सभी इन्द्रियां शक्तिशाली हों ..

सभी इन्द्रियां शक्तिशाली हों ..
मन्त्र पाठ : –
वाणम आसन नसों: प्राणश्च्क्शुरक्ष्नो: श्रोत्रं कर्णयो: |
अपलिता: केशा अशोना दंता बहु बाह्वोर्बलम ||१|| || अथर्ववेद १९. ६०, १ ||
ऊर्वोरोजो जन्घ्योर्जव: पादयो: प्रतिष्ठा |
अरिश्तानी में सर्वात्मानिभ्रिष्ट: || || अथर्ववेद १९
व्याख्यान : –
संस्कृत में सुभाषित है कि ” धर्मार्थकामोक्षानामारोग्यम मुलामुत्त्मम “| धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष इस चतुर्वर्गारुपी पुरुषार्थ का मूल आरोग्य है | जहाँ निरोगता है, वहां धर्म है , धन है , सांसारिक सुख है और मुक्ति है | मनुष्य का शरीर स्वस्थ होगा तो सभी कार्य सरलता से हो सकेंगे | यदि मनुष्य रोगी या अस्वस्थ है तो न वह यज्ञ , पूजा – पाठ , वेदाध्ययन आदि धर्म कर सकेगा , न वह धन कमा सकेगा , न सुखों का भोग कर सकेगा और न योगसाधना कर सकेगा , जिससे मुक्ति प्राप्त हो | इस लिए शारीरिक स्वास्थ्य कि और ध्यान देना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है | मन्त्र में इसकी और ही ध्यान दिलाया गया है कि वाणी में शक्ति हो, नाक मैं सूंघने कि शक्ति हो, आँखों में देखने की शक्ति हो , बाल सफ़ेद न हों, दन्त दूषित न हों , भुजाओं में बल हो , जंघा पिंडली और पैरों में गति शक्ति और सफुर्ती हो | इस प्रकार शरीर के सारे अवयव सुपुष्ट हों | साथ ही मनुष्य की आत्मा में उत्साह का पूर्ण संचार हो , निराशा का नाम न हो | ह्रदय में कोई दूषित विचार न आवें , जिससे कभी भी पतन हो |

आभार

अशोक आर्य

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