिर अरबी खुदा ही हो तो था, दुनियां का खुदा तो था नहीं! जब खुदा ने देखा कि लोग दस सूरतें भी बनाने में लगे हुए हैं और लगातार यह ऐतराज करते हैं कि ‘‘कुरान खुदाई ने होकर मुहम्मद उसें खुद बना रहा है’’तो उसने यह कहकर अपनी जान छुड़ाई कि-

अम् यकूलूनफ्तराहु कुल् इनि……….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू ३ आयत ३५)

क्या तुमको झुठलाते हैं और तुम पर ऐतराज करते है और कहते हैं कि कुरान को इसने खुद बना लिया है (तुम) उनको जवाब दो कि) उनको जवाब दो कि अगर कुरान मैंने खुद बना लिया है तो मेरा गुनाह मुझ पर है और जो गुनाह तुम करते हो उस पर मेरा कुछ जिम्मा नहीं।

समीक्षा

हर परेशान व्यक्ति यही कहता है कि जो परेशानी खुदा ने मुहम्मद से कहला कर बात खत्म कर दी थी। गलत बात का आखिर समर्थन कब तक किया जा सकता था ?

कुरान समीक्षा : खुदा नहीं चाहता कि सब मुसलमान बनें

खुदा नहीं चाहता कि सब मुसलमान बनें

जब खुदा ही इस्लाम का प्रचार नहीं चाहता है तो कुरान व इस्लाम का प्रचार करने वाले मुसलमान व अनकी संस्थाये कुफ्र करने से काफिर क्यों नहीं हैं?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व लौ शा-अ रब्बु-क ल आम- न………..।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा यूनुस १० आयत १९)

और अय पैगम्बर् तुम्हारा परवर्दिगार चाहता तो जितने आदमी जमीन की सतह में हैं सबके सब ईमान ले आते। तो क्या तुम लोगों को मजबूर कर सकते हो कि वह ईमान ले आवें।

व मा का-न लिन्फ्सिन् अन् तुअ्मि-न……..।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा रूकू यूनुस १० आयत १००)

किसी शख्श के हक में नहीं कि बिना हुक्म के ईमान ले आवे।

समीक्षा

जब तक खुदा नहीं चाहेगा कोई भी मुसलमान न बनेगा, यदि खुदा इस्लाम का प्रचार चाहेगा तो फल भर में दुनियां को मुसलमान बना देगा तो किसी भी मौलवी को इस्लाम का प्रचार नहीं करना चाहिए क्योंकि खुदा दुनियां को मुसलमान बनाता ही नहीं चाहता है या यह मानना चाहिए कि ‘अंगूर खट्टे हैं, वाली कहावत के अनुसार खुदा की ताकत के बाहर है कि- ‘‘सभी को मुसलमान बना सके’’।

कुरान समीक्षा : खुदा दिलों पर मुहर कर देता है

खुदा दिलों पर मुहर कर देता है

खुदा यदि लोगों के दिलों पर मुहर न किया करे तो उसका क्या नुकसान होगा?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

सुम्- म ब-अस्ना मिम्बअ्-दिही……….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा यूनुस रूकू ९ आयत ७४)

हम बेहुक्म लोगों के दिलों पर मुहर कर दिया करते हैं।

समीक्षा

प्रश्न यह है कि दिलों पर मुहर यदि खुदा बेहुक्म बनने से पहिले कर देता है तब तो उन लोगों का कोई दोष व नहीं है खुदा ही गुनाहगार है और यदि बाद को करता है तो बेकार रहा क्योंकि लोग अपनी मर्जी से बेहुक्म बनते हैं। खुदा की मुहर से नहीं।

कुरान समीक्षा : हर बात रोशन किताब में लिखी है

हर बात रोशन किताब में लिखी है

जिस किताब में ज्ञान-विज्ञान की हर बात हो वह रोशन किताब कौन सी है? यदि वह खुदा के पास छिपी हुई रखी है तब उसकी प्रशंसा करना बेकार है, क्योंकि दुनियाँ को उससे कोई लाभ नहीं। यदि दुनियाँ में है तो उस विलक्षण किताब का जरूर पता बताया जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व मा तक्नु फीव शअ्निव-व…………।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा यूनुस रूकू ७ आयत ६१)

न जमीन में और न आसमान में और जर्रे से छोटी चीज हो या बड़ी? सभी बातें रोशन किताब में लिखी हुई हैं।

व कालल्लजी-न क-फरू ला………..।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा सबा १ आयत ३)

जर्रा से छोटी और जर्रा से बड़ी जितनी चीजे हैं रोशन किताब में सब लिखी हुई हैं।

समीक्षा

यह रोशन किताब कुरान तो हो नहीं सकता क्योंकि उसमें हर चीज का जिक्र नहीं है। तब यह कौन सी किताब है और कहां है? यदि खुदा के पास लिखी है तो उसका जिक्र करना बेकार है। यदि दुनियां में है तो वह किताब ‘‘वेद’’ही हो सकते हैं क्योंकि समस्त विद्याओं के भण्डार वही हैं । रोशनी का अर्थ ज्ञान या प्रकाश होता है वेद शब्द का अर्थ भी ज्ञान है। नाम से भी रोशन किताब का अर्थ वेद ही बनता है। कुरान के भक्तों को इस पर विचार करना चाहिए।

कुरान समीक्षा : कुरान पुरानी खुदाई किताबों की तफसील अर्थात् व्याख्या है

कुरान पुरानी खुदाई किताबों की तफसील अर्थात् व्याख्या है

खुदा ने पुरानी किताबों की तफसील रूपी कुरान क्यों लिखा? कोई नई उत्तम किताब ज्ञान-विज्ञान की क्यों नहीं लिखवाई? पुरानी आल्हा को गाना खुदा के लिए कोई खूबी की बात नहीं है। न उससे खुदा की शाम बढ़ी है। पुरानी किताबों को नई जुबान में खुदा ने निकल कर दिया है यह इस आयत से स्पष्ट है? ऐसा तो हर कोई अक्लमन्द या शायर कर सकता था।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व मा का-ना हाजल् कुर्आनु………..।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा यूनुस रूकू ४ आयत ३७)

यह किताब अर्थात् कुरान इस किस्म की नहीं कि खुदा के सिवाय और कोई इसे अपनी तरफ से बना लावे। बल्कि जो (किताबें) इससे पहले की हैं उनकी तस्दीक करती है और उन्हीं की तफसील है। इसमें सन्देह नहीं कि यह खुदा की ही उतारी हुई है ।

समीक्षा

जब कि कुरान पुरानी किताबों की तफसील अर्थात् व्याख्या मात्र तो असली किताबों के रूप में पुरानी किताबों का महत्व बढ़ जाता और कुरान का दर्जा घटिया बन जाता है क्योंकी इसमें जो कुछ भी है पुरानी किताबों की ही व्याख्या है।

कुरान समीक्षा : खुदा अर्श पर बैठता है उसका मालिक है और तख्त पानी पर था

खुदा अर्श पर बैठता है उसका मालिक है और तख्त पानी पर था

अर्श अर्थात् आसपास पर खुदा बैठता है यदि लेटने की उसकी इच्छा हो जावे तो उसके लिये क्या कोई सोफासैट, पलंग, आराम कुर्सी आदि की भी व्यवस्था है या नहीं? घूमने के लिए सवारी आदि का भी प्रबन्ध होता है या नहीं? आसमान में जिस तख्त पर खुदा बैठता है, उस तख्त की लम्बाई चैड़ाई कितनी है तथा उसका वजन कितना होगा?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्-न रब्ब्कुमुल्लाहुल्लजी……………….।।

(कुरान मजीद पारा ८ सूरा आराफ रूकू ७ आयत ५४)

तुम्हारा परवर्दिगार अल्लाह है जिसने छह दिन में जमीन और आसमान को पैदा किया फिर अर्श पर तख्त के ऊपर जा विराजा।

फ-इन् तवल्लौ फकुल् हस्……….।।

(कुरान मजीद पारा १० सूरा रूकू १६ आयत १२९)

अर्श जो बड़ा है उसका वही मालिक है

व हु-वल्लजी ख-ल कस्समावाति………।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा रूकू १ आयत ७)

वही है जिसने जमीन और आसमान को छह दिन में बनाया और उसका तख्त पानी पर था।

समीक्षा

अरबी खुदा जब कुन अर्थात् ’’हो जा’’कहकर सब कुछ बना सकता था तो छह दिन तक दुनियां बनाने की भूल न जाने उससे क्यों हो गई? मेहनत करके तख्त पर आराम करने को जा बैठना ठीक ही था, उससे थकावट मिट गई होगी। पर जब खुदा ने तख्त नहीं बनाया होगा तब तक वह किस पर बैठता था? यह प्रश्न ज्यों का त्यों रह गया क्योंकि बनाने से पहले अर्श (तख्त) नहीं होगा। खुदा को तख्त का मालिक बनाने से उसकी इज्जत नहीं बढ़ती है।

जब वह सारे विश्व का मालिक मान लिया गया तो फिर तख्त सूरज, चाँद, जमीन पहाड़ आदि का अलग-अलग मालिक बताना बेकार की बात है और यह भी प्रश्न है कि खुदा बड़ा है या तख्त यदि खुदा बड़ा है तो तख्त पर बैठ नहीं सकेगा। यदि तख्त बड़ा है तो खुदा तख्त से भी छोटा साबित हो गया, यदि दोनों बराबर हैं तो खुदा ‘‘बे मिसाल’’ नहीं रहा। यदि तख्त हमेशा से है तो खुदा और तख्त उम्र की दृष्टि से बराबर हो गये, यदि तख्त पानी पर है तो पानी किस पर है, यह क्यों नहीं बताया गया है?