अवैदिक कर्म – सूर्य अर्ध्य

पौराणिक अपने घर की छत पर 10 बजे सूर्य की दिशा पानी डालते हुए आर्यसमाजी को देख कर कहता हैं की आपलोग पूजा पाठ नहीं करते इससे धर्म की बड़ी हानि हो रही हैं।

अनवर जमाल को जवाब -१ “आर्यसमाज पर १०८ प्रश्नों का धारदार जवाब”

लेखक- सी.ए.ए CAA (Pt. Chamupati Ki Atma) अनवर जमाल जी की भूमिका-१ (लेख १) ∆ भूमिका- मुस्लिम पक्षकारों व प्रचारकों में से के एक लेखक डॉ अनवर जमाल जी ने आर्यसमाज व महर्षि दयानंद पर एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है ‘स्वामी दयानंद ने क्या पाया क्या खोया: आर्यसमाज से १०८ सवाल’। यह पुस्तक पहले संक्षिप्त ब्लॉग व पुस्तक रूप में थी। श्री राजवीर आर्य जी ने उस पुस्तक का जवाब ‘किताबुल्ला वेद या कुरान’ में दिया था। आज तक इस पुस्तक पर जमाल जी की लेखनी चली हो, ऐसा अब तक देखने में नहीं आया। इसी तरह ब्लॉग रूप में तत्कालीन संक्षिप्त पुस्तक के अनुसार इनका खंडन श्री अनुज जी ने किया था। परंतु उसके बाद जमाल साहब … Continue reading अनवर जमाल को जवाब -१ “आर्यसमाज पर १०८ प्रश्नों का धारदार जवाब”

कुन फ़यकून इंसान व शैतान [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-४] ✍🏻 पण्डित चमूपति

[मौलाना सनाउल्ला खाँ कृत पुस्तक ‘हक़ प्रकाश’ का प्रतिउत्तर]       दर्शन व धर्म के सामने एक प्रश्न सदा से चला आया है वह यह कि संसार में वर्तमान पदार्थों की उत्पत्ति कैसे हुई? सभी धर्म जो परमात्मा की सत्ता मानने वाले हैं परमात्मा की सत्ता को नित्य मानते हैं उसका प्रारम्भ कभी नहीं हुआ। आर्यसमाज ईश्वरेत्तर तत्त्वों की सत्ता भी अनादि अर्थात् सदा से मानता है, परन्तु इस्लाम की मान्यता इसके विपरीत है। इस्लाम में प्राकृतिक वस्तुओं और चेतन पदार्थों को सदा रहने वाली तो माना है, परन्तु वे सदा से (अनादि) ही हैं ऐसा नहीं माना गया।[१] इस्लाम की मान्यता है कि परमात्मा ने कहा- कुन (हो जा) और सब कुछ उत्पन्न हो गया। इसीलिए सूरते बकर में आया है … Continue reading कुन फ़यकून इंसान व शैतान [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-४] ✍🏻 पण्डित चमूपति

तकदीर (भाग्य) [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-३] । ✍🏻 पण्डित चमूपति जी

[मौलाना सनाउल्ला खाँ कृत पुस्तक ‘हक़ प्रकाश’ का प्रतिउत्तर]       इस्लाम की एक मान्यता पर कुछ अन्य मतों को आपत्ति है, वह है भाग्य के सम्बन्ध में उसकी मान्यता। जिसके अर्थ यह हैं कि संसार में जो कुछ अच्छा-बुरा होता है अल्लाहताला के आदेश से होता है। अल्लाहताला नित्य सत्ता है उसके अतिरिक्त सारी सृष्टि उत्पन्न की हुई है। अर्थात् वे अभाव से भाव में आए हैं। उनका अस्तित्व व गुण अल्लाहताला द्वारा निर्मित है, कोई नेक हुआ तो उसका कारण यह है कि अल्लाहताला ने उसे नेक बनाया है उसका कारण यह नहीं कि वह अपनी इच्छा से या प्रयत्न से नेक बन गया प्रत्युत इसका कारण यह है कि अल्ला ने उसे भला बनाया। इसी प्रकार, इस पर आर्यसमाज … Continue reading तकदीर (भाग्य) [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-३] । ✍🏻 पण्डित चमूपति जी

अल्लाह-ताला एक सीमित व्यक्ति है [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-२] । ✍🏻 पण्डित चमूपति

[मौलाना सनाउल्ला खाँ कृत पुस्तक ‘हक़ प्रकाश’ का प्रतिउत्तर]       प्रत्येक धर्म में सर्वोच्चकोटि की कल्पना परमात्मा के सम्बन्ध में है। कुरान शरीफ़ में उसे अल्लाहताला कहा गया है। कुरान के कुछ वर्णनों पर विचार करने से विदित होता है कि इस्लाम में परमात्मा की कल्पना किसी असीम शक्ति की नहीं है, अपितु स्थान, समय व शक्ति के रूप में एक सीमित व्यक्ति की कल्पना है। स्थानीयता की सीमा के साक्षी निम्नलिखित उद्धरण हैं। शेष प्रकारों की सीमा का वर्णन आगे चलकर किया जाएगा।        🔥इन्ना रब्बुकुमुल्लाहोल्लज़ी ख़लकस्समावात् वलअरज़ाफ़ि सित्तते अय्यामिन सुम्मस्तवा अलल अरशे। [सूरते यूनिस आयत ३]        वास्तव में पालनहार तुम्हारा अल्लाह है। जिसने उत्पन्न किया आकाशों को और भूमि को छह दिन में फिर स्थिरता धारण की ऊपर अर्श (अल्लाह … Continue reading अल्लाह-ताला एक सीमित व्यक्ति है [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-२] । ✍🏻 पण्डित चमूपति

क़ुर्आन का प्रारम्भ ही मिथ्या से [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-१] । ✍🏻 पण्डित चमूपति

[मौलाना सनाउल्ला खाँ कृत पुस्तक ‘हक़ प्रकाश’ का प्रतिउत्तर]       वर्तमान कुरान का प्रारम्भ बिस्मिल्ला से होता है। सूरते तौबा के अतिरिक्त और सभी सूरतों के प्रारम्भ में यह मंगलाचरण के रूप में पाया जाता है। यही नहीं इस पवित्र वाक्य का पाठ मुसलमानों के अन्य कार्यों के प्रारम्भ में करना अनिवार्य माना गया है।        ऋषि दयानन्द को इस कल्मे (वाक्य) पर दो आपत्तियाँ हैं। प्रथम यह कि कुरान के प्रारम्भ में यह कल्मा परमात्मा की ओर से प्रेषित (इल्हाम) नहीं हुआ है। दूसरा यह कि मुसलमान लोग कछ ऐसे कार्यों में भी इसका पाठ करते हैं जो इस पवित्र वाक्य के गौरव के अधिकार क्षेत्र में नहीं।        पहली शंका कुरान की वर्णनशैली और ईश्वरी सन्देश के उतरने से सम्बन्ध रखती … Continue reading क़ुर्आन का प्रारम्भ ही मिथ्या से [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-१] । ✍🏻 पण्डित चमूपति

वेदों में पदार्थ – विज्ञान :-ज्ञानचन्द्र

           पद का अर्थ है स्थिति अर्थात् स्टेटस एवं अर्थ का प्रयोजन है तात्पर्य एवं मूल। पृथ्वी क्योंकि सभी प्राणियों की स्थिति का कारण है तथा पृथ्वी ही सबका मूल है अतः पृथ्वी के द्रव्य का नाम हुआ पदार्थ। साथ ही पृथ्वी पंच सृजनकारी तत्वों का अन्तिम परिवर्तन है तथा आकाश, वायु, अग्नि व जल का सघन तत्व है अतः उसका नाम हुआ पदार्थ अर्थात् स्थिति और मूल। इसी नाते पदार्थ भौतिक तत्वों भी कहते हैं।             पदार्थ के विज्ञान से यदि आधुनिक दृष्टि सम्मत मूल तत्व को जड़ पदार्थ मानकर और उनसे विकसित साधनों का, उसकी व्यवस्था से होने वाले किकासों और जीवनोपयोगी विधानों से है, तो उसका उतना महत्व नहीं है। क्योंकि भारत ने अन्न अर्थात् पदार्थ को … Continue reading वेदों में पदार्थ – विज्ञान :-ज्ञानचन्द्र

ऋग्वेद में वायु का स्वरूप :- श्रीमती माला प्यासी

            वेद वस्तुतः एक ही हैं, स्वरूप भेद के कारण त्रयी नाम से जाना जाता है; ऋक्, यजु और साम। जिन मन्त्रों में अर्थवशात् पादों की व्यवस्था है उन छन्दोबद्ध मन्त्रों को ऋचा या ऋक् कहते हैं। जैसा कि जैमिनी सूत्र में कहा गया है- ‘‘तेषामृगयत्रार्थवशेन पादव्यवस्था” और ऋचाओं के समूहों को संहिता कहा जाता है।             ऋक् संहिता या ऋग्वेद का गौरव या उसका महत्व सर्वाधिक माना जाता है। पाश्चात्य विद्वानों ने भाषा एवं भाव की दृष्टि से ऋग्वेद को अन्य वेदों की तुलना में प्राचीन माना है। अतएव उनकी दृष्टि से ऋग्वेद विशेष उपयोगी हैं। भारतीय विद्वान् भी ऋग्वेद को प्राचीन मानते है। तैत्तरीय संहिता के अनुसार साम तथा यजु के द्वारा जो विधान किया जाता है वह … Continue reading ऋग्वेद में वायु का स्वरूप :- श्रीमती माला प्यासी

व्रुपासि वास्त्रा वैदिक वाड्.मय में पृथिवी – प्रो.-छाया ठाकुर

            लैटिन भाष के शब्द साइंटिया (Scientia) जिसका अर्थ ज्ञान है से व्युत्पन्न साइंस अर्थात् विज्ञान (विशिष्ट ज्ञानं विज्ञानमिति) प्रयोग और परीक्षण द्वारा सत्यापित ज्ञान है। विज्ञान की दो शाखायें हैं (१) प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) (२) सामाजिक विज्ञान (Human Science)। प्राकृतिक विज्ञान ही वह आधारभूत विज्ञान है जिसमें प्रकृति और पदार्थ का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। प्राकृतिक विज्ञान की एक शाखा भौतिक विज्ञान के अन्तर्गत हम ब्रह्माण्ड में स्थित वस्तुओं, क्रियाओं और उन्हें प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करते हैं। पदार्थ का अध्ययन करनेवाले समस्त विज्ञानों को भौतिक विज्ञान (Matarial Science) कहते हैं। पदार्थ-विज्ञान के अन्तर्गत ही हम ब्रह्माण्ड में स्थित विभिन्न तत्वों जैसे सूर्य, वायु, मेघ, पृथिवी, प्रकाश आदि का अध्ययन करते हैं।             वैदिक साहित्य … Continue reading व्रुपासि वास्त्रा वैदिक वाड्.मय में पृथिवी – प्रो.-छाया ठाकुर

वेदोक्त सूर्य का स्वरूप और कार्य -वेदपाल वर्मा

            वेद कहता है कि पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त पदार्थ विद्या का ज्ञान प्राप्त करना मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। पदार्थ विज्ञान के ज्ञाता इधर-उधर नहीं घूमते। पदार्थ विज्ञान से विद्या की वृद्धि-शुभकर्मों में प्रवृत्ति तथा निरन्तर सुख एंव ऐश्वर्यानन्द की प्राप्ति होती है १ ४/३ ऋक्।।  मनुष्यों को चाहिये वे भू-जल-सूर्य-पवन -विद्युत् आदि पदार्थों के विशेष ज्ञान से शिल्प विद्या द्वारा उत्तम-उत्तम क्रियाएं प्रकाश में लाएं और उनका प्रयोग करें १ १/२ ऋक्।।  इसीलिए विद्वानों को पदार्थ विद्या की खोज करनी चाहिए ५ २२/३ ऋक्।। वेद यह भी कहता है कि सूर्यरूप पदार्थ विद्या के ज्ञाता सदा श्रीमान् व सुखी होते हैं ५ ४५/२ ऋक्।।  सूर्यो भूतस्यैकं चक्षुः- सूर्य जगत् का एकमात्र चक्षु है १३ १/४५ अथर्व. ।। … Continue reading वेदोक्त सूर्य का स्वरूप और कार्य -वेदपाल वर्मा

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)