द्यूतं एतत्पुरा कल्पे दृष्टं वैरकरं महत् । तस्माद्द्यूतं न सेवेत हास्यार्थं अपि बुद्धिमान् ।

यह ’जूआ’ अब से पहले समय में भी महान् कष्ट एवं शत्रुता पैदा करने वाला देखा गया है इसलिये बुद्धिमान् मनुष्य हंसी-मजाक में भी जूआ न खेले ।

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