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क्या किसी माता के गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अंग में उत्पन्न दोष जैसे- दिल में छेद हो जाना, अन्धता आदि माता-पिता के शारीरिक दोष का परिणाम है अथवा माता, चिकित्सक आदि किसी की त्रुटि का परिणाम है अथवा दोनों है अथवा शिशु के पूर्व जन्म मे किये गये किसी पाप का फल है?

क्या किसी माता के गर्भस्थ शिशु के  शारीरिक अंग में उत्पन्न दोष जैसे- दिल में छेद हो जाना, अन्धता आदि माता-पिता के शारीरिक दोष का परिणाम है अथवा माता, चिकित्सक आदि किसी की त्रुटि का परिणाम है अथवा दोनों है अथवा शिशु के पूर्व जन्म मे किये गये किसी पाप का फल है?

समाधान-

 इस दूसरे प्रश्न का उत्तर भी उसी प्रकार लिखते हैं, गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अंग उत्पन्न दोष का कारण तीनों हो सकते हैं- माता-पिता, चिकित्सक वा बच्चे का कर्म। इन तीनों में उत्पन्न हुए दोष का मुखय कारण उस बच्चे के कर्म हैं। अपने कर्मों के कारण वह जीवात्मा ऐसे दोषयुक्त शरीर को प्राप्त होता है। जन्मान्धता, जन्म से मूक, किसी अन्य अंग में विकार, ये सब कर्मों का ही फल है। हाँ, विशेष पुरुषार्थ से इनको कुछ ठीक अवश्य किया जा सकता है। कोई है ही नहीं अथवा ठीक होने की सभावना नहीं, उसको छोड़कर।

बच्चे में कुछ विकार माता के कारण भी हो सकते हैं। गर्भ में शिशु होते हुए यदि माता का उठना, बैठना आदि ठीक न हो अथवा खान-पान ठीक न हो, तो बच्चे में विकार आ सकते हैं। इसी प्रकार यदि चिकित्सक औषध विपरीत दे देता है, तो उससे भी विकार की समभावना है, इससे हुई हानि की क्षतिपूर्ति परमात्मा करता है। फिर भी इस प्रकार के दोष होने का मुखय कारण तो उस आत्मा के कर्म ही रहेंगे, उसके कर्मों के कारण इस प्रकार के माता-पिता मिले, जो सावधानी नहीं रख रहे, ऐसा परिवेश मिलना कर्मों पर ही आधारित है।