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अम्बेडकरजी द्वारा नमस्ते अभिवादन का प्रयोग: कुशलदेव शास्त्री

महर्षि दयानन्द और उनके द्वारा स्थापित आर्यसमाज ने अपने प्रारम्भिक काल से ही अभिवादन के रूप में प्राचीन, शास्त्रीय, सार्वजनीन नमस्ते का उद्धार और प्रचार किया है। अमर शहीद पं0 रामप्रसाद बिस्मिल के अनुसार ”जब आर्यसमाज का यह प्रयत्न कुछ लोगों को ऊँच-नीच का भेदभाव नष्ट करने वाला प्रतीत हुआ, तो उन्हें यह सहन नहीं हुआ कि निम्न वर्ण के लोग उच्चवर्णियों की तरह नमस्ते करें। इसलिए इन संकीर्ण रूढ़िवादियों ने ’गरीब निवाज‘, ’पालागन‘, ’जुहार‘ आदि को बलपूर्वक प्रचलित रखना चाहा।“ डॉ0 अम्बेडकरजी ने भी इस बात पर खेद प्रकट किया है कि ’ईस्ट इण्डिया कम्पनी‘ के काल में ’महाराष्ट्र की निम्न जातियों द्वारा‘ ऊँची जाति के बराबर आने के प्रयत्न उन्नत जातियों द्वारा नष्ट कर दिये गये। सुनारों ने जब उच्च कुलोत्पन्न व्यक्तियों की तरह नमस्कार करना चाहा, तो उन्होंने कम्पनी की ओर से उनके नमस्कार पर पाबंदी के आदेश निकलवा दिये थे। आर्यनरेशों और पं0 आत्मारामजी अमृतसरी जैसे आर्यसमाजियों के सम्पर्क में आकर श्री भीमरावजी अम्बेडकर ने ’जोहार‘ के स्थान पर ’नमस्ते‘ अभिवादन को स्वीकार तो कर लिया था, पर न जाने बाद में ऐसी कौन-सी परिस्थितियाँ पैदा हुईं, जिस कारण उन्होंने फिर से ’नमस्ते‘ के स्थान पर ’जोहार‘ अभिवादन को स्वीकार किया। डॉ0 अम्बेडकरजी के व्यक्तित्व और कृतित्त्व के विद्वान् समीक्षक डॉ0 गंगाधर पानतावणेजी के कथनानुसार तो डॉ0 अम्बेडकरजी ने अपने जीवन के अन्त में आधुनिक बौद्धों में प्रचलित ’जय भीम‘ अभिवादन भी अपना लिया था। जबकि इस अभिवादन का ’भीम‘ शब्द डॉ0 भीमराव अम्बेडकरजी के नाम का ही मूल अंश है। प्रत्येक बौद्ध ’जय भीम‘ कहते वक्त एक प्रकार से डॉ0 अम्बेडकर के विचारों के विजयी होने की मनोभावना को ही व्यक्त करता है।

 

  माननीय अम्बेडकर जी द्वारा ’नमस्ते‘ अभिवादन अपना लेने की पुष्टि उनके ही द्वारा लन्दन से भेजे गये तीन पत्रों से होती है। पहले दो पत्र उन्होंने अपने घनिष्ठ सहयोगी और सचिव श्री सीताराम नामदेव शिवतरकर को भेजे हैं, और तीसरा पत्र श्री अम्बेडकरजी ने अपनी सहधर्मिणी रमाबाई को लिखा है। डॉ0 अम्बेडकरजी की अभिवादन शैली के कुछ नमूने काल क्रमानुसार इस प्रकार हैं –   

 

 

 

 

  1. अक्टूबर, 1920, प्रिय शिवतरकर, नमस्ते, 10 जून 1921-राजमान्य राज्यश्री शिवतरक यांस नमस्ते/25, नवम्बर-1921 प्रिय रामू (श्रीमतीरमाबाई भीमराव अम्बेडकर) नमस्ते/12, जून 1927, रा0 रा0 मुकुंदराव पाटिल यांस अनेक जोहार।

डॉ0 बाबासाहब अम्बेडकरजी के सहयोगी श्री सीताराम नामदेव शिवतरकर सन् 1933 से 1936 की कालावधि में आर्यसमाज लोअर परल, मुम्बई के प्रधान थे और डॉ0 अम्बेडकरजी भी इस आर्यसमाज में पधारे थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार मुम्बई के लोअर परल आर्यसमाज और उनके पदाधिकारियों के साथ माननीय डॉ0 अम्बेडकरजी के स्नेहिल सम्बन्ध थे। (आर्यसमाज लोअर परल सुवर्ण महोत्सव स्मरणिका ख्मराठी, सन् 1977)।