स्वर्णिम प्रेरक इतिहास को जानो व मानोः राजेन्द्र जिज्ञासु

स्वर्णिम प्रेरक इतिहास को जानो व मानोः- जातियों, राष्ट्रों व संस्थाओं को जगाने व अनुप्राणित करने के लिये इतिहास शास्त्र का भी विशेष महत्त्व है। इतिहास तोता-मैना की किस्सा कहानी मात्र नहीं है। यह भी एक शास्त्र है। महर्षि ने तभी तो पूना में इतिहास शास्त्र पर कई व्याख्यान दिये। आर्यसमाज की इस समय मात्र १४१ वर्ष की आयु है। आर्यसमाज के गौरवपूर्ण इतिहास की सुरक्षा करने वाले चार विचारक व दूरदर्शी नेता हुए हैं- १. महात्मा मुंशीराम जी, २. आचार्य रामदेव जी, ३. स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी तथा ४. पं. विष्णुदत्त जी। जब मैं पूज्य स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी व पं. विष्णुदत्त जी का इस प्रसंग में नाम लेता हूँ तो कुछ अदूरदर्शी मन्दभागी मन ही मन में खीजते व सटपटाते हैं। जिनका उद्देश्य ही आर्यसमाज के इतिहास को रौंदना हो वे इतिहास के विद्यार्थी राजेन्द्र जिज्ञासु के सत्य कथन को भला कैसे सह सकते हैं?
देश में कुछ व्यक्तियों ने घर वापिसी का शोर मचाया। झट से आर्यसमाज के पत्रों में शुद्धि आन्दोलन के अग्रणी आर्यों के नामों की सूची में किसी ऋषिदेव का नाम दे दिया गया। इस नाम का इस क्षेत्र में कोई व्यक्ति हुआ ही नहीं। ऋषि जी के पश्चात् पहली महत्त्वपूर्ण शुद्धि परोपकारिणी सभा द्वारा अब्दुल अज़ीज काज़ी फाज़िल की थी। वह उच्च पद पर आसीन अधिकारी थे। यह इतिहास हटाया गया। छिपाया गया। हमने सप्रमाण खोज दिया।
स्वामी श्रद्धानन्द जी नवम्बर १९२६ को निज बलिदान से मात्र एक मास पूर्व लाहौर बच्छोवाली समाज के उत्सव पर गये। पूज्य स्वामी सर्वानन्द जी सभा में उनके ठीक सामने बैठे सुन रहे थे। स्वामी जी ने सबको अन्तिम नमस्ते कही और यह भी कहा कि अब आपसे मिलन नहीं होगा। यह महाराज की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। इतिहास का, शोध का शोर मचाने वाले क्या जानें। दूसरे समाज ने भी उनका प्रवचन कराया। इस स्वर्णिम इतिहास को छिपाया गया या नहीं? गुरु के बाग के मोर्चा में जज को स्वामी श्रद्धानन्द जी के अभियोग में मनुस्मृति विशेष रूप से पढ़नी पड़ी। इतिहास रौंदने वाले इस घटना को क्यों छिपाते आ रहे हैं? या कहें कि वे इसे जानते ही नहीं। इसका प्रमाण (स्रोत) परोपकारिणी सभा के पास मिलेगा। न्यायाधीश ने दण्ड सुनाया तो भक्तों की भारी भीड़ सत्गुरु स्वामी श्रद्धानन्द जी के चरण स्पर्श करने को टूट पड़ी। कोर्ट से बाहर वृक्षों के नीचे महाराज को भक्तों के बीच आने दिया गया। देशवासियों को मुनि महान् ने क्या कहा-यह हम फिर बतायेंगे। नये नये उछलकूद करने वाले स्कालरों को मेरे इस कथन का प्रतिवाद करने की खुली छूट है।

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