पुस्तक – परिचय पुस्तक – जिज्ञासा समाधान

पुस्तक – परिचय

पुस्तक – जिज्ञासा समाधान

लेखक आचार्य सत्यजित्

प्रकाशक वैदिक पुस्तकालय, दयानन्द आश्रम,

केसरगंज, अजमेर (राज.)

पृष्ठ ३१८            मूल्य – १०० रू. मात्र

जिज्ञासा पैदा होना मनुष्य की विचारशीलता का द्योतक है, जब व्यक्ति किसी विषय पर विचार करता है तब उस विषय में जो शंका उत्पन्न होती है, उस शंका का निवारण करने के लिए अपनी शंका को रखना, पूछना जिज्ञासा है, जानने की इच्छा है। जब व्यक्ति विचार शून्य होता है, अथवा जैसा जीवन चल रहा उसी से संतुष्ट है, तब व्यक्ति के अन्दर कुछ विशेष जानने की इच्छा नहीं रहती है। किन्तु विचारशील मनुष्य अवश्य जानने की इच्छा रखता है।

संसार को देख व्यक्ति इसकी विचित्रता के विषय में विचार करता है, इसके आदि-अन्त के विषय में सोचता है, यह अद्भुत संसार कैसे बना, किसने बनाया आदि, जिज्ञासा पैदा होती है। अपने आप को देख जिज्ञासाएं उभरने लगती हैं, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, किसने मुझे इस शरीर में प्रवेश कराया है, क्यों कराया है आदि-आदि जिज्ञाएं मनुष्य मन में पैदा होती हैं। हमें दुःख क्यों होता है, दुःख का कारण क्या है, कर्म फल कौन देता है, ईश्वर है या नहीं, ईश्वर का स्वरूप कैसा है, क्या उसी ने संसार बनाया अथवा अपने आप बन गया ये सब जिज्ञाएं विचारशील मनुष्यों के अन्दर उत्पन्न होती रहती हैं। इन जिज्ञासाओं को शान्त कर व्यक्ति सन्तोष की अनुभूति करता है, अपने में ज्ञान की वृद्धि को अनुभव करता है।

जिज्ञासा समाधान की परम्परा वैदिक धर्मियों में विशेषकर पायी जाती है। आर्य समाज में जिज्ञासा समाधान का क्रम महर्षि दयानन्द के जीवन काल से लेकर आज पर्यन्त चला आ रहा है। परोपकारिणी सभा का मुख पत्र ‘परोपकारी’ पत्रिका इस कार्य को विशेष रूप से कर रही है। परोपकारी पत्रिका के अन्दर जिज्ञासा समाधान नामक स्तम्भ, वैदिक सिद्धान्तों में निष्णान्त, जिज्ञासा का समाधान करने मे सिद्धहस्त, वैदिक दर्शनों उपनिषदों व व्याकरण विद्या के धनी, उच्च आदर्शों को सामने रखकर चलने वाले, ऋषि के प्रति निष्ठावान् श्रद्धेय आचार्य सत्यजित् जी ने प्रारम्भ किया। इस स्तम्भ के प्रारम्भ होने से आर्य जिज्ञासुओं की जिज्ञासा शान्त होने लगी। जिज्ञासुओं ने सृष्टि विषय, पुनर्जन्म, ईश्वर, कर्मफल, आत्मा, यज्ञ, वृक्षों में जीव है या नहीं, मुक्ति विषय, वेद विषय आदि पर अनेकों जिज्ञासाएँ की जिनका समाधान आदणीय आचार्य सत्यजित् जी ने युक्ति तर्क व शास्त्रानुकूल किया।

परोपकारी में आये ये जिज्ञासा समाधान रूप लेखों को एकत्र कर पुस्तकाकार कर दिया है, जो कि जिज्ञासु पाठकों के लिए प्रसन्नता का विषय है। इस पुस्तक में ७६ विषय दिये गये हैं, जिनका समाधान पुस्तक में पाठक पायेंगे। समाधान सिद्धान्त निष्ठ होते हुए रोचक हैं, पाठक पढ़ना आरम्भ कर उसको पूरा करके ही हटे ऐसे समाधान पुस्तक के अन्दर हैं।

विद्वान् आचार्य लेखक ने अपने मनोभाव इस पुस्तक की भूमिका में प्रकट किये, ‘‘मानव स्वभाव से अधिक जिज्ञासु है। बाल्यावस्था की जिज्ञासा देखते ही बनती है। आयु के साथ मात्र जीवन जीने के विषयों तक जिज्ञासा सीमित नहीं रहती, वह भूत व भविष्य पर अधिक केन्द्रित होने लगती है, वह भौतिक वस्तुओं से आगे बढ़कर सूक्ष्म-अभौतिक, आध्यात्मिक विषयों पर होने लगती है। जिज्ञासा को उचित उपचार न मिले तो वह निराश करती है, जिज्ञासा भाव समाप्त होने लगता है। वैदिक धर्म में जिज्ञासा करने व उसका समाधान करने की परम्परा सदा बनाये रखी गई है। महर्षि दयानन्द व आर्य समाज ने इसका सदा पोषण किया है, इसे प्रोत्साहित यिा है।’’

यह पुस्तक केवल आर्य समाज के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक विचार वाले जिज्ञासा का समाधान अवश्य मिलेगा। पुस्तक साधारण पाठक से लेकर विद्वानों तक का ज्ञान पोषण करने वाली है। इसको जितना एक साधारण पाठक पढ़कर तृप्ति की अनुभूति करेगा, उतना ही एक विद्वान् भी इसका रसास्वादन कर तृप्ति की अनुभूति करेगा। हाँ इतना अवश्य है जिन किन्हीं ने किसी विषय पर अपनी कोई धारणा विशेष बना रखी है और इस पुस्तक में उनकी धारणा के अनुसार बात न मिलने पर निराशा अवश्य हो सकती है। इसलिए यदि व्यक्ति अपनी धारणा को एक ओर रख ऋषियों की धारणा व युक्ति तर्क के आधार पर इसका पठन करेगा तो वह भी सन्तोष प्राप्त करेगा, ऐसा मेरा मत है।

सुन्दर आवरण को लिए, अच्छे कागज व छपाई से युक्त यह पुस्तक प्रत्येक जिज्ञासु को पढ़ने योग्य है। सिद्धान्त को जानने की इच्छा वाले पाठक इस पुस्तक को प्राप्त कर अपनी जिज्ञासा का समाधान पाकर अवश्य ही लेखक का धन्यवाद करेंगे, इस आशा के साथ-

– आचार्य सोमदेव, पुष्कर मार्ग, ऋषि उद्यान, अजमेर।

4 thoughts on “पुस्तक – परिचय पुस्तक – जिज्ञासा समाधान”

  1. OUM..
    ARYAVAR, NAMASTE….
    MAI DOHA-QATAR ME HOON..
    MUJHE YEH PUSTAK KAISE MILEGI? KOI PDF COPY UPALABDH HAI TO KRIPAYAA JAANKAARI DIJIE AABHAARI RAHUNGAA…
    DHANYAVAAD

  2. Please get me delivered this book in Delhi. Can I pay online for it.? or from where I can get it in Delhi

    Regards
    Vishal Kumar
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