पण्डित महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया

Mahendra pal arya about arya mantavya

महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया
विगत कुछ महीनों में पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने विभिन्न विषयों को लेकर चलचित्रों का निर्माण किया.
इनमें श्री कृष्ण के बारे में विभिन्न भ्रांतियां, संध्या कैसे करें और कुछ सत्यार्थ प्रकाश के कुछ अंशों के चलचित्र समाहित रहे. स्वाभाविक है कि प्रत्येक चलचित्र का कुछ न कुछ तो शीर्षक रहा ही होगा. इसी प्रकार के एक चलचित्र के शीर्षक को लेकर पण्डित महेंद्रपाल जी की आपत्ति रही.
पण्डित महेन्द्रपाल जी से चलभाष पर वार्तालाप भी इस बारे में किया गया लेकिन …….
सम्माननीय पण्डित जी ने संगठन के सदस्यों को कुछ इन पुष्पों से नवाजा है:
-उल्लू के पट्टे –
– गधे
– हराम जादे
– तुझ जैसे जाहिलों
– ना मालूम किस माँ बाप ने पैदा किए तुझ जैसे जाहिल को
– हराम के पिल्लै
– मिथ्याचारियों
– नालायक
– अगर अपने बाप से जन्मा है तो
– तुम सब बिन बापके आवलाद माने जावगे……….
चरित्र के धनी महेन्द्रपाल जी के इन शब्दों के लिए हम अत्यंत आभारी हैं लेकिन पण्डित जी आपकी ये सप्रेम भेंट हमारे किसी प्रयोजन को सिद्ध करने में असमर्थ है अतः आपकी ये श्रध्दा सुमन रूपी भेंट आपको ही समर्पित है .
पण्डित जी ईश्वर की ऐसी कृपादृष्टि इस संगठन के सदस्यों के ऊपर रही की सभी ने सभ्य धार्मिक माता पिता के यहाँ जन्म लिया चाहे आर्य परिवार हों या पौराणिक .
धार्मिक परिवार में जन्म लेने के अतिरिक्त ईश्वर की कृपा से पालन पोषण और युवावस्था में भी विद्वानों की संगति और मार्गदर्शन के फलस्वरूप आपके इन प्रिय शब्दों के प्रयोग की कभी हमें आवश्यकता नहीं पडी.
व्यक्ति का भोजन सात्विक होना चाहिए ऐसी ही सम्मति सर्वत्र है, स्वभाव पर भी भोजन का अनुकूल व प्रतिकूल असर देखने में आता है. सभी सदस्य आर्य परिवारों से हैं अतः भावावेश में भी ऐसे शब्दों की आवश्यकता हमें कभी अनुभव नहीं हुयी.
हां ! कई बारे मदिरा के आवेश में भी व्यक्ति ऐसे शब्दों का प्रयोग किया करता है लेकिन पुनः यह रोग न तो हमारे किसी सदस्य में है न ही ऐसी हमारी संगति
पण्डित जी के जीवन का एक महत्व पूर्ण भाग मुसलमान परिवार में गुजरा. मांसाहार तो जीवन का हिस्सा रहा ही होगा ( अब तो आर्य हैं …) . संगति भी ऐसी रही होगी.
मदिरा का सेवन तो मुसलमानों में अवैध माना जाता है तो उस अवधि में तो दोजख के भय से ये रोग नहीं लगा होगा उम्मीद है कि आर्य बनने के बाद से तो मदिरा का नाता वैसे भी नहीं रहा होगा
चरित्र के धनी पण्डित महेंद्रपाल जी आर्य जो स्वयं को आर्य भी लिखते हैं और पण्डित भी है तो इस दृष्टि से न तो वो मांसाहार एवं मदिरा के सेवी हो सकते हैं न ही ऐसी संगति उनकी हो सकती है की ऐसे शब्दों का प्रयोग करें.
कई बार व्यक्ति की पारिवारिक स्तिथियाँ ठीक ना होने की वजह से एवं न्यायालयों के चक्करों में उलझ कर मानसिक उत्पीडन झेलते के कारण भी ऐसे शब्दों के प्रयोग का अभ्यस्त हो जाता है परन्तु पंडित जी विद्वान व्यक्ति है वे तो स्वयं कहते है की आर्य समाजीयों को कोर्ट कचहरी के चक्करों से दूर ही रहना चाहिए, तो ऐसा कुछ होना भी सम्भव नहीं दीखता है
इस्लाम व्यक्ति बहुविवाह की भयंकर कुरीति का शिकार है जिसके दुष्परिणामों में से एक मानसिक शांति का खोना है परन्तु ऐसा कुछ भी यहाँ सम्भव नहीं है क्यूंकि पंडित जी आर्य है, ऋषि प्रणीत सिद्धांतों के अनुगामी है तो ऐसा हो यह बात भी असम्भव है ( कुछ व्यभिचारी लोग बहु विवाह की कुरीति का अभी भी अनुसरण करते हैं इन परिवारों में प्राय देखा जाता है की शांती का अभाव होता है और पत्नी पति के दुराचार से तंग आकर न्यायलय की शरण लेती है )
आर्य बनने के बाद तो शैतान के बहकाने का बहाना भी नही चल सकता 🙂
सुना है कई बार पूर्व काल के संस्कार काफी प्रबल होते हैं हो सकता है इसी कारण महेन्द्रपाल जी ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हों.
सात्विक भोजन करने वाले, पवित्र चरित्र आत्मा, ब्रह्मचर्य धारी, वैदिक ग्रहस्थी (एक ही पत्नी से संतुष्ट रहने वाले ) मदिरा के सेवन से कोसों दूर रहने वाले माननीय पण्डित जी द्वारा कहे गए ऐसे शब्दों का हमें पूर्वकालिक संस्कारों के अलावा कोई कारण प्रतीत नहीं होता ( एक आर्य में इन गुणों का समावेश होना स्वाभाविक है और आर्य समाज जहाँ कर्मानुसार वर्ण व्यवस्था है वहां तो इन गुणों का होना पण्डित होने के लिए अत्यावश्यक है )
महेन्द्रपाल जी द्वारा हमारे लिए प्रयोग किये गए इन शब्दों से हमें कोई आघात नहीं पहुँचा है न ही हमारे ऐसी सामर्थ्य है कि हम पण्डित जी की चुनौती को स्वीकार करें .
कहाँ इन शब्दों के प्रयोग में अभ्यस्त सूर्य रूपी प्रभा वाले पण्डित जी और कहाँ इन सबसे दूर पण्डित लेखराम वैदिक मिशन के निरीह कार्यकर्ता
अतः इस क्षेत्र में पण्डित लेखराम वैदिक मिशन पण्डित महेन्द्रपाल आर्य जी से हार मानता है.

हमने पूज्य पण्डित लेखराम जी , पण्डित गुरुदत्त जी , स्वामी श्रधानंद जी , पण्डित शांतिप्रकाश जी ठाकुर अमर स्वामी जी आदि के जीवन चरित्र पढ़े लेकिन हमें कही भी कोई ऐसी घटना नहीं मालूम हुयी जहाँ इस पूज्यों को ऐसे शब्दों का प्रयोग करना पढ़ा हो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी ये गालियों की गुलात आपकी ३२ वर्षों की साधना का फल है.आपको इन गालियों के प्रयोग में सिद्धि हासिल है .
पण्डित जी क्या यह तपस्या अनवरत रूप से अभी भी जारी है …….

22 thoughts on “पण्डित महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया”

  1. मुझे नहीं लगता कि इन अपशब्दों का प्रयोग करने वाले व्यक्ति पंडित महेंद्र पाल आर्य है। मैं youtube पर उनके अनेक व्याख्यान सुन चुका हूं परंतु किसी भी व्याख्यान में ऐसी भाषा नहीं सुनी है। पंडित जी की facebook पर दिखने वाली यह पोस्ट जाली भी तो हो सकती है ।एक ऐसा व्यक्ति जो अपने जन्म से प्राप्त धर्म को अथवा मजहब को छोड़कर एकचित्त होकर वैदिक धर्म और महर्षि दयानंद के मिशन की सेवा में निरंतर जुटा हुआ है उसके बारे में इस पोस्ट की विश्वसनीयता संदिग्ध है।

  2. OUM..
    NAMASTE..
    KRIPAYAA BAAT KO PURI TARAHA SE KHULKAR RAKHIYE TAAKI HUMKO BHI PURI JAANKARI PRAAPT HO,
    PANDIT MAHENDRAPAL ARYA JAISE VIDHWAAN SE AISI BYAVAHAAR KI AASHAA KISIKO NAHIN HAI…!!! MAIN TO UNKO YEK AADARSH MAANTATHA LEKIN YEH KYUN AUR KAISE??!!
    AUR SAMPRADAAYA KI TARAHA AARYASAMAJIYON ME AISI TUCHCHHA BYAVAHAAR SHOBHAA NAHIN DETAA…
    ISHWAR SABKO SHAANTI AUR SADBUDDHI DE…..
    OUM..

    1. पण्डित जी से हमने तो कभी कुछ कहा नहीं
      पता नहीं ऐसा क्यों लिख रहे हैं
      जो उनको आपत्ति थी उसका भी फ़ोन पर बात करके निवारण किया पण्डित जी ने खुद इस सन्दर्भ में पोस्ट डाली थीफिर भी कई दिन से ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं
      अब ये तो वो ही बता पाएंगे
      हमने तो ऐसे अपशब्द सुनने के बाद भी हाथ ही जोड़े हैं
      इसके अतिरिक्त और क्या किया जा सकता हिया

      1. आदरणीय पंडित लेखराम वैदिक मिशन जी,

        क्या यह संभव नही कि किसी परेशानी में हो और जब परेशानी हद पार कर जाती हैं तो व्यक्ति गाली गलोच करता हैं।

        पंडित जी के इस कदम की आलोचना होनी ही चाहिए।

        आप ऋषि दयानंद का मिशन बहुत अच्छे तरीके से चला रहे
        हो।
        पंडित महेंद्र पाल आर्य भी यही कार्य कर
        रहे हैं।
        आर्यो का आपस में बैर…
        योस्मान द्वेष्टि यम् वयं।
        संगच्छध्वं ।
        शायद यही कुछ वेद की शिक्षा है।
        आपकी आपसी फ़ूट और वैमनस्य से ऋषि
        दयानंद के कार्यो को कितना जबर्दस्त सम्बल मिल रहा होगा।
        है न आर्य जी।
        आपसे इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आप युवा हो और पंडित
        जी आपसे हम से बड़े हैं।
        साठ पार कर चुके हैं तो उनका तो व्यवहार बदलना मुश्किल लग रहा है।
        आपसे सबके हित में यही अनुरोध करूँगा क़ि
        विधर्मी भी स्थिति पर नजर बनाये हुए है। और
        अपने समूहों में इसकी चर्चा कर रहे हैं।
        मै आपसे यही अनुरोध करूँगा कि इस पोस्ट को इस साईट से
        हटा दे। यह कही न कही विधर्मियो के हाथ में
        अनजाने में लगा हुआ हथियार ही सिद्ध हो रहा है।
        आप मुझे महेन्द्र पाल जी का तरफदार मत समझना।
        आर्य समाज का नियम भी कहता है
        6. संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात
        शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।
        10. सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी, नियम पालने में
        परतंत्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम पालने
        सब
        स्वतंत्र रहें।
        आप समाज के भले के लिए अपनी निजी मतभेद
        को दूर कर लीजिये।
        और इस साईट से इस आपत्तिजनक लेख को हटा लीजिये।
        साथ ही आप निजी रूप से पंडित जी
        से मिल कर अपने विवाद का निपटारा समाज हित में कर
        लीजिये।

        आपका एक अनुचर
        हिमांशु राठौड़

        हो

        1. नमस्ते हिमांशु जी

          आपके सन्देश के लिए धन्यवाद्
          पण्डित जी व्यर्थ में विवाद खडा कर चुनौती दी तो हमें स्वयं फ़ोन किया था ये उन्होंने खुद पोस्ट में लिखा है
          उन्होंने जो सुझाव दिए वो भी माने गए
          संगठन के पास पूर्णकालिक कार्यकर्ता नहीं हैं इसलिए ऐसे नहीं हो सकता है कार्य उन्होने कहा तुरंत हो जाये
          और ऐसा कोई कार्य भी नहीं था की आवश्यकता हो
          लेकिन उसके बाद अपशब्दों का प्रयोग आरम्भ कर दिया
          फिर भी हमने तो सम्मानपूर्वक उनसे हाथ जोड़ हार ही मानी है कि इस गालियों की गुलात में वो सिद्ध हस्त हैं हम नहीं
          फिर भी इसके बाद उन्होंने जो लिखा है वो तो अभी डाला नहीं वो तो अत्यंत अशोभनीय है

  3. OUM..
    MANASTE..
    BINAA AAG KI DHUWAAN NAHIN NIKALTI….
    KUCHH TO KHICHADI JARUR PAKRAHI HAI, ISTARAHA SAMASHYAA SULJHAAYE NAHIN JAATE JI, SAATH BAITHKE AAPAS ME AALOCHANAA-AATMAALOCHANAA JALDI KARNE KI SUJHAAV DETAA HOON MAI…
    US SARVABYAAPAK ISHWAR ME BISWAASH KARNE WAALE IS TARAHA NAHIN BAAJHTE JI…
    OUM..

    1. सत्य कहा आपने लेकिन हमने तो पण्डित जी के बारे में कभी कुछ लिखा ही नहीं
      पता नहीं पण्डित जी नीचे दिए हुए शब्दों का प्रयोग कर रहे हिएँ
      -उल्लू के पट्टे –
      – गधे
      – हराम जादे
      – तुझ जैसे जाहिलों
      – ना मालूम किस माँ बाप ने पैदा किए तुझ जैसे जाहिल को
      – हराम के पिल्लै
      – मिथ्याचारियों
      – नालायक
      – अगर अपने बाप से जन्मा है तो
      – तुम सब बिन बापके आवलाद माने जावगे……….

  4. पण्डित महेन्द्रपाल ko mai support karta hu..
    unhe hamesha hi sunta hu..
    sabhi hindus ko unhe sunna chahiye..

    i support पण्डित महेन्द्रपाल ji.

  5. पंडित जी ये अभद्र भाषा आपसे उम्मीद न थी वैदिक हो आप और ऋषि दयानंद जी ने ये सिख कभी न दी …..

    बड़ी प्रसन्नता होगी अगर आप इन शब्दों को वापस ले …

    बाकि आप विद्वान् हो ग्रंथो के ज्ञाता हो और सत्य असत्य को जानते हो …

  6. पंडित जी आप जैसेवैदिक विद्वान् को ये भाषा शोभा नही देती ….
    आप आर्य हो और ऋषि की ये सिख नहीं है , आपसे बिनती है कृपया आप अपने शब्दों को वापस ले पंडित जी ये अभद्र भाषा आपसे उम्मीद न थी वैदिक हो आप और ऋषि दयानंद जी ने ये सिख कभी न दी …..

    बड़ी प्रसन्नता होगी अगर आप इन शब्दों को वापस ले …

    बाकि आप विद्वान् हो ग्रंथो के ज्ञाता हो और सत्य असत्य को जानते हो …

  7. OUM…
    NAMASTE…
    AGAR AAP SACHCHAA ARYA AUR PANDIT HAIN, AGAR AAP NE RISHIVAR DEV DAYANAND KI SACHCHI MAARG PAR APNE AAP KO CHALNE WALA MANTE HAIN, AUR US SARVA BYAAPAK PARMATMA KO SACHCHI HRIDAYA SE MAANTE HAIN TO MAI AAPSE VINAMRA NIVEDAN KARTAA HOON -KRIPAYA AISI ASABHYATAA PRAKAT MAT KIJIYE….NAHIN TO ‘ARYA’ TATHAA ‘PANDIT’ KI JO UPAADHI HAI, USKO KALANK LAG JAYEGA..
    PANDITVAR YAHAAN AAIYE AUR KUCHH TO APNI MAN KI BAAT HUMSE BAANT LEN….
    EESHWAR SABKO DHAIRYA DHAARAN KARNE KI KSHEMATAA PRADAAN KARE…
    OUM..

    1. हम आपसे सहमत हिएँ ऐसी भाष्य आर्यात्व् का प्रमाण नहीं हो सकती

  8. .
    I support पण्डित महेन्द्रपाल जी .

    तुम नालायक और झूठे लोग हो।
    सबसे पहले तो तुम लोग सत्यार्थ प्रकाश में ७२ हुरे मिलने की बात करके हिन्दू धर्म को बदनाम करने की कोशिश करते हो।
    फिर खुद गधा , मुंह से मलविसर्जन जैसी अपशब्द बोलते करते हो फिर कोई दूसरा कहता है तो दिखते कितने शरीफ बनते हो और पूरा आर्टिकल लिख देते हो ।
    मैं पंडित जी का अभी FB देख के आया हु सभी कुछ लिखा है वहां।

    एक शुभचिंतक मित्र द्वारा आर्य मन्तव्य बखेड़े पर बढ़िया ले===
    =======================================
    सभी मित्रों को नमस्ते!
    मित्रों आप लोग तो जानते ही होंगे कि फेसबुक पर पंडित महेंद्रपाल आर्य और आर्य मन्तव्य वालों के बीच अपशब्द को लेकर हंगामा हो रहा है. जब मैं पहली बार आर्यमन्तव्य द्वारा पंडित जी के अपशब्दों वाली पोस्ट देखा, तो मैं खुद हैरान हुआ, कि पंडित जी ऐसे अपशब्द क्यों और कैसे कह सकते हैं. क्या कारण था जो पंडित को ऐसे शब्द कहने पड़े. कारण चाहे जो भी हो पंडित जी द्वारा प्रयोग में लाये अपशब्दों का ना मैं समर्थक हूँ और नहीं रहूँ गा.
    परन्तु पंडित जी के अपशब्दों के साथ, आर्य मन्तव्य द्वारा पंडित जी की 72 हूरों वाली पोस्टों पर किया गया व्यवहार उतना ही निन्दनीय और इस विवाद की जड़ है. जिस से यह बखेड़ा खड़ा हुआ.
    मैं ऐसा क्यों और कैसे कह रहा कृपया सभी मित्र बिना पक्षपात के एक बार मेरे विचार पुरे पढ़ लें.
    कुछ दिन पहले आर्यमन्तव्य द्वारा YouTube पर डाले विडियो को फेसबुक के माध्यम से शेयर किया गया. जो सत्यार्थ प्रकाश के १४ समुल्लास के 9वें समीक्षा पर था. आर्य मन्तव्य द्वारा उस विडियो और पोस्ट के शीर्षक में हूरों को 72 की संख्या के साथ दिखाया गया था. जो अप्रमाणिक था.
    जिस पर पंडित महेंद्रपाल आर्य जी ने आर्यमन्तव्य को पोस्ट द्वारा संशोधन करने या विडियो हटाने का आग्रह किया. पंडित जी का पक्ष था “जो बात ऋषि ने नहीं लिखी या कुरान में नहीं मिलती, उस अप्रमाणिक बात को हमें ऋषि के नाम से नहीं लिखना चाहिए, इससे मुस्लिम समुदाय को अप्रमाणिक बात पकड़ने का मौका मिल जाये गा”
    तो आर्य मन्तव्य की ओर से लक्ष्मण जी की कॉल आती है और कहा जाता है, यशवंत महेता से बात करने केलिए.
    और पंडित जी को आश्वासन दिया जाता है कि हम कल तक पोस्ट को ठीक कर लें गे. जो दुसरे दिन भी ठीक नहीं की गयी. और ना ही कोई प्रमाणिकता सिद्ध की गयी.
    तीसरे दिन पंडित जी ने दोबारा एक पोस्ट डाली. पर दोनों पोस्ट्स पर को उत्तर नहीं मिला. अपितु गौरव आर्य (जो आर्य मन्तव्य के मुख्य कार्यकर्ताओं में है) पंडित जी द्वारा डाली गयी पोस्ट्स की कमेंट्स में, चार से पांच बार यह तो लिख दिया, कि ‘पंडित जी यह विडियो देखो, यह भी आर्यमन्तव्य की ओर से डाला गया है, यह देखो ऐसे आर्टिकल्स भी आर्य मन्तव्य की ओर से डाला गया है …” आदि.
    यहाँ पर कुछ बिंदु विचारणीय हैं.
    · आप सब जानते हैं कि इस समय पूरी आर्य समाज व हिन्दू जाती में इस्लाम का मुंह बंद करने को जो साहस पंडित जी में और किसी में नहीं. और व इस्लाम और वैदिक विचार धारा के धुरंधर हैं.
    · यदि वे इस्लामिक विचार धारा पर एक प्रमाणिक तथ्य बता रहे हैं तो आर्यमन्तव्य का कर्तव्य था कि वे पंडित जी की बात का मान रखकर पोस्ट को एडिट कर देते, पर वह नहीं किया गया, और आज तक भी नहीं कर सके.
    · अगर आर्यमंतव्य की ओर से फ़ोन पर यह आश्वासन दिया गया था.. तो पूरा करना चाहिए था.
    · अगर पंडित जी गलत थे तो आर्यमंतव्य को अपनी ओर से पोस्ट के माध्यम से पंडित जो प्रमाण देने चाहिए थे. पर ऐसा आज तक नहीं किया गया.
    · और फिर गौरव को पंडित जी पोस्ट में जाकर, हठधर्मी नहीं करनी चाहिए थी. (जिस को पंडित जी पोस्ट्स पर जाकर आप सभी देख सकते हैं)
    इन सब बातों के बाद पंडित जी ने वह पोस्ट डाली, जिस पर पंडित जी ने अपने पक्ष में यह कहते लिखा कि जैसे को तैसा कहना ही पढ़ता है. (क्योंकि अर्यमन्तव्यवालों की ओर से ऐसे तीखे हमले होते रहे हैं, जैसे किसी को गधा कहना, मुंह से मल निकालना, मुंह से मल विसर्जित करना आदि, सभी मित्र आर्यमन्तव्य के टाइमलाइन पर जाकर देख सकते हैं.)
    यहाँ मेरा एक प्रश्न उन सब मित्रों से हैं, जिन्होंने पंडित जी की भाषा को अपशब्द बोलते हुए, अपनी राय राखी है . तो उन्होंने कभी आर्यमन्तव्य वालों को, किसी को पशु कहते, मुंह से मल विसर्जन का कहते हुए क्यों नहीं रोका, या टोका?
    और एक बात और भी है, कि आर्यमन्तव्य द्वारा व्यक्तिगत टिप्पणी वाली पोस्ट केवल पंडित जी के लिए पहली नहीं है, पर अनेकों के लिए व्यक्तिगत टिप्पनियों वाली बहुत पोस्ट और कमेंट्स मिल जाएँ गी.
    चलिए अब विचार करते हैं, पंडित जी और आर्य मन्तव्य वालों के सम्बन्ध पर.
    मुझे याद है, एक बार दिल्ली प्रतिनिधि सभा के पूर्व प्रधान आचार्य राजसिंह द्वारा जब यज्ञ से मनोकामना पूर्ण के विषय पर शास्त्रार्थ होने की बात चली थी तो यही पंडित जी को आर्यमन्तव्य वालों ने अपनी ओर से चुना था…. और आप सब को यह तो जानकारी अवश्य होगी कि पंडित जी उस समय भी, मुस्लिम अदि को अपशब्दों से संबोधित करते थे… तो क्या उस समय पंडित जी अपशब्द इनको नहीं दिखते थे..???
    इन सब बातों पर विचार करने के बाद निष्कर्ष निकलता है कि
    · हठधर्मी का प्रदर्शन हुआ है, जो आर्यमन्तव्य वालों को नहीं करना चाहिए था.
    · और पंडित जी पहली दो पोस्टों में अपना पक्ष सामान्य रूप में रखा, परन्तु जिस प्रकार से उनकी पोस्ट्स पर कमेंट्स में जाकर पंडित जी को चिढाने का काम किया गया, उसीका फल वह पोस्ट थी जो आज आर्यमन्तव्य वाले सभी को दिखा रहे हैं. मैं फिर यहाँ पर यह कहते हुए भी पंडित जी द्वारा प्रयोग में लाये अपशब्दों का समर्थन बिलकुल भी नहीं कर रहा.
    मेरा सभी मित्रों से अनुरोध है कि बिना दोनों पक्षों को जाने अपना निर्णय मत दें. और ना ही किसी के परिवार के बारे में अपशब्द बोलें. मेरा स्वाध्याय और अनुभव कहता है .. पंडित महेंद्रपाल आर्य हमारे भारत देश की वह निधि है जो पुरे संसार में अपना नाम रखती है .. आदर के साथ हमें मिलकर उनको अनुरोध करना चाहिए के वे विद्वान हैं. और उनके आचरण जो हमारे लिए अनुकरणीय बने, वैसा शास्त्रोक्त रूप से बरतें.
    और आर्यमन्तव्य से अनुरोध करें, अपने पवित्र कार्य को, व्यक्तिगत ना करके, हठधर्मी का त्याग करके, वेदप्रचार व ऋषि मिशन को आगे बढ़ाने में उर्जा व्यय करे.

    1. हमने कहाँ लिखा की हिन्दू धर्म में ७२ हरें हैं ?
      आपको तो पता ही नहीं मामला क्या है

      आपने इस लेख में लिखा है “मुझे याद है, एक बार दिल्ली प्रतिनिधि सभा के पूर्व प्रधान आचार्य राजसिंह द्वारा जब यज्ञ से मनोकामना पूर्ण के विषय पर शास्त्रार्थ होने की बात चली थी तो यही पंडित जी को आर्यमन्तव्य वालों ने अपनी ओर से चुना था…. और आप सब को यह तो जानकारी अवश्य होगी कि पंडित जी उस समय भी, मुस्लिम अदि को अपशब्दों से संबोधित करते थे… तो क्या उस समय पंडित जी अपशब्द इनको नहीं दिखते थे..???

      ये सरासर झूठ है :

      “यही पंडित जी को आर्यमन्तव्य वालों ने अपनी ओर से चुना था” – ये सरासर झूठ है .
      पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने पण्डित जी से कोई बात नहीं की
      पण्डित लेखराम वैदिक मिशन की तरफ से आचार्य रामचंद्र जी थे . जिनका इस सन्दर्भ में वार्तालाप भी हुआ था . ये झूठ के वाहक पुरानी पोस्ट देख सकते हैं की उनमें पण्डित महेंद्र पल जी का नाम है या आचार्य रामचंद्र जी का

      पोस्ट का स्क्रीन शॉट लेख में संलग्न है

  9. Namaste,
    I think it is shear foolishness to bring such topic in the media.
    It is disgraceful to give heading such as पण्डित महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया JUNE 24, 2016 RISHWA ARYA.
    It only shows a meaningless, mindless, presentation of these wordings to write – पण्डित महेन्द्रपाल जी से पण्डित लेखराम वैदिक मिशन हार गया, noting is gained from these kind of articles- it is mere waste of time , efforts and the resources to promote positive image in the society to attract many more souls, rather than keep on distracting and loosing the audience.
    We even cannot learn fro mChristians – how they stick to yo u to convert one soul of Hindus.
    This way you are diverting any new reader to your magazine or to Arya Samaj.
    In order to develop cohesive approach for the society, the publisher, the editor of Aryamantvya need to stay away from such divining and destroying strategies. Rather these editors or publisher use to their wit to promote the positive brotherly peaceful proliferating environment full of praise and productive use of this e-magazine Aryamantya.
    Even if some one has used some words which are not conducive to be used in civilized and socially accepted way then there are means to sit face to face to find what exactly happened and how to resolve these issues rather then promoting, insults between various sections of Arya Samaj and making one party humiliated – it is not the spirit of promoting friendship, solidarity, and brotherhood and family hood to progress further.
    I wish who soever gave such heading and very inappropriate reproduction are equally at fault according to Manu Smrity – those who kill cow or other innocent animal, those distribute and those who transport , sell and consume are all equally responsible for the crime of killing. If this formula is applied here then the writer, publisher and the reader- consumer are equally at fault unless there is some one to raise head and attempt to correct ominous situation and prevent further damage of social persona of Arya Samaj. These Arya Samajis keep on fighting and writing these kind of wasteful articles that merit no further reading.

    If these kind of petty articles are written then I will request the editors and writers of Aryamantvya to please do not email me your magazine and remove my email from your records, because I do not learn any thing from these kind of petty and very cheap street type of fighting articles.

    I always look forward to read it, as I learn many new words and articles of wisdom from Aryamantvya; if you can email me the article – Heydrabad Book Exhibition and Muslim books stall discussion, I will be highly obliged.
    Many Thanks for let me write , and hopefully please publish in your e-magazine to restart a positive approach to spread Vedic Dharma.

  10. इतनी छोटी टिपड़ी से घबरा गए उस व्यक्ति पर क्या गुजरती होगी जो कट्टरपंथियों की हिट लिस्ट में है दुनिया के हर मुल्क से उस पर रोज धमकिया आती है जान लेने का प्रयास जारी है आप के कार्यो के हम भी प्रसंसक है पर पंडित जी के सामने आप कुछ नही है ये बात कड़वी जरूर है पर उनके कार्य जमीन पर होते है बलाग पर नही

  11. हिम्मत हे तो का साथ दे टांग खीचने Ki koshis N Kare

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