Vishuddh-Manu-Smriti Part 1 of 3

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This book is contributed by Sh. Bhushan Varma ji to Pandit Lekhram Vedic Mission. Thanks a lot for his kind support.

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Vishuddh Manu Smriti 1 of 3

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7 thoughts on “Vishuddh-Manu-Smriti Part 1 of 3”

  1. श्रीमान जी मै अपना विचार व्यक्त करना चाहूगा।
    इस (मूर्ती पूजा) तथ्य पर अधिकांश महापुरूषों की स्वीकृती है।
    स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के समय के राम कृष्ण परम हंश और उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद जी है
    वे भी ध्यान,योगी,तपस्वी,त्यागी साथ ही वेद शास्त्रों के जानकार ज्ञानी थे परन्तू आज तक उन्होने आप के जैसा तर्क नही दिया।

    यदी ऋषि मुनियों की बात करें जिनमे वेद व्यास जी क्या इनको पूरे वेदों के ज्ञान नही था अपितु इन्होने ही वेदों का सुन्दर रूपों में विभाजन किया जिसे स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने अध्यन किया होगा।
    जिन्होने वेदों का विभाजन किया वे कभी मूर्ती पूजा का खण्डन नही किये पर स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने खण्डन कर डाला मानो वेद व्यास जी के अपेक्षा महानतम वेदज्ञ,ज्ञानी,सांख्य योगी हो।
    मै स्वामी दयानंद सरस्वती जी पर व्यंग नही कर रहा हू
    मैं उनका आदर सम्मान करता हूं करता हूं क्योंकी वेद हमें बताती है हम सभी ब्रम्ह है और भगवान कृष्ण कहते है
    मैं सब की हृदय में स्थित आत्मा हूं।
    अर्थात आप सभी मेरे मेरे लिये ईश्वर तुल्य है
    और मै आप सब को प्रणाम करता हूं।

    हमारा सनातन धर्म,ऋषि मुनी भी ईश्वर को मूर्ती नही बताते अपितु वे यह बताते है की वह निराकार है गुणातीत है कालातीत है परन्तु हम उनहे मूर्ती रूप में मानते है(यहां ध्यान दीजिएगा माना गया है न की उन्हे मूर्ती कहा गया है)अब आप बताईये आप के और हमारे मत में कहां अन्तर है।

    आप सभी से प्रार्थना है की किसी कीआस्था,विश्वास, मान्यता और धर्म का खण्डन मत कीजिए।
    सत्य मार्ग कई है और परब्रम्ह एक। वे सब मार्ग एक ही परब्रम्ह तक पहुंचते है।
    किसी के मार्ग का खण्डन मत कीजिये।
    आप अपने मत का अनुपालन कीजिए और अन्य अनुयायी को उनके अपने आस्था और मत का पालन करने दीजिए।
    जय श्री विष्णु जय श्री राम जय श्री कृष्ण।

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