प्रोषितो धर्मकार्यार्थं प्रतीक्ष्योऽष्टौ नरः समाः । विद्यार्थं षड्यशोऽर्थं वा कामार्थं त्रींस्तु वत्सरान्

भाइयों में जो भाई अपने उद्योग से समृद्ध हो और (धन न इहेत) पितृधन का भाग न लेना चाहे तो (सः) उसको भी अपने-अपने पितृधन के हिस्सों से कुछ धन देकर अलग करना चाहिए, बिल्कुल बिना दिये नहीं ।

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