नैता रूपं परीक्षन्ते नासां वयसि संस्थितिः । सुरूपं वा विरूपं वा पुमानित्येव भुञ्जते । ।

हे पुरुषो ! अपत्यों की उत्पत्ति उत्पन्न का पालन करने आदि लोकव्यवहार को नित्यप्रति जो कि गृहाश्रम का कार्य होता है उसका निबन्ध करने वाली प्रत्यक्ष स्त्री है ।

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