उत्तर दो और उत्तर देने की कला सीखोः-
राधा-स्वामी सप्रदाय वाले लबे समय तक बाबा शिवदयाल से महर्षि जी के मन्त्र लेने का प्रचार करते रहे। इस कहानी को गढ़ने वाले ने एक तर्क यह दिया कि सत्यार्थ प्रकाश में उनके मत का खण्डन नहीं है। देर तक आर्य समाज में उनको ऐसा उत्तर न दिया गया जो बोलती बन्द कर दे। पं. चमूपति जी व लक्ष्मण जी की उत्तर देने की शैली का हमारा अयास छूट गया। जालंधर में चमत्कारों पर शास्त्रार्थ में ऋषि ने बाबा शिवदयाल की भी समीक्षा की-यह प्रमाण तत्काल दिया जाना चाहिये था। राधा-स्वामी मत के तीन गुरुओं की पुस्तकों में ऋषि की चर्चा है। खण्डन भी है, परन्तु मन्त्र लेने की कहानी किसी गुरु को न सूझी। जब परोपकारी में यह उत्तर दिया गया तो फिर इसका प्रतिवाद न हो सका।
सिख अब तक ज्ञानी दित्तसिंह से ऋषि के शास्त्रार्थों में पराभव का प्रचार कर रहे हैं। पंजाब में लोग उत्तर चाहते हैं। कोई सभा व लेखक डर के कारण— पं. निरञ्जनदेव जी की प्रेरणा से मैंने उत्तर देते हुए लिखा कि दित्तसिंह स्वयं को सिख नहीं, वेदान्ती लिखता है। किसी भी ऋषि विरोधी पत्र-पत्रिका ने दित्तसिंह से शास्त्रार्थ होने की घटना नहीं दी। कई लेखक उत्तर देने का जोखिम नहीं ले सकते। दिल्ली में एक ने एक ट्रैक्ट लिखकर अपना पता न देकर श्री संजीव का पता दे दिया। उसने वह कटवा दिया। कहीं मुसलमान न भड़क उठें।