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और वह अग्नि फिर बुझ गई

और वह अग्नि फिर बुझ गई

मनुष्य के मन की गति का पता लगाना अति कठिन है। भीष्म जी में धर्म-प्रचार व समाज-सेवा की जो अग्नि हमने सन् 1957 में देखी वह आग 25 वर्ष के पश्चात् मन्द पड़ते-पड़ते बुझ ही गई। उनकी सोच बदल गई, व्यवहार बदल गया। उनका सज़्मान व लोकप्रियता भी घटते-घटते………। अब वह समाज के नहीं अपने भाई-भतीजों के मोह-जाल में फंस कर संसार से विदा हुए। यह दुःखद दुर्घटना भी शिक्षाप्रद है।