रचकर नया इतिहास कुछ
जब तक है तन में प्राण तू
कुछ काम कर कुछ काम कर।
जीवन का दर्शन है यही
मत बैठकर विश्राम कर॥
मन मानियाँ सब छोड़ दे,
इतिहास से कुछ सीख ले।
पायेगा अपना लक्ष्य तू,
मन को तनिक कुछ थाम ले॥
जीना जो चाहे शान से,
मन में तू अपने ठान ले।
ये वेद का आदेश है,
अविराम तू संग्राम कर॥
रे जान ले तू मान ले,
कर्•ाव्य सब पहचान ले।
रचकर नया इतिहास कुछ,
तू पूर्वजों का नाम कर॥
भोगों में सब कुछ मानना,
जीवन यह मरण समान है।
इस उलटी-पुलटी चाल से,
न देश को बदनाम कर॥
रचयिता—राजेन्द्र ‘जिज्ञासु
कविता अच्छी लगी। लेखक महोदय को हार्दिक धन्यवाद। सादर।
यह घटना पहले भी पढ़ी थी। पंडित गणपति शर्मा जी पर एक लेख भी लिखा था। पंडित जी का पूरा जीवन आदर्शों से भरा हुआ है। वह महर्षि दयानंद जी के प्रमुख अनुयायियों में से एक थे। हो सकता है मैं भी एक दो दिन में उन पर एक लेख लिखूं। प्राध्यापक श्री जिज्ञासु जी को इस संछिप्त लेख के लिए धन्यवाद।