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एक ऐतिहासिक ईश्वर-प्रार्थना

एक ऐतिहासिक ईश्वर-प्रार्थना

(यह भजन एक लबे समय तक समाजों में भक्तिभाव से गाया जाता था। इसके रचयिता धर्मवीर महाशय रौनकराम जी ‘शाद’ भदौड़ (बरनाला) निवासी थे जिन्होंने बड़े तप, त्याग व कष्ट सहन करके आर्य समाज में एक नया इतिहास रचा था। काल कोठरी में भी वह नित्य प्रति अपना यह गीत मस्ती से गाया करते थे। उनकी मस्ती, चित्त की शान्ति से जेल रूप नर्क-स्वर्ग बन गया। राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’)

हे जगत् पिता, हे जगत् प्रभु

मुझे अपना प्रेम और प्यार दे।

तेरी भक्ति में लगे मन मेरा,

विषय वासना को विसार दे।।

मुझे ज्ञान और विवेक दे,

मुझे वेदवाणी में दे श्रद्धा।

मुझे मेधा दे, मुझे विद्या दे,

मुझे बल दे और आरोग्यता।

मुझे आयु दे, मुझे पुष्टि दे,

मुझे शोभा लोक के मध्य दे।।

मुझे धर्म कर्म से प्रेम दे,

तजूँ सत्य को न कभी मैं।

कोई चाहे सुख मुझे दे घना,

कोई चाहे कष्ट हजार दे।।

कभी दीन होऊँ न जगत् में मैं,

मुझे दीजे सच्ची स्वतन्त्रता।

मेरे फंद पाप के काट दे,

मुझे दुःख से पार उतार दे।।

रहूँ मैं अभय न हो मुझको भय,

किसी मित्र और अमित्र से।

तेरी रक्षा पर मुझे निश्चय हो,

मेरे वह रूपन को तू टार दे।।

मुझे दुश्चरित से परे हटा,

सतचरित का भागी बना मुझे।

मेरे मन को वाणी को शुद्ध कर,

मेरे सकल कर्म सुधार दे।।

मेरा हृदय कष्ट भय रहित हो,

नित्य मिले मुझे शान्ति हर जगह।

मेरे शत्रुगण सुमति गहें,

कुमति को उनकी निवार दे।।

तेरी आज्ञा में मैं चलूँ सदा,

तेरी इच्छा में मैं झुका रहूँ।

कभी डूबे ‘शाद’ अधीरता में,

तो तू उसको भी उबार दे।।