राजेन्द्र जिज्ञासु
तुहें याद हो कि न याद होः-
आर्य समाज को याद हो, कि न याद हो यह सेवक गत आधी शताब्दी से यह याद दिलाता आ रहा है कि उर्दू साहित्य के एक मूर्धन्य कवि श्री दुर्गासहाय सरूर आर्यसमाज जहानाबाद के मन्त्री थे। आपके गीतों को गाते-गाते देश सेवक फाँसियों पर चढ़ गये। आपने देश, जाति व वैदिक धर्म पर उच्च कोटि की प्रेरणाप्रद पठनीय कवितायें लिखीं। आपके निधन पर महरूम जी की लबी कविता का एक पद्य भारत व पाकिस्तान में किसी बड़े व्यक्ति के मरने पर वक्ता पत्रकार लगभग एक शतादी से लिखते व बोलते चले आ रहे हैं। पं. लेखराम जी के बलिदान पर लिखी आपकी कविता सुनकर आपके कविता गुरु मौलाना ने कहा था, ‘‘तू एक दिन मेरा नाम रौशन करेगा।’’ मैं 45 वर्ष से यह कविता खोज रहा था। किसी ने सहयोग न किया। देश भर में घूम-घूम कर आर्य पत्रों से ‘सरूर’ जी की कई कवितायें खोज पाया। अब आर्य समाज कासगंज के पुस्तकालय से राहुल जी और कई कवितायें ले आये हैं। श्री राम, ऋषि दयानन्द, गऊ, माता सीता, विधवा, अनाथ, मातृभूमि आदि पर हृदय स्पर्शी ऐसी कवितायें प्राप्त हुई हैं, जिनमें डॉ. इकबाल ने प्रेरणा ली। आज से यह साहित्यिक कुली इनका देवनागरी में सपादन करना आरभ कर रहा हूँ। इसे एक जाति भक्त प्रकाशित प्रसारित करने को आगे आयेगा। शेष फिर लिखा जावेगा।