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पण्डित महेंद्र पाल जी के यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क गालियों की बारिश

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यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क:

पण्डित महेंद्र पाल जी ने स्वयं रचित निरर्थक विवाद और अपशब्दों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए एक विचित्र तर्क दिया है कि अपशब्द उन्होंने इसलिए प्रयोग किये और वो निरंतर कर रहे हैं क्योंकि वो शिष्य ऋषि दयानन्द के शिष्य हैं गांधी के नहीं .
पण्डित जी अपने अपशब्दों की पुष्टि यह कह कर रहे हैं कि वो उन्होंने आर्य समाज के सातवें नियम के आधार पर दिए हैं “………यथायोग्य वर्तना चाहिए ”
यह एक विचित्र तर्क है यदि यथायोग्य का अर्थ गालियों की लुगात कब से हो गयी!
पण्डित जी माना की आप गालियाँ देने की कला में सिद्धहस्थ हैं प्रतीत होता है कि ये आपकी ३२ वर्षों की तपस्या का फल है लेकिन इसका सम्बन्ध आर्य समाज के सातवें नियम से कैसे हो गया ?
क्या पण्डित लेखराम वैदिक मिशन के किसी सदस्य ने आपसे अभद्रता से वार्तालाप किया या कोई लेख आपको लेके अभद्रता पूर्वक लिखा जो आप इसे यथायोग की संज्ञा दे रहे हैं .
यदि यथायोग्य का अर्थ अपशब्दों के प्रयोग करना है और जो आपकी बुद्धि अनुसार ऋषि दयानन्द का सिद्धांत है तो कृपया आप हम अबोध बालकों को कोई ऐसी ऋषि दयानन्द की घटना तो बताइये जहाँ उन्होंने इस अपशब्द देने वाले अस्त्र का प्रयोग किया हो . ऋषि को तो अनेकों गलियां दी गयीं उन्होंने यदि सिध्धांत लिखा है तो उनका अनुसरण भी तो किया होगा ( यहाँ तो हमने आपसे एक शब्द भी नहीं कहा )
आप तो सिद्धहस्त हैं विद्वान हैं ऋषि दयानन्द की बाद की पीढ़ियों के कई विद्वानों का सानिध्य पाने के आप धनी रहे हैं.
यदि ऋषि दयानन्द का उदहारण देने में असमर्थ हैं तो पण्डित लेखराम जी पण्डित गुरुदत्त जी स्वामी श्रद्धानन्द जी पण्डित शांति प्रकाश जी पण्डित गंगाप्रसाद जी पण्डित देवप्रकाश जी इत्यादि किसी के तो प्रमाण आपके पास होंगे किसी की तो घटना आपको याद होगी जहाँ उन्होंने इस गालियों देने के आपके स्वरचित सिद्धांत का पालन किया हो . ठाकुर अमर स्वामी जी को तो आप गुरु मानते हैं उनके तो आप निकट रहे हैं उनका ही कोई उदाहरण दे दीजिये
या तो ये आपकी स्वरचित व्याख्या है . या फिर आप मुसलमानों की उस परम्परा जिसके तहत उन्होंने ऋषि दयानन्द से लेकर पण्डित लेखराम पण्डित चमूपति ठाकुर अमर स्वामी जी के लिए अपशब्दों का अनुसरण किया का पालन कर रहे हैं.
क्या आप मौलाना सनाउल्ला मिर्ज़ा गुलाम अहमद आदि का अनुसरण कर रहे रहें जो इस कला के सिद्ध हस्त रहे हैं .
पण्डित महेंद्र पाल जी इस बार देख लीजिये आपके आदर्श मिर्ज़ा गुलाम अह्मंद सरीखे हैं या ऋषि दयानन्द
कम से कम अपनी इस गलियों की सिद्धहस्तता को छिपाने के लिए ऋषि दयानन्द के सिधान्तों की ओट न लीजिये .
अपशब्दों का प्रयोग या तो मौलानाओं जैसे मौलाना अनाउल्लाह मिर्जा गुलाम अहमद आदि ने किया है आर्य समाज में तो ऐसा तपोधन हमें नज़र नहीं आता जिन्हें आर्य समाज के सातवें नियम की आड़ लेकर गालियाँ दी हों हमें तो कोई ऐसा विद्वान् ही नज़र नहीं आता जो आर्य होते हुए गालियाँ देता हो
अतः पण्डित जी आप स्वयं विचार करें कि आप गालियाँ देने के मामले में ऋषि दयानन्द के शिष्य हें या इन मौलानाओं के !

प्रारम्भ से ही पंडित जी ने जबसे मुद्दा उठाया तबसे लेकर आज तक हम इन्हें “प्रीतिपूर्वक” यही समझाते आये है की पंडित जी आप जैसा सोच रहे है वैसी बात नहीं है आमजन ध्यान देंकि विडियो में क्या है और जिस शब्द से इन्हें आपति है उसका कितना सम्बन्ध है
सत्यार्थ प्रकाश से पंडित लेखराम वैदिक मिशन ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रचार को लेकर नया तरीका निकाला की सत्यार्थ प्रकाश के प्रत्येक बिंदु को लेकर एनीमेशन विडियो बनाये जाए और हमने शुरुआत की चौदहवे समुल्लास से की
प्रत्येक वीडिओ को को नाम दिया गया है, जैसा कि किसी भी चल चित्र में आता है,
यह उस विडियो को या फिल्म को पहचान देने मात्र से किया जाता है इसी तरह हमने प्रत्येक विडियो को नाम दिया जिसमें पंडित जी ने ९वे बिंदु के विडियो को देखा उस विडियो को यह नाम दिया गया “बिना पुरुषों के 72 हूरों को कौन सम्भालेगा” पहली बात जैसा पंडित जी कह रहे है की मिशन वालों ने लिखा है की “इन्ही लोगों ने एक पोस्ट डाला है सत्यार्थप्रकाश में स्वामी जी ने ,लिखा जन्नत में 72 हुरें मिलेंगे |”
ऐसा कही भी लिखा हुए पंडित जी दिखा दें तो उनका उपकार होगा क्यूंकि यह लिखा दिखाने के बाद हम सहर्ष क्षमा मांग लेंगे
फिल्म के नाम को स्वामी जी के साथ पंडित जी स्वयं जोड़कर मिशन को बदनाम करने में लगे है, इसके पीछे कारण क्या है वो वे ही जानते है
विडियो में सत्यार्थ प्रकाश से जो बाते है वो केवल ऑडियो में है जिसका प्रारम्भ ही (“सत्यार्थ प्रकाश चौह्द्वा समुल्लास नौवीं समीक्षा”) इस तरह होता है उसके बाद प्रत्येक शब्द सत्यार्थ प्रकाश से लिया हुआ है उसमें किसी भी प्रकार का संशौधन नहीं किया है इस ऑडियो में कही भी यदि ७२ हूरों का या सत्यार्थ प्रकाश से इतर किसी भी शब्द का फेर बदल हो वो पण्डित जी बताएं .

यदि पंडित जी सम्पूर्ण विडियो को ही सत्यार्थ प्रकाश का हिस्सा समझते है तो जो पहला शब्द आता है “पंडित लेखराम वैदिक मिशन” यह भी सत्यार्थ प्रकाश में नहीं है इसका भी विरोध जल्द प्रारम्भ कर देना चाहिए उन्हें और यहाँ तक की कई सारे चित्र जो विडियो में है वे भी सत्यार्थ प्रकाश का हिस्सा नहीं है, तो क्यों ना उन्हें भी विरोध का हिस्सा बना लिया जाए
एक साधारण सी बात उन्हें व्यक्तिगत रूप से चलभाष के माध्यम से समझा दी गई परन्तु वे चाहकर भी समझना नहीं चाहते या उनका अहंकार आड़े आ रहा है हम नहीं जानते

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति: परेशां परिपीडनाय
खलस्य साधोर्न विपरीत मेतत ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय .

हार मान ली :

पण्डित जी ने लिखा है ” जब विद्वान मान कर महेन्द्रपाल के सामने हार ही स्वीकार कर लिया………….”
पण्डित जी हम सहर्ष हार स्वीकार करते हैं भला आपकी इस जीवन भर की गालियों की अभ्यस्तता के आगे कौन हार नहीं मान लेगा.
शायद पूर्व के मौलानाओं को भी , जिनसे प्रेरणा पाकर शायद आपने ये लिखा हों (क्योंकि आर्य तो अपशब्दों का प्रयोग नहीं करते ) आपके निम्न लिखित शब्दों को पढ़कर शर्म न आजाए
ज़रा अपने इन शब्दों पर गौर फरमाइए :
-उल्लू के पट्टे –
– गधे
– हराम जादे
– तुझ जैसे जाहिलों
– ना मालूम किस माँ बाप ने पैदा किए तुझ जैसे जाहिल को
– हराम के पिल्लै
– मिथ्याचारियों
– नालायक
– अगर अपने बाप से जन्मा है तो
– तुम सब बिन बापके आवलाद माने जावगे……….
इस पुष्प वर्षा में आपने कुछ नए शब्द भी जोड़े हैं यथा :
सोंटा कुत्तों को देख कर ही रखना चाहिये
“लगता है कुन्ती ने जैसे कर्ण को जन्मी =मरियम ने जैसे इस को जनी तू भी वैसा ही होगा |”
यही पंडित जी का यथायोग्य है ??
पण्डित जी ये तो आपके संस्कार ही हो सकते हैं जो आप इन सब शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं और आप तो स्वयं को वैदिक प्रवक्ता लिखते हैं जरा ये भी बता दीजिये की वेद का कौनसा मंत्र की व्याख्यानुसार आपने ये पुष्प वर्षा की है .

कीचढ़ उछालना :

पण्डित जी हमें तो आपके बारे में कुछ मालूम भी नहीं हम आपके ऊपर क्यों कीचड उछालने लगे ?
न ही हमने कुछ ऐसा आपके बारे में लिखा है .
हमने तो ये समीक्षा की थी की व्यक्ति गालियाँ क्यों देता है जैसे कि मुख्य कारण ये हो सकते हैं :
– बहुविवाह की वजह से क्लेश
– पारिवारिक क्लेश
– मदिरा आदि का सेवन की वजह से
– सात्विक भोजन न होने की वजह से जैसे मांसाहार करने का आदि हो
– किसी के परिवार के व्यक्ति ने ही कोर्ट में केस कर दिया हो तो व्यक्ति ज्यादा परेशां हो जाता है
– पारिवारिक क्लेश के कितने भी कारण हो सकते हैं
ऐसे ही किसी न किसी कारणों से ही परेशां होकर व्यक्ति अपशब्दों का प्रयोग करता होगा .
हमें तो पूर्ण विश्वास है की आप तो आर्य हैं विद्वान् है वैदिक प्रवक्ता हैं आपको तो ये दुर्गुण छु भी नहीं सकते . और ये हमारा ही पूर्ण विश्वास नहीं सम्पूर्ण आर्य जगत का विश्वास है आप तो सबकी आशा की किरण हो और जिस तरह आप क्रिन्वंतों विश्वं आर्यम की परिकल्पना को साकार करने में लगे हैं वो अत्यंत सराहनीय है .
अतः हम तो पुनः कहते हैं कि आपके अपशब्दों के प्रयोग का कारण हमारी समझ से परे है .

मानसिक दुःख झेलना पड़गया

पण्डित जी अप लिखते हैं “जिस कारण मुझे इतना कुछ लिखना पड़ गया मै जो काम कर रहा था वह रुक गया मुझे मानसिक दुःख झेलना पड़गया की मैं एक समाज छोड़ घरवार अपनों को जिस सत्य के कारण छोड़ा उसका यही परिणाम मिल रहा है मुझे ”
पण्डित जी विवाद आपने प्रारम्भ किया , व्यर्थ की चुनौती आपने दी हमें तो आपको निमंत्रण नहीं दिया था.
अपितु आपको चलभाष पर बात करके आपके मार्गदर्शन लेने की ही बात यशवंत जी ने कही थी .
लेकिन अब इसे आपके घमण्ड की पराकाष्ठा कहें या क्या कहें समझ नहीं आता जो आपने इन अपशब्दों रूपी श्रद्धा सुमनों की बारिश कर दी .
ईश्वर दयालु है न्यायकर्ता है तो यदि मानसिक दुःख आपको झेलना पढ़ा है तो इसका कारण तो क्या रहा होगा आप जैसे विद्वान को हम क्या बताएं .
हाँ ये अवश्य है कि बिना कुछ कहें हमारा सम्मान आपने माँ बहिनों की गालियों से किया है वो तो आधिभौतिक दुख ही होगा बाकी विद्वान और ईश्वर जानता है .
और रही आपके ” सत्य के कारण छोड़ा उसका यही परिणाम मिल रहा है मुझे ” इस कथन की बात तो सत्य के लिए छोड़ा था तो इसमें प्रलाप कैसा……

सत्यार्थ प्रकाश की रक्षा
आपका सत्यार्थ प्रकाश की रक्षा के लिए किया गया योगदान अत्यंत सराहनीय है . इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन पण्डित जी आपका यह कहना की केवल मैं ही कार्य कर रहा है केवल मेंने ही जीत दिलाई कुछ गले नहीं उतारा .
जहाँ तक मुझे याद है आपने तो उस कुरान के भाष्य के दर्शन भी नहीं किये थे जिसको लेके ऋषि दयानन्द के समीक्षा की थी . आप तो वो कुरान देखने के लिए लालायित थे चलो जो भी हो

लेकिन पण्डित जी यदि केवल आपने ही सारा कार्य किया बाकी आर्य समाजीयों का कोई योगदान नहीं तो १७ वकीलों की टीम क्या कर रही थी विमल वधावन भी क्या कर रहे हैं
और यदि केवल आपकी वजह से ही जीत हुयी तो फिर आपके साथ साथ अन्य लोगों का सम्मान सत्यार्थ प्रकाश का केस जीतने के बाद जो समारोह हुआ उसमें क्यों किया गया . वहां तो आपने ये नहीं कहा की केवल मेरी वजह से जीत हुयी है
हम आपके योगदान को कम नहीं आंक रहे बस आपसे ये गुजारिश है की अन्य ऋषि भक्तों के भी इसमें योगदान हैं कृपया उनको भी तवज्जों दीजिये

पण्डित लेखराम वैदिक मिशन का व्यापार :

पण्डित जी लिखते हैं ” दुनिया के लोगों को बताना चाहते हैं हमकेवल उस यह काम कर रहे हमें धन चाहिए | यही इन लोगों का व्यापर है | इसी प्रकार के कई प्रमाण मेरे सामने है पिछले दिन एक ठग मनीष ने अमेरिका के रणजीत से दो लाख दसहज़ार मार लिया | मुझे बताया गया लुटने के बाद मैंने प्रयास कर उन्हें 35 हज़ार लौटाया | यह लोग भी इसी प्रकार से दुकानदारी कर रहे हैं ”

सर्वप्रथम तो ये ठग मनीष कौन है ये हमें नहीं पता . ना ही पण्डित लेखराम मिशन से उसका कोई सम्बन्ध है . यदि उसने ऐसा किया है तो निसंदेह दण्ड का पात्र है आप यथोचित माध्यम से आप उसे दण्ड दिलाएं .
रही बात हमारी व्यापर करने की तो पण्डित जी आपके लिए चुनौती शब्द तो हम क्या प्रयोग करें विनती है जरा उस एक व्यक्ति को तो लेके आइये जिसने हमें आज तक की अवधि में एक पैसे का दान लिया हो .
पण्डित जी पण्डित लेखराम वैदिकक मिशन के कार्यकर्ता ईश्वर की दया से भरण पोषण के लिए आवश्यक धन कमा लेते हैं और साथ साथ इतना धन भी कमा लेते हैं की पण्डित लेखराम वैदिक मिशन को बिना दान के चला सकें कम से कम इतनी कृपा तो अभी बनी हुयी है ईश्वर की . लाखों रूपया साल का खर्च करते हें लेकिन आजतक किसी से दान नहीं लिया . देश विदेश से काफी लोगों से कहा लेकिन सबको मना कर दिया. जो खर्च किया संगठन के सदस्यों ने स्वयं के पारिवारिक धन से खर्च किया और कर रहे हैं .
हम लोग आपसे पुनः विनती करते हैं पण्डित जी कि पण्डित जी आपके आरोप की पुष्टि में एक व्यक्ति ही ला दीजिये जिससे हमें दान लिया हो चाहे वो एक पैसा ही क्यों न हो .
और साथ साथ ये भी बता दीजिये कि आपके इस आरोप के जवाब में यदि आप कोई साक्ष्य प्रस्ततु नहीं करते हैं तो आपकी न्याय व्यवस्था के अनुसार आप क्या करेंगे .

पण्डित जी का एक और झूठ

पण्डित जी ने किसे का लेख शेयर किया है जिसमें लिखा है कि” मुझे याद है, एक बार दिल्ली प्रतिनिधि सभा के पूर्व प्रधान आचार्य राजसिंह द्वारा जब यज्ञ से मनोकामना पूर्ण के विषय पर शास्त्रार्थ होने की बात चली थी तो यही पंडित जी को आर्यमन्तव्य वालों ने अपनी ओर से चुना था…. और आप सब को यह तो जानकारी अवश्य होगी कि पंडित जी उस समय भी, मुस्लिम अदि को अपशब्दों से संबोधित करते थे… तो क्या उस समय पंडित जी अपशब्द इनको नहीं दिखते थे..???”
“यही पंडित जी को आर्यमन्तव्य वालों ने अपनी ओर से चुना था” – ये सरासर झूठ है .
पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने पण्डित जी से कोई बात नहीं की
पण्डित लेखराम वैदिक मिशन की तरफ से आचार्य रामचंद्र जी थे . जिनका इस सन्दर्भ में वार्तालाप भी हुआ था . ये झूठ के वाहक पुरानी पोस्ट देख सकते हैं की उनमें पण्डित महेंद्र पाल जी का नाम है या आचार्य रामचंद्र जी का

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अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आ गया :
मैंने जो दिल को पेश किया था उसके सामने
कहने लगे शोख मुझे जान चाहिए

पण्डित महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया

Mahendra pal arya about arya mantavya

महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया
विगत कुछ महीनों में पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने विभिन्न विषयों को लेकर चलचित्रों का निर्माण किया.
इनमें श्री कृष्ण के बारे में विभिन्न भ्रांतियां, संध्या कैसे करें और कुछ सत्यार्थ प्रकाश के कुछ अंशों के चलचित्र समाहित रहे. स्वाभाविक है कि प्रत्येक चलचित्र का कुछ न कुछ तो शीर्षक रहा ही होगा. इसी प्रकार के एक चलचित्र के शीर्षक को लेकर पण्डित महेंद्रपाल जी की आपत्ति रही.
पण्डित महेन्द्रपाल जी से चलभाष पर वार्तालाप भी इस बारे में किया गया लेकिन …….
सम्माननीय पण्डित जी ने संगठन के सदस्यों को कुछ इन पुष्पों से नवाजा है:
-उल्लू के पट्टे –
– गधे
– हराम जादे
– तुझ जैसे जाहिलों
– ना मालूम किस माँ बाप ने पैदा किए तुझ जैसे जाहिल को
– हराम के पिल्लै
– मिथ्याचारियों
– नालायक
– अगर अपने बाप से जन्मा है तो
– तुम सब बिन बापके आवलाद माने जावगे……….
चरित्र के धनी महेन्द्रपाल जी के इन शब्दों के लिए हम अत्यंत आभारी हैं लेकिन पण्डित जी आपकी ये सप्रेम भेंट हमारे किसी प्रयोजन को सिद्ध करने में असमर्थ है अतः आपकी ये श्रध्दा सुमन रूपी भेंट आपको ही समर्पित है .
पण्डित जी ईश्वर की ऐसी कृपादृष्टि इस संगठन के सदस्यों के ऊपर रही की सभी ने सभ्य धार्मिक माता पिता के यहाँ जन्म लिया चाहे आर्य परिवार हों या पौराणिक .
धार्मिक परिवार में जन्म लेने के अतिरिक्त ईश्वर की कृपा से पालन पोषण और युवावस्था में भी विद्वानों की संगति और मार्गदर्शन के फलस्वरूप आपके इन प्रिय शब्दों के प्रयोग की कभी हमें आवश्यकता नहीं पडी.
व्यक्ति का भोजन सात्विक होना चाहिए ऐसी ही सम्मति सर्वत्र है, स्वभाव पर भी भोजन का अनुकूल व प्रतिकूल असर देखने में आता है. सभी सदस्य आर्य परिवारों से हैं अतः भावावेश में भी ऐसे शब्दों की आवश्यकता हमें कभी अनुभव नहीं हुयी.
हां ! कई बारे मदिरा के आवेश में भी व्यक्ति ऐसे शब्दों का प्रयोग किया करता है लेकिन पुनः यह रोग न तो हमारे किसी सदस्य में है न ही ऐसी हमारी संगति
पण्डित जी के जीवन का एक महत्व पूर्ण भाग मुसलमान परिवार में गुजरा. मांसाहार तो जीवन का हिस्सा रहा ही होगा ( अब तो आर्य हैं …) . संगति भी ऐसी रही होगी.
मदिरा का सेवन तो मुसलमानों में अवैध माना जाता है तो उस अवधि में तो दोजख के भय से ये रोग नहीं लगा होगा उम्मीद है कि आर्य बनने के बाद से तो मदिरा का नाता वैसे भी नहीं रहा होगा
चरित्र के धनी पण्डित महेंद्रपाल जी आर्य जो स्वयं को आर्य भी लिखते हैं और पण्डित भी है तो इस दृष्टि से न तो वो मांसाहार एवं मदिरा के सेवी हो सकते हैं न ही ऐसी संगति उनकी हो सकती है की ऐसे शब्दों का प्रयोग करें.
कई बार व्यक्ति की पारिवारिक स्तिथियाँ ठीक ना होने की वजह से एवं न्यायालयों के चक्करों में उलझ कर मानसिक उत्पीडन झेलते के कारण भी ऐसे शब्दों के प्रयोग का अभ्यस्त हो जाता है परन्तु पंडित जी विद्वान व्यक्ति है वे तो स्वयं कहते है की आर्य समाजीयों को कोर्ट कचहरी के चक्करों से दूर ही रहना चाहिए, तो ऐसा कुछ होना भी सम्भव नहीं दीखता है
इस्लाम व्यक्ति बहुविवाह की भयंकर कुरीति का शिकार है जिसके दुष्परिणामों में से एक मानसिक शांति का खोना है परन्तु ऐसा कुछ भी यहाँ सम्भव नहीं है क्यूंकि पंडित जी आर्य है, ऋषि प्रणीत सिद्धांतों के अनुगामी है तो ऐसा हो यह बात भी असम्भव है ( कुछ व्यभिचारी लोग बहु विवाह की कुरीति का अभी भी अनुसरण करते हैं इन परिवारों में प्राय देखा जाता है की शांती का अभाव होता है और पत्नी पति के दुराचार से तंग आकर न्यायलय की शरण लेती है )
आर्य बनने के बाद तो शैतान के बहकाने का बहाना भी नही चल सकता 🙂
सुना है कई बार पूर्व काल के संस्कार काफी प्रबल होते हैं हो सकता है इसी कारण महेन्द्रपाल जी ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हों.
सात्विक भोजन करने वाले, पवित्र चरित्र आत्मा, ब्रह्मचर्य धारी, वैदिक ग्रहस्थी (एक ही पत्नी से संतुष्ट रहने वाले ) मदिरा के सेवन से कोसों दूर रहने वाले माननीय पण्डित जी द्वारा कहे गए ऐसे शब्दों का हमें पूर्वकालिक संस्कारों के अलावा कोई कारण प्रतीत नहीं होता ( एक आर्य में इन गुणों का समावेश होना स्वाभाविक है और आर्य समाज जहाँ कर्मानुसार वर्ण व्यवस्था है वहां तो इन गुणों का होना पण्डित होने के लिए अत्यावश्यक है )
महेन्द्रपाल जी द्वारा हमारे लिए प्रयोग किये गए इन शब्दों से हमें कोई आघात नहीं पहुँचा है न ही हमारे ऐसी सामर्थ्य है कि हम पण्डित जी की चुनौती को स्वीकार करें .
कहाँ इन शब्दों के प्रयोग में अभ्यस्त सूर्य रूपी प्रभा वाले पण्डित जी और कहाँ इन सबसे दूर पण्डित लेखराम वैदिक मिशन के निरीह कार्यकर्ता
अतः इस क्षेत्र में पण्डित लेखराम वैदिक मिशन पण्डित महेन्द्रपाल आर्य जी से हार मानता है.

हमने पूज्य पण्डित लेखराम जी , पण्डित गुरुदत्त जी , स्वामी श्रधानंद जी , पण्डित शांतिप्रकाश जी ठाकुर अमर स्वामी जी आदि के जीवन चरित्र पढ़े लेकिन हमें कही भी कोई ऐसी घटना नहीं मालूम हुयी जहाँ इस पूज्यों को ऐसे शब्दों का प्रयोग करना पढ़ा हो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी ये गालियों की गुलात आपकी ३२ वर्षों की साधना का फल है.आपको इन गालियों के प्रयोग में सिद्धि हासिल है .
पण्डित जी क्या यह तपस्या अनवरत रूप से अभी भी जारी है …….