HADEES : QASAMAH

QASAMAH

The fourteenth book is the �Book of Oaths� (al-qasAmah).  QasAmah literally means �taking an oath,� but in the terminology of the sharI�ah, it is an oath of a particular type and taken under particular conditions.  For example, when a man is found slain, and the identity of his slayer is unknown, fifty persons from the nearest district take an oath that they neither killed the man nor knew who did it.  This establishes their innocence.

This was apparently the practice among the pre-Islamic Arabs, and Muhammad adopted it.  Once a Muslim was found slain.  His relatives accused the neighboring Jews.  Muhammad told them: �Let fifty persons among you take oath for leveling the charge of murder against a person among them, and he would be surrendered to you.� They declined to take the oath since they had not witnessed the murder.  Then Muhammad told them that �the Jews will exonerate themselves by fifty of them taking this oath.� They replied: �Allah�s Messenger, how can we accept the oath of unbelieving people?� Then Muhammad paid the bloodwite of one hundred camels for the slain man out of his own funds (4119-4125).

Another hadIs specifically tells us that Allah�s Messenger �retained the practice of QasAma as it was in the pre-Islamic days� (4127).

author : ram swarup

भविष्य पुराण , कुंताप सूत्र में मोहमद का नाम

एक दिन जब ऐसे ही हम अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर आए हुवे संदेश पढ़ रहे थे तब हमारे आर्यसमाजी मित्र  आतिश कुमार , वाणी जी ,कार्तिक अय्यर एवम फैझ खान के बीच एक विषय पर चर्चा चल रही थी , बहुत आश्चर्य हुवा की एक मोमिन चर्चा कर सकता है …?

चर्चा कुछ इस प्रकार थी , जो हर धर्म मे मत में रसूल का होना से अथर्वेवेद के कुंताप सूत्र पर खत्म हुवी ….

फैझ खान : अल्लाहताला ने 124000 नबी भेजे , रसूल शायद आप के धर्म मे भी हो

आतिश आर्य : जब आप ये कह रहे हो हर जाति समुदाय में रसूल ने जाकर ज्ञान दे दिया तो अब उस ज्ञान के अनुसार कोई जीवन जीये अथवा नहीं ये ईश्वर उसके अंत में न्याय कर देंगे और जेसे हर जाति समुदाय में रसूल भेजे वेसे ही अरब में अरबी भाषा में दे दिया तब भी कोई मतलब नहीं बनता अरबी किताब को सारी दुनिया में कायम करो जेसे और किताबे उस स्थान विशेष के लिए थी वेसे ही ये कुरान भी अरब के लिए ही सिद्ध है

फैझ खान : ये आप कह रहे है कि ईश्वर कलाम देने की जरूरत नही जबकि ये ईश्वरीय सिद्धान्त अनुसार नही अगर मैं यही बात कहुँ की इसे साबित करो अपने गर्न्थो से तो क्या आप कर सकते हो ? जबकि अन्य मज़ाहिब का सिद्धान्त यही है जो मैं साबित करने की छमता रखता हूँ बड़े मज़ाहिब से की कलमा-ए-इलाही देने की क्यों जरूरत पड़ी और शुरू में इसपर क्यों पकड़ मजबूत नही हुई। और ये दावा हमारा इसलिए हे कि कुरआन ईश्वरीय कलाम है क्योंकि दावेदार जब दावा करता है तो वो पूरे मूल्य सिद्धान्त को समझने के बाद ही करता है अन्यथा नही ठीक कुरआन का दावा करना ही इस बात की दलील है कि अगर उनके दरमियान कलाम-ए-इलाही मौजूद है तो फिर वो इस दावे को समझने की पूर्ण क्षमता रखते है। ये उनके पैग़ाम इलाही के विरुद्ध बाते है जबकि उनके पास पैग़ाम जो आया उसमे आगे के नबियो का जिक्र मौजूद है जिसपर ईमान लाना उनपर फ़र्ज़ है खुवा बाइबल उठाओ या तोराह या बुध मत यहां तक हिन्दुओ के यहां भी ये आदेश मौजूद है जो आखरी वक्त में कल्कि अवतार के तहत भविष्यवाणी की गई है । ओर रद्दोबदल कुरआन में सम्भव नही और रही वेध मन्त्रो की बात तो जो भाषा आज जीवित नही उसके मायने क्या से क्या किये जाते है ये बात किसी से छुपी नही है अभी खुद इस बात को आप भी जानते है तो फिर किस तरह उस किताब पर ईमान लाया जाए इसका अर्थ एक किताब में कुछ मिलता है तो दूसरे में कुकब , निज़ाम इंसानो के दरमियान तय की गई है जो ऐन ईश्वरीय आदेश के मुताबिक है अपने मुर्तद की तहक़ीक़ नही की जिसके एवज़ आप कह रहे है। धर्म छोड़ना और निज़ाम की मुखालिफत करना ये दो अलग बात है जहाँ शरीयत नाफ़िज़ है वहा सिर्फ ईश्वर विरुद्ध नही बल्कि ईश्वरीय कानून के विरुद्ध भी कदम उठाना है धर्म ईश्वर का है कानून भी ईश्वर का है लेकिन जो निज़ाम बनाई गई है वो मानव के तहत बनाई गई है जहा सिर्फ धर्म को फॉलो किया जा रहा है वहा मुर्तद की सज़ा कत्ल नही ये मैं उस वक्त भी कह आया लेकिन जहा इस्लाम सिर्फ धर्म नही बल्कि निज़ाम है यानी कानून भी है तब वहा सजाए मोत है क्योंकि यहां सिर्फ धर्म की मुखालिफत नही हो रही है बल्कि निज़ामे इलाही की भी मुखालिफत हो रहा है उस देश के कानून के साथ मुखालिफत हो रही है जब ये फैसला इंसानी हुक़ूक़ में शुमार करता है जो मैं कह आया इससे पहले भी जहा महज़ ईश्वर तक बात महदूद है वहा फैसला ईश्वर ही करेगा लेकिन जहा बात इंसानो के बीच भी आ जाती है वहां फैसला इंसान के हक में छोड़ा गया है क्योंकि गद्दार सिर्फ वो खुदा का ही नही बल्कि तुम्हारे देश का कानून का भी है।ओर ये जो बात है इसका कोई प्रमाण नही जो क़ौम जाहिल हो बात बात पर लड़ने के लिए तैयार हो भला उसके देवता या देवी की मूरत को तोड़ा जाए और वो बर्दास्त करे ? ये कोई तर्क पूर्ण जवाब नहीं और जबकि एक लाख की आबादी में महज़ चन्द लोग ही वो की गुलाम तबके के वर्ग और कुछ गरीब मिस्कीन लोग ही ईमान की दावत को कुबूल किये थे और जैसा कि हम जानते है गुलाम और मिस्कीन लोगो की क्या औकात थी दौरे जाहिलियत में जो गुलाम अपने आका के हुक्म के खिलाफ कदम उठाने की जरूत नही रखता था उसमे चन्द मिनट में इतन्ज कूवत कैसी आ गई कि वो उनके आका के खुदाओं की ही तोहिन कर दे और उसका आका खड़ा हो कर देखता रहे जबकि इंसान की जिंदगी की कोई कदर उस जमाने मे नही होती थी बात बात पर इंसान को मारना ये तो आम रिवाज़ था उस जमाने का छोटी सी छोटी गलतियों पर कत्ल की सज़ा थी।

वाणी जी : तो आज वर्तमान परिपेक्ष में कुरान की वो आयते जो युद्धसमयी लिखी गयी , तत्कालीन जरूरत अनुसार उसे रद्दोबदल कर देना अपर्यायी हो जाता है , क्यो की उन्ही आयतो का सहारा ले कर मुसलमान बच्चा अतिवाद की तरफ कदम बढ़ा रहा …

 

फैझ खान : भाई तुम सिर्फ बहस और इल्ज़ाम लगाना जानते हो जिसका कोई प्रमाण नही अतनकवाद का कोई समर्थक नही खुवा वो किसी मज़हब का हो कल में चीन के किसी धर्म गुरु का बयान सुन रहा था शायद उसका नाम लम्बा था उसने कहा ये बुध मत का संदेश नही और ये अतनकवाद है जो बुध मत के पैरोकार कर रहे है बहर-हाल में उस बीच मे नही जाना चाहता मेरा सिर्फ इतना कहना है कि अगर अतनकवाद के दुवारा धर्म को फैलाया जा रहा है तो वो चन्द लोग ही क्यों है दुनिया मे डेढ़ अरब मुसलमान और 2 अरब ईसाई है उन्होंने उसका समर्थन क्यों नही किया ? और खुद बुध मत के वो लम्बा ने इसका समर्थन क्यों नही किया ये बात दर्शता है कि ये धर्म की शिक्षा के खिलाफ बाते है जिसका कोई प्रमाण नही रही बात विचार को फैलाने का इस बात को कुबूल करता हूँ कि मुसलमान और इस्लाम यही चाहता है और इनकी सोच भी यही है कि दुनिया मे इस्लाम फैल कर रहेगा ध्यान रहे फैल कर रहेगा ये नही की फैलाया जाएगा अगर फैलाया जाने से मुराद भी ले लिया जाए तो दिंन की तबलिक से इसे फैलाया जाएगा न कि तलवार के जोर से

कार्तिक अय्यर: वेद में निकाल कर दिखाओ आपके कल्कि अवतार का। और गलती से भी भविष्य पुराण का नाम मत लिखना।   क्योंकि उसमें मोहम्मद साहब की जमकर निंदा लिखी है।

फेजखान: इधर उधर की बाते छोड़ो काम की बाते करो मेरे भाई

कार्तिक अय्यर: आप खुद झूठ बोल रहे हो कि ग्रंथों में भविष्यवाणी होती है। और अल्लाह मियां ने एक ही बार में पूरा ज्ञान क्यों न दे दिया? उसमें परिवर्तन परिवर्धन की क्या जरूरत?

फेजखान: कुंतब सुक्ता के मायने क्या होता है ? और ये चैप्टर वेदों में क्यों डाली गई ?

फेजखान: अगर भविष्य नही होती तो फिर इस चैप्टर को बंधा क्यों गया ? दूसरी बात अगर भविष्य शास्त्रों में नही होती तो पुराणों में एक पुराण भबिषयपुरण क्यों मौजूद है ? आपके पवित्र गर्न्थो में ?

कार्तिक अय्यर: आपने कभी वेद के दर्शन भी किये हैं? कुंताप सूक्त में केवल एक विशेष गुण वाले राजा का वर्णन है नाकि किसी काल्पनिक पैगंबर का। एड़ी चोटी का जोर लगा लो आपका पैगंबर वेद में नहीं मिलने वाला

कार्तिक अय्यर: इस हिसाब से तो कुरान में भी रहीम रहमान आदि से दयानंद जी का नाम सिद्ध हो जायेगा। तो रहने दीजिये । किसी भी ब्राह्मण,निरुक्त आदि में मोहम्मद साहब का नाम नहीं है।

फेजखान: भाई न मानने के लिए कई कुतर्क है लेकिन मानने के लिए सिर्फ एक दलील कल तक कह रहे थे कि वेदों में इतिहास नही वेदों में फला नही अभी कह रहे थे कि झूठ बोल रहे हो कि गर्न्थो में भविष्यवाणी होती है जब मैंने कुंतब का नाम लिया तो अभी राजा विशेष पर आ कर थम गए ये है तुम्हारा कुतर्क

कार्तिक अय्यर: रहा प्रश्न भविष्यपुराण का तो महोदय, भविष्यवाणी जैसा कुछ नहीं होता। भविष्य पुराण तो पंडो ने रचा है। इसमें अकबर औरंगजेब तक को अवतार कहै है।

कार्तिक अय्यर: हमने किसी ऐतिहासिक राजा का नाम नहीं कहा,एक गुणविशेष राजा का कहा है

फेजखान: दयानन्द  कुरआन से सिद्ध किसी भी चीज़ को नापने के लिए उसका कांसेप्ट देखा जाता है न कि जहा फला चीज़ का जिक्र आया है वो किसी से भी नाप दिया जाए और उससे सिद्ध कर दिया जाए कि ये वही है

कार्तिक अय्यर: इस पुराण में संडे फरवरी सिक्सस्टी आदि अंग्रेजी के शब्द हैं और अनेक अश्लील गप्पें हैं जो किसी वाममार्गी पौराणिकों ने रची है,किसी ऋषि की नहीं

फेजखान: अरे भाई गुण ही है लेकिन भविष्य तो दी जा रही है उसे राजा के प्रति ?

कार्तिक अय्यर: इसीलिये तो हम कह रहे हैॉ कि वेद में किसी पैगंबर का जिक्र नहीं होता क्योंकि वेद में किसी व्यक्ति विशेष की चर्चा नहीं होती

कार्तिक अय्यर: कोई भविष्य नहीं दी जा रही है। ऐसे गुण अनेक राजाओं में हो सकते हैॉ

फेजखान: अरे भाई राजा कौन है ? व्यक्ति है या कोई कुत्ता बिल्ली है ?

कार्तिक अय्यर: आप तो कुंताप शब्द का ही अर्थ बता दो बस!

कार्तिक अय्यर: राजा कोई भी हो सकता है,उस गुण को जो धारण करे

फेजखान: अनेक राजाओ में हो सकते है तो फिर वो राजा कौन है ? इसका आजतक तो अपने खुलाशा नही किया

फेजखान: अरे भाई वही गुण किसी इंसान पर ही न आ कर बैठेगी ? या कोई और चीज़ है

कार्तिक अय्यर: हे ईश्वर! हमने कहा कि उसमें राजा के गुण है कि कैसे गुणवाला राजा क्या कहलाता है आदि किसी इतिहास का चिह्न तक नहीं

कार्तिक अय्यर: लेकिन आपके पैगंबर में शायद ही वैसा कोई गुण मिले

फेजखान: अच्छा अथेरवेद किताब 20 हिम 127 शोलोका 1 से 14 तक का अर्थ करे क्या करते है आपके महा ऋषि

फेजखान: अरे जनाब वो गुण वाले राजा कहा है ये तो बता दो जिसका बयान वेदों में किया जा रहा है और इतिहास का कोई हिस्सा नही वेदों में तो फिर ये भविष्य किसकी बता रही है वेद ?

 

कार्तिक अय्यर: महर्षि दयानंद ने अथर्ववेद का अर्थ नहीं किया। जो अर्थ पं जयदेव, हरिशरण आदि ने किया वो रख सकते हैं

फेजखान: किसी इतिहास की तरफ आपके अनुसार अरबो खरबो वर्ष पहले ही इशारा किया जा रहा है ?

कार्तिक अय्यर: सचमुच अक्ल पर पत्थर पड़ा हो तो व्यक्ति अंधा हो जाता है। हमने कब कह दिया कि वहां भविष्य लिखा है? हमने केवल इतना कहा कि राजा में क्या गुण हो यह सब आया है

फेजखान: लो … एक ऋषि वो भी महा उसने अर्थ ही नही किया अथेरवेद का वैसे मुझे पता था लेकिन जिसको ऋषि मानते हो उसका ही अर्थ दिखा दो क्या करते है आपके पण्डित इसका अर्थ

फेजखान: अरे मेरे भाई गुण का बयान कही और भी तो हो सकता था भविष्य वाले चैप्टर में गुण का बयान करना ये कौनसी समझदारी है क्या ये ईश्वरीय पुस्तक की महारत रखती है ईश्वर को ये नही पता कि गुण का बयान और भविष्य के बयान कहा और किस तरह करनी चाहिए ?

फेजखान: अच्छा भविष्य का मतलब क्या होता है ? जरा बताने का कष्ट करें ?

फेजखान: ओके

कार्तिक अय्यर: कदापि नहीं।

फेजखान: लेकिन एक बात कह देता हूँ कि भविषय का जिक्र इस बात की दलील है कि वेद भी किसी की तरफ इशारा कर रहा है जिसको ये नही मानना चाहते इसी को हदधर्मी कहा गया है जिस तरह यहूद व नशारा ने किया

फेजखान: अरे मेरे भाई भविष्य का मतलब क्या होता है वो पहले बताओ ?

कार्तिक अय्यर: चलिये तो सिद्ध करो कि वेद में भविष्य होता है

कार्तिक अय्यर: भविष्य यानी जो आगे होने वाला है।

फेजखान: तो क्या आगे होने वाला है उसी का बयान होगा, सही है ?

कार्तिक अय्यर: निरुक्तकार यास्कमुनि और सब प्राचीन टीकाकारों ने वेद में इतिहास आदि का निषेध किया है

अनवारुल हसन : फिर बम बन्दुक का जिक्र कहा से

कार्तिक अय्यर: अरे भाई| जो पदार्थ विद्या से संभव हो वो तो तीनों कालों में संभव है । मुद्दे पर बने रहो, मुद्दा यह है कि वेद में किसी पैगंबर का जिक्र है या नहीं

अनवारुल : बरहाल आप लोग चर्चा करे तब तक मै गुसुल कर लूँ

(नोट : इनके बस नही चला तो निकल पड़े )

फेजखान: अरे भाई इतिहास उसे कहते है जो बीत जाते है और भविष्य उसे कहते है जो होने वाले है वेद में इतिहास इसी लिए नही क्योंकि आप मानते है या हमे भी मानने में कोई एतेराज़ नही की वेद प्रचीन पुस्तक है हो सकता है कि ये उस वक्त दी गई हो जब इंसान को पहले पैग़ाम देने का वक्त आया ये आपके अनुसार है लेकिन हम तमाम वेदों को इस पर आधरित नही मानते इसकी वजह ये है कि वेदों में पैग़ाम सहिफे के एतेबार से दर्ज है यानी कई सहिफे मिल कर वेद आज मोजूद है मुकम्मल किताब नही भेजी गई एक ही वक्त में तौरह और इंजील की तरह वेद में कई ऐसे मन्त्र है जिससे ये बात साबित होती है कि वेद के कुछ मन्त्र जमीन में इंसान के फेल जाने के बाद भी आई है जो बाद में जोड़े गए है।

कार्तिक अय्यर: देखिये, कुछ लोग जबरन वेद में इतिहास ढूंढने लगते हैं।जैसे ऋग्वेद ६/२७/८ में अभ्यावर्ती चायमान नामक राजा का वर्णन है  । जबकि ये कोई ऐतिहासिक राजा नहीं है,न कोई भविष्य वाणी। निरुक्त में “अभ्यावर्ती” का अर्थ है याचकों को उन्मुख होने वाला चाय मान यानी योगार्थ। अर्थात् यहां राजा को याचकों को उन्मुख होकर योगार्थ दान देने का उपदेश है

फेजखान: राजा का जिक्र है वो इंसान है या जानवर है पहले ये बताओ ?

कार्तिक अय्यर: जरा निकालकर दिखायेॉ वो मंत्र कौन से हैं

फेजखान: पैगम्बर इंसान है उसी तरह अगर राजा का जिक्र है तो रजा इंसान ही होगा

फेजखान: अरे यार मन्त्र दिया है न खुद निकाल कर देख सकते हो

कार्तिक अय्यर: मानव ही है, पर कोई इतिहास या भविष्य नहीं है वहां। वहां केवल राजा के लिये उपदेश है। वो कोई भी हो सकता है

फेजखान: कुंतब सुक्ता निकालो 20 हिम यानी 127 श्लोक निकाल कर शुरू से पढो और बताओ क्या लिखा है

फेजखान: अजीब है यार भविष्य का मतलब ये है कि आने वाले चीज़ और आप कह रहे हो कि वहां सिर्फ उपदेश है ? ये कोनसी अक्ल वाली बात हुई ?

कार्तिक अय्यर: चलो उसके पहले एक उदाहरण ऐर ले लो।

ऋग्वेद ८/२/४१ में विभिंदु राजा का वर्णन है। विभिंदु का अर्थ है-“दरिद्रों के दुखों का भेदन करने वाला”। यहां पर हर राजा को दीन दुखियों की सेवा करने का उपदेश है नाकि किसी विभिंगु नामक राजा का भविष्य लिखा है

 

फेजखान: अरे यार गुण तो कही और भी बताई जा सकती है भविष्य की किताब में ही क्यों ?

फेजखान: मुझे वो मन्त्र लिखा कर दिखाओ उसमे क्या लिखा है

फेजखान: बाकी बाते बाद  में होगी

फेजखान: फोकट का बहस करने की आदत नही

कार्तिक अय्यर: केवल उपदेश है भाई! और वेद कोई नास्त्रेदमस की कोई भविष्य पुस्तक नहीं ईश्वरीय ज्ञान है।

कार्तिक अय्यर: चलो दिखाता हूं रुको दो मिनट

कार्तिक अय्यर: वेद में केवल ज्ञान होता है कोई भविष्य वाणी नहीं

फेजखान: समाजियो को नही समझाया जा सकता

कार्तिक अय्यर: ये बात मोमिनों पर भी लागू है

फेजखान: भी लागू है आपके अनुसार लेकिन हम मानते है समझियों को समजाया नही जा सकता । भाई था और हे में फर्क है जिस तरह भविषय के चेप्टर में उपदेश जैसी कुतर्क का फर्क

वाणी जी: अथर्वेद की कोई 20 किताबे नही है …

 

फेजखान: आर्यो ने खुद की किताब लिख रखी है तो कहा से मिलेगी या यूं कहें कि ऋषि साहब ने नही लिखी इसलिए वो मौजूद ही नही। ऊपर रखा गया है पढ़े उसे

कार्तिक अय्यर: इनको प्रमाण रखना तक नहीं आता। संदर्भ ऐसे देते हैं अथर्ववेद कांड २० सूक्त १२७ मंत्र १

वाणी जी:  ओर चले वेदोपर आक्षेप करने…

वैसे क्या लिखा है , आपने क्या पढ़ा है कार्तिक जी प्रमाण ईनको रखने देते थे ….

देखे तो सही कितना इल्म है इनको वेदोंका …

कार्तिक अय्यर: आप होश ठिकाने लाकर बताइये। इस हरिशरणजी के भाष्य में आपके मोहम्मद साहब किस नदी में बह गये? औऱ  हां जी, जाते जाते बताकर जाइये। यहां पर गायों के पालन का वर्णन है। मोहम्मद ने कौन सी गायें पाली या इस्लाम की भविष्यकी योजना गायों के रक्षण को लेकर क्या है?

वाणी जी: आबे जम जम में गोता लगाए होंगे ..

कार्तिक अय्यर: मंत्र १२ में इंद्र शब्द परमात्मा का वाचक है। क्या इस्लाम मोहम्मद साहब को ईश्वर मानने को तैयार है?

वाणी जी : कार्तिक जी कुछ लोग बाजार से कोई भी किताब उठा लाते ओर लग जाते पैजमा ऊपर कर खुद की कब्र खोदने .वैसे किताब कौनसी खरीदे उसको भी दिमाख लगता है .ओर तो देखे इन्होंने कुंताप सूत्र में मोहमद साहब को धुण्ड लिया

कार्तिक अय्यर: पता नहीं मोमिनों को पराई छाछ पर मूंछ मुंडवाने का क्या शौक है?

फेजखान: देखे धोखा पब्लिक को किस तरह देते है मन चाहे अर्थ बना कर इसलिए कहा जाता है जिस जबान का अंत हो चुका है उसके अर्थ को किस तरह मान लिया जाए कि ये जो अर्थ किया गया है वो सही ही है ? इसका क्या प्रमाण है ? तो इनकी बोलती बंद हो जाती है क्योंकि इन्हें पता है कि हम इसका प्रमाण ऋषि मुनियों (जिनपर वेद उतरी उनके जानिब से दे ही नही सकते) बहर-हाल अंतर देखे इनके दिए हुए मन्त्रो का जो टिल का ताड करके इतना बड़ा बना दिया गया है जिससे जाहिर हो जाता है कि कुछ तो छुपाने की कोशिश हो रही है और एक ये अर्थ किया हुआ है जिससे साफ जाहिर है कि भविषय का इल्म कुछ तो दिया गया है जो भविष्य में पेश आएगा। अथेर्वेद काण्ड 20:127:1-14 (अच्छा थोड़े देर पहले एक महाशय कह रहे थे कि अथेर्वेद में 20 काण्ड (अर्थात किताब है ही नही) अभी खुद वही से निकाल कर दे रहे है सोचे कितना ज्ञान है इन्हें खुद के किताबो का 🤣

  1. है जनो-लोगो! नरों की प्रशंसा में स्तवन किये जाते है, उन्हें सुनो, हे कौरम हम 6090 वीरों को पाते या नियुक्त करते है।
  2. बिस ऊंट अपनी शक्तियों सहित उस नर के रथ को खिंचते है। उस रथ के सिर दुलोक को स्पर्श करने की इच्छा के साथ चलते है।
  3. इस (नर श्रेष्ठ ने) मामह ऋषि (ये मेरा नही पंडितो का दिया हुआ गया है 🤣 मैं इसे अर्थात मोहम्मद (सल्ल०) करता हूँ) को सौ स्वर्ण मुद्राओ, दस हारो, तीन सौ अश्वों तथा दस हज़ार गौओ का दान दिया।
  4. हे स्तोता! बोलो-पाठ करो। (पाठ के समय) ओष्ठ और जिह्न जल्दी-जल्दी चलते है, जैसे पके फल वाले वृक्ष पर पक्षी (की चोंच) और केचियो के फल चलते है।

इसी तरह आगे और भी मन्त्र कहे गए है जिस तरह एक जनाब ये कह रहे थे कि राजा का बयान हुआ है अब उस राजा का अर्थ क्या लिया है पंडितो ने जरा उसे भी गौर करे राजा से मुराद ये नही है कि वो काफी हीरे जेवरात और उसकी दस मुल्कों में हुकूमत होगी बल्कि नही वो उन मनुष्य में सबसे  श्रेष्ठ होगा देखे।

  1. सर्वहितकारी, सभी पर शासन करने वाला एवं भली प्रकार परीक्षित राजा की श्रेष्ठ स्तुतियों का श्रवण करे, क्योंकि मनुष्य में श्रेष्ठ होने का कारण राजा देवतुल्य होता है।

इसी प्रकार आगे के मन्त्र भी है जो भविष्य पर निर्भर है।

कार्तिक अय्यर: भविष्य  पुराण   में  महामद  ( मुहम्मद ) एक पैशाच धर्म स्थापक -भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक  . 1 -31

 

श्री सूत उवाच-

  1. शालिवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन्। राज्यं पञ्चशताब्दं च कृत्वा लोकान्तरं ययुः

१. श्री सूत जी ने कहा – राजा शालिवाहन के वंश में दस राज हुए थे। उन सबने पञ्च सौ वर्ष पर्यन्त राज्य शासन किया था और अंत में दुसरे लोक में चले गए थे।

 

  1. मर्य्यादा क्रमतो लीना जाता भूमण्डले तदा। भूपतिर्दशमो यो वै भोजराज इति स्मृतः।

२. उस समय में इस भूमण्डल में क्रम से मर्यादा लीन हो गयी थी। जो इनमे दशम राजा हुआ है वह भोजराज नाम से प्रसिद्द हुआ। .

 

  1. दृष्ट्वा प्रक्षीणमर्य्यादां बली दिग्विजयं ययौ। सेनया दशसाहस्र्या कालिदासेन संयुतः।

३. उसने मर्यादा क्षीण होते देखकर परम बलवान उसने(राजा ने) दिग्विजय करने को गमन किया था। सेना में दस सहस्त्र सैनिक के साथ कविश्रेष्ठ कालिदास थे।

 

  1. तथान्यैर्ब्राह्मणैः सार्द्धं सिन्धुपारमुपाययौ जित्वा गान्धारजान् म्लेच्छान् काश्मीरान् आरवान् शठान्।

४. तथा अन्य ब्राह्मणों के सहित वह सिन्धु नदी के पार प्राप्त हुआ(अर्थात पार किया) था। और उसने गान्धारराज, मलेच्छ, काश्मीर, नारव और शठों को दिग्विजय में जीता।

 

  1. तेषां प्राप्य महाकोषं दण्डयोग्यानकारयत् एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्येण समन्वितः।

५. उनका बहुत सा कोष प्राप्त करके उन सबको योग्य दण्ड दिया था। इसी समय काल में मल्लेछों का एक आचार्य हुआ।

 

  1. महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम्।

६ महामद शिष्यों की अपने शाखाओं में बहुत प्रसिद्द था। नृप(राजा) ने मरुस्थल में निवास करने वाले महादेव को नमन किया।

 

  1. गंगाजलैश्च सस्नाप्य पञ्चगव्य समन्वितैः। चन्दनादिभिरभ्यर्च्य तुष्टाव मनसा हरम् ।

७. पञ्चजगव्य से युक्त गंगा के जल से स्नान कराके तथा चन्दन आदि से अभ्याचना(भक्तिपूर्वकभाव से याचना) करके हर(महादेव) को स्तुति किया।

 

भोजराज उवाच-

  1. नमस्ते गिरिजानाथ मरुस्थलनिवासिने। त्रिपुरासुरनाशाय बहुमायाप्रवर्त्तिने।

८. भोजराज ने कहा – हे गिरिजा नाथ ! मरुस्थल में निवास करने वाले, बहुत सी माया में प्रवत होने त्रिपुरासुर नाशक वाले हैं।

 

  1. म्लेच्छैर्गुप्ताय शुद्धाय सच्चिदानन्दरूपिणे। त्वं मां हि किंकरं विद्धि शरणार्थमुपागतम् ।

.९ मलेच्छों से गुप्त, शुद्ध और सच्चिदानन्द रूपी, मैं आपकी विधिपूर्वक शरण में आकर प्रार्थना करता हूँ।

 

सूत उवाच-

 

  1. इति श्रुत्वा स्तवं देवः शब्दमाह नृपाय तम्। गन्तव्यं भोजराजेन महाकालेश्वरस्थले ।

१०. सूत जी ने कहा – महादेव ने प्रकार स्तुति सुन राजा से ये शब्द कहे “हे भोजराज आपको महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।”

 

  1. म्लेच्छैस्सुदूषिता भूमिर्वाहीका नाम विश्रुता। आर्य्यधर्मो हि नैवात्र वाहीके देशदारुणे ।

११. यह वाह्हीक भूमि मलेच्छों द्वारा दूषित हो चुकी है। इस दारुण(हिंसक) प्रदेश में आर्य(श्रेष्ठ)-धर्म नहीं है।

 

  1. बभूवात्र महामायी योऽसौ दग्धो मया पुरा। त्रिपुरो बलिदैत्येन प्रेषितः पुनरागतः ।

१२. जिस महामायावी राक्षस को मैंने पहले माया नगरी में भेज दिया था(अर्थात नष्ट किया था) वह त्रिपुर दैत्य कलि के आदेश पर फिर से यहाँ आ गया है।

 

  1. अयोनिः स वरो मत्तः प्राप्तवान् दैत्यवर्द्धनः। महामद इति ख्यातः पैशाच कृति तत्परः ।

१३. वह मुझसे वरदान प्राप्त अयोनिज(pestle, मूसल, मूलहीन) हैं। एवं दैत्य समाज की वृद्धि कर रहा है। महामद के नाम से प्रसिद्द और पैशाचिक कार्यों के लिए तत्पर है।

 

  1. नागन्तव्यं त्वया भूप पैशाचे देशधूर्तके। मत् प्रसादेन भूपाल तव शुद्धिः प्रजायते ।

१४. हे भूप(भोजराज) ! आपको मानवता रहित धूर्त देश में नहीं जाना चाहिए। मेरी प्रसाद(कृपा) से तुम विशुद्ध राजा हो।

 

  1. इति श्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान् पुनरागमत्। महामदश्च तैः सार्द्धं सिन्धुतीरमुपाययौ ।

१५. यह सुनने पर राजा ने स्वदेश को वापस प्रस्थान किया। और महामद उनके पीछे सिन्धु नदी के तीर(तट) पर आ गया।

 

  1. उवाच भूपतिं प्रेम्णा मायामदविशारदः। तव देवो महाराज मम दासत्वमागतः ।

१६. मायामद माया के ज्ञाता(महामद) ने  राजा से झूठ     कहा – हे महाराज ! आपके देव ने मेरा दासत्व स्वीकार किया है अतः वे मेरे दास हो गए हैं।

 

  1. ममोच्छिष्टं संभुजीयाद्याथात त्पश्य भो नृप। इति श्रुत्वा तथा परं विस्मयमागतः ।

१७. हे नृप(भोजराज) ! इसलिए आज सेआप   मुझे ईश्वर के संभुज(बराबर) उच्छिष्ट(पूज्य) मानिए, ये सुन कर राजा विस्मय को प्राप्त भ्रमित हुआ।

 

  1. म्लेच्छधर्मे मतिश्चासीत्तस्य भूपस्य दारुणे, तच्छृत्वा कालिदासस्तु रुषा प्राह महामदम्।

१८. राजा की दारुण(अहिंसा) मलेच्छ धर्म में रूचि में वृद्धि हुई। यह राजा के श्रवण करते देख, कालिदास ने क्रोध में भरकर महामद से कहा।

 

  1. माया ते निर्मिता

कार्तिक अय्यर: वैसे जरा भाष्यकार का नाम तो बताना

वाणी जी : धन्य हो .हरा सलाम आपको ,…

वैसे ये अनार्ष भाष्य ही होगा

कार्तिक अय्यर: ये लो भविष्य पुराण भी देख लो। आपके मोहम्मद साहब की कितनी इज्जत की गई है। पैशाचिक धर्मस्थापक कहा है

औऱ हम बताते हैं, ये श्रीरामशर्मा का भाष्य है।

वाणी जी: क्या फेजभाई वेदोंमें महाभारत घुसेड़ दी, भाष्यकार का नाम तो बताना

फेजखान: अरे ले न भाई हमको कोनसा भषयकार का नाम छुपा कर पुरस्कार मिलने वाले है हम तो तमाम भषयकार को झूठा और पकाण्ड समझते है जो अपने मन मुताबिक गोलते फिरते रहते है हर जगह कल हो कर इसका कुछ और ही अर्थ रहेगा .. लो

कार्तिक अय्यर: मामह ऋषि?? मामह यहां पर क्रिया है,संज्ञा नहीं है। और मामह को संज्ञा करोगे तो अन्य इस मंत्र में क्रिया ही नहीं रह जायेगी।और मामह ऋषि कौन था? मोहम्मद साहब को ऋषि कैसे बोला? ऋषि वेदमंत्र का दृष्टा होता है । मोहम्मद साहब को तो वेद का नाम तक न पता था।

 

फेजखान: चलो अब निकलता हु काम आ गया है

कार्तिक अय्यर: पं श्रीराम शर्मा क्या आर्यसमाजी हैं? उनका अर्थ हमारे सामने क्या मूल्य रखता है? क्या आपके लिये कुरान की  तफसीरें महेंद्रपाल जी ने रखी तो आपने उसे क्यो नही माना और कहां भाग रहे हो मियां? अर्थ तो आपका दिया भी अशुद्ध है  इसके अगले मंत्रों में नराशंस द्वारा गाओं का दान करना लिखा है। और इंद्र शब्द भी आया है। इंद्रदेव परमात्मा का वाचक है। आपके पैगंबर को ईश्वर मानने को तैयार हो?

भविष्य वाणी ऊपर तो भविष्यपुराण में भी दी है, देखे उसमें आपके मोहम्मद साहब की कैसी सी दुर्गति की है …

कार्तिक अय्यर: क्यों मोमिनों? श्रीराम शर्मा आर्यसमाजी है ? क्या आप लोग आर्यों की कुरानी तफसीरें मानोगे?

पहले इतना बता दो कि मामह यदि संज्ञा है तो मंत्र में क्रिया क्या है…?  मामह मोहम्मद कैसे हो गया? जबकि मोहम्मद में ऋषि के एक गुण न था

वाणी जी: हम भी कुरान और हदीस को पाखंड समझे तो चलेगा…❓

फेजखान: बात करता हूँ मानुगा या नही कह नही सकता

कार्तिक अय्यर: महेंद्रपाल जी ने एक आयत का अर्थ किया है कि अल्लाह ने मरियम की शर्मगाह में फूंक मारी। कहो मंजूर है? और एक आयत का अर्थ किया है कि अल्लाह मकर करने वाला धोखेबाज है। अल्लाह को धोखेबाज मानोगे?

कार्तिक अय्यर: वैसे आपने कौन से निरुक्त व्याकरण ब्राह्मण से ये कपोलकल्पित अर्थ किया है? हिम्मत होती तो हमारे भाष्य को अशुद्ध सिद्ध करते

मंत्र १ की टिप्पणी देखो। यहां ६०९० वीरों द्वारा चक्रव्यूह बनाने का उल्लेख है । आपके मोहम्मद साहब को आता था चक्रव्यूह बनाना? वो तो धोखे से घात लगाकर निर्दोषों की हत्या लूटपाट करते थे।

कार्तिक अय्यर: यहां पर “इंद्रादिदेवों की प्रशंसा में स्तवन किये जाते हैं” आया है। क्या मोहम्मद साहब इंद्रादिदेवों का स्तवन करते थे या वे स्वयं इंद्र थे?

कार्तिक अय्यर: इस नरश्रेष्ठ ने उस मामह ऋषि को दान दिया। यहां पर *नरश्रेष्ठ* कौन है? क्या अल्लाह? नहीं नहीं वो नर नहीं,ईश्वर है। क्या जिबरील? नहीं, वो तो फरिश्ता है ।

औऱ ६००० गायों का दान- महोदय, इस्लामिक इतिहास में मोहम्मद साहब को इतनी गायों का दान किसने दिया? अल्लाह मियां ने या जबरील ने?

वाणी जी: २०:१२७:३

एष इषाय *मामहे* शतं निष्कांदश स्त्रज:।

त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्त्रा दश गोनाम।।

 

इस मंत्र में मामहे शब्द का अर्थ इन्होंने मोहमद कर लिया । हसी आ रही

कार्तिक अय्यर: वाणी जी, देख रहे हैं न कैसी कतर ब्योंत करके अपना  मन माना अर्थ बना दिया?

वाणी जी: सत्य कथन भ्रातः

कार्तिक अय्यर: मंत्र ११:- इंद्रदेव ने स्तोता को प्रेरित किया कि उठ खड़े होओ- महोदय,यह पौराणिक इंद्र का मोहम्मद से क्या संबंध है और उसने मोहम्मद को कब उठाकर खड़ा किया?  यहां लिथा है- सब मुझ इंद्र की स्तुति करें। क्योंजी! अल्लाह के अलावा इंद्र की इबादत करके शिर्क करना मंजूर है आपको? गौयें अपने वंश को बढ़ाये- इस्लाम वालों ने आजतक गौओं का वर्धन नहीं किया। न मोहम्मद साहब ने किया न ही अब कर रहे हैं ।उल्टा गाय काटकर खा रहे हैं।

 

“पूषादेव प्रतिष्ठित हों”- महोदय, ये इंद्र के बाद पूषा कौन है? दुबारा शिर्क कर लिया?  कुंताप शब्द का अर्थ क्या है? यहां लिखा है-कुत्सित पापों को तपाकर भस्म करने वाला । तपाना यानी तप करना। यानी आपसे तपस्या कराई जायेगी। परंतु इस्लाम मान लो,सब पाप स्वाहा। मुसलमान होकर भी माफी मांगने से पाप माफ। तो फिर यहां तपाया कहां गया? यहां तो केवल तौबा कर लिया?

और एक जगह तो मोहम्मद साहब के पापों को माफ करने की चर्चा है। जो खुद हत्या चोरी व्यभिचार मांसभक्षण आदि पाप करे, वो कुंताप कहां हुआ?

यहा गायों का बड़ा महत्व बताया है। हम जानना चाहेंग् कि इस्लामवालों की गायों के संवर्धन की आगे क्या योजना है या इस्लामी इतिहास में इसका क्या वर्णन है? बीस ऊंट अपनी वधुओं(शक्तियों सहित) उस रथ को खींचते हैं– मोहम्मद साहब के इस विचित्र रथ का खुलासा किया जाये। कि इस तरह का रथ उनके पास कब आया? १०० स्वर्ण मुद्रायें ३०० अश्व १० हार ६०००० गाय- ये दान मोहम्मद साहब को कब मिला और किसने दिया?

कार्तिक अय्यर: भाष्यकार ने मामहे का मामह कर दिया। ह पर से ए की मात्रा हटा दी। इस मंत्र में केवल मामहे ही क्रिया है,दूसरी कोई क्रिया नहीं। यदि वे इस मामह को संज्ञा यानी किसी का नाम बतायेंगे तब इस मंत्र में क्रिया ही नहीं रही? क्या बिना क्रिया के मंत्र होगा?

और आपने यहां मामह को मोहमद कर दिया है किया है  । भला! एक अनपढ़ आदमी ऋषि कबसे हो गया? ऋषि तो वेद का मंत्र द्रष्टा होता है । मोहम्मद को वेद का नाम तक न पता था। मामहे क्रिया है। इसका अर्थ है ‘खूब ही पूजन करता है” नाकि कोई काल्पनिक ऋषि

कार्तिक अय्यर: भविष्य  पुराण में   मुहम्मद को ” महामद ” त्रिपुरासुर  का अवतार  , धर्म दूषक (Polluter of righteousness)और  पिशाच  धर्म (  demoniac religion)  का  प्रवर्तक  बताया  गया   है   . यही नहीं भविष्य  पुराण   में  इस्लाम  को पिशाच  धर्म   और  मुसलमानों  को ” लिंगोच्छेदी “यानि  लिंग  कटवाने वाले  कहा गया है  ,जिसे हिन्दी में  कटुए  और मराठी  में लांडीये  कहा  जाता   है  , ये रोचक भविष्यवाणी भी देख लो मोमिनों  भविष्यपुराण से।

यहां मोहम्मद को महामद नामक राक्षस कहा है जोकि धर्मदूषक(polluter) है  और पैशाच धर्म(demonic religion) का स्थापक है।

यहां लिखा है कि मोहम्मद राक्षस पिछले जन्म में त्रिपुरासुर नामका राक्षस था। उसको शिवजी ने मार डाला। वो भोज राजा के पीछे यहां तक आ गया(पता नहीं इस्लामी पुस्तकों में राजा भोज और मोहम्मद का क्या वर्णन है?) । तब कालिदास ने मंत्र वार से उसको जलाकर खाक कर दिया। उसके शिष्य ‘मदहीन’ होकर उसकी राख को मदीना में ले जाकर दफना दिये। ये है भविष्यवाणी जिनको पढ़कर मोमिनजी बल्लियों उछल रहे थे।

अब हमें पूरी आशा है कि कभी भी भविष्य में मोमिन भविष्यवाणी वेद या भविष्यपुराण से निकालकर मोहम्मद साहब का नाम नहीं निकालेंगे वरना आज जैसी ही दुर्गति होगी।

आतिश कुमार: ओ हो साँस तो ले लेते कार्तिक जी ये वेद प्रकाश उपाध्याय जी के बहकावे में आये हुए है उनकी अंतिम ऋषि नामक किताब को आधार बनाते है लेकिन ये नहीं जानते ये लोग वो आर्य समाजी था जो इन लोगो को मुह की खाने हेतु बहका गए

कार्तिक अय्यर: जी हां ये वेदप्रकाश जैसे धूर्त की ही लीला है। पर इसने भी आज मोमिनों की मट्टी पलीद करवा दी । क्यों कि आज मोहम्मद वेद वाली बात का पाला आर्यसमाज से पड़ा था किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे से नहीं।

आतिश कुमार: इन लोगो का ये हाल है सत्यार्थ प्रकाश की आपत्तियों का आजतक कोई सही जवाब तो दिया नहीं गया तो बस कोई लालची मिल जाय ये उसकी बिना तस्दीक किये मान लेते हैं और बहकाने लगते हैं

कार्तिक अय्यर: जिस तरह से फैज भाई वेद में नाम ढूंढ रह् हैं, उस तरह से तो लग रहा है कि वेदों में अपना नाम भी ढूंढ सकते हैं।

 

नोट : पुराण में बहुत सी बाते  मानने वाली बात नहीं होती है  उसका हम खंडन करते हैं |  यहाँ तक वेद में जाकिर  नायक  ने गलत  जानकारी देकर  सबको भ्रम में डालता है  की वेद में  मोहम्मद  का नाम आया है जबकि वेद में कहीं भी यह नाम नहीं आया है | इसी तरह  इसाई वाले यह जानकारी देते हैं की  वेद में  जीसस का नाम आया हुवा  है वह भी गलत जानकारी  देकर लोगो को भ्रम में डालते हैं जिससे जाकिर नायक और इसाई संघटन  मुस्लिम संघटन  लोगो को भर्मित करने की कोशिश करते हैं जिससे वे सभी  उन्हें  अपने मत में परिवर्तित  कर सके | इन सभी लोगो की झूठी बातो  से बचे | और सही भाष्य की वेद पढ़े | इन सभी संघटन  के झूठी मोहमाया में ना  फंसे |  हमने   सही वेद की  भाष्य हमारे अपने साईट पर डाल रखा है |  सही वेद की भाष्य  के लिए हमारे  साईट  www.onlineved.com  में जाकर वेद  को पढ़े | और  किसी के बह्कावे  में आकर अपना  धर्म को ना परिवर्तित करें इस्लाम इसाई  मत  को ना  अपनाये | सत्यार्थ प्रकाश के लिए  हमारे साईट www.satyarthprakash.in पर  विजिट करें | हमारे  वेद के एंड्राइड अप्प  hhttps://play.google.com/store/apps/details?id=com.aryasamaj.onlinevedapp   पर  विजिट करें  और अप्प  डाउनलोड  करें |

हदीस : वक़्फ

वक़्फ

मुहम्मद वक़्फ अर्थात् सम्पत्ति के एक संग्रह को अल्लाह के लिए समर्पित करने के पक्ष में थे। उमर ने मुहम्मद से कहा-“मुझे खै़बर में जमीन मिली है (पराजित यहूदियों की ज़मीन जो मुहम्मद के साथियों में बांट दी गयी थी)। मैंने इससे ज्यादा कीमती कोई जायदाद कभी प्राप्त नहीं की। अब इसके बारे में क्या करने का हुक्म आप देते हैं ?“ इस पर रसूल-अल्लाह बोले-“अगर तुम चाहो तो तुम इस सम्पत्ति-संग्रह को यथावत रख सकते हो और उसकी उपज को सदके के रूप में दे सकते हो। …… उमर ने उसे गरीबों के लिए, नज़दीकी रिश्तेदारों के लिए, गुलामों की मुक्ति के लिए और अल्लाह के रास्ते में तथा मेहमानों के लिए समर्पित कर दिया“ (4006)।

author : ram swarup

चलो यहीं रह लेते हैं

चलो यहीं रह लेते हैं

किसी कवि की एक सुन्दर रचना है-

हम मस्तों की है ज़्या हस्ती,

हम आज यहाँ कल वहाँ चले।

मस्ती का आलम साथ चला,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले॥

धर्म-दीवाने आर्यवीरों का इतिहास भी कुछ ऐसा ही होता है। पंजाब के हकीम सन्तरामजी राजस्थान आर्यप्रतिनिधि सभा की विनती पर राजस्थान में वेदप्रचार करते हुए भ्रमण कर रहे थे। आप शाहपुरा पहुँचे। वहाँ ज्वर फैला हुआ था। घर-घर में ज्वर घुसा हुआ था। प्रजा बहुत परेशान थी। महाराजा नाहरसिंहजी को पता चला कि पं0 सन्तराम एक सुदक्ष और अनुभवी हकीम हैं। महाराजा ने उनके सामने अपनी तथा प्रजा की परेशानी रखी। वे प्रचार-यात्रा में कुछ ओषधियाँ तो रखा ही करते थे। आपने रोगियों की सेवा आरज़्भ कर दी। ईश्वरकृपा से लोगों को उनकी सेवा से बड़ा लाभ पहुँचा। ज्वर के प्रकोप से अनेक जानें बच गईं। अब महाराजा ने उनसे राज्य में ही रहने का अनुरोध किया। वे मान गये। उन्हें राज्य का हकीम बना दिया गया, फिर उन्हें दीवानी का जज नियुक्त कर दिया गया। अब वे राजस्थान के ही हो गये। वहीं बस गये और फिर वहीं चल बसे।

पाठकवृन्द! कैसा तप-त्याग था उस देवता का। वह गुरदासपुर पंजाब की हरी-भरी धरती के

निवासी थे। इधर भी कोई कम मान न था। पं0 लेखराम जी के साहित्य ने उन्हें आर्य मुसाफ़िर बना दिया। मुसाफ़िर ऐसे बने कि ऋषि मिशन के लिए घर बार ही छोड़ दिया। राजस्थान के लोग आज उनको सर्वथा भूल चुके हैं।

HADEES : Crime and Punishment (QasAmah, QisAs, HadUd)

Crime and Punishment (QasAmah, QisAs, HadUd)

The fourteenth, fifteenth, and sixteenth books all relate to the subject of crime: the forms and categories of crime, the procedure of investigating them, and the punishments resultant from having committed them.

Muslim fiqh (law) divides punishment into three heads: hadd, qisAs, and ta�zIr.  Hadd (pl. HadUd) comprises punishments that are prescribed and defined in the QurAn and the HadIs.  These include stoning to death (rajm) for adultery (zinA); one hundred lashes for fornication (QurAn 24:2-5); eighty lashes for slandering an �honorable� woman (husun), i.e., accusing her of adultery; death for apostatizing from Islam (irtidAd); eighty lashes for drinking wine (shurb); cutting off the right hand for theft (sariqah, QurAn 5:38-39); cutting off of feet and hands for highway robbery; and death by sword or crucifixion for robbery accompanied by murder.

The law also permits qisAs, or retaliation.  It is permitted only in cases where someone has deliberately and unjustly wounded, mutilated, or killed another, and only if the injured and the guilty hold the same status.  As slaves and unbelievers are inferior in status to Muslims, they are not entitled to qisAs according to most Muslim faqIhs (jurists).

In cases of murder, the right of revenge belongs to the victim�s heir.  But the heir can forgo this right and accept the blood-price (diyah) in exchange.  For the death of a woman, only half of the blood-price is due.  The same applies to the death of a Jew or a Christian, but according to one school, only one-third is permissible in such cases.  If a slave is killed, his heirs are not entitled to qisAs and indemnity; but since a slave is a piece of property, his owner must be compensated with his full value.

The Muslim law on crime and punishment is quite complicated.  Though the QurAn gives the broad outline, the HadIsalone provides a living source and image.

author : ram swarup

हदीस : भेंट-उपहार

भेंट-उपहार

कोई भी चीज जो भेंट या दान में दे दी जाय, वापस नहीं ली जानी चाहिए। उमर ने अल्लाह के रास्ते पर (यानी जिहाद के लिए) एक घोड़ा दान में दे दिया था। उसने देखा कि उसका घोड़ा दान पाने वाले के हाथों पड़ कर क्षीण हो रहा है, क्योंकि वह व्यक्ति बहुत गरीब था। उमर ने उसे वापस खरीदने का विचार किया। मुहम्मद ने उससे कहा कि ”उसे अब वापस मत खरीदो ….. क्योंकि वह जो दान को वापस लेता है, उस कुत्ते की तरह है जो अपनी उलटी निगलता है“ (3950)।

author : ram swarup

 

सचमुच वे बेधड़क थे

सचमुच वे बेधड़क थे

हरियाणा के श्री स्वामी बेधड़क आर्यसमाज के निष्ठावान् सेवक और अद्भुत प्रचारक थे। वे दलित वर्ग में जन्मे थे। शिक्षा पाने का प्रश्न ही नहीं था। आर्यसमाजी बने तो कुछ शिक्षा भी प्राप्त कर ली। कुछ समय सेना में भी रहे थे। आर्यसमाज सिरसा हरियाणा में सेवक के रूप में कार्य करते थे। ईश्वर ने बड़ा मीठा गला दे रखा था। जवानी के दिन थे। खड़तालें बजानी आती थीं। कुछ भजन कण्ठाग्र कर लिये। एक बार सिरसा में श्री स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज का शुभ आगमन हुआ। बेधड़कजी ने कुछ भजन सुनाये। श्री यशवन्तसिंह वर्मा टोहानवी का भजन-

सुनिये दीनों की पुकार दीनानाथ कहानेवाले तथा है आर्यसमाज केवल सबकी भलाई चाहनेवाला।

बड़ी मस्ती से गाया करते थे। स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज गुणियों के पारखी थे। आपने श्री बेधड़क के जोश को देखा, लगन को देखा, धर्मभाव को देखा और संगीत में रुचि तथा योग्यता को देखा। आपने बेधड़कजी को विस्तृत क्षेत्र में आकर धर्मप्रचार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

बेधड़कजी उज़रप्रदेश, हरियाणा, पञ्जाब, सिंध, सीमाप्रान्त, बिलोचिस्तान, हिमाचल में प्रचारार्थ दूर-दूर तक गये। हरियाणा प्रान्त में विशेष कार्य किया। वे आठ बार देश के स्वाधीनता संग्राम

में जेल गये। आर्यसमाज के हैदराबाद सत्याग्रह तथा अन्य आन्दोलनों में भी जेल गये। संन्यासी बनकर हैदराबाद दक्षिण तक प्रचारार्थ गये। अपने प्रचार से आपने धूम मचा दी।

बड़े स्वाध्यायशील थे। अपने प्रचार की मुनादी आप ही कर दिया करते थे। किस प्रकार के ऋषिभक्त थे, इसका पता इस बात से लगता है कि एक बार पञ्जाब के मुज़्यमन्त्री प्रतापसिंह कैरों ने उन्हें कांग्रेस के टिकट पर एक सुरक्षित क्षेत्र से हरियाणा में चुनाव लड़ने को कहा। तब हरियाणा राज्य नहीं बना था। काँग्रेस की वह सीट खतरे में थी। बेधड़क ही जीत सकते थे।

स्वामी बेधड़कजी ने विधानसभा का टिकट ठुकरा दिया। आपने कहा ‘‘मैं संन्यासी हूँ। चुनाव तथा दलगत राजनीति मेरे लिए वर्जित है। ऋषि दयानन्द ने तो मुझे दलित से ब्राह्मण तथा संन्यासी तक बना दिया। आर्यसमाज ने मुझे ऊँचा मान देकर पूज्य बनाया है और आप मुझे जातिपाँति के पचड़े में फिर डालना चाहते हैं।’’ पाठकवृन्द! कैसा त्याग है? कैसी पवित्र भावना है? जब वे अपने जीवन के उत्थान की कहानी सुनाया करते थे कि वे कहाँ-से-कहाँ पहुँचे तो वे ऋषि के उपकारों का स्मरण करके भावविभोर होकर पूज्य दादा बस्तीराम का यह गीत गाया करते थे-

‘लहलहाती है खेती दयानन्द की’।

इन पंक्तियों के लेखक ने उन-जैसा दूसरा मिशनरी नहीं देखा। लगनशील, विद्वान् सेवक तो कई देखे हैं, परन्तु वे अपने ढंग के एक ही व्यक्ति थे। बड़े वीर, स्पष्टवादी वक्ता, तपस्वी, त्यागी और परम पुरुषार्थी थे। शरीर टूट गया, परन्तु उन्होंने प्रचार कार्य बन्द नहीं किया। खान-पान और पहरावे में सादा तथा राग-द्वेष से दूर थे। बस, यूँ कहिए कि ऋषि के पक्के और सच्चे शिष्य थे।

HADEES : THE �GOD WILLING� CLAUSE

THE �GOD WILLING� CLAUSE

If one includes the proviso �God willing� (InshA AllAh) when taking an oath, the vow must be fulfilled.  SulaimAn (Solomon) had sixty wives.  One day he said, �I will certainly have intercourse with them during the night and everyone will give birth to a male child who will all be horsemen and fight in the cause of Allah.  � But only one of them became pregnant, and she gave birth to a premature child.  �But if he had said InshA� Allah he would have not failed,� observes Muhammad.  In other ahAdIs about the same story, the number of wives increases from sixty to seventy and then to ninety (4066-4070).

author : ram swarup

हदीस : विरासत, भेंट-उपहार, और वसीयतें

विरासत, भेंट-उपहार, और वसीयतें

अगली तीन किताबें हैं ”विरासत की किताब (अल-फराइज), भेंट-उपहार की किताब (अल-हिबात), और वसीयत की किताब (अल-वसीय्या)।“ कई पक्षों में वे परस्पर सम्बद्ध हैं। उनसे निःसृत कानून जटिल हैं और हम यहां उनका उल्लेख-भर करेंगे।

author : ram swarup

पण्डित भोजदज़जी आगरावाले आगे निकल गये

पण्डित भोजदज़जी आगरावाले आगे निकल गये

श्री पण्डित भोजदज़जी आर्यपथिक पश्चिमी पञ्जाब में तहसील कबीरवाला में पटवारी थे। आर्यसमाजी विचारों के कारण पण्डित सालिगरामजी वकील प्रधान मिण्टगुमरी समाज के निकट आ गये।

पण्डित सालिगराम कश्मीरी पण्डित थे। कश्मीरी पण्डित अत्यन्त  रूढ़िवादी होते हैं इसी कारण आप तो डूबे ही हैं साथ ही जाति का, इनकी अदूरदर्शिता तथा अनुदारता से बड़ा अहित हुआ है। आज कश्मीर में मुसलमानों ने (कश्मीरी पण्डित ही तो मुसलमान बने) इन बचे-खुचे कश्मीरी ब्राह्मणों का जीना दूभर कर दिया और अब कोई हिन्दू इस राज में-कश्मीर में रह ही नहीं सकता।

पण्डित सालिगराम बड़े खरे, लगनशील आर्यपुरुष थे। आपने बरादरी की परवाह न करते हुए अपने पौत्र का मुण्डन-संस्कार विशुद्ध वैदिक रीति से करवाया। ऐसे उत्साही आर्यपुरुष ने पण्डित

भोजदज़जी की योग्यता देखकर उन्हें आर्यसमाज के खुले क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी। पण्डित भोजदज़ पहले पञ्जाब सभा में उपदेशक रहे फिर आगरा को केन्द्र बनाकर आपने ऐसा सुन्दर, ठोस तथा ऐतिहासिक कार्य किया कि सब देखकर दंग रह गये। आपने मुसाफिर1 पत्रिका भी निकाली। सरकारी नौकरी पर लात मार कर आपने आर्यसमाज की सेवा का कण्टकाकीर्ण मार्ग अपनाया। इस उत्साह के लिए जहाँ पण्डित भोजदज़जी वन्दनीय हैं वहाँ पण्डित सालिगरामजी को हम कैसे भुला सकते हैं जिन्होंने इस रत्न को खोज निकाला, परखा तथा उभारा।