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हम रोजाना यह सुनते हैं लोगों से कि हर कार्य परमात्मा की इच्छा से होता है। उसकी मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिलता और हर एक प्राणी की आयु निश्चित है। क्या यह तथ्य सही है?

हम रोजाना यह सुनते हैं लोगों से कि हर कार्य परमात्मा की इच्छा से होता है। उसकी मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिलता और हर एक प्राणी की आयु निश्चित है। क्या यह तथ्य सही है?

समाधान:- 

कुछ बातें अन्धश्रद्धा एवं अतिरेक में ऐसे बोल दी जाती हैं, जिन बातों को साधारण लोग सुनते हैं तो उनको अच्छा और ठीक लगता है। ये अच्छी और ठीक लगने वाली बातें सिद्धान्ततः गलत होती हैं। ऐसी ही यह बात है कि ‘‘परमात्मा की इच्छा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता।’’ यह कहना नितान्त वेद विरुद्ध है। यदि ऐसा ही मानने लग जायें तो कर्मफल सिद्धान्त खण्डित होगा, क्योंकि जो कुछ संसार में कर्म होगा, वह परमात्मा की इच्छा से होगा और जिसकी इच्छा से कर्म हो रहा है तो फल भी उसी को मिलना चाहिए, अर्थात् जीव को अच्छे-बुरे का फल न मिलकर परमात्मा को मिलना चाहिए, किन्तु ऐसा होता नहीं है।

इसलिए जो कर्म जीवात्मा करता है, वह अपनी इच्छा से करता है, न कि सर्वथा परमात्मा की इच्छा से, इसलिए कर्मों का फल भी कर्म करने वाला जीवात्मा ही भोगता है। यदि ऐसा सिद्धान्त मान कर चलने लग जायें तो संसार में जो एक दूसरे के प्रति अन्याय करते हैं, जैसे किसी ने चोरी की, हत्या की, अपमान किया आदि करने पर ऐसा करने वाले को दण्ड भी नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि यह कर्म उसने अपनी इच्छा से न करके ईश्वर की इच्छा से किया है, इसलिए यह व्यक्ति दण्ड का भागी नहीं होना चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं होता अर्थात् अपराधी को दण्ड दिया जाता है, इसलिए यह कहना कि ‘‘सब काम परमात्मा की इच्छा से होते हैं’’ गलत है।