संवत्सरं प्रतीक्षेत द्विषन्तीं योषितं पतिः । ऊर्ध्वं संवत्सरात्त्वेनां दायं हृत्वा न संवसेत्

पितृ-धन को बिल्कुल भी उपयोग में न लाता हुआ यदि कोई पुत्र केवल अपने परिश्रम से धन उपार्जित करे तो अपने परिश्रम से संचित उस धन में से किसी भाई को कुछ न देना चाहे तो न देवे अर्थात् देने के लिये वह बाध्य नही है ।

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