अभी कुछ दिन पूर्व मुझे एक लेख मिला है। उसमें एक घटना पढ़कर मैं उछल पड़ा। महात्मा हंसराज, प्रिं0 दीवानचन्दजी, कानपुर तथा प्रिंसिपल साईंदासजी श्रीनगर गये। तभी वहाँ आर्यसमाज का उत्सव रखा गया। महात्मा हंसराजजी को उनके निवासस्थान से उत्सव के स्थान पर पहुँचाने के लिए डी0ए0वी0 कालेज के एक पुराने स्नातक अपना निजी टाँगा लेकर आये। वह स्नातक वहाँ मुंसिफ के पद पर थे।
महात्माजी और उनके साथी टाँगे में बैठ गये। मुंसिफ महाशय भी बैठ गये। आगे गये तो मार्ग में महाशय ताराचन्द जी भी मिल गये। वे भी उत्सव स्थल की ओर जा रहे थे। वे महाशयजी कौन थे, यह एकदम निश्चयपूर्वक कहना कठिन है। उन्हीं ताराचन्दजी ने स्वयं आर्यगज़ट में यह घटना लिखी। मेरा विचार है कि यह ताराचन्द (स्वामी अमृतानन्दजी) ही थे। महात्माजी ने उन्हें भी टाँगे पर बैठने के लिए कहा। उन्होंने कहा-‘‘नहीं, मैं पैदल ही आ
जाऊँगा। आप चलिए।’’
टाँगे में केवल चार सवारी ही बैठ सकती थीं, ऐसा राजनियम था। इस पर महात्मा हंसराजजी ने कहा-‘‘तो हम सब पैदल ही चलेंगे।’’ यह कहकर वे उतर पड़े और यह देखकर साथी भी उतर
गये। तब मुंसिफ ने कहा ‘‘टाँगा ड्राईवर पैदल आ जाएगा। मैं टाँगे का ड्राईवर बनता हूँ।’’ ऐसे शिष्ट एवं विनम्र थे मुंसिफ महोदय और महात्मा हंसराजजी!
The estate of a deceased person can be distributed after certain obligations, such as funeral expenses and debts incurred by the deceased, have been met. A person who professes a religion other than Islam cannot inherit anything from a Muslim, and vice versa (3928). Another principle of inheritance is that �the male is equal of the portion of two females� (3933).
Muhammad says that one can will only one-third of one�s property; the remaining two-thirds must go to the legal heirs. Muhammad visited Sa�d b. AbI WaqqAs, on his deathbed. Sa�d had only one daughter. He wanted to know whether he could will two-thirds or half of his property in sadaqa (charity). The Prophet replied: �Give one third, and that is quite enough. To leave your heirs rich is better than to leave them poor, begging from people� (3991).
मुहम्मद ने करार को मान्यता दी। जब तक करार में कुछ और न लिखा हो तो ”फल देने के लिए तैयार पेड़ को खरीदने पर फल उस व्यक्ति के होते हैं जिसने (उस पेड़ को) बेचा है …… और किसी गुलाम को खरीदने पर, गुलाम की जायदाद पर उसका हक़ होगा जिसने (गुलाम को) बेचा है“ (3704)।
मनुष्य के मन की गति का पता लगाना अति कठिन है। भीष्म जी में धर्म-प्रचार व समाज-सेवा की जो अग्नि हमने सन् 1957 में देखी वह आग 25 वर्ष के पश्चात् मन्द पड़ते-पड़ते बुझ ही गई। उनकी सोच बदल गई, व्यवहार बदल गया। उनका सज़्मान व लोकप्रियता भी घटते-घटते………। अब वह समाज के नहीं अपने भाई-भतीजों के मोह-जाल में फंस कर संसार से विदा हुए। यह दुःखद दुर्घटना भी शिक्षाप्रद है।
Muhammad favored waqf, i.e., the dedication of the corpus of a property to Allah. �Umar told Muhammad: �I have acquired land in Khaibar [the land of the defeated Jews, which had now been conferred on the Companions]. I have never acquired property more valuable for me than this, so what do you command me to do with it? Thereupon, Allah�s Apostle said: If you like, you may keep the corpus intact and give its produce as sadaqa. . . . �Umar devoted it to the poor, to the nearest kin, and to the emancipation of slaves, and in the way of Allah and guests� (4006).
मुहम्मद ने बढ़ कर बोली लगाना भी मना किया। ”एक व्यक्ति को सौदे में उस वक्त होड़ नहीं लगानी चाहिए जब उसका भाई पहले से ही सौदा कर रहा हो और जब उसका भाई किसी के साथ शादी का प्रस्ताव पहले ही रख चुका हो, तो किसी को उससे बढ़ कर शादी का प्रस्ताव नहीं रखना चाहिए, सिवाय उस समय ज बवह भाई इसकी अनुमति दे चुका हो“ (3618)। उन्होंने दलाली, अर्थात् ”रेगिस्तान के किसी आदमी की ओर से किसी कस्बे के आदमी द्वारा माल का बेचा जाना“ भी मना किया (3621)।
अग्निदेवभीष्म, हिसार वाले पहले बहुत जड़बुद्धि थे। बाद में तो बहुत मन्त्र, श्लोक, सूत्र आदि कण्ठस्थ हो गये। व्याज़्यानों में प्रमाणों की झड़ी लगा देते थे। आरज़्भ में यह पहले स्वामी वेदानन्दजी के पास आये। वहीं शिक्षा आरज़्भ की। एक बार ऐसे रुग्ण हुए कि जीवन की कोई आस ही न रही, शौच आदि की भी सुध न थी। कोई दुर्गन्ध के कारण समीप भी न आता था। स्वामी वेदानन्दजी ने मल-मूत्र तक उठाया। भीष्मजी कई बार यह घटना सुनाया करते थे।
Anything given as a gift or charity should not be taken back. �Umar had donated a horse in the Path of Allah (i.e., for jihAd). He found that the horse was languishing in the hands of the recipient, who was very poor, and considered buying it back. �Don�t buy it back. . . . for he who gets back the charity is like a dog which swallows its vomit,� Muhammad told him (3950).
मुहम्मद सट्टे का निषेध करते हैं। ”वह जो अनाज खरीदता है, उसे तब तक नहीं बेचना चाहिए, जब तक कि अनाज उसके हाथ में न आ जायें“ (3640)। मुहम्मद के अपने जीवन काल में, जैसे-जैसे अरब पर उनका नियन्त्रण बढ़ता गया, वैसे-वैसे उनके आदेश राज्य की नीति बनते चले गये। सालिम बिन अबदुल्ला बतलाते हैं-”मैंने अल्लाह के पैग़म्बर की जिन्दगी के दौरान उन लोगों को पीटे जाते देखा जिन्होंने थोक खाद्यान्न खरीद लिया था और फिर उसे अपने ठिकानों पर ले जाये बिना वहीं पर बेच दिया था“ (3650)।
”वायदे के“ सौदों की भी इज़ाज़त मुहम्मद ने इसलिए नहीं दी कि उनमें सट्टे की प्रवृत्ति पाई जाती है। उन्होंने ”अगले सालों के लिए बेचना और पकने के पहले फलों को बेचना“ मना कर दिया (3714)। दस्तावेजों (संभवतः हुंडी अथवा बिल्टी) की मदद से किए जाने वाले सौदे भी गैरकानूनी करार दिये गये। इस आदेश का पालन पुलिस की मदद से किया जाता था। सुलैमान बतलाते हैं कि ”मैंने सन्तरियों केा लोगों से इस प्रकार की दस्तावेज छीनते देखा“ (3652)।
प्रिंसिपल लाला देवीचन्दजी मिडिल परीक्षा उज़ीर्ण करके गुरदासपुर के राजकीय विद्यालय की नवम् कक्षा में प्रविष्ट हुए। वे अपने कस्बे बहरामपुर (दीनानगर के पास) में ही आर्यसमाज के
सज़्पर्क में आ चुके थे। जब गुरदासपुर आये तो मास्टर मुरलीधरजी उनको गणित पढ़ाया करते थे। इन मास्टर मुरलीधरजी ने ऋषि के दर्शन किये थे। वे आर्यसमाज की प्रथम पीढ़ी के एक विद्वान नेता थे। मुज़्य रूप से मुरलीधर जी ड्राइंग टीचर थे।
मास्टरजी अपने छात्रों को ऋषि के तेज, ब्रह्मचर्य-बल, योग्यता और ईश्वर-विश्वास की घटनाएँ सुनाया करते थे। लाला देवीचन्दजी पर आर्यसमाज का और रंग चढ़ा। मास्टरजी ने आपको यह कार्य सौंपा कि रविवार को सबसे पहले जाकर समाज-मन्दिर में झाड़ू लगाया करें। जब कभी लाला देवीचन्द कुछ देर से आर्यसमाजमिन्दर में पहुँचते तो मास्टर मुरलीधर स्वयं ही सगर्व आर्यसमाज मन्दिर में झाड़ू देने का कार्य किया करते थे। इसी धर्मभाव से वे लोग ऊँचे उठे और इन लोगों की लगन और तड़प ये यह समाज फूला-फला।