एक शास्त्रार्थ

एक शास्त्रार्थ हरियाणा के लोककवि पण्डित बस्तीराम ने ऋषि के दर्शन किये और जीवनभर वैदिक धर्म का प्रचार किया। शास्त्रार्थ की भी अच्छी सूझ थी। एक बार पौराणिकों से पाषाण-पूजा पर उनका शास्त्रार्थ हुआ। पौराणिक पण्डित से जब और कुछ न बन पड़ा तो अपनी परज़्परागत कुटिल, कुचाल चलकर बोला-‘‘आपका ओ3म् किस धातु से बना है?’’ पण्डितजी व्याकरण के चक्र में पड़कर विषय से दूर जाना चाहते थे। पण्डित बस्तीरामजी सूझवाले थे। श्रोताओं को सज़्बोधित करके बोले, ‘‘ग्रामीण भाई-बहिनो! देखो, कैसा विचित्र प्रश्न यह मूर्ज़िपूजक पण्डित पूछ रहा है कि तुज़्हारा ओ3म् किस धातु से बना है। अरे! सारा संसार जाने कि हम प्रतिमा-पूजन नहीं मानते। इसी विषय पर तो शास्त्रार्थ हो रहा है। अरे पण्डितजी! हमारा ‘ओ3म्’ तो निराकार … Continue reading एक शास्त्रार्थ

HADEES : PUNISMENT FOR THEFT

PUNISMENT FOR THEFT �Aisha reports that �Allah�s Messenger cut off the hands of a thief for a quarter of dInAr and upwards� (4175).  AbU Huraira reports the Prophet as saying: �Let there be the curse of Allah upon the thief who steals an egg and his hand is cut off, and steals a rope and his hand is cut off� (4185). The HadIs merely confirms the QurAn, which also prescribes: �And as for the man who steals and the woman who steals, cut off their hand as a punishment for what they have done, an exemplary punishment from Allah, and Allah is Mighty and Wise� (5:38).  The translator, in a long two-page note, tells us that �it is against the background of this social … Continue reading HADEES : PUNISMENT FOR THEFT

हदीस : ”इंशा अल्लाह“ की शर्त

”इंशा अल्लाह“ की शर्त अगर कोई क़सम लेते वक्त ”अल्लाह ने चाहा तो“ (इंशाअल्लाह) कह देता है तो वह प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करनी चाहिए। सुलेमान के 60 बीवियां थीं। एक दिन उसने कहा-“मैं निश्चित ही इनमें से हरेक के साथ रात में मैथुन करूँगा और उनमें से हरेक एक मर्द बच्चे को जन्म देगी जो घुड़सवार बनेगा और अल्लाह के काम के लिए लड़ेगा।“ लेकिन उनमें से सिर्फ एक गर्भवती हुई और उसने भी एक अधूरे बच्चे को जन्म दिया। मुहम्मद ने कहा-“अगर उसने इंशा अल्लाह कहा होता, तो वह असफल नहीं होता।“ कई-एक अन्य हदीस भी ऐसा ही किस्सा बयान करती है। उनमें बीवियों की संख्या 60 से बढ़ कर 70 और फिर 90 हो जाती है (4066-4070)। author … Continue reading हदीस : ”इंशा अल्लाह“ की शर्त

इन्हें सोने दें

इन्हें सोने दें आर्यसमाज धारूर महाराष्ट्र का उत्सव था। श्री पण्डित नरेन्द्रजी हैदराबाद से पधारे। रात्रि में सब विद्वान् आर्यसमाज के प्रधान पण्डित आर्यभानुजी के विशाल आंगन में सो गये। इनमें से एक अतिथि ऐसा था जिसे रात्रि को अधिक ठण्डी अनुभव होती थी, परन्तु संकोचवश ऊपर के लिए मोटा कपड़ा न माँगा। प्रातःकाल सब लोग बाहर शौच के लिए चलने लगे तो उस अतिथि का नाम लेकर एक ने दूसरे से कहा-इन्हें भी जगा लो सब इकट्ठे चलें। इसपर पण्डित नरेन्द्रजी ने कहा-ऊँचा मत बोलो, जाग जाएँगे। जगाओ मत, सोने दो। इन्हें रात को बड़ी ठण्डी लगी। सिकुड़े पड़े थे। मैंने ऊपर शाल ओढ़ा दिया। ये शज़्द सुनकर वह सोया हुआ व्यक्ति जाग गया। वह व्यक्ति इन्हीं पंक्तियों का … Continue reading इन्हें सोने दें

HADEES : HADUD

HADUD HadUd, the penal law of Islam, is dealt with in the fifteenth book. The ahAdIs in this book relate to measures of punishment defined either in the QurAn or in the Sunnah.  The punishments include the amputation of limbs for theft and simple robbery; stoning to death for adultery; a hundred stripes for fornication; eighty stripes for falsely accusing a married woman, and also for drinking wine; and death for apostasy, as we have already seen.

हदीस : क़सम तोड़ना

क़सम तोड़ना जरूरत पड़ने पर खुद अल्लाह ने क़सम तोड़ देने की इज़ाज़त दी है। ”अल्लाह ने पहले ही अपनी कसमें तोड़ देने की तुम्हें इजाज़त दे रखी है“ (कुरान 66/2)।   ऐसी प्रतिज्ञा को जिसमें अल्लाह की नाफ़रमानी हो या जो ग़ैर-इस्लामी काम के लिए ली गयी हो, पूरा करना जरूरी नहीं है। मुस्लिम कानून के पंडितों में इस बात को लेकर मतभेद है कि जो प्रतिज्ञा अज्ञान की दशा में (अर्थात् इस्लाम क़बूल करने के पहले) की गई हो वह शिक्षा बाध्यकारी है या नहीं। कई-एक का मत है कि अगर वह प्रतिज्ञा इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ न हो, तो उसे पूरा करना चाहिए।   कोई भी कसम तोड़ी जा सकती है, विशेषकर तब जब कि क़सम … Continue reading हदीस : क़सम तोड़ना

आर्यों की देवी व देवता

आर्यों की देवी व देवता स्वामी वेदानन्दजी तीर्थ जब खेड़ाखुर्द (दिल्ली) का गुरुकुल चलाते थे तो सहदेव नाम का एक गठीला, परन्तु जड़बुद्धि युवक उनके पास रहता था। ब्रह्मचारी में कई गुण भी थे। ब्रह्मचारी में गुरुभक्ति का भाव तब बहुत था और व्यायाम की सनक थी। गुरुकुल के पास एक धनिक कुज़्भकार रहता था। उसे स्वामी वेदानन्दजी से बड़ी चिढ़ थी। चिढ़ का कारण यह था कि वह समझता था कि आर्यसमाजी देवी-देवताओं को नहीं मानते। स्वामीजी चाहते थे कि इस व्यक्ति को आर्यसमाजी बनाया जाए, यह बड़ा उपयोगी सिद्ध होगा। जब ब्रह्मचारी शिक्षा के लिए निकलते तो यह कभी भी किसी को कुछ भी भिक्षा के लिए न देता। उसका एक ही रोष था कि आर्य लोग देवी-देवताओं … Continue reading आर्यों की देवी व देवता

HADEES : DIYAT (INDEMNITY)

DIYAT (INDEMNITY) Muhammad retained the old Arab practice of bloodwite (4166-4174).  Thus, when a woman struck her pregnant co-wife with a tent-pole, causing her to have a miscarriage, he fixed �a male or female slave of best quality� as the indemnity �for what was in her womb.� An eloquent relative of the woman pleaded for the cancellation of the indemnity, arguing: �Should we pay indemnity for one who neither ate, nor made any noise, who was just Eke a nonentity?� Muhammad brushed aside his objection, saying that the man was merely talking �rhymed phrases like the rhymed phrases of desert Arabs� (4170). author : ram swarup

हदीस : प्रतिज्ञाएं और क़समें

प्रतिज्ञाएं और क़समें बारहवीं और तेरहवीं किताबें क्रमशः प्रतिज्ञाओं (अल-नज़र) और क़समों (अल-ऐलान) पर है। यहां हम दोनों का साथ-साथ विचार करेंगे। मुहम्मद प्रतिज्ञाएं करने को नापसन्द करते हैं, क्योंकि प्रतिज्ञा “न तो (किसी काम को) जल्दी पूरा करने करने में मददगार होती और न ही (इसमें) रुकावट बनती है“ (4020)। अल्लाह को किसी आदमी की प्रतिज्ञाओं की जरूरत नहीं। एक शख़्स ने एक बाद प्रतिज्ञा की कि वह पैदल चल कर काबा जायेगा। तब मुहम्मद ने कहा-”अल्लाह इसके प्रति उदासीन है कि कोई अपने ऊपर कष्ट लाद रहा है।“ और ”उसे सवारी पर जाने का हुक्म दिया“ (4029)।   मुहम्मद मोमिनों को लात या उज्जा या अपने पिताओं की क़सम खाने से भी मना करते हैं। वे कहते हैं-”बुतों … Continue reading हदीस : प्रतिज्ञाएं और क़समें

शव का दाह-कर्म ही होगा

शव का दाह-कर्म ही होगा मारीशस में सरकारी नियमानुसार किसी शव का दाह-कर्म नहीं किया जा सकता था। बीसवीं शताज़्दी के आरज़्भ की घटना है कि मारीशस में एक सैनिक टुकड़ी आई। इनमें से किसी की मृत्यु हो गई। नियमानुसार उसे दबाने के लिए कहा गया। आर्यवीर सैनिकों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। सरकार ने पुलिस की सहायता से शव को भूमि में गाड़ना चाहा, परन्तु ये सैनिक विद्रोह पर तुल गये। सरकार को ललकारा-देखते हैं कि हमारा शव कौन छूता है? सरकार झुक गई। आर्यों की मारीशस में यह पहली बड़ी जीत थी। मारीशस में यह प्रथम दाह-कर्म था। यही लोग जाते-जाते सत्यार्थप्रकाश की एक प्रति दो-एक मित्रों को दे गये। आर्यसमाज का बीज बोनेवाले यही थे। … Continue reading शव का दाह-कर्म ही होगा

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)