Tag Archives: aryasamaj kaa ek adwitiy daani saput

आर्यसमाज का एक अद्वितीय दानी सपूत

आर्यसमाज का एक अद्वितीय दानी सपूत

आर्यसमाज ने एक शताज़्दी में बड़े विचित्र दीवानों को जन्म दिया है। इतिहास का बनाना बड़ा कठिन है और उसे सुरक्षित रखना और भी कठिन है। हमारे बड़ों ने जीवन देकर इतिहास तो

बना दिया, परन्तु हमने इतिहास को सुरक्षित नहीं रखा।

आर्यसमाज के इतिहास-लेखक सुशिक्षित व्यक्तियों, विद्वानों तथा प्रमुख नेताओं की तो चर्चा करते हैं, परन्तु ग्रामीण कृषकों, शिल्पकारों, दुकानदारों और वे भी बहुत छोटे दुकानदार जिन्होंने

प्राणपन से समाज की सेवा की, उनके उल्लेख के बिना इतिहास अधूरा तथा निष्प्राण ही रहेगा। आर्यसमाज के निर्माण में सब प्रकार के लोगों ने योगदान दिया है। इसलिए इस पुस्तक में

हमने सब क्षेत्रों के सब प्रकार के भाइयों की चर्चा करने का प्रयास किया है।

जिन लोगों ने आर्यसमाज का स्वर्णिम इतिहास बनाया है, उनमें एक थे महाशय भोलानाथ तूड़ीवाले (पशुओं का नीरा-चारा बेचनेवाले)-आप लाहौर के बच्छोवाली समाज के श्रद्धालु सदस्य

थे। सब कार्यों में आगे रहते थे। बस, सूचना मिलनी चाहिए। धन्धा बन्द करके भी पहुँच जाते थे। शिक्षा अल्प थी। सत्संगों में नियमित रूप से आते थे। किसी भी शुभ कार्य के लिए जब दान माँगा जाता तो रसीद खुलते ही आप सबसे पहले अपना दान दिया करते थे। उत्सव पर भोजन की व्यवस्था भी आप ही करते थे। सैकड़ों व्यक्ति बच्छोवाली का उत्सव देखने के लिए प्रान्त और प्रान्त के बाहर से भी आ जाते। सबको भोजन करवाया जाता था। उत्सव अब नगर पालिका के लंगे मैदान में रखा जाने लगा। एक बार महाशय भोलानाथजी ने दान लिखवाया कि अब भोजन का कुछ व्यय वे देंगे। फिर वे प्रति वर्ष भोजन का व्यय देने लगे। भोजन पर 258।

बहुत व्यय आने लगा। आर्यसमाजवालों ने कहा कि यह भार बँटना चाहिए, परन्तु भोलानाथ न माने।

एक बार चौधरी रामभजदज़जी ने वेदी पर यह घोषणा की कि इस समय भोजन के लिए ऋषि लंगर में पाँच सहस्र अतिथि पहुँच चुके हैं। भोलानाथजी से बहुत कहा गया, परन्तु इस नरकेसरी ने हिज़्मत नहीं हारी। वे कहते हैं सारा व्यय मैं ही दूँगा। उस ऋषि भक्त ने तब भी पूरा भोजन व्यय दिया। पाठकवृन्द! इस प्रकार का दानी तथा बलिदानी मिलना यदि असज़्भव नहीं तो कठिन अवश्य है।