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हदीस : व्यापारिक सौदे, विरासत, भेंट-उपहार, वसीयतें, प्रतिज्ञाएं और क़समें

व्यापारिक सौदे, विरासत, भेंट-उपहार, वसीयतें, प्रतिज्ञाएं और क़समें

नौंवी किताब ”व्यापारिक सौदों की किताब“ (अल-घुयु) हैं। स्मरणीय है कि पैग़म्बर बनने से पहले मुहम्मद एक सौदागर थे। इसलिए इस विषय पर उनके विचार दिलचस्प होने चाहिए।

author : ram swarup

लाला लाजपतरायजी भी फँसाये गये

लाला लाजपतरायजी भी फँसाये गये

उन्नीसवीं शताज़्दी के अन्त में बीकानेर में अकाल पड़ा था। आर्यसमाज ने वहाँ प्रशंसनीय सेवाकार्य किया। लाला लाजपतरायजी ने आर्यवीरों को मरुभूमि राजस्थान में अनाथों की रक्षा व पीड़ितों की सेवा के लिए भेजा। विदेशी ईसाई पादरी आर्यों के उत्साह और सेवाकार्य को देखकर जल-भुन गये। अब तक वे भारत में बार-बार पड़नेवाले दुष्काल के परिणामस्वरूप अनाथ होनेवाले बच्चों को ईसाई बना लिया करते थे।

विदेशी ईसाई पादरियों ने लाला लाजपतराय सरीखे मूर्धन्य देश-सेवक व आर्यनेता पर भी अपहरण का दोष लगाया और अभियोग चलाया। सोना अग्नि में पड़कर कुन्दन बनता है। यह

विपदा लालाजी तथा आर्यसमाज के लिए एक ऐसी ही अग्निपरीक्षा थी।

HADEES : RIBA

RIBA

Muhammad also forbade ribA, which includes both usury and interest.  He �cursed the accepter of interest and its payer, and one who records it, and the two witnesses�; and he said: �They are all equal� (3881).

Though he forbade interest, Muhammad himself sent AbU Bakr to the QainuqA tribe of Medina with a message bidding them to �lend to God at good interest,� using the very words of the QurAn, �to lend to God a goodly loan� (5:12).  When they rebuffed him, their fate was sealed, and they were driven away from their homes.

author : ram swarup

हदीस : मुहम्मद के वंशजों के लिए सम्यक् पाठ्यसामग्री

मुहम्मद के वंशजों के लिए सम्यक् पाठ्यसामग्री

हम विवाह और तलाक की किताब को उसकी एक आखिरी हदीस का उद्धरण देकर समाप्त करते हैं। हदीस का विषय भिन्न है, पर दिलचस्प है। पैग़म्बर के दामाद अली कहते हैं-”वह जो मानता है कि (पैग़म्बर के परिवार के लोग) अल्लाह की किताब और सहीफा (एक छोटी पुस्तिका अथवा परचा जो उनकी तलवार की म्यान के साथ बंधा रहता था) के सिवाय कुछ और भी पढ़ते हैं, वह झूठ बोलता है। सहीफा में ऊंटों के युगों से संबंधित कुछ मसलों पर और नुक्सानों की क्षतिपूर्ति पर समाधान है और साथ ही इसमें पैग़म्बर के शब्द भी दर्ज हैं …… वह जो किसी नए आचार का प्रवर्तन करता है अथवा किसी प्रवर्तन करने वाले को सहायता देता है उस पर अल्लाह की ओर से और उनके फ़रिश्तों की ओर से और सारी मानवजाति की ओर से लानत है“ (3601)।

author : ram swarup

सारा कुल आर्यसमाज के लिए समर्पित था

सारा कुल आर्यसमाज के लिए समर्पित था

लाहौर में एक सज़्पन्न परिवार ने आर्यसमाज की तन-मन-धन से सेवा करने का बड़ा गौरवपूर्ण इतिहास बनाया। इस कुल ने आर्यसमाज को कई रत्न दिये। पण्डित लेखरामजी के युग में यह

कुल बहुत प्रसिद्ध आर्यसमाजी था, इससे मेरा अनुमान है कि ऋषिजी के उपदेशों से ही यह परिवार आर्य बना होगा।

इस कुल ने आर्यसमाज को डॉज़्टर देवकीनन्द-जैसा सपूत दिया। डॉज़्टर देवकीनन्दन ऐसे दीवाने हैं जिन्होंने सत्यार्थप्रकाश के प्रथम उर्दू अनुवाद की विस्तृत विषयसूची तैयार की। स्वामी वेदानन्द जी तीर्थ तथा पण्डित युधिष्ठिरजी मीमांसक द्वारा सज़्पादित सत्यार्थप्रकाश के संस्करणों में तो कई प्रकार के परिशिष्ट तथा विषयसूचीयाँ दे रखी हैं। इन दो प्रकाशनों से पूर्व सत्यार्थप्रकाश की इतनी उपयोगी तथा ठोस विषय-सूची किसी ने तैयार न की। डॉज़्टर देवकीनन्दजी की बनाई सूची 18-19 पृष्ठ की है। हिन्दी में तो 30 पृष्ठ भी बन सकते हैं। इससे पाठक अनुमान लगा लें कि वह कितने लगनशील कार्यकर्ज़ा थे। एक डॉज़्टर इतना स्वाध्याय-प्रेमी हो यह अनुकरणीय बात है।

इसी कुल में डॉज़्टर परमानन्द हुए हैं। आप विदेश से dental surgeon बनकर आये। पैतृक सज़्पज़ि बहुत थी, किसी और काम की काई आवश्यकता ही न थी। दिन-रात आर्यसमाज की सेवा ही उनका एकमात्र काम था। आप आर्यप्रतिनिधि सभा के उपप्रधान भी रहे।

आपने लाहौर में आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के लिए बहुत सज़्पज़ि बना दी। इससे सभा का गौरव बढ़ा और साधन भी बढ़े।

आर्यजगत् में आप बहुत पूज्य दृष्टि से देखे जाते थे। वे न लेखक थे और न वक्ता, परन्तु बड़े कुशल प्रबन्धक थे। उन्हें प्रायः आर्यसमाज के उत्सवों पर प्रधान बनाया जाता था। प्रधान के रूप में सभा का संचालन बड़ी उज़मता से किया करते थे। आर्यप्रतिनिधि सभा पंजाब के प्रथम वेदप्रचार अधिष्ठाता वही थे। वेदप्रचार निधि उन्हीं की चलाई हुई है। जब समाजें सभा से उपदेशक माँगती तो डॉज़्टर परमानन्द उनसे कुछ राशि माँगते थे। धीरे-धीरे समाजें अपने-आप सभा को वेदप्रचार निधि के लिए राशि देने लग पड़ीं।

अन्तिम दिनों में उन्हें शरीर में पीड़ा रहने लगी। वे चारपाई पर लेटे-लेटे भी आर्यसमाज की सेवा करते रहते। दूरस्थ स्थानों से आर्यभाई उनके पास प्रचार की समस्याएँ लेकर आते और वे सबके

लिए प्रचार की व्यवस्था करवाते थे। बड़े-छोटे आर्यों का आतिथ्य करने में उन्हें आनन्द आता था।

इस कुल में श्री धर्मचन्दजी प्रथम श्रेणी के चीफ कोर्ट के वकील हुए हैं। आप डॉज़्टर परमानन्दजी के भतीजे और श्री मुकन्दलालजी इंजीनियर के सुपुत्र थे। आप वर्षों पंजाब प्रतिनिधि सभा के कोषाध्यक्ष रहे। आपने सभा की सज़्पज़ि की बहुत सँभाल की। पंजाब भर से किसी भी आर्यभाई को लाहौर में वकील की आवश्यकता पड़ती तो श्री धर्मचन्द सेवा के लिए सहर्ष आगे आ

जाते। वे सबकी खुलकर सहायता करते।

वे चरित्र के धनी थे। निर्भीक, निष्कपट, सिद्धान्तवादी पुरुष थे। अज़्दुलगफूर जब धर्मपाल बनकर आर्यसमाज में आया तो वह डॉज़्टर चिरञ्जीवजी की कोठी में रहने लगा। उसे आर्यसमाज में जो अत्यधिक मान मिला, वह इसे पचा न सका। उसका व्यवहार सबको अखरने लगा। उसे कहा गया कि वह कोठी से निकल जाए। उसने डॉज़्टर चिरञ्जीवजी भारद्वाज के बारे में अपमानजनक लेख दिये।

कुछ मित्रों का विचार था कि उसे न्यायालय में बुलाया जाए। कुछ कहते थे कि इससे वह पुनः मुसलमान हो जाएगा। इससे आर्यसमाज का अपयश होगा। श्रीधर्मचन्दजी का मत था चाहे कुछ

भी हो पापी धर्मपाल को उसके किये का दण्ड मिलना ही चाहिए। मानहानि का अज़ियोग लज़्बे समय तक चला। पाजी धर्मपाल अभियोग में हार गया। सत्य की विजय हुई। धर्मपाल को लज्जित होना पड़ा। उसे मुँह छिपाना पड़ा।

श्री धर्मचन्दजी वकील युवा अवस्था में ही चल बसे। वे आर्यसमाज के कीर्ति-भवन की नींव का एक पत्थर थे।

HADEES : BARTER DISAPPROVED

BARTER DISAPPROVED

In some matters, the Prophet was modern.  He disapproved of the barter system and in its place stood for money-exchange.  The collector of the revenues from Khaibar once brought Muhammad some fine dates.  Muhammad asked whether all the dates of Khaibar were of such fine quality.  The collector said: �No.  We got one sA [of fine dates] for two sAs [of inferior dates].� Muhammad disapprovingly replied: �Don�t do that; rather sell the inferior quality of dates for dirhams[money], and then buy the superior quality with the help of dirhams� (3870).

author : ram swarup

हदीस : गुलामी के अपने फायदे भी हैं

गुलामी के अपने फायदे भी हैं

कहने और करने की बातें अलग रहीं, गुलामी को कोई बड़ा अभिशाप नहीं माना गया। उस स्थिति के अपने फायदे हैं। ”जब एक गुलाम अपने मालिक का कल्याण चाहता है और अल्लाह की इबादत करता है तब उसके लिए दो इनाम तय हो जाते हैं“ (4097)।

author : ram swarup

आर्यमाज के शहीद महाशय जयचन्द्र जी

आर्यमाज के शहीद महाशय जयचन्द्र जी

मुलतान की भूमि ने आर्यसमाज को बड़े-बड़े रत्न दिये हैं। श्री पण्डित गुरुदज़जी विद्यार्थी, पण्डित लोकनाथ तर्कवाचस्पति, डॉज़्टर बालकृष्णजी, स्वामी धर्मानन्द (पण्डित धर्मदेवजी विद्यामार्तण्ड), पण्डित त्रिलोकचन्द्रजी शास्त्री-ये सब मुलतान क्षेत्र के ही थे। आरज़्भिक युग के आर्यनेताओं में महाशय जयचन्द्रजी भी बड़े नामी तथा पूज्य पुरुष थे। वे भी इसी धरती पर जन्मे थे। वे तार-विभाग में चालीस रुपये मासिक लेते थे। सज़्भव है वेतन वृद्धि से कुछ

अधिक मिलने लगा हो। उन्हें दिन-रात आर्यसमाज का ही ध्यान रहता था। वे आर्य

प्रतिनिधि सभा के मन्त्री चुने गये। सभा के साधन इतने ही थे कि श्री मास्टर आत्मारामजी अमृतसरी के घर पर एक चार आने की कापी में सभा का सारा कार्यालय होता था। एक बार

मास्टरजी ने मित्रों को दिखाया कि सभा के पास केवल बारह आने हैं। श्री जयचन्द्रजी ने चौधरी रामभजदज़, मास्टर आत्मारामजी आदि के साथ मिलकर समाजों में प्रचार के लिए शिष्टमण्डल भेजे। सभा की वेद प्रचार निधि के लिए धन इकट्ठा किया। सभा को सुदृढ़ किया। जयचन्द्रजी सभा कार्यालय में पत्र लिखने में लगे रहते।

रजिस्टरों का सारा कार्य स्वयं करते। इस कार्य में उनका कोई सहायक नहीं होता था।

पण्डित लेखरामजी के बलिदान के पश्चात् प्रचार की माँग और बढ़ी तो जयचन्द्रजी ने स्वयं स्वाध्याय तथा लेखनी का कार्य आरज़्भ किया। वक्ता भी बन गये। आर्यसमाज की सेवा करनेवाले इस अथक धर्मवीर को निमोनिया हो गया। इस रोग में अचेत अवस्था में लोगों ने उन्हें ऐसे बोलते देखा जैसे वे आर्यसमाज मन्दिर में प्रार्थना करवा रहे हों अथवा उपदेश दे रहे हों। श्री पण्डित विष्णुदज़जी ने उन्हें आर्यसमाज के ‘शहीद’ की संज्ञा दी।

HADEES : IMPROPER EARNINGS

IMPROPER EARNINGS

Muhammad also �forbade the charging of price of the dog, and earnings of a prostitute and sweets offered to a KAhin[soothsayer]� (3803).  He said that �the worst earning is the earning of a prostitute, the price of a dog and the earning of a cupper� (3805).

Muhammad had a great dislike for dogs.  He said: �It is your duty to kill the jet-black [dog] having two spots [on the eyes], for it is a devil� (3813).  �Abdullah, �Umar�s son, tells us that the Prophet �ordered to kill dogs, and he sent men to the corners of Medina that they should be killed. . . . and we did not spare any dog that we did not kill� (3810, 3811).  Later on, on representation, an exception was made in the case of dogs meant for hunting and for protecting the herds.  With the exception of these dogs, anyone who kept a dog �lost two qIrAt [the name of a measure] of reward every day� (3823).

Muhammad also forbade the sale of wine, carcasses, swine, and idols.  �May Allah the Exalted and Majestic destroy the Jews; when Allah forbade the use of fat of the carcass for them [see Leviticus 3:17], they melted it, and then sold it and made use of its price� (3840).

author : ram swarup