पं ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी का परामर्श: डॉ कुशलदेव शाश्त्री

सार्वदेशिक आर्य महासम्मेलन का सातवाँ अधिवेशन 27 अक्टूबर से 10 नवम्बर 1951 तक ऋषि निर्वाण के अवसर पर मेरठ नगर में आयोजित किया गया था। उसका स्वरूप क्या हो इस विषय पर पं0 ब्रह्मदत्त जी जिज्ञासु (1892-1964) ने वेदवाणी मासिक, वर्ष 4, अंक-1 में विस्तृत लेख लिखा था। जिसमें श्री जिज्ञासुजी ने डॉ0 अम्बेडकर द्वारा प्रस्तुत हिन्दू कोड बिल पर अपनी राय आर्यसमाज को प्रस्तुत करने का आग्रह करते हुए लिखा था, ”हिन्दू कोड बिल पर आर्यसमाज ने कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की, अब तो यह विचारार्थ उपस्थित भी हो रहा है। मेरे विचार में इस विषय में अवश्य ही निश्चित घोषणा करनी चाहिए। आर्यसमाज को इस कोड बिल की एक-एक धारा को लेकर एक-एक पर अपनी धारणा घोषित करनी चाहिए थी, अब भी करनी चाहिए। जितना अंश ग्राह्म हो, उस पर ग्राह्मता की मोहर लगावें। यदि उसमें कुछ परिवर्तन वा परिवर्धन की आवश्यकता हो, तो भी एक बार इस विषय में निश्चित रूप निर्धारित कर उसकी घोषणा करनी उचित है, घसड़-पसड़ ठीक नहीं“—”हिन्दू कोड बिल पर अपना विचार निःसंकोच स्पष्ट देवें।“ हिन्दू कोड बिल अपने मूल रूप में यथासमय पारित नहीं हो पाया। 1956 में वह बिल संशोधित रूप में आया और दो हिस्सों में बंटकर ”हिन्दू मैरिज एक्ट (हिन्दू विवाह अधिनियम) और हिन्दू सक्सेशन एक्ट (उत्तराधिकार अधिनियम)“ के नाम से पास हो गया।

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