पण्डित भोजदज़जी आगरावाले आगे निकल गये
श्री पण्डित भोजदज़जी आर्यपथिक पश्चिमी पञ्जाब में तहसील कबीरवाला में पटवारी थे। आर्यसमाजी विचारों के कारण पण्डित सालिगरामजी वकील प्रधान मिण्टगुमरी समाज के निकट आ गये।
पण्डित सालिगराम कश्मीरी पण्डित थे। कश्मीरी पण्डित अत्यन्त रूढ़िवादी होते हैं इसी कारण आप तो डूबे ही हैं साथ ही जाति का, इनकी अदूरदर्शिता तथा अनुदारता से बड़ा अहित हुआ है। आज कश्मीर में मुसलमानों ने (कश्मीरी पण्डित ही तो मुसलमान बने) इन बचे-खुचे कश्मीरी ब्राह्मणों का जीना दूभर कर दिया और अब कोई हिन्दू इस राज में-कश्मीर में रह ही नहीं सकता।
पण्डित सालिगराम बड़े खरे, लगनशील आर्यपुरुष थे। आपने बरादरी की परवाह न करते हुए अपने पौत्र का मुण्डन-संस्कार विशुद्ध वैदिक रीति से करवाया। ऐसे उत्साही आर्यपुरुष ने पण्डित
भोजदज़जी की योग्यता देखकर उन्हें आर्यसमाज के खुले क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी। पण्डित भोजदज़ पहले पञ्जाब सभा में उपदेशक रहे फिर आगरा को केन्द्र बनाकर आपने ऐसा सुन्दर, ठोस तथा ऐतिहासिक कार्य किया कि सब देखकर दंग रह गये। आपने मुसाफिर1 पत्रिका भी निकाली। सरकारी नौकरी पर लात मार कर आपने आर्यसमाज की सेवा का कण्टकाकीर्ण मार्ग अपनाया। इस उत्साह के लिए जहाँ पण्डित भोजदज़जी वन्दनीय हैं वहाँ पण्डित सालिगरामजी को हम कैसे भुला सकते हैं जिन्होंने इस रत्न को खोज निकाला, परखा तथा उभारा।